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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘अच्छा बाबा, मैंने आपको माफ़ किया… अब खुश?’ मैंने फिर से उसका चेहरा अपने हथेलियों में लिया और उसकी आँखों में देखते हुए कह दिया।
‘ऐसे नहीं… पहले मुझे यकीन होने दीजिये कि आपने सच में मुझे माफ़ कर दिया…’ उसने फिर से अपनी जिद भरी बातें कही।
‘तो अब तुम्हीं बताओ कि क्या करूँ जिससे तुम्हें यकीन हो जाए…’ मैंने सवाल किया।
‘अगर आपने सच में मुझे माफ़ किया है तो ये जेल मैं खुद आपके जलन वाली जगह पे लगाऊँगी, तभी मुझे यकीन होगा..’ उसने एक ही सांस में मेरी आँखों में आँखें डालकर बिना अपनी पलकें झपकाए कहा।
वंदना की बात सुनकर एक पल के लिए तो मैं स्तब्ध हो गया… ये लड़की क्या कह रही है… कसम से कहता हूँ दोस्तो, अगर मैंने उसकी माँ रेणुका को नहीं चोदा होता तो शायद उसकी इस मांग पर मैं फूले नहीं समाता। इतनी खूबसूरत लड़की और वो चाहती थी कि वो मेरे जाँघों पे जेल क्रीम से मालिश करे… कौन मर्द ये नहीं चाहेगा कि एक बला की खूबसूरत हसीना अपने नाज़ुक नाज़ुक हाथों से उसकी मालिश करे और वो भी जाँघों पे। लेकिन पता नहीं क्यूँ मुझे अचानक से रेणुका का ख़याल आने लगा.. कहीं मैं उसके विश्वास के साथ दगेबाज़ी तो नहीं कर रहा… अगर उसे पता चला तो वो क्या समझेगी.. तरह तरह के सवाल मेरे मन में आने लगे।
‘क्या हुआ… क्या सोचने लगे… देखा ना मुझे पता था कि आपने मुझे माफ़ नहीं किया…’ वंदना ने मेरा ध्यान तोड़ते हुए फिर से रोने वाली शक्ल बना ली।
‘अरे बाबा ऐसा कुछ भी नहीं है… तुम समझने की कोशिश करो, मैं यह जेल खुद ही लगा लूँगा… मैं वादा करता हूँ।’ मैंने उसे समझाते हुए कहा।
‘मुझे कुछ नहीं सुनना.. मैंने कह दिया सो कह दिया…’ उसने जिद पकड़ ली।
अब मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… मुझे इतना पता था कि अगर उसने मेरी जाँघों को छुआ तो मैं अपने ज़ज्बातों पे काबू नहीं रख नहीं सकूँगा और लण्ड तो आखिर लण्ड ही होता है… वो तो अपना सर उठाएगा ही… हे भगवन, अब आप ही कुछ रास्ता दिखाओ…!!
शायद भगवन ने मेरी सुन ली और एक रास्ता दिखा दिया… हुआ यूँ कि अचानक से बिजली चली गई और पूरे कमरे में अँधेरा छा गया…
हम दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चुपचाप खड़े थे… कमरे में सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
मैंने एक बार फिर से उसे समझाने के लिए उसके हाथों को जोर से पकड़ा और उसके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाकर धीरे से कहा- यह ठीक नहीं है वंदना… मान भी जाओ..देखो हमें देर भी हो रही है… और मैंने कहा न कि मैं दवा लगा लूँगा।
मैंने धीरे से फुसफुसा कर उसके कान में कहा।
मेरे बोलते वक़्त मेरी साँसें गर्म हो चुकी थीं और उसके गालों पे पड़ रही थीं। शायद इससे उसकी आग और भड़क गई और उसने भी उसी तरह फुसफुसाते हुए गर्म साँसों के साथ मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर कहा- प्लीज समीर जी… मान जाइये, मेरी खातिर… मुझे लगेगा कि मैंने जो गलती की है उसके बदले आपकी मदद कर रही हूँ… प्लीज !
उसने अपने साँसों की खुशबू मेरे चेहरे पे छोड़ते हुए इतने सेक्सी अंदाज़ में कहा कि मेरे तो रोम रोम सिहर उठे।
आप सबने यह महसूस किया होगा कि जब इंसान वासना की आग में गर्म हो जाता है तो उसकी फुसफुसाहट काम भावना का परिचय देती है, ऐसा ही कुछ मुझे उस वक़्त महसूस हो रहा था।
‘मैं जानती हूँ कि आपको शर्म आ रही है… लेकिन शायद ऊपरवाले ने आपकी इस समस्या का हल भी भेज दिया है.. बिजली चली गई है और पूरा अँधेरा है… अब तो आपको शर्माने की भी कोई जरूरत नहीं है.. और अगर अब भी आप चाहोगे तो मैं अपनी आँखें बंद कर लूँगी… लेकिन दवा लगाए बिना नहीं जाऊँगी।’ अपनी जिद और अपनी मंशा ज़ाहिर करते हुए उसने मुझे पूरी तरह से विवश करते हुए मुझे धीरे से बिस्तर की तरफ धकेलते हुए बिठा दिया।
अँधेरे की वजह से वो कुछ देख नहीं पायेगी, इस बात की संतुष्टि तो थी लेकिन एक और भी डर था कि अँधेरे में उसका हाथ जाँघों से होता हुआ कहीं मेरे भूखे लंड पर गया तो फिर वंदना को चुदने से कोई नहीं बचा पायेगा… और मैं यह चाहता नहीं था क्यूंकि अब तक मेरे दिमाग से रेणुका का ख्याल गया नहीं था… और पिछले 3–4 दिनों से रेणुका को चोदा नहीं था.. अरविन्द भैया की वजह से हमें मौका नहीं मिला था।
और मैं जानता था कि मेरा लंड अगर उसके छूने से जाग गया तो अपना पानी झाड़े बिना नहीं मानेगा।
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इस उहापोह की स्थिति में मैंने एक फैसला किया और बिस्तर से उठ कर रसोई की तरफ गया।
मेरे अचानक यूँ उठने से वंदना को अजीब सा लगा और अँधेरे में ही उसने टटोलते हुए मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा- क्या हुआ… कहाँ जा रहे हैं आप?
वंदना ने चिंता भरे लहजे में पूछा।
‘बस अभी आया… तुम यहीं रुको।’ मैंने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा और रसोई में चला गया।
पहले तो टटोलकर फ़्रिज़ का दरवाज़ा ढूंढा और पानी की बोतल निकाल कर एक ही घूंट में पूरी बोतल खाली कर दी… मेरे सूखते हुए गले को थोड़ी सी राहत मिली।
फिर मैं फ़्रिज़ के ऊपर से जैसे तैसे मोमबत्ती तलाशने लगा और किस्मत से एक मोमबत्ती मिल भी गई, वहीं पास में माचिस भी मिल गई और मैंने मोमबत्ती जला ली।
जलती हुई मोमबत्ती लेकर मैं वापस कमरे में आया और बिस्तर के बगल में रखे मेज पर उसे ठीक से लगा दिया। मोमबत्ती की हल्की सी रोशनी में वंदना का दमकता हुआ चेहरा मेरे दिल पर बिजलियाँ गिराने लगा।
कसम से कह रहा हूँ, उस वक़्त उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई खूबसूरत सी परी सफ़ेद कपड़ों में मेरे सामने मेरा सर्वस्व लेने के लिए खड़ी हो… मैं एक पल को उसे यूँ ही निहारता रहा।
‘अब आइये भी… अब देरी नहीं हो रही क्या?’ वंदना ने शरारत से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मुझे बिस्तर पर आने को कहा।
‘हे ईश्वर, कुछ भूल होने से बचा लेना..’ मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और धीरे से बिस्तर पे बैठ गया।
मैं उस वक़्त सिर्फ एक तौलिये में था सिर्फ अन्दर एक वी कट जॉकी पहनी हुई थी और ऊपर बिल्कुल नंगा था।
वंदना अब भी बिस्तर के बगल में हाथों में जेल लिए खड़ी थी।
उसने मुझे अपने पैरों को ऊपर करके सीधे लेट जाने को कहा, मैं चुपचाप उसकी बात सुनते हुए अपने पैरों को उठा कर बिल्कुल सीधा लेट गया।
उसने मुझे बिस्तर के थोड़ा और अन्दर की तरफ धकेला और फिर मेरे जाँघों के पास मुझसे बिल्कुल सट कर बैठ गई।
वंदना इस तरह बैठी कि उसका चेहरा मेरी टांगों की तरफ था और सामने मोमबत्ती जल रही थी जिस वजह से मुझे बस उसके शरीर के पीछे का हिस्सा रोशनी की वजह से सिर्फ एक आकार की तरह नज़र आ रहा था। मेरे कूल्हे और उसके कूल्हे बिल्कुल चिपके हुए थे जो अनायास ही मुझे गर्मी का एहसास करा रहे थे।
उसके शरीर से इतना चिपकते ही मेरे लंड ने हरकत शुरू कर दी और धीरे धीरे अपना सर उठाने की कोशिश करने लगा, लेकिन मन में द्वन्द चल रहा था इस वजह से मेरा लंड पूरी तरह सख्त न होकर आधा ही सख्त हुआ और बस मेरी ही तरह वो बेचारा भी उहापोह की स्थिति में फुदक कर अपनी बेचैनी का एहसास करवा रहा था।
अब वंदना ने धीरे से मेरे कमर में लिपटे तौलिये को खोलने के लिए अपने हाथ बढ़ाये और तौलिये का एक सिरा पकड़ कर खींचना शुरू किया। मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने मेरा हाथ हटा दिया और तौलिये को पूरी तरह से कमर से खोल दिया।
अब स्थिति यह थी कि मैं खुले हुए तौलिये के ऊपर बस एक जॉकी में लेटा हुआ था। उसने अपने हाथ मेरे पैरों पे रख दिया और उन्हें फ़ैलाने का इशारा किया.. उफ्फ्फ… उसके नर्म हाथ पड़ते ही मेरे पैर एक बार तो काँप ही गए थे।
ऐसा पहली बार नहीं था जब मैं किसी लड़की के सामने ऐसे हालात में था… लेकिन उन लड़कियों या औरतों को मैं मन से चोदने के लिए तैयार रहता था और इस बार बात कुछ और थी।
मैं वंदना के साथ इस हालत में होकर भी उसे चोदने के बारे में सोच नहीं पा रहा था… अगर रेणुका का ख्याल दिमाग में न होता तो अब तक वंदना मेरी जगह इस हालत में लेती होती और मैं उसकी जाँघों की मालिश कर रहा होता।
खैर, मोमबत्ती की रोशनी में जैसे ही वंदना ने मेरे जाँघों पे पड़े छालों को देखा उसके मुँह से एक सिसकारी निकल गई- हे भगवन… कितना जल गया है! और आप कह रहे थे कि कुछ हुआ ही नहीं?
उसकी आवाज़ में फिर से मुझे रोने वाली करुण ध्वनि का एहसास हुआ।
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RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
अचानक से पूरा महल खुशनुमा हो गया… मेरे मन पे परा बोझ भी न जाने कहाँ खो गया.. रेणुका ने जो गुस्सा दिलाया था वो वंदना के प्यार ने कहीं दूर भगा दिया था। वंदना बहुत खुश हो गई थी… उसके चेहरे की चमक और होठों की मुस्कराहट ने मेरा सारा दर्द भुला दिया था।
मेरे दिल से एक आवाज़ आई कि बेटा समीर… जिस प्यार की तलाश में तू कहीं और भटक रहा था वो तुझे वंदना से ही मिल सकता है… तू खामख्वाह रेणुका के पीछे दिल लगा रहा है।
यह बात दिमाग में आते ही मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ वंदना की तरफ देख कर गाड़ी चलाता रहा… शायद हमारे इस ख़ुशी में ऊपर वाला भी शामिल होना चाहता था… इसीलिए बाहर ज़ोरों से बारिश होने लगी और जोर से एक बिजली चमकी जिससे डर कर वंदना मुझसे चिपक सी गई।
‘हाहाहा… डरपोक… डर गई?’ मैंने वंदना का मजाक उड़ाते हुए कहा।
‘अच्छा जी… मैं डरपोक… अभी बताती हूँ..’ इतना बोलकर उसने आगे बढ़ कर मेरे गालों के अपने दांत गड़ा दिए।
‘आउच… बदमाश… बना दिए न दांतों के निशान..अब जब आपकी सहेलियाँ पूछेंगी तब क्या जवाब दूँगा? मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
‘कह दीजियेगा कि रास्ते में एक जंगली बिल्ली ने काट खाया…’ शरारत भरे शब्दों में वंदना ने कहा और ठहाके लगा कर हंसने लगी।
इसी तरह हंसी मजाक करते हुए हम थोड़ी देर में उसकी सहेली के यहाँ पहुँच गए… बारिश अब भी बड़े ज़ोरों से हो रही थी।
गाड़ी से निकल कर हम भागते हुए वंदना की सहेली के घर के भीतर घुसे, अन्दर बड़ा ही खुशनुमा सा माहौल था, ढेर सारी लड़कियाँ सच कहूँ तो खूबसूरत लड़कियाँ तरह तरह के आधुनिक पोशाकों में इधर उधर इठलाती हुई चहल कदमी कर रही थीं और मद्धिम सी आवाज़ में संगीत का शोर भी फैला हुआ था।
पूरा हॉल चमकीले सितारों से और रंग बिरंगे बलून से भरा पड़ा था।
मैंने नज़र दौड़ाई तो वहाँ कुछ लड़कों को भी देखा जो शायद वंदना और उसकी सहेली के सहपाठी रहे होंगे। सब लोग अपनी मस्ती में खोये हुए थे।
हम जैसे ही हॉल में दाखिल हुए तभी हॉल के एक कोने से लाल रंग की खूबसूरत सी ड्रेस में बिल्कुल किसी बार्बी डॉल की तरह वंदना के उम्र की ही लड़की आई और ख़ुशी से चिल्लाते हुए वंदना को अपने गले से लग लिया।
‘शैतान… अब समय मिला है तुझे… ये कोई वक़्त है… कहाँ थी अब तक?’ एक ही सांस में सारे सवाल पूछ लिए उसने।
उफ्फ… ये लड़कियाँ… सारी की सारी एक जैसी ही होती हैं… सबके लबों पे बस सवाल ही सवाल होते हैं!
‘अरे यार माफ़ कर दे… एक तो मौसम इतना खराब है और ऊपर से ये जनाब नखरे दिखा रहे थे।’ वंदना ने अपनी सहेली को मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा।
‘ओह… तो आप हैं समीर बाबू… धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।’ वंदना की सहेली ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखकर कहा और फिर वंदना को देख कर आँख मारी।
मुझे कुछ अजीब सा लगा, उसकी सहेली की बातों से ऐसा महसूस हुआ मानो वंदना और उसके बीच मेरे बारे में बहुत कुछ बातें हो चुकी हों शायद… मेरे चेहरे पर एक शिकन आई लेकिन मैंने भी मुस्कुराते हुए वंदना की सहेली की तरफ देखा।
‘समीर जी, यह है मेरी सबसे प्यारी और सबसे ख़ास सहेली ज्योति… हम सगी बहनों से भी ज्यादा प्यार करते हैं एक दूसरे को, और ज्योति… ये रहे समीर बाबू, अब मिल लो… इतने दिनों से मेरी जान खा गई थी न मिलवाने के लिए सो आज मैं इन्हें लेकर आ ही गई।’ वंदना ने हम दोनों का परिचय एक दूसरे से करवाया।
उन दोनों की आँखों में मुझे शरारत नज़र आ रही थी… एक चमक सी थी उन दोनों की आँखों में, मानो वंदना और हमारी नई नई शादी हुई हो और वो अपने पति का परिचय अपनी सहेली से करवा रही हो।
साथ ही ज्योति इस तरह मिल रही थी मानो अपने नए नए जीजाजी से मिल रही हो।
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हॉल के बीचों बीच एक गोल मेज़ पर बहुत ही खूबसूरत सा केक सजा हुआ था और उसके ऊपर बस एक मोमबत्ती लगी हुई थी, उस एक मोमबत्ती को देख कर मेरे होठों पे बरबस एक मुस्कान उभर गई..
‘लड़कियाँ चाहे छोटे शहर की हों या बड़े शहर की… अपनी उम्र छिपाने की आदत सब में एक जैसी ही होती है…’ मैंने मन ही मन में सोच कर ज्योति की तरफ देखा और एक हल्की सी मुस्कान दे दी।
ज्योति शायद मेरे मुस्कुराने की वजह समझ गई और तभी धीरे से मेरे करीब आकर सबकी नज़रों से बचते हुए मेरे कान में धीरे से कहा- समीर बाबू… लड़कियों की उम्र तो बस निगाहों से ही नाप कर समझनी होती है।
मैं एकटक उसे देखता ही रह गया और फिर धीरे से मुस्कुरा कर रह गया…
कमरे की सारी बत्तियाँ बुझ गई और फिर ज्योति ने फूंक मार कर मोमबत्ती बुझाई और हम सबने तालियाँ बजाकर और वही पुराना ऐतिहासिक जन्मदिन का गाना गाकर उसे बधाईयाँ दी।
हम सबने मिलकर केक खाया और फिर सबने ज्योति को तोहफे देना शुरू किए…
इस एक क्षण में मुझे बड़ा अजीब सा लगा… वहाँ सब के हाथों में कुछ न कुछ था जो वो ज्योति को दे रहे थे.. मैं अकेला खाली हाथ था… मेरे चेहरे पे शर्मिंदगी के भाव उभर आये और मैं ज्योति से नज़रें चुराने लगा…
कहते हैं लड़कियों को ऊपर वाले ने कुछ ख़ास गुण दिए हैं, और उनमें एक गुण यह भी है कि वो लड़कों के चेहरे पे आये भावों को पढ़ लेती हैं…
ऐसा ही हुआ…
मेरे बगल में खड़ी वंदना ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया और ठीक उसी समय ज्योति की निगाहों ने भी मेरे चेहरे को पढ़ना शुरू किया और फिर उसने वंदना की तरफ देखा… दोनों सहेलियों ने एक दूसरे को आँखों ही आँखों में सारी बातें समझा दीं।
सहसा मेरे कानों में ज्योति की आवाज़ सुनाई दी…
‘आप सबका इन खूबसूरत तोहफों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद… लेकिन यहाँ एक शख्स ऐसे भी हैं जो खाली हाथ आये हैं… और उन्हें इसकी सजा मिलेगी…’ ज्योति ने सीधा मेरी तरफ ऊँगली से इशारा कर दिया।
अचानक से सारे लोगों की निगाहें मेरी तरफ हो गईं और मैं तो शर्म से पानी पानी सा हो गया।
‘समीर बाबू, डरिये मत… आपको इतनी भी बड़ी सजा नहीं मिलेगी…’ ज्योति ने शरारत भरे लहजे में मुस्कुराते हुए कहा और चलती हुई मेरी तरफ बढ़ी।
मेरे सीने की धड़कन बढ़ गई… पता नहीं अब क्या करना पड़े…!!
ज्योति मेरे बगल में आकर खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर बाकी सब की तरफ देख कर बोलने लगी- दोस्तो, हमारे समीर जी बहुत अच्छा गाते हैं और उनके गानों की तारीफ़ मैंने कई बार सुनी है… तो आज इनकी सजा यही है कि आज मेरे जन्मदिन के मौके पर समीर जी हम सबको एक प्यारा सा गाना सुनायेंगे… तालियाँ !
एक ही सांस में उस लड़की ने सबकुछ कह दिया और वहाँ मौजूद सभी ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं।
मुझे तो मानो शॉक सा लग गया… कई सवाल कौंध गए मेरे ख्यालों में…
आप सबको यह बता दूँ कि मुझे संगीत का बहुत शौक रहा है बचपन से और ऊपर वाले ने मुझे यह नेमत बख्शी है कि मैं ठीक-ठाक गा लेता हूँ… मैं और मेरे दोस्तों ने मिलकर एक बैंड भी बना रखा है जिसमें मैं गिटार बजा लेता हूँ और अपने बैंड का लीड सिंगर भी हूँ।
लेकिन मेरी इस बात का पता ज्योति को कैसे चला, यह सोच कर हैरान था… हैरानी इसलिए ज्यादा थी कि मैंने तो कभी वंदना को भी नहीं बताया था इस बारे में… पता नहीं यह सीक्रेट कैसे पता लगा इन्हें !!
खैर अब कोई चारा नहीं बचा था… और पिछले कुछ देर के दरम्यान वंदना के साथ रास्ते में बिठाये उन हसीन पलों की वजह से मेरा मूड बहुत अच्छा था… मैंने भी सोचा कि चलो उस प्यारी सी लड़की के जन्मदिन पर इतना तो करना बनता है।
‘तुमको देखा तो ये ख़याल आया… ज़िन्दगी धूप तुम घना साया..’
वो पल मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत हो गया था… वंदना एकटक मेरे चेहरे पे अपनी नज़रें जमाये मेरे होठों से निकलते हर एक लफ्ज़ को इतनी संजीदगी से सुन रही थी मानो मेरा हर लफ्ज़ अपने अन्दर समां लेना चाह रही हो…
मेरे सबसे चहेते जगजीत सिंह जी की बेहतरीन ग़ज़ल गाकर मैंने वहाँ मौजूद सबका दिल जीत लिया।
जैसे ही मैंने गाना ख़त्म किया, ज्योति दौड़कर मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई… मुझे गले लगाकर उसने मेरा धन्यवाद किया… और फिर सबने तालियाँ बजाकर मेरा अभिवादन किया।
कुल मिलकर बड़ा ही खुशनुमा सा महल बन गया था… फिर हम सबने मिलकर खाना खाया और धीरे धीरे मेहमानों ने विदाई ली और मैंने भी वंदना को इशारा किया कि अब चलना चाहिए।
घड़ी की सुइयाँ दस बजा रही थीं और मौसम भी खराब था।
वंदना और ज्योति अब भी एक दूसरे से चिपकी हुई थीं… दोनों मेरे पास आईं और दोनों के चेहरे पे दिल को घायल कर देने वाली मुस्कान बिखरी पड़ी थी।
‘क्यूँ समीर जी, लगता है आपको हमारा साथ अच्छा नहीं लग रहा है… तभी आप घर जाने के लिए इतना हड़बड़ा रहे हो..’ ज्योति ने ऐसे शरारत से पूछा मनो वो कह कुछ और रही हो और पूछ कुछ और!
‘अरे ऐसी बात नहीं है ज्योति जी… वंदना के पापा ने हमे हिदायत दी थी कि हम समय से घर पहुँच जाएँ… वरना मैं तो वैसे भी निशाचर हूँ… रात भर जागने की बीमारी है मुझे!’ मैंने भी मुस्कुराते हुए ज्योति की तरफ देख कर जवाब दिया।
‘ओफ्फो… तो आपको रात भर जागने की बीमारी है… फिर तो भगवान् ही बचाए आपसे… रात भर खुद भी जागेंगे और दूसरों को भी जगाये रखेंगे!’ ज्योति ने यह कहते हुए वंदना की तरफ देख कर आँख मार दी और खिलखिला कर हंस दी।
वंदना ने ज्योति के हाथों पे चिकोटी काट ली- …शैतान कहीं की…
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