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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मैं क्या करूँ मदन… मैं पहले कभी घर से ऐसे बाहर नही रही. आज इस तरह जंगल में रात बितानी पड़ेगी मैने सोचा भी नही था” --- वर्षा ने कहा
“मुझे दुख है वर्षा कि तुम्हे मेरे कारण इतना कुछ सहना पड़ रहा है. दिन होने दो, मुझे यकीन है यहा से निकलने का कोई ना कोई रास्ता मिल ही जाएगा”
“रास्ता मिल भी गया तो भी हम कहा जाएँगे मदन ?”
“मेरे चाचा के गाँव चलेंगे… बस यहा से निकलने की देर है.. आयेज मैं सब कुछ संभाल लूँगा” मदन ने कहा
“ठीक है… मैं तुम्हारे साथ हूँ.. अब घर वापिस नही जा सकती. अब तक तो घर में तूफान आ गया होगा”
“हाँ… वो तो है… मेरे घर पर भी सभी परेशान होंगे”
……………………….
जंगल में ही एक दूसरी जगह एक गुफा के बाहर का दृश्या
“किशोर क्या इसमे जाना ठीक होगा ?”
“हां-हाँ ये गुफा खाली लगती है.. देखो मैने अंदर पथर फेंका था.. कोई जानवर होता तो कोई हलचल ज़रूर होती… वैसे भी हम रात में ज़्यादा देर ऐसे भटकते नही रह सकते.. बहुत खुन्कार जानवर हैं यहा.. हमे यहीं रुकना होगा” --- किशोर ने कहा
“ठीक है.. चलो” रूपा ने कहा
“रूको पहले गुफा के द्वार को बंद करने का इंतज़ाम कर दूं.. ताकि कोई ख़तरा ना रहे”
“ये पथर कैसा है किशोरे” --- रूपा जीश पठार पर हाथ रख कर खड़ी थी उसके बारे में कहती है
“अरे शायद ये इशी गुफा का है.. इशे ही यहा लगा देता हूँ”
किशोर उस पठार को लुड़का कर गुफा के द्वार तक लाता है और रूपा से कहता है, “चलो अंदर, मैं अंदर से इशे यहा द्वार पर सटा दूँगा. फिर किसी जानवर का डर नही रहेगा”
रूपा अंदर चली जाती है और किशोर द्वार पर पठार लगा कर पूछता है, “अब ठीक है ना”
“क्या ठीक है.. इतना अंधेरा है यहा.. बाहर कम से कम चाँद की चाँदनी तो थी”
“अब जंगल में इस से बढ़िया बसेरा मिलना मुस्किल है… लगता है यहा ज़रूर कोई आदमी रहता होगा, वरना ये पठार वाहा बाहर कैसे आता. बिल्कुल गुफा के द्वार के लिए बना लगता है ये पठार”
“किशोर घर में सब परेशान होंगे”
“वो तो है.. तुम चिंता मत करो.. कल हम हर हालत में गाँव वापिस पहुँच जाएँगे”
“मुझे नही पता था कि.. ये इतना बड़ा जंगल है” – रूपा ने कहा
“मुझे भी कहा पता था… ना मदन के खेत में जाते .. ना यहा फँसते”
“पर किशोर… वो खेत में क्या था ?”
“क्या पता.. मैने बस एक ही नज़र देखा था… मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये थे… चल छ्चोड़ इन बातो को.. आ अपना अधूरा काम पूरा करते हैं”
“कौन सा अधूरा काम ?”
“अरे भूल गयी… मैं बस तुम में समाया ही था कि उस मनहूस चीन्ख ने सब काम खराब कर दिया”
“पागल हो गये हो क्या.. मुझे यहा डर लग रहा है और तुम्हे अपने काम की पड़ी है”
“रूपा रोज-रोज हम जंगल में थोडा ऐसे आएँगे. आओ ना इस वक्त को यादगार बना देते हैं”
“तुम सच में पागल हो गये हो ?”
“हां… शायद ये उस बेल का असर है जो हमने खाई थी… आओ ना वो काम पूरा करते हैं”
ये कह कर किशोर.. रूपा को बाहों में भर लेता है.
“आहह… किशोर ऐसी जगह भी क्या कोई ये सब कर सकता है ?”
“हम कर तो रहे हैं.. हहे”
किशोर रूपा के उभारो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगता है.. और रूपा चुपचाप बैठी रहती है.
“इन फूलों को बाहर निकालो ना… अब हमारे पास पूरी रात है, और तन्हाई है… यहा किस बात का डर है” --- किशोर रूपा के उभारो को मसल्ते हुवे कहता है
“किशोर… आअहह तुम नही समझोगे… ये वक्त इन सब बातो का नही है”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
थोड़ी देर बाद किशोर पूछता है, “अब ठीक है ना ?”
“हाँ…. क्या अभी भी कुछ बाकी है ?”
“हां थोडा सा…. ये लो इसे भी जाने दो… ऊओह मिल गयी मंज़िल इसको अब”
“गुऊर्र्र……गुऊूर्र्र्र्र्र्र्र्ररर…..गुऊूर्र्रर”
“किशोर ये आवाज़ कैसी है ?
“होगा कोई जानवर”
“वो यहा तो नही आ जाएगा ?” रूपा ने डरते हुवे पूछा
“अरे नही… गुफा के द्वार पर पठार है, डरने की कोई बात नही है.. तुम बस इस पल में खो जाओ”
ये कह कर किशोर रूपा के साथ संभोग सुरू कर देता है और कहता है, “अब कोई चीज़ हमारे बीच नही आएगी”
रूपा भी सहवास में खोने लगती है पर रह-रह कर उसका ध्यान गुफा के बाहर की आवाज़ो पर चला जाता है. आवाज़े तेज होने लगती हैं तो रूपा कहती है, “किशोर मुझे डर लग रहा है”
“अरे छोड़ो भी.. ये जंगल है… जानवर भटक रहे हैं बाहर… हम यहा सुरक्षित हैं, चलो इस संभोग का आनंद लो”
किशोरे बहुत तेज झटको के साथ रूपा को उस पल में खोने पर मजबूर कर देता है और वो सहवास के आनंद में डूबती चली जाती है
गुफा में जैसे एक तूफान सा आ जाता है. दो दिल हर चीज़, हर दर को भुला कर एक हो जाते हैं और वो गुफा उनके मिलन की गवाह बन जाती है
जब प्यार का तूफान रुकता है तो उन्हे होश आता है की उनकी गुफा का पथर हिल रहा है.
“किशोर भाग कर उस पथर को थाम लेता है और रूपा से कहता है, “तुम चिंता मत करो… शायद जुंगली कुत्ते हैं… वो ये पथर कभी नही हटा पाएँगे”
रूपा भी किशोर के पास आ कर उस पथर को थाम लेती है.
“गुऊूर्र्ररर….. गुउुउर्र्र्ररर … गुऊर्र्ररर” –गुफा के बाहर गुर्राने की आवाज़ आती रहती है
किशोर और रूपा दिल में एक डर लिए गुफा पर सटे पथर को थाम कर बैठ जाते हैं, लेकिन उनके दिल में मिलन का मीठा सा अहसाश बरकरार रहता है. वो कब एक दूसरे का हाथ थाम लेते हैं उन्हे पता ही नही चलता
क्रमशः......................
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--7
गतान्क से आगे..............
“ये क्या हो रहा है हमारे साथ किशोर, अब ये क्या नयी मुसीबत है ?” रूपा ने दर भरी आवाज़ में कहा
“कुछ नही घबराव मत, ये जंगल है, यहा ख़तरनाक जंगंग्ली जानवर हैं, ये ज़रूर जुंगली कुत्ते या भेड़िए हो सकते हैं” – किशोर ने कहा
“क..क..क्या भेड़िए ?”
“अरे सूकर मनाओ कि शेर नही है”
“क्या यहा शेर भी हैं, मुझे डराव मत ?”
“अरे गाँव के बचे-बचे को पता है कि यहा जंगल में शेर हैं”
“पता होगा… मुझे बस इतना पता था कि ये ख़तरनाक जंगल है, ये नही पता था कि यहा शेर हैं”
“देखो हम जंगल में हैं, यहा के ख़तरो को स्वीकार करना होगा, तभी हम यहा से निकल पाएँगे”
“वो दोनो कहा होंगे अब किशोर ?”
“पता नही, हो सकता है वो अब किसी जानवर के पेट में हो.. हहे” --- किशोर ने हंसते हुवे कहा
“छी…. कैसी बाते करते हो तुम”
“मज़ाक कर रहा हूँ भाई, पर ये सच है कि इस जंगल में कुछ भी हो सकता है, वो तो सूकर है कि हमे ये गुफा मिल गयी वरना ना जाने बाहर इस खौफनाक जंगल में हमारा क्या होता”
“वो तो है. वैसे तुम ठीक कह रहे थे, ये गुफा ज़रूर किसी इंसान की ही लगती है, ये पथर बिल्कुल इस गुफा के आकार का है, इशे ज़रूर किसी इंसान ने ही यहा रखा होगा”
“ह्म्म.. ठीक कह रही हो”
“वैसे एक बात बताओ, मदन और तुम में क्या दुश्मनी है ?”
“छोड़ो तुम्हे बुरा लगेगा”
“नही बताओ ना, मैं जान-ना चाहती हूँ”
“अरे तुम से पहले मैं साधना के पीछे पड़ा था, एक बार उसे देख कर मैने सीटी मार दी थी, मदन ने देख लिया और लड़ने आ गया, तभी से वो मेरी बुराई करता फिरता है”
“तो और क्या करता वो, तुम्हारी हरकत की क्या… तारीफ़ करता”
“वो तो है पर मैने उस से माफी माँग ली थी, फिर भी वो अब तक मुझ से खफा है”
“मैं जानती हूँ उसे, वो ऐसा ही है, दिल पर कोई बात लग जाए तो फिर भूलता नही”
“तुम ये कैसे जानती हो ?”
“तुमसे पहले मैं मदन को चाहती थी, पर वो मुझ से कभी सीधे मूह बात नही करता था. उसकी खातिर अक्सर उसके घर जाती थी. वैसे भी सरिता से मेरी अछी बोल चाल थी. घर आना जाना हो जाता था. एक बार मदन ने इतनी बुरी तरह डांटा कि मैं दुबारा उसके घर नही गयी. कल पता चला कि वो ठाकुर की बेटी को चाहता है” --- रूपा ने कहा
“अरे अजीब बात है मैं मदन की बहन के पीछे था और तुम मदन के पीछे थी.. क्या इतेफ़ाक है”
“पर आज मैं तुम्हे चाहती हूँ किशोर.. तुम मेरे सब कुछ हो”
“मुझे पता है पगली, पर ये ठाकुर की लड़की देखना मदन को बर्बाद कर देगी”
“गुउुउउर्र्ररर----गुउुउर्र्र्र्ररर-----गुउुउर्र्ररर”
गुफा के बाहर से गुर्राने की आवाज़े आती रहती हैं और किशोर और रूपा पथर को थामे धीरे-धीरे बाते करते रहते हैं
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मदन मुझे नींद आ रही है, ठंड भी लग रही है..क्या करूँ ?”
“नींद तो मुझे भी आ रही है, ऐसा करो तुम मेरे नज़दीक आ जाओ और मेरे कंधे पर सर रख कर सो जाओ” --- मदन ने कहा
“तुम्हारे नज़दीक ?”
“हां.. आओ ना तुम्हारी ठंड भी कम हो जाएगी, और मैं तुम्हे संभाल कर भी रखूँगा, वरना नींद में गिरने का ख़तरा रहेगा, और नीचे गिरे तो खेल ख्तम”
“चुप रहो तुम, ये मज़ाक का वक्त नही है ?”
“तुम्हे ये मज़ाक लग रहा है, पर मैं सच कह रहा हूँ, जितनी जल्दी यहा के ख़तरो को समझ लो अछा है, ताकि तुम होशियार रहो”
“मुझे सब पता है यहा के बारे में”
“ये अछी बात है, यहा के ख़तरो का पता रहना चाहिए….. आओ शो जाओ”
“तुम कोई शरारत तो नही करोगे ?”
“कैसी शरारत वर्षा?”
“जैसी खेत में की थी ?”
“क्या किया था खेत में वर्षा ?”
“भूल गये, कैसे छू रहे थे तुम मुझे वाहा, जब मैं तुम्हारे गले लगी थी”
“याद है- याद है…मैं वो कैसे भूल सकता हूँ..हहे” – मदन ने हंसते हुवे कहा
“तो तुम नाटक कर रहे थे ?”
“हाँ तुम्हारे मूह से सुन-ना चाहता था सब कुछ”
“अब सुन लिया ना ?”
“हाँ सुन लिया. पर एक बात है… तुम्हारे जैसी सुन्दर प्रेमिका के गले लग के मैं बहक ना जाउ तो क्या करूँ”
“फिर मैं तुम्हारे पास नही आउन्गि, तुम फिर से बहक गये तो ?”
“नही बाबा आओ ना, सो जाओ, मेरे पास बहकने का वक्त नही है अभी.. मुझे चारो तरफ नज़र रखनी होगी”
“मुझे तुम पे विस्वास नही है” – वर्षा ने धीरे से मुस्कुराते हुवे कहा
“आओ ना और शो जाओ, तुम्हारी थकान दूर हो जाएगी” --- मदन ने वर्षा का हाथ पकड़ कर कहा
वर्षा मदन के नज़दीक जाती है और उसके कंधे पर सर रख कर बैठ जाती है
“कभी सोचा भी नही था कि पेड़ पर रात बीतानी पड़ेगी” – वर्षा ने कहा
“जींदगी में हर चीज़ के लिए तैयार रहना चाहिए वर्षा, जींदगी कदम-कदम पर इम्त-हान लेती है” – मदन ने कहा
“अरे ऐसी बात तो हमेशा प्रेम कहता था” --- वर्षा ने कहा
“हाँ ये उशी की कही बात है, पता नही कहा होगा वो अब, 3 साल से उसका कुछ नही पता”
“वो हर दिन सुबह मंदिर के बाहर चिड़ियों को दाना डालता था, मैं रोज उसे देखती थी, पर कभी ज़्यादा बात नही हुई” --- वर्षा ने कहा
“साधना तो उसकी दीवानी है, उसकी देखा, देखी वो भी चिड़ियों को दाना पानी डालने लगी थी. आज तक उसकी ये दिनचर्या जारी है” – मदन ने कहा
“वैसे वो कहा …”
वर्षा ने कहा ही था कि मदन ने उसके मूह पर हाथ रख दिया
वर्षा समझ गयी की उसे चुप रहना है, इसलिए उसने अपनी साँस रोक ली और कोई हरकत नही की
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वर्षा को पेड़ के नीचे कुछ हलचल महसूस होती है. वो धीरे से गर्देन घुमा कर देखती है, उसकी साँस अटक जाती है.
पेड़ के नीचे लकड़बघा घूम रहा था. शायद उशे पेड़ पर किसी के होने की भनक लग गयी थी.
वर्षा, मदन को कस के पकड़ लेती है
मदन वर्षा के कान में धीरे से कहता है, “डरो मत, कुछ नही होगा, हम यहा पेड़ पर सुरक्षित हैं”
वर्षा, मदन की और देखती है और मदन आगे बढ़ कर वर्षा के माथे को चूम लेता है और धीरे से कहता है, “तुम सो जाओ, ये सब यहा चलता रहेगा, ये जंगल है यहा ये सब आम बात है”
6थ जन्वरी 1901
उधर गाँव में :---
कोई अचानक आपकी जींदगी से चला जाए तो बहुत अफ़सोश होता है. साधना अपनी मा की जलती चिता को देख कर आँसू बहाए जा रही है. सरिता अभी भी अपने उपर हुवे ज़ुल्म के सदमे में है. गुलाब चंद सर पकड़े ज़मीन पर बैठा है और अपनी बीवी की जलती चिता को देख रहा है. हर तरफ गम का माहॉल है.
वाहा गाँव के सभी लोग मौजूद हैं. प्रेम मन ही मन कुछ सोच रहा है. अचानक वो ज़ोर से सभी लोगो को कहता है, “अब वक्त आ गया है कि हम हर ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ एक जुट हो जायें, कल अगर गाँव के थोड़े से लोग भी हिम्मत करते तो ये अन्याय नही होता. आप सब लोगो के सामने एक औरत को जॅलील किया गया और आप सब तमाशा देखते रहे”
“बस-बस तुम ज़्यादा बात मत करो, तुम्हारा बाप खुद उस ठाकुर के साथ रहता है और तुम हमे बाते सुना रहे हो” – रामू लोहार ने कहा
“पहले स्वामी जी की बात तो सुन लो” – धीरज ने कहा
“स्वामी जी !! कौन स्वामी जी ?” – रामू लोहार ने पूछा
“आप जिन्हे प्रेम के नाम से जानते हैं वही हमारे स्वामी जी हैं, पीछले एक साल से अपना ध्यान-व्यान छ्चोड़ कर देश-प्रेम की खातिर समाज सुधार कर रहे हैं, ताकि हम सब उँछ-नीच, जात-पात, धर्म-भरम भुला कर अंग्रेज़ो का मुकाबला कर सकें” – धीरज ने कहा
“ये तो अनोखी बात हुई, हम तो सोचते थे कि ये पंडित का लड़का यहा कोई मज़ाक कर रहा है, बोलो बेटा… हम सुन रहे हैं”—रामू लोहार ने कहा
“हाँ तो मैं ये कह रहा था कि हमे एक जुट होना होगा. बात सिर्फ़ इस गाँव के ठाकुर की नही है. ठाकुर की अकल तो हम सब आज ठीकाने लगा सकते हैं. हमारी असली लड़ाई अंग्रेज़ो के खीलाफ है, जिन्होने हमे गुलाम बना रखा है, लेकिन उस से पहले हमे अपने सभी भेद-भाव भुला कर एक होना होगा…. उँछ-नीच, जात-पात की जंजीरो को तोड़ देना होगा, तभी हम एक होकर विदेशी ताक्तो का मुकाबला कर पाएँगे. हम 1857 का संग्राम हार गये क्योंकि हम में एकता नही थी वरना आज अंग्रेज इस धरती पे ना होते. हमने छोटे-छोटे टुकड़ो में यहा वाहा लड़ाई लड़ी और नतीज़ा ये हुवा कि हम बुरी तरह हार गये”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हाँ तो मैं ये कह रहा था कि हमे एक जुट होना होगा. बात सिर्फ़ इस गाँव के ठाकुर की नही है. ठाकुर की अकल तो हम सब आज ठीकाने लगा सकते हैं. हमारी असली लड़ाई अंग्रेज़ो के खीलाफ है, जिन्होने हमे गुलाम बना रखा है, लेकिन उस से पहले हमे अपने सभी भेद-भाव भुला कर एक होना होगा…. उँछ-नीच, जात-पात की जंजीरो को तोड़ देना होगा, तभी हम एक होकर विदेशी ताक्तो का मुकाबला कर पाएँगे. हम 1857 का संग्राम हार गये क्योंकि हम में एकता नही थी वरना आज अंग्रेज इस धरती पे ना होते. हमने छोटे-छोटे टुकड़ो में यहा वाहा लड़ाई लड़ी और नतीज़ा ये हुवा कि हम बुरी तरह हार गये”
ऐसी बाते हर किसी को समझ नही आती. ज़्यादा-तर लोग बहुत आश्चर्या से प्रेम की बात सुन रहे थे. ऐसा उन्होने पहली बार सुना था. 1857 तक का किसी को पता नही था. पता हो भी कैसे, देश का आम आदमी अपनी रोटी-टुकड़े की दौड़ में इतना डूब जाता है की उसे कुछ और ध्यान ही नही रहता. लेकिन कुछ नवयुवक ऐसे थे जो प्रेम की बात बड़े गौर से सुन रहे थे.
प्रेम, को कुल मिला कर गाँव वालो से कोई अछा रेस्पॉन्स नही मिला. ये सब देख कर गोविंद ने कहा, “प्रेम लगता है इनको इन सब बातो से कोई मतलब नही है”
“ऐसा नही है गोविंद, तुम सोते हुवे इंसान को अचानक उठा कर भागने के लिए नही कह सकते. इन सब बातो में वक्त लगता है. बरसो की गुलामी ने इन लोगो को जाकड़ दिया है. मुझे ही इस गुलामी का कहा पता था. मैं खुद अध्यतम में डूब चुक्का था. ये तो स्वामी विवेकानंद जी की मेहरबानी है कि मेरी आँखे खुल गयी. उनसे एक मुलाकात ने मेरे जीवन का उदेश्य बदल दिया और मैं भी देश सेवा के लिए निकल पड़ा. मैने समाज सुधार का रास्ता चुना है, बिल्कुल स्वामी विवेकानंद की तरह. पूरे देश में समाज सुधार की लहर चल रही है, हमे भी उसमे अपनी और से योगदान देना है. काम लंबा है..इशे धीरे धीरे आगे बढ़ाना होगा”
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ठाकुर की हवेली का दृश्या :
“ठाकुर साहिब- ठाकुर साहिब”
“क्या हुवा बलवंत ?” –रुद्र प्रताप ने पूछा
“गाँव में आपके खीलाफ बग़ावत के सुर उठ रहे हैं” --- बलवंत ने रुद्र प्रताप से कहा
वीर भी उस वक्त वही था, वो ये सुन कर बोखला उठा और बोला, “किसमे इतनी हिम्मत आ गयी आज ?”
“मालिक वो अपने मंदिर के पुजारी का लोंदा प्रेम वापिस आ गया है.. वही सब को आपके खीलाफ भड़का रहा है. बोलता है ठाकुर को तो हम आज देख ले, हमारी असली लड़ाई तो अंग्रेज़ो के साथ है”
“क्या केसाव पंडित का लड़का !! वो तो 3 साल से गायब था ?” ---- रुद्र प्रताप ने कहा
“हाँ मालिक वही.. वो कोई स्वामी बन कर लौटा है ?”
“पिता जी ये सब मुझ पर छ्चोड़ दीजिए… मैं अभी जा कर उसकी अकल ठीकाने लगता हूँ” --- वीर ने कहा
“ठीक है वीर जाओ, इस से पहले की बग़ावत के सुर ज़्यादा ज़ोर पकड़े उन्हे कुचल दो”
“मालिक एक बात और पता चली है”
“हां बोलो क्या बात है” – रुद्र प्रताप ने पूछा
“खबर है कि भीमा ने पीचली रात मदन की बहन को उसके घर छोड़ दिया था”
“क्या ? अब कहा है वो नमक-हराम”” --- रुद्र प्रताप ने पूछा
“वो प्रेम के साथ ही था मालिक, समशान में वो उसी के साथ खड़ा था ?”
“पिता जी आप चिंता मत करो में भीमा की भी अकल ठीकने लगा दूँगा”
“पर वीर, ये हवेली के पीछे के खेतो से जो कल रात चीन्खे आ रही थी उसके बारे में क्या करोगे तुम ?” ---- रुद्र ने गंभीरता से पूछा
“पिता जी वो भी देख लूँगा आज” --- वीर ने कहा
“ये सब काम करके सारे आदमी वर्षा को ढूँडने में लगा दो, मुझे जल्द से जल्द अपनी बेटी वापिस यहा चाहिए”
“जी पिता जी” ---- वीर ने कहा
क्रमशः......................
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--8
गतान्क से आगे..............
वीर रुद्र प्रताप के कमरे से बाहर आता है और बलवंत से कहता है, “सभी आदमियों को तैयार करो, आज गाँव के एक-एक आदमी की खाल खींचनी है”
“जो होकम मालिक” – बलवंत ने कहा
“बेटा उस भीमा को पकड़ कर यहा लाना, मैं खुद उसे अपने हाथो से मारूँगा” – जीवन प्रताप ने कहा
“आप चिंता मत करो चाचा जी, भीमा के साथ-साथ मैं मदन की दोनो बहनो को भी लेकर अवंगा” --- वीर ने कहा
ये सुन कर जीवन की आँखो में अजीब सी चमक आ गयी.... उनमे हवश साफ़ दीखाई दे रही थी.
वीर, गाँव में तूफान मचाने की तैयारी कर रहा है और रेणुका रसोई में व्यस्त है. हवेली का बावरची माधव भी उसके साथ है.
“मालकिन, आप रहने दीजिए, हम कर लेंगे” – माधव ने कहा
“कोई बात नही काका, काम करके मेरा मन बहल जाता है” --- रेणुका ने कहा
“जैसी आपकी इक्षा मालकिन”
तभी उन्हे कुछ सुनाई देता है ----- "आज तुम्हे नही छोड़ूँगा मैं"
“ये कैसी आवाज़ है मालकिन ?”
“पता नही ?”
रेणुका रसोई से बाहर आ कर देखती है, पर उसे कुछ नही दीखता.
“हटो ना” – ये आवाज़ आती है.
रेणुका हैरानी में फिर से चारो तरफ देखती है.
“देखो हट जाओ, कोई सुन लेंगे”
रेणुका हैरान, परेशान फिर से हर तरफ देखती है.
वो वापिस रसोई में आती है और माधव से पूछती है, “काका, क्या तुमने फिर से कुछ सुना?”
“हां मालकिन, सुना तो… पर बहुत हल्का सा”
“मुझे लगा मेरे कान बज रहे हैं” – रेणुका ने कहा
उस घर में उस वक्त रेणुका के अलावा और कोई औरत नही थी. इसलिए रेणुका काफ़ी हैरत में थी
उस ने मन ही मन में सोचा, कहीं ये लोग फिर से तो किसी ग़रीब को यहा नही ले आए
वो फॉरन अपने ससुर के कमरे की तरफ चल दी. कमरे के बाहर वीर बलवंत से बाते कर रहा था. वो वीर को देख कर रुक गयी.
वीर ने पूछा, “क्या बात है ?”
“कुछ नही” – रेणुका ने कहा और वापिस मूड गयी.
“कल इसने बहुत बुरा किया हमारे साथ बेटा” --- जीवन ने रेणुका के लिए वीर से कहा
“सब काम निपटा कर इसकी भी खबर लूँगा चाचा जी, पहले बाहर वालो को देख लूँ” --- वीर ने कहा
रेणुका वापिस रसोई की तरफ बढ़ती है. पर वो जैसे ही रसोई के दरवाजे पर कदम रखती है उसे आवाज़ आती है.
“उउऊयययी मानते हो की नही”
रेणुका पूरी हवेली को देखने का फ़ैसला करती है. बारी बारी से वो सभी कमरे देख लेती है. इतनी बड़ी हवेली में ज़्यादातर कमरे खाली पड़े थे. रेणुका को थोडा डर भी लग रहा था पर फिर भी वो एक-एक करके सभी कमरो के अंदर झाँक कर देखती है.
पर उशे किसी कमरे में कुछ नही मिलता.
“बस चाचा जी और पिता जी का कमरा रह गया. पर वाहा से तो मैं आ ही रही हूँ. पिता जी और चाचा जी का कमरा आमने सामने है. वाहा तो ऐसा कुछ नही था. वैसे भी आवाज़ तो रसोई के पास से ही आ रही थी और वो कमरे तो रसोई से दूर हैं” --- रेणुका मन ही मन खुद से बाते कर रही है
ये सब सोचते-सोचते वो रसोई के बाहर पहुँच जाती है.
तभी अचानक उसे ध्यान आया, “अरे वर्षा का कमरा तो मैं भूल ही गयी”
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