RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मा की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और
मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज़यादा
कुच्छ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर
बरी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर
अपनी च्चती की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना
हाथ च्चती में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती
थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को
मोड़ के अपने छाति से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर
से छाति की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी
तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जेंघो
और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख
रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ
निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन
मसोस के रह जाता था. एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद
मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने
जेंघो तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जघो को
देख कर मेरा लंड खरा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी
लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने
लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा.
तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल
लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी
से नहा के काम ख़तम कर" मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी
से नदी में जाने के लिए उठ कर खरा हो गया, पर मुझे इस बात
का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है और मेरी
लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और
मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खरा था धूप की रोशनी
में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो
कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी
से अपनी लूँगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बरा
डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट परेगी और
मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की
वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने
पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की
सांश ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप
ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली.
दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज़यादा ही खुल कर
हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल मीनिंग में भी
बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बरा
मज़ा आ रहा था. मैने जब भी किसी के घर से कापरे ले कर वापस
लौटता तो मा बोलती "क्यों राधिया के कापरे भी लाया है धोने के
लिए क्या". तो मैं बोलता, `हा', इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना
उसके कापरे बरा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोइ नही
जाती". फिर पूछती थी "अंदर के कापरे भी धोने के लिए दिए है
क्या" अंदर के कपरो से उसका मतलब पनटी और ब्रा या फिर अंगिया से
होता था, मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती "तू लरका
है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं
माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी" फिर अगली बार जब वो कापरे लाने जाती तो
सच मुच में वो उसकी पनटी और अंगिया ले के आती थी और
बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे
देगी, तू लरका है ना तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब
जवान भी हो गया है" मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में
शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पनटी और ब्रा या अंगिया फैला कर
दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं
शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो
बोलती "अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा" कह
के हसने लगती. हलकी आक्च्युयली ऐसा कुच्छ नही होता और जायदातर
मर्दो के कापरे मैं और औरतो के मा ही धोया करती थी क्योंकि उस
में ज़यादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्यों मा अब कुछ दीनो से
इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप
चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.
जब हम नदी पर कापरे धोने जाते तब भी मैं देखता था की मा अब
पहले से थोरी ज़यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी
तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी
च्चती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस
पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउस को खोलती
और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले
वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोरा दूर जा के
बैठ जाता तब पूरा नहाती थी.
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