Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
09-08-2018, 01:42 PM,
#44
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हो गया क्या ?”

“तुम इधर मत देखना”

“अरे भाई… ये जंगल है चारो तरफ ध्यान रखना पड़ता है, जल्दी करो… हमें आज इस जंगल से निकलना ही होगा”

“बस अभी आ रही हूँ”

“ठीक है… पर जल्दी करो”

वर्षा अपनी सुबह की दिनचर्या पूरी करके आती है.

“चलो …. तुमने तो परेशान कर दिया” ---- वर्षा ने कहा

“अरे तुम समझती नही… मैं जानबूझ कर बाते कर रहा था… ताकि पता चलता रहे कि झाड़ियों के पीछे तुम ठीक हो… पर देखो खाने का इंत-जाम हो गया”

“वो कैसे ?” – वर्षा ने हैरानी में पूछा

“देखो वो सामने उस पेड़ पर बेल लटक रही है, खाई है कभी क्या ?”

“हां-हां खूब खाई है… चलो जल्दी से तोड़ते हैं”

“रूको…. जंगल में कोई भी काम भाग-दौड़ में नही करते. यहा कदम-कदम पर ख़तरे हैं. आराम से, चुपचाप चारो तरफ देखते हुवे चलते हैं”

“ठीक है… मुझे भूख लगी है ना, इसलिए जल्दी मचा रही थी”

“भूख तो मुझे भी लगी है… चलो चलते हैं”

दोनो दबे पाँव चारो तरफ देखते हुवे उस पेड़ के पास जाते हैं

“ऐसा करते हैं पेड़ पर ही चढ़ जाते हैं…क्या कहते हो ? --- वर्षा ने कहा

“ह्म्म ख्याल तो अछा है… तुम्हारा दीमाग अब ठीक चल रहा है”

“क्या मतलब… क्या पहले ठीक नही था ?”

“ठीक होता तो क्या तुम मुझ ग़रीब से प्यार करती ?”

“कैसी बाते करते हो तुम.. शरम नही आती तुम्हे ऐसा कहते हुवे …ग़रीब वो होता है जिसकी सोच छोटी होती है”

“अरे ये तुमने कहा से सुना”

“उसी प्रेम से सुना था… एक बार जब मैं मंदिर से निकल रही थी तो उसको किसी को कहते हुवे सुना था”

“ऐसा ही है प्रेम… उसके मूह से कुछ ना कुछ अछा निकलता रहता है… काश उस से दुबारा मिल पाता !! पता नही कहा होगा वो ?” --- मदन ने कहा

“मदन जी… वैसे हम शायद यहा कुछ खाने आए थे”

“ओह्ह….. हाँ, चलो पहले तुम चढ़ो… आराम से पेड़ पर बैठे-बैठे खाते रहेंगे” – मदन ने कहा

वर्षा पेड़ पर चढ़ जाती है और मदन भी उसके चढ़ने के बाद पेड़ पर चढ़ जाता है.

वर्षा एक बेल तोड़ कर मदन को देती है

“अरे नही पहले तुम खाओ… मैं तोड़ लूँगा” --- मदन ने कहा

“अरे लो ना… मेरे हाथ के नज़दीक एक और है… मैं वो खा लूँगी”

“ठीक है, जब तुम इतने प्यार से दे रही हो तो मैं मना कैसे कर सकता हूँ ?”

“ये हुई ना बात… प्यार वाली” --- वर्षा ने मुस्कुराते हुवे कहा

“अछा लग रहा है तुम्हे हंसते देख कर… कल तो मैं तुम्हे परेशान देख कर बहुत दुखी हो रहा था… सोच रहा था कि ये प्यार तुम्हे दुख दे रहा है”

“मैं पहली बार घर से बाहर थी मदन.. इसलिए बहुत परेशान थी. अब एक पूरा दिन और एक पूरी रात जंगल में बिता चुकी हूँ… अब मुझे लगता है कि यहा भी जिया जा सकता है”

“अरे वाह क्या बात है … तुम ऐसा कहोगी मैं सोच भी नही सकता था” --- मदन ने मुस्कुराते हुवे कहा

“मुझे कल बहुत बुरा लग रहा था. केयी बार ये भी सोचा कि इस प्यार के झांजाट में क्यों पड़ गयी …पर अगले ही पल ये ख्याल आया कि ये झांजाट जब खूबसूरत है तो हर्ज़ ही क्या है” --- वर्षा ने प्यार भरी नज़रो से मदन की ओर देखते हुवे कहा

“क्या खूबसूरती है इस झांजाट में वर्षा ?”

“कल सारी रात तुम मुझे थामे पेड़ पर बैठे रहे… मैं सो गयी पर तुम नही सोए… पूछ सकती हूँ क्यों ?”

“इसलिए कि तुम चैन से सो पाओ. नींद में तुम यहा वाहा लुडक रही थी. मैं ना थामे रहता तो तुम नीचे गिर जाती”

“यही तो वो खूबसूरती है मदन… एक दूसरे के लिए कुछ भी कर-गुजरने की चाहत, खूबसूरत नही तो और क्या है ? इस प्यार से सुन्दर चीज़ हमें और क्या मिल सकती है”

“ये तो है वर्षा. मैं तो खुद इस प्यार की खूबसूरती में सब कुछ भुला चुका हूँ… हर पल दिल में प्यार का मीठा-मीठा सरूर रहता है”

“वैसे अब मुझे ये जंगल बहुत प्यारा लग रहा है… कितनी शांति और सकूँ है यहा… ये सब और कहा मिलेगा” ---- वर्षा ने कहा

“ठीक है फिर हम यही घर बसा लेते हैं” --- मदन ने कहा

“घर क्यों… हम पेड़ पर रह लेंगे हहे….. कल रात भी तो पेड़ पर थे” ---- वर्षा ने हंसते हुवे कहा

“फिर हमें भी उन कबूतरों की तरह प्यार करना होगा… जैसा हमने उस पेड़ पर देखा था. कितना प्यारा तरीका था ना प्यार का वो ?” ---- मदन ने शरारती अंदाज़ में कहा

“हटो मदन…. ऐसी बाते मत करो… मुझे शरम आती है”

“तुम ही तो कह रही थी कि पेड़ पर रहेंगे… जब पेड़ पर रहेंगे, तो पेड़ के तोर-तरीके तो अपना-ने पड़ेंगे ना”

“वो…. पेड़ के बारे मैं तो यू ही मज़ाक में कह रही थी.. पर हां, यहा घर बना कर रहने में मुझे कोई ऐतराज नही है”

“वाह-वाह हवेली में रहने वाली अब जंगल में रहेगी….. हहे”

“तो क्या हुवा…. मुझे तो ये जंगल बहुत अछा लग रहा है” – वर्षा ने कहा

“ये सब तो ठीक है वर्षा.. पर ये जंगल पलक झपकते ही अपना रूप बदल सकता है… इसलिए ऐसी बाते मत सोचो. हम मेरे चाचा जी के गाँव चल रहे हैं. वैसे जब तक हम यहा से नही निकलते तब तक हम यही हैं.. इसलिए अपना दिल खुस कर लो”

“ठीक है बाबा… ले चलो मुझे जहा ले चलना है.. मैने क्या कभी मना किया है” --- वर्षा ने कहा

“अरे वो देखो !!” ---- मदन ने एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुवे कहा

“कहा देखूं ?”

“उस सामने के पेड़ पर बंदर..बंदरिया क्या कर रहे हैं”

“फिर मुझे ऐसी चीज़ दीखा रहे हो”

“अरे देख लो और सीख लो… प्यार का ये तरीका हम इंसान भी अपनाते हैं”
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