Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:38 PM,
#81
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरा घाव कच्चा था तो उसमे से खून सा निकलने लगा चाची ने मुझे अपनी गोद में लिटा लिया और मेरे जख्म को देखने लगी उनकी आँखों से आंसू टपक कर मेरे चेहरे पर गिरने लगे, बहुत डर तक हम दोनों रोते रहे दर्द हो रहा था वो अलग , पता नहीं वो बेहोशी थी या फिर मार का असर जब मुझे होश आया तो मैं चाची के कमरे में ही लेटा हुआ था चाची मेरे पास ही बैठी हुई थी सर से पल्लू गिरा हुआ था आँखे सूजी सी हुई थी गालो पर सूखे हुए आंसू के निशान उसके दर्द को बयाँ कर रहे थे 



मैं- पानी ईईईईईईई 

उन्होंने थोडा सा पानी दिया और बोली- तुझे ऊपर नहीं आना चाहिए था हमारा आपस का मामला है और अब तो ये रोज की ही बात है कौन सा आज पहली बार हाथ उठाया है मुझ पर 

- तो क्यों सहती हो 

वो- ब्याह के आई हूँ ख़राब टाइम है बेत ही जायेगा दुःख के बाद सुख भी आएगा कभी 

- चाची आप भी ना 

वो- लेटा रह 

मैं- पर झगडा हुआ क्यों 

वो – हम बात कर रहे थे की पता नहीं किस का फ़ोन आया तो बात करने के बाद इनको बहुत गुस्सा चढ़ गया था मैंने पुछा तो बस झगडा शुरू कर दिया और फिर मारने लगे 

मैं- चाची पानी सरसे ऊपर चला गया गया है आपको ऐसे पिटता नहीं देखूंगा 

वो- हम अपने मसले सुलझा लेंगे 

मैं- अब नहीं सुलझ पाएंगे 

वो- तुम आराम करो मैं तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ 

वो चलने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- चाची, आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो आपके साथ ऐसा अत्याचार मैं नहीं सहूंगा आप अभी मम्मी को फ़ोन करके बुलालो 

पर उन्होंने मना कर दिया 

मैं-तो ठीक है अब जिगर मजबूत कर लेना आप 

वो- साफ़ साफ़ कहना 

मैं- बस रात तक रुको 

मैं उठा हालाँकि दर्द बहुत हो रहा था पर फिर भी मैं उसको सहते हुए बिमला के घर गया और जाते ही उसको दो तीन थप्पड़ मारे और बोला- साली वो फ़ोन तूने ही किया था ना चाचा को 

बिमला ये सुन कर सन्न रह गयी और जैसे बुत बन गयी हो मैंने अपनी बेल्ट निकाली और उसको मारने ही जा रहा था की मेरा हाथ रुक गया 

मैं- जा साली , कभी तुझे चाहा था जा और कह दिए जो कहना चाहे चाचा से छुट है तेरी 

बिमला चुपचाप रही मैं वहा से आ ही रहा था की मैंने देखा चाची बिमला के मेन गेट तक आ गयी तो मेरे पीछे पीछे 

मैं- चलो यहाँ से 

वो- तू यहाँ क्या करने आया था 

मैं- चलो तो सही 

वो- बता मुझे 

मैं गुस्से से चलो यहाँ से अभी 

तो वो सहम गयी और मेरे साथ घर आ गयी दोपहर से शाम हो गयी बस बैठे बैठे चाची का हाथ मैंने अपने हाथ में ले रखा था चाचा अभी तक वापिस आया नहीं था कुछ समझ आ रहा था नहीं की किया क्या जाए, मुझे इतना तो पता था की बिमला मोका मिलते ही चाचा से बात जरुर करेगी अब बस देखना ये था की चाचा करता क्या है , सांझ भी ढलने लगी थी अँधेरा होने लगा था हल्का हल्का सा चाची ने उठ कर हाथ मुह धोये और घर के कामो में लग गयी , मैं एक गहरी सोच में डूबा था की तभी चाचा घर में आया 

चाचा- बात करनी है तुझसे 

मैं- पर मुझे कोई बात नहीं करनी 

उन्होंने जेब से एक गड्डी निकाली सौ सौ के नोटों की मुझे बोले- रख ले 

मैं- ना चाहिए 

वो- देख तुझे जो चाहिए मैं दूंगा रूपये, नया बैट घर में भी कोई तेरे साथ कोई रोक टोक नहीं करेगा पर तू अपना मुह बंद रखना 

मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की चाचा ऐसे सीधे सीधे ही मुद्दे पर आ जायेगा 

मैं—पर आपको ये सब शोभा नहीं देता 

वो- तू अपना काम कर मुझे सब बता दिया है बिमला ने की कैसे तूने भी उसके साथ गुल्ल्छार्रे उडाये है बहुत भोला मत मेरे आगे 

मैं- मुझे कोई बात नहीं करनी है 

वो- अच्छा, अब बात नहीं करनी है थोडा मजा हमने कर लिया तो बुरा लग गया खुद करो वो सही है 

मैं- मुझमे और आप में फरक है 

वो- कुछ फरक नहीं देख अगर मुझ पर मुसीबत आई या बिमला को किसी भी घरवाले ने कुछ कहा तो तेरा भी हाल तू सोच लेना 

मैं उठा और बोला- चाचा बात ऐसी है की अपनी धमकी को रख लो अपनी जेब में वो तो मेरी हालात ठीक नहीं है वर्ना आप तो क्या मार लेते , बाकि रही बात बिमला की तो उस से अपना पर्सनल पंगा है , उसके तो उलटे लग गए है उसका तो वो हाल होगा की बस .........

चाचा ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोले- तेरी गांड में दम है ना उतना जोर लगा ले, बिमला मेरी और मैं उसका ऐसी कोई दिवार नहीं जो हमारे बीच आ सके , 

मैं- और चाची का क्या उसके दिल पे क्या गुजरेगी 

चाचा- माँ चुदाये साली, उसमे अब बचा ही क्या है उसको रहना है तो रहे वर्ना निकल जाए मेरे घर से 
मैं समझ गया था की इनके सर पर भूत सवार है पर मैं ना जाने किस बात से डरता था , भाड़ में जाए ये और वो अपने को क्या पर फिर दिल साला चाची को लेकर इमोशनल हो ही जाता था , पर उस शाम मैंने सोच ही लिया था की आज कुछ भी हो जाये मैं चाची को वो सब दिखा ही दूंगा फिर जो होगा देखा जायेगा चाची जाने और चाचा जाने बिमला की गांड तो मैं मार ही लूँगा .

उस रात हमारे घर में खाना नहीं बना था चाची बिलकुल खामोश बैठी थी मैं भी गुमसुम था चाचा का कुछ अता-पता नहीं था, मुझे मन ही मन ये आभास हो रहा था की ये ख़ामोशी आज ऐसा तूफ़ान लाने वाली है जिसमे इस घर की नींव हिल जाएगी अपनी मजबूरियों पर मुझे बहुत रोना आ रहा था जिंदगी में इतना बेबस खुद को कभी महसूस नहीं किया था मैंने 

मैं चाची के पास गया और बोला-कब तक ऐसे ही बैठे रहोगे 

वो- तुझे कुछ ऐसा पता है ना जो तू मुझे नहीं बताना चाह रहा 

मैं नहीं , ऐसी हो कोई बात है नहीं 

वो- मैं आप जो सोच रहे हो वो बात नहीं है दरअसल मेरा और बिमला का कुछ पंगा सा हो गया है तो मैं बस उसे बताने गया था की घरवालो को ना बताये 

वो- तो फिर तुम्हारे चाचा क्या कर रहे थे उसके साथ 

मैं- कब 

वो- मैं आज खेत में गयी थी घास लेने तो बिमला और उनको मैंने देखा वहा पर 

मैं- तो क्या हुआ , बिमला नहीं जा सकती क्या खेत पर 

वो- जा सकती है पर मुझे ऐसा लगता है की कोई बात है जो तुम, बिमला और तुम्हारे चाचा जानते है पर मैं नहीं जानती और शायद उसी बात का असर मुझ पर पड़ रहा है 

मैं- चाची आप फ़ालतू बातो को बहुत सोचने लगे हो 

चाची मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने सर पर रखते हुए बोली- खा, कसम मेरी और बता की कोई खिचड़ी नहीं पक रही है 

अब मैं तो फास गया , मैंने हाथ हटा लिया और अपना मुह परे को कर लिया 

आज की रात क़यामत की रात होने वाली थी आज अपने हाथो से अपनी प्यारी चाची के घरेलु जीवन में आग जो लगाने वाला था मैं 

चाची- क्या हुआ , क्यों नहीं पकड़ी कसम मतलब तुझे पता है 

मैं- रात बहुत हो गयी है सो जाओ 

वो- देख अगर तूने मुझे आज सब सच सच नहीं बताया की क्या हो रहा है तो तू मेरा मरा मुह देखेगा 

मैंने उनके मुह पर हाथ रखा और बोला- आप ऐसा ना कहो 

- तो फिर बताते क्यों नहीं मेरे सर की नस फटने लगी है अब 

- चाची सब ख़तम हो जायेगा 

—बता जरा 

- पहले कसम खाओ की चाहे कुछ भी हो जाय आप मुझसे, हम सब से दूर नहीं जाएगी

वो- बता मुझे 

मैं चाची बात ऐसी है की आपके पति 

वो- क्या मेरे पति क्या 

मैं- थारे पति जो है न वो एक नुम्बर के रंडी बाज़ है , 

ये सुनते ही चाची ने ४-5 थप्पड़ जड़ दिए मुझे और गुस्से से बोली- माना की हमारा रिश्ता सही नहीं चल्ररहा अहि पर वो इतना कच्चा भी नहीं है की कोई भी दो झूठी बातो से उसको तोड़ दे

मैं- अब यही सच है चाची बिमला और थारे पति का चक्कर चल रहा है 

चाची- चुप हो जा हरामखोर तू मुझसे बदला लेने को ये सब बोल रहा है 

मैं- एक काम करो थारे पति तो इस समय कुएँ पे होते है तो जाओ मिल आओ वाही पर उनसे और सच क्या है पूछ लेना 

वो – हा जाउंगी , सब पुचुंगी 
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12-29-2018, 02:38 PM,
#82
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची घर से निकल गयी दनदनाते हुए मुझे तो पता ही था की कुए पर उसको बस लोडा मिला नहीं मैं अपने कमरे में ही बैठ गया , करीब घंटे भर बाद चाची बदहवास ही आई आँखों में भरे आंसू जैसे किसी भी पल रुलाई में बदल जायेंगे 

मैं – क्या हुआ 

वो रोने लगी मेरे गले लग कर मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सका फूट फूट कर वो रोटी रही मैंने कोई कोशिस नहीं की चुप करवाने की फिर वो बोली- क्या वो बिमला के घर है 

मैं- वाही होंगे, 

वो- तो उस रात मैंने तेरे चाचा को देखा था 

मैं- हां

वो- तो तुमने झूठ क्यों बोला उस पापी का पाप अपने सर क्यों लिया 

मैं आपकी खातिर 

चाची मेरे सीने से लग गयी उस कमरे में भावनाओ का एक तेज ज्वार आया हुआ था क्या मैंने उनको बता कर सही किआ था बिलकुल नहीं पर ये पाप हो ही गया था मुझसे, 

चाची- ना जाने मेरा दिल अभी भी मानने को तैयार नहीं है 

मैं- देख पाओगी अपने हक़ को किसी दुसरे के बिस्तर में बिखरते हुए 

वो- खामोश रही 

मैं- आओ आपको जिंदगी की कडवी हकीकत से आज सामना ही करवा देता हूँ 

मैं- पायल उतार दो अपनी 

वो- किसलिए 

मैं- उतारो तो सही 

उन्होंने पायल उतारी मैं- चाची- आपको मेरी कसम है की आप बिलकुल भी वहा पर गुस्सा नहीं करोगे, और ना ही कोई बवाल बस एक दम चुप रहोगे पर पहले आप कुछ और देखो 

मैंने अपनी अलमारी खोली और वो तमाम तस्वीरे चाची के सामने बिखेर दी जिनमे चाचा शांति मैडम के साथ उस रात गुल खिला रहा था , असल में तो मैं और चाची ही नंगे हो गए थे, हमारे घर का सच आज हमारे सामने था ये एक ऐसी सच्चाई थी जिस से हम मुह मोड़ नहीं सकते थे, चाची उन तस्वीरों को देख कर सुन्न हो गयी थी पर अभी तो एक बिजली और गिरनी थी उन पर 


मैंने उनका हाथ पकड़ा और उनको बिमला की छत की तरफ ले आया मैंने उनको इशारा किया और हम चुपचाप से नीचे उतर गए, मैंने उनकी पायल उतरवाई ही इसलिए थी की कही कोई आवाज ना हो , धीरे से हम दोनों सीढियों से नीचे उतरे , साली किस्मत की बात देखो की आज वो दोनों बैठक में लगे हुए थे तेज आवाज करता हुआ कूलर चल रहा था बिमला नंगी होकर चाचा की गोदी में बैठी हुई अपने बोबो को भिच्वा रही थी, जंगले की दिवार से सटे चाची और मैं हम दोनों उस नज़ारे को देखने लगे पर चाची को गुस्सा चढ़ा हुआ था वो अन्दर जाने ही वाली थी की मैंने उनके मुह पर हाथ रखा और कहा चुप चाप देखो अभी कोई पंगा मत करो 


चाची बिलकुल मेरे आगे खड़ी हुई थी तो उनकी गांड का अहसास पाकर मेरा लंड उस टेन्स सिचुएशन में भी गरम होकर उनकी गांड पर सलामी देने लगा , अन्दर कमरे में लाइव चुदाई चल रही थी इधर हम दोनों एक दुसरे से स्टे हुए उसे देख रहे थे , मैं अपना हाथ उसकी कमर पर रखे हुए था सब कुछ मिला जुला हो रहा था अन्दर चुदाई जोरो पर चालू थी मैंने धीरे से अपना हाथ चाची की चूची पर रख दिया पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा नीचे मेरा लंड उनकी गांड में घुसे जा रहा था चाची बस बिमला और चाचा को ही घूरे जा रही थी 
मेन बात तो कही पर खो गयी थी बस कुछ और ही चल रहा था मस्ती में मेरे से उनकी चूची कुछ जोर से दब गयी तो उन्होंने घूर कर मुझे देखा और फिर वो सीढिया चढ़ने लगी मैं भी उनके पीछे आया , हमारे घर आ गए थे मैंने उनको थोडा सा पानी दिया उन्होंने एक सांस में ही आधी बोतल खाली कर दी फिर बोली- मैं ये घर छोड़ कर जा रही हूँ मुझे नहीं रहना इस नीच इंसान के साथ 

मैं- चाची मैं आपके बिना नहीं रह पाउँगा 

वो- चुप रह तू , तू मुझे दोस्त बोलता है और तुझे सब पता होने के बाद भी मुझे धोखे में रखा तू भी उनके बराबर ही गुनेहगार है 

मैं – आप कुछ भी कह लो पर जाना नहीं 

वो- मैं अब उस नीच इंसान के साथ नहीं रह सकती 

मैं- मत रहो आप अलग कमरा ले लेना पर जाना नहीं 

वो- अब ये मुमकिन नहीं 

चाची ने अपना सारा दर्द जैसे छुपा लिया था अपने अन्दर , बल्कि सच तो ये था की उनके दर्द के कतरे कतरे को मैं अपने अन्दर मह्सोश करने लगा था , वो रात बड़ी बोझिल थी चाची बस चुपचाप कुर्सी पर बैठी थी एक तो मेरी साली ख़राब तबियत ऊपर से आँखों में नींद चढ़ने लगी थी , मैं बहुत कोशिश कर रहा था की नींद न आये पर रत के कुछ आखिरी पहरों में मैं सो ही गया

सुबह मैं उठा करीब 11 बजे आँखे मलते हुए मैंने कमरे का नजारा देखा तो सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा था मैं बाहर आया तो देखा की पूरा घर खुल्ला पड़ा था था कोई भी था नहीं , चाचा का स्कूटर भी नहीं था चाची भी दिख नहीं रही थी , अब कहा गए , मेरी नींद का अल्सयापन टूटा तो पूरा किस्सा याद आया पड़ोसियों से पता चला की चाची तो सुबह ही एक सूटकेस लेकर कही चली गयी है , मेरा दिमाग सटक गया बुरी तरह से मैंने तुरंत अपने मामा के घर फ़ोन मिलाया और मम्मी को पूरी बात बता दी 


शाम होते होते मम्मी और पिताजी घर आ गए अब मेरे पास कोई बहाना भी नहीं था मैंने पूरी बात उनको बता दी पिताजी को अपने भाई पर बहुत भरोसा था उनको इस बात से बहुत आघात पंहूँचा , रात को चाचा आये पिताजी ने उनसे बात की तो वो झूठ बोलने लगे पर शांति मैडम के साथ उनकी तस्वीरे सबूत थी तो उनके लिए बेहतर था की अपनी गलती मान ले , पिताजी ने बिमला के सास ससुर को फ़ोन करके चंडीगढ़ से तुरंत गाँव आने को कहा , इधर बिमला को भी मम्मी ने बुलाया और खूब धमकाया वो रोते हुए अपने रिश्ते की दुहाई देने लगी 

बात बहुत ही गंभीर थी अगर घर से बाहर जाये तो गाँव बस्ती में परिवार की इज्जत तो जानी ही थी लोग बाते करते वो अलग मम्मी ने चाची के गाँव फोन किया तो पता चला की वो उधर ही है 


उस दिन भी घर चूल्हा नहीं जला ऐसा लग रहा था की जैसे किसी की मौत हो गयी हो घर में बड़ी ही अजीब सी सिचुएशन हो गयी थी किसी की समझ में कुछ आ रहा था नहीं अगले दिन तक बिमला के सास ससुर भी आ गए थे, घर में हुआ बवाल बिमला की सास ने खूब खरी खोटी सुनाई उसको , चाचा को भी लताड़ा गया बिमला के ससुर ने निर्णय लिया की वो जल्दी ही रिटायरमेंट ले लेंगे और गाँव में ही रहेंगे,अब जो हो गया था उसकी भरपाई तो हो नहीं सकती थी पर आगे भविष्य का इंतजाम तो कर ही सकते थे, अगले कुछ दिन बस ऐसे ही गुजरे पिताजी को इस बात से बहुत धक्का लगा था बस वो ऑफिस से आते ही अपने कमरे में चले जाते खाना भी उधर ही खाते 
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12-29-2018, 02:38 PM,
#83
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची को मानाने की बहुत कोशिश की गयी माँ- पिताजी खुद उनके घर गए पर उन्होंने वापिस आने से साफ़ मना कर दिया , अब ये घर घर रहा नहीं था इन सब चीजों का मुझ पर बहुत गहरे असर हुआ था हर पल चाची के जाने का मैं खुद को दोषी मानता था बिमला पर हर समय घरवालो की नजरे गडी रहती थी , घर में जैसे मुर्दानगी सी छा गयी थी पर अन्दर ही अन्दर मैं टूट रहा था कुछ भी अच्छा नहीं लगता था रोज सुबह मैं घर से निकल जाता था शहर की और शाम होने पर जब कोई बहाना बचता नहीं तो घर का रुख करता था मैं 


नीनू को मैंने अपने दिल की हर बात बता दी थी पर वो भी क्या कर सकती थी अब वो मेरे घर के मामलो में थोड़ी ना कुछ कर सकती थी , बस इस दिलवाले को अपने दिल के इस बोझ को ढोना था , आंसू भी अपने थे अंक भी अपनी थी करीब एक महिना गुजर गया था उन बातो को पर चाची के बिना घर , घर लगता नहीं था उस दिन मैंने मम्मी से पूछा लिया की 

मैं- मम्मी, चाची कब आएँगी 

वो- मुझे नही पता 

मैं- आप कोशिश क्यों नहीं करती उनको वापस लाने की 

वो- तुझे क्या लगता है हमने कोशिश की नहीं मैं रोज बात करती हूँ पर कुछ चीज़े हमे समय पर छोड़ देनी चाहिए 

मैं- पर घर में उनकी कमी है क्या आप महसूस नहीं करते हो 

वो- मेरे बच्चे, उसको कभी अपनी देवरानी नहीं समझा, सदा अपनी बेटी समझा है पर मुझे ऐसे लगता है की कुछ समय देना चाहिए 

मैं- आप कहो तो मैं चला जाऊ उनको लेने क्या पता वो मान जाए 

मम्मी- तू भी कोशिश करके देख ले, कल चले जाना वैसे भी घर का माहोल ठीक नहीं है तेरे ऊपर भी इन बातो का असर पड़ रहा है , क्या पता सुनीता तेरी बात मान ले 

मैं- ठीक है मैं कल सुबह ही चला जाऊंगा 

अपने कमर में आके मैंने थोडा बहुत सोच विचार किया मुझे बस एक सवाल खाए जा रहा था की चाची ने चाचा को कुछ क्यों नही कहा , चुप चाप घर से क्यों चली गयी जबकि उनकी इनसब में कोई गलती थी नहीं तो फिर क्यों गयी वो जबकि गुनेहगार तो अब भी खुल्ला ही घूम रहा था उसको क्या फरक पड़ा बिमला नहीं तो कोई और मिल जाएगी उसको मेरा दिल बहुत ज्यादा दुखी होने लगा तो मैं घर से बाहर आ गया , 


मुझे एक सहारे की जरुरत भी एक दोस्त की जरुरत थी जिस से मैं अपने मन की बात कह सकू पर आज देखो तक़दीर कोई मेरे पास था ही नहीं, पिस्ता को मैं चाह कर भी ये बात बता नहीं सकता था घर की बदनामी होने का डर तो कुछ समझ आये नहीं ,खेत में बाजरे की बुवाई करनी थी बस कुछ दिनों में तो मैंने सोचा की खेत को जोत ही आता हूँ वर्ना फिर कोई न कोई अपना गुस्सा काम के बहाने स उतारे गा तो मैं ट्रेक्टर लेके खेत में पहूँच गया वहा जाके देखा की बिमला घास काट रही है मैंने वैसे भी उसको अनदेखा करना सीख लिया था 


मैंने सोचा थोडा पानी पि लू फिर जुताई का काम शुरू करूँगा पानी पि रहा था की बिमला मेरे पास आ गयी और बोली 

“मिल गया तुझे चैन, मेरे जीवन में आग लगा के ”

मैं- और तेरी वजह से चाची का जो हाल हुआ है उसका क्या 

वो- तो चलने देता न जो चल रहा था 

मैं- शर्म ना आ रही अभी भी जा जाके चाचा का लोडा चूस ले अभी भी 

वो- चूस लुंगी मुझे कौन रोकेगा पर मेरी बददुआ लगेगी तुझे 

मैं- चल अपना काम कर तेरी जैसी रंडियों से बात करता नहीं मैं 

वो- साले, मुझे रंडी बनाया किसने , किसने बहकाया मुझे याद है या याद करवाऊ मैं

बिमला की बात धाड़ से मेरे सीने में आके लगी, सच ही तो कहा था उसने उसे रंडी बनाया किसने , वो मैं ही तो था जिसने उसे बहकाया था , वो मैं ही तो था जिसने उसको ये रास्ता दिखाया था अगर मैं अपनी हवस की आग में उसको ना झोंकता तो आज इतनी जिन्दगिया यु रिस्तो की आंच में ना झुलसती सब से बड़ा गुनेहगार तो मैं ही था 

बिमला- मैं तो अपनी ग्रहस्थी जैसे तैसे करके फिर से जमा लुंगी , और हां चौड़े में ऐलान करती हूँ की चाचा का साथ न छोडूंगी चाहे पूरा कुनबा फांसी लगा ले, रही बात तेरी तो तू देखेगा की जब एक ज़ख़्मी औरत दुश्मनी पे आती है तो वो किस हद तक जा सकती है तेरी मेरी दुश्मनी की आग में पूरा कुनबा झुलसेगा 
मैं- साली, मेरा दिमाग ख़राब मत कर वर्ना इधर ही पटक कर चोद दूंगा, तू निभाएगी दुश्मनी तू, तेरी गांड को रोज देख लिया कर जिसे मैंने मारी थी तुझे मेरी याद आती रहेगी बहन की लौड़ी, कान खोल के सुन तू चाचा से चुद या चाचा के चाचा से मुझे कोई लेना देना नहीं , माँ चुदा तेरी पर इतना जरुर है की तेरा रास्ता हर कदम पे मैं काटूँगा तू और तेरे जितने भी यार हो मेरा बाल उखाड़ के दिखा देना 


मेरा दिमाग हद से ज्यादा खराब हो रहा था तो फिर मैं वापिस घर ही आ गया पर बिमला की कही बात मेरे दिल को किसी छुरी की तरह चीर रही थी उसका कहना सही था मैंने ही तो उसको अपने पति से बेवफाई करवाई थी वो मैं ही तो था जिसे उसकी चूत मारनी थी मुहे था सा डर सा लगने लगा की बिमला की बद्दुआ कही सच में लग गयी तो, ........................

वो रात बस उधेड़बुन में ही कट गयी मैं समझ पाया नहीं की बिमला क्या गुल खिलाने वाली थी पर जिस विश्वास से उसने कहा था की उसका और चाचा का नाता अब नहीं टूटेगा उस से मुझे अंदाजा हो गया था की इनपे चाहे लाख पहरे बिठा लो ये कोई ना कोई मौका ढूंढ ही लेंगे पर अपने को उस से ज्यादा फिकर चाची को घर लाने की थी मैंने अपना बैग पैक किया और चाची के गाँव की तरफ निकल लिया दिल में एक आस लिए की उनको अपने साथ लेकर ही आऊंगा , उबड़ खाबड़ रास्तो पर चलती बस अपनी रफ़्तार मुझे मंजिल की तरफ ले जा रही थी 


शाम को करीब 6 बजे मैं चाची के घर पंहूँचा, शाम का समय था तो वो दरवाजे पर ही बैठी थी गुमसुम सी मुझे देखते ही वो थोड़ी आश्चर्यचकित हो गयी , उनके सूखे पड़ गए होंठो पर एक मुस्कान सी फ़ैल गयी 
वो- अरे तुम, अचानक यहाँ पर , कैसे 

मैं- बस आपसे मिलने आ गया 

वो मुस्कुराई और मुझे अन्दर ले गयी, घर पे उनके आलावा बस नाना- नानी ही थे मैंने उनको अभिवादन किया चाची के भाई भाभी नोकरी के सिलसिले में बाहर रहते थे , थोड़ी बहुत बाते होने लगी थोड़ी देर में चाची चाय- नाश्ता ले आई , उसके बाद नानी मुझे घर के बारे में पूछने लगी अब मैं क्या कहता बस हां हूँ ही करता रहा मुझे पता था की नानी भी अपनी बेटी की वजह से दुखी थी पर मैं तैयार था उनकी कडवी बाते सुन ने के लिए थोड़ी देर बाद नाना घर से बाहर चले गए तो चाची मुझे अपने साथ ऊपर कमरे में ले आई 

वो- तू क्यों आया यहाँ पर 

मैं- आपको लेने 

वो- अब मैं उस घर में नहीं जाउंगी 

मैं- चाचा के साथ मत रहना पर मेरे घर तो चलो 

वो- चाचा भी तो तेरा ही है 

मैं- आप भी तो मेरी हो 

वो- अब मैं ना चल पाऊँगी 

मैं- मेरे लिए भी ना चलोगी 

वो- जो अपना के ले गया था उसने तो धोखा दे दिया 

मैं- अपने दोस्त का घर समझ कर चलो 

चाची थोड़ी सी इमोशनल हो गयी थी वो बेड पर बैठ गयी, उनकी आँखों से आंसू बहने लगे मैं और भी परशान होने लगा मैं उनके आंसू पौंछने लगा तो वो मेरे सीने से लग के रोने लगी काफ़ी देर तक वो रोते ही रही मैं बस हौले हौले से उनकी पीठ सहलाता रहा , उनके दर्द से जो जुड़ा था मैं मेरे मन में मिली जुली फीलिंग्स आ रही थी फिर चाची मुझसे अलग होते हुए बोली-“थक गया होगा तू, थोड़ी देर आराम कर ले तब तक मैं खाना बना लेती हूँ ”
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12-29-2018, 02:38 PM,
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया पूरा दिन सफ़र किया था तो थकान से बुरा हाल था नहाके चैन मिला मुझे रात घिर आई थी खाना वाना खाके मैं और चाची छत पर बैठे थे बाते कर रहे थे 

मैं- चाची , काफ़ी दिन हो गए कल मेरे साथ चलो घर 

वो- तू समझता क्यों नहीं , अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा 

मैं- सब ठीक हो जायगा, आज बुरा समय है तो अच्छा भी आएगा 

वो- मैं वहा कैसे रहूंगी, रोज मुझे तेरे चाचा की बेवफाई मिलेगी 

मैं- तो आप भी बेवफा हो जाना , आप भी अपने तरीके से उनसे बदला लेना वहा रह कर उनको जलाओ उनको दिखाओ की आप उनके बिना भी जी सकते हो आप उनके लिए दुःख की चादर क्यों ओढ़ते हो जब उनको आपकी फ़िक्र नहीं है तो आप भी मत करो , पर घर में और भी लोग है जिनको आपकी जरुरत है , एक चाचा से ही तो आपका नाता नहीं है मम्मी है , मैं हूँ मुझे कुछ नहीं पता मुझे मेरा खुशहाल घर वापिस चाहिए 

वो- मुझे सोचने दे 

मैं- सोचना घर चल के ही आपके बिना सूना सूना घर मुझे अच्छा नहीं लगता है मुझे कुछ नहीं सुनना बस आपको चलना ही होगा मेरे साथ , जो भी मसले है वो घर चलके ही सुलझाएंगे 

रात बहुत हो गयी थी पर हमारी बाते बदस्तूर जारी थी , चाची उठी और सीढियों के दरवाजे की कुण्डी लगा आई और बोली- मेरे पास ही सो जाओ तुम 

हम दोनों एक फोल्डिंग पर लेट गए और बाते करने लगे चाची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली- तुझे क्या लगता है मुझमे ऐसी क्या कमी है जो तेरे चाचा पराई लुगाई की तरफ चले गए 

मैं- अब मैं क्या जानू, 

वो- क्या बिमला में मुझसे ज्यादा मादकता है 

- ये आप कैसी बाते करने लगे हो

वो- तू मेरा दोस्त है ना तो तू ही बता 

मैं- चाची हर मर्द को दुसरे की लुगाई अपने वाली से ज्यादा सुन्दर और माल दिखती है तो बस वो ही बात है 
वो- तूने भी किया था ना बिमला के साथ 

मैं- क्या किया था 

वो- भोला मत बन, हमारे बीच सब कुछ खुल चूका है शर्म तो कभी की खो गयी है तो बता ही दे 

मैं- हा, किया था 

वो- कैसा लगा 

मैं- अच्छा लगता है सबको 

चाची ने अपनी उंगलिया मेरी उंगलिया में फसा ली और थोडा सा मेरी तरफ सरक गयी कुछ देर रुक के बोली- तुझे कौन ज्यादा अच्छा लगता है बिमला या मैं 

मैं- ये कैसी बात हुई, आप अच्छी लगती हो 

चाची- मैं ऐसे नहीं पूछ रही , उस नजर से बता 

मैं- किस नजर से 

वो- उस भूख की नजर से , जिस से हर मर्द एक औरत को देख ता है 

मैं- चाची आपका दिमाग तो ठीक है ना मैं आपको उस नजर से कैसे देख सकता हूँ 

चाची- जब तेरा चाचा अपनी बहूँ के साथ सो सकता है तो तू भी उनका ही खून है तू मेरे साथ नहीं सो सकता क्या 

चाची ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया और बोली- देख दबा कर इन्हें बिमला से तो बड़े है 

मैंने अपना हाथ हटा लिया और बोला- शर्मिंदा कर रही हो चाची 

चाची मेरे हाथ से अपने बोबे को मसलवाने लगी , मेरे बदन में भी सुरसुराहट होने लगी पर मैं उलझ गया था वो ये कैसा व्यवहार कर रही थी, 

चाची- देख मेरे होंठो को क्या ये कम रसीले है बिमला से 

मैं- आपका दिमाग तो ठीक है ना, क्या कर रहे हो ये 

वो अब अपनी साडी को जांघो तक उठाते हुए – देख मेरे यौवन को और बता क्या कमी है मुज्मे 

मैं- कुछ कमी नहीं है सब बस टाइम टाइम की बात है 

वो- मेरे चेहरे के करीब आते हुए, तो फिर क्यों तेरा चाचा उसके पल्लू में जाके बैठ गया , देखा था ना तूने कैसे बिमला उसकी गोदी में उछल रही थी 

मैं चुप रहा आखिर मेरे पास था भी तो नहीं कुछ कहने को बस मैं उनके दर्द को अपने दिल के किसी कोने में महसूस कर सकता था , कुछ बाते ऐसी थी की मैं चाहकर भी उनको सुलझा सकता नहीं था रात पता नहीं कितनी बीत गयी थी पर उस फोल्डिंग पर हम दोनों हालात से जूझ रहे थे, अब तक तो मैं बस बचपने में बिना फिकर के जी रहा था पर मेरी इस गलती ने पुरे घर को हिला कर रख दिया था 

मैं- चाची, मुझे माफ़ करना ये जो हुआ मेरी वजह से हुआ 

मैंने अपना सर चाची की गोद में रख दिया वो प्यार से मेरे बालो को सहलाने लगे, बड़े दिनों बाद सुकून सा मिला ऐसा लगा की जैसे बरसो धुप में झुलसने के बाद चीत पर एक तेज बारिश की बौछार आ पड़ी हो , ऐसा मुझे बस रति की बाहों में ही फील हुआ था , मेरे अकेलेपन को जैसे मंजिल मिल गयी हो आहिस्ता आहिस्ता मेरी आँखे बंद होने लगी नींद ने अपनी बाहों में थाम लिया मुझे

सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की छत पर धुप खिली हुई है मेरा पूरा बदन पसीने से चिपचिप कर रहा है जम्हाई लेते हुए मैं उठा बिस्तर समेटा और कमरे में आया तो देखा की चाची अपने गीले बालो को झटक रही थी शायद शैम्पू किया था कमरे में एक अलग सी खुसबू फैली हुई थी, उन्होंने मुझे देखा एक गहरी मुस्कान के साथ और बोली-“उठ गए तुम,”

मैं-जी, थोडा लेट हो गया 

वो- कोई बात नहीं वैसे भी तुम जल्दी कहा उठते हो , फ्रेश हो जाओ मैं बस तैयार होक नास्ता लगाती हूँ तुम्हारे लिए 

चाची ने एक हलकी सी पारदर्शी मैक्सी पहनी हुई थी , उनका गुलाबी रूप बड़ा कयामत लग रहा था उसमे, मुझे पता नहीं चला की कब मेरा लंड तन गया , चाची के चेहरे पर पानी की बूंदे ऐसे लग रही थी की जैसे सुबह सुबह किसी ताजे खिलते गुलाब पर ओस की बूंदे बिखरी पड़ी हो , 

वो- ऐसे घूर कर क्या देख रहे हो 

मैं- आप बहुत सुन्दर हो 

वो- हां, तभी अरमान मचल रहे है उन्होंने मेरी पेंट की तरफ इशारा करते हुए कहा 

कसम से , शर्म से गड गया मैं तो 

मैं थोडा सा उनकी और बाधा और उनकी जुल्फों की खुसबू को सूंघते हुए बोला- आज पता चला की खूबसूरती असल में होती है क्या 

वो- चाची पे लाइन मार रहे हो 

मैं उनके थोडा और पास जाते हुए- नहीं बस अपनी दोस्त की थोड़ी सी तारीफ़ कर रहां था 

मैं चाची के पीछे हो गया और उनके दोनों कंधो पर हाथ रखते हुए बोला- चाची, इस दोस्त से थोड़ी गुस्ताखी कर लू क्या

चाची अपनी गांड को मेरे अगले हिस्से पर घिसते हुए- क्या गुस्ताखी करोगी 

मैंने अपने दोनों हाथ उनके पेट पर रख दिए और बोला- गुस्ताखी क्या बता के होती है , बस हो जाया करती है 

चाची की सुराहीदार गर्दन पर पड़ी पानी की बूंदों को चाटने से मैं खुद को रोक नहीं पाया मेरी लिजलिजी जीभ का अहसास पाते ही चाची सिसक उठी और मेरे से दूर हो गयी 

वो- “क्यार कर रहे हो”

मै- अपनी दोस्त से थोडा प्यार 

वो- थोडा थोडा करके बहुत कुछ करने लगे हो आजकल , चलो अब जाओ मुझे तैयार होने दो फिर साथ ही नाश्ता करते है 

कभी कभी तो मन करता था की चाची को चोद ही दू, पर ये कैसा रिश्ता पनप रहा था उनके साथ आजकल मेरा मेरा रब्ब मुझे किस रह पर चलने को कह रहा था मैं खुद नहीं जानता था बस मेरा दिल था और बेकाबू धड़कने थी जो एक इशारा कर रही थी मुझे, ये और बात थी की इशारे कभी मैं समझ पता था नहीं 


जल्दी से नहा धोकर मैं तैयार होक नीचे पहूँच गया जहा गर्म गर्म परांठो के साथ चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी नानी कही दिख रही थी नहीं तो हम लोगो ने अपना नाश्ता किया पर मेरा ध्यान परांठो से ज्यादा चाची के बार बार लाल हो रहे चेहरे पर था , नाश्ते के बाद वो रसोई में चली गयी मैं बैठक में बैठ गया की तभी नानी भी आ गयी 

मैं- नानी, आप कहो ना चाची को की मेरे साथ वापिस घर जाये 

वो- बेटा, जवाई जी आ जाते तो बात और थी , सुनीता का भाई आजकल में आ जायेगा फिर देखो क्या होता है, हम तो चैन से रह रहे थे की औलाद खुश है अपनी अपनी ग्राहस्ती में , पर न जाने किसकी नजर लग गयी मेरी बच्ची को , तू आया तो थोड़ी से खिली है वर्ना महिना होने को आया हम तो तरस गए इसके चेहरे पर ख़ुशी देख ने को 

मैं- नानी जी, घर पर भी सबका ऐसा ही हाल है , चाची के बिना कुछ भी अच्छा लगता नहीं है मैं हाथ जोड़ता हूँ आप इनको समझाओ 

नानी कुछ नहीं बोली 

चाची का भाई आने वाला था मतलब की बात और बिगडनी थी बड़ा मुश्किल टाइम था पर जोर भी तो नहीं चलता था अपना क्या किया जाये 

नानी को आज घुटनों के डॉक्टर को दिखाना था तो वो नाना के साथ शहर चली गयी घर पर हम लोग ही थे 

मै- चाची चलो ना 

वो- अब मैं कैसे समझाऊ तुझे 

मैं- क्या वो घर एक मिनट में पराया हो गया 

वो- देख, तुझसे झूठ बोलना नहीं चाहती मैं, मैंने तलाक लेने का सोचा है 

मैं- ले लो, पर रहो तो घर पर ही आप मेरे कमरे में रह लेना आपको चाचा ऊँगली भी कर दे तो मैं गारंटी देता हूँ 

चाची- मेरे बुद्धू बेटे, तू समझता क्यों नहीं 

मैंने चाची को अपने पास बिठा लिया और बोला- अगर आप मेरे साथ नहीं चली तो आपकी कसम उस घर में पैर नहीं रखूँगा 

वो- काश, इतना प्यार तेरा चाचा भी करता मुझे 

- चाची, प्लीज् चलो, हमे आपकी जरुरत है 

वो- ये मुमकिन नहीं 

मैं- तो क्या बस उस घर से आपका कोई साथ नहीं था , मानता हूँ की आपके साथ गलत हुआ है पर इसमें हम सब का क्या दोष, आपके ना रहने से चाचा को तो छुट मिल जाएगी किसी के साथ भी रंग रेलिया मना सकता है किसी की जिंदगी पर क्या फरक पड़ेगा इधर आप अपने आप में घुट घुट कर जीओगे , एक आदमी की गलती की सजा पुरे कुनबे को देना क्या उचीत है ,

चाची खामोश रही काफ़ी देर फिर बोली- तुझे क्या लगता है की ये सब मेरे लिया आसन है 

मैं- मैं आपके दिल का हाल समझता हूँ पर हम भी तो आपके अपने ही है 

वो- मेरे पांवो में बेडिया मत डालो 

मैं- और जो आपने मेरे मन में उमंग जगा दी है 

वो- क्या कहा तूने 

मैं- कुछ नहीं 

वो- देख मैं उस घर में नहीं जा सकती इसको छोड़ के तू कुछ भी कहेगा मैं करुँगी 

मैं- मैं कौन होता हूँ कुछ कहने वाला, 

वो- नाराज हो गया क्या 

मैं- नाराज होने वाली बात तो करती हो , दोस्त बोलती हो बस मानती नहीं हो 

वो- ऐसा क्यों कहते हो भला 

मैं- सही तो कहता हूँ , अपना समझती थो इतनी मनुहार नहीं करवाती 

- अच्छा चलो कोई और बात करो 

मैं- मुझे बात ही नहीं करनी 

वो- चल ये बता, मंजू से फिर मिला के नहीं 

मैं- आपने मिलने लायक छोड़ा ही कहा 

वो- क्या हुआ 

मैं- मंजू अब बात भी नहीं करती 

वो- क्या नहीं करती 

मैं- वो उस दिन आपने हमे पकड़ जो लिया था 

वो- अच्छा, जी तो क्या आप लोगो को ऐसे काम छुप के नहीं करना चाहिए थे 

मैं- अब मुझे क्या पता था की आप हो घर पर 

वो- वैसे तुम कब बड़े हो गए हमे पता ही नहीं चला पुरे छुपे रुस्तम हो बिमला, मंजू दोनों पे हाथ साफ कर दिया 

मैं- हाथ साफ़ नहीं क्या उन दोनों की भी मर्ज़ी थी 

वो- तो मैं क्या करती ऐसे तुम दोनों को नंगे होकर करते देख कर किसी भी घर वाले को गुस्सा तो आना ही था 

- क्या करते देख कर 

वो- बेशरम, तुझे पता तो है 

मैं- नहीं, आप बताओ 

वो- जाने भी दे 

मैं- बताओ ना 

वो- चुदाई 

जैसे ही चाची ने चुदाई कहा उनके गोरे गाल शर्म से बुरी तरह लाल हो गए आँखे नीचे हो गयी चेहरे पर हया का रंग देखते ही बनता था 

मैं- आप दो चार मिनट लेट आती तो बस काम हो ही जाना था 

वो- अच्छा जी, चलो छोड़ो इन बातो को अब तुम आराम करो मुझे कुछ काम करने है मिलती हूँ थोड़ी देर बाद में टाइम पास करने को कुछ था नहीं तो मैं सो गया
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12-29-2018, 02:39 PM,
#85
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
दूर दूर तक बस रेत ही दिख रही थी शाम ढल रही थी उस कुएँ में पानी तो था पर मैं उधर तक पहूँच पा रहा था नहीं तो उन कीकर के दो चार पेड़ जो की पता नहीं कैसे अपने वजूद को बचाए हुए थे उस रेगिस्तान में मैं उधर ही बैठ गया और सोचने लगा की तभी किसी की जानी पहचानी आवाज मेरे कानो में टकराई “प्यास लगी है क्या “

नजर घुमा कर जो मैंने देखा तो बंजारों के वेश में रति खड़ी थी हाथो में पानी का मटका लिए क्या खूब लग रही थी वो 

मैं- तुम यहाँ कैसे 

वो- जहा तुम हो वहा मैं भी तो हूँ 

मैं मुस्कुरा पड़ा 

रति- पानी पि लो प्यास लगी है तुम्हे 

मैं- तुम्हे देख लिया करार आ गया हर प्यास बुझ गयी 

वो- और जो मेरे मन के करार को लूट के ले गए उसका क्या 

मैं और रति उस ठंडी रेत पर बैठ गए और बाते करने लगे 

मैं- रति , तुम हो मैं हूँ और ये मेरे लबो पर जो बात है 

वो- जो बात लबो तक आ जाये उसे कह देना ही बेहतर होता है 

मैं- हां, पर जो बात तुमने पहले ही पढ़ ली है , जो बात तुम जानती हो , जो बात हमे पता है तुम्हे पता है उस बात को दोहराना भी नहीं चाहिए ना 

रति मेरी गोद में सर रख कर लेट गयी मैं उसकी उलझी जुल्फे सुलझाने लगा उसकी चोली में कैद उभारो का कातिलाना कटाव मेरे मन को भटकाने लगा जैसे सागर की लहरे किनारों से टकरा कर लौट जाती है वैसी ही जुस्तुजू में बंधा हुआ था मैं , दिल की वो अनकही बात मेरे होंठो पर आकर रुक सी जाया करती थी उसको बताना चाहता था की कितना प्यार उस से मैं करता था , उसे बताना चाहता था की दिल दीवानगी की किस हद तक उसको चाहता था , कितना टूटकर उसकी बाहों में बिखरना चाहता था मैं 

रति- किसी बारिश से भरे उमड़ते हुए बादल की तरह मेरे आगोश में अठखेलिया करते हूँवे- कह भी दो ना उस बात को जिसे सुनने के लिए ना जाने कब से मैं तरस रही हूँ 

मैं- दिल की बात को दिल को ही समझने दो ना 

वो- इज़हार क्यों नहीं करते हो 

मैं-इनकार भी तो नहीं किया है ना 

वो- तो इकरार भी कहा किया है 

मैं- तेरी मेरी ये छोटी सी कहानी , ये मोसम ये रुत मस्तानी, अब क्या इकरार करे क्या इज़हार करे मेरे दिल का हाल तुम जानो तुम्हारी धडकनों के हर एक साज़ को मैं अपने दिल का गीत बना लू, बस तुम हो बस मैं हूँ और ये झूमती हवा है जो मेरे प्यार की सदा को तुम्हारी सांसो में भरके महका रही है 

ये डूबते सूरज की जो हलकी सी तपिश है ना , ये जो केसरिया घटा लिपटी है उस तपते सूरज के चारो और ये मेरे प्यार का रंग है जिसमे तुम किसी उजली किरण की तरह रंग गयी हो , प्यार तो बस नाम है उस रूमानी लम्हे का जिसमे हम तुम एक दूजे के हो गए , पर तुम और मैं , हमारा रिश्ता प्यार ही नहीं एक अहसास है , हमारा रिश्ता वो महक है जो साँसों में बस गयी है, तेरा मेरा साथ कुछ ऐसा है की मेरी मुस्कान तुम्हारे लबो पर सजी है तेरे हर दर्द को मैं अपने होंठो पर गीत की तरह सजा लूँगा, मैं कोई मजनू नहीं, मैं कोई फरहाद नहीं ना मैं कोई आवारा आशिक मैं तो बस तुम हो , तुम तो बस मैं हूँ इतनी सी है तेरी मेरी कहानी , इतना है तेरा मेरा फ़साना 

जब जब तुम्हारा आँचल मुझे छु जाता है लगता है की जैसे बारिश से पहले बादलो की गडगडाहट से प्यासी धरती का दिल धड़क उठा हो, रति, जिस पल तुम्हे पहली बार देखा था जिस पल तेरी जुल्फों को संवारा था उसी पल से बस तेरा हो गया था मैं 

रति उठ कर मेरे गले लग गयी उसकी धड़कने मेरी धडकनों से टकराई, वो मेरी बाहों में थी मैं उसके आगोश में निगाहें निगाहों से कुछ कह रही थी मेरे हाथ उसकी पीठ पर थे उसकी चोली की डोरियो में उलझे, मेरे जन्मो से प्यासे लब अपनी प्यास बुझाने को रति के रसीले होठो की तरफ बढे ही थे , बस एक पल की ही दूरी थी की बस दूरी ही रह गयी थी, मुझे ऐसे लगा की किसी ने मुझे झिंझोड़ दिया हो आँख खुली तो पाया की कुछ नहीं था सिवाय मेरी उखड़ी हुई साँसों के और मेरे सूखे गले के प्यास पड़ी तेज लगी थी बदन पसीने से नहाया हुआ था 


मैंने अपने होशो हवास संभाले तो मेरी नजरो के सामने चाची को पाया ,जो कुछ भी मैं जी रहा था वो बस एक छलावा था जिसे हकीकत ने आइना दिखा दिया था अपनी उखड़ी हुई सासों को सँभालते हुए मैंने पानी माँगा कुछ घूँट इस बेस्वाद तरल की में न जाने क्या बात है , प्यास कितनी भी हो ये बुझा ही देता है 
चाची- क्या हुआ क्या बडबडा रहे थे कोई सपना देखा क्या 

मैं- ना कुछ नहीं 

मैं चुपचाप तौलिया उठा कर बाहर जाने लगा तो उन्होंने मुझे रोक लिया और बोली- कौन है वो जिसने मेरे बेटे की नींद इस तरह उड़ा रखी है , तुम्हे छुपाने की कुछ जरुरत नहीं है तुम्हारी इन बढ़ी हुई धडकनों ने बता दिया है की मेरा बेटा अब मेरा नहीं रहा 

मैं- चाची, बस एक सपना था आँख खुलते ही टूट गया इसमें क्या छुपाना क्या बताना 
मैं बाथरूम में घुस गया पर रति का जो मुझ पर असर था उस सपने की एक एक बात जैसे मेरे सामने ऐसे ही घूम रही थी मन विचलित सा होने लगा , हम जैसे खुद से जुदा से होने लगे थे हर पल लोगो में बेगाने होने लगे थे , ये प्यार तो नहीं था क्योंकि वो जो हो नहीं सकता मेरा उसके बारे में सोचना ही नहीं, बस एक ख्वाब की तरह उसको वक़्त की रेत में खो जाना ही सही था , पर रति से खुद जो जुदा कर भी तो नहीं प् रहा था ये जानते हुए भी की वो बस एक मोड़ था जो गुजर गया रास्ता लम्बा है बहुत मंजिल का कोई पता नहीं इस मुसाफिर को बस तलाश थी किसी सराय की 

अपने आवारा दिल को समझा कर मैं नीचे आया चाची मेरा ही इंतज़ार कर रही थी उन्होंने चाय के लिए पुछा तो मैंने मना कर दिया तो वो बोली- चलो तुम्हे आज कुछ ऐसा दिखा कर लाती हूँ जो तुमने पहले नहीं देखा फिर हम लोग घर से निकल पड़े ..

घर से निकल कर हम दोनों साथ साथ ही चलने लगे 

मैं- चाची , हम कहा जा रहे है 

वो- चल तो सही वहा पहूँच के अच्छा लगेगा तुझे 

फिर कुछ नहीं पुछा मैंने दरअसल मेरी निघाहे चाची से हट नहीं रही थी, हलके गुलाबी रंग के कुर्ती- सल्वार में बहुत ही गजब माल लग रही थी वो जो कोई भी उन्हें देखता एक बार तो अरमान मचल ही जाते उसके मन में , उस ड्रेस का कपडा भी ऐसा नहीं था की उनके जोबन का भार उठा सके, उनकी अन्दर पहनी हुई सफ़ेद ब्रा बिलकुल साफ़ दिख रही थी मुझे , मेरा लंड गुस्ताख होने लगा पर अपना जोर अब हर चीज़ पर तो चलता था नहीं 

चाची अपने जोबन के बोझ तले दबी थी मैं अपनी हसरतो के बोझ तले, असल में हम दोनों बस सुलग रहे थे अपने आप में करीब बीस मिनट तक खेतो के बीच चलने के बाद हम एक ऐसी जगह पर पहूँचे जहा की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी , वो नानाजी का आमो का बाग़ था दूर दूर तक अब जहा मेरी नजर पड़े बस आम ही आम कुछ आदमी औरते वहा काम कर रहे थे वो लोग चाची को जानते थे तो दुआ सलाम हुए चाची ने उनसे बस इतना ही कहा की हम लोग जरा बाग़ घूमके आते है और मुझे लेकर आगे को बढ़ गयी 


थोड़ी दूर जाने के बाद वातावरण में बस ख़ामोशी थी , जो हौले हौले से हवा चल रही थी वो पेड़ो को जैसे चूम कर जा रही थी कुछ सूखे पत्ते जमीं पर पड़े थे हमारे कदमो के नीचे आने से वो च्र्र्र चर्र कर रहे थे हम लोग थोडा सा आगे और बढे तो मैं बोला- चाची, आपने पहले कभी बताया नहीं की आपका बाग़ है आम का 
वो- मैंने सोचा की तुम्हे देख कर अच्छा लगेगा तो सीधा ले ही आई 

मैं उनकी मोटी छातियो को निहारते हुए- आम तो खिलाया नहीं 

वो हस्ते हुए- आम भी खिला दूंगी पहले बाग़ तो देख लो अच्छे से चलो तुम्हे कुछ दिखाती हूँ जब मैं छोटी थी तो उधर बहुत जाया करती थी 

मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था की ये बाग़ है कितना बड़ा मैं चुपचाप उनके पीछे पीछे चलता गया उनकी लचकती गांड को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए ,पेड़ औ घने होते जा रह थे अँधेरा बढ़ रहा था करीब दस मिनट बाद जो मैंने देखा वो नजारा पहले कभी नहीं देखा था ये एक बहुत ही सुन्दर सा बगीचा था काफ़ी तरह के फूल खिले थे ऐसा लग रहा था की जैसे हजारो रंगों की चादर फैली हो मेरे आस पास आँखे मंत्रमुग्ध होने लगी मेरी मुझे विश्वाश नहीं था की बाग़ के इस तरफ इतना सुन्दर बगीचा होगा 

चाची- इसे कभी मैंने अपने हाथो से बनाया था पिताजी आज भी मेरी याद समझ कर इसकी देखभाल करते है 

मैं मुस्कुरा दिया 
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12-29-2018, 02:39 PM,
#86
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरे कानो में ऐसी आवाज आ रही थी की जैसे पानी बह रहा हो पूछने पर पता चला की बगीचे से थोड़ी दूर ही नदी है तो मेरी उत्सुकता बढ़ी उधर जाने की पर आगे कंटीले तारो से बाड़ की हुई थी तो इधर से जाना मुमकिन ना था , 

मैं- चाची नदी में नहाने का जी कर रहा है

वो- अभी तो मुमकिन नहीं हो पायेगा ऊपर से सांझ ढल गयी है तो अँधेरा हो जायगा सेफ नहीं है , कल मैं तुम्हारे साथ नदी पे चलूंगी 

मैं खुश हो गया 

काफ़ी देर तक उधर बैठने के बाद हम लोग वापिस हो लिए तो चाची बोली- आम खायेगा 

- हां, उधर वो ताजे आम रखे थे उधर से घर ले चलेंगे फिर खायेंगे आराम से 

वो- अरे पगले, देख इन पेड़ो पर कितने रसीले आम झूल रहे है , और वैसे भी जो मजा पेड़ से आम तोड़कर खाने में है वो और कहा 

- बात तो सही है पर मुझे पेड़ पर चढ़ना आता नहीं है 

चाची-बुद्धू, चढ़ने की क्या जरुरत है आस पास कोई पत्थर देख उस से तोड़ ले 

मैंने कोशिस की पर कोई बड़ा पत्थर नहीं मिला 

तो चाची बोली- मायूस क्यों होते हो , देखो वो सामने वाला पेड़ थोडा सा छोटा है औरो से आम भी नीचे लगे है उधर चलते है 

मैंने उछल कर तोड़ने की कोशिश की पर हाथ आ नहीं रहे थे आम 

चाची हसने लगी और बोली- क्या हुआ 

मैं- हाथ नहीं आ रहे है और आपको हंसी आ रही है 

वो- अच्छा, बाबा, नहीं हस्ती, एक काम कर मुझे उठा कर ऊपर कर मैं तोडके देती हूँ 

मैं- इतनी भारी को मुझसे ना उठाया जायेगा 

वो- अच्छा जी, मंजू को तो झट से गोद में उठा लेता है चल बहाने मत बना आम खाना है तो उठा मुझे 
आज उनकी आँखों में , उनकी बातो में एक अलग सी बेतकल्लुफी लग रही थी जैसे रति की उस सादगी ने मेरा दिल धड़का दिया था वैसे ही कुछ कुछ फील हो रहा था मुझे, मैं चाची को अपनी बाहों में उठाने लगा तो मेरे हाथ उनकी मक्खन सी चिकनी जांघो पर कुछ ज्यादा ही जोर से कस गए तो वो सीत्कार उठी और बोली- आराम से उठा ना क्या करता है 

मैं फिर से उठाने लगा उनको जांघो स थाम के ऊपर किया तो जल्दी ही उनके दोनों चूतड़ मेरे हाथो में आ गए मैंने उन्हें वहा से थाम लिया वो ऊपर को उचकने लगी आम तोड़ने को , बेखुदी सा अहसास होने लगा था मुझे , बड़े प्यार से मैंने उनकी गोल मटोल गांड को मसल दिया तो वो कसमसा गयी चाची आम तोड़ने लगी अब जिस तरह से मैंने उन्हें ऊपर किया हुआ था तो उनका पेट मेरे मुह पर सटा हुआ था उनके बदन से आती मनमोहक खुसबू मुझ पर अपना जादू चलाने लगी , मैं बेकाबू सा होने लगा मेरा लंड कपड़ो की कैद में मचलने लगा 

वो- हाथ पहूँच पा नहीं रहा है थोडा सा और उठा जरा 

मैंने जितना हो सके उतना ऊपर किया और मेरे इस प्रयास के साथ अब सिचुएशन ये बनी की उनकी चूत वाला हिस्सा बिलकुल मेरे होंठो पर सटा हुआ था वहा से निकलती गर्मी मुझे साफ़ साफ़ अपनी नाक और चेहरे पर महसूस हो रही थी , एक बड़ी ही अच्छी खुशबू आ रही थी , बिना कुछ सोचे समझे मैं अपनी नाक को उस फूली हुई जगह पर रगड़ने लगा चाची मेरी इस हरकत से सकते में आ गयी तो वो मचलते हुए बोली-“क्या करते हो आराम से पकड़ो मुझे कही मैं गिर ना जाऊ ”

मैं- पकड़ तो रखा है आप आम तोड़ो तो सही 

वो- तोड़ तो रही हूँ , देखना कही गिरा मत देना 

मैं- खुद गिर जाऊंगा पर आपको नहीं गिरने दूंगा 

मेरे हाथ उनकी जांघो के पिछले हिस्से पर किसी सांप की तरह रेंग रहे थी जबकि मेरी नाक उनकी चूत में घुसने को मरी जा रही थी उफ़ ये दिल्लगी कैसा इम्तिहान ले रही थी , मुझसे रहा नहीं गया मैंने अपने दांतों से हलके से उनकी चूत वाले फूले हिस्से पर काट लिया , चाची के बदन में आई हलकी सी कम्पन को मैंने किसी भूचाल की तरह महसूस किया उनका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरने को हुई पर मैंने अपनी बाहों में उनको थाम लिया , आँखे आँखों से टकराई दो पल में ही आँखे ना जाने आँखों स क्या कह गयी उस एक पल में जैसे दिल ने उनके दिल को कोई संदेसा भेज दिया हो 

बड़ी नजाकत से वो अपनी गांड को मेरे खड़े लंड से रगड़ते हुए उतरी उनकी साँसे जैसे कुछ ज्यादा तेज चल पड़ी थी हवा कही थम सी गयी थी पसीना कान के पीछे से बह चला था वो मेरी बाहों से उतरी और आगे तो चलने लगी की तभी मैंने उनके हाथ को थाम लिया और उनको खीच लिया अपने आगोश में साख से टूटी किसी डाली की तरह वो आ लगी मेरे सीने से 

वो धीरे से फुसफुसाते हुए- क्या कर रहे हो 

मैं उनके लबो पर ऊँगली रखते हुए- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhh 

मैंने अपना हाथ उनकी कमर पर कसा और अपने चेहरे को उनके सुर्ख हो गए चेहरे पर झुका दिया , हम दोनों के होठ इतने पास थे की एक दुसरे की गरम साँसे आपस में उलझने लगी थी उनके होठ हलके हलके से कांपने लगे थे गुलाबी होंठो पर सजा हुआ काला तिल देख कर मेरा मन ललचाने लगा चाची की तेज हो गयी धड़कने उस वीराने में जैसे गूँज रही थी , मेरे होठ बस उनके सुर्ख लबो को छु ही पाए थे की किसी के आने का आभास हुआ तो हम अलग हो गए , उन दो चार पलो में बहुत कुछ हो गया था चाची के माथे पर पसीना छलक आया था उन्होंने अपनी चुन्नी से पौंछा और बड़ी गौर से मेरी तरफ देखने लगी , तभी एक नीलगाय कुछ दूरी से निकल गयी तो ये थी जिसके आने की आवाज सुनाई दी थी 

मैं- चाची 

वो- देर हो रही है चलते है 

फिर वो कुछ नहीं बोली ना मैं कुछ बोला , बाग़ की इस साइड पर आकर हमे हाथ पाँव धोये पानी वगैरा पिया चाची यहाँ पर नार्मल व्यवहार कर रही थी एक झोले में उन्होंने कुछ आम रख लिए और फिर हम घर के लिए निकल पड़े ,घर पर नाना नानी भी आ चुके थे तो नानी का हाल पूछा मैंने और बाते करने लगा चाची अन्दर चली गयी अगले कुछ घंटे ऐसे ही गुजर गए खाना पीना खाकर करीब रात को दस बजे मैं और चाची ने छत पर डेरा जमा दिया 

मैं- चाची, कल चलोगे मेरे साथ 

वो- इतनी जल्दी क्या है 

मैं- मुझे जल्दी है 

- मुझे लगता है इस बारे में हम बात कर चुके है 

- क्या बात कर चुके है आपका अपना घर है कब तक सचाई से भागोगे 

वो- सच से नहीं आने वाले कल से भागती हूँ 

मैं- क्या है आने वाला कल मुझे भी बताओ 

वो- मुझे डर लगता है 

मैं- आप चाचा की बिलकुल फिकर मत करो वो आपको हाथ भी नहीं लगा पायेगा 

वो- उस से नहीं , खुद से डर लगता है 

मैं- मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है 

वो- तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था 

मैं- तो आप भी मुझे अपना नहीं समझती , 

वो- अपना मानती हूँ तभी तो कह रही हूँ 

मैं- तो फिर चलो ना घर , 

वो- मुझे सच में बहुत अजीब लगता है देखो मेरा अभी अभी इक रिश्ता टूटा है , उम्मीद टूटी है और तुम भी हो जिसे देख कर ऐसा लगता है की पता नहीं कब से जुडी हुई हूँ तुमसे 

मैं- अपनी दोस्ती है ही ऐसी 

वो- तुम भी जानते हो वो दोस्ती नहीं है , वो प्यास है नजरो की प्यास है रिश्तो की ये भूख है जिस्मो की और मुझमे इतनी हिम्मत नहीं है की मैं अपने इस रिश्ते को कलंकित करू उनकी तरह , मेरे कोई औलाद नहीं हुई जब से उस घर में ब्याहता बनके गयी , सगे बेटे से भी ज्यादा तुमको चाहा मैंने, पता नहीं चला की कब तुम इतने बड़े हो गए और पिछले कुछ दिनों में तो मैं तुम्हारे इतना करीब आ गयी हूँ जितना तुम्हारे चाचा से कभी ना आ सकी 

बेटे , पर मुझे लगता है की कही मैं बहक ना जाऊ , पल पल मैं तुम्हे ................ 

वो खामोश हो गयी 
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12-29-2018, 02:39 PM,
#87
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं- चाची, आप सही कहती हो जब से आप घर आई आपने ही मेरी देख रेख की है कब मुझे भूख लगी कब प्यास लगी हर चीज़ का आपने ध्यान रखा और मेरा रब गवाह है की मैंने भी आपको कभी माँ से नीचे का दर्जा नहीं दिया पर उसके साथ साथ आप मेरी दोस्त है और अपने दोस्त का इस मुश्किल घडी में मैं हाथ नहीं छोड़ सकता 

वो- पर बेटे, इस रिश्ते का हाल भी बिमला और तेरे चाचा जैसा ही है , दोस्ती ठीक है पर अपनी माँ को कैसे प्रेमिका बना पाओगे तुम , क्या ये पाप नहीं होगा 

मैं- आपने भी मुझे औरो की तरह समझा नहीं, क्या बस जिस्म की प्यास ही सब कुछ होती है नहीं , कुछ रिश्ते ऐसे होते है की उनको कोई नाम नहीं दे सकते पर उनकी अहमियत नाम वाले रिश्तो से बहुत ज्यादा होती है , आपका और मेरा रिश्ता भी ऐसा ही है जैसे चंदा और चकोर का , जैसे प्यासी धरती और बरसते बादल का, अब आप ही बताओ कैसे छोड़ूगा आप को , आप चाहे इसे मेरी प्यास समझो, मेरी हवस जानो या जो आप को लगे वो समझो पर सच ये है की जहा आप हो वहा मैं हूँ, अगर आप नहीं आई तो आपकी कसम खाके कहता हूँ की उस घर में मैं कभी पैर नहीं रखूँगा 

चाची- ये क्या कह दिया तूने , घर नहीं जायेगा तो कहा जायेगा 

मैं- जहा आप रहोगे वही रह लूँगा, दो रोटी ही तो चाहिए आप दे देना 

चाची- तू सच में बड़ा हो गया है रे 

मैं- तो अपना लो न मुझे और उस घर को भी 

वो- मुझे सोचने दे कुछ 

चाची और मैं इमोशनल हो गए थे उनकी आँखों में पानी बस घटा बनकर बरसने ही लगा था 

वो- पर उस घर में मेरा जी लगेगा नहीं 

मैं- भरोसा रखो इतनी खुशिया डाल दूंगा आपके आँचल में की समेट नहीं पाओगे 

वो- तू समझता क्यों नहीं मेरी मुस्किल 

मैं- आप मेरे प्रेम को क्यों नहीं समझती 

वो- प्रेम और मुझसे 

मैं- क्यों नहीं हो सकता आप से 

वो- इतनी देर से क्या समझा रही थी तुझे मैं 

मैं- मुझे कुछ नहीं पता बस इतना पता है की बस थक गया हूँ मैं परेशान हूँ बहुत अपना लो मुझे अपनी बाहों में सहारा दे दो ना 

चाची की आँखे हलकी सी डबडबा आई कुछ आंसू झर आये वो मेरे सीने से लग गयी मैंने उनको बाहो में भर लिया उन्होंने अपने चेहरे को ऊपर किया और मेरी आँखों में देखने लगी , मैंने बिना कुछ कहे हौले से अपने सूखे लबो को उनके गीले लबो पर रख दिया उनके होठ मेरे होठो से जुड़ते चले गए ये उनका और मेरा पहला चुम्बन था पर ये सब कुछ अलग सा था , इसमें कोई वासना नहीं थी, कोई हवास नहीं थी, बस कुछ था तो एक भरोसा , कुछ था तो एक आस 

धीमे धीमे मैंने उनके होंठो को अपने मुह में भर लिया था इस किस में जो त्रीवता थी ऐसी मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी अपनी तेज हो गयी साँसों को संभालते हुए चाची मुझसे अलग हुई, और अपनी छाती पर हाथ रख कर सांस लेने लगी मैं वाही खड़ा रहा , वो चांदनी रात गवाह थी उस रिश्ते की जो अभी अभी जुड़ा था जिसका कोई नाम नहीं था पर वजूद बहुत बड़ा था 


कुछ देर तक हम लोग ऐसे ही एक दुसरे को निहार ते रहे शर्म हया से उनके चेहरे पर एक नूर सा आ गया था मैंने फिर से उनको अपनी बाहों में भर लिया और चूमने लगा चाची मेरी बाहों में मचलने लगी ऐसे मीठे होठ मैंने कभी भी नहीं चखे थे पहले जैसे किसी ने चासनी ही मेरे मुह में घोल दी हो उनका थूक मैं गटकने लगा पर तभी उन्होंने मुझे अपने से अलग कर दिया

मैं कुछ नहीं बोला बिस्तर पर जाकर लेट गया थोड़ी देर बाद वो भी मेरे पास लेट गयी मैं उनके मुलायम पेट पर हाथ फिराने लगा अपनी ऊँगली उनकी नाभि में डालने लगा तो वो बोली- शैतानी मत करो चुप चाप सो जाओ आराम से 

मैं कुछ कहने ही वाला था की तभी लाइट चली गयी तो नाना- नानी भी ऊपर आ गए फिर कुछ बात कर नहीं पाया चाची से मैं , अब नाना नानी भी थे तो बस झक मारके सोना ही था रात थी कट ही गयी किसी तरह से सुबह हुई काफ़ी दिनों बाद मैंने चाची को फिर से पहले की तरह मुस्कुराते हुए देखा मैं बात करना चाहता था उनसे पर नाना नानी के रहते मौका कुछ मिल रहा नहीं था अब किया क्या जाये ऐसे ही उधेड़बुन में दोपहर हो गयी तो मैंने चाची से कहा की मैं नदी में नहाना चाहता हूँ तो व् बोली- चलते है फिर और हम वापिस बाग़ की तरफ हो लिए 


वक़्त बड़ी तेजी से करवट बदलता हुआ मुझे उस राह पर ले चल पड़ा था जिसकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी ऐसे लगता था की जैसे पता नहीं कितने जन्मो से मैं चाची से जुडा हुआ हूँ , अगर थोड़ी देर भी उनको ना देखता तो लगता की जैसे कुछ छुट रहा हो, बाते करते हुए खट्टी मिट्ठी हम लोग बगीचे में पहूँच गए पर कल की अपेक्षा आज यहाँ पर बस एक दो औरते ही काम कर रही थी , पूछने पर पता चला की आज आम की खेप आसपास की शेहरो में भेजी गयी है थोडा वक़्त उधर गुजार कर मैं और चाची एक लम्बा चक्कर लगा कर नदी की तरफ हो लिए 

दिल में नदी में नहाने को लेकर अजीब सा कोतुहल सा छाया हुआ था नहर में तो काफ़ी बार नहाया था पर हमारे गाँव में नदी थी नहीं तो मौका मिला नहीं था कभी ऐसा , जल्दी ही हम नदी के उस साइड पे पहूँच गए इधर एक तरफ जंगल शुरू हो रहा था तो दूसरी तरफ पहाड़ थे, फिर थोडा सा साइड में बाग़ का पिछला हिस्सा था ,इस तरफ पेड़ ज्यादा होने की वजह से धुप पूरी आ नहीं रही थी तो ठण्ड भी थी और उजाला भी कम कम ही था , पर नजारा बड़ा ही मस्त था मेरा तो मन ही मोह लिया उस नज़ारे ने शांत पानी में सूरज की छाया क्या खूब फब रही थी 


चाची एक पेड़ की छाया में बैठ गयी और बोली- जाओ नहा लो पर थोडा ध्यान रखना नदी की गहराई कुछ जगह पर उम्मीद से ज्यादा भी हो सकती है 

मैं- क्या इस नदी में मगरमच्छ या और जानवर भी है 

वो- ना कभी सुना तो नहीं , पर मछलिया तो होंगी 

मैं-चलो कोई नहीं 

मैंने जल्दी से अपने कपडे उतारे और छपाक से पानी में कूद गया , ठन्डे पानी में जो गोता खाया मजा ही आ गया काफ़ी एर तक मैं नहाता ही रहा फिर मेरी नजर चाची पर गयी तो मैंने इशारे से उनको भी पानी के अन्दर आने को बोला पर उन्होंने हाथ हिला कर मना कर दिया , तो मैं पानी से निकला सफ़ेद रंग के कच्छे में मेरा कला लंड बड़ा खतरनाक दिख रहा था और पता नहीं क्यों थोडा सा फूल भी गया था मैं चाची के पास गया और बोला 

मैं- चाची, आप भी आजाओ ना मजा आएगा 

वो- ना रे, मेरा मन नहीं है और वैसे भी इधर खुले में मैं कैसे नहा सकती हूँ 

मैं- खुला कहा है चाची, वैसे भी अभी इधर सुनसान में कौन आएगा भरी दोपहर में 

वो- तू समझा कर मैं ऐसे नहीं नहा सकती 

- ठीक है अगर आप नहीं आ रही तो मैं भी नहीं जा रहा पानी में मैं मुह फुला कर बैठ गया 

चाची- आजकल बहुत जिद्दी हो गया है तु, लगता है तेरे कान खीचने पड़ेंगे 

मैं- कान खीच लेना पर चलो न मेरे साथ नदी में 

चाची- अच्छा, बाबा ठीक है मैं भी आती हूँ पर मैं तो दुसरे कपडे लाई ही नहीं तो नहाके क्या पहनूंगी 
मैं-यही कपडे पहन लेना 

वो- पर ये तो गीले हो जायेंगे 

मैं- तो बिना कपड़ो के नहाने आ जाओ इधर कौन है वैसे भी मेरे सिवा 

वो- बड़ा बदमाश हो गया है तू आजकल शर्म नहीं आयेगी तुझे अपनी चाची को बिना कपड़ो के देखते हुए 
मैं- चाची को देखूंगा तो शर्म आयेगी पर दोस्त को तो देख सकता हूँ ना 

वो- तेरी दोस्ती एक दिन मेरी जान लेके छोड़ेगी 

उनके पास आते हुए- आपकी जान में ही तो मेरी जान है बस अब बाते न करो जल्दी से चलो पानी में 
वो- तू चल मैं थोड़ी देर में आती हूँ 

चाची ने पास में रखा तौलिया उठाया और उसी पेड़ के पीछे चली गयी 

मैं वापिस पानी में आ गया , थोड़ी देर बाद जब चाची शर्माती हुई सी पेड़ के पीछे से निकली तो क्या बताऊ पानी के अंदर मेरा लंड कब झटके खाने लगा पता ही नहीं चला मेरी नजरे बस उन पर ही जम गयी चाची ने अपने बदन पर वो छोटा सा तौलिया ही लपेटा हुआ था जो बस नाममात्र को ही उनके यौवन को छुपा पा रहा था चाची ने उसे अपने उभारो से लेकर कुलहो तक किसी तरह से लपेट रखा था , बाकि तो सब कुछ खुल्ला पड़ा था उनकी जांघे पूरी की पूरी धुप में चमक रही थी , चाची शर्मो हया से लाल हुई धीरे धीरे अपने कदमो को मेरी और बढ़ा रही थी उनकी हिलती चूचिया जैसे मुझे निमंत्रण दे रही थी की आज इसी नदी किनारे जी भर कर मसल डालू उनको 


खरबूजे सी बड़ी बड़ी चूचिया जो उस तौलिये की कैद को तोड़ने को बेसब्र हो रही थी, मेरा लंड पानी में आग लगाने को मचलने लगा बुरी तरह से चाची आकर किनारे पर खड़ी हो गयी और मेरी और देखने लगी , मैंने उन्हें अन्दर आने का इशारा किया उन्होंने अपना पाँव आगे को बढ़ाया पानी की मस्तानी लहरों ने जैसे ही उनके पांवो को चूमा चाची उस ठन्डे चुम्बन से हलकी सी कांप गयी , अपनी पायल को खनकाती हुई वो पानी में उतरने लगी वो मेरी और आने लगी 

जल्दी ही हम दोनों एक दुसरे के सामने कंधे तक पानी में डूबे हुए खड़े थे
नदी का पानी बहुत शांत था ऊपर से पर आग लगी हुई थी ये बस मैं ही जानता था , मेरा दिल बड़ी जोरो से धडकने लगा था मैं अपनी अंजुली में पानी लिया और चाची के चेहरे पर डालने लगा वो बोली- “क्या करते हो ”

मैं- चाची अब आपके साथ ही अठखेलिया करूँगा ना 

वो भी मेरी तरफ पानी बिखेरने लगी कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर मैं साबुन ले आया और पास की चट्टान पर बैठ के साबुन लगाने लगा मैंने गौर किया की चाची की निगाहें बार बार मेरे लंड पर ही जा रही थी चूँकि मैंने सफ़ेद कच्छा पहना हुआ था तो गीला होने से अन्दर का सामन पूरी तरह से दिख रहा था रगड़ रगड कर साबुन लगाने के बाद मैंने कहा चाची आप भी साबुन लगा लो तो वो भी चट्टान पर आ गयी मैं पानी में डुबकी लगाने लगा 

चाची ने जो तौलिया लपेटा हुआ था वो पूरी तरह से भीगा हुआ उनसे लिपटा पड़ा था चाची के चुचक साफ़ साफ़ नुमाया हो रहे थे, मैंने पानी में ही अपने लंड को कच्छे से बाहर निकाल लिया और धीरे धीरे से अपना हाथ उस पर फिराने लगा , चाची चट्टान पर अपनी एडिया घिसने लगी तो उनके पैर थोड़े से खुल गए और उनकी हलके हलके बालो से भरी गहरे गुलाबी रंग की योनी मुझे दिखने लगी, मेरा हाल बुरा होने लगा, गला सूखने लगा मेरी मुट्ठी में कैद मेरा लंड और गरम होकर खूंखार तरीके से लहराने लगा मेरा दिल तो कर रहा था की चाची की चूत में घुसा ही दू इसको 


मेरी निगाह जैसे उनकी योनी पर जब सी गयी थी अब चाची ने अपने हाथो पर साबुन लगाना शुरू किया फिर अपने पेट पर उनके मखमली पेट पर नरम साबुन फिसल रहा था अब उन्होंने अपने घुटनों को थोडा सा मोड़ा और साबुन लगाने लगी मेरे लिए तो और मौज हो गयी अब मैं उनकी योनी को और अच्छे से निहार सकता था ,कभी कभी आँखों को भी सुख देना चाहिए ना, फिर चाची ने अपनी बगलों पर साबुन लगाना शुरू किया उनकी बगलों में हलके हलके से बाल थे मैं वो देख कर रोमांचीत होने लगा मेरे मन का प्रत्येक तार झन झन करने लगा था 


अब चाची ने अपने गीले बालो को साबुन लगाना शुरू किया मेरा हाथ पानी की अन्दर लंड पर तेजी से चल रहा था की तभी चाची भी पानी में उतर गयी और गोता लगाने लगी , इस बार जैसे ही चाची ने डुबकी लगाई तौलिया खुल गया और इस से पहले की वो संभलती वो बहाव में बह गया मैंने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया 

चाची- हाय रे, अब मैं पानी से बहार कैसे निकलूंगी 

मैं- चाची, टेंशन मत लो वैसे भी इधर अपन दोनों तो है ही इसी बहाने से मैं आपके दीदार कर लूँगा 

चाची- तुझे तो बस बहाना चाहिए, आखिर तुझे मुझमे क्या दीखता है ऐसा 

मैं- कभी मेरी नजर से खुद को देखो जान जाओगी 

वो मेरे पास आई और बोली- ऐसी किस नजर से देखता है मुझे तू 

मैं-बस नजर है अपनी अपनी 

वो- चल बहुत देर हो गयी है फटाफट से नाहाले फिर घर भी तो चलना है 

मैं- चाची अभी कैसे नहा लू , अभी तो आपने ठीक से साबुन भी नहीं लगाई है 

वो- लगा तो ली , 

मैं- कहो तो मैं लगा दू आपको साबुन 

वो- तू क्या क्या सोचता रहता है , आजकल तेरी डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है 

पर मैंने चाची की बात को अनसुना कर दिया और उनको घुमा दिया अब उनकी पीठ मेरी तरफ थी मैंने अपने हाथ में साबुन लिया और पानी के अन्दर से ही उसको चाची के पेट पर रगड़ने लगा उत्तेजना से मेरे हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे जब मैंने अपनी ऊँगली उनकी नाभि में घुसाईं तो चाची सिसक सी उठी और थोडा सा पीछे को हुई और तभी मेरा तन तनया हुआ लंड उनके मुलायम कुलहो से जा टकराया चाची जल्दी से आगे हुई तो मैंने उनकी कमर को पकड़ा और वापिस से उनको खुद से सटा दिया

चाची- ये मेरे पीछे क्या चुभ रहा है 

मैं- पता नहीं आप ही देख लो ना 

मेरा लंड उनकी गांड की दरार पर लगातार रगड़ खा रहा था पर चाची सबकुछ जानते हुए भी अंजान बन रही थी मैंने अब अपने हाथ को ऊपर की तरफ किया और चाची के उभारो पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया , चाची ने एक मीठी सी आह भरी और अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमाते हुए बोली-“आह, बहुत गुसाखिया करने लगे हो तुम आजकल, ये शरारते ठीक नहीं है तुम्हारी ”

मैं उनके बोबो को मसलते हुए-ओफ्फ, अब क्या अपनी दोस्त पर इतना हक़ भी नहीं है मेरा 

चाची अपने मोटे मोटे चुतड को मेरे लंड पर घिसते हुए बोली- ये दोस्ती महंगी पड़ने वाली है मुझे 

मैं- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhhs चाची , कुछ मत बोलो बस मुझे महसूस करने दो 

नदी के बहते पानी में हमारे दो जवान गरम जिस्म अपनी आग में झुलस रहे थे दिल रह रह कर मचल रहा था मैं हौले हौले से चाची की दोनों छातियो को दबा रहा था दोनों छाती पूरी तरफ से फूल कर गुब्बारा हो गई थी मैं काफ़ी देर से अपने लंड को उनकी गांड पर घिस रहा था तो चाची ने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोली और मेरे लंड को अपनी जांघो के बीच में दबा लिया उनकी गरम जांघो की गरमी से ही मैं तो होश भूलने लगा , 

मैं- कैसा लग रहा है 

वो- उम्फ्ह, ठीक लग रहा है 

मैंने अब थोडा सा और आगे को बढ़ने को सोचा और चाची की चूत पर हाथ रख दिया और चूत को सहलाने लगा तो चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- कुछ तो बाकी रहने दे, अभी कुछ गैरत बाकी है मुझमे 

मैं- चाची, करने दो न मुझे प्यार, मैंने वादा जो किया है आपको हर ख़ुशी देने का 

चाची- पर मुझमे अभी भी कुछ संकोच है , मुझे थोडा समय चाहिए सबकुछ इतना जल्दी हो रहा है की मुझे लगता है बस यही पर रुक जाना चाहिए 

मैं अपने दुसरे हाथ से उनकी कोमल चूची को मसलते हुए- ठीक है चाची पर मुझे एक किस करना है है 

वो- ठीक है 

वो मेरी तरफ घूमी और अपने चेहरे को मेरे मुह पर झुकाने लगी तो मैंने उनको रोक दिया और बोला- यहाँ नहीं 

तो वो बोली- फिर कहा 

मैं- नीचे वाली जगह पर 

मेरी ये बात सुनते ही चाची बुरी तरह से शर्मा गयी, उनका पूरा मुह लाल हो गया पानी में होने के बावजूद भी उनके माथे से पसीने की बूंदे चूने लगी , 

वो- ये तू क्या बोल रहा है 

मैं उनकी आँखों में आँखे डालता हुआ- चाची, मेरा बहुत मन है उसको देखने का प्लीज बस एक चुम्बन करने दो वहा पर , 

वो कुछ नहीं बोली चुपचाप खड़ी रही तो मैंने उनको खीचा और चट्टान की तरफ ले आया इधर पानी कम था थो चाची कमर तक नंगी दिख रही थी मैंने देखा की मेरे हाथो की रगड़ से उनके बोबो पर लाल निशाँ हो गए थे 

चाची- ये तेरी उलजलूल हरकते 

मैंने अपनी ऊँगली उनके होंठो पर रख दी और उनको पानी से बाहर निकाल दिया वो अब पूर्ण रूप से नंगी मेरी आँखों के सामने खड़ी थी उन्होंने एक हाथ अपनी योनी पर रख लिया और छुपाने की कोशिश करने लगा इधर मैं भी पानी से बाहर निकल आया चाची की नजर मेरे खड़े लंड पर पड़ी जो चूत के लिए बड़ा लालायित हो रहा था 

मैं- ऐसे क्या देख रही हो 

ये सुनकर चाची झेप गयी 
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12-29-2018, 02:39 PM,
#88
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने उनको चट्टान पर बिठा दिया और उनकी जांघो को चौड़ा कर दिया कामरस में डूबा हुआ उनका योनी प्रदेश मेरी आँखों के सामने खुल्ला पड़ा था मैंने अपने होठो पर जीभ फेरी और अपने सर को चाची की जांघो के मध्य घुसा दिया मेरी गरम साँसों को अपनी योनी पर महसूस करते ही चाची के बदन में हलचल मचने लगी, uffffffffffffffff क्या खुशबु आ रही थी उनकी योनी में से वो जो हलकी सी गुलाबी रंगत थी ना कसम से मन मोह गयी थी मेरा मैं अपनी नाक चूत की दरार पर रगड़ने लगा तो चाची के चुतड हिलने लगे 
मैंने उनकी दोनों जांघो को अपने हाथो से थामा और अब अपनी जीभ को बह़ार निकाल कर चाची की

बस मैं चाची की योनी को छूने ही वाला था की तभी ........

तभी मेरे कानो में गायो की आवाज आई, शायद कोई चरवाहा पशुओ को पानी पिलाने नदी की तरफ आ रहा था चाची भी भांप गयी थी वो नंगी ही उस पेड़ की तारफ भागी जहा उनके कपडे रखे थे मैं भी दोड़ लिया , 

चाची उस पेड़ के पीछे जल्दी से सलवार पहनते हुए बोली-“ देखा मैंने पहले ही कहा था की कोई ना कोई आ निकलेगा पर तुम तो सुनते ही कहा हो मेरी ”

जल्दबाजी में चाची अपनी ब्रा और कच्छी पहननी भूल गयी थी तो वो मैंने उठा कर अपनी जेब में रख ली अब गीले बदन पर कपडे और अन्दर कुछ नहीं पहना तो चाची और भी मस्त लगने लगी मैंने उनकी गांड को मसल दिया तो वो मुझे घूरने लगी फिर हमने एक चक्कर लगाया और बाग़ में घुस गए 

चाची-आज तो बच गयी वर्ना नंगी हालात में कोई न कोई देख लेता 

मैं- आप खामखा फिकर कर रहे हो कुछ नहीं होता 

वो- सबको तुम्हारी तरह समझा है क्या मत भूलो मेरा गाँव है 

मैं- मुझे तो इतना याद है की आप मेरी हो इसके सिवा कुछ और याद करने की मुझे जरुरत नहीं 
बाग़ का ये हिस्सा थोडा सा अजीब सा था इधर आम का एक भी पेड़ नहीं था बल्कि सफेदे के, नीम के पेड़ लगे हुए थे शायद इस हिस्से को लकडियो के लिए छोड़ा गया होगा, मैं और चाची वही थोड़ी देर के लिए बैठ गए 

मैं- चाची , जो काम नदी में ना हुआ इधर कर लू क्या 

वो- पागल हुआ है क्या 

मैं- बस एक किस की ही तो बात है 

वो- समझा कर 

मैं- बस एक किस 

वो- चल होंठो पर कर ले 

मैं- ना नीचे ही करूँगा 

वो- तू जान लेकर रहेगा मेरी 

मैं- चाची देखो इधर कितने घने पेड़ है सुनसान पड़ा है ऐसे लगता है जैसे मुद्दतो से कोई नहीं आया इधर मान भी जाओ ना 

चाची- कहा ना नहीं देख वैसे भी देर बहुत हो गयी है मेरे भैया भी आज आनेवाले है तो अभी घर चलते है 
अब मैं क्या कर सकता था तो मन मार कर घर आ आना पड़ा , फिर दोपहर का खाना खाकर मैं सो गया तो फिर शाम को ही उठा , मैंने देखा की मामाजी आ गए थे घर में थोडा टेंशन का माहौल सा था और होना भी चाहिए था एक भाई को फिकर जो थी अपनी बहन की , मैं बस उन लोगो की बाते सुनता रहा अपना मुह चुप रखना ही उचीत समझा मैंने मामाजी ने फ़ोन पर एक लम्बी बात की पिताजी के साथ मैंने अपने कान खड़े कर रखे थे मुझे इतना अंदाजा तो हो गया था की कल मामाजी और चाची गाँव चलेगे , 


रात के खाने के बाद मामाजी ने भी अपना बिस्तर हमारे साथ छत पर ही लगा लिया मैंने सोचा था की रात को क्या पता चाची को पेलने का मौका मिलेगा पर मामाजी ने सब गुड-गोबर कर दिया था , अब हर चीज़ पर अपना बस भी तो कहा चलता था मैंने चाची को कहा की मामा को बोल दो नीचे सो जाये पर वो बोली की मैं कैसे कह सकती हूँ तो बस पूरी रात मेरा दिमाग ख़राब सा ही रहा सुबह हुई चाची ने मुझे चाय देते हुए बता दिया था की आज हम लोग गाँव चलेंगे मेरे मन में ख़ुशी थी की चाची वापिस घर चल रही है पर दुःख भी था की कही वहा जाकर बात बिगड़ न जाये मामाजी और नाना जी भी चल रहे थे साथ जो , 



तो करीब दस बजे हम सब लोग मामा जी की कार में हमारे गाँव के लिए निकल पड़े मामाजी और नाना आगे बैठे थे मैं और चाची पीछे, मैं नजरे बचा कर उनसे छेड़खानी कर रहा था वो अपनी आँखे तरेर कर मुझे मना कर रही थी, ऐसे ही हम शाम तक घर पहूँच गए , मम्मी तो चाची को देख कर ही खुश हो गयी दौड़ कर गले मिली उनसे पिताजी उस टाइम घर पर ही थे, मामाजी भी शांत स्वाभाव से ही बात चीत कर रहे थे मम्मी चाची को अन्दर ले गयी बाकि हम सब लोग बैठक में बैठ गए , पिताजी ने चाचा को भी बुलवा लिया 


अब तक तो बात घर में ही थी अगर बाहर फैलती तो परिवार की समाज में नाक काटनी तय थी, दूसरा नाना जी चाहते थे की जो हुआ सो हुआ पर अगर जवाई जी माफ़ी मांगे और भविष्य में कोई गलती ना करे तो बात बन सकती थी पर चाचा पर तो पराई नार का जूनून चढ़ा हुआ था ,गरमा गर्मी होने लगी , तो टेंशन के मारे मेरी धड़कने बढ़ने लगी, अब क्या किया जाये चाचा ने तो साफ़ कह दिया था की सुनीता रहे तो रहे और ना रहे तो मत रहे 


पर तभी मम्मी ने स्टैंड लिया वो बोली- सुनीता मेरी बेटी की तरह है वो इस घर में ही रहेगी देवर जी का रास्ता अलग पर सुनीता हमारे साथ रहेगी , इस घर में उसका भी उतना ही हिस्सा है जितना की मेरा है 
तो पिताजी ने कहा की कुछ दिन सुनीता को यही रहने दो , फिर उसकी जो मर्ज़ी होगी, जो उसका फैसला होगा हमे मान्य होगा मामाजी ने भी कहा ठीक है जो सुनीता की मर्ज़ी वो ही हमारी मर्ज़ी बिमला के ससुर भी आ गए थे बेचारे बहुत ही परेशान थे, शर्मिंदा थे अब नजरे मिलाये भी तो कैसे खैर रात हुई खाना वना खाने के बाद पिताजी मामा और नाना के साथ गहन चर्चा में डूबे थे मम्मी रसोई ने व्यस्त थी मैं अपने कमरे में आया तो देखा की चाची वही पर बैठी थी 

चाची- आज से मैं इधर ही रहूंगी 

मैं- जैसी आपकी मर्ज़ी, पूरा घर ही आपका है जहा जी करे वहा रहो 

चाची- क्या बाते हो रही है नीचे 

मैं- सबको आपके फैसले का इंतज़ार है 

वो- फैसला तो हो गया हैं ना, जब उन्होंने ठुकरा दिया तो अब क्या 

मैं- ऐसी तैसी करवाए वो , क्या जिंदगी उसके पीछे ही चलेगी, अपने बारे में सोचो घर में और भी लोग है उनके बारे में सोचो 

वो- तू मेरी बात को समझ 

मैं- चाची, अगर आप इस घर को छोड़ के गए तो मैं भी सदा के लिए यहाँ से दूर चला जाऊंगा आपको रुकना ही होगा मेरी खातिर , आपको मेरी कसम है 

चाची की आँखों में कुछ आंसू थे उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बोली- ठीक है बस तेरे लिए मैं यही रहूंगी वो रात बस ख्यालो में ही कट गयी अगले दिन पिताजी ने चाचा को स्पस्ट रूप से समझा दिया की चाची को घर में कोई परीशानी नहीं होनी चाहिए, अब चाचा चाहे लाख नालायक था पर भाई के आगे जुबान नहीं खुलती थी उसकी , मामा और नाना अपने घर चले गए मुझे कही ना कही ऐसा लगने लगा था की जैसे पिताजी अन्दर अन्दर टूट से रहे हो मैंने उनसे बात करने का फैसला किया 

मैं पिताजी के कमरे में गया तो देखा वो कोई किताब पढ़ रहे थे उन्होंने मुझे देखा और बैठने को कहा 

पिताजी- कोई काम था , पैसे वैसे चाहिए 

मैं- आपसे बात करने का मन हो रहा था 

वो- हां, बताओ क्या बात है 

मैं- मुझे लगा की आप कुछ परेशान से दीखते है 

वो- अरे, नहीं वो ऑफिस के काम का बोझ है तो थोड़ी थकान हो जाती है बस तू ये छोड़ और बता पढाई कैसी चल रही है 

मैं-पिताजी आपका ही बेटा हूँ सब समझता हूँ मैं, घर के हालात की वजह से परेशान है ना आप 

पिताजी- तू क्यों फिकर करता है तेरा काम है पढना उसी पे ध्यान दे

मैं- पहले मैं हमेशा सोचता था की जो पापा लोग होते है ना वो बहुत खडूस टाइप के होते है जो बस औलाद को हर समय परेशान करते है पर पिताजी, आज मैं जान गया हूँ की जो बाप होता है न , वो अपने कंधो पर कितना बोझ लाद कर चलता है , पिताजी आप किसी से कुछ कहते नहीं पर जो कसक है उसे भली भांति महसूस कर गया हूँ मैं हम सब को खुश रखने के लिए आप कितने जतन करते हो, 

पिताजी- आज तुझे क्या हुआ है कैसी बाते कर रहा है 

मैं- बस एक पिता को समझने की कोशिश कर रहा हूँ 

पिताजी- इस बात को तू नहीं समझेगा अभी , तेरे खेलने के दिन है बस वही कर चल अब जा और तेरी मम्मी को एक चाय के लिए बोल देना 

मैं कमरे से निकला पर मैंने कनखियों से पिताजी को अपनी आँखों को पोंछते हुए देख लिया था
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12-29-2018, 02:39 PM,
#89
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाय का बोलके मैं घर से बाहर निकला तो गली में मुझे मंजू मिल गयी 

मैं – मंजू आज इधर कैसे 

वो- बस ऐसे ही 

मैं- कितने दिन हुए मंजू मेरा काम कब करेगी 

वो- भाड़ में जाए तेरा काम, उस दिन तो मरवा ही दिया था तूने शुकर है तेरी चाची ने किसी को कहा नहीं वर्ना मैं तो मर ही गयी थी 

मैं- मंजू ,अब हर बार थोड़े ना पकडे जायेंगे फिर तेरे सिवा मेरा कौन सहारा है दे देना एक बार 

मंजू- देख अभी तो मुश्किल है 

मैं- तेरे लिए कुछ मुश्किल नहीं और फिर थोड़ी देर तो लगनी है 

मंजू- पर जगह भी तो चाहिए ना , अब ऐसे रोड पर तो लेट नहीं सकती ना 

मैं- अब जगह का कहा से जुगाड़ करू मैं 

वो- तभी तो बोल रही हूँ मुश्किल है 

मैं- तेरे घर 

वो- मेरी माँ है 

मैं- यार मंजू, तू कर ना कुछ जुगाड़ तेरे बिना देख कितना बुरा हाल हो रहा है मेरा 

मंजू- तो मैं कहा मना कर रही हूँ तुझे देने को पर तू मेरी भी मुश्किल समझ 

मैं- एक काम हो सकता है 

वो- क्या 

मैं- देख वो जो सामने छप्पर है न उधर कोई आता जाता नहीं 

वो- ना मैं रिस्क न लुंगी 

मैं- मान जा ना 

वो- ना उस दिन ही चाची ने पकड़ लिया था मेरी तो जान अटक गयी थी 

मैं- अब हर बार थोड़ी न पकडे जायेंगे वैसे भी कोई नहीं आने वाला मैं जाता हूँ उधर तू मोका देख के आ जइयो 

मंजू- इस से तो अच्छा यही पर ले ले मेरी 

मैं हँसा और छप्पर की तरफ सरक लिया 

छप्पर तो क्या था पहले पुराने ज़माने का कच्चा मकान था अब वो लोग और कही रहने लगे थे तो ये बेचारा समय की मार झेल रहा था , अन्दर जाके मैं एक अँधेरे कोने में खड़ा हो गया थोड़ी देर बाद मंजू भी आ गयी मैंने बिना देर किये मंजू को अपनी बाहों में भर लिया 

मंजू-देख मरवा मत दियो और जल्दी से कर ले 

मैं- बस तू साथ दे अभी काम हो जायेगा 

मैं तो काफ़ी दिन से चुदाई के लिए मरे जा रहा था मंजू की गोल मटोल गांड को दबाते हुए मैं उसके होठ चूसने लगा जल्दी ही उसकी सलवार उसके पांवो में पड़ी थी 

मंजू- नंगी ना होउंगी 

मैं- मत हो बस सलवार उतार 

मंजू – तू तो बाहर निकाल 

मैंने तुरंत अपने लंड को बाहर निकाल लिया मंजू उसको अपने हाथ से हिलाने लगी मैं उसके होठो को पीने लगा मंजू भी चुदासी लड़की थी , तो जल्दी ही गरम होने लगी उसने अपनी एक टांग को उठाया और मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी , अब इतने दिनों बाद लंड ने चूत की महक ली थी तो वो फुफकारने लगा मैंने अपने दोनों हाथो से मंजू के चुत्तड को थामा हुआ था मंजू मेरे होठो को ऐसे चूस रही थी जैसे आज बस लास्ट टाइम है उसका नीचे लगातार रगड़ने से मेरा लंड उसकी चूत के पानी से गीला हो चूका था हम दोनों को अब एक चुदाई की सख्त चुदाई की जरुरत थी 

मैंने अब देर करना उचीत नहीं समझा और अपना लंड के सुपाडे पर काफी थूक मला और खड़े खड़े ही मंजू की चूत में झटका मार दिया मंजू ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने बदन को मेरी हवाले कर दिया , जैसे जैसे उसकी चूत में लंड सरकता जा रहा था मंजू के चेहरे पर करार आता जा रहा था , मंजू ने अपनी कुर्ती को ऊपर करके अपने बोबो को बाहर निकाल दिया था , उसके ३२ साइज़ के बोबो को देख कर मेरा मन ललचाने लगा तो मैंने अपने मुह को उसकी छातियो पर झुका दिया और बोबो को चूसते हुए उसको चोदने लगा 

मंजू के बदन में गर्मी एक दम से बढ़ गयी मेरी बाहों में झूलते हुए चुदाई का पूरा मजा लेने लगी वो 
आः अआह्ह थोडा जोर से करो वो बोली 

मैंने मंजू की चूत से लंड को निकाल लिया और उसको घुटनों पे हाथ रखवा के झुका दिया , मुझे उसकी गोल गांड बहुत पसंद थी , उसकी गांड देखते ही मैं मचल जाता था मैंने उसके कुलहो को फैलाया और अपना मुह उसकी जांघो में दे दिया , मंजू की छोटी सी चूत से बहते उस खट्टे, खारी पानी को जैसे ही मैंने चखा मजा ही आ गया मंजू के पैर कांपने लगे, एक तो गर्मी बहुत थी वहा पर पसीना पड़ रहा था तो मिलाजुला स्वाद मेरे मुह में घुलने लगा 

मंजू – “ओफ्फ्फ्फ़ , इतना टाइम नहीं नहीं मेरे पास अभी तो जल्दी से कर ले टाइम निकाल के जी भर के दूंगी तुझे ”

मैं- ओह जानेमन, टाइम गया तेल लेने, इतनी करारी चूत को कैसे चखे बिना छोड़ दू 

वो- मान भी जा ना 

मैं- अब दे रही है तो ख़ुशी से दे ना, या फिर रहने दे ऐसे जल्दबाजी में मुझसे ना ली जाएगी 
मंजू- इमोशनल मत कर कमीने अच्छा पर ज्यादा देर मत चुसियो , अब मुझसे रहा नहीं जा रहा है 
मैं मुस्कुराया और मंजू की कुलहो को फैला कर उसकी चूत को चाटने लगा मंजू ने खुद को और नीचे को झुका लिया जिस से उसके चुतड ऊपर को उठ गए और मुझे आसानी होने लगी मंजू अपने दोनों हाथ घुटनों पर रखे अपनी गांड को हिला हिला कर मुझे चूत का स्वाद चखा रही थी , उसकी मखमली चूत को मैं अपने दांतों से काट ता तो वो वो धीमी धीमी आवाज में सी सी कर रही थी पर वक़्त का भान मुझे भी था और उसे भी थोड़ी देर बाद मैं अपना मुह उसकी योनी पर से हटा लिया 


मैंने अब मंजू को पास की दिवार से सटा दिया और खड़े खड़े ही उसको चोदने लगा एक बार जो लंड चूत में गया मंजू अपना आपा खोने लगी पसीने में चूर हमारे चरीर चुदाई की ताल पर थिरकने लगे थे मैं उसके गालो को चूमने लगा पर छप्पर की कच्ची दिवार उसकी गांड पर रगड़ हो रही थी तो मंजू उधर से हट गयी 
मैं- क्या हुआ 

वो- चुतड लाल हो गये है 

मैं- तो कैसे चुदेगी 

- तू घास पे लेट जा मैं ऊपर चढू गी , 

मैं- तू लेट जा न 

वो- ना घास चुभेगी 

मैं- कोई ना 

तो मैं लेट गया और मंजुबाला अब चढ़ गयी मेरे ऊपर घच से मेरे लंड पर बैठ कर उसको गटक गयी वो मैंने उसके चूतडो को थाम लिया मंजू जोर जोर से सांस लेते हुए मेरे लंड पर कूदने लगी, उसने अपने बदन को मुझ पर झुका दिया तो मैंने उसके बोबे को मुह में ले लिया अब लड़की की चूत में लंड हो और बोबा मुह में तो फिर जो गर्मी चढ़ती है उसको की सब कुछ भूल जाती है वो 


मंजू अब तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी , रही सही कसर मैं नीचे से धक्के लगा कर पूरी कर रहा था चुदाई जोरो पर चल रही थी मजा ही मजा आ रहा था पर तभी मंजू ने एक लम्बी सांस ली और धम्म से मेरे ऊपर ढेर हो गयी , उसका तो काम निपट गया था मैंने फ़ौरन उसके कुलहो को थामा और तेजी से नीचे से धक्के पे धक्के लगाना शुरू कर दिया मंजू की आँखे बंद थी शरीर निढाल पड़ा था पर चूत अभी अभी फड़क रही थी 

आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह कितना चोदेगा, अब छोड़ भी दे ना 

मैं- बस थोड़ी देर की बात है बस दो चार मिनट और रुक जा 

मंजू-अब दर्द होने लगा है छोड़ दे ना 

मैं- बस बस होने ही वाला हाऐईईईईईई 

मैंने पलटी खाई और मंजू को नीचे ले लिया , घास चुभने से वो गुस्सा कर रही थी पर मेरा काम होने ही वाला था तो अब कौन उसकी बात सुनता हूँमच हूँमच कर बीस पचीस धक्के और मारे मैंने अपना वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया और उसके ऊपर से पड़ गया
मंजू अपनी सलवार बाँधने लगी मैंने उसको चूमा और कहा फिर कब मिलोगी 

वो- देखूंगी 

मैं- जल्दी देखना 

फिर वहा से नजर बचा कर हमने अपना अपना रास्ता लिया और मैं अपने घर के बाहर चबूतरे पर आकर बैठ गया चूत मारने से शरीर तो थोडा हल्का हो गया था पर दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था , कुछ बाते थी जो मुझे बड़ा परेशान कर रही थी , तभी मैंने देखा की बिमला घास लेकर आई और मुझे देख कर हस्ते हुए चली गयी, मुझे गुस्सा तो बड़ा आया पर कर भी क्या सकते थे, इतना तो मैं समझता था की कुछ ना कुछ तो खुराफात चल रही है जरुर पर क्या वो पता नहीं चल रहा था 

शाम का सा टाइम हो रहा था तो मैं ऐसे ही निकल गया तफरी मारने को गाँव के स्कूल में कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे तो उनको देखने लगा , उन्होंने कहा भी खेलने को पर जबसे चाचा ने मेरा बैट तोडा था बस दिल करता नहीं था क्रिकेट खेलने को , आजकल जिंदगी में सोच विचार भी बहुत ज्यादा चल रहा था थोड़ी देर उधर बैठने के बाद मैं प्लाट में गया पशुओ का काम करते करते अँधेरा ढले घर आया मैं , तो देखा की पिताजी किसी से बात कर रहे थे मैंने मम्मी से पूछा तो पता चला की कोई वकील है , 

अब हमारे घर में वकील का क्या काम, कुछ तो गड़बड़ है पर मेरा इतना साहस नहीं की पिताजी से पूछ सकू, मम्मी ने भी कुछ नहीं बताया मैंने चाची को ऊपर आने का इशारा किया उअर अपने कमरे में आ गया , थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी और बोली- क्या हुआ क्यों बुलाया 

मैं उनको अपनी बाहों में भरते हुए- बस ऐसे ही 

वो छुटने की कोशिश करते हुए- ऐसे ही का क्या मतलब जाने दे मुझे रसोई में बहुत काम है 

मैं- एक किस तो दे दो 

वो- अभी नहीं ,अभी जाने दे 

ये चाची का भी अजीब सिस्टम था, पर चलो अब जो था वो सही मैंने रेडियो चलाया और बिस्तर पर लेट गया एक गाना था कुछ ऐसा की वोह लम्हे वो बाते कोई ना जाने , गाने का सुरूर चढ़ सा गया था दिमाग पर तो दिल आवारा होने लगा ,अपने जिस खालीपन से मैं भागता फिरता था वो फिर से मुझ पर छाने लगा तो मैं नीचे आ गया खाना तैयार था तो खा लिया पिताजी ने कहा की आज खेत पर चले जाना , अब साला ये तो दिक्कत थी मैंने सोचा था की रात को चाची की चूत का जुगाड़ हो जाये क्या पता पर बाप का कहना भी करना था तो चल पड़ा खेत की तरफ 


पर अभी टाइम भी ज्यादा हुआ नहीं था तो मैं मंजू के बाप की दूकान पर बैठ गया टाइमपास करने को पर अपना टाइम साला अजीब ही था पास होता ही नहीं था खेत पर भी बस जाके सोना ही था तो बैठा रहा दूकान पर , धीरे धीरे लोग अपने घर जाने लगे जो भी नुक्कड़ पर बैठे थे , मैं भी बस जा ही रहा था की मैंने देखा मोहल्ले की गीता ताई दूकान पर आई और मंजू के बाप से कुछ बात करने लगी , कुछ पैसो का मामला था मैंने अपने कान लगा दिए तो पता चला की गीता ताई ने मंजू के बाप से कुछ पैसे लिए थे जिसे वो समय पर चूका नहीं पा रही थी तो और टाइम चाहती थी पर मंजू का बाप ना नुकुर कर रहा था 


थोड़ी देर बाद वो हताश होकर अपने घर को चल पड़ी तो मैं भी खेत की तरफ जा रहा था की पता नहीं क्यों मैं गीता ताई के पास गया और बोला- रामराम ताई जी 

वो-जीता रह बेटा 

मैं- ताईजी मैंने देखा की दूकान पर आप कुछ परेशान दिख रही थी, कोई समस्या है क्या 

वो- नहीं बेटा, कोई परेशानी नहीं है , 

मैं- अच्छा, वो मुझे लगा तो पूछ लिया चलो कोई बात नहीं वैसे आप रात को दूकान पर ताऊ नहीं है क्या घर पर 

वो- बेटा, उसका तो सब को पता है पीकर पड़ा होगा कही पर 

मैं- कोई ना , अच्छा ताईजी चलता हूँ 

फिर रामरमी करके मैं खेत पर चला गया , करने को कुछ था नहीं तो अपना बिस्तर बिछाया और लेट गया पर नींद आ नहीं रही थी की मेरा ध्यान गीता ताई की तरफ चला गया , गीता कोई 42-43 साल की औरत थी , फिगर भी अच्छा था मोटे मोटे बोबे और चोडी गांड , पता नहीं क्यों मैं ऐसे ही अपने ख्यालो में उसके बारे में सोचने लगा की उसकी चूत मिल जाये तो मजा आ जाये , अब ख्यालो पर किसका बस चलता है सरकार मैं सोचने लगा की दिखती भी अच्छी है , चोदने में सच में ही मजा आ जायेगा 


बस ऐसे ही ताई के बारे में गलत गलत सोचते हुए मेरा लंड खड़ा हो गया और मैं ताई के बारे में सोच कर मुठ मारने लगा , मजा ही आ गया तो मैंने उसी समय सोच लिया की कोशिश करके देखूंगा क्या पता दाल गल जाये हालाँकि मुश्किल बड़ा था , अगली सुबह मैं जल्दी ही उठ गया था आज पढने जाना था मुझे काफ़ी दिनों से छुट्टी पे चल रहा था तो नाश्ता करके अपना बैग लेकर मैं पहूँच गया शहर , नीनू मुझे देखते ही आग बबूला हो गयी और काफ़ी देर तक चिल्लाती रही तो उसको समझाने में बहुत समय चला गया 


तो मैंने पिछले दिनों का पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया , की कैसे क्या क्या हुआ नीनू गहरी सोच में डूबी थी फिर उसने कहा की हो न हो पिताजी ने वकील को बटवारे के लिए ही बुलाया होगा, 

मैं- क्या बात कर रही है यार, बंटवारा और वो भी मेरे घर का हो ही नहीं सकता 

नीनू- मान चाहे मत मान पर ऐसा ही होगा तू देख लियो 
Reply
12-29-2018, 02:40 PM,
#90
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
नीनू की बात सुनकर मैं सन्न रह गया क्या चल रहा था पिताजी के मन में, मैंने और नीनू ने इस गूढ़ विषय पर लम्बी चर्चा की, बातो बातो में उसने मुझे बताया की वो अर्धवार्षिकी के पेपर देते ही देहली चली जाएगी और कोचिंग करेगी ये सुनकर मेरा तो दिमाग ख़राब हो गया 

मैं- तू चली जाएगी तो मेरा क्या होगा 

वो- पर जाना भी तो जरुरी है ना, अब हम लोग तुम्हारी तरह तो है नहीं तो नौकरी मिल जाएगी तो लाइफ ठीक से कट जाएगी 

मैं- मुझे भी तो नौकरी करनी है 

वो- तो तू भी कोचिंग लेने चल 

मैं- सोच के बताऊंगा 

वो- तेरी मर्ज़ी है मैंने तो प्रिंसिपल से बात कर ली है , पुलिस की नोकरी की इच्छा है मेरी लग जाऊ तो मजा आ जाये 

मैं- अच्छी बात है 

वो- देख, हमे अपने भविष्य के बारे में सोचना तो होगा ही ना, आज नहीं तो कल 

मैं- तेरी बात सही है

वो- चल छोड़ ये बता चाची क्या बोली

मैं- अभी तो कुछ कह नहीं सकता की क्या करेंगी वो अभी ताजा ताजा मामला है तो तू समझ ही सकती है 

वो- और बिमला का क्या ,

मैं- उसका क्या होना है यार, मेरी ताई चोबीस घंटे नजर रखती है उस पर 

वो- हम्म्म, 

मैं- पर यार बिमला मेरे को धमकी दे रही थी 

वो- वो तो देगी ही तेरी वजह से उसकी ऐसी तैसी जो हो गयी है 

मैं- नीनू तू सच में जा रही है देहली 

वो- मजाक लगा क्या 

मैं- वहा जाके मुझे भूल तो नहीं जाएगी 

वो- डेल्ही जा रही हूँ, जिंदगी से ना जा रही फिर हम अपनी अपनी क्लास में चले गये
जबसे नीनू ने देहली जाने का कहा था पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा था , मन अजीब सा हो रहा था घर आके खाना खाया चाची खेत में थी तो मैंने सोचा की चलो चला जाये , मैं जा रहा था की मंजू मिल गयी रस्ते में 


मैं- कहा गयी थी मेरी कट्टो 

वो- गीता ताई के यहाँ तक गयी थी 

मैं- क्यों 

वो- बापू, से उसने कर्जा लिया था अब दे नहीं रही तो तकाजा करने गयी थी 

मैं- तू कब देगी 

वो- कल तो दी थी , अब कोई मौका आएगा तभी दूंगी 

मैं- कितना कर्जा है ताई पे 

वो- तू क्यों पूछ रहा है तुझे देना है क्या 

मैं- मैं क्यों दूंगा , बस ऐसे ही पूछ रहा था 

वो- 8 हज़ार है ब्याज अलग से 

मैं- कोई ना दे देगी लेट शेट होता रहता है 

वो- बापू का कहना तो करना पड़ता है 

मैं- आजा कुएँ पे चले 

वो- ना, घर जाउंगी 

मैं- चल ठीक है 

रस्ते में सोचते हुए मैं कुए की तरफ जाने लगा मेरे मन में विचार आया की अगर गीता को मैं पैसे दे दू तो क्या पता चूत मिल जाये , पर मैं गरीब आदमी मेरे पास कहा से आये पैसे, वो भी इतनी बड़ी रकम इसके लिए तो चोरी ही करनी पड़े , सोचते सोचते मैं कुए पर पहूँच गया जमीन का एक टुकड़ा खाली पड़ा था पिताजी ने कहा था की उसमे सब्जी की नयी खेप लगनी है तो जुताई कर दू, जबकि मेरा ये ख्याल् था की बाजारा बो दिया जाये , अब बाप की ना मानो तो गांड टूटने का खतरा , पर मूड नहीं था तो जाने दिया चाची नीम के नीचे बैठी थी मैं उनके पास गया और बोला- आज खेत में कैसे 

वो- बस ऐसे ही खुद को काम में लगा रही हूँ तो मन नहीं भटकेगा 

मैं- अच्छा है

मैं- एक चुम्मी मिलेगी क्या 

वो- तुम्हारी मम्मी इधर ही है, चुम्मी का तो पता नहीं पर जूते जरुर पड़ेंगे 

अपनी तो किस्मत ही गधे के लंड से लिखी गयी लगती थी, चाची पास होकर भी दूर थी तो मन को मारकर कुए पे काम निपटाया और फिर हम लोग साथ साथ ही घर पर आ गए, पिताजी भी ऑफिस से आ चुके थे करीब घंटे भर बाद वो वकील भी अपना स्कूटर लेके आ गया तो पिताजी ने पुरे कुनबे को इकठ्ठा कर लिया और बोले की- मुझे लगता है की अब वक़्त आ गया है की मैं सबको अपना अपना हिसा दे दू 

मैं- कैसा हिस्सा पिताजी 

पिताजी ने घूर कर मेरी तरफ देखा तो मैंने नजर नीची कर ली 

पिताजी- परिवार सदा ही हमारी ताकत रहा है , बाप दादा सदा एक छत के नीचे रहते आये थे हम भाइयो ने भी उसी बात का अनुसरण किया पर जमाना बदल रहा है और फिर पिछले कुछ दिनों से घर के हालात भी ठीक नहीं है तो मुझे लगता है की अब समय आ गया है की हम सब चाहे तो जिंदगी को स्वतंत्र रूप से जी सके 


सब लोग पिताजी की बात गौर से सुन रहे थे , मैं कुछ कहना चाहता था पर चुप रहने की मज़बूरी थी 
पिताजी ने वकील से कुछ पेपर्स लिए और कहा की मैंने पूरी जायदाद को तीन हिस्सों में बाट दिया है , बिमला वाला मकान और नहर वाली खेती बिमला के ससुर को दे दी , कुए वाली आधी जमीं चाचा को और आधे घर में हिस्सा 

वकील- और तीसरा हिस्सा इन्होने सुनीता जी को दे दिया है जिनमे इस घर में आधा हिस्सा और ५ एकड़ जमीं है साथ ही एक प्लाट भी 

वकील – इन्होने अपने लिए कुछ नहीं लिया बस एक कमरे में 

सभी पिताजी को देखने लगे 

ताउजी- पर भाई ये कैसा बंटवारा 

पिताजी- भाई, मैंने बहुत सोचकर ये फैसला लिया है , तुम दोनों भाइयो का तो हक़ है इस जायदाद पर रही बात सुनीता की तो मैंने उसे सदा अपनी बेटी समझा है तो एक जेठ नहीं बल्कि बाप होने के हक़ से मैं अपना हिस्सा उसे दे रहा हूँ, मेरी कोई ज्यादा जरूरते है नहीं, और जो है मेरी नौकरी से पूरा हो जाएँगी , रही बात बेटे की तो मुझे पूरा भरोसा है उस पर वो अपने लिए कुछ न कुछ कर ही लेगा 

मैं कभी नहीं चाहता था की कुनबा ऐसे टूटे पर चलो जो तक़दीर में लिखा 

चाची ने साफ़ मन कर दिया पर मम्मी ने कहा की जो फैसला लिया है वो सोच समझ कर लिया है , पिताजी बंटवारे के बाद अपने कमरे में चले गए , मैं उनके पीछे गया तो पता चला की कुण्डी बंद है अन्दर से , सच कहू तो मैं कभी पिताजी को समझ ही नहीं पाया था , एक पिता अपने परिवार को पालने के लिए क्या क्या जतन करता है, दिमाग खराब सा होने लगा था मैं छत पर आकर बैठ गया थोड़ी देर बाद मम्मी भी मेरे पास आ गयी और बोली-

मम्मी- तूने दूध नहीं पिया आज 

मैं- ध्यान नहीं रहा 

वो- बंटवारे के बारे में सोच रहा है न तू, तुझे लग रहा होगा की माँ—बाप में तेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा 
मैं- मम्मी, आप भी कैसी बाते करने लगे हो , और फिर मुझे इन चीजों का लालच कबसे होने लगा आपने मेहनत करना सिखाया है 

मम्मी- मेरा समझदार बेटा, मैंने और तुम्हारे पिताजी ने बहुत विचार करके ये फैसला लिया है सुनीता इस समय बहुत कष्ट से गुजर रही है , जिंदगी में काफ़ी बार हालात पर कोई जोर नहीं होता तो कम से कम हम उसके लिए इतना तो कर ही सकते है ना 

मैं- आप जो चाहे 

अब बाप का फरमान था तो आज की रात भी कुए पर ही गुजरनी थी तो अपना ताम-झाम लेके मैं चल दिया कुएँ पर की मैंने देखा दूकान पर मंजू बैठी थी 

मैं- आज तू इस समय, 

वो- घर पर फूफाजी आये है तो 

मैं- मंजू एक मदद कर देगी 

वो- बोल

मैं- कुछ पैसे उधार दे दे 

वो- कितने 

मैं- दस हज़ार 

मंजू ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैंने पता नहीं क्या मांग लिया 

वो- दिमाग ठिकाने पे है 

हज़ार पांच सो की बात हो तो करू भी रकम मांग ली 

मैं- तेरा बाप आसामी है , 

वो –बाप से मांग ले फिर वैसे तुझे इतने पैसे किस काम में चाहिए 

मैं- छोड़, गांड मारा तेरी, भोसड़ी की कभी काम नहीं आती तू

मंजू- बता तो सही 

मैं- जाने दे एक ठंडा पिला दे पैसे बाद में दे दूंगा 

वो- ठन्डे पैसे नहीं लुंगी तुझसे 

एक थम्स अप पीकर मैं खेत में आ गया बिस्तर बिछा ही रहा था की देखा मेरी दिलरुबा, मेरी जाने बहार मेरी सबसे अच्छी दोस्त पिस्ता चलते हुए मेरी तरफ आ रही थी इतराते हुए वो मेरी तरफ आ रही थी उसको देखते ही मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गयी 

मैं- अरे कामिनी कहा मर गयी थी तू, तेरे बिना क्या हाल मेरा 

वो- यार नानी मर गयी 

मैं- कब 

वो- चार पांच दिन हुए 

मैं- ओह! ये तो ठीक न हुआ 

वो- अच्छा हुआ चली गयी , इस उम्र तो हर कोई जाए 

मैं- कब आई तू 

वो- आज ही आये है 

मैं- आते ही इधर 

वो- अब इतने दिन हुए तुझे देखा नहीं बात करने का मूड था 

मैं- मुझे भी तेरी मदद की जरुरत थी यार 

वो- हां बता चूत छोडके क्या दू तुझे , 

मैं- चूत तो चाहिए ही 

वो- ना दे सकती 
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