Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
09-08-2018, 01:47 PM,
#68
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प्यार हो तो ऐसा पार्ट--20

गतान्क से आगे......................

“बहुत प्यारी जोड़ीं लग रही है तुम्हारी, स्वामी जी अभी आते होंगे. पंडित जी को मनाने गये हैं.” मदन ने कहा

“उन्हे मनाने की क्या ज़रूरत है” भीमा ने कहा.

“प्रेम तुम्हारी शादी करवा देगा. लेकिन उसकी और साधना की शादी कौन करवाएगा?” मदन ने कहा.

“क्या? स्वामी जी और साधना शादी कर रहे हैं. ये चमत्कार कैसे हुवा.” भीमा ने कहा.

“ये तो भगवान ही जाने. उन दोनो की बाते ही निराली है. हमारी समझ से बाहर है…लो प्रेम आ गया.” मदन ने कहा.

“चलो…चलो बैठो तुम. ज़्यादा देर मत करो. शुभ काम में देरी नही करनी चाहिए…वैसे बहुत आछे लग रहे हो दोनो. मैं धन्य हूँ कि तुम दोनो की शादी करवा रहा हूँ.” प्रेम ने कहा.

प्रेम ने रेणुका और भीमा की शादी सुख शांति से संपन्न की. मदन ने कन्यदान किया. जब वो दोनो आखरी फेरा ले रहे थे तब साधना और वर्षा भी आ गये.

“अरे वाह बड़ी प्यारी लग रही है मेरी बहना लाल जोड़े में.” मदन ने कहा.

“भैया छेड़ो मत. मुझे पता है मैं कैसी लग रही हूँ. जल्दी जल्दी में ठीक से तैयार नही हो पाई.”

“बहुत प्यारी लग रही हो साधना.” प्रेम ने कहा.

साधना शरम से लाल हो गयी. पहली बार प्रेम ने उसे ऐसी बात बोली थी. वो भी सबके सामने. भीमा फेरे लेते वक्त सोच रहा था, “स्वामी जी तो बिल्कुल बदल गये. शायद प्यार ऐसा ही होता है.”

जब विवाह संपन्न हुवा तो भीमा और रेणुका ने प्रेम का धन्यवाद किया. “स्वामी जी अब आपकी और साधना की शादी का इंतेज़ार है. क्या पंडित जी आएँगे.” भीमा ने पूछा.

“आएँगे ज़रूर आएँगे. बहुत प्यार करते हैं वो मुझे. नही रह पाएँगे. आते ही होंगे अभी.” प्रेम ने कहा.

“लो पंडित जी का नाम लिया और वो आ गये.” मदन ने कहा.

“पिता जी…मुझे पता था कि आप अपने प्रेम को आशीर्वाद देने ज़रूर आएँगे.” प्रेम ने कहा.

“बस…बस चलो बैठो अग्नि के सामने. ज़्यादा वक्त नही है मेरे पास.”

प्रेम साधना के पास जाता है और उसका हाथ पकड़ कर अग्नि के सामने लाता है. फिर वो दोनो बैठ जाते हैं. केशव पंडित मंत्रो-चारण शुरू कर देता है.

साधना बहुत भावुक स्तिति में रहती है हर पल. उसे यकीन ही नही हो रहा था कि उसकी शादी हो रही है प्रेम के साथ. रह-रह कर उसकी आँखे छलक जाती थी.

साधना का कन्यदान तो मदन को ही करना था. शादी संपन्न होने के बाद प्रेम और साधना ने केसव पंडित का आशीर्वाद लिया. “सदा खुस रहो” बस ये कह कर केसव पंडित वाहा से चला गया.

प्यार में डूबे तीन जोड़े मंदिर में एक साथ खड़े थे. फ़िज़ा में बस प्यार का रंग भरा था.

“प्रेम मेरी बहना को खुस रखना हमेसा. ये थोड़ी पागल है. बुरा मत मान-ना इश्कि किसी बात का.”

“मुझ से बहतर साधना को कोई नही जानता. तुम चिंता मत करो. ये हमेसा खुस रहेगी मेरे साथ.”

“वैसे ये हुवा कैसे स्वामी जी. आपने सन्यास त्याग कर शादी कर ली. कुछ उलझन है मन में थोड़ी सी.” भीमा ने कहा.

“इसका जवाब तो साधना ही दे सकती है. प्रेम-साधना की थी इसने और मैं आश्रम से खींचा चला आया इसके पास.” प्रेम ने कहा.

साधना ने प्रेम के कंधे पर सर रखा और बोली, “मुझे कुछ नही पता. मैने बस अपने प्रेम की आराधना की थी. मुझे नही पता था कि मेरा प्रेम सब कुछ छोड़ कर मेरे पास आ जाएगा.”

“भाई अब चला जाए…हम तो कब से खड़े हैं यहा.” मदन ने वर्षा का हाथ पकड़ कर कहा.

“हां बिल्कुल. मेरी शुभकामनाए तुम सभी के साथ हैं.” प्रेम ने कहा.

मदन ने साधना को गले लगाया और कहा, “खुस रहना अब. मिल ही गया तुझे तेरा प्रेम.”

“तुम भी खुश रहना भैया. वर्षा को खुश रखना. पिता जी का ध्यान रखना. काश वो भी आ पाते आज. उनकी तबीयत भी आज ही खराब होनी थी.”

“कौन सा तू दूर जा रही है. यही गाँव में ही तो रहेगी.” मदन ने कहा.

“हां पर फिर भी वाहा तो नही रहूंगी ना. ध्यान रखना पिता जी का.” साधना ने कहा.

तीनो जोड़े अपने अपने घरो की तरफ चल पड़े…………..

…………………………………………………..

भीमा और रेणुका घर की तरफ बढ़ रहे थे पर उनके पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे. ज़ज्बात ही कुछ ऐसे थे दिलो में.

“कितना प्यारा दिन लग रहा है ये. एक साथ तीन प्रेम-विवाह हुवे मंदिर में.” भीमा ने कहा.

“हां बहुत प्यारा दिन है भीमा…बहुत प्यारा दिन है…लेकिन अब ढल रहा है. अंधेरा होने वाला है जल्दी चलो.” रेणुका ने कहा.

“अब डर की क्या बात है, पिशाच तो मर चुका है.”

“हां पर मुझे रात में बाहर डर लगता है.” रेणुका ने कहा.

“बस आ गया घर अपना…वो देखो सामने. आज खूब हंगामा होगा उस घर में.” भीमा ने कहा.

“कैसा हंगामा?” रेणुका ने धीरे से कहा.

“सुहागरात है हमारी मेम्साब, हंगामा तो होगा ही.” भीमा ने कहा.

“ऐसा कुछ नही होगा अभी.” रेणुका ने हंसते हुवे कहा.

“क्यों अब किस बात का इंतेज़ार करना है.” भीमा ने कहा.

“ताला खोलो पहले. मुझे जोरो की भूक लगी है भीमा. बताओ क्या खाओगे.”

“आज हमारी शादी हुई है…कुछ ख़ास हो जाए.” भीमा ने कहा.

“छोले पूरी बनाउ क्या?”

“हां ठीक रहेगी.”

रेणुका ने खाना बनाया और दोनो ने साथ बैठ कर आराम से प्यार से खाया.

“मैं ये बर्तन सॉफ कर दू भीमा. तुम आराम करो.”

भीमा ने रेणुका का हाथ पकड़ा और कहा, “छोड़िए ना ये सब. आपसे दूरी बर्दास्त नही हो रही मुझे.”

“मुझे थोड़ा वक्त देना अभी…मैं किसी उलझन में हूँ.”

“कैसी उलझन.” भीमा ने पूछा

“पंडित जी हमारे प्यार को पाप बोल रहे थे. दिल बहुत व्यथित है इस कारण. खुद को समर्पित करना चाहती हूँ तुम्हे मैं पर मन में विचारो का जंजाल है. मैं थोड़ा ये काम कर आउ…शायद मन ठीक हो जाए.”

“पागल है वो पंडित. वो कौन होता है हमारे प्यार को पाप का नाम देने वाला. पापी तो वो खुद है. झूठा है एक नंबर का.”

“छोड़ो उसकी बाते भीमा, मैं खुद ही परेशान हूँ. वो बाते दिल में चुभ गयी कही.”

“क्या आप पछता रही हैं मुझसे शादी करके?” भीमा ने पूछा.

“ऐसा नही है भीमा…मेरा हृदय व्यथित है. मैं ठीक हो जाउन्गि. मुझे थोड़ा वक्त दो.”

“आप नहा लो ठंडे पानी से. मन को शांति मिलेगी.”

“वही सोच रही हूँ. तुम आराम करो. मैं ये थोड़ा सा काम करके आती हूँ. नहा भी लूँगी साथ ही.” रेणुका ने कहा.

…………………………………………………….

प्रेम अपनी दुल्हन को साथ लेकर जब घर पहुँचा तो केसव पंडित अपना सामान बाँध रहा था.

“पिता जी आप कहा जा रहे हैं?”

“मैं अब मंदिर में ही रहूँगा. वैसे भी मैं यहा रात को ही आता था. अब रात भी मंदिर में ही गुज़ार लूँगा…खुस रहो तुम दोनो यहा.”

साधना केसव पंडित के पाँव में पड़ गयी, “नही पिता जी. आज हम घर आए हैं और आप जा रहे हैं. ऐसा अनर्थ ना करें आप. हमारे वैवाहिक जीवन की शुरूवात हम आपके आशीर्वाद से करना चाहते हैं. आपकी छत्र- छाया हम पर बनाए रखे.

“उठो बेटा… ऐसा नही है कि मैं नाराज़ हो कर जा रहा हूँ. तुम्हारे कारण मेरा प्रेम घर लौट आया. मैं तो आभारी हूँ तुम्हारा. खुस रहो तुम दोनो यहा. तुम दोनो के बीच मेरा क्या काम. मैं मंदिर में ही ठीक हूँ. और मैं आता जाता रहूँगा.”

प्रेम भी केसव पंडित के कदमो में गिर जाता है और कहता है, “धन्यवाद पिता जी…आपने हमारे प्रेम को स्वीकार किया यही हमारे लिए बहुत है.”

“उठो तुम दोनो. सुख शांति से रहो यहा. मेरा आशीर्वाद साथ है तुम्हारे.” केशव पंडित ने कहा.

केशव पंडित चला जाता है और प्रेम दरवाजा बंद करके कुण्डी बंद कर लेता है. जैसे ही प्रेम मुड़ता है वो साधना को अपने चरनो में पाता है.

“अरे उठो क्या कर रही हो.” प्रेम ने कहा.

“मुझे इन चरनो में ही रहने दो प्रेम. बहुत शुकून मिलता है मुझे यहा.”

“चरनो में तो मुझे रहना होगा तुम्हारे और सीखना होगा प्रेम-साधना को. सिखाओगि मुझे?”

“तुम्हे मैं कुछ नही सीखा सकती. बल्कि मैने तो खुद तुमसे ही सीखा है सब. तुम्हारी आराधना की है मैने. बस इतना ही बता सकती हूँ प्रेम-साधना के बारे में. बाकी मुझे कुछ नही पता.”

“उठो तो सही. आज गले लगने का दिन है ना कि पैरो में पड़ने का…उठो.” प्रेम साधना को कंधो से पकड़ कर उठाता है और गले लगा लेता है. “तुम्हारे प्यार की गहराई शायद भगवान भी नही समझ सकते.”

प्रेम और साधना यू ही खड़े रहे एक दूसरे के गले मिल कर. खो गये थे उन लम्हो में और उन लम्हो की खुब्शुरती में.

…………………………………………………………

रेणुका नहा कर लौटी तो बहुत प्यारी लग रही थी. भीमा उसी बिस्तर पर पड़ा था जिसपे रोज रेणुका लेट-ती थी. आज उसका रेणुका से अलग सोने का इरादा नही था. भीमा तो देखता ही रह गया उसे. चेहरे पर गीले बॉल उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहे थे. भीमा भाग कर रेणुका को बाहों में भर लेना चाहता था पर रेणुका के व्यथित मन को देख कर रुक गया.

“आप बहुत सुंदर लग रही हो मेम्साब.”

“खबरदार मुझे मेम्साब कहा तो, तुम्हारा मेम्साब कहना भी मुझे दुखी कर रहा है.” रेणुका गुस्से में चील्लायि.

“माफ़ कर दीजिए. अब आगे से नही कहूँगा.” भीमा का चेहरा उतर गया.

रेणुका को जल्दी ही अहसास हो गया कि उसका चिल्लाना ग़लत था. वो भीमा भीमा के पास आई और उसके चरनो में बैठ गयी, “मुझे माफ़ कर दो भीमा. मुझे चिल्लाना नही चाहिए था. मैं बुरी पत्नी हूँ ना.”

“नही आप बुरी नही हैं. मेरी ज़ुबान पर बार बार मेम्साब ही आ जाता है. अब से आपको रेणुका ही कहूँगा.” भीमा ने कहा.

“तुम डाँट पड़ने पर ही सही काम करते हो ऐसा क्यों?”

“हवेली से आदत पड़ी हुई है आपकी डाँट की. याद है आपको एक बार मैं लेट हो गया था शक्कर लाने में तो बहुत डांटा था आपने मुझे. तब से डरता हूँ आपसे. इसलिए मेम्साब भी नही जाता ज़ुबान से.”

“तुम्हारी बीवी बन गयी हूँ अब. तुम मुझे डाँट कर रखो वरना सर चढ़ जाउन्गि तुम्हारे.” रेणुका ने भीमा के पाँव पर सर रख कर कहा.

“फिलहाल तो आप बिस्तर पर चढ़ जाओ, देखना चाहता हूँ कि मेरी बीवी है कैसी.”

“क्या देखना चाहते हो…अश्लील बाते मत करो मेरे साथ?”

भीमा के लिंग में उत्तेजना हो रही थी. वो बिल्कुल पत्थर की तरह हार्ड हो गया था उसके कपड़ो में. इस कारण भीमा थोड़ा अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था.

“अश्लील बाते??? मैं तो आपको यहा आने को बोल रहा हूँ. आप ही का तो बिस्तर है. यहा नही लेटेंगी क्या आज आप. मैं भी यही लेटुंगा आज तो.” अंजाने में ही भीमा का हाथ अपने पत्थर की तरह तने हुवे लिंग पर चला गया. वो उसे अपने पायजामे में थोड़ा अड्जस्ट करना चाहता था.

रेणुका ने भीमा के पायजामे में तने लिंग को देख लिया. “ये क्या तुम तो तैयार बैठे हो. मैं यहा नही लेटुंगी आज. ना…बाबा ना. मैं नही आउन्गि तुम्हारे पास.”

“कब से इंतेज़ार कर रहा हूँ आपका. इंतेज़ार करते करते ये हाल हो गया.” भीमा ने कहा.

रेणुका ने भीमा के पाँव पर सर रखा और बोली, “मेरे स्वामी आज मुझे माफ़ कर दीजिए. सच में मन व्यथित है. आज मैं उस तरह से समर्पित नही कर पाउन्गि मैं जैसे मैं चाहती हूँ. मुझे थोड़ा वक्त दो. अब हम पति पत्नी हैं. किसी बात की जल्दी नही है.”

“ठीक है. हम संभोग में लीन नही होंगे. लेकिन मैं आज आपके साथ ही सोउन्गा. अलग नही लेटुंगा अब.”

“अगर ये यू ही तना रहा तो मैं नही आउन्गि. पहले इसका कुछ करो.”

“आप मुझे यू ही तडपा रही हो है ना. मैं जाता हूँ अपने बिस्तर पर. मुझे नही लेटना यहा.” भीमा ने कहा और उठने लगा.

पर रेणुका ने उसे रोक लिया. “रूको मैं आती हूँ. पर मैं तडपा नही रही तुम्हे. मुझे क्या मिलेगा तुम्हे तडपा के.” रेणुका ने कहा और खड़ी हो गयी.

“हटो पीछे मुझे लेटने दो.” रेणुका ने कहा.

भीमा पीछे सरक गया और रेणुका भीमा के बाजू में लेट गयी.

“भीमा मैं चाहती हूँ कि हमारा पहला मिलन यादगार हो. व्यथित मन से मैं तुम्हे सहयोग नही दे पाउन्गि. इन परिस्थितियों में हमारा पहला संभोग कही सर दर्द ना बन जाए. इश्लीए तुम्हे इंतेज़ार करने को कह रही हूँ.”

“कर लूँगा इंतेज़ार जितना आप चाहें. पर आप अब मुझसे दूर नही रहेंगी. बहुत प्यार करता हूँ मैं आपको. मैं इंतेज़ार करूँगा आपका. जब आपका मन होगा तभी हम संभोग में लीन होंगे. रही बात मेरी उत्तेजना की. वो तो आपको पता ही है कि वो मेरे बस में नही है. आपके ख्याल से ही उत्तेजित हो रहा है आज तो ये. पर आप चिंता ना करें. ये आपको नुकसान नही पहुँचाएगा. ”

रेणुका घूम कर भीमा से लिपट गयी. “ओह भीमा…मैं बुरी बीवी साबित हो रही हूँ तुम्हारे लिए. तुम तड़प रहे हो और मैं बेकार की बातो में पड़ी हूँ.”

“शादी सिर्फ़ संभोग ही तो नही है. प्यार तो मिल ही रहा है आपका बेसुमार. और क्या चाहिए मुझे. मेरे नज़दीक रहें आप यू ही. आपसे दूर नही रह सकता अब. संभोग हो या ना हो. आप बस यू ही मेरे पास रहें हमेसा.”

कुछ अलग सा ही प्यार था भीमा और रेणुका का. अलग ही रंग में भीगा हुवा. पर उतना ही खूबसूरत था जितना की कोई भी प्यार हो सकता है.

दोस्तो इस तरह ये कहानी यही समाप्त होती है कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथतब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा

प्यार हो तो ऐसा पार्ट--20
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