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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
जब गुलाब चंद अपनी बीवी बिम्ला देवी को उठाने की कोशिस करता है तो वो पता है कि वो मर चुकी है.
“हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा दे रहे हो हमे आज” --- गुलाब चंद रोते हुवे बोलता है और लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर जाता है.
पर सरिता का ख्याल आते ही वो जल्दी ही हड़बड़ाहट में खड़ा होता है और ठाकुर की हवेली की तरफ दौड़ता है.
वो अभी बीच रास्ते में ही पहुँचता है कि उसकी रूह काँप उठती है.
वो देखता है कि उसकी बेटी सरिता के शरीर पर एक भी कपड़ा नही है और वीर प्रताप उसकी पीठ पर चाबुक मार-मार कर उसे आगे बढ़ने पर मजबूर कर रहा है. गुलाब चंद ये सब देख नही पता और लड़खड़ा कर वहीं सड़क पर गिर जाता है.
“चल साली कुतिया, रुकी तो… यहीं तेरी चूत में डंडा डाल दूँगा” --- वीर प्रताप ने चील्ला कर कहा
“मुझे छ्चोड़ दो मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है”
“इस गाँव की लड़कियों की तो मैं बिना कुछ बिगाड़े भी ऐसी तैसी कर देता हूँ, तेरे भाई ने तो फिर भी बहुत बड़ी गुस्ताख़ी की है”
सरिता भी ये बात आछे से जानती थी कि छोटे ठाकुर से ज़ुबान लड़ाना ठीक नही है लेकिन उसके पास कोई चारा भी तो नही था. उसकी इज़्ज़त सरे आम उतार ली गयी थी. उसे सरे आम नंगा घुमाया जा रहा था.
गुलाब चंद मुस्किल से खड़ा होता है और भाग कर वीर के पैरो में गिर जाता है
“छोटे ठाकुर क्या भूल हो गयी हम से जो हमारे साथ ये सब किया जा रहा है”
“ये अपने बेटे मदन से जा कर पूछ, जिश्ने हमारी छोटी बहन को अगवा कर लिया है” – वीर ने गुलाब चंद को लात मारते हुवे कहा
ये सुन कर गुलाब चंद हैरान रह जाता है, लेकिन फिर से होश संभाल कर ठाकुर के कदमो में गिर जाता है
“मेरी बिटिया को छ्चोड़ दो छोटे ठाकुर, इसने तो आपका कुछ नही बिगाड़ा, जैसे ही मदन मिलेगा मैं खुद उसे आपके पास ले आउन्गा”
“तू क्या उसे मेरे पास लाएगा नीच, चल भाग यहा से वरना तेरी बीवी की तरह तू ही मारा जाएगा”
इस बार वीर इतनी ज़ोर से गुलाब चंद के मूह पर लात मारता है कि वो वहीं बेहोश हो कर गिर जाता है.
“पिता जी आप यहा से चले जाओ ?” – सरिता रोते हुवे कहती है
“चल साली आगे बढ़… वरना तेरी चाँदी उधेड़ दूँगा” --- वीर सरिता की पीठ पर चाबुक मारते हुवे कहता है.
वो लड़खड़ा कर दर्द से कराहते हुवे गिर जाती है
“लगता है इसका यहीं काम करना पड़ेगा”
वीर सरिता के बाल पकड़ कर उसे अपने आगे झुकाता है और पीछे से उस में बेरहमी से समा जाता है.
वाहा चारो तरफ सरिता की चीन्ख गूँज उठती है. गाँव के सभी लोग घरो में हैं. वीर के चारो तरफ बस ठाकुर के ही आदमी हैं.
सरिता पीछे मूड कर देखती है, उसके पिता जी अभी भी बेहोश ज़मीन पर पड़े हैं.
“हे भगवान मेरे साथ यही सब करना था तो मुझे ये जींदगी ही क्यों दी थी. मुझे वैसे ही मार देते. ये मौत से बद-तर सज़ा क्यों मिल रही है मुझे”
वीर अपनी हवश शांत करके हट जाता है और कहता है, “जल्दी से इसकी छोटी बहन का भी पता लगाओ, सुना है कि वो बहुत सुन्दर है, उसका भी यही हाल करना है”
“जी मालिक आप चिंता मत करो वो भी मिल जाएगी” --- बलवंत ने हंसते हुवे कहा
सरिता ज़मीन पर गिर जाती है
“चल उठ साली………… तुझे हवेली तक चलना है”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--4
गतान्क से आगे..............
“चल अंदर” वीर ने सरिता को हवेली के एक कमरे में धकेलते हुवे कहा
सरिता ने रोते हुवे मूड कर उसकी और देखा.
“देख क्या रही है, सूकर मना तू अभी तक ज़िंदा है” --- वीर प्रताप ने कहा
रेणुका दूर खड़ी हुई सब कुछ देख रही है. उसने ऐसा आज तक अपनी जींदगी में नही देखा, इश्लीए बहुत हैरान और परेशान है. वो दौड़ कर रुद्र प्रताप के कमरे में जाती है
“पिता जी-पिता जी….. देखिए ये किशे यहा उठा लाए हैं…आप इन्हे रोकते क्यों नही ?”
“चुप रहो बहू, एक साल हो गया तुम्हे इस घर में आए… पर तुमने अब तक ये नही सीखा कि इस घर की औरते ज़ुबान नही चलाती”
“माफ़ करना….पिता जी… पर जो कुछ ये कर रहे हैं… ग़लत कर रहे हैं. एक औरत को यहा ऐसी हालत में घसीट कर लाए हैं कि मैं कह नही सकती”
“वीर !!!” --- रुद्र प्रताप ने चील्ला कर आवाज़ लगाई
वीर भाग कर वाहा आता है
“जी पिता जी क्या हुवा ?”
“बहू से कहो यहा से चली जाए वरना हम अपना आपा खो बैठेंगे….. अब ये हमे बताएगी कि हम क्या करें क्या नही”
वीर ने तुरंत रेणुका की ओर बढ़ कर उसके बाल पकड़ लिए और चील्ला कर बोला, “क्या तकलीफ़ है तुम्हारी”
“आहह क..क..कुछ नही मैं तो बस पिता जी से ये कह रही थी कि ये जो हो रहा है ग़लत हो रहा है” --- रेणुका ने कराहते हुवे कहा
“और जो हमारी वर्षा के साथ हुवा वो क्या सही था ?” वीर ने पूछा
वीर रेणुका के बाल खींचते हुवे उशे अपने कमरे तक ले आया और उशे बिस्तर पर पटक दिया और बोला, “खबरदार जो आज के बाद यहा किशी से कुछ बोला तो, मुझ से बुरा कोई नही होगा”
“आप से बुरा… कोई है भी नही दुनिया में”
“बिल्कुल सही, बहुत जल्दी समझ में आ गया तुझे”
तभी वीर को बाहर से आवाज़ आती है
“छोटे मालिक”
वीर बाहर आ कर पूछता है
“क्या बात है बलवंत ?”
“मालिक मैं कुछ आदमियों को लेकर पीछे के खेतो में जा रहा हूँ, मुझे यकीन है कि मदन की छोटी बहन वहीं छुपी होगी”
“रूको मैं भी साथ चलूँगा ?”
“ठीक है मालिक चलिए”
“भीमा !!” वीर भीमा को आवाज़ लगाता है
भीमा भाग कर आता है और सिर झुका कर कहता है , “जी मालिक ?”
“वो बाहर के कमरे का ताला लगा दो, हम अभी आते हैं”
“जो हूकम मालिक”
वीर बलवंत और उसके साथियों के साथ हवेली के पीछे के खेतो की तरफ चल पड़ता है
खेत में साधना बड़ी असमंजस की हालत में है. वो मन ही मन सोच रही है कि वो घर जाए या फिर यहीं खेत में बैठी रहे. एक पल वो मदन के लिए परेशान होती है…. और दूसरे ही पल सरिता के लिए. वो इस बात से अभी अंजान है कि उसकी मा मर चुकी है, उसके पिता जी सड़क पर बेहोश पड़े हैं और उसकी बहन सरिता ठाकुर की हवेली में क़ैद है. वो इस बात से भी बेख़बर है कि वीर प्रताप कुछ लोगो के साथ उसकी तरफ बढ़ रहा है
अचानक साधना को किसी के आने की हुलचल सुनाई देती है. साधना भाग कर मक्की की फसलों में छुप जाती है.
“पूरा खेत छान मारो वो यही कही होगी ?” वीर ने कहा
“छोटे ठाकुर आप चिंता मत करो वो यहा से बच कर नही जा पाएगी” – बलवंत ने कहा
ठाकुर के आदमी पूरे खेत में फैल जाते हैं.
साधना, वीर और बलवंत की बाते सुन लेती है और समझ जाती है कि वो लोग उशे ढूंड रहे हैं.
“मालिक मैं यहा सामने की फसलों में देखता हूँ” --- बलवंत ने कहा
“हां-हां देखो, जल्दी ढूंड कर लाओ उशे”
साधना के दिल की धड़कन बढ़ जाती है क्योंकि बलवंत उशी की तरफ बढ़ रहा है.
पर तभी वीर के पास कल्लू चीखता हुवा आता है
“मालिक-मालिक लगता है वो लड़की जंगल में घुस्स गयी”
ये सुन कर बलवंत वापिस मूड जाता है और कल्लू से पूछता है
“क्या बकवास कर रहे हो… उस जुंगल में लोग दिन में जाने से डरते हैं, अब रात होने को है, वो लड़की भला वाहा कैसे जाएगी” --- बलवंत ने कहा
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मैं सच कह रहा हूँ बलवंत, मैने खुद किसी को अभी अभी खेत के उस पार जो जुंगल है उसमे जाते हुवे देखा है, मुझे पूरा यकीन है कि वो मदन की बहन ही होगी, दूर से वो कोई लड़की जैसी ही लग रही थी”
“बलवंत जल्दी से सभी को बुलाओ हूमें उसे हर हाल में पकड़ना है” --- वीर ने कहा
“मालिक इस वक्त उस जंगल में जाना ख़तरे से खाली नही है, मेरी बात मानिए हम उशे सुबह ढूंड लेंगे, वो अकेली लड़की भाग कर जाएगी भी कहा”
“पर मुझे डर है कि सुबह तक उसकी लाश ही मिलेगी” --- वीर ने कहा
“वो तो है मालिक पर इसके अलावा हम कर भी क्या सकते हैं, आप तो जानते ही हैं सतपुरा के इन जुंगलों को”
वीर किसी सोच में डूब जाता है और कहता है, “ठीक है चलो… कल सुबह देखेंगे”
वीर सभी को लेकर वाहा से चल देता है.
साधना साँस रोके चुपचाप बैठी है. वो सूकर मना रही है की वो लोग जा रहे हैं. पर एक बात मन ही मन उशे परेशान कर रही है कि ठाकुर के आदमियों ने जंगल में जाते हुवे किसको देखा है ?
इधर हवेली में रेणुका अपने कमरे से निकल कर उस कमरे की तरफ देखती है जिसमे सरिता बंद है. वो मन ही मन सोचती है कि जा कर कमरे का दरवाजा खोल कर उशे वाहा से भगा दे.
रेणुका ये सब सोच ही रही है कि अचानक उसे उस कमरे से चीन्ख सुनाई देती है. वो वाहा जाना चाहती है पर चाह कर भी जा नही पाती.
थोड़ी देर बाद उशे उस कमरे से रुद्रा प्रताप निकलता हुवा दीखाई देता है
वो मन ही मन कहती है छी !!…जब बाप ही ऐसा हो तो बेटा क्यों नही बुरे काम करेगा.
तभी अचानक रेणुका को घर के पीछे कुछ हुलचल सुनाई देती है.
वो भाग कर वाहा जाती है तो पाती है कि भीमा वाहा अपने हाथ को एक चाकू से चीर रहा है
“अरे ये क्या कर रहे हो तुम भीमा ?”
“म ..म ..में-सब कुछ नही”
“कुछ नही मतलब !! ये खून क्यों बहा रहे हो तुम”
“मेम-साब किसी से कहना मत”
“हाँ-हाँ बोलो क्या बात है ?”
“ये जो लड़की बाहर के कमरे में बंद है, उसका नाम सरिता है, मैं कभी उशे चाहता था. उसकी आँखो में भी मेरे लिए प्यार था, पर हम कभी कह नही पाए. और अचानक उसकी शादी हो गयी. आज सालो बाद उसे इस हालत में देख रहा हूँ. पर मैं चाह कर भी कुछ नही कर सकता… इश्लीए खुद को सज़ा दे रहा हूँ”
“तो जाकर चुलु भर पानी में डूब मरो” ---- रेणुका ने गुस्से में कहा और कह कर वाहा से मूड कर अपने कमरे की तरफ चल दी.
जाते-जाते उसने मूड कर देखा तो पाया कि जीवन चाचा उस कमरे में घुस रहा था जिसमे सरिता बंद थी
रेणुका ने मन ही मन में कहा, ‘इस घर में सभी आदमी एक जैसे हैं…बस नाम, शकल और उमर अलग-अलग हैं’
रेणुका से ये सब देखा नही गया और वो वापिस मूड कर भीमा के पास आ गयी और बोली, “तुम उशे कैसा प्यार करते थे !! तुम्हे शरम नही आती, यहा खड़े-खड़े तमासा देख रहे हो, तुम्हे कुछ करना चाहिए”
“मैं इस घर का नौकर हूँ मेम-साब, आप ही बताओ मैं क्या कर सकता हूँ”
“नौकर होने का ये मतलब तो नही की तुम इंसानियत भूल जाओ ?”
“मेम-साब में कुछ नही कर सकता, मैं मजबूर हूँ”
“ठीक है फिर मुझे ही कुछ करना पड़ेगा”
ये कह कर रेणुका भाग कर हवेली की रसोई में जाती है और एक लंबा सा चाकू लेकर उस कमरे की तरफ भागती है जिसमे सरिता बंद है. भीमा एक तक उशे देखता रह जाता है.
रेणुका उस कमरे के बाहर आकर देखती है कि दरवाजा अंदर से बंद है और अंदर से सरिता के सिसकने की आवाज़ आ रही है. वो हिम्मत करके दरवाजा खड़काती है.
“कौन है ?”
पर रेणुका जीवन के सवाल का कोई जवाब नही देती और एक बार फिर से दरवाजा खड़काती है. वो चाकू एक हाथ से पीठ के पीछे छुपा लेती है
जीवन दरवाजा खोलता है.
“अरे रेणुका बेटी तुम यहा क्या कर रही हो ?”
“ये सवाल मुझे आपसे करना चाहिए चाचा जी”
“चुप कर, अपना काम कर जा कर ?”
“अपना काम ही कर रही हूँ चाचा जी चुपचाप पीछे हट जाओ वरना ये खंजर शीने में उतार दूँगी” --- रेणुका चाकू जीवन को दीखाते हुवे कहती है.
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
पर जीवन एक झटके में उसके हाथ से चाकू छीन लेता है.
रेणुका एक नज़र सरिता पर डालती है. सरिता की हालत देख कर उसकी आँखे नम हो जाती हैं. सरिता भी ना-उम्मिदि लिए उसकी ओर देखती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है.
जीवन रेणुका के मूह पर एक थप्पड़ जड़ देता है जिसके कारण रेणुका लड़खड़ा कर वहीं गिर जाती है
भीमा भाग कर वाहा आता है पर जीवन को देख कर ठिठक जाता है.
“भीमा तुम जाओ अपना काम करो यहा सब ठीक है” --- जीवन ने कहा
“मालिक पर”
“पर क्या…. मेरा दीमाग खराब मत करो और जाओ यहा से”
भीमा चुपचाप वापिस मूड कर चल देता है.
रेणुका कमरे के बाहर पड़ी रह जाती है और जीवन दरवाजा वापिस बंद कर लेता है.
अचानक भीमा कुछ अजीब करता है. वो रुद्र प्रताप के कमरे की तरफ जाता है और उसके कमरे को बंद करके बाहर से कुण्डी लगा देता है.
फिर वो भाग कर रेणुका के पास आता है और कहता है, “मेम-साब उठो”
“उस लड़की को बचा लो भीमा… वरना मैं भगवान को क्या मूह देखाउन्गि”
“मैं कुछ करता हूँ मेम-साब आप उठो यहा से”
रेणुका वाहा से खड़ी होती है.
भीमा दरवाजे को ज़ोर से धकैल कर खोल देता है.
“भीमा ये क्या कर रहे हो”
“वही जो बहुत पहले करना चाहिए था”
भीमा ने जीवन की टाँग पकड़ कर उसे सरिता के उपर से खींच लिया और उसे एक तरफ पटक दिया
“लगता है तुझे अपनी जान प्यारी नही”
भीमा जीवन को कुछ नही कहता और कमरे के बाहर आ कर रेणुका से कहता है “मेम-साब….कपड़े”
“रूको मैं अभी अपने कुछ कपड़े लाती हूँ”
इतने में भीमा जीवन को रस्सी से बाँध कर एक तरफ बैठा देता है
रेणुका भाग कर अपने कमरे से सरिता के लिए कपड़े लाती है और कमरे में आकर सरिता को कपड़े देते हुवे कहती है, “लो जल्दी से कपड़े पहन लो और यहा से निकल जाओ”
सरिता मुस्किल से उठती है और धीरे-धीरे कपड़े पहनती है
मेम-साब मुझे भी इसके साथ ही जाना होगा, आपने मेरी आँखे खोल दी वरना मैं जींदगी भर खुद से नज़रे नही मिला पाता
“इन बातो का वक्त नही है अभी जल्दी यहा से निकलो…सरिता को इसके ससुराल पहुँचा देना”
“जी मेम-साब मैं सरिता को लेकर अभी इसके ससुराल चल पड़ूँगा आप अपना ख्याल रखना”
“अब जल्दी जाओ यहा से”
“जी मेम-साब”
सरिता हाथ जोड़ कर रेणुका का धन्यवाद करती है
रेणुका भावुक हो कर उसे गले लगा लेती है और कहती है , “जो भी तुम्हारे साथ हुवा उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. जाओ अपना ख्याल रखना”
भीमा सरिता को लेकर हवेली से निकल पड़ता है.
रेणुका उन्हे जाते हुवे देखती रहती है. वो मन ही मन सोचती है की उशे भी यहा से कहीं चले जाना चाहिए. ऐसे नरक में रहने से क्या फ़ायडा. फिर वो मूड कर अपने कमरे की तरफ चल देती है.
अचानक उसे अपने पीछे हलचल सुनाई देती है. वो मूड कर देखती है कि वीर, अपने आदमियों के साथ चला आ रहा है
वीर जैसे ही उस कमरे के सामने पहुँचता है तो समझ जाता है कि रेणुका ने मदन की बहन को भगा दिया है.
वो भाग कर रेणुका के बाल पकड़ लेता है और कहता है, “तो तूने अपनी औकात दीखा ही दी. अब मैं तेरा वो हाल करूँगा कि तू सोच भी नही सकती”
बलवंत कमरे में जाकर देखता है कि जीवन वाहा बँधा पड़ा है, वो झट से उसकी रस्सिया खोलता है और मूह में से कपड़ा निकालता है.
जीवन भाग कर वीर के पास आता है और कहता है, “वीर उस लड़की को भीमा ले गया है, और बहू ने उसकी मदद की है”
“क्या भीमा ? भीमा ने ऐसा क्यों किया ?”
“पता नही वीर… उसी ने मुझे रस्सी से बाँधा था और मेरे मूह में कपड़ा ठूंस दिया था”
“आप चिंता मत करो चाचा जी वो लोग बच कर कही नही जा सकते. भीमा को मैं जींदा नही छोड़ूँगा”
वीर, रुद्रा प्रताप के कमरे की तरफ बढ़ता है तो देखता है कि बाहर से कुण्डी लगी है. वो खोल कर देखता है तो पता है कि उसके पिता जी सो रहे हैं.
वीर, बलवंत को बुला कर पूछता है, “ये भीमा किस रास्ते से गया होगा ?”
मालिक वो ज़रूर हवेली के पीछले रास्ते से गया होगा, हम सामने से आ रहे थे, वो हमे तो दीखा नही. हवेली के पीछे खेत हैं और खेतो के पार जंगल, वो ज़रूर पीछले रास्ते से गया होगा
“हां-हां वो पीछले रास्ते से ही गया है मैने कमरे से उन्हे जाते देखा था” – जीवन ने वीर से कहा
इधर खेत में साधना अभी भी चुपचाप मक्की की फसलों में बैठी है. अंधेरा घिर आया है और चाँद की चाँदनी चारो और फैलने लगी है.
साधना चुपचाप बाहर निकलती है. लेकिन बाहर निकलते ही वो काँप उठती है. उसे दूर से अपनी और आता एक साया दीखाई देता है. वो डर कर वापिस मक्की की फसलों में घुस्स जाती है.
वो साया भी उसके पीछे पीछे मक्क्की की फसलों में घुस्स जाता है.
साधना एक जगह रुक जाती है ताकि उसके कदमो की आहट ना हो.
लेकिन तभी उसे कदमो की तेज आहट सुनाई देती है.
वो पीछे मूड कर देखती है तो पाती है की वो साया बिल्कुल उसके पीछे 4 कदम की दूरी पर है.
वो तेज़ी से मूड कर भागती है लेकिन वो साया उसे दबोच लेता है.
“ क..क..कौन हो तुम..छ्चोड़ो मुझे” साधना चील्ला कर कहती है
वो साया साधना के मूह पर हाथ रख देता है.
“चुप रहो साधना….ये मैं हूँ”
वो साया उसके मूह से हाथ हटा देता है
साधना अंधेरे में उस साए की शकल तो ठीक से नही देख पाती लेकिन फिर भी उसकी आवाज़ सुन कर रोने लगती है
“प्रेम……..क्या ये तुम हो ?”
“तुम्हे क्या लगता है ?”
साधना उस साए के गले लग जाती है और कहती है, “तुम कहा चले गये थे प्रेम !!….. मैं आज इतनी परेशान हूँ कि अपने प्रेम के कदमो की आहट भी पहचान नही पाई..मुझे माफ़ कर दो”
“चुप रहो ये वक्त बाते करने का नही है ठाकुर के आदमी इसी तरफ आ रहे हैं”
“तुम्हे ये सब कैसे पता…..वो तो अभी यहा से गये हैं”
“बतावँगा सब कुछ बतावँगा अभी तुम थोड़ी देर चुप रहो”
क्रमशः......................
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गतान्क से आगे..............
प्रेम का उस वक्त अचानक आना साधना के लिए किसी सपने से कम नही था. साधना मन ही मन सोच रही थी कि आख़िर आज प्रेम अचानक यहा कैसे आ गया. 3 साल से वो गाँव से गायब था, वो कहा था ? क्या कर रहा था ?.. ये कुछ ऐसे सवाल थे.. जो साधना के मन में घूम रहे थे. साधना प्रेम से बहुत कुछ पूछना चाहती है पर हालात ऐसे नही हैं. प्रेम भी साधना को बहुत कुछ बताना चाहता है पर उस वक्त वो चुप्पी साधे हुवे है.
लेकिन फिर भी साधना धीरे से कहती है, “प्रेम…. ठाकुर के आदमी दीदी को उठा कर ले गये हैं”
“घबराओ मत… सरिता अब वाहा नही है, मैं हवेली से ही आ रहा हूँ. सरिता को वाहा से भीमा अपने साथ ले गया है” – प्रेम ने धीरे से कहा
“तुम्हे ये कैसे पता”
“मैं कोई 2 घंटे पहले गाँव पहुँचा था, रास्ते में तुम्हारे पिता जी सड़क पर बेहोश मिले”
“क्या!! हे भगवान ” --- साधना ने भावुक हो कर पूछा
“धीरे बोलो” –प्रेम ने धीरे से कहा
“पर पिता जी को क्या हुवा था ?”
“साधना, छोटे ठाकुर ने उन्हे बहुत बुरी तरह मारा था… जिसके कारण वो बेहोश हो कर सड़क पर गिर गये. पर तुम चिंता मत करो वो अब ठीक हैं और सुरक्षित हैं. उन्होने ही मुझे सब कुछ बताया. मैं उनकी बात सुन कर सरिता के लिए तुरंत हवेली गया. पर मेरे वाहा पहुँचने से पहले ही भीमा, सरिता को वाहा से ले गया. भीमा को तो तुम भी जानती हो ना ? ….वो एक अछा इंसान है. फिर मैने हवेली की दीवार से अंदर की बाते सुनी..यही पता चला कि ठाकुर के आदमी भीमा और सरिता को ढूँडने इधर ही आ रहे हैं. तभी मैं भाग कर यहा आया ….क्योंकि तुम्हारे पिता जी ने बताया था कि तुम खेत में ही हो”
“मेरी मा तो ठीक है ना प्रेम ?”
पेम ये सुन कर चुप हो जाता है
साधना फिर से पूछती है, “मा तो ठीक है ना प्रेम ?”
“वो…… अब इस दुनिया में नही हैं साधना, मुझे दुख है… काश !! में थोडा और पहले पहुँच जाता तो ये सब नही होने देता”
साधना आँसुओ में डूब जाती है और अपने चेहरे को घुटनो में छिपा कर चुपचाप आँसू बहाने लगती है
प्रेम उसके कंधे पर हाथ रख कर उशे दिलासा देता है. पर वो लगातार आँसू बहाती चली जाती है
“ये क्या हो रहा है हमारे साथ आज, प्रेम. सुबह से भैया गायब हैं…. दीदी को ठाकुर के आदमी उठा कर ले गये… और अब मेरी मा चल बसी… एक दिन में इतना कुछ हो गया… और आज ही तुम वापिस आ गये…मुझे सब कुछ बहुत अजीब लग रहा है”
“अजीब तो मुझे भी लग रहा है”
प्रेम और साधना चुपचाप बाते कर ही रहे थे कि उन्हे किसी के कदमो की तेज आहट सुनाई देती है.
“बलवंत अगर भीमा उस छोकरी को ले कर जंगल में घुस्स गया होगा तो ?”
“तो हम वापिस चले जाएँगे कल्लू”
“पर छोटे ठाकुर हमें खूब दांटेंगे बलवंत”
“तू चिंता मत कर उनकी डाँट के डर से हम रात को उस भयानक जंगल में नही जाएँगे…वैसे मुझे यकीन है कि भीमा उस छोकरी के साथ यही कही छुपा होगा”
प्रेम और साधना, बलवंत और कल्लू की बाते सुन रहे थे.
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हवेली में सभी घबराए हुवे हैं. वर्षा का अभी तक कुछ पता नही चला और उपर से हवेली के पीछे के खेतो से ये भयानक चीन्खे …हर किशी के दिल को दहला रही हैं.
इधर खेत में प्रेम साधना को कहता है, “साधना चुपचाप मेरे पीछे आओ हमे यहा से निकलना है”
“पर प्रेम ये खेत में कौन है ?”
“श्ह… चुप रहो ज़्यादा बाते मत करो पहले यहा से निकलते हैं फिर बाते करेंगे”
“पर वो हमारे पीछे आया तो?”
“काफ़ी देर से कोई हलचल या आवाज़ नही हुई है, मुझे लगता है जो कोई भी वो था अब यहा नही है, और अगर हुवा भी तो देखा जाएगा..चलो अब”
प्रेम साधना का हाथ पकड़ कर उसे घनी फसलों से बाहर लाता है और गाँव की तरफ चल पड़ता है
“प्रेम तुम्हे डर नही लग रहा”
“मुझे बस तुम्हारी चिंता है, और मैं किसी चीज़ से नही डरता, बाते कम करो और तेज-तेज चलो”
लेकिन अभी वो चार कदम ही चलते हैं कि उन्हे किसी के अपने पीछे भागने की आहट सुनाई देती है. प्रेम मूड कर देखता है. दूर से उसे सॉफ सॉफ तो कुछ नही दीखता पर वो अंदाज़ा लगाता है, “अरे कहीं ये भीमा और सरिता तो नही ?”
“हो सकता है…….हमे रुकना चाहिए प्रेम”
“हां रुकने में कोई परेसानि नही है…देखते हैं वो कौन हैं”
जब वो 2 साए नज़दीक पहुँचते हैं तो प्रेम उन्हे पहचान जाता है और पूछता है, “तुम दोनो यहा क्या कर रहे हो ?”
“स्वामी जी आप ठीक तो हैं ?”
“हाँ-हाँ मैं ठीक हूँ…… पर तुम दोनो यहा क्यों आए ? ….मैने तुम्हे गाँव में रुकने को कहा था ना….. और गोविंद कहा है ?”
“जी वो गाँव में ही हैं, हम तो इसलिए आए थे कि यहा आपको हमारी कोई ज़रूरत हो तो हम काम आ सकें”
साधना ये सब सुन कर हैरान रह जाती है. वो धीरे से प्रेम से पूछती है, “ये तुम्हे स्वामी जी क्यों कह रहे हैं ?”
“चलो पहले यहा से चलते हैं…आराम से सब कुछ बताउन्गा” ---- प्रेम ने साधना से कहा
“स्वामी जी वो आवाज़े कैसी थी ?”
“क्या तुम दोनो ने भी वो सुनी”
“जी स्वामी जी तभी तो हम यहा भाग कर आए हैं. पूरे गाँव में वो चीन्खे गूँज रही थी”
“अभी कुछ नही कह सकते ….बाद में बात करेंगे”
“जी स्वामी जी” --- उन दोनो ने कहा
“साधना ये है धीरज और ये है नीरज दोनो मेरे ख़ास शिष्या हैं” ---- प्रेम ने उन दोनो का परिचय देते हुवे कहा
साधना की समझ से सब कुछ बाहर था. उसके मन में बहुत सारे सवाल उभर आए थे… जिनका जवाब वो जान-ना चाहती थी. पर उस वक्त उसने कुछ नही पूछा और चुपचाप प्रेम के साथ गाँव की तरफ चल दी.
अचानक फिर से वही चीन्ख ज़ोर से गूँजती है और वो सभी रुक जाते हैं.
“साधना तुम इन दोनो के साथ घर जाओ, तुम्हारे पिता जी वही हैं. मेरा एक मित्र गोविंद भी वही होगा. मैं यहा देखता हूँ कि क्या चक्कर है” --- प्रेम ने कहा
“नही प्रेम तुम यहा अकेले…….. ?”
ये सुन कर धीरज और नीरज हँसने लगते हैं
धीरज कहता है, “स्वामी जी किसी से नही डरते, बल्कि इनको देख कर तो आछे-आछे भूत-पिशाच भी भाग जाते हैं”
“चुप रहो धीरज” – प्रेम ने कहा
“जी स्वामी जी… माफ़ कीजिए” धीरज ने कहा
“साधना, मुझे जाकर देखना ही होगा कि आख़िर यहा खेत में हो क्या रहा है”--- प्रेम ने कहा
“फिर मैं भी यही रहूंगी तुम्हारे साथ प्रेम..तुम्हारे बिना मैं यहा से नही जा पाउन्गि” – साधना ने कहा
प्रेम किसी सोच में डूब जाता है
कुछ सोचने के बाद वो कहता है, “चलो पहले तुम्हारे घर चलते हैं….फिर देखेंगे की आगे क्या करना है ?”
साधना ये सुन कर मन ही मन थोडा खुस होती है…… पर अगले ही पल पूरे दिन को सोच कर गहरे गम में डूब जाती है.
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09-08-2018, 01:39 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
धीरज और नीरज प्रेम को ऐसे रूप में देख कर बहुत हैरान हैं… पर वो प्रेम से कुछ पूछने की हिम्मत नही करते.
नीरज, धीरे से धीरज से पूछता है, “स्वामी जी लड़की के साथ…कुछ अजीब नही है ?”
“चुप कर स्वामी जी सुन लेंगे तो बहुत डाँट पड़ेगी” – धीरज ने नीरज को धीरे से कहा
“क्या बात है धीरज ?” --- प्रेम ने पूछा
“कुछ नही स्वामी जी…. बस यू ही” --- धीरज ने जवाब दिया
कोई 30 मिनूट में वो सभी खेतो से निकल कर गाँव में साधना के घर पहुँच जाते हैं
साधना दौड़ कर अपनी मा के मृत शरीर से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगती है. सभी बहुत भावुक अवस्था में चुपचाप देखते रहते हैं. गाँव के दूसरे लोग भी धीरे-धीरे उनके घर की तरफ आने लगते हैं.
गुलाब चंद भाग कर प्रेम के पास आता है और पूछता है, “बेटा… सरिता कहा है ?”
“जी अभी वो तो नही पता….. लेकिन हाँ वो ठाकुर की हवेली की क़ैद से आज़ाद हो चुकी है…आप फिकर ना करें सब कुछ ठीक हो जाएगा”
“क्या ठीक हो जाएगा बेटा… मदन सुबह से गायब है…बिम्ला चल बसी और सरिता का कुछ पता नही… अब और क्या ठीक होगा ?” – गुलाब चंद इतना कह कर अपना सर पकड़ कर बैठ जाता है
“जी मैं समझ सकता हूँ….भीमा सरिता को हवेली से छुड़ा कर अपने साथ ले गया है. और मुझे यकीन है कि वो सुरक्षित होगी” ---- प्रेम ने गुलाब चंद से कहा
साधना तभी अपनी मा के शरीर को छ्चोड़ कर प्रेम के पास आती है और अपने आँसू पोंछते हुवे कहती है, “भीमा दीदी को लेकर हमारे खेत की तरफ ही आ रहा था ना.. मुझे डर लग रहा है प्रेम.”
“चिंता मत करो साधना मैं वापिस खेतो में ही जा रहा हूँ…मैं बस तुम्हे यहा तक छ्चोड़ने आया था” --- प्रेम ने कहा
“प्रेम मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा” ---- गोविंद ने प्रेम से कहा
साधना गोविंद की तरफ देखती है.
प्रेम उसका परिचय देता है, “साधना ये गोविंद है…. मेरा ख़ास मित्र”
वो ये बाते कर ही रहे थे कि साधना एक दम से बोलती है, “अरे !! दीदी तो वो आ रही है”
प्रेम मूड कर देखता है
सरिता लड़खड़ाती हुई भीमा के साथ घर की तरफ आ रही थी.
साधना भाग कर सरिता से लिपट जाती है और कहती है, “दीदी तुम ठीक तो हो”
“बस जींदा हूँ…ठीक तो क्या होना था” ---सरिता ने कहा
साधना, सरिता को अपनी मा के बारे में कुछ नही बता पाती. सरिता खुद अंदर आ कर अपनी मा के मृत श्रीर को देखती है और साधना से रोते हुवे पूछती है, “क्या हुवा मा को ?”
साधना फिर से रोने लगती है और अपनी दीदी को गले लगा लेती है. सरिता रोते, बीलखते हुवे अपनी मा के मृत शरीर पर गिर जाती है.
सभी लोग फिर से भावुक हो जाते हैं.
“तुम यही रूको मैं मंदिर हो कर आता हूँ” प्रेम ने गोविंद से कहा और वाहा से चल दिया
साधना प्रेम को जाते हुवे देखती है और दौड़ कर उसके पास आती है, “तुम अकेले कहा जा रहे हो प्रेम ?”
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