Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:31 PM,
#38
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वो साइड में जाने लगी पर मैंने फिर से उसको अपने आगोश में ले लिया और एक बार फिर से हमारे लब एक दुसरे के संपर्क में आ गए रति दिवार के सहारे खड़ी थी मैं बेबाकी से उसके अधरों के शाहद को निचोड़े जा रहा था हालाँकि वो अपना विरोध जाता रही थी पर मैंने अपने मन की बात उस पर मोहर लगा दी थी उसकी हर सजा मंजूर थी मुझको पर ये गुस्ताखी तो करनी ही थी अब अचानक से मुझे लगा की रति की बाहे मुझ पर कसी हो जैसे उस धुल भरी आंधी में मैं पागलो की तरह उसके लबो का रसपान किये जा रहा था 


उसके हाथो की उंगलिया मेरे हाथो में फंस कर जोर आजमाइश कर रही थी उसके लबो को पीते पीते मैं अपने एक हाथ से उसकी गांड को दबाने लगा पर तभी रति मुझ से अलग हो गयी और अपनी साँसों को संभालते हुए बोली- मुझे लगता है यही रुकना बेहतर होगा कुछ चीज़े अपनी हदों में ही रहे तो बेहतर होता है 

मैं- रति मैं तुम्हारा हाथ थामना चाहता हूँ 

वो- छोड़ो इन बातो को 

मैं- मेरी सुनो तो सही 

वो- कहा ना छोड़ो इन बातो को आंधी रुकने लगी है अपना हूँलिया ठीक करलो समय भी बहुत हो गया है चलते है थोड़ी देर में 


फिर उसने कुछ कहा ना मैंने कुछ कहा वो पंद्रह बीस मिनट का समय बड़ी बेचैनी में बीता जब हम वहा से चले तो शाम के साढ़े ६ हो रहे थे आंधी की वजह से सब कुछ बहुत बुरा लग रहा था पर गनीमत थी की हवा से गर्मी कुछ कम हो गयी थी हम लोग मेन सडक पर आये और बस का इंतज़ार कर ने लगे ऊपर आसमान में बिना वजह के ही बादल अंगड़ाईयाँ लेने लगे 

लगता है बारिश होने वाली है बिन मोसम के 

रति- ये और मुसीबत आज ही आनी थी बस जल्दी से बस आ जाये 

पर आज वो भी मेहरबान ही था शायद बस तो नहीं आई पर हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी अब हम लोग कहा जाये रति होने लगी परेशान उसके माथे पर बल पड़ने लगे वो हड़बड़ी में कभी इधर देखे कभी उधर 

मैं- कितनी देर में आती है बस , बरसात तेज होने लगी है 

वो- बस का टाइम ऐसा ही है आये तो अभी आ जाये मैं आज से पहले शाम तक रुकी नहीं तो पता नहीं 
बारिश की मोटो बूंदे गिरने लगी थी 

मैं- आसपास कोई खड़े होने की जगह भी नहीं दिख रही 

वो- ह्म्म्म 

हमारे कपडे गीले होने लगे थे रति उस गीली साडी में बहुत खूबसूरत लगने लगी थी मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी 

वो पूछ बैठी- परेशानी के समय भी हस रहे हो 

मैं- बात ही ऐसी है 

वो लगभग झल्लाते हुए- क्या 

मैं- तुम मोहरा की रवीना टंडन से कम नहीं लग रही हो कसम से .
रति- यहाँ पर मैं भीग रही हूँ तुम्हे मसखरी सूझ रही है बारिश अब तेज होने लगी है मुझे दर है कही मेरा पाँव के ज़ख्म में कोई दिक्कत न हो जाये 

मैं- कुछ नहीं होगा और वैसे भी इस हालात में मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ एक काम कर सकते है या तो वापिस उसी छत्री में चलते है अब मंदिर तो दूर रह गया वर्ना वाही पर शरण ले लेते बताओ क्या कहती हो 
वो- नहीं उधर नहीं जा सकते छत्री सुनसान इलाके में है ऊपर से अब अँधेरा भी घिरने लगा है उधर जायेंगे तो बस या और कोई साधन कब आया कब गया पता भी नहीं चलेगा और हमे कोई रात थोड़ी ना काटनी है मंदिर जायेंगे तो भी वही दिक्कत है जाना तो हमे घर ही हैं ना 


मैं- तो फिर इंतज़ार करो और क्या कर सकते है कमबख्त इस रोड पर कोई दूकान भी नहीं है वर्ना उधर ही खड़े हो जाते , एक काम करो तुम मेरा बैग सर पर रख लो 



रति- उस से कौन सा मैं भीगने से बच जाउंगी , 


मैं- तो फिर चुपचाप इंतजार करो जो भी साधन आता दिखेगा उसी में चल पड़ेंगे 

बारिश धीरे धीरे से अपने सुरूर पर आती जा रही थी बादल कड कड़क करके गरज रहे थे रति के माथे की चिंता मैं साफ़ पढ़ रहा था फ़िक्र तो मुझे भी थी पर अब किया क्या जाये बुरे फंसे आज तो अँधेरा भी होने लगा था 

मैं- डर लग रहा है क्या 

वो- नहीं तो , बस थोड़ी सी घबराहट हो रही है , अँधेरा भी घिर आया है अगर टाइम से घर पहूँच जाते तो ऊपर से इस कमबख्त मोसम को भी आज ही बिगड़ना था 

मैं- मोसम की गुज्जारिश है की हम दोनों थोडा टाइम साथ जिए 

रति- कही तुमने ही तो को पनौती ना लगा दी 

मैं- रति , वो थोडा आगे एक पेड़ सा है उसके नीचे खड़े होते है कम से कम बारिश से सीधा सीधा तो ना भींगेंगे 

उसको भी ख्याल जंच गया और हम पेड़ के नीचे आ गए पर वो घना पेड़ नहीं था तो भीगना तो इधर भी पड़ ही रहा था पानी की मस्त बूंदे उसके पेट और नाभि से होते हुए नीचे को लुढ़क रही थी काश वो पिस्ता की तरह होती तो अभी इसी वक़्त इस पेड़ के नीचे ही उसकी चुदाई शुरू हो चुकी होती पर यहाँ पर थोडा थोडा करके आगे बढ़ना था मुझे दिल तो कर रहा था की दो चार चुम्मिया तो यही पर ले डालू पर खुले रस्ते पर क्यों रिस्क लिया जाए 


तभी वो बोली- तुम जरा थोडा दूर जाओ 

मैं- क्यों इधर ही सही है फुहार ही पड़ रही है इधर 

वो- जाओ ना थोड़ी देर 

मैं- बात क्या है वो बताओ 

वो शर्माते हुए, मुझे सुसु करना है 

मैं- ओह, एक काम करो पेड़ की दूसरी साइड में करलो 

वो- उधर काफी झंखाड़ है कही कोई जानवर सांप, बिच्छु न निकल आये

मैं- तो यही पर करलो मैं नहीं जाने वाला कही पे भी 

वो- प्लीज मान भी जाओ ना बहुत तेज लगी है 

मैं- ठीक है बाबा, मैं उधर मुह करके खड़ा होता हूँ, जल्दी से करलो 

वो –हूँ 

मैंने अपना मुह दूसरी तरफ कर लिया और रति मूतने बैठ गयी दिल तो कर रहा था की उस को देखू पर अँधेरा भी था तो कोई फायदा नहीं था करीब दो मिनट बाद मैंने पुछा- हो गया 

वो- हां 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:31 PM

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