Rishton Mai Chudai एक भाई ऐसा भी
09-09-2018, 02:25 PM,
#3
RE: Rishton Mai Chudai एक भाई ऐसा भी
केशव ने वो सारे पैसे ज़बरदस्ती काजल के हाथों मे रख दिए और बोला : "दीदी, मैं उतना भी बुरा नही हू जितना आप मुझे समझती हो...मुझे भी माँ की फ़िक्र है..अब मुझे आप की तरह कोई जॉब तो देगा नही, इसलिए जो मेरी समझ मे आता है, मैं करता हू...और ये पहली बार नही है की मैने जुए में पैसे जीते हैं, पर हाँ , इतने पैसे एक साथ पहले कभी नही जीते..पर पहले मैं उन पैसों को उड़ा देता था..पर आज के बाद ऐसा नही करूँगा..मैं भी आपकी मदद करूँगा..

अपने भाई की ऐसी समझदारी भरी बाते सुनकर काजल एक दम से अपनी सीट से उठी और केशव के सिर को अपनी छाती से लगाकर सिसकने लगी : "मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई...मैने तुझे इतना बुरा-भला कहा..मैं वो माँ की वजह से इतनी परेशान थी की जो मेरे मुँह मे आया, वो कहती चली गयी...''

ये केशव के लिए पहला मौका था जब उसकी बहन के मुम्मे उसके चेहरे पर दबे पड़े थे...उसने आज तक अपनी बहन के बारे मे कोई ग़लत बात नही सोची थी..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को पकड़कर अपनी छाती से लगाया था..और जब केशव को ये महसूस हुआ की काजल ने पतली सी टी शर्ट के अंदर कुछ भी नही पहना है तो उसे ऐसा एहसास हुआ की उसका चेहरा सीधा उसके नंगे मुम्मो के उपर रखा हुआ है...इतने नर्म और मुलायम थे उसके मुम्मे ...और उसके जिस्म से निकल रही एक कुँवारी सी खुश्बू...वो तो बस अपनी आँखे बंद करके उस सुगंध को सूंघता ही रह गया..

काजल बोलती जा रही थी : "पर केशव, ये पैसा हराम का है...आगे से कोशिश करना की अपनी मेहनत का ही पैसा घर लाया करो..''

उसकी बात से सॉफ जाहिर था की वो इन पैसो को अभी के लिए मना नही कर रही ...करती भी कैसे..उसे पता था की उनसे हॉस्पिटल के बिल्स आसानी से दिए जा सकते हैं..

केशव ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : "नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है...ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं...और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..''

काजल के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे केशव का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''

केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''

और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..

खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''

केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''

काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..

केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''

काजल : "ये कैसे होता है....''

केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''

काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.

किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.

आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..

और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था केशव के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.

काजल धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''

केशव : "जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''

काजल : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''

वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
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RE: Rishton Mai Chudai एक भाई ऐसा भी - by sexstories - 09-09-2018, 02:25 PM

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