RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
जब इतना कुच्छ दिखा दिया है तो उसे भी दिखा दो ना ऐसा कौन सा कम हो जाएगा". मा ने अब तक अपना पेटिकोट समेत कर जाँघो बीच राक लिया था और सोने के लिए लेट गई थी. मैने इस बार अपना हाथ उसके जाँघो पर रख दिया, मोटी मोटी गुदाज़ जाँघो का स्पर्श जानलेवा था. जाँघो को हल्के हल्के सहलाते हुए मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, मा ने मेरा हाथ पकर लिया और बोली "ठहर अगर तुझसे बर्दस्त ऩही होता तो ला मैं फिर से तेरा लंड मुठिया देती हू" कह कर मेरे लंड को फिर से पकर कर मुठियाने लगी पर मैं ऩही माना और एक बार केवल एक बार बोल के ज़िद करता रहा. मा ने कहा "बरा जिद्दी हो गया रे तू तो, तुझे ज़रा भी शरम ऩही आती अपनी मा को चूत देखने को बोल रहा है, अब यहा छत पर कैसे दिखौ अगाल बगल के लोग कही देख लेंगे तो, कल देख लियो"
"ही, कल ऩही अभी दिखा दे, चारो तरफ तो सुन-सान है फिर अभी भला कौन हमारे छत पर झकेगा"
"छत पर ऩही, कल दिन में घर में दिखा दूँगी, आराम से"
तभी बारिस की बूंदे तेज़ी के साथ गिरने लगी, ऐसा लग रहा था मेरी तरह आसमान भी बर ऩही दिखाए जाने पर रो परा है. मा कहा "ओह बारिश शुरू हो गई, चल जल्दी से बिस्तरा समेत नीचे चल के सोएंगे" मैं भी झट पट बिस्तेर समेटने लगा और हम दोनो जल्दी से नीचे की भागे. नीचे पहुच कर मा अपने कमरे में घुस गई मैं भी उसके के पिच्चे पिच्चे उसके कमरे में पहुच गया. मा ने खीरकी खोल दी और लाइट जला दिया. खीरकी से बरी अच्छी ठंडी ठंडी हवा आ रही थी मा जैसे ही पलंग पर बैठी मैं भी बैठ गया. और मा से बोला "ही, अब दिखा दो ना, अब तो घर में आ गये हम लोग" इस पर मा मुस्कुराते हुए बोली "लगता है आज तेरी किस्मत बरी आक्ची है आज तुझे मालपुआ खाने को तो ऩही पर देखने को ज़रूर मिल जाएगी". फिर मा ने अपने अपना सिर पलंग पे टिका के अपने दोनो पैर सामने फैला दिए और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली "इधर आ मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखती हू. पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा" फिर मा ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पाकारा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से मा से कहा "ओह मा ऐसे ऩही" "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"ही मा, पूरा खोल के दिखाओ ना"
"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"
"ही पूरा कपरा खोल के, मेरी बरी तम्माना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखु, बस एक बार"
इतना सुनते ही मा ने आगे बढ़ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हस्ते हुए बोली "वाह बेटा अंगुली पकर के पूरा हाथ पकरने की सोच रहे हो क्या"
"है मा, छ्होरो ना ये सब बात बस एक बार दिखा दो, दिन में तुम कितने अcचे से बाते कर रही थी और अभी पाता ऩही क्या हो गया है तुम्हे, सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं की आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो की......." "अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भूल गया, दिन में तो बरा भोला बन रहा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कुच्छ जनता ही ऩही, पहले कभी किसी को किया है क्या, या फिर दिन में झूट बोल रहा था"
"है कसम से मा, कभी किसी को ऩही किया, करना तो दूर की बात है कभी देखा या छुआ तक ऩही"
"चल झुटे, दिन में तो देखा ही था और छुआ भी था"
"ही कहा मा, कहा देखा था"
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