Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:49 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
अभी तो हम शुरू ही हुए थे अंजाम का किसने सोचा था पिस्ता उठकर बाथरूम में चली गयी मैं भी उसके पीछे चला गया उसने दरवाजा खुल्ला ही रखा था, मैं दरवाजे के पास खड़ा होके उसके नशीले बदन को देखने लगा जो की उस शावर के निचे भीग रहा था 

उसका वो शबनमी बदन जिसपर वो पानी की ठंडी ठंडी बूंदे उसके हुस्न को और महका रहे थे उसने इशारे से मुझे अपनी और बुलाया और मैं भी उसके साथ हो लिया पानी में आग लगने जा रही थी मैंने पास रखी साबुन ली और पिस्ता के बदन पर मलनी शुरू की

खुश्बुदार झाग उसकी सुंदरता में और चाँद लगाने लगा मैंने जब उसकी चूचियो की घुंडी को उमेठा तो वो तड़प उठी दर्द से पर उस दर्द का भी एक अलग सा मजा था अब मैंने उसे पलटा और उसकी पीठ और कुल्हो पर साबुन लगाने लगा वो और चिकनी होने लगी

बस उसके साथ का ही जादू था लण्ड फिर से उत्तेजना के शिखर पर था मैंने वैसे ही पिस्ता को अपने घुटनो पे झुकाया उसकी गांड पीछे की तरफ उभर आई मैंने अपने लण्ड को सही जगह पे लगाया और एक धक्का सा मारा तो पिस्ता आगे को सर्की पर मैंने उसकी कमर में हाथ डाल के उसको वापिस कर लिया 


एक दो झटको की और बात और फिर पूरा लण्ड पिस्ता की मक्खन सी चूत में जा चूका था 

पिस्ता- ओह आराम से यार 

मैं- अब कहाँ आराम 

वो-मार ही डालने का इरादा है क्या इतने दिनों की भड़ास एक बार में ही निकालोगे क्या 

मैं-तू चीज़ ही ऐसी है जब भी नहीं रुका जाता था आज भी नहीं रुक पा रहा हु


उसकी कमर को वापिस पीछे को खींचा उसके चूतड़ मेरी गोलियों से टकराये पिस्ता थोडा सा और झुक गयी उसकी चूत ने लण्ड को अपने अंदर कैद कर लिया था और जब उसने अपनी जांघो को आपस में चिपका लिया तो कसम से मजा ही आ गया मैंने भी अपने बदन को थोडा सा झुकाया और फिर पेलम पेल शुरू की 


बदन झटके खाने लगे कभी मैं आहिस्ता से धक्के मारता बल्कि ये कहना उचित होगा की रुक के बस उसके बदन को सहलाता जिस से वो झुंझला जाती थी और फिर कुछ देर मैं तेज तेज धक्के लगाता पिस्ता की चूत से रिसती चिकनाई की वजह से अब मेरी गोलिया भी भीगने लगी थी 

अब पिस्ता को मैंने अपनी और कर लिया और उसने तुरन्त अपनी एक टांग मेरी कमर पर लपेट दी और मुझे अपनी और खींचा मैंने फीर से लण्ड को निसाने पे लिया और पिस्ता की झूलती गोलाईयो को देखते हुए फिर से चुदाई शुरू कर दी वो मेरी गर्दन पे किस्स करने लगी

मैं उसके कुल्हो को मसलते हुए लण्ड अंदर बाहर कर रहा था पिस्ता अब मेरे होंठो तक आ चुकी थी और अपने दांतो से वहां पर काटने की कोशिश कर रही थी ऊपर से शावर का पड़ता पानी चोदने के उत्साह को दुगना कर रहा था हमारे होंठ आहिस्ता से एक दूसरे से गुफ़्तुगू कर रहे थे 


पिस्ता की चूत मेरे लण्ड की मोटाई पे एक दम कसी हुई थी सबसे मस्त तो उसकी चूत का छल्ला था जो घर्षण के साथ बाहर को खींच सा जाता था उस से चुदाई का एक अलग मजा मिलता था पर जल्दी ही उसके पाँव दुखने लगे थे तो उसने एक तौलिये से अपने बदन को साफ़ किया और बाथरूम से बाहर आ गयी 


बड़ी इठलाते हुए पिस्ता सोफे पे घोड़ी बन गयी ऐसा मस्त पिछवाड़ा बहुत कम औरतो का होता है पिस्ता ने अपने मुह में उंगलिया डाली और ढेर सारा थूक अपनी चूत पे लगाया एक दम लबालब कर लिया उसको अब मैं उसके पीछे आया और अपने लण्ड को हलके हलके चूत के द्वार पे रगड़ने लगा

पर बहुत चिकनी होने के कारन मेरा सुपाड़ा चूत में जाने लगा और रोकने का कोई फायदा भी तो नहीं था और रुकना भी नहीं चाहिए था एक बार पूरा अंदर जाते ही पिस्ता ने मुझे रोक दिया और खुद अपने चूतड़ो को आगे पीछे करने लगी वक़्त के साथ छोरी चुदाई के खेल में और पारंगत हो गयी थी

हम दोनों मस्ती में चूर हो चुके थे पर उत्तेजना बाकी थी गुजरते समय के साथ हमारे धक्के भी तेज तेज होते जा रहे थे पिस्ता के चूतड़ जैसे भूकम्प आ गया था उसकी मुठिया सोफे पर कसती जा रही थी दो मिनट पांच मिनट और फिर पिस्ता निढाल होगयी कुछ पल तक सब रुक सा गया था पिस्ता का बदन झटके खाता रहा और फिर वो पस्त हो गयी 


पुरे शारीर से पसीना टपक रहा था वो सोफे पर लेट ही गयी पर मेरा लण्ड हवा में झूल रहा था तो मैंने उसकी टांगो को फैलाया और फिर से लण्ड अंदर घुसाने लगा तो वो बोली-नहीं अब नहीं ले पाऊँगी 

मैं-क्या यार,अभी बीच राह में लटकाये गी क्या

वो- यार मास्टरजी के साथ रहके बस एक बार ही चुदने की आदत पड गयी है थोड़े दिन तेरे साथ रहूंगी तो पहले जैसी हो जाउंगी 


मैं- हां पर अभी क्या 

तो पिस्ता ने मेरे लण्ड को मुह में लिया और तेजी से चूसने लगी साथ ही अपने हाथो से मेरी गोलियों को दबाने लगी तो मजा आने लगा और थोड़ी देर बाद मैं भी झड़ गया कुछ देर बाद हमने अपने हुलिये को ठीक किया और घर की और चल पड़े मैंने गाड़ी पार्क की पिस्ता अपने कमरे में चली गयी 


मैं रसोई में गया तो बड़ी मालकिन बोली ये जूस माधुरी मैडम को दे आमाधुरी सेठ की छोटी बेटी थी मैं उसके कमरे में गया तो वो अपने बेड पे बैठी किसी सोच विचार में डूबी हुई थी चेहरे पे कुछ उदासी थी मैंने दो बार पुकारा पर जैसे उसको होश ही नहीं था


माधुरी सेठ की छोटी बेटी थी मैं उसके कमरे में गया तो वो अपने बेड पे बैठी किसी सोच विचार में डूबी हुई थी चेहरे पे कुछ उदासी थी मैंने दो बार पुकारा पर जैसे उसको होश ही नहीं था मैंने फिर से उसका नाम पुकारा तो उसकी तन्द्रा टूटी 


मैं-जूस, मेमसाब 

वो-वापिस ले जाओ मुझे नहीं पीना 

मैं- पी लीजिये मैडम ,स्पेशल आपके लिए लाया हु 

वो-दिलवाले, तुम अभी जाओ मैं सच में परेशान हु 

मैं- मेमसाब आपके चेहरे पर ये उदासी अच्छी नहीं लगती आप तो बस मुस्कुराते रहा करो 

वो- ये मुस्कान ही तो जान का जंजाल बन गयी है 

मैं- कोई समस्या है तो आप मुझे बता सकती हो वैसे भी शेयर करने से मन का बोझ भी हल्का हो जाया करता है और वैसे भी आपको तो कोई गम छु भी नहीं सकता 

वो-बाते बहुत अच्छी करते हो तुम 

मैं-तो चलो फिर जूस पीलो जल्दी से 

माधुरी ने कुछ सिप लिए जूस के और गिलास रख दिया और बोली-दिलवाले, मेरी एक सहेली है उसको ना कुछ लोग परेशान करते है तो उसी का टेंशन है 

मैं- तो आपकी सहेली अपने घरवालो को बताती क्यों नहीं पुलिस में शिकायत करनी चाहिए 

वो-नहीं जा सकती और घरवालो को भी नहीं बता सकती क्योंकि घर में सब उसको ही दोषी समझेंगे और वो गुंडे बहुत पावरफुल है और पुलिस भी उनको कुछ नहीं बोलती 

मैं- आप अपनी सहेली को मुझसे मिलने के लिए कहो मैं देखता हु की क्या हो सकता है 

वो-तुम क्या कर लोगे 

मैं-शायद कुछ रास्ता निकल आये 

वो- वो तुमसे नहीं मिल पायेगी तुम जो भी उपाय है मुझे बता दो मैं उसको बोल दूंगी 

मैं-मेमसाब आपकी सहेली नहीं मिल पायेगी क्योंकि ये समस्या उसकी नहीं आपकी है 

माधुरी के चेहरे का रंग उड़ गया आँखों से आंसू छलक आये तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा-आप बिलकुल टेंशन मत लो कल से मैं आपको कॉलेज छोड़ने और लेने जाऊंगा मैं देखता हु कौन हमारी मेमसाब को परेशान करता है 

मैंने उसको आश्वस्त किया और फिर होटल चला गया तो वहां बस्ती के कुछ लड़के मेरा इंतज़ार कर रहे थे 

मैं-हाँ भाई लोग इधर कैसे 

वो- भाई हमे आपकी बात अच्छे से समझ आ गयी है अपना घर बचाने के लिए हमे खुद संघर्ष करना होगा , आप हमारा साथ दो 

मैं- तो ठीक है फिर , बस्ती के कागज़ रजिस्ट्रार के पास है रात को मार दो धावा और चुरा लाओ उन्हें

मैंने उनको समझाया की ये काम कैसे करना है उनके जाने के बाद मैंने माधुरी पे फोकस किया और सोचने लगा बड़ी प्यारी सी लड़की थी सिम्पल सी पूजा से बिलकुल उलट जहाँ पूजा एक बददिमाग थी वाही माधुरी बहुत ही संस्कारी लड़की थी उसकी समस्या सुनके मैं सच में परेशान हो गया था 


खैर ये तो अब कॉलेज जाकर ही देखना था की कौन लोग थे जो उस मासूम को तंग कर रहे थे ,इनसब के बीच मुझे नीनू की बहुत याद आ रही थी पता नही वो कैसी होंगी कहाँ होगी क्या मैं याद होऊंगा उसको या वक़्त की रेत में मेरी याद कहीं खो गयी होगी

एक सैलाब आया जिसने मेरा सबकुछ छीन लिया था दिल में दरद सा होने लगा था ये यादे भी बड़ी अजीब होती है जरुरी भी है और तकलीफ भी देती है ,तो फिर अपना ध्यान काम पे लगाया फिर रात को बस्ती चला गया पता नहीं क्यों इनलोगो से लगाव सा हो गया था 

अगले दिन मैं सुबह ही सेठ के घर पहुँच गया था पिस्ता ने मुझे रसोई में ही पकड़ लिया और चूमा चाटी करने लगी पर अभी टाइम ठीक नहीं था फिर पूजा मैडम को चाय देने गया तो वो बेसुध होकर सोई पड़ी थी उसको जगाया तो वो झल्ला पड़ी मुझ पर


दरअसल हुआ की वो चादर के निचे बस एक पेंटी में ही थी बाकी नंगी पड़ी थी मेरे जगाने से वो हड़बड़ा गयी थी और चादर गयी हट और मैंने उसके मदमस्त कर देने वाले हुस्न को देख लिया था तो सुबह सुबह ही थोड़ी टेंशन हो गयी थी 
मैंने मन में सोचा तो था की इस घर से जाने से पहले पूजा का घमण्ड चूर जरूर करूँगा 

पर आज मुझे माधुरी के साथ जाना था माधुरी ने अपनी स्कूटी ली और हम लोग कॉलेज की तरफ चल पड़े वो थोडा घबरा रही थी पर उस दिन उसे किसी ने तंग नहीं किया इधर रजिस्ट्रार के घर से बस्ति के पेपर चोरी हो गए थे मैं बस्ती में अपने कमरे पे था बस्ती वालो के साथ बस ऐसे ही बाते हो रही थी 


की सर्किल ऑफिसर की गाडी आके रुके आते ही उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया और बोला-कुत्ते तुझे कहा था ना औकात में रहना पर तू नहीं माना चुपचाप वो पेपर्स मेरे हवाले कर दे वरना तेरा वो हाल होगा की तेरी पुश्ते कांप उठेंगी


मैं- क्या सबूत है की पेपर्स मेरे पास है 

वो- साले हमसे मटरगश्ती डालो रे इसको गाडी में आज इसको इसकी औकात पता चल जायेगी बाबा से पंगा लेने चला है 


बस्ती के लोग पुलिस की गाडी के आगे अड़ गए पर मैंने कहा- कोई नहीं dsp साब से मुलाकात करके आता हु थाणे में लाते ही उसने मुझे लॉकअप में पटका और दिखाने लगा पुलिसिया रौब बस एक ही सवाल पेपर्स कहाँ है और मेरे पास कोई जवाब नहीं था 


दो रातो तक उसने अपना ज़ोर दिखाया मुझ पर दो रातो तक उसने अपना ज़ोर दिखाया मुझ पर जिस्म का जैसे हर हिस्सा ही तोड़ सा दिया था पर हम भी दिलवाले ज़रा दूसरी किस्म के थे , अब वो क्या दम देखता हमारा और फिर तीसरे दिन जैसे दुर्गा ही आ धमकी थाणे में शेरनी सी दहाड़ उसकी आते ही उसने dsp को आड़े हाथ लिया और उलझ गयी उस से 


मैंने अपने माथे पे हाथ मारा ये भी ना इसको क्या जरूरत थी कोई इसको देख के क्या सोचेगा पर ये भी जानता था की अब वो मेरी ढाल बन जायेगी और वैसे भी उसका रोद्र रूप आज इस थाने में कहर ढाने वाला था
मैंने अपने माथे पे हाथ मारा ये भी ना इसको क्या जरूरत थी कोई इसको देख के क्या सोचेगा पर ये भी जानता था की अब वो मेरी ढाल बन जायेगी और वैसे भी उसका रोद्र रूप आज इस थाने में कहर ढाने वाला था 

वो- तेरी हिम्मत कैसे हुई इसको बिना किसी बात के अरेस्ट करने की 

Dsp- मेरी मर्ज़ी जिसे अरेस्ट करू तू कौन होती है 


वो- तू ये सब छोड़ और दिलवाले को अभी के अभी रिहा कर वर्ना तेरे लिए ठीक नहीं होगा 

Dsp- बहुत बोल रही है तू 

वो-शुक्र कर सिर्फ बोल रही हु जी तो कर रहा है अभी तेरे हाथ पाँव तोड़ दू 

Dsp- साली इतना तड़प रही है क्या लगता है ये तेरा चल तेरी तड़प और बढ़ा देते है मारो रे साले को 

वो-खबरदार जो किसी ने भी दिलवाले को हाथ भी लगाया ,सुन dsp ये ले जमानत के कागज़ और अभी 2 मिनट में रिहा कर इसको 

Dsp- हँसते हुए जमानत के कागज़ात की ना बत्ती बनालो मोहतर्मा इधर के जज भी हम है और वकील भी हम वैसे तू बड़ी कटीली है एक ऑफर है तेरे लिए एक रात मेरे पास आजा कसम इसको रिहा कर दूंगा 

ये कहकर उसने बेशर्मी से हँसते हुए पिस्ता की चूची को मसल दिया पिस्ता तड़प उठी और उसी पल मेरे सब्र का बाँध टूट गया आँखों में जैसे लहू उबलने लगा एक हुंकार भरी मैंने और पास खड़े सिपाही को उठा के पटका वो सीधा दरवाजे से टकराया और भदभदा के दरवाजा खुल गया 

गुस्से से मेरे नथुने फूलने लगे थे पिस्ता के साथ बदसलूकी करके अपनी मौत को दावत दे डाली थी उसने अपनी आस्टीन को सम्हाते हुए मैं किसी तूफ़ान की तरह लॉकअप से बाहर आया आज इस थाने को ही आग लगा देनी थी दो चार पुलिस वाले दौड़े मेरी तरफ मैंने पास पड़ी कुर्सी उठाई और दे मारने लगा सालो के सर पे 


किसी का सर फटा तो किसी की कोहनी टूटी दर्द तो मेरे ज़ख्मो में भी था पर उसने हाथ कैसे लगाया पिस्ता को वो गुमान थी मेरा आन थी मेरी आज उस हाथ को ही उखाड़ देना था जो पिस्ता की तरफ बढ़ा था dsp की तो जैसे सिट्टी पिट्टी गुम होने लगी थी 

राह में आते हर पुलिसवाले का वास्ता एक तूफ़ान से हो रहा था मैं ये नहीं देख रहा था की किसको कहाँ पड रही है कोई टेबल पर गिर रहा था कोई फर्श पर मुझे बेकाबू देख कर उसने अपनी पिस्टल से फायर किया मुझ पर पर अब ऐसी गोली नहीं बनी थी जो इस दिलवाले को अब छु सके

इस से पहले की वो दूसरा फायर करता पिस्ता ने पास रखी कुर्सी उठा के उसके हाथ पे दे मारी गन उसके और अपनी लात उसकी टांगो के बीच मारी इस से मुझे मौका मिल गया और मैं बाकि लोगो पे पिल पड़ा अगली कुछ मिनट वहां के लोगो पे बहुत भारी पड़ी 

इधर मैं अब घबराए हुए dsp की और बढ़ रहा था पिस्ता थाने से बाहर चली गयी जो की सही भी था मैंने एक लात मारी उसके पेट में वो बकरे की तरह मिमियायया तभी मुझे पास में पड़ा डंडा दिखा तो मैंने वो उठाया और आदरणीय dsp साहिब को लगा कूटने हाय हाय मची चीख़ पुकार 

जब तक dsp के बदन का जर्रा जर्रा दर्द से ना भर गया उसको सुता मैंने बार बार वो माफ़ी मांगे पर आज उसे माफ़ी नहीं मिलनी थी अब मैंने उसकी पैंट उतारी फिर कच्छे को उतार के नंगा किया साले को 


मैं-हाँ तो तू पिस्ता को ले जायेगा एक रात के लिए उठ साले ले जाके दिखा 

वो- माफ़ करदो गलती हो गयी मेरे बाप गलती हो गयी 


मैं ना ना, तू हाथ लगा उसको फिर से दिखा अपनी मर्दानगी 


मैंने एक लात खींच के मारी उसकी गोटियो पर तो उसका सांस अटक गया पर इतनी आसानी से उसका पीछा नही छूटने वाला था ,मुझे तलाश थी किसी चीज़ की तो मैं उसको ढूँढने लगा और फिर मुझे एक कैंची मिल गयी मैंने उस से उसके लण्ड की थोड़ी सी खाल को काटा वो दर्द से चीखने लगा पोलिस ठाणे में आज हैवानियत नाच रही थी 


मैं उसकी तड़पन का आनंद लेते हुए धीरे धीरे उसकी खाल काट रहा था पर वो कैंची भी काम्याब नहीं थी तभी पिस्ता फिर से अंदर आई दोनों हाथो में दो पीपीया थी 

वो- आग लगा दे इसको जलने दे आज कर दो मुक्त आज धरती को इसके बोझ से 

उसने एक पीपी मुझे दी और दूसरी थाने में जगह जगह पेट्रोल छिड़कने लगी dsp को समझ आ गया था की उसके साथ आगे क्या होने वाला था पर वो कुछ बोल नहीं पा 11 का हाथ थामे बाहर आया , भीड़ जमा थी चारो और जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए लोग हटते गए राशता मिलता गया 


पिस्ता ने गाडी स्टार्ट की और हम चल पड़े वहाँ से दूर,सबसे पहले हम लोग एक डॉक्टर के पास गए कुछ ज़ख्मो की मरहम पट्टी करवाई , मैं जानता था की अब आग लगेगी इस शहर में गाज़ी से पंगा तो था ही ऊपर से अब पुलिस भी खिलाफ अब डबल दुश्मनी निभानी थी ज़िन्दगी ने कहा से कहा ला पटका था पर चलो जो है सही है 


अब शहर के बाहुबली DSP को दिन दहाड़े क़त्ल कर दिया गया था फिर मैंने पिस्ता को बहुत देर तक समझाया की चाहे कुछ भी हो जाए वो ऐसे खुलके मेरी सपोर्ट में नहीं आएगी क्योंकि मैं हर्गिज़ नही चाहता था की उसको कोई नुक्सान पहुंचे ले देके अब एक वो ही तो अपनी बची थी 



इस घटना से पूरा शहर हिल गया था जिधर देखो बस इसी बात को लेकर हवा बाज़ी हो रही थी पता सबको था पर जुबान कोई नहीं खोल रहा था इधर पुलिस मुझे पकड़ने के लिए ज़ोर लगा रही थी पर बस्ती ही क्या आधा शहर मेरे सपोर्ट में आ गया था मेरे सेठ को भी कुछ कुछ अंदेशा तो हो गया था पर उसने कुछ कहा नहीं मुझे 


बल्कि सेठ ने कहा की जितना हो सके मैं उसके घर ही रहु, उस शाम मास्टरजी के किसी दोस्त के घर पार्टी थी तो वो लोग वहां पे गए हुए थे मैंने सोचा की करने को कुछ नहीं है तो टीवी ही देख लेता हु मैं ऐसे ही चैनल चेंज करने लगा एक चैनल पर इंग्लिश फ़िल्म आ रही थी मैं वो देखने लगा बीच बीच में ऐसे ही कुछ उतेजित करने वाले दृश्य आ रहे थे 



तो मैंने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और बस ऐसे ही उसपे अपना हाथ फेरने लगा उन मादक दृश्यों को देख कर मेरा मन काबू से बाहर होने लगा काश पिस्ता इस समय होती तो चोद लेता ऐसे ही सोचते हुए मैं मुठमार रहा था की किसी की आवाज आई-शाबाश,बहुत अच्छे
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:49 PM

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