Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:55 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
ने फावड़ा लिया और अब जमीन को खोदने लगा मुझ पर जैसे जूनून सा छा गया था करीब तीन फीट खोद चुके थे पर कुछ नहीं नीनू घर चलने के लिए बोल रही थी मैंने कहा बस थोडा सा और मैं खोदे जा रहा था पर अब मेरा भी होंसला टूटने लगा था और फिर करीब 5 फीट के बाद मेरी कस्सी किसी चीज़ से टकराई मैंने नीनू को बैटरी इधर दिखाने को कहा और जैसे ही रौशनी गड्ढे में पड़ी मेरी रूह खुश्क हो गयी गला सूख गया भय के मारे बदन में कम्पन सा होने लगा 


दरअसल वहा एक कंकाल था जिस से मेरी कस्सी जा टकराई थी नीनू तो जैसे चीख ही पड़ी थी मैं ऊपर आया और जमीन पर ही बैठ गया नेनू मेरे पास खड़ी हो गयी मैंने बैग से पानी की बोतल निकाली और कुछ ही घूँट में उसको खाली कर दिया 


नीनू-ये कंकाल यहाँ 


मैं- नीनू , ये कंकाल कंवर का है ये कहते हुए मैं रो पडा 


कारण साफ़ था कंवर घर से तो चला था पर दुबई नहीं पंहुचा था उसका पासपोर्ट और और सामान भी हमे मिल चूका था मतलब साफ था की किसी ने उसे मार कर यहाँ गाड दिया था 


नीनू- देखो, अभी अनुमान मत लगाओ अब ये बरसो से खाली जमीन पड़ी है कोई भी किसी को मारके गाड सकता है और देखो इसे जमीन के इतनी अन्दर दफनाया गया है कातिल चाहता तो बस दफना के चला जाता किसी को कुछ पता नहीं चलता उसने यहाँ ऊपर चबूतरा क्यों बनवाया 


मैं – शायद सुराग 


वो- किसलिए छोड़ेगा सुराग, की आओ मैंने यहाँ लाश दबाई है 


बात में बहुत ज्यादा दम था लोग बातो को छुपाते है अब सर जैसे फटने को हो गया था कुछ सोच के मैंने वापिस गड्ढे को भरना चालू किया नीनू भी मेरी मदद करने लगी 


मैं- कल कुछ मजदुर भेज कर इस चबूतरे को फिर से बनवा देना 

वो- ठीक है 

मैंने गड्ढे को अच्छे से भर दिया था मेरा दिल कह रहा था की ये कंकाल कंवर का ही है शायद ये अपनों के लिए अपनों की आवाज थी मैंने घडी देखि टाइम ढाई से ऊपर हो रहा था अब यहाँ कुछ नहीं करना था तो हम चलने को हुए मैं औजार वगैरा इकठ्ठा कर अरह तह की नीनू बोली वो अभी आई सुसु करके 


करीब पांच मिनट बाद वो आई और बोली- देखो देव, मुझे क्या मिला है 


मैंने बैटरी की रौशनी में देखा पार्ले जी बिस्कुट के जैसा लगा मुझे मैंने उल्ट पुलट के देखा और तभी मेरे दिमाग में चाचा की कही बात आई मैंने बैग से पानी निकाला और उसको धोने लगा और थोड़ी देर बाद मुझे जो मिला यकीन नहीं हुआ वो एक सोने का बिस्कुट था निखालिस सोने का चाचा ने भी यही बात बताई थी की उनको उस मटकी में बिस्कुट मिले थे मतलब इस जगह में कुछ तो बात थी कुछ तो लेना देना था बस क्या था वो ही पता चलाना था
नीनू की आँखे फटी पड़ी थी मैं- ये तुमको कहा मिला 


वो- उधर झाड़ियो के पीछे जब मैं गयी तो मैंने ऐसे ही पत्थर उठा लिया पर ये अजीब सा था मेरा मतलब पत्थर ऐसे नहीं होते ना तो थोडा सा मैंने ऐसे ही अटखेली करते हुए इसको कुरेदा तो चाँद की रौशनी में अलग सा लगा तभी मैं इसे लेके आई 

मैं- नीनू तुमने अनजाने में ही बहुत बड़ी मदद कर दी है 

भावनाओ में आकर मैंने नीनू को चूम लिया तो वो शर्मा कर मुझसे अलग हो गयी इस सोने के बिस्कुट का यहाँ मिलना ये साबित करता था की कुछ तो जुड़ा है इस जगह से पर इस घनघोर अँधेरे में कुछ भी तलाश करना ना मुमकिन सा ही था तो ये तय हुआ की दिन के उजाले में ही खोज की जाए फिर मैं और नीनू वापिस हुए, थोड़ी बहुत नींद ली आज पंचायत बैठनी थी तय समय पर हम लोग गाँव की चौपाल की तरफ चले 


जिस गाँव में कभी हम फैसला सुनाया करते थे उसी गाँव में आज हमारा फैसला होना था वाह रे ऊपर वाले तेरे अजीब खेल खैर, जब हम पहुचे तो लगभग पूरा गाँव वहा पर था अवंतिका भी थी , बिमला एक कुर्सी पर बैठी थी हमारे आते ही कार्यवाई शुरू हुई 

बिमला- आदरनीय, पंचो और समस्त गाँव वालो मैं एक बात कहना चाहती हु की देव मेरा देवर है पंचायत का जो भी फैसला हो अगर वो देव के पक्ष में जाये तो आप लोगो को लगेगा की सरपंच तो इसकी भाभी है इसलिए इसके पक्ष में फैसला दिया इसलिए मैं खुद को इस कार्यवाई से अलग कर रही हु और पंचो पर मामला छोडती हु, जो भी उनका फैसला होगा वो ही मेरा फैसला होगा 
वैसे देखा जाए तो बिमला का वैसला अपनी जगह एक दम सही था तो पंचायत शुरू हुई 


पंच- देव, तुमने गाँव की लड़की से ब्याह करके गाँव के भाई चारे को खराब किया है गाँव में हर लड़की को अपनी बहन बराबर मान दिया जाता है तो तुमने पिस्ता से क्यों ब्याह रचाया 


पिस्ता- ओये, पंच तू अपना काम कर दिमाग मत सटका ये मेरी मर्ज़ी है मैं जिस से चाहू उसके साथ रहू तेरी के दिक्कत है 
मैंने पिस्ता को चुप रहने के लिए कहा पर वो गुस्से में आ गयी थी वो नहीं मानी 


पिस्ता- के कहा तुमने, की गाँव की हर लड़की भाई बहन होवे है अगर मैं अब भी नाडा खोल दू तो जो लोग ये संत बनने का नाटक कर रहे है ये भी चढ़ने को तैयार हो जायेंगे बस आग लग गयी इनके पिछवाड़े में , अरे काहे की पंचायत और कहे के ये दो कौड़ी के पंच ये रोहताश आज पंच बना फिर रहा है अरे इसने तो अपनी भाभी को नहीं छोड़ा, जो अपने घर में ऐसे काम कर सकता है वो बाहर की औरतो लडकियों के बारे में क्या सोचता हो गा, मुझे न झांट बराबर फरक नहीं पड़ता इस पंचायत से 


और सुनो रही बात फैसले की तो उसकी ना बत्ती बनाके अपनी गांड में डाल लो क्या कहा तुमने की गाँव की हर बेटी को अपनी बहन समझना चाहिए ये ताऊ हरचंद याद है इसने एक बार मुझे अपने छप्पर में आने को कहा था तब ना थी मैं बेटी 


मैं- पिस्ता चुप होजा 


वो- ना देव, इन दो कौड़ी के लोगो को आज इनकी औकात दिखानी है साले ठेकेदार बने फिरते है अरे सोचो हमारे क्या हालत है किस परेशानी से जूझ रहे है हम वो तो किसी ने न पूची आ गए पंचायत करने 


पंच- देव, इसको समझाओ 


मैं- पंच साहिब, मेरी बात सुनिए 


उसके बाद मैंने पूरी बात सबको बताई की कैसे क्या हालात थे और साथ ही ये भी बता दिया की अब मेरी दो पत्नि है नीनू का इशारा करके 


मेरी बात सुनके सब चुप हो गए , 


मैं- मैंने अपना पक्ष रख दिया है 


पंच- देव, तुम्हारे बाप दादा ने सदा इस गाँव की मदद की है हमारी तुमसे भी कोई परेशानी नहीं पर देखो समाज की भी बात है तुम्हारी देखा देखि कल गाँव में और लड़के लड़की ने ऐसा कदम उठाया तो .....


मैं- पंच साहिब, अब भविष में क्या हो किसको पता है 


पंच- पर समाज के कुछ नियम होते है अब तुम ही बताओ इस लड़की को हम बेटी कहेंगे या बहु सोचो जरा 


पिस्ता- तू माँ कह दिए , चलो हो ली तुम्हारी पंचायत ख़तम तमाशा हम लोग तो इधर ही रहेंगे इसी गाँव में किसी में दम हो तो हाथ लगा के दिखाए 


मैंने कहा था उसको चुप रहने को पर उसने बात बिगड़ दी थी अब संभालना मुस्किल हो रहा था गाँव से टक्कर ली ही नहीं जा सकती थी मैंने नीनू को कहा तो उसने पिस्ता को शांत किया और अपने पास बिठा लिया 


पंच- देव, अबकी बार ये लड़की बोली तो हुक्का पानी बंद 


मैं- कौन करेगा 


वो- पंचायत की ना सुनोगे 


मैं- आप लोग मेरी नहीं सुन रहे है मैं कहना नहीं चाहता था पर कहना पड़ रहा है मैं पुलिस में sp , मेरी घरवाली नीनू dsp अगर मैं बिगड़ा ना तो पांच मिनट में ना पंच रहेंगे न पंचायत पर मैं इसलिए चुप हु की मैं गाँव का सम्मान करता हु आखिर ये गाँव घर है मेरा और आप सब मेरे घरवाले मैं बहुत भटका हु अब घर आया हु आपसे हाथ जोड़ के विनती है की हमे अपनाइए रहने को तो हम कही भी रह लेंगे आज से पहले भी रह रहे थे ना पर यहाँ मेरे लोग है इसलीये तो आया हु , पिस्ता को ब्याहना कोई गलती नहीं है बल्कि आप जरा सोचो हमारी हालात की बारे में की कैसे लम्हे गुजारे है हमने 



पंची भी शाम को अपने घर आते है जानवर भी अपने बच्चो को प्प्यर करते है तो आप लोग अपने बच्चो के प्रति कठोरता मत दिखाइए मेरे बाप दादा ने अपना खून पसीना लगाया गाँव के लिए बीते समय में मेरे साथ जो भी हुआ अब मेरा ये कहना है की मैं तो इस गाँव में ही रहूँगा 


मैंने अपने बाद रख दी थी अब पंचो के फैसले की बारी थी मैंने तो सोच लिया था की अगर कोई यहाँ पंगा करेगा तो फिर देख लेंगे काफ़ि देर तक पंचो ने आपस में बात की फिर बिमला को अपनी बात चित में शामिल किया अब आयी फैसले की घडी 


बिमला- तो गाँव वालो पंचो ने निर्णय ले लिया है उनका निर्णय मैं आपको सुना रही हु, देव के साथ जो भी हुआ और उन सभी हालातो को मद्देनजर रखते हुए की कैसे उसे पिस्ता का साथ करना पड़ा और साथ ये भी देखते हुए की उन्होंने गाँव के भाई चारे के नियम को भी तोडा है तो पंचायत ने फैसला किया है की चूँकि अब वो पिस्ता को छोड़ नहीं सकता क्योंकि हालात ही ऐसे है देव अपनी दोनों पत्नियों के साथ गाँव में रह सकेगा और उसका हुक्का पानी भी बंद नहीं किया जाता पर चूँकि गलती की है तो उसका प्रायश्चित भी करना होगा
बिमला- और उनकी सजा ये है की गाँव में बन रहे बाबा के मंदिर का आधा खर्चा देव को देना होगा और साथ ही पिस्ता को ये हिदायत दी जाती है की वो अपनी भाषा पे कण्ट्रोल करे बहुत गन्दा बोलती है वो अपने से बड़ो का सम्मान करे और इसी के साथ ही ये पंचायत ख़तम होती है 



मैंने उनका फैसला मान लिया था बिमला मुझे मेरी तरफ आते हुए दिखी पर वो पास से गुजर गयी और मुझे ऐसा लगा की जैसे उसकी आँखों में आंसू हो खैर, चलो एक तो टेंशन ख़तम हुई उसके बाद मैंने पंचो से खर्चे का पुछा और हम फिर घर आ गए खाना वाना खाया सब लोगो की आराम की इच्छा थी तो मैंने डिस्टर्ब नहीं किया मैं घर से बाहर आया और रतिया काका के घर की तरफ चल दिया मैंने आवाज लगाई पर कोई दिखा नहीं तो मैं वापिस मुड़ा ही था की किसी ने आवाज लगायी 



मैंने देखा राहुल की पत्नी ममता थी – घर पे कोई नहीं है जेठजी 



मैं- कोई बात नहीं काका आये तो कहना देव आया था वैसे मंजू कहा गयी है 



ममता- मुम्मी जी के साथ खेत में 



मैं- अच्छा मैं चलता हु 



वो- रुकिए कम से कम चाय तो पीके जाइए 



मैं बैठ गया थोड़ी देर में ममता चाय ले आई मैंने उसे शुक्रिया कहा और चाय पिने लगा 



वो- घर में सब आपकी ही बाते करते रहते है 




मैं- क्यों 



वो- अप इतने दिन बाद जो आये 



मैं- हाँ कई समय हुआ अब तो हर चीज़ ही बदल गयी है 



वो- हां, दीदी ने काफी कुछ बताया आपके बारे में 



मैं- क्या बताया 



वो- यही की आप कभी जिंदादिल हुआ करते थे 



मैं- अच्छा 



वो – हां बस आपके ही चर्चे है घर में 



मैं- चाय के लिए शुक्रिया अच्छी बनायीं है 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:55 PM

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