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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
ये सोच कर उसका दिल धक-धक करने लगता है. वो सोचती है, “तो क्या ये आवाज़ वर्षा के कमरे से आ रही है !! पर वर्षा तो यहा नही है”
रेणुका, रसोई के बाहर खड़ी-खड़ी पहली मंज़िल पर वर्षा के कमरे को घुरती है.
“वर्षा का कमरा, रसोई के नज़दीक है, वाहा से आवाज़ रसोई तक पहुँच सकती है” --- रेणुका सोचती है
कुछ देर सोचने के बाद, रेणुका सीढ़ियों की तरफ बढ़ती है.
उस कमरे की तरफ बढ़ते हुवे उसके कदम किसी अंजाने भय से थर-थर काँप रहे हैं.
जब रेणुका कमरे के बाहर पहुँचती है तो रुक जाती है.
“सूकर है, इस कमरे में भी कोई नही है, पर ये आवाज़ आ कहा से रही थी” – रेणुका कमरे की बाहर की कुण्डी लगी देख कर अपने मन में कहती है.
रेणुका बहुत हैरान और परेशान है. वो वापिस मूड कर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगती है
“अफ….. तुम ये क्या कर रहे हो ?”
रेणुका ये सुन कर सीढ़ियों के बीच में ही रुक जाती है. इस बार उशे आवाज़ बहुत नज़दीक सुनाई देती है.
वो वापिस उपर की तरफ आती है
“वही जो मुझे करना चाहिए”
“हे भगवान ये आवाज़ तो वर्षा के कमरे से ही आ रही है, कौन है अंदर ?” – रेणुका ने मन ही मन कहा
रेणुका काँपते हाथो से वर्षा के कमरे के बाहर लगी कुण्डी को खोलती है और दरवाजे को खोलने के लिए अंदर की ओर धक्का देती है पर …………………..
……………………………… दरवाजा नही खुलता !!!
“मेरा शक सही निकला….. अंदर कोई है” – रेणुका धीरे से कहती है
“वर्षा !! क्या तुम अंदर हो ?” ----- रेणुका ने आवाज़ लगाई
अंदर से कोई जवाब नही आता
रेणुका फिर से आवाज़ लगाती है, “वर्षा क्या तुम अंदर हो….. पर ये तुम्हारे साथ कौन है”
फिर भी अंदर से कोई आवाज़ नही आती.
तभी रेणुका को वर्षा के कमरे की खिड़की का धयान आता है.
रेणुका खिड़की पर जा कर उसे खोलने की कॉसिश करती है, पर वो नही खुलती.
“आआययईीीई….. थोडा रूको”
रेणुका को फिर से अंदर से आवाज़ सुनाई देती है
रेणुका ज़ोर से धक्का दे कर खिड़की खोल देती है. वो जो देखती है, उसे देख कर उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती हैं.
वो देखती है की वर्षा घुटनो के बल ज़मीन पर है और उसके पीछे एक लड़का उसकी योनि में लिंग डाले हुवे है.
“हट जाओ… भाभी देख रही है”
“देखने दो….. इस खेल का कोई दर्शक भी तो होना चाहिए”
“वर्षा ये सब क्या है…. और तुम कहा थी” --- रेणुका हैरानी भरे शब्दो में पूछती है
“आअहह……… धीरे-धीरे करो ना”
“धीरे-धीरे ही तो मार रहा हूँ…. ज़ोर-ज़ोर से मारूँगा…. तो जाने क्या होगा”
“हे !! कौन हो तुम ?, छोड़ो वर्षा को वरना ………” रेणुका ने कहा
“ये लंड इस चूत में बहुत गहराई में उतर चुका है, अब ये अपना काम किए बिना नही निकलेगा”
“बदतमीज़…. कौन हो तुम ?” – रेणुका ने गुस्से में कहा
“एक बार आप भी मेरे आगे झुक कर देख लो, पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ, ऐसा लंड नही देखा होगा आपने” वो अपना लिंग बाहर निकाल कर रेणुका की तरफ हिलाता है और हिला कर वापिस वही डाल देता है जहा से निकाला था.
रेणुका ये सब सुन और देख कर भोंचक्की रह जाती है. उसकी आँखो में गुस्से के कारण खून उतर आता है.
“आअहह…. जल्दी ख़तम करो, भाभी को गुस्सा आ रहा है”
“आने दो गुस्सा, वैसे ये गुस्सा इस कारण है कि तुम्हारी जगह मेरे आगे वो क्यों नही हैं”
“ऐसी बाते मत करो भाभी को ऐसी बाते अछी नही लगती”
“एक बार मेरे आगे आ जाएगी तो इन्हे सब अछा लगने लगेगा”
“भाभी… क्या आप यहा आना चाहती हो ?”
“चुप करो वर्षा…. मुझे इस पूरे घर में तुम थोड़ी अछी लगती थी. आज तुम पर से भी विस्वाश उठ गया… छी….” रेणुका ने गुस्से में कहा
“भाभी छोड़ो ना, अंदर आ जाओ और मज़े करो”
ये सब देख कर रेणुका की आँखो में आँसू आ जाते हैं. वो सोचती है, “ये किस नरक में झोंक दिया पिता जी ने मुझे. इस से अछा तो मुझे मार देते”
“क्या सोच रही हो भाभी…. कहो तो मैं कुण्डी खोलूं ?”
“भाढ़ में जाओ तुम दोनो” – रेणुका कहती है और वाहा से चल देती है
“जल्दी-जल्दी करो कहीं भाभी पिता जी को बुला कर ना ले आए”
“अभी तो सुरू किया है, थोडा मज़ा तो लेने दो”
रेणुका जाते-जाते अपने कान पर हाथ रख लेती है.
रेणुका भारी कदमो से सीढ़ियों से नीचे उतरती है. वो जो कुछ देख कर आ रही थी, उसने उसे अंदर तक झकज़ोर दिया था.
वो खोई-खोई रसोई की तरफ जाती है. रसोई में घुसने से पहले वो मूड कर देखती है कि वीर अपनी पल्टन के साथ बाहर जाने की तैयारी कर रहा है.
वो असमंजस में है कि, वीर को वर्षा के बारे में बताए या ना बताए. पर कुछ सोच कर वो वीर की तरफ बढ़ती है.
वीर उसे आते देख चिड जाता है और झल्ला कर पूछता है, “क्या बात है”
“जी.. आप से कुछ ज़रूरी बात करनी थी”
“हां बोलो, क्या बकवास करनी है”
“जी… थोडा इधर आओ ना, बात गंभीर है”
“तेरे साथ और हो भी क्या सकता है, मनहूस कही की” – वीर ने गुस्से में कहा
“मनहूस मैं नही ये घर है, ये परिवार है, पता नही किस जनम की सज़ा मिल रही है मुझे यहा”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे..............
वीर को इतना बड़ा सदमा लगा था कि वो कुछ भी नही बोल पा रहा था.
उसके पीछे-पीछे रुद्र प्रताप और जीवन प्रताप भी कमरे से बाहर आ जाते हैं. वो दोनो बहुत हैरान और परेशान हैं. उन्हे कुछ समझ नही आ रहा कि आख़िर बात क्या है ?.
“वीर, क्या बात है… तुम कुछ बोलते क्यों नही” – रुद्र प्रताप ने वीर के कंधे पर हाथ रख कर पूछा
पर वीर ने कुछ जवाब नही दिया
“हां बेटा बोलो ना क्या बात है, ये दरवाजा क्यों तोड़ा तुमने” ---- जीवन प्रताप ने पूछा
तभी बलवंत नीचे से आवाज़ लगाता है और पूछता है, “मालिक सब लोग तैयार हैं, चलें क्या ?”
वीर गहरे विचारो में खो जाता है… फिर कुछ सोच कर कहता है, “आज रहने दो, वो सब बाद में देखेंगे”
“क्या कह रहे हो बेटा !! ऐसे तो ये गाँव वाले सिर पे चढ़ जाएँगे” --- जीवन प्रताप ने कहा
“एक-दो दिन में कोई तूफान नही आ जाएगा चाचा जी” --- वीर ने कहा
“पर बात क्या है कुछ बताते क्यों नही ?? बहू कह रही थी कि वर्षा थी कमरे में ??. वो थी तो कहा गयी ?” --- रुद्र ने पूछा
“ऐसा कुछ नही है, उसे भ्रम हुवा होगा” --- वीर ने कहा
“तो फिर तुमने दरवाजा क्यों तोड़ा.... वो बाहर से बंद था ना” --- रुद्र ने हैरानी भरे शब्दो में पूछा
“पिता जी दरवाजा अटक गया था. उसे खोलने की कोशिश कर रहा था… बस इतनी सी बात है”
“तो फिर बहू क्यों कह रही थी कि वर्षा कमरे में थी ?”
“उसका दिमाग़ खराब है पिता जी. दरवाजा अटका हुवा था.. इसलिए उसने सोचा कि वर्षा अंदर है”
रेणुका वही खड़ी हुई सब सुन रही थी.
“दिमाग़ तो इसका खराब है ही... हा” --- रुद्र ने कहा और कह कर वाहा से चल दिया.
जीवन भी वाहा से चुपचाप चला गया.
वीर ने गहरी साँस ली और भारी-भारी कदमो से अपने कमरे की तरफ चल पड़ा
रेणुका भी उसके पीछे-पीछे कमरे में आ गयी
“क्या कहा आपने…. मेरा दिमाग़ खराब है !!!! क्या आपने वर्षा को कमरे में नही देखा ?” --- रेणुका ने पूछा
“चुप कर.... मैं अभी बहस के मूड में नही हूँ” – वीर ने कहा
“पर ये सब था क्या....?” --- रेणुका ने पूछा
“मैने कहा ना… चुप रहो, अपना काम देखो जा कर… मुझे अकेला छोड़ दो”
रेणुका कमरे से बाहर निकल कर रसोई में आ जाती है.
“क्या हुवा मालकिन “ – माधव ने पूछा
“कुछ नही काका... चलिए खाना तैयार करते हैं” --- रेणुका ने कहा
“किशोर कब तक बैठे रहेंगे हम इस गुफा में” – रूपा ने झुंजलाहट में कहा
“लगता है रास्ता साफ है… काफ़ी देर से कोई आवाज़ तो नही आई. ऐसा करता हूँ थोडा सा पथर हटा कर देखता हूँ” --- किशोर ने कहा
“हां देखो, पर ज़रा ध्यान से”
“तुम चिंता मत करो और पथर छोड़ कर पीछे हट जाओ, मैं बाहर झाँक कर देखता हूँ”
किशोर बाहर झाँक कर देखता है
“दीख तो कुछ नही रहा, लगता है रास्ता साफ है, आओ चलते हैं”
“ठीक है चलो जल्दी… हमे हर हाल में आज वापिस गाँव पहुँचना है”
“ठीक है आओ”
दोनो गुफा से बाहर आ कर सुबह की खुली हवा में साँस लेते हैं और चारो तरफ देखते हैं कि कहीं कोई ख़तरा तो नही.
“रूको मैं ये मोटी सी लकड़ी उठा लेता हूँ. रास्ते में काम आएगी” --- किशोर ने कहा
“ठीक कह रहे हो… जिस तरह का ये जंगल है, हमारे पास कुछ तो होना ही चाहिए”
“ये लो एक डंडा तुम भी पकड़ लो” – किशोर लकड़ी का एक मोटा सा डंडा रूपा की तरफ बढ़ाता है.
“मदन और वर्षा पता नही कहा होंगे ? क्या वो गाँव पहुँच गये होंगे ?” --- रूपा ने किशोर से पूछा
“पता नही… क्या पता वो भी हमारी तरह कहीं भटक रहे हो ?”
“ह्म्म्म….. बिल्कुल हो सकता है” --- रूपा ने कहा
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हो गया क्या ?”
“तुम इधर मत देखना”
“अरे भाई… ये जंगल है चारो तरफ ध्यान रखना पड़ता है, जल्दी करो… हमें आज इस जंगल से निकलना ही होगा”
“बस अभी आ रही हूँ”
“ठीक है… पर जल्दी करो”
वर्षा अपनी सुबह की दिनचर्या पूरी करके आती है.
“चलो …. तुमने तो परेशान कर दिया” ---- वर्षा ने कहा
“अरे तुम समझती नही… मैं जानबूझ कर बाते कर रहा था… ताकि पता चलता रहे कि झाड़ियों के पीछे तुम ठीक हो… पर देखो खाने का इंत-जाम हो गया”
“वो कैसे ?” – वर्षा ने हैरानी में पूछा
“देखो वो सामने उस पेड़ पर बेल लटक रही है, खाई है कभी क्या ?”
“हां-हां खूब खाई है… चलो जल्दी से तोड़ते हैं”
“रूको…. जंगल में कोई भी काम भाग-दौड़ में नही करते. यहा कदम-कदम पर ख़तरे हैं. आराम से, चुपचाप चारो तरफ देखते हुवे चलते हैं”
“ठीक है… मुझे भूख लगी है ना, इसलिए जल्दी मचा रही थी”
“भूख तो मुझे भी लगी है… चलो चलते हैं”
दोनो दबे पाँव चारो तरफ देखते हुवे उस पेड़ के पास जाते हैं
“ऐसा करते हैं पेड़ पर ही चढ़ जाते हैं…क्या कहते हो ? --- वर्षा ने कहा
“ह्म्म ख्याल तो अछा है… तुम्हारा दीमाग अब ठीक चल रहा है”
“क्या मतलब… क्या पहले ठीक नही था ?”
“ठीक होता तो क्या तुम मुझ ग़रीब से प्यार करती ?”
“कैसी बाते करते हो तुम.. शरम नही आती तुम्हे ऐसा कहते हुवे …ग़रीब वो होता है जिसकी सोच छोटी होती है”
“अरे ये तुमने कहा से सुना”
“उसी प्रेम से सुना था… एक बार जब मैं मंदिर से निकल रही थी तो उसको किसी को कहते हुवे सुना था”
“ऐसा ही है प्रेम… उसके मूह से कुछ ना कुछ अछा निकलता रहता है… काश उस से दुबारा मिल पाता !! पता नही कहा होगा वो ?” --- मदन ने कहा
“मदन जी… वैसे हम शायद यहा कुछ खाने आए थे”
“ओह्ह….. हाँ, चलो पहले तुम चढ़ो… आराम से पेड़ पर बैठे-बैठे खाते रहेंगे” – मदन ने कहा
वर्षा पेड़ पर चढ़ जाती है और मदन भी उसके चढ़ने के बाद पेड़ पर चढ़ जाता है.
वर्षा एक बेल तोड़ कर मदन को देती है
“अरे नही पहले तुम खाओ… मैं तोड़ लूँगा” --- मदन ने कहा
“अरे लो ना… मेरे हाथ के नज़दीक एक और है… मैं वो खा लूँगी”
“ठीक है, जब तुम इतने प्यार से दे रही हो तो मैं मना कैसे कर सकता हूँ ?”
“ये हुई ना बात… प्यार वाली” --- वर्षा ने मुस्कुराते हुवे कहा
“अछा लग रहा है तुम्हे हंसते देख कर… कल तो मैं तुम्हे परेशान देख कर बहुत दुखी हो रहा था… सोच रहा था कि ये प्यार तुम्हे दुख दे रहा है”
“मैं पहली बार घर से बाहर थी मदन.. इसलिए बहुत परेशान थी. अब एक पूरा दिन और एक पूरी रात जंगल में बिता चुकी हूँ… अब मुझे लगता है कि यहा भी जिया जा सकता है”
“अरे वाह क्या बात है … तुम ऐसा कहोगी मैं सोच भी नही सकता था” --- मदन ने मुस्कुराते हुवे कहा
“मुझे कल बहुत बुरा लग रहा था. केयी बार ये भी सोचा कि इस प्यार के झांजाट में क्यों पड़ गयी …पर अगले ही पल ये ख्याल आया कि ये झांजाट जब खूबसूरत है तो हर्ज़ ही क्या है” --- वर्षा ने प्यार भरी नज़रो से मदन की ओर देखते हुवे कहा
“क्या खूबसूरती है इस झांजाट में वर्षा ?”
“कल सारी रात तुम मुझे थामे पेड़ पर बैठे रहे… मैं सो गयी पर तुम नही सोए… पूछ सकती हूँ क्यों ?”
“इसलिए कि तुम चैन से सो पाओ. नींद में तुम यहा वाहा लुडक रही थी. मैं ना थामे रहता तो तुम नीचे गिर जाती”
“यही तो वो खूबसूरती है मदन… एक दूसरे के लिए कुछ भी कर-गुजरने की चाहत, खूबसूरत नही तो और क्या है ? इस प्यार से सुन्दर चीज़ हमें और क्या मिल सकती है”
“ये तो है वर्षा. मैं तो खुद इस प्यार की खूबसूरती में सब कुछ भुला चुका हूँ… हर पल दिल में प्यार का मीठा-मीठा सरूर रहता है”
“वैसे अब मुझे ये जंगल बहुत प्यारा लग रहा है… कितनी शांति और सकूँ है यहा… ये सब और कहा मिलेगा” ---- वर्षा ने कहा
“ठीक है फिर हम यही घर बसा लेते हैं” --- मदन ने कहा
“घर क्यों… हम पेड़ पर रह लेंगे हहे….. कल रात भी तो पेड़ पर थे” ---- वर्षा ने हंसते हुवे कहा
“फिर हमें भी उन कबूतरों की तरह प्यार करना होगा… जैसा हमने उस पेड़ पर देखा था. कितना प्यारा तरीका था ना प्यार का वो ?” ---- मदन ने शरारती अंदाज़ में कहा
“हटो मदन…. ऐसी बाते मत करो… मुझे शरम आती है”
“तुम ही तो कह रही थी कि पेड़ पर रहेंगे… जब पेड़ पर रहेंगे, तो पेड़ के तोर-तरीके तो अपना-ने पड़ेंगे ना”
“वो…. पेड़ के बारे मैं तो यू ही मज़ाक में कह रही थी.. पर हां, यहा घर बना कर रहने में मुझे कोई ऐतराज नही है”
“वाह-वाह हवेली में रहने वाली अब जंगल में रहेगी….. हहे”
“तो क्या हुवा…. मुझे तो ये जंगल बहुत अछा लग रहा है” – वर्षा ने कहा
“ये सब तो ठीक है वर्षा.. पर ये जंगल पलक झपकते ही अपना रूप बदल सकता है… इसलिए ऐसी बाते मत सोचो. हम मेरे चाचा जी के गाँव चल रहे हैं. वैसे जब तक हम यहा से नही निकलते तब तक हम यही हैं.. इसलिए अपना दिल खुस कर लो”
“ठीक है बाबा… ले चलो मुझे जहा ले चलना है.. मैने क्या कभी मना किया है” --- वर्षा ने कहा
“अरे वो देखो !!” ---- मदन ने एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुवे कहा
“कहा देखूं ?”
“उस सामने के पेड़ पर बंदर..बंदरिया क्या कर रहे हैं”
“फिर मुझे ऐसी चीज़ दीखा रहे हो”
“अरे देख लो और सीख लो… प्यार का ये तरीका हम इंसान भी अपनाते हैं”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हटो तुम…. मुझे नही सीखना ये सब” --- वर्षा ने शरमाते हुवे कहा
“अरे इसके बिना तो आदमी-औरत अधूरे हैं, ये नही होगा तो धरती पर जीवन कैसे चलेगा”
“पर ये तो बेकार तरीका है… देखो ना कैसे झुका रखा है.. बेचारी को बंदर ने”
“प्यार के बहुत सारे तरीके हैं वर्षा…. ये बस उनमे से एक है”
“बस-बस मुझे काम-क्रीड़ा का पाठ मत पधाओ और चुपचाप बेल खाओ” – वर्षा ने झुंजलाते हुवे कहा
“ये सब हमारे काम की बाते हैं वर्षा इनको समझ लो तो अछा होगा”
“मुझे कुछ नही समझना… तुम बेल खाओ और मुझे भी खाने दो…. हा.. काम की बाते”
“ऐसे गुस्सा करती हो तो और भी प्यारी लगती हो, मन कर रहा है तुम्हारी पप्पी ले लूँ”
“ले कर दीखाओ, तुम्हे नीचे धक्का दे दूँगी”
“ऐसा है क्या ?”
“हां बिल्कुल”
मदन वर्षा की तरफ बढ़ता है
“रूको मानते हो कि नही मैं सच में तुम्हे गिरा दूँगी”
“तो गिरा दो.. तुम्हे रोक कौन रहा है…. अब तो इन होंटो का रस मैं पी कर रहूँगा”
दौनो में हाथा-पाई होती है और …….
“नहियिइ…” --- वर्षा चील्लयि
“अरे तुमने तो सच में………. गिरा दिया”
मदन ज़मीन पर पड़ा था.
“जल्दी उपर आओ”
“मुझे नही आना… पहले गिराती हो, फिर उपर बुलाती हो”
“देखो कितनी मीठी बेल है.. आओ ना… वरना मैं पूरी खा जाउन्गि”
“तो खा जाओ… मुझे भूख नही है”
“उउफ्फ …. ठीक है मैं भी नही खाती फिर… मैं नीचे कूद रही हूँ”
“अरे पागल हो क्या…. चोट लग जाएगी… मेरी कमर दुख रही है… रूको मैं आ रहा हूँ”
बहुत प्यारी है इन प्यार में डूबे दो दिलो की ये खूबसूरत नोक-झोंक.
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गाँव में:------
“साधना मैं खेत में जा रहा हूँ, पता चला है कि ठाकुर के आदमियों ने वाहा खेत में कुछ अजीब देखा है” --- प्रेम ने साधना से कहा
“मैने भी देखा है प्रेम. कल सुबह मैने खुद किसी अजीब से साए को फसलों में घुसते देखा था. एक बार नही बल्कि दो बार. मैने और पिता जी ने पूरा खेत छान मारा पर हमें कुछ नही मिला. कल शाम को तुमने भी तो वो चीन्ख सुनी थी”
“हां सुनी तो थी… पर इन सब बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँच सकते.. अभी दिन है, एक बार मैं आछे से खेत को देख लूँ तभी कुछ कह सकूँगा” --- प्रेम ने कहा
“मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी प्रेम” --- साधना ने कहा
“कब तक साथ चलॉगी साधना, मैने जीवन से सन्यास ले लिया है. आज यहा हूँ तो बस देश-प्रेम की खातिर वरना कहीं समाधि में बैठा होता ?”
“ये क्या कह रहे हो प्रेम ? क्या ये दुख देने के लिए ही वापिस आए हो तुम. मैने सोचा मेरा प्यार तुम्हे यहा खींच लाया है.. पर नही तुम तो देश से प्यार करते हो.. मेरी इस देश के आगे क्या औकात है.. हैं ना”
ये कह कर साधना रोने लगती है
प्रेम उसकी और देखता रहता है. उसके पास साधना के सवाल का कोई जवाब नही है
“साधना तुम ये सब क्या कह रही हो ?”
“और क्या कहूँ प्रेम, तुम इतने दीनो बाद वापिस आए और अब ऐसी बाते कर रहे हो”
“देखो वाहा खेत में तुम्हारा जाना ठीक नही होगा. वाहा कुछ अजीब हो रहा है. तुम साथ रहोगी तो मुझे तुम्हारी ही चिंता रहेगी. कल तुम साथ ना होती तो मैं कल ही पता कर लेता कि क्या चक्कर है वाहा”
“जब तुम मुझे कुछ समझते नही हो तो फिर मेरी चिंता क्यो रहेगी तुम्हे”
“किसने कहा मैं तुम्हे कुछ नही समझता, मेरे दिल में आज भी तुम्हारे लिए वही आदर और सम्मान है जो पहले था”
“पर… प्यार नही है… है ना ?”
“क्या मैने तुम्हे कभी कहा कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ” --- प्रेम ने पूछा
“नही पर….” ---- साधना ये कह कर चुप हो गयी. उसने अपने मूह पर आते हुवे सबदो को अपने अंदर ही रोक लिया.
“हम आछे दोस्त थे साधना. क्यों इस दोस्ती को प्यार के बंधन में बाँध रही हो. वैसे भी मेरे जीवन का मकसद इस देश के लिए कुछ करने का है. तुम्हे तो ख़ुसी होनी चाहिए ये सब देख कर”
“मैं खुस हूँ प्रेम पर… मैं इस दिल का क्या करूँ जो बस तुम्हारे लिए धड़कता है”
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“इस दिल को तुम्हे किसी और के लिए धड़कना सीखाना होगा… मैं चाह कर भी प्यार के बंधन में नही बाँध पाउन्गा. इस दोस्ती को दोस्ती ही रहने दो तो अछा होगा”
“तुम बहुत आगे निकल गये प्रेम… मैं तो बहुत पीछे रह गयी…. अब दोस्ती भी कहा निभा पाउन्गि”
“तुम वो साधना नही हो जिसे मैं जानता था…. क्या हो गया है तुम्हे ?”
“शायद प्यार ऐसा ही होता है… खैर जाने दो.. तुम जाओ मैं ठीक हूँ”
साधना और प्रेम अपनी बातो में खोए थे. अचानक उन्हे आवाज़ सुनती है
“मेरे साथ अन्याय हुवा है और तुम मुझे ही दोषी ठहरा रहे हो”
साधना मूड कर घर में घुसती है.
प्रेम देखता है कि एक आदमी अंदर से निकलता है और गुस्से में बड़बड़ाता हुवा उसके पास से निकल जाता है. थोड़ी देर बाद साधना बाहर आती है.
“क्या हुवा… कौन था वो ?” --- प्रेम ने पूछा
“वो जीजा जी थे… सरिता दीदी के साथ जो कुछ भी हुवा, उसके लिए वो उसे ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. बोल गये हैं कि उनका दीदी से अब कोई लेना देना नही है”
“ये क्या पागलपन है… कैसे लेना देना नही है” --- प्रेम ने कहा
“इस पुरुष प्रधान दुनिया में कुछ भी हो सकता है… कोई भी, कभी भी, कहीं भी, दामन छ्चोड़ सकता है”
“मैने तुम्हारा दामन कब छ्चोड़ा साधना ऐसा मत कहो” --- प्रेम ने पूछा
“मैं तुम्हे नही कह रही प्रेम, तुम जाओ मैं दीदी को संभालती हूँ वो रो रही हैं… वैसे मुझे खुद को भी संभालना है….” ---- साधना भारी आवाज़ में कहती है. कहते हुवे उसकी आँखे छलक उठती हैं
“ठीक है मैं चलता हूँ. तुम किसी बात की चिंता मत करना… मेरा मित्र गोविंद यही है और नीरज भी यही है. मैं धीरज को साथ ले जा रहा हूँ” --- प्रेम ने साधना की तरफ पीठ करके कहा
“ठीक है जाओ प्रेम, …….. अपना ख्याल रखना” --- साधना ने गहरी साँस ले कर कहा
प्रेम ने धीरज को आवाज़ लगाई और उसके साथ खेत की तरफ चल दिया
“स्वामी जी आप कुछ परेशान लग रहे हैं” – धीरज ने पूछा
“जींदगी में काई बार हमें अपनो के दिल को कुचल कर चलना पड़ता है” – प्रेम ने कहा
“क्या ऐसा करना पाप ना होगा स्वामी जी ?” --- धीरज ने पूछा
“तुम्हारे स्वाल मुझे हॅमेसा परेशान करते हैं. अब पता नही ये पाप होगा या पुन्य. हाँ पर इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसा करना ज़रूरी है. कभी तुम्हारे जीवन में ऐसा अवसर आया तो तुम खुद समझ जाओगे” – प्रेम ने जवाब दिया.
“कैसा अवसर स्वामी जी ?”
“कुछ नही…. अब ज़रा थोड़ा शांति से चलो”
“जी स्वामी जी”
हवेली में:------
“ये क्या हो गया है वीर को भैया, अभी तो गाँव जाने की तैयारी कर रहा था और अब कहता है, एक दो दिन में तूफान नही आ जाएगा” --- जीवन प्रताप सिंग ने कहा
“पता नही क्या बात है… ये बहू भी तो उसका दीमाग खराब करके रखती है” --- रुद्र ने कहा
“वो सब तो ठीक है भैया पर गाँव पर पकड़ ढीली नही पड़नी चाहिए” --- जीवन ने कहा
“तुम चिंता मत करो जीवन, वीर नही जाएगा तो हम खुद जाएँगे इन गाँव वालो की अकल ठीकाने लगाने”
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इधर वीर अपने कमरे में पड़ा-पड़ा गहरे ख़यालो में खोया है.
वो सोच रहा है, “वो वर्षा हरगिज़ नही हो सकती. वो मेरे सामने कभी ऐसा नही कर सकती. फिर वो कौन थी. और वो लड़का कौन था ?. वो मदन तो नही था. कुछ समझ नही आ रहा. वो कमरे से गायब कैसे हो गये ? क्या वो दोनो भूत थे….”
ऐसे बहुत सारे सवाल वीर के मान में गूँज रहे थे. पर उसके पास इन सवालो का कोई जवाब नही था.
तभी वियर देखता है कि रेणुका उसकी ओर आ रही है
“मुझे माफ़ कर दीजिए मैं आपको बहुत दुख देती हूँ”
“ठीक है… ठीक है..ये नाटक बंद करो और यहा से दफ़ा हो जाओ…. मनहूस कहीं की”
“मनहूस तो ये घर है, मैं नही. देखा नही क्या कर रही थी वर्षा ?”
“चुप कर वरना ज़ुबान खींच लूँगा, वो वर्षा नही थी समझी” --- वीर ने गुस्से में कहा
“अरे उसकी रगो में भी तो इसी घर का खून है.. मुझे पूरा यकीन है कि वो वर्षा ही थी”
“साली चुप नही होती… दफ़ा हो जा यहा से”
“सच बोलने में मुझे कोई डर नही है.. मैने जो देखा वो बोल रही हूँ”
“अभी बताता हूँ तुझे”
“आअहह… छोड़िए मेरे बॉल”
“तेरी ज़ुबान दिन-ब-दिन और ज़्यादा चलने लगी है. आज तेरा वो हाल करूँगा कि तू याद रखेगी”
“देखिए ये सब ठीक नही है… छ्चोड़ दीजिए मुझे… मैं सच ही तो बोल रही थी”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे.............................. “स्वामी जी क्या सोच रहे हो आप” --- धीरज ने पूछा “कुछ नही…… चलो चलते हैं यहा से” --- प्रेम ने कहा “पर स्वामी जी क्या हम उस चिड़ी मार को यू ही छोड़ देंगे” “शायद मैं उसे जानता हूँ कि वो कौन है… आओ हमें वापिस गाँव चलना है” --- प्रेम ने कहा “क्या !! आप उसे जानते हैं…. कौन है वो?” “मैने कहा शायद मैं जानता हूँ… अभी ठीक से कुछ नही कह सकता. गाँव में ज़रूर इसके बारे में कुछ पता चलेगा” “चलिए फिर गाँव चलते हैं” “हां चलो” – प्रेम ने कहा जंगल में:------ “रूपा रूको…” “क्या हुवा अब ? हमें घर जाना है कि नही ?” रूपा ने निराशा भरे शब्दो में पूछा “स्शह चुप रहो” “क्या बात है ?” – रूपा धीरे से पूछती है “आओ मेरे साथ” – किशोर ने कहा और उसका हाथ पकड़ कर उसे झाड़ियों के एक झुंड के पीछे ले आया “कुछ बताओ तो सही क्या बात है ?” “मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी थी… जैसे कि कोई बोल रहा हो” “क्या किसी इंसान की आवाज़ थी ?” “हां…. धीरे बोलो” “कहीं मदन और वर्षा की आवाज़ तो नही थी” “अब क्या पता. पर इतना समझ लो कि इस जंगल में जानवरो के साथ-साथ जंगंग्ली कबीले भी रहते हैं” “तो उनसे हमें क्या ख़तरा?” “अब ख़तरा क्या बता कर आता है, यहा चुप कर देखते हैं कि कौन है” आवाज़े नज़दीक आती जाती है. कीशोर को कुछ दीखता है और वो कहता है, “अरे ये तो अंग्रेज हैं…ज़रूर यहा शिकार के लिए आए होंगे” “तो निकले बाहर हम… क्या पता ये लोग यहा से निकलने में हमारी मदद ही कर दे” “पागल हो गयी हो क्या.. ये क्या मदद करेंगे… इन्हे निकल जाने दो…. फिर हम चलेंगे” “हे टॉम व्हेरे ईज़ और स्पॉट फॉर पिक्निक” --- रॉबर्ट आस्क्ड “वी आर सर्चिंग दट वन ओन्ली मॅन, काम डाउन” --- टॉम सेड “वॉट काम डाउन? आम डेस्परेट टू हॅव फन विथ माइ बेब” “कम ऑन रॉबर्ट, डॉन’ट पुट मी इंटो दिस” कॅरोल साइड इन आंग्री टोन “हे कॅरोल वाइ आर यू बिहेविंग लाइक ठाट, वी केम हियर फॉर फन राइट” “दट’स राइट रॉबर्ट, बट डॉन’ट पुश थिंग्स अराउंड हियर… वी आर फ्रेंड्स….. ओके” “हे टॉम! लुक, देर इस सम्तिंग बिहाइंड दोज़ बुशस” ---- रॉबर्ट सेड “मस्ट बी सम अनिमल” ---- टॉम सेड “लेट मी शूट दिस टाइम, लेट’स सी वॉट वी गेट” --- रॉबर्ट सेड टू टॉम किशोरे समझ जाता है कि उनकी तरफ गोलिया चलने वाली हैं. वो हड़बड़ाहट में खड़ा होता है और बोलता है, “रूको हम जानवर नही हैं जो गोली मार रहे हो” “श शिट… ब्लडी इंडियन… आइ थॉट आइ गॉट सम वाइल्ड अनिमल ऑन टारगेट” “काम डाउन रॉबर्ट देर आर प्लेंटी ऑफ वाइल्ड अनिमल आउट हियर” --- टॉम सेड “बट वी गॉट नन सो फर… डिड वी ?. लेट मे शूट दिस इंडियन अट लीस्ट?” “डू अस यू फील लाइक, आइ हॅव नो इश्यू” – टॉम सेड “आर यू पीपल मॅड ओर सम्तिंग, हाउ कॅन यू शूट दट पुवर गाइ” --- सिमोन सेड वित सर्प्राइज़ “कम ऑन सिमोन लेट मी किल सम्तिंग विथ माइ गन… अदरवाइज़ वॉट ईज़ दा पॉइंट इन कमिंग हियर” --- रॉबर्ट सेड “डॉन’ट बी सेंटिमेंटल सिमोन, दीज़ इंडियन्स अरे नोट वोर्थ लिविंग एनीवे. दे अरे और स्लेव आंड वी कॅन डू एनितिंग विथ देम” --- टॉम सेड “टॉम आइ केम हियर अलॉंग विथ यू पीपल टू सी दिस फोरेस्ट फ्रॉम इनसाइड. आइ आम नोट हियर टू सी सम काइंड ऑफ ह्यूमन हंटिंग” --- सिमोन सेड “आइ हॅड वॉर्न्ड यू टॉम, नोट टू ब्रिंग दिस स्टुपिड सिमोन विथ उस. ही विल डेस्ट्राय और फन हियर” --- रॉबर्ट सेड इन आंगर “प्लीज़ डॉन’ट फाइट ऑन दिस ट्रिवियल इश्यू. लेट्स मूव फॉर्वर्ड” --- टॉम सेड रॉबर्ट अपने घोड़े को आगे बढ़ाता है पर जाते-जाते किशोरे पर फाइयर करता है. गोली किशोरे के बिल्कुल कान के पास से निकल जाती है. रूपा जो अब तक चुपचाप झाड़ियों के पीछे दुबक कर बैठी थी, गोली की आवाज़ सुन कर खड़ी हो जाती है “हे लुक व्हाट वी गॉट हियर. वॉट ए नाइस पीस ऑफ इंडियन पुसी. हे सिमोन यू लाइक इंडियन पीपल डॉन’ट यू. वुड यू फक दट वन”? --- रॉबर्ट सेड टू सिमोन वित टीज़िंग टोन “शी ईज़ गुड मॅन. सिमोन व्हाट डू यू से? यू आर अलोन हियर. वी गॉट और मेट्स बडी. गेट दट वन फॉर यू ….हहहे” --- टॉम सेड “आइ डॉन’ट हॅव दट मच इंटेरेस्ट इन इंडियन फ्रेंड्स, आइ आम हियर टू एक्सप्लोर दिस फोरेस्ट आंड नतिंग एल्स” “कॅरोल वुड यू माइंड इफ़ आइ टेक हेर अलॉंग विथ मी फॉर फन. इन केस यू डॉन’ट अग्री… हहहे” “स्टॉप दिस नॉनसेन्स रॉबर्ट” – कॅरोल सेड “सो इट्स क्लियर दट यू विल स्पायिल माइ फन इन दिस फोरेस्ट. ई शुड नोट टेक चान्सस विथ यू. आइ आम गोयिंग टू टेक तीस इंडियन अलॉंग विथ मी. टॉम आंड सिमोन, डू यू हॅव एनी ऑब्जेक्षन” “गो अहेड मॅन डू इट, वी मे ऑल्सो जाय्न यू” --- टॉम सेड “टॉम यू टू जायंड हिम इन दिस मॅडनेस” जूलीया सेड विथ सर्प्राइज़ “कम ऑन जूलीया वी आर हियर फॉर फन. इफ़ दिस इंडियन ब्यूटी कॅन गिव उस एक्सट्रा फन दॅन वाइ टू मिस इट” “वी शुड नोट हॅव कम हियर विथ यू पीपल” – कॅरोल सेड “टॉम दिस ईज़ नोट राइट” --- जूलीया सेड सिमोन चुपचाप अपने घोड़े पर बैठा सब सुन-ता रहता है. रॉबर्ट घोड़े से उतर कर रूपा और किशोरे की तरफ बढ़ता है. उन्हे अभी तक पता ही नही कि उनके सर पर कोई ख़तरा मंडरा रहा है. “हे कम हियर” – रॉबर्ट सेड टू किशोरे “क्या बात है साहिब” – किशोरे ने पूछा “कम विथ उस” --- रॉबर्ट सेड विथ जेस्चर ऑफ हिज़ हॅंड “किशोरे शायद ये हमें साथ चलने को कह रहा है. चलो इनके साथ हम भी यहा से बाहर निकल जाएँगे” “मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है रूपा” “हे व्हाट आर यू टॉकिंग, मूव फास्ट” --- रॉबर्ट सेड ये कह कर रॉबर्ट ने किशोरे और रूपा पर बंदूक तान दी. रूपा और किशोरे समझ गये कि उन्हे हर हाल में उनके साथ चलना है. “ये चाहते क्या हैं किशोरे?” “पता नही… पर मुझे कुछ अजीब लग रहा है” “वाइ यू ब्रॉट दिस गाइ रॉबर्ट, वी हॅव नो यूज़ ऑफ हिम” --- टॉम आस्क्ड “ही विल वर्क फॉर उस टॉम, वी वुड नीड लॉट ऑफ हेल्प अट और पिक्निक स्पॉट. ही विल डू और वर्क ओर एल्स ही विल बी डेड” “यू हॅव आन ईविल माइंड रॉबर्ट” – टॉम सेड “आंड व्हाट डू यू हॅव? यू ब्रॉट जूलीया हियर आफ्टर कन्विन्सिंग हेर ऑफ युवर लव हहहे” --- रॉबर्ट सेड “टॉम वॉट आम हियरिंग?” --- जूलीया सेड “ही ईज़ जोकिंग जूलीया. डॉन’ट लिसन हिम” बट बाइ दट टाइम जूलीया न्यू दट शी हॅज़ डन मिस्टेक बाइ कमिंग अलॉंग विथ टॉम गाँव में:---- “स्वामी जी हम कहा जा रहे हैं ?” --- धीरज ने पूछा “मंदिर जा रहे हैं” --- प्रेम ने कहा “मंदिर ! मुझे लगा हम उस चिड़ी मार के बारे में जान-ने जा रहे हैं” “धीरज, तुम थोड़ा धीरज रख लोगे तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा ?” “माफ़ कीजिए स्वामी जी मैं तो उत्सुकता में सवाल कर रहा था” “उत्सुकता तो ठीक है पर ये हर वक्त तो नही होनी चाहिए ना” “मैं क्या करूँ स्वामी जी आप मुझे कुछ बताते ही नही हैं, इस तरह मेरा ग्यान कैसे बढ़ेगा” “ठीक है-ठीक है अब चुप रहना और मुझे बात करने देना” --- प्रेम ने मंदिर के पास एक घर के बाहर रुक कर कहा “जी स्वामी जी” “प्रेम घर का दरवाजा खड़काता है” अंदर से एक बुजुर्ग निकलता है “नमस्कार काका” --- प्रेम ने हाथ जोड़ कर कहा उस बुजुर्ग ने भी हैरानी से प्रेम की और हाथ जोड़ दिए “काका क्या आपने मुझे पहचाना नही, मैं प्रेम हूँ, मंदिर के पुजारी का बेटा” “हां पहचान लिया बेटा, बोलो क्या बात है. बहुत दिन हो गये मेरे घर कोई आया नही इसलिए हैरानी से देख रहा था” “काका रघु कहा है ?” वो बुजुर्ग प्रेम की और बड़ी हैरानी से देखता है और देखते-देखते उसकी आँखे छलक उठती हैं “काका आप रो क्यों रहे हो, कहा है रघु ?” --- प्रेम ने पूछा “यही सवाल तो रोज मैं खुद से भी करता हूँ बेटा. मेरी बूढ़ी आँखे थक गयी हैं उसकी राह देखते-देखते. पता नही कहा चला गया मेरा बेटा. क्या तुम्हे नही पता कि वो 2 साल से गायब है ?” “मुझे कुछ नही पता काका, मैं खुद गाँव में नही था” “अरे हां तुम तो खुद गायब थे गाँव से. आज तुम्हे देख कर तस्सली हो रही है की एक दिन मेरा रघु भी लॉट आएगा” “स्वामी जी चलिए यहा से मुझ से तो ये दुख देखा नही जा रहा” –
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09-08-2018, 01:43 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
धीरज ने प्रेम के कान में कहा “काका आपको कुछ नही पता कि वो कहा गया”
“पता होता तो जाकर ले ना आता बेटा, उसके जाने के बाद मेरी तो दुनिया ही उजड़ गयी”
“मैं समझ सकता हूँ काका… आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा… मैं अब चलता हूँ” --- प्रेम ने हाथ जोड़ कर कहा
“बेटा रघु की कोई खबर लगे तो फॉरन आ कर बताना, उसकी मा खाट पकड़े पड़ी है. किसी भी वक्त प्राण त्याग सकती है. रघु के गम में ही उसकी ये हालत हुई है. जाते-जाते उसे रघु का कुछ पता चल जाए तो उसकी आत्मा को सुकून मिलेगा” “आप फिकर मत करो काका, रघु का कुछ ना कुछ पता चल ही जाएगा. मैं खुद उसकी तलाश करूँगा” – प्रेम ने उस बुजुर्ग के हाथ पकड़ कर कहा “ठीक है बेटा….. इस पूरे गाँव में तुम्हारी खूब प्रशंसा होती है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम मेरे बेटे को ढूंड लाओगे” “ठीक है काका….. मैं चलता हूँ… आप चिंता मत करना” ये कह कर प्रेम वाहा से चल देता है “स्वामी जी मेरी तो आँखे भर आई थी, आप कैसे इतने मजबूत बने रहते हैं” “सब कुछ जींदगी ने सीखाया है मुझे, तुम भी सीख जाओगे” “पर स्वामी जी मुझे कुछ समझ नही आया, उस चिड़ी मार के लिए हम यहा क्यों आए थे” प्रेम किन्ही गहरे ख़यालों में होता है, वो धीरज की बात का कोई जवाब नही देता “स्वामी जी……. क्या हुवा?” “कुछ नही… बात काफ़ी उलझी हुई है. बहुत भारी गड़बड़ हुई लगती है मेरे पीछे इस गाँव में” “क्या मतलब स्वामी जी मुझे भी तो कुछ बता दिया करो. मैं हर वक्त सोच-सोच कर परेशान रहता हूँ” “तुम्हे क्या बताउ अभी जब मुझे ही ठीक से कुछ समझ नही आ रहा. बात वही बताई जाती है जिसका आपको पता हो. मैं खुद अभी अंधेरे में हूँ तो क्या बताउ तुम्हे” “ह्म्म्म…. कोई बात नही स्वामी जी. अब आगे हमें क्या करना है ?” “हवेली चलते हैं” “क्या !!” “क्या हुवा” – प्रेम ने पूछा “क्या वाहा ऐसे अकेले जाना ठीक होगा स्वामी जी” “मैं हूँ ना तुम्हारे साथ डर क्यों रहे हो. उस चिड़ी मार के पीछे तो बड़ी जल्दी भाग रहे थे” --- प्रेम ने मुस्कुराते हुवे कहा “मरे हुवे, ज़िंदा लोगो से कम ख़तरनाक होते हैं, आप ही ने कहा था ना एक दिन” --- धीरज ने कहा “हां कहा था, इसका मतलब ये नही कि ज़िंदा लोगो से डर महसूष करो” “पर स्वामी जी मैने सुना है कि बहुत ख़तरनाक है वो ठाकुर, पूरे गाँव में उसी की चलती है” “चलती थी….. अब नही चलेगी… चलो हमें और भी बहुत काम करने हैं” “स्वामी जी गोविंद को बुला लेते हैं, वो मार-धाड़ में माहिर है” “तुम चलते हो कि नही या मैं अकेला जाउ” “बुरा क्यों मानते हैं स्वामी जी मैं तो आपकी चिंता कर रहा था” “मेरी चिंता मत करो, और चुपचाप मेरे साथ चलो” ---- प्रेम ने कहा “ठीक है स्वामी जी जैसी आपकी मर्ज़ी” प्रेम और धीरज ठाकुर की हवेली की तरफ चल पड़ते हैं. हवेली में सभी वर्षा को लेकर परेशान हैं उपर से हवेली के पीछे खेत की चीन्खे भी सबकी नींद उड़ाए हुवे है. वीर और रेणुका गहरे सदमे में हैं. रेणुका से ज़्यादा वीर की हालत खराब है. वो समझ नही पा रहा है कि आख़िर हो क्या रहा है. क्रमशः............
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