RE: RajSharma Stories आई लव यू
"आपने पूछा था न, कि हमारे साथ स्कूटी पर चलने से आपको क्या मिलेगा? कल आपके साथ स्कूटी पर बाहर जाना हमेशा याद रहेगा। मन की खुशी सबसे बड़ी खुशी होती है। कल साथ जाने की जिद मेरी जरूर थी: पर खुशी आपको भी उतनी ही थी, जितनी मुझे। मैं चाहता था कि वो सफर खत्म ही न हो... आपके साथ बस चलते जाएँ, कहीं दूर तक, इतना दूर तक जहाँ सिर्फ आप और हम हों। कुछ पल मुकून से आपके साथ बात करना चाहता था, इसीलिए स्कूटी रोककर खड़ा हो गया था। आपके सामने खड़े होकर कहना चाहता था, कि मैं आपसे प्यार करता हूँ। आपकी नजरों में खुद के लिए पैदा हुए प्यार को देखना चाहता था, लेकिन ये सब मैं नहीं कर पाया। अच्छा होता कर दिया होता। पहले जब ऑफिस में आपसे मिलता था, तो एक डर मन में होता था कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा? लेकिन अब छत पर बिना डरे आपके आने का इंतजार करता हूँ। में हमेशा आपसे बात करना चाहता हूँ: में रोजाना आपको देखना चाहता हूँ, रोज आपसे हाथ मिलाना चाहता हूँ।"
अपने सवाल का जवाब जानकर शीतल रोने लगी थीं। उनकी आँखें प्यार के आँसुओं से भर चुकी थीं। उन्होंने मेरी नजरों में देखा और देखती रह गई। शायद इस वक्त वो यही मोच रही थीं, क्या में कभी उनका हो पाऊँगा?
शीतल के साथ एक शाम स्कूटी पर साथ जाना मुझे इतना पागल कर देगा, इसका खयाल भी नहीं था। अब मैं हर रोज उनके साथ शाम को जाना चाहता था। मैं सुबह कैब से ऑफिस जाने लगा था, ताकि शाम को शीतल के साथ स्कूटी पर जा सकू।
मुझे ऑफिस से अपने घर पहुँचने में पैंतालीस मिनट का समय लगता था और शीतल के साथ जाने पर मैं अपने घर दो घंटे में पहुँचता था। उनके साथ जाने पर मेरे घर का रुट एकदम उल्टा पड़ता था, लेकिन उनके प्यार में पागलपन की धुन इस कदर मबार थी मेरे ऊपर, कि मुझे जल्दी घर पहुँचने की बजाय उनके साथ दो घंटे बिताना अच्छा लगता था।
अब तो मैं उनके साथ शाम को जाने के बहाने ढूँढ़ता था।
आज शाम फिर उनके साथ स्कूटी पर जाना था। मैंने स्कूटी, पाकिंग से निकाल ली थी। शीतल का बैग उनके कंधे पर था। आज में उनके और मेरे बीच बैग की दीवार नहीं रहने देना चाहता था, इसलिए अपना बैग मैंने पहले ही आगे रख लिया था। स्कूटी चल चुकी थी। हम दोनों दिनभर की बातें करते जा रहे थे। आज फिर मौसम बहुत सर्द था। स्कूटी पर कैपकपी लग रही थी। शीतल के हाथ बहुत ठंडे हो गए थे, फिर भी वो एक दरी बनाकर बैठी थीं; शायद जान-बूझकर। मैं हर पल चाह रहा था कि कब शीतल का हाथ मेरे कंधे पर आएगा।
"थोड़ा पास आहए न।"- मैंने कहा।
'क्या?'- उन्होंने चौंकते हुए पूछा था।
"थोड़ा पास आहए न; अपना हाथ मेरे कंधे पर रख लीजिए न।" - मैंने कहा। शीतल शरमा गई थीं। उन्होंने अपने हाथों को दबा लिया था। उनके हाथ आगे बढ़ना चाहते थे, मुझे छना चाहते थे लेकिन उन्होंने खुद को रोक लिया था।
लेकिन मैं भी कहाँ रुकने वाला था? मैं तब तक उनसे कहता रहा, जब तक उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख नहीं दिया।
आज शीतल ने पहली बार मेरे कंधे पर हाथ रखा था। इतने भर से उनकी साँसें तेज हो गई थीं। बो बार-बार अपना हाथ झटके से हटा रही थीं और मैं हर बार उनका हाथ अपनी तरफ खींच लेता था। स्कूटी इतनी धीरे चल रही थी कि साइकिल भी आगे निकल जा रही थी।
शीतल बार-बार कह रही थीं, "ये स्कूटी चलेगी?" मैं जानता था कि वो भी चाहती थीं कि स्कूटी यूँ ही धीरे-धीरे चलती रहे और कहीं रुके ही न।
अब हमारी स्कूटी एक ऐसे रास्ते पर थी, जहाँ ट्रैफिक कम होता था। मेरा फोन बज रहा था। मैंने स्कूटी रोकी, हेलमेट उतारा और फोन रिसीव किया। फोन रखने के बाद मैंने अपना चेहरा पीछे घुमाया था। शीतल मेरी आँखों में अपनी आँखें डालकर देख रही थीं।
'शीतल... - मैंने उनकी आँखों में देखकर कहा था।
“राज....नहीं।"- उन्होंने डरते हुए कहा था।
“शीतल, ये मौका दोबारा नहीं आएगा; प्लीज मेरे गालों को छु लीजिए न!" - मैंने कहा था।
इतना सुनकर उनकी गर्म साँसे मेरे गालों को छने लगीं। उनकी आँखें नम हो गई। आँखें बंदकर शीतल ने अपने होंठ मेरे गालों की तरफ बढ़ाए और बहुत धीरे-से मेरे गाल को छ लिया।
उनके होंठों ने जैसे ही मेरे गाल को छुआ, मैं भीतर तक काँप गया था। शीतल की धड़कनें जोर से चलने लगी थीं। जो शीतल मेरे कंधे पर हाथ नहीं रख पा रही थीं, उन्होंने अब मुझे कसकर अपनी बाँहों में भर लिया। शीतल का शरीर मेरे शरीर से लिपट गया। उनके अंगों को मैं अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था। इस भीषण ठंड में दो सुलगते बदन करीब आए तो ऐसे लगा, मानो दोनों के बीच अंगारे दहक उठे हों। हम दोनों के शरीर का तापमान इस कदर बढ़ चुका था कि ठंड कहीं गुम हो गई थी। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था। उनका शरीर काँप रहा था। मेरे भी दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। स्कूटी कहाँ और कैसे चल रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। आस-पास से गुजरती गाड़ियों की आवाज मेरे कानों में नहीं पड़ रही थी, बस आँखों के सामने कोई फिल्म चल रही थी और बैकग्राउंड में वहीं पल घूम रहा था, जिस पल उन्होंने मुझे छुआ था।
शीतल अभी भी मेरी पीठ से लिपटी हुई थीं। उनका दिल अब भी जोर से धड़क रहा था।
"शीतल, क्या हुआ, कुछ तो बोलिए।"- मने पूछा था। शीतल के होंठ आपस में चिपक गए थे। उनका गला सूख गया था। उनके मुँह से शब्दही नहीं निकल रहे थे।
“राज, थोड़ी देर शांत रहेंगे आप।" उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे समझाया था। मैं भी थोड़ी देर चुप रहना चाहता था। शीतल का नॉर्मल होना बहुत जरूरी था। धीरे-धीरे बो नॉर्मल हो रही थीं। मैंने पीछे मुड़कर उनके चेहरे की ओर देखा, तो उन्होंने अपनी नजरें फेर ली थीं। उनके चेहरे की मुस्कराहट उनके दिल की खुशी को बयां कर रही थी। शीतल आज बहुत खुश थीं। थोड़ी ही दूरी पर बो जगह थी, जहाँ वो मुझे ड्रॉप करती थीं। स्कूटी रुक चुकी थी। मैं स्कूटी से उतर चुका था और शीतल स्कूटी पर बैठ चुकी थीं। मैंने एक नजर उन्हें देखा, तो उन्होंने फिर अपनी नजरें घुमा ली। वो जाने वाली थीं। शीतल सामने देख रही थी, तभी मैंने आगे बढ़कर उन्हें साइड से अपनी बाहों में भर लिया। उन्होंने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा, तो मैंने अपने होंठों से उनके गालों को लिया।
शीतल संभल नहीं पाई थीं। बो समझ नहीं पाई थी, कि अचानक मेरे होंठों ने उनको छ लिया है। उनकी स्कूटी अपने आप स्टार्ट हो गई थी। शीतल एक पल रुक नहीं पा रही थीं। शायद उनमें हिम्मत नहीं थी और रुकने की। उनके हाथों ने स्कूटी की स्पीड को बढ़ा दिया और शीतल चली गईं। मैं बस उन्हें जाते हुए देखता रहा था और तब तक देखता रहा, जब तक वो मेरी आँखों से ओझल न हो गई।
घर पहुँचा ही था कि शीतल का फोन आ गया था। शायद वो मेरे घर पहुँचने का इंतजार ही कर रही थीं।
"राज, आज आप ज्यादा पास नहीं आ गए थे हमारे?"- उन्होंने पूछा था।
"हाँ, हम खुद को रोक नहीं पाए थे।"- मैंने जवाब दिया था।
“सुनसान रास्ते पर आपने स्कूटी जान-बूझकर रोकी थी न..।" उन्होंने कहा।
"नहीं तो।"- मैंने कहा था।
“राज, हम तो होश ही खो बैठे थे, जब आपने हमारी आँखों में पीछे मुड़कर देखा था और जब आपने कहा कि ये मौका दोबारा नहीं आएगा, तो हम डर गए थे और कब हमने आपके गालों को चूम लिया, हमें पता ही नहीं चला। हम पागल से हो गए थे, तभी तो आपको अपनी बाँहों में कम कर भर लिया था।" - शीतल ने कहा था।
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