RajSharma Stories आई लव यू
09-17-2020, 12:41 PM,
#61
RE: RajSharma Stories आई लव यू
बालकनी में लेटे हुए, तारों को ताकते हुए रात गुजरी थी। दो बजे शीतल को जैसे-तैसे, कसमें खिलाकर मुलाया था। उधर वो भी मेरी शादी को लेकर परेशान थीं और इधर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। बुरे खयालों ने मेरे दिमाग में डर पैदा कर दिया था। एक डर था शीतल के छूट जाने का, तो एक डर था घर वालों से दूर हो जाने का।

साफ था, अगर मैं शीतल के साथ जिंदगी बिताने का फैसला करता है, तो घर से अलग होना पड़ेगा और अगर पापा की मर्जी से शादी करता हूँ, तो शीतल को अकेला छोड़ना पड़ेगा।

आज जिस हालत में शीतल हैं, उस हालत में मैं उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ सकता हूँ। दिन चढ़ चुका था। हर तरफ चहल-पहल होने लगी थी। आज मौसम भी साफ था। धूप निकलने को बेताब थी। मैं इसी असमंजस में था कि पापा को कल्न बुलाऊँ या मना कर दें। इसी सोच-विचार में कब आठ बज गए पता ही नहीं चला। मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था, जहाँ से दो रास्ते जाते थे; मुझे किसी एक रास्ते को चुनना था। लेकिन मैं एक रास्ते को चुनकर भी दोनों रास्तों पर अपना अधिकार चाहता था, जो शायद संभव होता नहीं दिख रहा था।

पापा और मम्मी की बातें दिमाग में चल रही थीं, तो शीतल के आँसू भी आँखों के सामने थे।

जब कुछ समझ नहीं आया, तो पापा को फोन मिला दिया।

"हेलो पापा!"

"हाँ राज, कैसे हो?"

"मैं ठीक है, आप कैसे हैं?"

"बस यहाँ भी सब बढ़िया है....कल्न की तैयारी है तुम्हारे पास आने की; तुम छुट्टी ले लेना कल की।"

“पापा, कल छुट्टी तो नहीं मिल पाएगी..."

"क्यों? तो फिर शाम को ऑफिस के बाद का प्रोग्राम रखते हैं। हम लोग शाम तक पहुँच जाएंगे, तुम ऑफिस के बाद आना।"

“पापा, मैं तीन दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ ऑफिस के काम से; जयपुर में इवेंट है एक।"

""राज, ये ड्रामा बंद करो; तुम्हें जब तीन दिन पहले बता दिया गया था कि लड़की वाले आएंगे, तो तुमने प्रोग्राम क्यों बना लिया जयपुर का?"- पापा ने थोड़े तल्ख मिजाज से कहा।

“पापा, तब नहीं पता था न मुझे अचानक से मुझे भेजा जा रहा है, तो क्या करूँ मैं? नौकरी वाली बात है।"

"तो अब मैं क्या करूँ? वो लोग तैयारर कर चुके हैं आने की।"

"पापा मुझे क्या पता...मुझे बस इतना पता है कि मैं तीन दिन के लिए जयपुर जा रहा हूँ इवेंट कराने।"

"तो फिर उन लोगों से मैं संडे के लिए कह दूं?"

"देखिए पापा, मैं अभी कुछ बता नहीं सकता हूँ संडे का भी...मंडे को शायद मुंबई जाना पड़े मुझे।" __

“देखो राज, तुम चराने की कोशिश मत करो हमें...पचास साल की उम्र हो गई है हमारी भी...दुनिया देखी है हमने ; तुम ये बताओ कि तुम्हें शादी करनी है या नहीं?"

“पापा मैं कोई चरा नहीं रहा हूँ आपको; बस मुझे अभी शादी नहीं करनी है...थोड़ा-मा समय चाहिए, आप लोग समझते क्यों नहीं हैं?"

"देखो राज, समझ तो तुम नहीं रहे हो..हम भी चाहते हैं कि तुम्हारी शादी हो, धूमधाम से हो, तुम्हारे बच्चों को खिलाएँ हम, घर में चहल-पहल बढ़े... पर तुम्हारे दिमाग में पता नहीं क्या भूत सवार है।"- पापा ने गुस्से से कहा।

“पापा, सारे काम होंगे, पर समय से होंगे; इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं।"

"ठीक हैतुम जानो,तुम्हारा काम जान...म उन लोगों से मना कर देता हःपर एक बात जान लो, ये बेइज्जती है हमारी...अब हमसे बात करने की जरूरत नहीं है, तुम अपना देख लो हिसाब-किताब।"- पापा ने कहा और माँ को फोन दे दिया।

"राज, क्या है बेटा ये सब; अब तुमको अचानक जयपुर जाना है?"

"मम्मी नौकरी है, कभी भी जाना पड़ सकता है...कल ही पता चला कि जाना है, अब क्या कर मैं?"

“अब बेटा मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता है....इधर तेरे पापा टेंशन करते हैं, उधर तुम टेंशन दे देते हो।"

“मम्मी बेवजह की टेंशन है न ये... शादी-शादी-शादी; इतनी जल्दी क्या है शादी की? अभी मैं इस बारे में कोई फैसला लेने की हालत में नहीं हूँ।"

"राज, क्या बात है, मुझे तो बताओ; कोई लड़की पसंद है क्या तुम्हें? देखो, साफ साफ बता दोगे तो कुछ हल निकलेगा, वरना बात बढ़ती ही जाएगी।"

"मम्मी अभी मैं कुछ भी नहीं बता सकता हूँ; बहुत टेंशन में हूँ शादी के मामले में।"
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09-17-2020, 12:41 PM,
#62
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"बेटा, हमको तो इतना बता दो कि शादी खुद करनी है तुम्हें, या हमारी मर्जी से करोगे?"

“मम्मी ये कैसा सवाल है? शादी तो आप लोगों की मर्जी से ही होगी, लेकिन लड़की कौन होगी ये मैं बाद में बता दूंगा; फिलहाल ये शादी-ब्याह की बातों को बंद कर दीजिए।"

"क्या? इसका मतलब तुमने लड़की पसंद कर रखी है;"- मम्मी ने गुस्से से कहा।

"मम्मी आप नाराज क्यों हो रही हैं? मुझे अभी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मुझे थोड़ी देर अकेले रह लेने दो।"

"देखो राज, तुम भटक रहे हो...बेटा, हमारे यहाँ ये सब नहीं चलेगा।"

“अभी तो आप कह रही थीं कि कोई लड़की हो तो बता दो, फिर गुस्सा क्यों दिखा रही

“राज, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तुम्हारे पापा कभी राजी नहीं होंगे...तुम देख लो तुम्हें क्या करना है।"

“मम्मी मैं बहुत पहले डिसाइड कर चुका हूँ कि क्या करना है; बस थोड़ा वक्त चाहिए।"

"तो जब फिर तुम सब कुछ डिसाइड कर ही चुके हो, तो करो अपने मन की और खूब बक्त लो, जितना चाहिए।" __

“मम्मी प्लीज, मैं बहुत टेंशन में हूँ अभी...सच में मुझे थोड़ा टाइम दीजिए, सब ठीक हो जाएगा... प्लीज।"

“ठीक है राज, तुम सोच लो"- मम्मी ने इतना कहकर फोन काट दिया। फोन रखकर मैं भी बालकनी में ही बैठ गया। ऑफिस का टाइम हो गया था, इसलिए शीतल का फोन भी लगातार आ रहा था। ऑफिस जाने का मन नहीं था आज।

"हाँ शीतल...गुडमॉनिंग।"

"कहाँ बिजी हो राज, कब से ट्राई कर रही हूँ।"

"घर पर बात कर रहा था।"

“क्या हुआ, बताओ न?"- शीतल ने हैरानी से पूछा।

"कुछ नहीं, वही सब शादी वाला ड्रामा... बहुत टेंशन में हूँ यार, कुछ समझ में नहीं आ रहा है शीतल।"

“राज, क्या बोला घर पर...क्या बात हुई बताओ न प्लीज यार...कोई टेंशन वाली बात तो नहीं है?"
"नहीं शीतल, तुम टेंशन मत लो...मिलूंगा तो बताऊँगा कि क्या बात हुई है।" “ठीक है मैं लेने आती हूँ आपको...तुम तैयार हो जाओ ऑफिस के लिए।" "नहीं, शीतल, मैं ऑफिस नहीं आ रहा हूँ..मन नहीं है आने का, सर को मैसेज कर दिया
.
.
"राज, ऑफिस तो आओ न; में क्या करूँगी ऑफिस में फिर तुम्हारे बिना?"

"शीतलइ मेरा सच में मन नहीं है आने का और अब मैं नहीं आने का मैसेज कर चुका हूँ; तुम जाओ ऑफिस, हम शाम को मिलते हैं न।"

"नहीं, मैं भी नहीं जाऊँगी ऑफिस फिर ...मैं तुम्हारे रूम पर आ रही हूँ सीधे।"

“शीतल...बाबू ऑफिस जाओ तुम...बेवजह क्यों छटी ले रही हो?"- मैंने समझाते हुए कहा।

"नहीं राज मैं आ रही हूँ तुम्हारे पास बस।"

"ओके आओ फिर...मैं फ्रेश हो जाता हूँ तब तक।"- इतना कहकर मैंने फोन रख दिया।

मैं जान-बूझकर किसी का दिल दुखाना नहीं चाहता था... न तो मम्मी-पापा का और न ही शीतल का। लेकिन पापा और मम्मी से जिस लहजे में आज मैंने बात की, वह गलत था। किसी को भी अपने मम्मी-पापा से इस तरीके से बात करने का हक नहीं है। लेकिन मैं करता भी क्या? मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था। फिलहाल मुझे शादी की बातों पर रोक लगानी थी...उसके लिए मुझे ये बताना जरूरी था कि मैं किसी लड़की को पसंद करता हूँ।

शीतल कमरे पर आने वाली थीं। नहाने से पहले कमरे को दुरुस्त किया, बिस्तर पर फैले कपड़े और चादर को सहेजा और बेतरतीब कमरे को कमरे की तरह बना दिया। कुछ खाने पीने की चीजें भुवन भैय्या की दुकान से मँगा ली थीं। शीतल का मनपंसद ब्रेड बटर भी मँगाकर रख लिया था।

मैं नहाकर तैयार था। कुछ ही देर में कमरे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो शीतल सामने थीं। पलक झपकते ही शीतल मेरे गले से लिपट गई। अपनी बाँहों का घेरा बनाकर उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया और जोर-जोर से रोने लगीं।

"आई लव यू राज...आई लव यू...बहुत प्यार करते हैं हम तुमसे...नहीं जी पाएंगे तुम्हारे बिना।"- शीतल रोते-रोते कह रही थीं।

“शीतल,अरे! रो क्यों रही हो, अभी कुछ हुआ थोड़ी है...चुप हो जाओ।"- मैंने समझाते हुए कहा। *

"राज, क्या होगा तुम्हारे बिना मेरा? मैं सच में नहीं जी पाऊँगी यार...मालविका के बाद एक आप ही हमारे जीने की उम्मीद हैं।"

"हाँ, तो मैं कहाँ कहीं जा रहा हूँ मेरी जान...मैं तुम्हारा ही हूँ और हमेशा रहूँगा।"- मैंने शीतल को खुद से हटाते हुए कहा।

मैंने शीतल को कुर्सी पर बिठाया। शीतल अभी भी रो रही थीं। मैं उनके सामने अपने घुटनों पर बैठ गया और उनका हाथ अपने हाथ में लेकर हिम्मत बंधाई।। __

“रोने से थोड़ी न काम चलेगा शीतल: हमें इस परिस्थिति से बाहर आना है, हम दोनों को कमजोर नहीं होना है...हिम्मत रखनी होगी न बाबू।"

शीतल ने आँसू पोछते हुए अपना सिर हिला दिया।

"अच्छा, नाश्ता किया है तुमने?''

“मैं तो तुमसे पूछने वाली थी कि तुमने नाश्ता किया कि नहीं।"

"मैंने नहीं किया है अभी, पर तुम्हारे लिए ब्रेड बटर मँगाकर रखा है...भुवन भैय्या को कॉफी भेजने के लिए फोन कर दिया है, आती होगी।"

"मैं कुछ लाई हूँ तुम्हारे लिए।"- शीतल ने अपना बैग उठाते हुए कहा।

"पॉवभाजी...'

"हम्म...लो।"- शीतल ने प्लेट में निकालते हुए कहा। मैं और शीतल, पॉवभाजी और ग्रेड बटर का नाश्ता कर रहे थे। कॉफी भी आ गई थी। हमेशा की तरफ पहली बाइट आज भी शीतल को ही खिला दी और हमेशा की तरफ उनकी आँख से आँसू निकल आए थे।

"तो राज, क्या बात हुई घर?"

“मैंने घर पर मना कर दिया कल आने के लिए।"

"पर कैसे? क्या कहा तुमने...?"

“मैंने कहा कि मैं तीन दिन के लिए जयपुर जा रहा हूँ, आप मत आइए। पापा और मम्मी नाराज भी हुए इस बात पर, तो कह दिया कि मुझे एक लड़की पसंद है, सही वक्त आने पर बता दूंगा आप सबको; अभी प्लीज मुझे अकेला छोड़ दीजिए।"

"राज, तुमने मॉम-डैड से ऐसे बात की..."

"तो क्या करता शीतल? बो लोग मेरी शादी की रट लगाए हुए हैं...अगर नहीं बताता तो कल को फिर एक रिश्ता भेज देते। मैं कब तक मना करता रहता बेवजह। एक-न-एक दिन तो बताना ही था सब-कुछ: आज ही बता दिया।"

“फिर क्या कहा मॉम-डैड ने?"

“डैड ने कह दिया, तुम जानो, हमसे कोई मतलब मत रखना और मम्मी को फोन देकर चले गए। फिर मम्मी भी बही सब कहने लगी, तो मैंने थोड़े गुस्से में कह दिया कि प्लीज मुझे माफ कर दो...अभी नहीं करनी शादी-बादी; जब करनी होगी, बता दूंगा आपको।"

“राज, तुमने मॉम-डैड से इतना सब कह दिया...तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था; तुम्हें एक बार बात करके मॉरी बोलना चाहिए उन्हें।"

"नहीं शीतल, अभी नहीं...कुछ दिन बाद; अभी वो सब भी बहुत टेंशन में होंगे।"

"लेकिन राज, मेरी बजह से तुम मॉम-डैड से कितना कुछ कह गए न..."

"नहीं शीतल, तुम्हारी वजह से क्यों...ऐसा क्यों सोच रही हो? तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।"

नाश्ता खत्म हो चुका था। मैं शीतल को समझा रहा था कि सब ठीक होगा; पर कैसे सब ठीक होगा, इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं था। लेकिन मैं शीतल के सामने परेशानी जाहिर करके उन्हें और परेशान नहीं करना चाहता था। हम दोनों बालकनी में रखे लकड़ी के सोफे पर आकर बैठ गए थे। गर्मी में भी इस जगह धूप नहीं आती थी। सामने पार्क था, तो यहाँ से हरा-भरा नजारा दिखता था।

"इस संडे ऋषिकेश चलना है?"

“ऋषिकेश? पर क्यों?"

"तुमको मिलवाना है मॉम-डैड से।"

"राज, अभी तो तुमने कहा कि बक्त चाहिए सोचने के लिए।"

“शीतल, मैंने सोच लिया है कि शादी तुमसे ही करनी है और अब मैं देर नहीं करना चाहता हूँ; जितना देर करेंगे, उतनी ही बातें बढ़ेगी।"

"लेकिन राज, फिर सोच लो..मेरी शादी हो चुकी है और तलाक भी। मेरी एक पाँच साल की बेटी भी है. तुम जो करने जा रहे हो, वो सही है क्या?"
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09-17-2020, 12:41 PM,
#63
RE: RajSharma Stories आई लव यू
“शीतल, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इससे...मैं इतना जानता हूँ कि हम एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं; बस, कोई भी फैसला लेने के लिए इतना काफी है मेरे लिए।"

"लेकिन राज, क्या तुम्हारी फेमिली मुझे अपना पाएगी?"

"देखो शीतल, मैं डिसाइड कर चुका हूँ कि पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताऊँगा...अब जो होगा, बो देखा जाएगा। लेकिन एक बात मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ; मैं जो करने जा रहा हूँ, उससे तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं है न?"- मैंने शीतल की आँखों में देखते हुए पूछा।

“राज, मैं कभी नहीं चाहूँगी कि तुम अपने परिवार से रिश्ता खत्म कर मेरे साथ रिश्ता जोड़ो। अगर तुम्हारे मॉम-डैड मुझे अपनाने को राजी हुए, तब ही मैं तुमसे शादी कर पाऊँगी। मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ कि तुम्हें तुम्हारे मॉम-डैड से अलग कर दूं और अपना घर बसा लूं।"

"शीतल, बीच में मेरा साथ मत छोड़ देना प्लीज।"

“राज, हम ऋषिकेश चलेंगे मंडे को; पर हम दोनों एक तभी होंगे, जब सब राजी

"मैं कोशिश करूँगा सबको मनाने की..."

"मैं नहीं राज, हम दोनों कोशिश करेंगे।"- शीतल ने मुस्कराकर जवाब दिया।

में अपने सोफे से उठकर शीतल के पास जाकर बैठ गया। शीतल ने बड़े सुकून से अपना सिर मेरे कंधे पर रखा और अपनी आँखें बंद कर ली।
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सूरज ढल चुका था। शीतल भी अपने घर जा चुकी थीं। भुवन भैय्या की दुकान तक मैं उन्हें छोड़ने गया था। सिर दर्द कर रहा था, तो थकान दूर करने को कॉफी का सहारा लेने का मन किया, इसलिए मैं बहीं बैठ गया और कॉफी ऑर्डर कर दी।

कॉफी का पहला सिप लिया ही था कि डॉली भी आ गई।

"अरे, आज इतनी जल्दी! अभी तो साढ़े छह ही बजे हैं।"- उसने बैठते हुए पूछा।

"ओ! हाय डॉली...हाँ,आज जल्दी।"

"ऑफिस से अभी आए हो क्या?"

"नहीं, मैं आज गया ही नहीं ऑफिस।"

“क्यों...कहीं बाहर गए थे?" ।

"नहीं...मूड बहुत खराब था शादी की बात से, इसलिए नहीं गया। फिर शीतल भी आ गई थीं रूम पर ही; वो भी नहीं गई ऑफिस ...दिनभर ये ही सोचते रहे कि क्या करें?" - मैंने डॉली के लिए कॉफी ऑर्डर करते हुए कहा।

"राज, टेंशन मत लो।"

"जानती हो डॉली, घर पर बता दिया मैंने, कि मैं अपनी पसंद से शादी करूंगा और कोई लड़की है जिसे में प्यार करता हूँ। इस बात को सुनकर पापा ने तो साफ कह दिया कि अगर ऐसा करना है, तो हमारे घर के दरवाजे अपने लिए बंद ही समझना।"

'अच्छा ।

"हाँ डॉली, बहुत ज्यादा टेंशन है... मम्मी ने खूब समझाया मुझे, पर उनसे भी मैंने साफ कह दिया कि मुझे शादी के लिए वक्त चाहिए, आप लोग प्लीज जिद मत करो। इस पर मम्मी ने भी कह दिया कि जो करना है दिल्ली में ही करना, ऋषिकेश आने की कोई जरूरत नहीं है। डॉली, बहुत टेंशन है। परिवार को देखू या शीतल को।"

"शीतल का साथ दूंगा, तो पापा नाराज हो जाएंगे और शीतल को मैं छोड़ नहीं सकता हूँ; समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

“राज, सब ठीक होगा। बिलीव इन गाँड; टेंशन मत लो तुम।"

"डॉली, पता नहीं कैसे ठीक होगा। ऋषिकेश छोटा शहर है; वहाँ शादी के लिए सोसायटी, कास्ट, उम्र बहुत मायने रखती है। मैं एक ट्रेडिशनल फेमिली से हूँ; आज तक फेमिली में किसी की भी लव मैरिज नहीं हुई है, मैं बहुत घबराया हुआ है।" ___

राज, घबराने से कुछ नहीं होगा, हिम्मत से काम लो; ये सोचो कि क्या करना है?" डॉली ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“सोच लिया है... मैं और शीतल संडे को ऋषिकेश जा रहे हैं। शीतल को मिलवाऊँगा सबसे।"

"ओके, दैटस अगुड आइडिया...मिलो और बात करो घर पर।"

"समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कर पाऊंगा मैं बात।"

"देखो राज, मॉम-डैड से अच्छे से बात करना; उन्हें समझाने की कोशिश करना कि शीतल तुम्हारी खुशी की बजह है, तुम शीतल के साथ ही अपनी जिंदगी अच्छे से बिता सकते हो... मुझे पूरा विश्वास है कि वो तुम्हारी खुशी के लिए मान जाएंगे।"

"डॉली, तुम मेरे पापा को नहीं जानती हो; उनके सामने पूरे परिवार में कोई नहीं बोलता है, वो उसूलों के पक्के इंसान हैं... वो इस शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे और मुझे शीतल से ही शादी करनी है; बस, मैं शीतल को एक बार पापा-मम्मी से मिलवाना चाहता है।"

"राज, मुझे पूरा भरोसा है कि सब ठीक होगा, तुम परेशान मत हो।"

'हम्म...- मैंने मुस्कराते हुए सिर हिलाया।

“एंड आई रेटू गॉड, कि जब शीतल तुम्हारे मॉम-डैड से मिले, तो वो सबको पसंद आ जाएँ और सब ठीक हो जाए।"

“थैक्स डॉली।"- मैंने कहा।

"अच्छा, तुमने कुछ खाया?"

"हाँ यार, खाना खाया था शीतल के साथ; अभी डिनर करूँगा रूम पर।"

"तो फिर आराम करो, काफी थके हुए लग रहे हो तुम; मम्मी अकेली हैं घर, तो मुझे जाना होगा और तुम चिंता मत करो, खुश रहो।"- डॉली ने उठते हुए कहा।
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"ओके...तुम भी ध्यान रखना अपना।"

"चलो मैं छोड़ देती है तुम्हें।"

"नहीं मैं चला जाऊँगा, तुम घर पहुँचो।" ।
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09-17-2020, 12:41 PM,
#64
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"ठीक है,टेक केयर...बाय!"

डॉली कार से अपने घर चली गई थी और मैं पैदल-पैदल घर की तरफ बढ़ रहा था। डॉली ने जितनी आसानी से कहा था कि सब ठीक होगा, उतना आसान नहीं था सब कुछ। शीतल के साथ ऋषिकेश जाने का प्लान तो बना लिया था, लेकिन घर पर इस बारे में बताया नहीं था।

रूम पर पहुँचकर सबसे पहले बिना कुछ सोचे-समझे पापा को फोन लगा दिया।

"हेलो पापा, कैसे हैं आप?"

"हम बढ़िया है बेटा, तुम बताओ"

“मैं भी ठीक हूँ...मम्मी और बाकी लोग कैसे हैं...?"

“सब बढ़िया हैं।"

“अच्छा पापा, मेरा मुंबई जाना कैंसिल हो गया है, तो संडे को मैं ऋषिकेश ही आ रहा हूँ एक दिन के लिए।"

"अच्छा, आओ-आओ; तो फिर लड़की वालों को यहीं बुला लें घर पर?"
\
"पापा, मैं आप लोगों के साथ दिन बिताने आ रहा हूँ, लड़की वालों से मिलने नहीं... और हाँ, एक फ्रेंड भी साथ आएगी, तो उसके सामने ठीक नहीं रहेगा।"

"अरे यार, आ ही रहे हो तो लड़की वालों से मिल ही लेते..."

“पापा प्लीज...शादी की बातें अभी मत शुरू करो; मैं फिर नहीं आऊँगा।"

“ठीक है तुम आओ।"

"ओके, तो हम संडे सुबह कार से ही आएँगे।"

“ओके...गुड नाइट ।"

“गुड नाइट पापा।" फोन रखकर मैं बिस्तर पर बैठ गया था। घर पर ये तो बता दिया था कि मंडे को साथ एक फ्रेंड आएगी... लेकिन उनको ये नहीं बताया था कि ये वहीं फ्रेंड है, जिसे मैं पसंद करता हूँ। पापा जब शीतल से मिलेंगे और उन्हें ये पता चलेगा कि मैं शीतल से शादी करना चाहता हूँ, तो क्या होगा? ये सब बातें बार-बार मेरे दिमाग में घूम रही थीं।

संडे को घर के लिए निकलना था। आज मैं और शीतल दोनों ही ऑफिस में थे। काम में मन तो नहीं लग रहा था, लेकिन अब दिमाग इस बात को लेकर बिलकुल क्लियर था, कि शीतल को मम्मी-पापा से मिलवाना है और अब जो भी होगा वो देखा जाएगा।

शाम के चार बजे थे। शीतल को ऑफिस के कैफेटेरिया में बुलाया था। मैं और शीतल एक-दूसरे के सामने बैठकर कॉफी का आंनद ले रहे थे। पापा-मम्मी से मिलने के लिए शीतल भी काफी उत्साहित लग रही थीं। आज शीतल का मूड बहुत अच्छा था। सच कहूँ, तो मुझे उनके इस मूड से हैरानी हो रही थी... लेकिन मैं इस बात से खुश था कि शीतल खुश हैं।

“शीतल, तुम परेशान तो नहीं हो न?"

“नहीं तो, बिलकुल भी नहीं, बल्कि मैं तो ये जानना चाहती हूँ कि आप तो टेंशन में नहीं हैं?"

“नहीं यार, मैं टेंशन में नहीं हूँ; पर कल क्या होगा घर पर, इसे लेकर थोड़ा सोच में हूँ। जानती हो शीतल, मैं घर का बड़ा बेटा हूँ और छोटे शहरों में शादी की बातें कितनी जल्दी शुरू हो जाती हैं, ये तो तुम जानती ही हो। अभी बस पच्चीस साल का हूँ मैं, फिर भी घर पर सब शादी के लिए पीछे पड़े हैं।"

"अरे तो इसमें चिंता की क्या बात है... राज, शादी तो करनी ही है आपको; कब तक टालेंगे? हर माँ-बाप और परिवार की उम्मीद होती है बेटे की शादी करने की; इसमें इतना परेशान होने वाली बात क्या है? - शीतल ने बड़ी बेफिक्री से कहा था।

“परेशान होने वाली बात बस ये है शीतल, कि मुझे शादी तुमसे करनी है।"- मैंने शीतल की आँखों में देखकर कहा।

“हाँ, तो हम दोनों कोशिश कर रहे हैं न...और कोशिश करेंगे, तो कोई-न-कोई हल जरूर निकलेगा।"- शीतल ने मेरा हाथ थामते हुए कहा। __

“शीतल, मैं एक कोशिश करना चाहता हूँ मम्मी-पापा को इस शादी के लिए राजी करने के लिए; वरना शादी तो मेरी तुमसे ही होगी।"

"काश! राज...वरना मर जाऊँगी मैं।"

“शीतल मेरी कसम तुम्हें, अगर मरने की बात भी की तो।"

"अच्छा बाबा, गुस्मा मत करो, नहीं करूँगी मरने की बात।"

"तो कब और कैसे चलना है?"

"सुबह चार बजे निकलेंगे कार से... मैं आ जाऊँगा तुम्हें पिक करने।"

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"ओके, फिर शाम को वापस न?"

"हाँ बस सब ठीक हो।"

"होगा राज,सब ठीक होगा।"

"अच्छा, अभी मैं चलती हैं: कुछ काम पेंडिंग हैं उन्हें निपटा लूँ, कल घर पर तो कर नहीं पाऊँगी।"
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09-17-2020, 12:41 PM,
#65
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"हाँ, फिनिश कर लो तुम...कल के लिए कुछ मत रखना।"

"...और हाँ, शाम को आप हमारे साथ मार्केट भी चल रहे हैं।"

"कुछ खास?" "कुछ शॉपिंग करनी है अपने और अपनी बेटी के लिए।"

“ठीक है, जल्दी निकलना फिर।"

"ओके...बॉय।"

आज संडे था। सुबह के तीन बजे थे। शीतल भी उठ चुकी थीं। कनॉट प्लेस से ठीक चार बजे हम दोनों ऋषिकेश के लिए निकल गए थे। सड़कें एकदम खाली थीं। हम दोनों के मन में एक तरफ डर था, तो दूसरी तरफ उम्मीद थी। हम आपस में बातचीत कर रहे थे और भीतर-भीतर दोनों, भगवान से प्रार्थनाएँ कर रहे थे कि सब ठीक हो।

"राज, तुम कितने पॉजिटिव इंसान हो न; लेकिन मान लो मॉम-डैड तैयार नहीं हुए, तब?"- शीतल ने कहा।

"अरे शीतल, पहले ही इतना नहीं सोचते; अब थोड़ी देर की ही बात है... मुझे पूरा यकीन है माँ-पापा जरूर मान जाएंगे, उनके लिए मेरी खुशी से बड़ी कोई खुशी नहीं है।" - मैंने कहा।

पता है, पापा चाहते थे मैं इंजीनियरिंग करूँ; लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं इवेंट मैनेजमेंट में जाना चाहता हूँ, तो वो थोड़ा निराश हुए, लेकिन तुरंत तैयार भी हो गए। उन्होंने मेरे प्रोफेशन में ही अपनी खुशी ढूंढ ली थी... इस बार भी मुझे पूरा यकीन है।

__“लेकिन तुमने घर पर पहले से बता तो दिया है न, कि मुझे मिलवाने ला रहे हैं?" - शीतल ने पूछा।

में कुछ देर चुप रहा। शीतल ने शायद एक ऐसा सवाल पूछ लिया था, जिसका जवाब देना में नहीं चाहता था, इसलिए उससे बच रहा था। ___

मैं कुछ पूछ रही हूँ तुमसे राज; तुमने घर पर बताया है न कि आज तुम मुझसे मिलवा रहे हो सबको?" - शीतल ने फिर पूछा।

"शीतल, दरअसल, मम्मी, छोटी बहन और भाई को पता है।" - मैंने कहा।

और आपके पापा?"- शीतल ने कहा। “पापा को नहीं पता... माँ से बात हुई है, वह उन्हें मना लेंगी आने के लिए। मैं पापा को नहीं मना पाता, इसलिए माँ को ही सिर्फ बता दिया। छोटी बहन की बातें पापा मानते हैं; उसने हमसे कहा है वह सब ठीक कर देगी।"- मैंने कहा।

“राज, पापा को बता देते...मुझे बहुत डर लग रहा है कि क्या होगा।"- शीतल ने कहा।

“डोंट वरी शीतल, सब ठीक होगा; मैंने तुम्हारे रुकने के लिए होटल में अरेंजमेंट किया है... वहाँ तुम तैयार होना और मैं घर से सबको लेकर परमार्थ-निकेतन पहुँच जाऊँगा।" मंने कहा।

“मतलब, सीधे घर पर नहीं मिलूँगी मैं सबसे?"- शीतल ने पूछा।

"ठीक है राज, आई होप सब ठीक होगा; जैसा भी हो मैसेज पर कनेक्ट रहना।" शीतल ने कहा।

"तुम फिकर मत करो शीतल...थोड़ा सो लो, अभी ऋषिकेश दूर है"- मैंने कहा।

"नींद तो नहीं आएगी ऐसे... पर आँखें दर्द कर रही हैं, तो बंद कर लेती हूँ; आपको तो नींद नहीं आ जाएगीन ऐसे?"

"नहीं तुम आँखें बंद कर लो, मैं ड्राइब कर लूँगा।”- मैंने कहा। शीतल ने अपना सिर कार की सीट पर टिका लिया था और आँखें बंद कर ली थीं। मैं असमंजस की हालत में कार ड्राइब कर रहा था। वहीं पुराने खयाल और भविष्य की कुछ तस्वीरें दिमाग में घूम रही थी और इन तस्वीरों से बेफिकर मैं कार ड्राइव करता जा रहा था।
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09-17-2020, 12:42 PM,
#66
RE: RajSharma Stories आई लव यू
ठीक आठ बजे मैं और शीतल ऋषिकेश पहुँच गए थे। शीतल को होटल 'गंगा किनारे' में ठहराकर मैं घर की ओर बढ़ गया। जैसे ही घर पहुंचा, मम्मी ने गेट खोला। घर में घुसते ही मुझे यह भनक लग गई कि माहौल कुछ ठीक नहीं है। मैं समझ गया कि मम्मी ने पापा को सब पहले से ही बता रखा है। अंदर वाले कमरे में पहुंचा, तो पापा सामने शेविंग कर रहे थे। मैंने पैर छुकर नमस्ते कहा।

पापा की तरफ से नमस्ते का जवाब तो आया, लेकिन उसमें बह गर्मजोशी नहीं थी, जैसी हमेशा होती थी।

"राज, जाओ तुम नहा लो, फिर नाश्ता तैयार है।"- माँ ने कहा।

"माँ, में नहाकर ही आया हूँ; बम भूख लगी है।”- मने कहा।

“ठीक है, तेरे पापा नहा लें, नाश्ता लगाती हूँ, तब तक तू चाय पी।"- माँ ने कहा।

थोड़ी देर में पापा भी कुर्ता-पजामा पहनकर नाश्ते की टेबल पर आ गए। भाई-बहन भी सामने ही बैठे थे। पूरी फेमिली ने साथ में नाश्ता किया। नाश्ते के दौरान पापा ने अचानक पूछ लिया

"तो तुमने तय कर ही लिया है कि शादी अपनी मर्जी से ही करनी है?"

"नहीं पापा, ऐसा नहीं है; आपकी मर्जी से अलग मेरी मर्जी नहीं है।" - मैंने कहा।

"बेटा, मेरा अनुभव आपसे काफी ज्यादा है। यह बातें किसी और से कहना... सब समझ रहा हूँ। जब तय कर ही लिया है, तो शादी भी करके आ जाते, ये मिलवाने का नाटक ही क्यों कर रहे हो?"- पापा ने कहा।

"नहीं पापा, आप शायद गलत समझ रहे हैं; यकीन मानिए ऐसा कुछ नहीं है। शीतल एक अच्छी लड़की है, आप मिल तो लीजिए: अगर पसंद न आए, तो आपका फैसला ही सब-कुछ होगा।"- मैंने कहा।

.
बीच में माँ ने बात को सँभालते हुए कहा- "आप भी क्यों बेकार में राज पर बिगड़ रहे हैं; अभी कौन-सी शादी हो चुकी है, वह मिलवाने ही तो आया है। आजकल के बच्चे तो वरना माँ-बाप को पूछते भी नहीं हैं।"

पापा से कुछ कहने की हिम्मत तो अब मुझमें नहीं थी, इसलिए माँ की तरफ देखते हए मैंने कहा- “माँ, शीतल वहाँ इंतजार कर रही होगी; शायद हम लोगों को अब चलना चाहिए।"

“ठीक है, चलो।"- पापा ने कहा।

कार से मैं, मम्मी-पापा और भाई-बहन परमार्थ-निकेतन पहुँचे। सभी को बहाँ छोड़कर मैं शीतल को होटल लेने चला गया। पंद्रह मिनट बाद शीतल और मैं परमार्थ-निकेतन पहुँचे। लाइट गरीन और ब्लैक कलर के पारंपरिक लिबास में शीतल बेहद खूबसूरत और आकर्षक लग रही थीं। लंबे और घने बाल उनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहे थे। उनके चेहरे पर अलग ही कशिश झलक रही थी।

परमार्थ निकेतन के प्रवेश-द्वार के पास लगी रेलिंग के पास मम्मी-पापा और भाई-बहन खड़े थे, तो दूसरी ओर से शीतल और मैं उनकी तरफ बढ़ रहे थे। इस वक्त सभी के मन की स्थिति अलग-अलग थी। शीतल थोड़ी असमंजस में और डरी हुई थी। शीतल की पहली झलक देखकर माँ खुश थीं और आगे की बात करने के लिए सोच रही थीं। छोटी बहन और भाई सब-कुछ ठीक होने की दुआ कर रहे थे और दूर से शीतल को आता देख मुस्कान बिखेर रहे थे। पापा, विचार शून्यता में थे। शीतल का सौंदर्य और सलीका, उन पर अभी तक कोई प्रभाव नहीं जमा पाया था। वह उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर विचार कर रहे थे। सब सामान्य व्यवहार करते हुए सोच में मगन थे, तभी मैं और शीतल, माँ-पापा के करीब पहुंचे।

"माँ, ये शीतल हैं और शीतल ये माँ-पापा हैं।"- मैंने कहा। शीतल ने हाथ जोड़कर मम्मी-पापा को नमस्ते किया। इसके बाद मैंने अपनी छोटी बहन और भाई मे शीतल का परिचय कराया। बहन उस गंभीर माहौल को हल्का बना रही थी। ___

“राज, यहाँ जान-पहचान बाले आते-जाते रहते हैं; फिर यहाँ तसल्ली से बात भी नहीं हो पाएगी...अच्छा रहेगा किसी रस्टारंट में चला जाय।"- पापा ने कहा।

पापा की इस पहल को देखकर मुझे कुछ तसल्ली हुई। मुझे लगा शायद शीतल को देखकर पापा खुश हो गए हैं। मेरी उम्मीद गहरी होती जा रही थी। सभी लोग गाड़ी में बैठे और पास के एक रेस्टोरेंट में जा पहुँचे। शीतल से मिलवाने के लिए मैंने नमित, शिवांग और ज्योति को भी बुला लिया था। रेस्टोरेंट में चाय-कॉफी का ऑर्डर शुरू किया गया। इसके बाद बातें आगे बढ़ीं।

पापा ने शीतल से पहला सवाल पूछते हुए कहा- “तो आप अपने बारे में बताड़ा बेटा कुछ: हमारे बारे में तो राज ने बता ही रखा होगा।"
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09-17-2020, 12:42 PM,
#67
RE: RajSharma Stories आई लव यू
शीतल थोड़ी शरमाई, फिर आगे बताया। वहीं माँ ने पारंपरिक कुछ सवाल पूछे... क्या पसंद है? खाना बनाना आता है या नहीं: हॉबीज क्या हैं?

करीब एक-डेढ़ घंटे की बातचीत के बाद पापा ने शीतल से घर चलने को कहा, तो शीतल मेरी तरफ देखने लगीं। शीतल का यह इशारा दिल्ली लौटने की ओर था, लेकिन मेरे चेहरे पर इस बात की खुशी थी कि पापा शायद मान गए हैं और शीतल उन्हें पसंद हैं।

दोपहर हो चुकी थी और हमें वापस दिल्ली लौटना भी था। शीतल की परेशानी को देखते हुए मैंने पापा को समझाने वाले अंदाज में कहा भी, कि शीतल सिर्फ आपसे मिलने के लिए ही आज यहाँ आई हैं; कल इन्हें ऑफिस ज्वॉइन करना है, इसलिए आज शाम ही बापस लौटना होगा। ___

“शाम को निकलना आराम से, अभी तो टाइम है; तब तक शीतल घर भी देख लेंगी, वहाँ कुछ और बातें हो जाएंगी।"- पापा ने कहा।

अब पापा की बात कौन टाल सकता था। मम्मी ने घर चलने के लिए कहा, तो मैं और शीतल घर चलने के लिए राजी हो गए।

"अच्छा फिर राज, हम लोग निकलते हैं।"- नमित ने कहा।

"रुको यार अभी, घर चलो साथ में।"- इतना कहते हुए मैं और शीतल दोस्तों के साथ फेमिली से थोड़ा अलग आ गए थे।

"तो फ्रेंड्स, कैसी लगी शीतल तुम लोगों को?"- मैंने पूछा।

"शीतल इज रियली बैरी प्रैटी.. हमें पसंद हैं।"- ज्योति ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।

'रीयली?'- मैंने कहा।

"हाँ मेरे दोस्त।"- नमित और शिवांग ने एक साथ कहा।

“और हाँ शीतल, अगले हफ्ते मेरी शादी है मुंबई में...यू आर इनवाइटिड ..."- ज्योति ने शीतल से कहा।

“अरे वाह! कांग्रेचुलेशंस।"- शीतल ने कहा।

"इससे काम नहीं चलेगा; आपको राज के साथ आना पड़ेगा और हाँ राज, मैं तो कल निकल जाऊँगी, तुम लोग जल्दी आना प्लीज।"- ज्योति ने कहा।

“श्योर ज्योति,हम सब आएंगे।"- मैंने कहा।

"चलो भाई देर, क्यों कर रहे हो?" - पापा ने कहा।

"चलो यार, फिर तुम लोग निकल जाओ, फोन पर बातें करते हैं।"- मैंने अपने दोस्तों से कहा।

उन सभी से विदा लेकर मैं और शीतल, सबके साथ घर आ गए थे। आते ही मम्मी रसोई में चाय बनाने के लिए पहुँच गई, तो पीछे-पीछे शीतल भी मदद करने के लिए पहुंच गई। चाय बनाते हुए शीतल ने मम्मी से कहा- "आंटी, एक बात और बतानी थी आपको।"

"हाँ बेटा, बताओ।"- मम्मी ने कहा।

“आपको शायद राज ने पहले ही बता रखा हो, लेकिन मैं भी बता रही हूँ... दरअसल, मेरी पहले शादी हो चुकी है, जो कि असफल रही; उस शादी से मेरे पास एक बेटी भी है।"- शीतल ने कहा। ___

मम्मी, चाय में चीनी डाल रही थीं और यह बात सुनकर कुछ क्षण के लिए वह जैसे प्रौज हो गई। उनके लिए यह बात शॉकिंग थी, लेकिन स्थिति को सँभालते हुए उन्होंने कहा- “नहीं, हमें तो राज ने ऐसा कुछ नहीं बताया।"

“शायद बताने वाले ही हों आंटी; लेकिन मुझे लगा एक बार मैं भी जिक्र कर दें। दरअसल वह एक बुरा दौर था मेरे लिए... आज उस शख्म से मेरा कोई संबंध नहीं हैं; आज बस मेरी बेटी ही मेरे लिए सब-कुछ है।"- शीतल ने कहा।

उन दोनों की बातचीत चल रही थी, तभी बाहर से राज के पापा ने आवाज दी- “चाय में कितना बक्त है?"

"बस, तैयार है।" -अंदर से माँ ने आवाज लगाई। चाय पीते हुए अचानक पापा ने शीतल की डेट ऑफ बर्थ पूछ ली। शीतल ने जैसे ही बताया, तुरंत हिसाब लगाते हुए पापा चौंककर बोल पड़े- “मतलब आप राज से छह साल बड़ी हैं!" ।

“जी... जी अंकल ।" शीतल ने तुरंत कहा। इस वक्त माँ के चेहरे के भाव गायब हो चुके थे। शुरुआत में उनकी तरफ से जो थोड़ी बहुत खुशी नजर आ रही थी, वह भी खत्म हो चुकी थी। चाय खत्म होते ही पापा ने शीतल और राज को दिल्ली के लिए जाने की सलाह देते हुए कहा
"बेटा तुम लोगों को अब निकल जाना चाहिए: अगर आज रात रुकना संभव हो, तो रुक सकते हो; इसे अपना ही घर समझिए।" _

_“नहीं पापा, मुझे भी कल ऑफिस जाना है।"

तभी माँ ने रसोई से आवाज लगाई। जैसे ही मैं माँ के पास पहुँचा, उनका गुस्सा निकल पड़ा
"राज बेटा, क्या सोचकर तुम उस लड़की को यहाँ लेकर आए हो? तुम अपने पापा को जानते नहीं हो क्या? पूरी बातें भी नहीं बताई और इतना बड़ा फैसला ले लिया। इतना प्यार करते हो उसे, तो उसके बारे में कुछ तो सोचा होता।

"माँ, क्या हुआ? ऐसे क्यों बोल रही हो?"

“चाय बनाते वक्त शीतल ने मुझे अपनी पहली शादी के बारे में बताया; सोचो, अगर यह बात वह तुम्हारे पापा के सामने कह देती तो क्या होता। तुम्हे पहले बताना चाहिए था न बेटा... अगर तुम बता देते, तो मैं हरगिज तुम दोनों को यहाँ नहीं आने देती।"- माँ ने कहा। ___

“माँ मैं आपको बताने वाला था; सोचा फोन पर क्या बताऊँ, यहीं आकर बताऊँगा... फिर यहाँ वक्त नहीं मिला... इस तरह टलता रहा, आपसे छिपाकर करने का इरादा मेरा नहीं था।"- मैंने माँ को समझाते हुए कहा।

"बात छिपाने की नहीं है राज; बात एक लड़की की इज्जत और मान-सम्मान की है। तुम अपने पापा की आदत और व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ हो; बात सिर्फ उम्र के अंतर की थी, तभी देखा, किस तरह शीतल की तरफ उन्होंने देखा और अगर यह बात उन्हें पता चलती, तो तुमको अंदाजा है बह क्या करते? शीतल से कुछ भी गलत बोल सकते थे वो। देख बेटा, शीतल एक शरीफ लड़की है। पहली बार हमारे घर आई है... मैं नहीं चाहती उसके साथ कुछ गलत व्यवहार हो या उसे यहाँ अनकंफर्टेबल लगे; पहले ही वह कम समस्याओं से नहीं गुजरी। लेकिन तुम्हारे पापा बहुत कठोर इंसान हैं: हर जगह उनकी नाक सामने आ जाती है, वह कभी इस बात की इजाजत नहीं देंगे कि एक तलाकशुदा औरत उनके बेटे की बहू बने; उस पर भी वह, जिसके पहले से ही एक औलाद हो।"- माँ ने कहा। ___

“माँ ऐसे मत बोलिए प्लीज! आप पापा को मनाइए: माँ, मेरे लिए इतना कर दीजिए बस।" ___
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09-17-2020, 12:42 PM,
#68
RE: RajSharma Stories आई लव यू
“राज, तुम परिवार की स्थितियों को समझ नहीं रहे हो बेटा... मेरे लिए यह मुश्किल है। वह आदमी किसी की लाश के ऊपर भी इस शादी के लिए राजी नहीं हो सकते, अच्छा होगा यह कहानी यहीं खत्म करो।”- माँ ने कहा। ___

“माँ, ऐसा मत कीजिए प्लीज; एक कोशिश कर दीजिए मेरी खातिर, मैं आपका बेटा हूँ... आप ही तो कहती हो आपके लिए मेरी खुशी से बड़ी कोई खुशी नहीं है, तो फिर आज ऐसे मुंह क्या मोड़ रही हो?"

मेरे चेहरे के भाव, शून्य हो चुके थे। जो थोड़ी खुशी थी, बो गायब हो चुकी थी। आँखों से आँसुओं की लड़ी बह रही थी... साथ में मम्मी भी फफक-फफककर रो रही थीं। मैं रोते हुए नीचे बैठ गया। तभी अचानक रसोई के गेट से कुछ गिरने की आवाज आई।
देखा, तो शीतल अपना गिरा हुआ पर्स उठा रही थीं। "अरे! शीतल तुम यहाँ।" ।

"हाँ, अंकल बोल रहे हैं कि निकलना चाहिए।" उन्होंने कहा।

"यह लड़का पता नहीं कब बड़ा होगा; जब भी दिल्ली लौटता है तो रोने लगता है; चलो अब तुम साथ जा रही हो, ध्यान रखना।"- माँ ने बात को छुपाते हुए कहा।

मेरे चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट थी; लेकिन एक डर मेरे चेहरे पर था, कि कहीं शीतल ने मेरी और मम्मी की बातें सुन तो नहीं लीं। शीतल के चेहरे पर न खुशी थी और न ही आँखों में आँसू । सब लोग गेट पर आ चुके थे। पापा और मम्मी के पैर छकर मैं और शीतल गाड़ी में बैठक्कर दिल्ली के लिए निकल पड़े।

दिन छिप चुका था। कार की लाइटें जल्न चुकी थीं। स्ट्रीट लाइटें भी सड़कों को रोशन करने लगी थीं। शीतल बिलकुल शांत थीं।

"क्या हुआ शीतल, कैसा लगा सबसे मिलकर?"- मैंने चुप्पी को तोड़ते हए पूछा।

"कुछ भी तो नहीं राज; सबसे मिलकर बहुत खुश हूँ मैं।"

"तो फिर चुप क्यों हो?"

“राज, मैं बहुत थक गई हूँ, सोना चाहती हूँ।"

"अरे! नींद आ रही तुम्हें; खाना खाकर सोना।"

"नहीं राज, मेरा मन नहीं है, में सोना चाहती हूँ।"

“ठीक है, आराम कर लो तुम फिर।"

“दिल्ली आ जाए तो उठा देना हमें।"- शीतल ने इतना कहा और अपनी आँखें बंद कर ली।

मैं कार में शीतल के साथ होकर भी अकेला था। जानी-मानी गायिका आबिदा परवीन का गीत 'नूर-ए-लाही धीमी आवाज में चल रहा था और कार एक सौ बीस किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से दिल्ली छने को बेताब थी।
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09-17-2020, 12:42 PM,
#69
RE: RajSharma Stories आई लव यू
ऋषिकेश से आने के बाद शीतल बदल-सी गई थीं। मैं शीतल को सुबह से फोन मिला रहा था, लेकिन उनका फोन लगातार स्विच ऑफ था। आज पहली बार वो मुझे ऑफिस के लिए लेने नहीं आई थीं। मैं अकेले कैब से ऑफिस आया था। क्या हुआ है, क्यों हुआ है और शीतल कहाँ है? ये सारे मवाल मेरे दिमाग में न जाने कितनी अनहोनी की आशंकाएँ खड़ी कर रहे थे। ऑफिस पहुँचकर सबसे पहले शीतल के एक्सटेंशन नंबर पर फोन किया, लेकिन कोई रेस्पांस नहीं आया। उनके पास वाले एक्सटेंशन पर फोन किया, तो पता चला कि शीतल ऑफिस तो आई हैं, लेकिन अभी सीट पर नहीं हैं।

मैं दौड़कर उनके डिपार्टमेंट की तरफ पहुँचा, तो शीतल सामने आ गई। मैं उन्हें रुकने के लिए आवाज देता, उससे पहले बो मुझे अनदेखा करके अपने केबिन में चली गई। मैं स्तब्ध था। मुझे समझ में नहीं आया कि शीतल को क्या हुआ है। रात जब उन्हें घर ड्रॉप किया था, तो सब ठीक था। फिर अचानक बो ऐसे रिएक्ट क्यों कर रही हैं?

शीतल अभी भी मेरा फोन नहीं उठा रही थीं। में सुबह से तीस बार उन्हें फोन कर चुका था। वो एक्सटेंशन भी नहीं उठा रही थीं। मेरे पास उनसे बात करने का कोई और रास्ता नहीं था।

तभी मेरे दिमाग में आया कि शीतल को मेल करता हूँ। अक्सर जब हम एक-दूसरे से नाराज होते थे, तो मेल से ही बात होती थी।
मैंने लिखा
"शीतल, मुझे नहीं पता कि तुम आज ऐसे क्यों रिएक्ट कर रही हो; जब मैं तुम्हारे सामने आया, तो मुझे ऐसा क्यों लगा जैसे तुम मेरी तरफ देखना नहीं चाह रही थीं? शायद तुम आँखें चुरा रही थीं मुझसे...ठीक वैसे ही, जैसे चंडीगढ़ में प्रोग्राम के दौरान बचा रही थीं। जब मैं आपकी तरफ देख रहा था, तो तुम मुँह फेर ले रही थीं और जब मैं चेहरा घुमा लेता था, तो तुम देखने लगती थीं। शीतल, मैं जानता हूँ कि तुम ऋषिकेश की बातों को लेकर टेंशन में हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि एक-दूसरे के प्रति हमारा प्यार कम हो गया है। कल जब घर जाते वक्त तुम्हारी आँखों से आँसू निकलने लगे थे, तो याद है मैंने तुम्हारा हाथ थाम लिया था और तुम्हारे जाते कदमों को रोक लिया था। जानती हो, तुम्हें उस वक्त अपनी बाहों में भर लेना चाहता था और तुम्हारे आँसू पोंछना चाहता था।

शीतल, मैं बहुत परेशान हूँ; सुबह से बात नहीं हुई है तुमसे, चेहरा भी नहीं देखा है तुम्हारा... प्लीज एक बार बात कर लोन, में मर रहा हूँ शीतल: प्लीज बात करो।"

करीब एक घंटे तक मैं मेल रिफ्रेश ही करता रहा, लेकिन शीतल का कोई जवाब नहीं आया। लंच के बाद शीतल ने मेल भेजा था।

उन्होंने लिखा था, “राज, जब मुझे पहली बार प्यार हुआ था, तो मुझे लगा था कि सब-कुछ मिल गया है और ये इंसान मेरी जिंदगी को जन्नत बना देगा। मैंने अपने पापा से लड़-झगड़कर उस इंसान से शादी की और उसने क्या किया, आप जानते हैं... उसने हमारी जिंदगी को नर्क बना दिया। जब हमारा तलाक हुआ था, तो मुझे लगा था कि सब कुछ खत्म हो गया है, मेरी सारी खुशियाँ बह गई हैं। जीने की कोई उम्मीद नहीं बची थी मेरे पास । बम, मैं अपनी बेटी के लिए जिंदा रही। जब तुम मेरी जिंदगी में आए, तो लगा कि जिंदगी फिर से रोशन हो सकती है।

खुशियाँ फिर से मेरी झोली में आने लगीं। जो शीतल अपने डिपार्टमेंट से कभी बाहर नहीं निकलती थी और जो किसी से बात नहीं करती थी, वो अब दिनभर हँसने लगी थी। मैं नाचने लगी थी, जिंदगी को जीने लगी थी और एक बार फिर सपने देखने लगी थी। कल जब तुम और आंटी रसोई में बात कर रहे थे, तो मैं बाहर ही खड़ी थी। मैंने वो सब मुना, जो आंटी ने कहा। राज, मैं उससे बुरी तरह टूट चुकी हूँ। मैं पहले भी बिखरी हुई थी, लेकिन तुमने मुझे समेट लिया था... लेकिन अब मैं इस कदर बिखर गई हूँ कि समेटना मुश्किल है। मैं अंदर तक हिल गई है। ऐसा लग रहा है जैसे जीने की आखिरी बजह भी नहीं बची है मेरे पास अब; इसलिए मैंने डिसाइड किया है कि कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊँगी; क्योंकि तुम्हारे सामने आऊँगी, तो खुद को रोक नहीं पाऊँगी और तुम्हारी बाँहों में खो जाऊँगी। राज, मेरी रिक्वेस्ट है, तुम भी मुझे भूल जाना; कभी बात करने की कोशिश मत करना... मुझे बस आपके पागलपन से डर लगता है।

"प्लीज!'

शीतल का जवाब पढ़कर मैं घबरा गया था। मेरे माथे पर पसीना आ गया था। दिल बैठने लगा था। ऐसे लग रहा था जैसे कुछ छूट गया हो। शीतल से बातें अभी खत्म नहीं हुई थीं। मैंने भी इसका जवाब मेल पर लिखा
"शीतल, ऐसे क्यों बोल रही हो? कल की बातों से ऐसे हिम्मत हार गए हो तुम? मुझ पर भरोसा नहीं है क्या तुम्हें? शीतल, तुम मेरी ताकत हो... तुम्हारे साथ होकर मैं जमाने से लड़ सकता हूँ; मगर तुम ही मुझे यूँ बीच में छोड़कर चली जाओगी तो कैसे कदम आगे बढ़ाऊँगा मैं? शीतल, बस आँख बंदकर मेरा साथ देते रहो, मुझे पूरा विश्वास है सब ठीक होगा। शीतल बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे; बहुत मुश्किल है मेरे लिए तुम्हें भूल पाना।

"क्या तुम भूल पाओगी मुझे?"

जवाब में शीतल ने लिखा था, "राज, इस दुनिया में अगर मैं अपनी बेटी के बाद किसी को सबसे ज्यादा प्यार करती है, तो वो तुम हो; मेरी जान हो तुम...लेकिन तुम्हारे लिए तुम्हारे मॉम-डैड पहले हैं: मेरी वजह से तुम्हारा परिवार बिरबर सकता है और मैं जानती हूँ कि परिवार से अलग होकर कोई खुश नहीं रहता है। तुम मेरी खुशी हो, तुम मेरी आँखों की चमक हो... लेकिन तुम्हें अपने परिवार से अलग करके मैं अपनी खुशियों की दुनिया मजाना नहीं चाहती हूँ।

तुम मुझे भूल जाओ और अपने पापा की पसंद की लड़की से शादी करो; मेरा और तुम्हारा कोई मेल ही नहीं है। तुम्हें अपनी उम्र की लड़की से ही शादी करनी चाहिए, वही तुम्हें खुशी दे सकती है; मैं तो तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दूंगी। मेरे पास कुछ है नहीं तुम्हें देने के लिए। एक बात बताना चाहती है राज...तुम मेरी जिंदगी के हर मोड़ पर मेरे साथ रहोगे... भले ही मैं तुमसे बात नहीं कर पाऊँगी कभी, लेकिन तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगे, तुम्हारी जगह भी कोई कभी नहीं ले पाएगा। जिंदगी का हर फैसला मैं तुमसे पूछकर ही करूंगी... हर कदम तुम्हें महसूस करूंगी।
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09-17-2020, 12:42 PM,
#70
RE: RajSharma Stories आई लव यू
मैं जानती हूँ कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो। कोई भी लड़की तुम्हारे साथ अपनी दुनिया सजाना चाहेगी। तुम्हारा प्यार करने का तरीका बिलकुल अलग है; बस मेरी किस्मत में तुम नहीं हो। मैं दुनिया की सबसे बदनसीब लड़की है, जो तुम्हारा साथ मेरी जिंदगी में नहीं लिखा है। राज, मेरी परवाह मत करना; अपनी दुनिया बनाओ और जहाँ घर वाले बोलें, शादी कर लेना; और हाँ, आज से हम साथ घर नहीं जाएँगे... आप अपनी कार से ऑफिस आया कीजिएगा।"

मैंने लिखा,
"शीतल, मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे; इतना, कि शायद ही तुम्हें कोई करता होगा। मैं नहीं जानता हूँ कि कोई तुम्हें कितना प्यार करता है, पर इतना जरूर जानता हूँ कि मुझसे ज्यादा कोई प्यार नहीं करता होगा। शीतल, तुम्हारी एक मुस्कराहट के लिए मैंने हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहा। ऐसा शायद ही हुआ होगा कि मैंने हमारे प्यार को किसी से छिपाया हो। चाहे बो ऑफिस हो या दोस्त या परिवार; मैंने सबके सामने तुम्हारे बारे में खुलकर कहा किसी से न डरने की कसम खा चुका था मैं। कोई उम्मीद तो नहीं थी, पर भगवान से माँगता जरूर तुम्हें।
शीतल, जानती हो, तुमने मेरी जिंदगी को बेहद खूबसूरत बना दिया था। तुमने एक फ्लर्टी लड़के को प्यार करने के काबिल बना दिया और अब जब मैं प्यार को समझने लगा, तो तुम चल दिए।
तुम हमेशा कहती हो, जिद्दी हूँ मैं। तुम कहती हो,हर बात पर जिद करता है।

हाँ, तो तुमसे प्यार करने की ही तो जिद है, तुम्हारे साथ चलने की ही तो जिद है, तुम्हें खुश रखने की ही तो जिद है, तुम्हारे आँसू पोंछने की ही तो जिद है, तुम्हारे होंठों पर मुस्कान लाने की ही तो जिद है।

शीतल, मैं कब दुनिया बदलना चाहता हूँ? बस, प्यार ही तो किया है। तुम भी तो करती थी न प्यार। सच तो ये है कि तुमने ही सिखाया है मुझे प्यार करना; फिर क्यों डर गई हो मेरे पागलपन से? प्यार का ही तो पागलपन है ये।

जानती हो, रात में जब तुमने अपना फोन बंद कर लिया था, तो मैं बहुत परेशान हो गया था। रात, फिर मैंने तुम्हारे सारे मैसेज पढ़े और तस्वीर देखीं। खूब रोया हूँ मैं कल। फिर फिल्म लगा ली ये जवानी है दीवानी' । तुमने तो देखी होगी शायद । उसका वो होली वाला गाना तो तुम्हें पसंद है न। पूरी फिल्म में हम तुम्हें और खुद को ही कंसीडर करते रहे। न जाने कितनी बार तुम्हारे बारे में सोचकर आँखों से आँसू बहने लगे।

खासकर जब रणबीर और दीपिका अपनी दोस्त की शादी में उदयपुर जाते हैं। तुम्हें मेरे प्यार और पागलपन से डर लगता है न! शीतल, मैं बायदा करता हूँ, मेरी आँखें अब कभी अपने प्रेम का इजहार नहीं करेंगी...छोड़ दीजिएगा मुझे, अकेले चले जाऊँगा मैं घर। लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल मत समझना कि राज, शीतल को कभी भूल सकता है। राज हमेशा शीतल से प्यार करता रहेगा... मेरे दिल में शीतल हमेशा रहेंगी।"

ऑफिस का टाइम खत्म हो चुका था। आज न तो पहले की तरह शीतल का फोन आया था और न उन्होंने साथ चलने के लिए कहा था। मैं साथ चलने के लिए कहता भी, तो शीतल मेरा फोन उठा ही नहीं रही थीं। मैंने भी अपना बैग पैक कर लिया था।

चार महीने से जो कदम, शीतल के साथ ही आगे बढ़ते थे, वो आज अकेले हो गए थे। शीतल के साथ ऑफिस आने और उन्हीं के साथ घर जाने की आदत-सी मुझे पड़ गई थी।

.
ऐसी कोई आदत अचानक से बदली नहीं जा सकती है और जब बदलनी पड़ती है, तो बहुत दुःख होता है। आज पहली बार में बिना शीतल के घर लौट रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करु, कैसे घर जाऊ?

काफी दूर तक पैदल चलने के बाद मैंने मयूर विहार तक के लिए एक कैब ले ली। आज तक कभी कैब भी बैठे थे, तो साथ ही बैठे थे। ऐसा शायद ही कभी हुआ था कि हम अकेले कहीं आए गए हों। मैं आँख बंदकर कैब में बैठा था।

शीतल का चेहरा और उनकी बातें बार-बार आँखों के सामने घूम रही थीं। कई बातें मोचकर चेहरे पर मुस्कराहट आई; तो आज जो हुआ, उसे सोचकर आँखों में आँसू भी आए।

मयूर विहार आउटर सकिल पर उतरकर मैं घर की तरफ जा ही रहा था कि डॉली का फोन आ गया।

"हेलो राज, कहाँ हो तुम?"

"डॉली, सब खत्म हो गया यार।"

“राज क्या हुआ? तुम रो क्यों रहे हो?"

"डॉली, कुछ नहीं बचा यार, शीतल ने बात करना बंद कर दिया यार ।"

"राज, संभालो खुद को...बताओ कहाँ हो तुम?"

“मैं ऑफिस से लौट रहा हूँ, अभी मयूर बिहार में एंट्री कर रहा हूँ।"

"ओके, आई एम कमिंग: भुवन भैय्या के यहाँ मिलो।"

"ओके, तुमको कुछ बताना भी है।" भुवन भैय्या की दुकान रास्ते में ही थी। कुछ ही मिनटों में मैं वहाँ पहुँच गया था। पीछे से डॉली भी आ ही गई थी।

"हाँ राज, क्या हुआ? तुम इतने परेशान क्यों हो? क्या हुआ?"- डॉली ने आते ही पूछा।

"डॉली, शीतल मेरी जिंदगी से चली गई।"

"पर अचानक से क्यों राज?"

जबाब में मैंने ऋषिकेश में जो कुछ हुआ और आज दिनभर जो हुआ, डॉली को बता दिया।

"राज, अभी कुछ बिगड़ा थोड़ी है; शीतल से बात करो आराम से...उसे भरोसा दिलाओ कि सब ठीक होगा।"

"डॉली, मैं सुबह से बात करने की कोशिश कर रहा हूँ, वो मेरा फोन नहीं उठा रही हैं; मेल पर बात कर रहा हूँ मैं उनसे।"

“राज, डॉली एमे कैसे कर सकती हैं ... उसे बताओ न कि तुम सब ठीक कर दोगे...पापा-मम्मी को मना लोगे।" __

"डॉली, सुबह से मना रहा हूँ, कोई फायदा नहीं हुआ। शीतल बहुत दुःखी हैं...मैं इस वक्त उसके साथ होना चाहता हूँ, पर वो हैं कि अकेले सब झेल रही हैं।" ___
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