Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:46 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
तबी डॉक्टर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला- आईएम सॉरी हम लोग एक को भी नहीं बचा सके

उसने एक चादर हटाई और मैं गिर पड़ा वो लाश मम्मी की थीमैं जोर जोर से रोने लगा किसी ने चुप करवाने की कोशिश नहीं की अब दिल का दर्द तो आंसुओ के रस्ते ही निकलता है ना


मम्मी ,मम्मी बोलो न कुछ देखो मैं आ गया हु,मम्मी न्नाराज़ हो क्या बोलते बोलते मेरा गाला रुंध गया पर वो कैसे बोलती उनका चेहरा हमेशा की तरह शांत था बस वो जनि पहचानी मुस्कान गायब हो गयी थी दिल किया की मैं भी माँ बाप के साथ मर जाऊ पास में ही ताऊ ताई की लाशे भी रखी थी हस्ता खेलता मेरा परिवार बर्बाद हो गया था 

आज मैं अनाथ हो गया था ,अब दिल के हालात को क्या ब्याज करू मैं, ज़ुन्दगी ताश के पत्तो की तरह बिखर गयी थी मेरी जिस परिवार के ऊपर मैं कूदता था वो आज मांस के निजीव लोथड़ों के रूप में बिखरा पड़ा था पर अभी एक बिजली और गिरनी थी मुझ पर 


और जो वो बिजली गिरी तो मैं टूट गया बिमला के दोनों बच्चों की लाश मुझ से ना देखि गयी,उनको जिनको कल तक मैं अपने कंधो पे बैठकर घुमाता था आज उनकी निष्प्राण देह को जो कलेजे से लगाया तो कलेजा फट गया मेरा हे प्रभु ये कैसी सजा दी तूने ओह मेरे रब्बा तुझे जरा भी दया नहीं आई इन बच्चों पर क्रूरता करते हहुए मुझको मार देता 


आज दुनिया लूट गयी थी मेरी राहुल मुझ को सहारा देके वह से बाहर लाया पर ये एक ऐसा सच था जिस को मैं झुठला भी नहीं सकता था, क्या से क्या हो गया था हर ख़ुशी आज रूठ गयी थी बहुत देर तक कागज़ी कार्यवाही चालू रही अब एक्सीडेंट था तो फिर पुलीस कार्यआवहि के बाद सारि लाशे मेरे सुपुर्द कर दी गयी,जिन माँ बाप के साथ कल तक मैं खूब हँसता खेलता था आज उनकी ही लाशो को लेकर चला मैं अब वो माँ का दुलार कभी ना मिलने वाला था ना वो बाप की झिड़की।

अपने माँ बाप ही नहीं बल्कि पुरे परिवार की लाशो को ढोना किसी के लिये भी आसान नहीं होता जबकि मुझ पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा था पर शायद ये ही अग्निपथ होता होगा अपने अंतरमन से जूझते हुए जो ये मान ने को तैयार नहीं था की सब खत्म हो गया है , हम लोग अंतिम संस्कार के लिए चल पड़े 

पूरा ही गाँव जैसे टूट पड़ा था एक साथ सात लाशे जो थी जिन परिवार वालो की ऊँगली पकड कर मैंने चलना सीखा था आज उनको राख होते हुए देख रहा था मैं दिल का गुबार आंसू बन कर बह रहा था 

जब तक उन चिताओ में लपटे उठती रही मैं वहीँ बैठा रहा फिर मंजू मेरे पास आई डबडबाई आँखों से मैंने उसको देखा उसने मेरा हाथ पकड़ा और घर ले आई ,पर अब घर कहा था बस चार दीवारे ही रह गयी थी एक कोने में बिमला बेहोश पड़ी थी कुछ महिलाये उसको समझा रही थी कुछ लोग चाचा के पास बैठे थे

मंजू मेरे लिए पानी का गिलास लायी पर वो भी मेरे सीने में धधकती आग को शांत नहीं कर पाया ,जी रोने को कर रहा था पर आंसू सूख गए थे ,पर ये बहुत भारी समय था साँझ रात में ढल गयी पता नहीं कितने बज रहे थे मैं अपने कमरे में बैठा था तनहा अकेला

की पिस्ता मेरे पास आकर बैठ गयी मैंने अपना सर उसकी गोद में रखा और रोने लगा वो कुछ नहीं बस चुपचाप मेरे बालो में हाथ फिराती रही बहुत सुकून मिला उन पलो में मुझे ले देकर अब वो ही तो बची थी जिसे अपना कह सकता था जाने कब उसके आगोश में नींद आ गयी 

जब मैं जागा तो वो वहा नहीं थी अब सामना हुआ वास्तविकता से ,चाहे दिल माने या ना माने पर यही हकीकत थी जिसको अब हर रोज ही सामना करना था,धीरे धीरे रिश्तेदार आने शुरू हो गए थे घर में रोना पीटना मचा हुआ था मैं घर से बाहर आकर उस कच्चे छप्पर की तरफ जाकर बैठ गया

थोड़ी डेर बाद पिस्ता मुझे ढूंढते हुए आ गयी कुछ देर बाद वो चुप्पी तोड़ते हुए बोली- कब तक ऐसे रहेगा,कल से अन्न का दाना न लिया ,अब जो हुआ उसे कोई वापिस नहीं कर सकता पर तुझे तो जीना होगा ना मैं रोटी लाती हु खा ले

मैं-भूख नहीं है 

वो-भूख तो नहीं है पर फिर भी कुछ निवाले खा ले मेरा मान रखने को ही खा ले 

वो एक थाली ले आई और अपने हाथो से खिलाने लगी पर रोटी गले से निचे उतरी ही नहीं जैसे तैसे पानी के साहरे कुछ निवाले गटके तभी मेरा ध्यान पिस्ता के हाथो पर लगी मेहँदी पर गयी तो याद आया कल ब्याह है उसका

तो मैं बोला-तुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था तू बान बैठी हुई कल ब्याह है तेरा 

वो-आज फेरे होते तो भी आती,ब्याह का क्या अब दिन आ गया तो ब्याह सरक तो नहीं सकता पर घरवालो ने ससुराल खबर करदी है तो बस कुछ लोग आकर फेरे पड़वा लेंगे

मैं-ना री, तू ऐसा मत कर ब्याह बस एक बार होता है तू गाजे बाजे से ब्याह करवा

वो- तेरे दुःख पर अपनी खुशिया सजाउ अभी इतनी बेगैरत नहीं हुई हु मैं 

मैं-पर?

वो-पर क्या मेरे लिए तू पहले है 

पिस्ता को मैं कभी समझ नहीं पाया था कभी वो कुछ लगती थी कभी कुछ पर बस वो जानती थी या मैं जानता था की हमारा रिश्ता किस तरह का था जैसे वो मेरे दर्द का मरहम थी उसकी भी मज़बूरी थी की वो ज्यादा देर मेरे पास रुक नहीं सकती थी

मेरे ननिहाल से लोग आ गये थे मुझे संभालने को पर इस दुःख को तो मुझे ही झेलना था। वो बारह दिन तो रिश्तेदारो के सहारे निकल गए ,पर अब अकेलापन काट ता था मुझे घरवालो की कुछ पालिसी थी तो उसका पैसा मिल गया था मुझे पर ये पैसा उनकी कमी पूरी नहीं कर सकता था 

चाची के भाई ने मुझे कुछ डॉक्यूमेंट दिए जो ज़मीन पिताजी ने चाची को दी थी वो मेरे नाम कर गयी थी पर ये सब मेरे किस काम का था मेरे मन में बस एक सवाल था की बिमला ने ऐन टाइम पे जाने को क्यों मना किया पर दूसरी तरफ पुलिस रिपोर्ट थी जिसमे साफ़ लिखा था की गाडी कण्ट्रोल खो गयी थी जिस वजह से एक्सीडेंट हुआ अब गाडी बुरी तहस नहस हो गयी थी तो जांच ज्यादा नहीं हो सकती थी


इधर मेरे नाना मेरे लिए बहुत चिंतित थे तो उन्होंने ये फैसला लिया की अब मैं ननिहाल में ही रहूँगा हालाँकि मैं ऐसा नहीं चाहता था पर नाना मामाँ के आगे चली नहीं मेरी पर जाने से पहले कुछ काम करने थे मैंने अपनी सारी जमीं की जिम्मेदारी गीता को दी पिस्ता के बाद वो ही थी अब मेरे पास 


तो करीब दो महीने बाद मैं अपने ननिहाल आ गया शुरू शुरू में मेरा मन नहीं लगता था पर फिर आदत होने लगी थी सबका व्यवहार मेरे प्रति ठीक था मैं रोज सुबह पढ़ने निकल जाता और साँझ ढले आता बस यही दिनचर्या बन गयी थी वो लोग अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे पर मैं चाह कर भी उनसे घुलमिल नहीं पा रहा था 

थोडा टाइम और गुजर गया अब मुझे भी उनकी आदत होने लगी थी पर पुराणी याद अब भी हावी थी मुझ पर जबकि वर्तमान मुझे कह रहा था की घुटने मत टेक मंजिले और भी है इधर मेरी एक दोस्त बन गयी थी इंदु जो मेरी मम्मी के चाचा की लड़की थी,मेरी मौसी लगती थी पर हमउम्र थी तो अक्सर बाते होने लगी
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