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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘चलो मैं तुम लोगों को विदा कर देती हूँ फिर वापस आकर समीर जी के लिए चाय और नाश्ता बना दूँगी।’ रेणुका ने चाय का बर्तन रखने के लिए रसोई की तरफ कदम बढ़ाये और इधर वन्दना मेरे पास आकर खड़ी हो गई।
‘समीर जी, अपनी सेहत का ख्याल रखिये और आराम कीजिये, आशा करती हूँ कि मेरी माँ आपकी हर तरह से मदद करेंगी ताकि आप जल्दी ठीक हो जाएँ… फिर मैं कल वापस आकर चैक करुँगी कि आपकी तबियत ठीक हुई या नहीं।’ यह कहते हुए वन्दना ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और वही हुआ जिसका डर था।
उसकी नज़र मेरे बरमूडा में छिपे सर उठाये शैतान पे चली गई जो अभी अभी उसकी माँ की गाण्ड को रगड़ कर तन गया था और लोहे की छड़ की तरह कड़क हो गया था।
उसकी आँखे खुल सी गईं और एक पल को वहीं अटक गईं।
उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा मानो पूछना चाह रही हो कि यह क्या और क्यूँ है।
वन्दना की उम्र इतनी हो चुकी थी कि उसे इसका मतलब समझ में आ सकता था।
लेकिन उस वक़्त उसके मन में क्या सवाल आ रहे थे, यह बताना मुश्किल था।
उसके चेहरे पर बस उस तरह के भाव थे जैसे एक चूत को लंड देख कर होता है।
मेरे लिए यह एक अच्छी बात थी कि माँ तो माँ बेटी को भी इसका चस्का है। यानि मेरे लिए तो मज़े ही मज़े थे।
वन्दना की आँखें मेरे लंड पे टिकी थीं और तभी रेणुका जी बर्तन रख कर आईं और वन्दना का हाथ थम कर बाहर जाने लगीं।
उन्होंने मुड़कर मेरी तरफ देख और मुस्कुराते हुए कहा- समीर बाबू, आप तबतक फ्रेश हो लीजिये मैं अभी तुरन्त वापस आकर आपके लिए चाय और नाश्ते का इन्तजाम करती हूँ।
मैं तो ख़ुशी से पागल हो गया… एक तो रेणुका जी के मन में मुझसे चुदने का ख्याल भरा पड़ा था और ऊपर से यह भी पता चला किउसके पति अरविन्द जी और उनकी बेटी वन्दना कल शाम तक के लिए घर पर नहीं होंगे।
यानि कल शाम तक मैं रेणुका को नंगा करके उनकी खूबसूरत काया का जी भर के रसपान कर सकूँगा और उन्हें रहते दम तक चोदूँगा…
तीन महीनों के उपवास का इतना अच्छा फल मिलेगा, यह सोचा भी नहीं था।
मैंने फटाफट अपने ऑफिस में फोन कर दिया कि मेरी तबियत ठीक नहीं है और मैं दो दिन नहीं आऊँगा।
फिर जल्दी से बाथरूम में गया और फ्रेश होकर नहाने लगा।
नहाते नहाते अपने तड़प रहे लंड को सहलाने लगा और उसे मनाने लगा कि बेटा बस थोड़ी देर ठहर जा, फिर तो आज तेरा उपवास टूटने ही वाला है।
लेकिन वो हरामी माने तब न… ठुनक ठुनक कर अपनी उत्तेजना दर्शाने लगा… तब मज़बूरी में मुझे मुठ मरकर उसे शांत करना पड़ा।
मैंने यह सोच कर भी मुठ मार लिया था ताकि रेणुका जी को देर तक और मज़े ले लेकर चोद सकूँगा।
मैंने ख़ुशी के मारे बाहर का दरवाज़ा बंद ही नहीं किया था और बस बाथरूम में घुस कर नहाने लगा था।
जब बाथरूम से बाहर निकला तो मैंने एक तौलिया लपेट रखा था।
जैसे ही बाहर आया तो देखा की बाहर का दरवाज़ा लॉक है और रसोई से बर्तनों की आवाज़ आ रही है, मैं समझ गया कि रेणुका ही होगी…
मैं दबे पाँव रसोई की तरफ बढ़ा तो देखा कि रेणुका दीवार की तरफ मुँह करके चूल्हे पर दूध गर्म कर रही थी।
मुझसे रहा न गया और मैंने आगे बढ़कर पीछे से उन्हें अपनी बाहों में जकड़ लिया।
मेरी दोनों बाहों में सिमट कर रेणुका चौक पड़ी और गर्दन घुमाकर मुझे देखने लगी।
उनकी आँखों में एक शर्म, एक झिझक और इन सब के साथ लंड लेने की तड़प साफ़ दिखाई दे रही थी।
‘ओह्ह… छोड़िये भी समीर जी… क्या कर रहे हैं… कोई देख लेगा तो मुसीबत आ जाएगी !!’… रेणुका ने मुझसे लिपटते हुए बड़े ही सेक्सी आवाज़ में कहा।
बस इतना इशारा काफी था… दोस्तो, जब कोई लड़की या औरत आपसे यह कहे कि कोई देख लेगा तब समझो कि उसकी चूत में कीड़ा काट रहा है और वो चाहते हुए भी न चाहने का नाटक कर रही है।
मैं तो पहले से ही इन बातों का आदी था… सो मैंने उनकी एक न सुनी और उन्हें घुमाकर अपनी बाहों में भर लिया।
उनका चेहरा मेरी चौड़ी छाती से चिपक गया और उन्होंने तेज़ तेज़ साँसों के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।
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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘अब क्यूँ छिपा रही हैं आप… अब तो ये मेरे हो चुके हैं… ‘ ऐसा कह कर मैंने उनकी दोनों चूचियों को झुक कर चूम लिया और थोड़ा और झुक कर उनकी चूत जो मेरे लंड और उनके खुद के रस से सराबोर हो चुकी थी उसे चूम लिया और अपनी नज़रें उठा कर उनकी आँखों में देखते हुए अपनी एक आँख मार दी।
‘धत… बदमाश कहीं के !’ रेणुका जी ने ऐसे अंदाज़ में कहा कि मैं घायल ही हो गया।
मैंने उन्हें फिर से गले से लगा लिया।
थोड़ी देर वैसे रहने के बाद हम अलग हुए और मैं उसी हालत में उन्हें लेकर बाथरूम में घुस पड़ा।
हम दोनों के चेहरे पर असीम तृप्ति झलक रही थी।
तो इस तरह मेरा तीन महीनों का उपवास टूटा और एक शुद्ध देसी औरत का स्वाद चखने का मज़ा मिला।
पिछले बीस दिनों में हम दोनों ने मौका निकल कर अब तक सात बार चुदाई का खेल खेला है। जिसमें से पांच बार मेरे घर में और दो बार उनके खुद के घर में उनकी रसोई और उनके स्टोर रूम में।
कुल मिलकर हम बड़े ही मज़े से अपनी अपनी प्यास मिटा रहे हैं और आशा करते हैं कि जब तक यहाँ रहूँगा तब तक ये सब ऐसे ही चलता रहेगा…
रेणुका जी… हम्म्म्म… क्या कहूँ उनके बारे में… थोड़े ही दिनों में उनकी कंचन काया और उनकी कातिल अदाओं ने मुझे उनका दीवाना बना दिया था।
यूँ तो मैं एक खेला खाया मर्द हूँ और कई चूतों का रस पिया है मैंने लेकिन पता नहीं क्यूँ उनकी बात ही कुछ और थी, उनके साथ मस्ती करने करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था मैं… जब भी उनके घर जाता तो सबकी नज़रें बचा कर उनकी चूचियों को मसल देता या उनकी चूत को साड़ी के ऊपर से सहला देता और कभी कभी उनकी साड़ी धीरे से उठा कर उनकी मखमली चूत की एक प्यारी सी पप्पी ले लेता!
घर में अरविन्द जी और वंदना के होते हुए भी छुप छुप कर इन हरकतों में हम दोनों को इतना मज़ा आता कि बस पूछो मत… पकड़े जाने का डर हमारी उत्तेजना को और भी बढ़ा देता और हम इस उत्तेजना का पूरा पूरा मज़ा लेते थे।
ऐसे ही बड़े मज़े से हमारी रासलीला चल रही थी और हम दो प्रेमी प्रेम की अविरल धारा में बहते चले जा रहे थे।
एक शाम मैं अपने ऑफिस से लौटा और हमेशा की तरह अपने कपड़े बदल कर कॉफी का मग हाथ में लिए अपने कमरे में बैठा टी.वी। पर कुछ देख रहा था., तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी।
इससे पहले कि मैं उठ कर देखता, आने वाले के क़दमों की आहट और भी साफ़ सुनाई देने लगी और एक साया मेरे बेडरूम के दरवाज़े पर आकर रुक गया, एक भीनी सी खुशबू ने मेरा ध्यान उसकी तरफ खींचा और मैंने नज़रें उठाई तो बस देखता ही रह गया…
सामने वंदना बहुत ही खूबसूरत से लिबास में बिल्कुल सजी संवरी सी मुस्कुराती हुई खड़ी थी। शायद उसने कोई बहुत ही बढ़िया सा परफ्यूम इस्तेमाल किया था जिसकी भीनी भीनी सी खुशबू मेरे पूरे कमरे में फ़ैल गई थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी पार्टी में जाने के लिए तैयार हुई हो…
मैं एकटक उसे देखता ही रहा, मेरी नज़रें उसे ऊपर से नीचे तक निहारने लगीं, यूँ तो मैंने उसे कई बार देखा था लेकिन आज कुछ और बात थी… उसके गोर गोरे गाल और सुर्ख गुलाबी होठों को देखकर मेरे होंठ सूखने लगे… ज़रा सा नज़रें नीचे हुई तो सहसा ही मेरा मुँह खुला का खुला रह गया…
उफ्फ्फ्फ़… आज तो उसके सीने के उभार यूँ लग रहे थे मानो हिमालय और कंचनजंगा दोनों पर्वत एक साथ मुझे अपनी ओर खींच रहे हों… उसकी मस्त चूचियों को कभी छुआ तो नहीं था लेकिन इतना अनुभव हो चुका है कि किसी की चूचियाँ देखकर उनका सही आकार और सही नाप बता सकूँ… वंदना की चूचियाँ 32 की थीं न एक इंच ज्यादा न एक इंच कम, लेकिन 32 की होकर भी उन चूचियों में आज इतना उभार था मानो अपनी माँ की चूचियों से मुकाबला कर रही हों!
मेरी नज़रें उसकी चूचियों पे यूँ टिक गई थीं जैसे किसी ने फेविकोल लगा दिया हो।
‘क्यूँ जनाब, क्या हो रहा है?’ वन्दना की प्रश्नवाचक आवाज़ ने मुझे डरा दिया।
‘क… क.। कुछ भी तो नहीं !’ मानो मेरी चोरी पकड़ी गई हो और उसने सीधे सीधे मुझसे उसकी चूचियों को घूरने के बारे में पूछ लिया हो।
नज़रें ऊपर उठाईं तो देखा कि वो शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुरा रही थी।
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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘अरे इतना घबरा क्यूँ रहे हैं आप, मैंने तो यह पूछा कि आजकल आप नज़र ही नहीं आते हैं, आखिर कहाँ व्यस्त हैं आजकल?’ अपने हाथों को अपने सीने के इर्द गिर्द बांधते हुए उसने ऐसे पूछा जैसे कोई शिक्षक अपने छात्र से सवाल कर रहा हो।
हाय उसकी ये अदा… अब उसे कैसे समझाता कि आजकल मैं उसकी माँ की गुलामी कर रहा हूँ और उसके हुस्न के समुन्दर में डुबकियाँ लगा रहा हूँ।
‘अरे ऐसी कोई बात नहीं है… बस आजकल ऑफिस के काम से थोड़ा ज्यादा व्यस्त रहने लगा हूँ।’ मैंने अपने मन को नियंत्रित करते हुए जवाब दिया।
‘ह्म्म्म… तभी तो आजकल आपके पास हमारे लिए समय ही नहीं होता वरना यूँ इतने दिनों के बाद घूर घूर कर देखने की जरूरत नहीं पड़ती, मानो कभी देखा ही ना हो!’ अपने हाथों को खोलते हुए अपनी चूचियों को एक बार और उभारते हुए उसने एक लम्बी सांस के साथ मेरी नज़रों में झाँका।
हे भगवान्… इस लड़की को तो मैं बहुत सीधी-साधी समझता था… लेकिन यह तो मुझे कुछ और ही रूप दिखा रही थी, एक तरफ उसकी माँ थी जो मुझसे इतना चुदवाने के बाद भी शर्माती थी और एक यह है जो सामने से मुझ पर डोरे डाल रही थी।
हुस्न भी कैसे कैसे रूप दिखता है…
खैर जो भी हो, मैंने स्थिति को सँभालते हुए पूछा- चलो मैंने अपनी गलती स्वीकार की… मुझे माफ़ कर दो और यह बताओ कि आज आपको हमारी याद कैसे आ गई?
‘अजी हम तो आपको हमेशा ही याद करते रहते हैं, फिलहाल आपको हमारे पिता जी ने याद किया है।’ उसने मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा, उसकी नज़रों में एक शरारत भरी थी।
अचानक से यह सुनकर मैं थोड़ा चौंक गया कि आखिर ऐसी क्या जरूरत हो गई जो अरविन्द भैया ने मुझे याद किया है.. कहीं उन्हें कोई शक तो नहीं हो गया… कहीं रेणुका और मेरी चोरी पकड़ी तो नहीं गई?
वंदना के हाव-भाव से ऐसा कुछ लग तो नहीं रहा था लेकिन क्या करें… मन में चोर हो तो हर चीज़ मन में शक पैदा करती है।
‘जाना जरूरी है क्या… अरविन्द भैया की तबियत ठीक तो है… बात क्या है कुछ बताओ तो सही?’ एक सांस में ही कई सवाल पूछ लिए मैंने।
‘उफ्फ्फ… कितने सवाल करते हैं आप… आप खुद चलिए और पूछ लीजिये।’ मुँह बनाते हुए वंदना ने कहा और मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया।
उस वक़्त मैं बस एक छोटे से शॉर्ट्स और टी-शर्ट में था इसलिए मैं उठा और वंदना से कहा कि वो जाए, मैं अभी कपड़े बदल कर आता हूँ।
‘अरे आप ऐसे ही सेक्सी लग रहे हो…’ वंदना ने एक आँख मरते हुए शरारती अंदाज़ में कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी।
‘बदमाश… बिगड़ गई हैं आप… लगता है आपकी शिकायत करनी पड़ेगी आपके पापा से..’ मैंने उसके कान पकड़ कर धीरे से मरोड़ दिया।
‘पापा बचाओ… ‘ वंदना अपना कान छुड़ा कर हंसती हुई अपने घर की ओर भाग गई।
मैं उसकी शरारत पर मुस्कुराता हुआ अपने घर से बाहर निकला और उनके यहाँ पहुँच गया।
अन्दर अरविन्द जी और रेणुका जी सोफे पे बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, वंदना अपने कमरे में थी शायद!
‘नमस्ते भैया… नमस्ते भाभी..’ मैंने दोनों का अभिवादन किया और मुस्कुराता हुआ उनके बगल में पहुँच गया।
‘अरे आइये समीर जी… बैठिये… आजकल तो आपसे मुलाकात ही नहीं होती…’ अरविन्द भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे बैठने का इशारा किया।
मैंने एक नज़र उठा कर रेणुका की तरफ देखा जो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कराहट ने मुझे यकीन दिला दिया कि मैं जिस बात से डर रहा था वैसा कुछ भी नहीं है और मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं है।
मेरे बैठते ही रेणुका भाभी सोफे से उठी और सीधे किचन में मेरे लिए चाय लेने चली गईं… आज वो मेरी फेवरेट मैरून रंग की सिल्क की नाइटी में थीं। शाम के वक़्त वो अमूमन अपने घर पे इसी तरह की ड्रेस पहना करती थीं। उनके जाते वक़्त सिल्क में लिपटी उनकी जानलेवा काया और उनके मस्त गोल पिछवाड़े को देखे बिना रह नहीं सकता था तो बरबस मेरी आँखें उनके मटकते हुए पिछवाड़े पे चली गईं…
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04-12-2019, 12:29 PM,
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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
वैसे तो चाय ठण्डी थी लेकिन इतनी भी ठण्डी नहीं थी, मेरी जाँघों में जलन हो रही थी।
मैं भागकर सीधा अपने बाथरूम में घुसा और पानी का नलका खोलकर अपने जांघों को धोने लगा।
यह अच्छा था कि मैंने शॉर्ट्स के अन्दर जॉकी पहन रखी थी जिसकी वजह से मेरे पप्पू तक चाय की गर्माहट नहीं पहुँची थी वरना पता नहीं क्या होता.. यूँ तो गरमागरम चूतों का दीवान होता है लण्ड, लेकिन अगर शांत अवस्था में कोई गरम चीज़ गिर जाए तो लौड़े की माँ बहन हो जाती है…
खैर, अब मैंने अपना शॉर्ट्स उतार दिया और सिर्फ जॉकी में अपने पैरों और जांघों को धोने लगा।
जब मैं अपने घर में घुसा था तो हड़बड़ाहट की वजह से न तो बाहर का दरवाज़ा बंद किया था न ही बाथरूम का… जिसका अंजाम यह हुआ कि जैसे ही मैं अपनी जाँघों को धोकर मुड़ा, मैं चौंक गया…
सामने वंदना बाथरूम के दरवाज़े पे खड़ी अपनी लाल लाल आँखें लिए हुए मुझे घूर रही थी।
‘अरे तुम कब आईं?’ मैंने उसे देखते ही अपने हाथों से बाथरूम में पड़ा तौलिया खींचा और अपने कमर पे लपेटते हुए उसकी तरफ बढ़ा।
‘बस अभी अभी आई… वो मम्मी ने यह जेल भेजा है…!’ वंदना ने अपनी आँखें चुराते हुए कहा और मुड़ कर बाथरूम के दरवाज़े से सरकती हुई दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई।
‘अरे इसकी कोई जरूरत नहीं है… बस थोड़ी सी जलन है ठीक हो जायेगा।’ मैं भी उसके पीछे पीछे तौलिया लपेटे बढ़ गया।
बाथरूम के ठीक बगल में मेरा सोने का कमरा था, वंदना सर झुकाए बिस्तर के बगल में रखे कुर्सी पर बैठ गई। ऐसा लग रहा था मानो वो अपराध-बोध से शर्मिंदा हुए जा रही थी।
इतनी चंचल और शरारती लड़की को यूँ सर झुकाए देखना मुझे अच्छा नहीं लगा और मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया।
‘अरे वंदना जी… अब इतना भी उदास होने की जरूरत नहीं है। तुमने कोई जान बुझ कर तो चाय नहीं गिराई न.. वो बस ऐसे ही गिर गई, इसमें उदास होने वाली क्या बात है?’ मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
मेरी बात सुनकर उसने अपना सर उठाया और जब मेरी नज़र उसकी नज़र से मिली तो मेरा दिल बैठ सा गया। उसकी आँखों में आंसू थे। उसकी हिरनी जैसी बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखें आँसुओं से डबडबा गई थीं।
एक पल को मैं हैरान सा हो गया… उसकी आँखों के पानी ने मेरी जलन से मेरा ध्यान हटा दिया था.. अब मुझे बुरा लगने लगा।
‘ओफ्फो… अब इसमें रोने की क्या बात है?’ मैंने उसका चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भरा और उसकी आँखों में आँखें डालकर उसे चुप कराने की कोशिश की।
लेकिन जैसे ही मैंने उसका चेहरा पकड़ कर अपनी तरफ किया, वैसे ही उसकी आँखों ने आँसुओं के दो मोती छलका दिए जो सीधे मेरे हाथों में गिरे।
मैंने जल्दी से अपने हाथों से उसके आँसू पौंछे और उसके माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दे दिया।
‘बेवक़ूफ़… ऐसे छोटी छोटी बात पर कोई रोता है क्या?’ मैंने उसे चुप कराते हुए कहा।
‘मुझे माफ़ कर दीजिये समीर जी… मैंने गुस्से में आपको तकलीफ दे दी।’ वंदना ने रुंधे हुए गले से कहा और एक बार फिर उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े।
उफ़… उसकी इस बात पे इतना प्यार आया कि दिल किया उसे गले से लगा कर सारा दर्द अपने अन्दर समेट लूँ… आज वंदना की इस हालत ने मुझे उसकी तरफ खींच लिया था।
‘अब चुप हो जाओ और चलने की तैयारी करो, मैं बस थोड़ी देर में आया!’ इतना कह कर मैंने उसे उठाया और अपने घर जाने के लिए कहा।
‘नहीं, पहले आप कहो कि आपने मुझे माफ़ कर दिया… तभी जाऊँगी मैं वरना मुझे कहीं नहीं जाना…’ अपने आँसू पोंछते हुए उसने अधिकारपूर्ण शब्दों में कहा और मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए।
‘अरे बाबा, तुमने कोई गलती की ही नहीं तो फिर माफ़ी किस बात की? ये सब तो होता रहता है।’ मैंने उसे फिर से समझाते हुए कहा।
‘नहीं, मैं कुछ नहीं जानती.. अगर आपने मुझे माफ़ नहीं किया तो मैं फिर आपसे कभी बात नहीं करूँगी।’ उसने इतनी अदा से कहा कि बस मेरा दिल प्यार से भर गया..
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