RajSharma Stories आई लव यू
09-17-2020, 12:40 PM,
#51
RE: RajSharma Stories आई लव यू
मालविका मेरे मोबाइल पर गेम खेलने में लगी हुई थी। शीतल उसे कई बार मोबाइल वापस करने को कह चुकी थी, लेकिन मैं हर बार यहीं कहता- “खेलने दो शीतल, बच्ची है वो।"

"आओ राज, खाना खाते हैं।" - अंकल ने कहा।

"जी अंकल।" मैं, शीतल, अंकल-आंटी, शीतल की बहन, भाई-भाभी खाने के लिए बैठ चुके थे। शीतल मेरे साथ ही बैठी थीं। डिनर टेबल पर ऑफिस से लेकर घर-परिवार की खूब बातें हुई। हर बात मुझसे और शीतल से ही जुड़ी थी। खूब ठहाके लगे, कुछ भविष्य की तस्वीर साफ हुई। मन में उम्मीद जगी।

मालविका सो गई थी। डिनर हो चुका था। शीतल और उनके मम्मी-पापा नीचे तक छोड़ने भी आए थे।

घर पहुंचा तो कमरे में अँधेरा छाया हुआ था। बारिश की वजह से लाइट नहीं आ रही थी। मोबाइल की रोशनी से टेबल पर रखी अधजली मोमबत्ती को फिर से जला दिया था।

मन बहुत खुश था, लेकिन एक बार फिर शीतल को खो देने के डर से घबरा गया था। मैं और शीतल एक-दूसरे के प्यार में डूबते जा रहे थे। दिन-रात हम दोनों को एक-दूसरे की फिकर होने लगी थी। हम दोनों अब एक पल भी एक-दूसरे के बिना नहीं बिताना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते थे। लेकिन इतना आसान कहाँ था ये सब? मेरा परिवार कभी शीतल से शादी के लिए मानने को राजी नहीं होता। मालविका के बर्थ-डे के मौके पर शीतल के पापा और मम्मी से बातें तो बहुत अच्छी तरह हुई थीं, लेकिन जब उनको ये पता चलेगा कि मैं और शीतल शादी करना चाहते हैं, तो पता नहीं तब वो लोग कैसे रिएक्ट करेंगे।

शीतल भी ये बात जानती थीं कि एक बेटी की माँ होने की वजह से उनका मुझसे शादी करना इतना आसान नहीं था। मैं जब भी उस दिन के बारे में सोचता, जब शीतल और मुझे अलग होना पड़ेगा, तो सिहर जाता था। जब शीतल का हाथ मेरे हाथ में होता था, बो पल मेरे लिए सबसे अनमोल होता था।

और जिस पल शीतल जाने के लिए कहती थीं, लगता था जान ही चली जाएगी। मैं हमेशा उनसे पूछता था, “क्या तुम समंदर किनारे रेत पर साथ नहीं चल सकती हो?"

"क्या तुम हवाओं में मेरे साथ नहीं उड़ सकती हो?"

"क्या तुम पहाड़ों की ऊंचाई से मेरे साथ पूरी दुनिया नहीं देखना चाहती हो?"

"क्या तुम मुझे अपना नहीं बनाना चाहती हो?"

"क्या तुम मेरी नहीं होना चाहती हो?" जानता हूँ ये सब हो नहीं पाएगा, फिर भी शीतल से पूछकर दिन को ठंडक मित्नती थी।

फोन की घंटी बजने लगी थी। शीतल का फोन था।

“पहुंच गए घर?"

हाँ। - मैंने जवाब दिया

"भीगे तो नहीं थे न..तुम्हारे लौटते ही बारिश शुरू हो गई थी।"

"हल्की बारिश थी...थोड़ा-सा भीग गया था।"

“क्या कर रहे हो अभी।"

"कुछ नहीं...लेटा हूँ आँख बंद करके।"

"काफी थके हुए हो तुम आज...आराम करना..."

"मेरे आने से सब खुश तो थे न?"

"हाँ, तुमसे मिलकर सब बहुत खुश थे; मालविका भी बहुत खुश थी। मुझे अच्छा लगा कि बो अच्छे से घुलमिल गई है तुम्हारे साथ। तुम्हारे जाने के बाद मम्मी-पापा भी तारीफ कर रहे थे तुम्हारी।"

"अच्छा...मैं तो डर रहा था कि पता नहीं क्या सोच रहे होंगे बो लोग?"

“परेशान मत होना...सब ठीक रहा...और हाँ, इतने सारे गिफ्ट लाने की क्या जरूरत थी?"

"मालविका के लिए थे...और तुम ये कैसे पूछ सकते हो मुझसे, कि क्यों लाया।"

“ओके...सॉरी: थैक्स फॉर कमिंग...आई बाज बैरी हैप्पी।"

"ओके, तो कल का क्या प्लान है?" ।

"ऑफिस है कल ...क्यों तुमको कहीं जाना है क्या?"
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09-17-2020, 12:40 PM,
#52
RE: RajSharma Stories आई लव यू
“नहीं, कहीं नहीं जाना है...ये बताओ कोई मीटिंग तो नहीं है ऑफिस में "

"नहीं...कल कोई मीटिंग नहीं है..."

"तो फिर कल शाम हम जल्दी निकलेंगे ऑफिस से...सुबह मैं पिक अप कर लूँगा आपको कार से..."

'क्यों?

"कल हम आउटिंग पर चलेंगे...काफी दिन से हम साथ में डिनर के लिए भी नहीं गए हैं और कल हौजखास चलेंगे। बो मेरा रेंड है ना सागर, उसके रेस्ट्रा की ओपनिंग है। थीम बेस्ड रेस्ट्रा बनाया है उसने...हॉरर थीम पर।"- मैंने कहा।

"अरे वाह! ...ओके...चलेंगे; तो कितने बजे निकलेंगे?"- शीतल ने पूछा।

“पाँच बजे हम निकलेंगे...छह बजे ओपनिंग सेरेमनी है।"- मैंने बताया।

"ओके...तो हम क्या पहनें कल? सूट पहन लें न।"- शीतल ने पूछा।

"हाँ, ब्लैक..."- मैंने कहा।
"क्या राज, फिर से ब्लैक...मैं पिछले एक हफ्ते से ब्लैक शेड ही पहन रही हूँ। तुमको ब्लैक पसंद है, इसलिए मेरे पास तीस से ज्यादा ब्लैक ड्रेस हो गई हैं, प्लीज कोई और कलर बताओ न।"- शीतल बोली।

"ओके...फिर कोई और कलर पहन लेना।"- मैंने कहा। __

“हम्म...पर एक वायदा है हमारा आपसे..हम जो पहनेंगे न, बो बहुत खूबसूरत होगा, आपके होश उड़ जाएंगे जनाब।"- शीतल ने बड़े आत्मविश्वास से कहा।

"ओके...वैसे जानती हो शीतल, तुम पर हर रंग फबता है, लेकिन जब तुम ब्लैक पह्नती हो, तो इस दुनिया की हर लड़की तुम्हारे आगे फीकी लगती है। ब्लैक में तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की लगती हो और जब तुम सफेद रंग पहनती हो, तो बिलकुल परी जैसी दमकती हो। सच में यार, तुम साथ होती हो, तो मुझ बेरंग और पागल इंसान में भी रंग भर देती हो। तुम्हें पता है, सब पूछते हैं मेरे चहकने और महकने का राज। तुम भी तो पूछती हो, बड़े खुश हो आज। अरे, दुनिया तुमसे ही तो रोशन है मेरी शीतल।"- मैंने जवाब दिया। ___

“जनाब, इतनी भी खूबसूरत नहीं है मैं, जितनी तम तारीफ करते हो...कभी थकते नहीं हो न तारीफ करते-करते।"- शीतल ने मुस्कराते हुए कहा।

"जिंदगी भर यूँ ही तारीफ करना चाहता हूँ तुम्हारी।"

"राज...मत बोलो ऐसा कुछ प्लीज...हम डर जाते हैं।"

"शीतल, मत डरा कीजिए...भगवान साथ हैं हमारे, सब ठीक ही होगा।"

"हम बहुत प्यार करते हैं आपसे राज।"

“मैं जानता हूँ शीतल।"

"तो अब आप आराम कीजिए; बस इतना बता दीजिए सुबह हम कितने बजे तैयार रहें...या हम मेट्रो से आ जाएँ मयूर विहार तक?"

“अरे नहीं नहीं...मैं कनॉट प्लेस आ जाऊँगा लेने आपको...तुम दस बजे तैयार रहना"

'ओके।

"अच्छा आपको एक फ्रेंड से भी मिलवाना है...डॉली नाम है उसका ..."

"डॉली? ये कौन है? आपने पहले कभी बताया नहीं इसके बारे में।"

"अरे, तीन दिन पहले ही हम मिले ऋषिकेश जाते वक्त ...फिर हम साथ भी आए, तब उसे बताया आपके बारे में; बो मिलना चाहती है आपसे।"

“ठीक है मिलबा देना; अब सो जाओ...गुड नाइट।"

"ओके गुड नाइट...अपना ध्यान रखना।"

करीब आठ बजे मेरी आँख खुली। विंडो से बाहर देखा, तो काले बादल छाए हुए थे। सड़क के दोनों तरफ पानी भरा हुआ था। रात भर बादल जमकर बरसे थे। कॉफी का कप हाथ में लेकर मैं कमरे के बाहर पहुंचा, तो ठंडी हवा ने तन-मन में एक नई उमंग भर दी। पौधों की पत्तियों पर पानी की बूंदें ठहरी हुई थीं। चिड़ियों के चहचहाने की आवाज आ रही थी। आस-पास रहने वाले बच्चे स्कूल के लिए जा रहे थे। इस खूबसूरत सुबह को मैं अपनी छत से निहार रहा था। कॉफी का सिप लेते हुए शीतल को फोन घुमा दिया।

"गुड मानिंग। "हम्म...गुड मार्निंग।"- शीतल ने नींद में ही कह दिया।

"अरे उठिए मैडम...आठ बज चुके हैं और बाहर देखो कितना सेक्सी मौसम हो रहा
"हम्म, अभी उठती हूँ, कब आओगे लेने?"

“मैं दस बजे कनॉट प्लेस पहुँच जाऊँगा।"

"जल्दी आओ न यार...तुम्हें अपनी बाँहों में लेना है।"

"ओह! हलो मैडम...दिन है अभी, आँखें खोलो अपनी...जल्दी तैयार होहए।"

"आई लव यू मेरी जान।"- शीतल ने तेज आवाज में कहा, एक तरह से चिल्लाते हुए।

"आई लव यू टू..अब उठो..." इस हसीन मौसम में शीतल के साथ कहीं दर निकल जाने का मन कर रहा था। पहले पता होता कि मौसम ऐसे माथ देगा, तो ऑफिस से छुट्टी ले लेते... लेकिन अब अचानक दोनों का छुट्टी लेना थोड़ा मुश्किल था। खैर, मन इस बात से ही खुश था कि सुबह से शाम तक हम साथ तो रहेंगे ही। शाम को वैसे भी साथ में डिनर पर जाना है। यही वो पल होगा, जब उनका हाथ अपने हाथ में लेकर उनसे बातें करूंगा।
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09-17-2020, 12:40 PM,
#53
RE: RajSharma Stories आई लव यू
ठीक दस बजे मैं शीतल के अपार्टमेंट के नीचे था। चारों तरफ बादलों का अँधेरा था।

हल्की-हल्की बारिश हो रही थी।

"शीतल जल्दी आओ, मैं नीचे हूँ।"- मैंने फोन पर कहा।

"बम आ रही हूँ...दो मिनट बस।" कार में दानिश अलीगढ़ी साहब' की वही गजल बज रही थी, जो शीतल को बेहद पसंद थी और कार में बैठते ही शीतल डिमांड करती थीं।

"दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं। यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितने लोग आते हैं फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं। बाम से उतरती हैं जब हसीन दोशीज़ा जिस्म की नजाकत को सीढियाँ समझती हैं। तुम तो खुद ही कातिल हो, तुम ये बात क्या जानो क्यों हुआ मैं दीवाना बड़ियाँ समझती हैं। जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर ‘दानिश उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।" मैंने अपनी तरफ का शीशा नीचे किया हुआ था। शीतल, आते हुए भीग न जाएँ, इसलिए कार बिलकुल उनके अपार्टमेंट के गेट पर ही खड़ी थी। मेरी निगाहें उनकी सीढ़ियों पर ही टिकी थीं, कि कब शीतल नीचे उतरें और मेरी आँखों को चैन आए। तकरीबन दस मिनट बाद सीढ़ी से उतरती हुई शीतल की छवि दिखाई दी। सबसे पहले गोल्डन कलर की मोती जड़ी चप्पलों पर नजर पड़ी। शीतल के दमकते कदम, जैसे-जैसे एक-एक सीढ़ी नीचे उतर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे आसमान से कोई परी उतर रही हो। सुनहरी चूड़ीदार पजामी के साथ सुनहरा पाकिस्तानी सूट पहने शीतल को देखकर मुझसे, कार से बाहर आए बिना रहा ही नहीं गया। खुले बाल, कानों में झूमते चौड़े-चौड़े झमके, आँखों में काजल और होंठों पर लिपलॉस... मेरेहोश उड़ाने के लिए ये सब काफी था। मेरे कार से उतरते ही शीतल ने अपने दिल की मुराद पूरी कर ली। उन्होंने तेजी से दौड़कर मुझे अपने गले से लगा लिया। मैंने भी शीतल के आस-पास अपनी बाँहों का घेरा बना लिया।

"बहुत खूबसूरत लग रहे हो तुम।"- शीतल के कान के पास अपने होंठ ले जाकर मैने कहा।

"लब यू मेरी जान।"

'चलें?'

"हाँ चलो...कितना प्यारा मौसम है न आज।"

"हाँ, बताया था मैंने...अब तो बारिश भी हो रही है।"
"अरे वाह!...दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं..."- शीतल ने कार में बैठते ही गुनगुनाना शुरू कर दिया।

कार अब नोएडा के लिए बढ़ चली थी। मौसम बहुत खुशनुमा था। झमाझम बारिश हो रही थी। कार में शीतल के पसंद की गजलें माहौल को कमानी कर दे रही थीं। ऊपर से शीतल के बदन की खुशबू, पूरी कार को महका रही थी। शीतल, बीच-बीच में मेरे करीब आकर अपने होंठों से मेरे गालों को छू लेती थीं, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे। मैं मना भी करता, पर शीतल कहाँ मानती...वो तो बस किसी बच्ची की तरह मेरे गले से लिपट जाती। बारिश में कार चलाना मुश्किल होता है। मैं कई बार शीतल को बोल चुका था, बावजूद इसके वो अपनी छेड़खानी से बाज नहीं आने वाली थीं। कभी मेरे हाथों पर अपने हाथ रख देना, कभी मेरी आँखों में अपनी आँखें डाल देना। कभी मेरे कंधे पर अपने हाथ रख देना और कभी मेरी गर्दन पर चुंबन रख देना। ऑफिस तक के एक घंटे के सफर में शीतल की ये शरारतें बंद नहीं हुई थीं। शीतल, मस्ती में डांस कर रही थीं। वो कार के अंदर हूटिंग कर रही थीं। ऐसे लग रहा था जैसे शीतल के अंदर कोई चौदह-पंद्रह साल की लड़की छिपी है, जो इस मौसम का पूरा आंनद लेना चाहती है। हम दोनों अब ऑफिस पहुँच चुके थे। मैंने कार, पाकिंग की तरफ बढ़ा दी थी। कार खड़ी करके शीतल उतरने के लिए जैसे ही मुड़ी तो मैंने उनका हाथ थाम लिया। शीतल ने मुड़कर मेरी आँखों में देखा, तो वो समझ गई कि ये शरारत है मेरी। शीतल वापस सीट पर आराम से बैठ गई। इस बार मैं शीतल के करीब आ रहा था। शीतल मेरी आँखों में देखे जा रही थीं। मैंने अपना एक हाथ शीतल की पीठ की तरफ बढ़ाया, तो उनके बदन में एक बाइब्रेशन हो उठा। दूसरे हाथ से शीतल के चेहरे को पकड़कर अपनी तरफ किया, तो उनकी साँसें तेज हो गई। शीतल अब मेरी तरफ मुड़ चुकी थीं। मैं और शीतल एक-दूसरे के करीब आते जा रहे थे। अगले ही पल शीतल की आँखें बंद हो गई और मेरे होंठों ने उनके होंठों पर अपने प्यार की चादर चढ़ा दी। शीतल ने भी अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ लिया। हम दोनों एक-दूसरे में डूबते जा रहे थे। एक-दूसरे की गर्म साँसें टकराने लगी थीं। एक-दूसरे के भीतर की गर्माहट को हम दोनों महसूस कर रहे थे। कोई भी इस पल को गवाना नहीं चाहता था। कार के शीशों पर बारिश की बूंदें थीं। अंदर ऐसे लग रहा था जैसे हम किसी कमरे में बंद हैं। मैं भी कभी उनके होंठों को चूमता, तो कभी उनकी गर्दन को। कभी मैं उनके बालों से खेलता, तो कभी उनकी ऊंगलियों से।
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09-17-2020, 12:40 PM,
#54
RE: RajSharma Stories आई लव यू
शीतल और मैं एक-दूसरे में पूरी तरह डूब चुके थे, पर मजबूरी ये थी कि ऑफिस भी जाना था। मैंने शीतल को संभलने का मौका दिया, तो शीतल आँख बंद कर सीट पर ही लेट गई। कार के अंदर बस हम दोनों की तेज साँसों की आवाज थी। कुछ देर में हम दोनों मौन होकर ऑफिस में दाखिल हो गए।

जब इंसान प्यार में होता है, तो उसे हर पल अपने हमदम का ही बयाल रहता है। दिल चाहता है कि बस एक-दूसरे की आँखों में आँखें डालकर बैठे रहें, एक-दूसरे से बातें करते रहें। ऐसा ही हाल इस बक्त मेरा था। ऑफिस में अपनी सीट पर बैठ तो गया था, लेकिन कोई काम करने का मन ही नहीं कर रहा था। जो कुछ कार में हमारे बीच हुआ, उसका खुमार अभी तक था, तो दूसरी तरफ शाम के बारे में सोचकर मन में अनगिनत तरह की उमंगें थीं। इंतजार उस पल का था, जब मैं और शीतल, खूबसूरत शाम को एनज्वॉय करने निकल पड़ेंगे।

घड़ी की सुई की तरफ देखते-देखते मैं थक चुका था। बक्त किसी बैलगाड़ी की तरह आगे बढ़ रहा था। ऑफिस में बैठना मुश्किल हो रहा था। बेकरारी की इंतहा शायद इसी को कहते हैं। शीतल अभी तक अपने होंठों पर मेरी गर्माहट महसूस कर रही थीं। यही वजह थी कि दिन में मेरे कई बार कहने के बाद भी बो मिलने नहीं आई। हर बार उन्होंने ये ही कहा, “राज शाम बाकी है अभी।"

शीतल जब ये बात कहतीं, तो मेरी बेकरारी और बढ़ जा रही थी। मैं बार-बार भगवान से बस यही प्रार्थना कर रहा था कि जल्दी से पाँच बजे और हम बाहर निकलें।

आखिरकार पाँच बज गए। शीतल का फोन तुरंत आ गया। "हम्म..तो क्या प्लान है जनाब का?"

"शीतल, पागल हो गया हूँ आज पाँच बजे का इंतजार करते-करते...अब चलो जल्दी।" मैंने कहा।

"अच्छा बाबा चलते हैं...आप फ्री हो गए?"- शीतल ने हँसते हुए पूछा।

"हाँ, मैं तो सुबह से फ्री है...चलिए अब

"ठीक है...मैंने बैग पैक कर लिया है, मिलिए रिसेप्शन पर।"

'ओके।

मैं अपना बैग लेकर रिसेप्शन पर पहुँच गया था, थोड़ी ही देर में शीतल भी पहुंच गई। हम दोनों कार की तरफ बढ़ते जा रहे थे। शीतल बहुत खुश नजर आ रही थीं। उनके चेहरे पर मुस्कान थी।

"क्या हुआ, बड़े चहक रहे हैं आप!"- मैंने पूछा और शीतल जोर से मुस्करा पड़ी।

"नहीं तो...ऐसी तो कोई बात नहीं है, हम तो नॉर्मल हैं..."

"अच्छा...चेहरा तो देखिए अपना; कितना गुलाबी हो गया है।"

"अच्छा...ये जो आपकी आँखें इतनी चमक रही हैं न राज मियाँ... हमारे चेहरे पर उसका रिफलेक्शन दिख रहा है।"

"ओके...तो ये असली बात।" । कार में बैठते हुए शीतल ने कहा था

"जानते हो...तुम जब हमारी आँखों में देखते हो न, तो हमारे चेहरे की चमक खुद-ब खुद बढ़ जाती है; जब तुम मुझे छूते हो न, तो हमारे शरीर में करंट दौड़ जाता है और उस करंट की झनझनाहट कई घंटों तक मेरी नसों में रहती है। तुम मेरे दिल-दिमाग में ही नहीं रहते हो, तुम मेरे खून में बसते हो और मेरी नसों में दौड़ते हो। आज सुबह से हम हर पल इस वक्त का इंतजार कर रहे थे। जितने बेकरार तुम थे दिन में मिलने के लिए, उतनी ही बेकरार मैं भी थी... पर मैं कुछ मिनट मिलकर खुद की भावनाओं को जाहिर नहीं करना चाहती थी। यही वजह है कि मैं दिनभर अपने दिल को इस खूबसूरत शाम के लिए थाम कर रखा। अक्सर में अपने दिल की बात तुमसे कम ही कह पाती है...आप हमारे कहे बिना आँखों से मेरे दिल की बात जान लेते हो; पर आज जो मेरी आँखों में है और जो मेरे दिल में है, वो मेरी जुबां पर भी होगा।"
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09-17-2020, 12:40 PM,
#55
RE: RajSharma Stories आई लव यू
कार, हौजखास की तरफ बढ़ चुकी थी। शीतल की बातें कानों में इस कदर चाशनी घोल रही थीं कि मैंने कार में म्यूजिक ऑफ कर दिया था। शीतल की इन बातों से मेरे चेहरे पर अजीब-सी खुशी थी। शीतल मेरी आँखों में देखकर बस बोलती जा रही थीं और मैं बीच बीच में उनकी आँखों में देख रहा था।

पता है राज, हमारी जिंदगी में न कोई खुशी नहीं थी; हम सुबह छह बजे उठते थे, फिर अपनी बेटी को प्यार से उठाते थे। उसके लिए लंच बनाना और फिर उसे तैयार कर स्कूल भेजना। उसके लिए जो लंच हम बनाते थे, उसमें से थोड़ा हम ऑफिस आते वक्त खाकर आते थे। ऑफिस आकर हम कैंटीन में ही अपना ब्रेकफास्ट और लंच करते थे। अपने अतीत को भुलाकर दिनभर काम में डूबे रहते थे। बहुत ज्यादा किसी से बात नहीं करते थे। कोई हमारी जिंदगी के बारे में पूछ भी लेता था, तो हम बेहिचक बता देते थे कि हमारा तलाक हो चुका है और फिर अकेले में जाकर बहुत रोते थे। जब घर जाने का वक्त होता था, तो हम रास्ते से ही कुछ खाकर जाते थे। हमें अच्छा नहीं लगता है कि हम अपने पापा-मम्मी पर बोझ बनकर रहें। लेकिन कर भी क्या सकते हैं...हम अलग भी नहीं रह सकते और अपने घर में अब पराए की तरह रह रहे हैं। राज, हमारे घर में हमारा अलग कमरा भी नहीं है,हम मालविका के साथ इरॉइंग रूम में सोते हैं। हम टूट चुके थे बिलकुल । मालविका के अलावा हमारी कोई जीने की वजह नहीं थी, इसलिए बस जिंदा थे हम। हम न हँसते थे और न किसी फंक्शन में शामिल होते थे। हमें सजने-संवरने का भी मन नहीं करता था। लेकिन जबसे आप हमारी जिंदगी में आए हैं, हम खिल से गए हैं। आपने इस मुरझाए शरीर में जान डाल दी है। आपने सजाया है हमें, सँवारा है हमें। आज आपकी वजह से हम किसी फंक्शन में जा रहे हैं। ये जो सूट हमने पहना है न, हमें बहुत प्यारा लगता है। लेकिन हमारा मन नहीं कहता था कभी इसे पहनने को। पता नहीं क्यू, आज आपके सामने इतना सजकर आने का मन किया। सच कहें, तो अब हर रोज कुछ नया और अच्छा पहनने का मन करता है, क्योंकि आपसे मिलना होता है।"

शीतल की आँखों से आँसू छलक रहे थे। बो अपने आँसुओं को बार-बार पोंछती जा रही थीं। मैं उनकी आँखों में देखकर बस मुस्करा रहा था।

राज, सच कहूँ, तो तुमने मेरी दुनिया फिर से रोशन कर दी है। अब हम हँसने लगे हैं, मुस्कराने लगे हैं, खिलखिलाने लगे हैं। ऑफिस में सब हमारे इस बदले व्यवहार से चौंके हुए हैं, पर सब ये देखकर खुश हैं कि हम खुश हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ तुम ही हो राज । मैं अपनी जिंदगी में किसी खुशी की उम्मीद छोड़ चुकी थी। मुझे प्यार में ऐसे धोखा मिला, कि प्यार से मेरा भरोसा ही उठ गया था। मैं सोचती भी नहीं थी कि कोई ऐसा शख्म मेरी जिंदगी में आएगा, जो मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर देगा। मैं कितनी बड़ी हूँ तुमसे, फिर भी तुम कितना प्यार करते हो मुझे मेरे अलावा किसी और के बारे में खयाल तक नहीं आता तुम्हारे मन में। तुम्हारे दोस्त मुझे बताते हैं कि तुम कितने पागल हो मेरे लिए। सच में तुम मेरी जिंदगी में एक नई रोशनी लेकर आए हो। तुमने ही कहा था कि अभी तो मैं तुम्हारी जिंदगी में आई भी नहीं हैं, फिर भी ढेर सारी खुशियाँ लेकर आई हूँ। ___

“राज, हकीकत तो ये है कि अभी तो तुम पूरी तरह मेरी जिंदगी में आए भी नहीं हो, फिर भी मेरी जिंदगी में बड़े बदलाव लेकर आए हो। मैं भी नहीं जानती हूँ कि तुम मेरे हो पाओगे या नहीं, फिर भी तुम्हारा आना एक उम्मीद जगाता है मेरे मन में। मैं टूट गई थी, बिखर गई थी, डरने लगी थी। सब-कुछ खो जाने का डर था। लगता था, अब जिंदगी कैसे जी पाऊँगी? लेकिन तुम्हारे आने के बाद डर नहीं लगता है अब। जब तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ चलते हो, जब तुम मेरी आँखों में आँखें डालकर खिलखिलाकर हँसते हो, मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरी परेशानी बाँटते हो, तो लगता है जैसे तुम इसी दिन का इंतजार कर रहे थे मेरी जिंदगी में आने का। तुम सच में बिलकुल ठीक बक्त पर आए हो; जरूरत थी मुझे तुम्हारी इस वक्त... बिखरने से बचाया है तुमने मुझे।"- शीतल ये कहते कहते रोने लगी थीं।

“शीतल, जब मैं इतनी सारी खुशियाँ लेकर आया हूँ, तो आँखों में आँसू क्यों? सब बहुत अच्छा है...रोना बंद करो बाबू; में कभी टूटने नहीं दूंगा तुम्हें, कभी बिखरने नहीं दूंगा... जान हो तुम मेरी शीतल, आपकी खुशी ही मेरी जिंदगी का मकसद है अब तुम्हें डरने और घबराने की कोई जरूरत नहीं है। मैं हमेशा तुम्हारी जिंदगी में रहूँगा... कभी दूर नहीं जाऊँगा। बस तुम कभी रोना मत...तुम्हारे आँसू बहुत कीमती हैं, इन्हें फिजूल में मत बहाना।"- मैंने कहा।

मेरे इतना कहने भर से शीतल के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। उनका चेहरा खिल उठा था।

"राज, फंक्शन में खाली हाथ जाएंगे हम?"- शीतल ने आँसू पोंछते हुए कहा।

“अर हाँ...मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा; क्या लेकर चलें सागर के लिए?"

"ऐसा करते हैं कुछ मीठा और बुके ले चलते हैं।"

"ओके...गुड आइडिया; आगेहल्दीराम से कुछ ले लेते हैं।"

ठीक सवा छह बजे थे और हम सागर के रेस्तरां के बाहर खड़े थे।

बाहर से किसी खूखार भूत जैसे डिजाइन का यह रेस्तराँ काफी डरावना था। लंबे-लंबे दाँतों वाले विशाल राक्षस का मुंह, दरवाजे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। मैं और शीतल भी इसी भूतिया रेस्तराँ में दाखिल हो रहे थे। अंदर घुसते ही इंसानी हड्डियाँ गैलरी में लटकी हुई थीं। कहीं खोपड़ियों के आगे दिये जल रहे थे, रंग-बिरंगी रोशनी और धुआँ पूरे माहौल में इस कदर फैला था, मानो हम किसी पुरानी हवेली में आ गए हों। यह सब देखकर शीतल थोड़ा डर-सी गई थीं। उनके एक हाथ में गुलदस्ता था, तो दूसरे हाथ से उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया। जैसे ही हम आगे बढ़े, तो भूतिया बेश में कुछ बेटर, प्लेट में रिंक लेकर टहल रहे थे। ये गैलरी जहाँ खत्म होती थी, वहाँ आत्माओं के कराहने जैसी आवाजें भी आ रही थीं। हम जैसे ही इस कंपार्टमेंट में दाखिल हुए, एक डरावनी आवाज बाला शख्म हमारी तरफ झपटा। शीतल ने तो अपना चेहरा मेरे कंधे पर रख दिया। जैसे ही शीतल चीखीं, तो सागर अपने असली रूप में सामने था।

"क्या राज, डर गए यार तुम लोग...इसका मतलब मेरा ये रेस्तराँ बनाना सफल रहा।"- सागर ने कहा।

“यार कमाल का रेस्तराँ बनाया है....लगता है जैसे पुरानी हवेली में आ गए हों।"

"तो तुझे पसंद आया?"

"अरे बहुत पसंद आया...अच्छा शीतल, ये सागर है...ये रेस्तराँ इसी का है और सागर, ये शीतल है...मेरी सबसे अच्छी दोस्त।"- मैंने दोनों का परिचय कराया और शीतल ने

गुलदस्ता सागर की तरफ बढ़ा दिया।

गुलदस्ता लेकर सागर हमें हॉल में लेकर पहुंचा, जहाँ सब लोग अपनी-अपनी टेबल पर बैठे थे। हर तरफ डरावनी कलाकृतियाँ थीं। कई कलाकृतियाँ ऐसी थीं, जिन्हें देखकर लग रहा था कि अभी चुडैल बाहर निकलेगी और खा जाएगी। सागर ने मुझे और शीतल को एक कॉर्नर बाली टेबल पर बिठाया और बाकी मेहमानों को लेने चला गया।

"शीतल, कैसा लगा?" - मैंने पूछा।

“यार राज, बहुत डरावना है न सब; इंसान डर के मारे खाना ही नहीं खा पाएगा।" शीतल ने कहा।

"हाँ सच में...अरे! वो देखो चुडैल।"- मैंने एक बेटर की तरफ इशारा करते हए कहा।

"राज, कितनी डरावनी है वो...पास आएगी तो डर लगेगा यार।"- शीतल ने कहा और वो डरावनी बेटर हमारी तरफ ही आ गई।

"सर, क्या लेंगे आप लोग?"- उसने पूछा। मैंने अपने लिए कोल्ड कॉफी और शीतल के लिए कोक ऑर्डर कर दिया। इस बीच सामने खड़े सागर की आवाज आई।
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09-17-2020, 12:40 PM,
#56
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"लेडीज एंड जेंटलमेंन! इस भूतिया रेस्तरां में आप सभी मेहमानों का स्वागत है। बड़ी बुशी की बात है कि इतने डरावने माहौल में भी आप सभी के चेहरे पर खुशी है। इस नए रेस्तराँ की ओपनिंग के मौके पर आप सभी हमारी खुशी में शामिल हुए, इसके लिए धन्यवाद: अब आप सभी इस खास रेस्तरां में भूतों और चुडैलों के साथ लजीज खाने का आनंद लीजिए।"

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था। मैं और शीतल अपनी टेबल पर बैठ गए। चुडैल जैसी बेटर, मेरे लिए कोल्ड कॉफी और शीतल की कोक भी ले आई थी।

"ओ हलो! तुम लोग क्या बस कॉफी और कोक से ही काम चलाओगे?"- सागर ने कहा।

"नहीं यारले लेंगे कुछ और।"- मैंने कहा।

"ले लेंगे क्या...ऑर्डर करो।"- सागर ने एक बेटर को बुलाते हुए कहा।

"ओके डियर।"- मैंने कहा।। सागर, बाकी मेहमानों का हाल लेने चला गया। मैंने और शीतल ने अपने लिए मखमली कोफ्ता, दम आलू लखनवी, पनीर टकाटक, स्टफ नान, दही और पट-कर्ड सलाद ऑर्डर कर दिया था। पूरा माहौल खुशनुमा था, हर तरफ रंग-बिरंगी रोशनी थी, धुआँ भी था। हल्की रोशनी में शीतल सुनहरे सूट में और दमक रही थीं। मैं और शीतल एक-दूसरे के सामने बैठे थे। हम दोनों की आँखें एक-दूसरे की आँखों से बात कर रही थीं। मेरे पैर शीतल के पैरों के साथ खेल रहे थे। कुछ ही देर में खाना हमारी टेबल पर मज चुका था। हमेशा की तरह आज भी पहली बाइट मैंने शीतल को ही खिलाई थी। जितना खूबसूरत रेस्तराँ था, खाना उससे भी ज्यादा स्वादिस्ट था। हम दोनों उस लजीज खाने का आनंद ले रहे थे। शीतल ज्यादा बात नहीं कर रही थीं। जब शीतल के दिल में कुछ चल रहा होता था, तो वो अक्सर शांत हो जाती थीं; बस उनके दिल में क्या चल रहा है, उसका भाव उनके चेहरे पर दिखता था। उनका चेहरा साफ बता रहा था कि वो आज बहुत खुश हैं। उनकी आँखों में चमक थी और उस चमक पर हल्की-सी नमी थी। मैं एक-एक बाइट शीतल को खिलाता जा रहा था और वो बस मेरी आँखों में आँखें गड़ाए बैठी थीं।

डिनर हो चुका था। मैं और शीतल अपनी टेबल से खड़े होकर सागर के पास गए और उसे मिठाई का बॉक्स देकर एक बार फिर बधाई दी। अब हमारे चलने का वक्त था। मागर से इजाजत लेकर मैं और शीतल घर के लिए निकल पड़े थे। शीतल अभी भी शांत थीं। कार में फिर उन्हीं के पसंद के गाने बज रहे थे। शीतल की आँखें बंद थीं और उन्होंने कोहनी के पास से मेरा हाथ पकड़ा हुआ था। गाड़ी कनॉट प्लेस के रास्ते पर थी और जो गाना चल रहा था, वो था “दो पल रुका ख्वाबों का कारवां और फिर चल दिए तुम कहाँ हम कहाँ..."

जैसे-जैसे ये गाना खत्म हो रहा था, वैसे-वैसे शीतल की आँखों से आँसू बहने लगे थे। मैंने उनकी तरफ देखा, तो मैं डर गया कि क्या हुआ।

"शीतल क्या हुआ?'- मन पूछा।

"कुछ नहीं राज...तुम गाड़ी चलाओ।'' - शीतल ने इशारे से बताया।

"अरे, तो फिर रो क्यों रहे हो?"- मैंने गाड़ी साइड लगाते हुए पूछा। ___

“कुछ नहीं राज; ये गाना बहुत प्यारा है...बस सुनते हुए आँखों मे आँसू निकल आए।"- शीतल ने आँसू पोंछते हुए कहा।

“क्या शीतल...मैं डर जाता हूँ जब तुम रोती हो; मैं साथ हूँ न, तो फिर क्यों रोना।" मैंने कहा।

"राज, मैं डर जाती हूँ कभी-कभी, कि अगर आप भी मेरी जिंदगी में न रहे, तो मैं क्या करुंगी? आपके घरवाले हमेशा शादी की बात करते हैं; आज न कल आपकी शादी कहीं हो ही जाएगी, तब मैं कितनी अकेली हो जाऊँगी... तब तो शायद मैं आपको फोन भी नहीं कर पाऊंगी।"

"अरे बाबा, राज सिर्फ तुम्हारा है...सिर्फ तुम्हारा; मैं कहीं नहीं जा रहा है।"- मैंने शीतल को समझाते हुए कहा।

“जानती हूँ राज, ये सब आप मुझे समझाने के लिए बोल रहे हो..हकीकत तो ये है कि आपकी शादी होते ही मैं अकेली पड़ जाऊँगी। पर कोई बात नहीं, आपकी यादों के महारे जिंदगी काट लूँगी अपनी। राज एक बात बोलूँ आपमे...इतना प्यार मत करो मुझसे मुश्किल होगी आपको भी। आप मुझे इतना प्यार करते हैं और उस प्यार के बदले मैं आपको कुछ नहीं दे पाऊँगी... काश! मैं छह साल छोटी होती।"- शीतल ने कहा। __

"शीतल, इधर आओ...आँसू पोंछिए अब; मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ... मैं अपनी जिंदगी आपके साथ बिताऊँगा शीतल।"- मैंने कहा।

“राज, ये हो नहीं पाएगा...कोई फायदा नहीं है ये सोचने का।"- शीतल ने कहा।

"शीतल, राज तुम्हारा होकर रहेगा और अब बिलकुल चुप हो जाओ; आओ मीठा पान खाते हैं।"- मैंने कहा।

शीतल और मैं पान खाने के लिए कार से उतर गए थे। हम लोग शीतल के घर के करीब ही थे। मैंने शीतल को तो समझा दिया था, लेकिन उनकी बातों से आज मैं भी डर गया था। मैं शीतल का हो पाऊँगा और शीतल मेरी हो पाएँगी? इन बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था। मैं बहुत घबराया हुआ था। दिमाग कुछ सोचना नहीं चाहता था। शीतल को माथे पर प्यार भरा चुंबन देकर बाहों में लिया और अपने घर की तरफ बढ़ गया। रास्ते भर शीतल की बातें दिमाग में घूमती रहीं। शीतल की हालत देखकर मैं उन्हें ये भी नहीं बता पाया कि शाम को पापा का फोन आया था और उन्होंने शादी की बात फिर छेड़ दी। दो दिन बाद पापा और उनके साथ कुछ लड़की वाले आने वाले हैं मुझसे मिलने। मैंने पापा से शादी के लिए मना किया, लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि बहुत हो चुका तुम्हारा ड्रामा हमलोग आएंगे तो चुपचाप रहना। एक तरफ शीतल की परेशानी और दूसरी तरफ पापा ने एक बड़ी टेंशन दे दी थी।

बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं रातभर नींद का इंतजार करता रहा, पर कोशिश नाकाम ही रही। इधर-उधर करवट बदलते-बदलते सुबह के पाँच बज चुके थे।

बाहर अँधेरा छैट चुका था। लेटे-लेटे में काफी थक चुका था। अब और देर तक लेटे रहने की क्षमता मेरे शरीर में नहीं थी। उठकर हाथ-मुँह धोया और बाहर बालकनी में आकर टहलने लगा। कुछ ही देर में न्यूजपेपर वाले भैय्या ने आवाज लगाकर अखबार ऊपर फेंक दिया था। जिस अखबार के इंतजार में में हर सुबह पागल रहता था, आज उसे पढ़ने में भी बेरुखी थी। देश-दुनिया का हाल जानने में आज मुझे कोई दिलचस्पी ही नहीं हो रही थी।

बालकनी से नीचे नजर की, तो डॉली मॉर्निंग वॉक पर निकली थीं।

"डॉली! डॉली!"- मैंने आवाज दी।

"ओह! हाय राज, गुडमॉनिंग।"

'मार्निग वॉक।'

"हाँ...आओ न नीचे, चूमते हैं।"

"ओके..बेट; आता हूँ।" डॉली के साथ पार्क का राउंड लगाकर और फिर भुवन भैय्या के यहाँ चाय पीकर; शायद सिर का दर्द थोड़ा कम हो जाए, ये सोचकर मैंने नीचे जाना बेहतर समझा। मैं और डॉली पार्क में साथ-साथ घूमने चल दिए।

"तो, कैसी नींद आई?'- डॉली ने पूछा।

"आई ही नहीं यार।"

'क्यूँ?'

“ऐसे ही यार... कभी-कभी होता है ऐसे भी।"- मैंने टालते हुए जवाब दिया।

"देखो राज, जब कोई बात होती है, तब ही ऐसा होता है; सच बताओ क्या प्राब्लम है...शीतल ठीक हैं न?

“अरे कोई प्राब्लम नहीं है और शीतल बिलकुल ठीक हैं।"
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09-17-2020, 12:40 PM,
#57
RE: RajSharma Stories आई लव यू
“देखो राज, मैं बहुत अच्छा दोस्त मानने लगी हूँ तुम्हें; समझती हूँ कि कोई प्राब्लम है... प्लीज बताओगे मुझे? शायद मैं कोई मदद कर पाऊँ तुम्हारी।"

"बड़ी प्राब्लम नहीं है, बस ऐसे ही; चलो भुवन भैय्या के यहाँ चाय पीते हैं।"- मैंने चलने के लिए इशारा करते हुए कहा।

"चलो चाय पर बताना फिर क्या बात है; मैं जानना चाहती हूँ।"

थोड़ी ही देर में हम दोनों भुबन के यहाँ थे। "और भुबन भैय्या...क्या हाल हैं?"

"सब बढ़िया राज भैय्या..बैठो, चाय भिजवाता है।"

"हाँ, दो भिजवाना...थोड़ी हाई।"

"अच्छा तो जनाब, अब बताओ क्या बात है?"

"डॉली, पापा का फोन आया था कल शाम; कल या परमों में पापा कुछ लड़की बालों के साथ आ रहे हैं। बो मेरी शादी करना चाहते हैं और मैं सिर्फ शीतल का होना चाहता हूँ। शीतल को अकेला छोड़कर मैं किसी और लड़की से शादी नहीं कर सकता हूँ। रात मैं और शीतल एक फंक्शन में गए थे। वहाँ से लौट रहे थे, तो शीतल खुद को रोक नहीं पाई और बो खूब रोई। मुझसे उनका रोना देखा नहीं जाता है... मेरे बाद शीतल का क्या होगा डॉली?"- मैंने कहा।

"तो राज, तुम घर पर पापा से बात करो न और उन्हें बताओ शीतल के बारे में।"

“डॉली, ऋषिकेश जैसे शहर अभी भी पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों को लेकर चल रहे हैं। मैं जानता था कि अगर मैं घर में शीतल के बारे में बताऊँगा, तो कोई भी उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। घर में कोई भी मेरी और शीतल की शादी के लिए राजी नहीं होगा। एक तो शीतल मुझसे बड़ी हैं और ऊपर से तलाकशुदा; पापा की तो नाक पर आ बनेगी। अपनी नाक का हवाला देकर वो मुझे घर से बाहर निकाल देंगे। शीतल के साथ होकर भी मैं घरवालों से अलग नहीं रह पाऊंगा... छोटे शहरों में अभी भी लोग इन चीजों से ऊपर नहीं उठ पाए हैं।"

“राज, वो तुम्हारे पैरेंट्स हैं...बात करोगे तो क्यों नहीं मानेंगे? एक बार बात करके तो देखो...?”

“डॉली, मैं अच्छी तरह जानता था कि शीतल की बात घर में छेड़ते ही जो तूफान आएगा, उसका असर सीधा रिश्तों पर पड़ेगा। या तो मुझे घर छोड़ना पड़ेगा या शीतल को। लेकिन बड़ी प्राब्लम ये है कि मैं ये सब बातें मम्मी और पापा से कहूँ कैसे?"

"राज, घरवालों ने तुम्हें पाला है..उनमे दर होकर तुम खुश नहीं रह पाओगे...और शीतल तुम्हारा प्यार हैं, उन्हें तुम अकेला छोड़ नहीं सकते हो, इसलिए सोचा क्या कर सकते हो?"

“यार बही तो मुझे समझ नहीं आ रहा है, कि जब पापा लड़की वालों को लेकर आएँगे, तो मैं उनके सामने कैसे रिएक्ट करूंगा, या उनसे मैं क्या कहूँगा? मुझे नहीं समझ में आ रहा है कि अगर मेरी शादी कहीं और हो गई, तो शीतल का क्या होगा? मैं अभी तक इसका जवाब ढूँढ रहा हूँ, कि अगर मेरी शादी पापा ने कहीं तय कर दी, तो क्या मैं उस लड़की को प्यार कर भी पाऊँगा या नहीं?

“राज, डर की वजह से शीतल के बारे में घरवालों को नहीं बताना, समझदारी नहीं है। तुम एक काम करो...एक बार मम्मी-पापा को बता दो, फिर जैसा उनका रिएक्शन हो, उससे आगे के बारे में प्लान करना।"

“डॉली, उनका रिएक्शन तो मैं जानता हूँ; पापा तुरंत कह देंगे कि हमारे घर में आने की कोई जरूरत नहीं है और रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे।"

"तो फिर क्या करोगे तुम? शीतल को छोड़ दोगे क्या?"

"नहीं डॉली शीतल को तो मैं सपने में भी नहीं छोड़ सकता हूँ; वो जान हैं मेरी...पर मुझे अभी नहीं पता कि मैं क्या करूँगा...कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"

"राज, तुम्हें अच्छी तरह सोचना चाहिए कि क्या करना है। कुछ अच्छे दोस्तों से राय ले लो...मेरी राय ये है कि एक बार घर पर बता दो, क्या पता मम्मी मान जाएँ तुम्हारे।"

मैं जानता था, कि डॉली जितना आसानी से यह कह रही है, सब-कुछ उतना आसानी से नहीं होने वाला है; लेकिन मैं शीतल के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटने वाला था, इसलिए डॉली के जवाब में बस सिर हिला दिया था।

"अच्छा, मुझे कब मिलबाओगे शीतल से?"

"आज शाम को क्या कर रही हो तुम?"

"ऑफिस जाऊँगी...सात बजे; ऑफिस से फ्री हो जाऊँगी।"

"तब ठीक है; तुम ऑफिस के बाद कनॉट प्लेस ही रुकना...मैं और शीतल वहीं आ जाएंगे: आज ही मिलते हैं।"

"ओके...डन! तो आज शाम को हम मिल रहे हैं..."

"ओक...पक्का ।"

दस बजे थे और मैं ऑफिस के लिए तैयार होकर मयूर विहार के कट पर पहुंच चुका था। आज शीतल के साथ ही ऑफिस जाना था। शीतल यहीं से मुझे लेने वाली थीं।

उनका इंतजार करते-करते मैं यही सोच रहा था, कि क्या शीतल को बता दूं कि पापा से क्या बात हुई है।
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09-17-2020, 12:41 PM,
#58
RE: RajSharma Stories आई लव यू
लेकिन मैं फिर सोचता था कि शीतल यह बात जानकर परेशान हो जाएंगी। बादल छाए हुए थे... ऐसा लग रहा था जैसे थोड़ी देर में तेज बारिश होगी। असमंजस की स्थिति में शीतल के आने का इंतजार कर रहा था। थोड़ी देर में शीतल की स्कूटी मेरे सामने रुकी।

"गुडमॉनिंग..."- शीतल ने कहा।

"गुडमॉर्निंग...लुकिंग प्रिटी।"

“थॅंक यू...आप भी स्मार्ट लग रहे हैं।"

"ओके, तो चलें?"

"हाँ, पर आप ड्राइव करिए।

" मैं ड्राइब कर रहा था और शीतल मुझे हग करके पीछे बैठी थीं। मैं सोच रहा था कि कैसे शीतल को बताऊँ पापा की बात। काफी देर तक शांत रहने के बाद मैंने हिम्मत जुटाई और शीतल से कहा

"शीतल, कुछ बताना है आपको।"

"हाँ बताओ न।"

“पहले प्रॉमिस करो,टेंशन में नहीं आओगी।"

"अगरटेंशन वाली बात होगी, तो टेंशन हो जाएगी मुझे।"

"देखो टेंशन वाली कोई बात नहीं है; परमों पापा आ रहे हैं दिल्ली।"

"अरे वाह! ये तो अच्छी बात है। मुझे मिलना है अंकल से।"

"शीतल, पापा के साथ कुछ लोग भी आ रहे हैं।"

"कौन लोग? रिलेटिव्म?"

"नहीं...लड़की वाले मुझसे मिलने।"

'क्या?'- शीतल ने थोड़ा दूर हटते हुए कहा।

"हाँ, कुछ लड़की वाले आएँगे मिलने।"

"राज, तुम शादी कर रहे हो?"- शीतल ने पूछा। उनकी परेशानी साफ दिख रही थी।

"नहीं शीतल... अब मैंने तय कर लिया है कि मैं बस तुमसे शादी करूँगा। पापा उन लोगों के साथ आ रहे हैं; बस मिलूंगा उनसे और शादी के लिए मना कर दूंगा। तब भी पापा ने जिद की, तो बता दूंगा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुमसे ही शादी करुंगा।"

“राज, इतना आसान है क्या ये सब...अंकल तो कभी नहीं मानेंगे ये बात; फिर क्या होगा..तुम चले जाओगे मेरी जिंदगी से?"

"नहीं शीतल, ऐसा नहीं हो सकता है, मैं हमेशा तुम्हारा रहूँगा।"

"राज, हमें बहुत डर लग रहा है...पता नहीं परमों क्या होगा।"

"शीतल...बाबू सब ठीक होगा; तुम परेशान मत होना अभी से प्लीज।”- मैंने शीतल को समझाते हुए कहा। _

_“और हाँ, शाम को छह बजे निकलेंगे...डॉली से मिलवाना है आपको..बताया था न आपको उसके बारे में।"

“ठीक है, पर हमें बहुत टेंशन हो रही है।" । हम दोनों ऑफिस पहुंच चुके थे।

“शीतल, अब मैं टेंशन नहीं ले रहा है, तो तुम क्यों परेशान होती हो...मेरी मर्जी के बिना तो मेरी शादी नहीं होगी न... चलो स्माइल करो अब: टेंशन मत लो अब।"- मैंने स्कूटी पार्क करते हुए कहा।
समझाने के बाद भी शीतल के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रही थी, पर मेरे इतना कहने पर उन्होंने मुस्कराने की कोशिश जरूर की थी।
* * *
Reply
09-17-2020, 12:41 PM,
#59
RE: RajSharma Stories आई लव यू
शाम के ठीक सात बजे थे। मैं और शीतल, डॉली से मिलने के लिए कनॉट प्लेस जा रहे थे। फोन की घंटी बजी थी। ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर के सामने स्कूटी रोककर फोन निकाला, तो डॉली का ही फोन था।

"हेलो डॉली, कहाँ हो तुम?"

“मैं ऑफिस से फ्री हो गई हूँ: तुम लोग आ रहे हो न?"

"हाँ, मैं और शीतल कनॉट प्लेस में ही हैं...ऑक्सफोर्ड बुक के बाहर।"

“ओके...तो कहाँ मिलना है?"

"ऐसा करते हैं, हम लोग कॉफी हाउस मिलते हैं।" शीतल ने भी कॉफी हाउस के लिए हामी भर दी।

"इंडियन कॉफी हाउस न?"

"हाँ...वहीं मिलते हैं।"

"डॉली कहाँ है अभी?"

"वो कॉफी हाऊस के पास ही है, बस पहुँच रही है।"

“यहीं रहती है क्या वो?"

"नहीं, यहाँ वकिंग है बो।" कुछ ही देर में मैं और शीतल कॉफी हाउस पहुंच गए। कॉफी हाउस के टैरेस पर पहुँचे, तो डॉली पहले से बेट कर रही थी। मुझे और शीतल को देखकर वो खड़ी हो गई।

"हेलो राज!"- उसने कहा।

"हेलो...कैसी हो?"- मैंने कहा।

“एकदम बढ़िया....एंड यू आर शीतल!''- उसने शीतल की तरफ देखते हुए कहा।

"हाय...आई एम शीतल।"- शीतल ने डॉली की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा।

"यू आर रियली बेरी प्रेटी...ऐसे ही कोई पागल नहीं है तुम्हारे लिए।"- इतना कहकर डॉली हँसने लगी।

"तो क्या ऑर्डर करना है?"- मैंने टेबल पर बैठते हुए कहा।

"क्या लोगी डॉली?"-

शीतल। "कुछ भी।"-

"अरे, कुछ भी क्या...बताओ क्या ऑर्डर करना है? शीतल, तुम्हारे लिए?"- मैंने पूछा।

“मैं चॉकलेट मिल्क लूँगी; तुम बताओ डॉली।"- शीतल ने पूछा।

"मेरे लिए हॉट करीम कॉफी।"- डॉली ने मेन्यू देखकर बताया।
"ओके...एक चॉकलेट मिल्क, एक हॉट क्रीम कॉफी और एक मैंगो शेक; साथ में दो प्लेट चीज़ टोस्ट।" - मैंने ऑर्डर किया।

"डॉली, यही हैं शीतल।" __

_हम्म...बहुत अच्छी हैं...और जानती हो शीतल, जब हम ऋषिकेश से लौट रहे थे, तो पूरे रास्ते बस आपकी ही बात होती रही थी।"- डॉली ने मुस्कराते हुए कहा।

"अच्छा ...बताया हमें राज ने।"- शीतल।

"सच में राज और आप एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। दोनों साथ बैठकर बहुत अच्छे लगते हैं आप...और राज बहुत प्यार करता है तुम्हें ।"- डॉली।

"आई नो...तो डॉली क्या करती हो तुम?"-

शीतल।। “मैं एक कंपनी में कॉस्टयूम डिजाइनर है...यू कैन से फैशन डिजाइनर आलसो।"
डॉली। “वाओ! बेरी गुड; तुमको देखकर ही लग रहा है कि कितनी स्टाइलिश हो तुम।" –

शीतल।
"थॅंक यू मैम।"-

डॉली। “दिल्ली से ही हो? कहाँ है घर तुम्हारा?"-

शीतल। "हाँ, आई एम फ्रॉम दिल्ली...मेरा घर मयूर विहार में है...राज के पास ही।"

टेबल पर बेटर हमारा ऑर्डर रखकर चला गया था। सबने अपनी-अपनी चीजें ले ली थीं। डॉली और शीतल एक-दूसरे से बातें करने में मशगूल थीं। दोनों को एक-दूसरे से बातें करने में मजा आ रहा था। दोनों एक-दूसरे की कंपनी एनज्वॉय कर रही थी। मैं उनकी बातों में शामिल होकर भी शामिल नहीं था। मैंगो शेक का गिलास हाथ में लिए, मैं उस दिन के बारे में सोच रहा था, जब पापा और लड़की वाले मिलने आएँगे। अगर मैं चुप रहा और लड़की वालों ने मुझे पसंद कर लिया, तो क्या होगा? मेरी शादी तय हो जाएगी एक ऐसी लड़की मे, जिसे मैं जानता तक नहीं हूँ। और अगर मैंने शादी के लिए मना कर दिया, तो पापा घर से बाहर निकाल देंगे। इस बारे में मम्मी से भी बात कर चुका था। मम्मी भी समझाने वाले लहजे में ही बोली थी
“राज, तुम्हारे पापा बहुत टेंशन में है शादी को लेकर; तुमसे जब भी शादी की बात की जाती है, तुम मना कर देते हो...कोई वजह भी नहीं बताते हो। तुम्हारे सारे दोस्तों की शादी हो चुकी है; नमित और शिवांग की शादी को दो साल हो चुके हैं, तुमने ही बताया था...ज्योति की भी शादी है अगले महीने बेटा कब करोगे शादी? यही उम्र है शादी की। जिन लड़की वालों के साथ पापा तुमसे मिलने आ रहे हैं, वो देहरादन के रहने वाले हैं; अच्छा परिवार है, लडकी गवर्नमेंट टीचर है देहरादून में। फोटो हमने देखा है, सुंदर है लड़की; हाइट भी पाँच फीट चार इंच है... ठीक-ठाक रुपया भी खर्च करेंगे शादी में; तुम बस हाँ करो शादी के लिए।"
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09-17-2020, 12:41 PM,
#60
RE: RajSharma Stories आई लव यू
मुझे उम्मीद थी कि मम्मी शायद मुझे समझेंगी... पर उनकी इन बातों ने मेरी वो उम्मीद भी खत्म कर दी। मम्मी ने भी साफ-साफ शादी के लिए हाँ करने के लिए कह दिया, तो मैं शीतल के बारे में उन्हें बताने की हिम्मत ही नहीं कर पाया।

"बात रुपये-पैसे की नहीं है... मैं खुद अच्छा कमाता हूँ; बस मुझे शादी के लिए वक्त चाहिए थोड़े दिन और।"- मम्मी से बस मैं इतना ही कह पाया था।

"राज, तुम कहाँ खो गए हो?" - शीतल ने मुझे खयालों से बाहर निकाला।

"कहीं भी नहीं...आप दोनों की बातें सुन रहा हूँ और मैंगोशेक एंज्वाय कर रहा हूँ।"

"पर मैंगोशेक तो तुमने पी ही नहीं; कब से हाथ में लेकर बैठे हो।"- शीतल।

"अरे, आराम से पी रहा हूँ।" ।

"चलिए जल्दी फिनिश करिए, हमें घर भी जाना है; मालविका इंतजार कर रही है जनाब।"- शीतल।

'ओके।'

"डॉली बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलकर...बी बिल कीप इन टच ।"- शीतल ने डॉली से कहा।

"श्योर मैम...आई एम रियली वैरी हैप्पी टूमीट यू।"-

'फिनिश।'- मैंने मैंगोशेक का गिलास टेबल पर रखते हुए कहा।

"तो फिर चलें?"- शीतल।

“मैम फिर मिलते हैं कभी...आई विल बी रियली वेरी हैप्पी अगर आप लोगों की शादी में आऊँ।"- डॉली ने इतना कहा तो हम सबके चेहरे पर मुस्कराहट छा गई।

"काश! ऐसा हो पाता डॉली।"- शीतल ने कहा।

“मैम बिलीव इन गॉड...जरूर होगा ऐसा।"- डॉली ने शीतल की हथेली को पकड़ते हुए कहा।

शीतल अपनी स्कूटी पर बैठते हुए बस मुस्करा रही थीं।

"राज, तुम तो मयूर विहार ही चलोगे न?'- डॉली ने पूछा।

'हाँ।

देन आई विल ड्रॉप यू।"- डॉली ने कहा।

"तुम कार से हो?'- मैंने पूछा।

'हाँ।'- डॉली ने कहा।

"ओके शीतल...आराम से जाना; मैसेज करना पहुँचकर।" - शीतल को हग करते हुए मैंने कहा।

“ओके बॉय...यू बोथ टेक केयर ।”- शीतल इतना कहकर आगे बढ़ गई, मैं और डॉली, कार से घर के लिए चल पड़े।
___“राज, तुम्हारी प्रॉब्लम मैं समझ सकती हूँ; मैं जानती हूँ तुम टेंशन में हो...पर डोंट बरी, सब ठीक होगा।"- डॉली ने कहा।

___“पता नहीं डॉली, कैसे होगा सब ठीक...माँ से भी बात की। उन्होंने भी मेरी बात सुनी ही नहीं...वो भी बस ये ही बोली कि शादी के लिए हाँ कर दो...कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करे?" - मैंने कहा।

"तुमने शीतल को बताया?"

"हाँ यार...सुबह बताया उन्हें भी; बो भी काफी परेशान हैं। सिर्फ कल का दिन बीच में है...परमों बो लोग आएंगे दिल्ली: मुझे कल ही कुछ करना होगा, बरना प्रॉब्लम हो जाएगी।"

“पर राज, शीतल सच में बहुत प्यारी हैं. हमी तो उनकी रुकती ही नहीं है...उनकी आँखों में तुम्हारा प्यार दिखता है। वो दिल से तुम्हें अपना मान चुकी हैं..तुम अगर उनकी जिंदगी में नहीं रहोगे, तो टूट जाएँगी बो; तुम एक उम्मीद हो उनके लिए जीने की।" ___

“डॉली, जान हैं वो मेरी...और उनकी जान मुझमें बसती है। हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं...अगर अलग होना पड़ा, तो जिंदगी थम जाएगी दोनों की ही।" ___

“राज, आई नो यार, शीतल के लिए तुम्हारा प्यार भी दिखता है..तुम्हें बताने की जरूरत ही नहीं है। भगवान करे तुम दोनों जल्दी से एक हो जाओ।"

“पर कैसे डॉली...कैसे?" ।

“राज, सच बताऊँ तो तुम लोगों के लिए मुझे टेंशन होने लगी है अब।

" बात करते-करते हम मयूर बिहार कब पहुँच गए पता ही नहीं चला। डॉली ने गाड़ी अपने घर के बाहर पार्क कर दी।

"अच्छा डॉली, फिर मिलते हैं।"- मैंने उतरते हुए कहा।

"राज, घर आओ न।"

"डॉली, तुम जानती हो आज टेंशन में हूँ... फिर कभी; जब ये सब शार्ट आउट हो जाएगा।" __

"ठीक है, पर तुम टेंशन मत लो; भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा...तुम परमों का सोचो, क्या करना है...जो भी करना ऐसे करना कि किसी को भी प्रॉब्लम न हो।"

'हम्म..:- मैंने मुस्कराकर जवाब दिया।

"चलो फिरटेक केयर...गुड नाइट।"

"गुड नाइट...'
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