Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:10 PM,
#71
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
सरला की गांद अब सुलग रही थी. थूक से भरी गांद में से हल्की हल्की प्फिच फिछ की आवाज़ें आ रही थी. मम्मो की घुंडिया पकड़ के खुद ही खींच रही थी और सुजीत के दोनो हाथ उसकी चूत की फांके खोले हुए थे. सरला के मूह में सुजीत की जीभ घूम रही थी. सरला के होंठ और उनके आस पास का हिस्सा सुजीत के थूक से भरा हुआ था. फिर सुजीत ने गांद हिलते हुए हल्के हल्के झटके मारने शुरू किए. कुर्सी पे गांद की पोज़िशन इस प्रकार थी कि लंड सिर्फ़ 1 - 2 इंच ही अंदर बाहर हो पा रहा था. दर्द से अभी भी सरला कराह रही थी. इसलिए सुजीत उसका मूह भी नही छोड़ सकता था. पर इन सब में वो चूत में दोनो हाथों की फोर फिंगर्स डाल के घिसने लगा. चूत का रिस्ता हुआ रस निकाल के कभी खुद चाटने लगा तो कभी सरला की ज़ुबान पे लगाता. सरला भी अब पागल हो चुकी थी और उसकी गांद में लंड की चुभन हल्का मीठा एहसास देने लगी थी.

''सुजीत डारलिंग अब ज़ोर से धक्के लगाओ जान...अब सहेन नही हो रहा. चोद दे मुझे अब ...ऊओ माआ....अगर सखी अभी देख ले तो उसे तो यकीन ही नही होगा कि कितनी बड़ी छिनाल बन गई हूँ मैं..और सब उसके कमीने जेठ की वजह से...'' सरला अब हल्के हल्के कूदना शुरू कर रही थी.

''मैं तो चोद दूँगा जान पर तुम्हारे इस मूह का क्या करूँ जो इतनी आवाज़ें निकालता है...?? तुम अगर मूह बंद नही करोगी तो घर क्या पूरा मोहल्ला सुन्न लेगा. '' सुजीत ने निपल्स को खींचते हुए कहा.

''उफफफफ्फ़ जाअलीम कुत्ते...साले बाप का माल नही हूँ जो ऐसे खींच रहा है...तेरी बीवी के ऐसे खींच...उम्म्म्मम ऊओह हान्न ऐसे जब तू मसलता है तो चूत घनघना जाती है ...मसला कर मेरे मम्मे उन्हे खींचा ना कर....उउम्म्म्मम और मेरा मूह बंद करने के लए सिर्फ़ एक ही इलाज है तेरे पास...मूह में लंड घुस्वा दे...हाआअन्न्‍णणन् कितना मज़ा आ जाए अगर एक सुहाना सा मजबूत लोड्‍ा और मिल जाए....इश्स बुढ़ापे में भी जवान हो जाउन्गि...उम्म्म्म मसल ना हल्के हल्के ...उम्म'' सरला अब गांद को गोल गोल घुमा रही थी. सुजीत के मूह पे उसके होंठ लग गए और दोनो बंद आँखों से एक दूसरे को तृप्त करने की कोशिश में लगे रहे.

''तो लीजिए आपकी मनोकामना आज पूरी होती है ...ये मजबूत लोड्‍ा हाजिर है आपके होठों की शोभा बढ़ाने के लिए ....आपके इन लाल लाल होठों के चुंबन के लिए. .....''संजय की आवाज़ सुजीत और सरला के कानो के पास पड़ी और साथ सरला की चूत में उसकी लंबी लंबी 2 उंगलियाँ घुस गई और चूत का दाना अंगूठे के नीचे मसला गया.

सुजीत और सरला एक झटके से अलग हुए और भोचक्की आँखों से संजय के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखने लगे. मदरजात नंगा संजय अपने 11 इंच के हथियार के साथ एक दम तैयार खड़ा उनके चेहरों केभाव देख के मुस्कुराने लगा. चूत ने एक साथ कई बार हल्के हल्के फेडक के कामुकता के सिग्नल दिए. पर चेहरा और आँखें डर के भाव दिखा रही थी.

अचानक से सरला के दोनो हाथ उसके चेहरे पे चले गए और उसके सूबकने की आवाज़ें आने लगी. सिर झुका हुआ था और खुले बाल लटके हुए थे. शरीर सूबकीओं के बीच हिलने लगा. सुजीत के दोनो हाथ उसकी कमर पे स्थिर हो गए. ठीक उसी समय संजय की उंगलियाँ और अंगूठा भी चूत से बाहर हो गए और वो सीधा खड़ा हो गया. दोनो भाई एक दूसरे को देखने लगे और सुजीत की आँखें में गुस्सा झलक रहा था. इतनी बढ़िया गांद का उद्घाटन तो हो गया था पर अब जब असली खेल शुरू होना था तो 12वे खिलाड़ी ने गूगली मार दी. इतनी तगड़ी केएलपीडी तो आज तक उसके साथ नही हुई थी. पर इससे पहले कि वो दोनो कुच्छ कहते रोती हुई सरला की आवाज़ उन्हे सुनाई दी.

''हेयेयी भगवान ये मैने क्या कर दिया...अपनी बेटी को क्या मूह दिखाउन्गि...सत्यानाश हो गया मेरा तो...इज़्ज़त ख़तम हो गई...मेरा सगा दामाद मुझे ऐसे देख रहा है ..और और..ऊओ नूओ....मर क्यों नही गई मैं ये सब करने से पहले...'' सरला ने रोते रोते अपने हाथ हटाए और झटके से सिर उठाया. उसके मूह से कुच्छ और नही निकला पर आँखें लाल थी और चेहरे पे अब गुस्से के भाव थे. आँसू पून्छ्ते हुए उसने सुजीत के लंड पर से उठने की कोशिश की. पर दर्द की एक ल़हेर उसकी गांद से उठी और उसके पूरे शरीर में दौड़ गई. ऐसा लगा जैसे उसके 2 टुकड़े हो जाएँगे. इसी दर्द ने एक जादू कर दिखाया. चीखते हुए वो फिर बैठ गई और दर्द से निढाल होके उसने अपना सिर सामने खड़े संजय की जाँघ पे टीका दिया. संजय का लंड उसके गाल से मात्र 1 इंच पे हिचकोले खा रहा था. अनायास ही उसके दोनो हाथ संजय की कमर के इर्द गिर्द हो गए और उसको निढाल होता देख सुजीत ने उसकी कमर फिर से जाकड़ ली.

संजय के हाथ में भरा विस्की का ग्लास हल्का सा छलक गया. पर संजय हिला नही और कुच्छ पल सरला को देखने के बाद हल्के हाथ से उसके बालों को सहलाने लगा. सुजीत की ओर देखते हुए उसने मूह बना के इशारा किया कि वो सरला के चुंबन ले. सुजीत ने आगे झुक के सरला की पीठ पे हल्के चुंबन लेने शुरू कर दिए और धीरे धीरे हाथों को सरकाते हुए सरला के मोटे सुडॉल्ल मम्मो को गिरफ्तार कर लिया. हल्के हाथों से बड़ी नर्माई से मम्मो को सहलाते हुए निपल्स के आस पास उंगलियाँ चलानी शुरू कर दी. जो निपल दर्द के मारे नरम पड़ गए थे उनमे धीरे धीरे कसाव आने लगा.
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09-03-2018, 09:10 PM,
#72
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
संजय की जाँघ पे सिर लगाए हुए सरला हल्के हल्के सिसकियाँ ले रही थी. सुजीत के मजबूत हाथों में उसके चूचे झूल रहे थे. मम्मो पे हल्की रगड़ और उसके साथ गांद में अटका हुआ सख़्त लोड्‍ा धीरे धीरे असर दिखाने लगे. संजय ने अपने हाथ को बालों में सहलाने के सिवाए धीरे धीरे गर्दन और कंधों की मालिश करनी शुरू कर दी. सिसकिओं की आवाज़ अब हल्की हल्की मादक होती जा रही थी. लंड की महक सरला के नाक में घूमने लगी तो उसका मंन ललचा उठा. पर वो आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रही थी. शायद उसके इस डर को संजय ने समझ लिया. अपने हाथ में पकड़ा हुआ दारू का ग्लास संजय ने हल्के से सरला के होठों पे लगा दिया. शायद दर्द का एहसास या संजय के हाथ का प्रेशर कुच्छ मिला जुला असर कर गए. सरला ने 4 - 5 घूँट में दारू ख़तम कर दी और झटके से सुजीत की छाती पे अपनी पीठ लगा दी.

संजय ने एक पल उसकी उफनती हुई गोरी मोटी चूचियो को देखा और फिर नंगा ही घर में चला गया. 1 मिनट बाद वो लौटा तो सरला सुजीत के गोद में बैठी अपना सिर घुमाए हुए उसके साथ चुंबन का खेल खेल रही थी और सुजीत कभी नर्मी और कभी ज़ोर लगा के उसके मम्मे निचोड़ रहा था. संजय 5 फुट की दूरी पे खड़ा अपना लंड सहलाता रहा और दूसरी बार भरे ग्लास से हल्के लेक सिप लेता रहा. इस बार दारू थोड़ी स्ट्रॉंग थी. फिर उसे अचानक ना जाने क्या सूझा, उसने लंड को सहलाते हुए ग्लास को आधा खाली कर दिया. सरला को ज़ियादा दारू की ज़रूरत नही थी अब. बस थोड़ी और ताकि उसको दर्द भूल जाए. संजय बचा हुआ ग्लास लेके आगे बढ़ा और फिर से एक बार सरला के होठों से ग्लास लगा दिया. 2 घूँट अंदर लेते ही सरला का गला जलने लगा. उसके लिए पेग बहुत स्ट्रॉंग था. संजय के हाथ से बचा हुआ ग्लास सुजीत ने लिया पर इससे पहले कि वो पूरा पी पाता संजय ने ग्लास वापिस खींच लिया. ग्लास में आधे से भी कम घूँट बचा हुआ था और संजय में उसमे अपना गरम गरम लोड्‍ा डिप कर दिया. फिर ग्लास को घूमाते हुए उसने ग्लास को एक बार फिर सरला के होठों पे लगाया. सरला जो कि और नही पीना चाहती थी उसने होंठ भींच लए. सुजीत की जीभ उसको अलग नशा दे रही थी. उसका ध्यान अब संजय की तरफ नही था. गांद अब हल्के हल्के थॅर्क्न लगी थी.
क्रमशः...................संजय की जाँघ पे सिर लगाए हुए सरला हल्के हल्के सिसकियाँ ले रही थी. सुजीत के मजबूत हाथों में उसके चूचे झूल रहे थे. मम्मो पे हल्की रगड़ और उसके साथ गांद में अटका हुआ सख़्त लोड्‍ा धीरे धीरे असर दिखाने लगे. संजय ने अपने हाथ को बालों में सहलाने के सिवाए धीरे धीरे गर्दन और कंधों की मालिश करनी शुरू कर दी. सिसकिओं की आवाज़ अब हल्की हल्की मादक होती जा रही थी. लंड की महक सरला के नाक में घूमने लगी तो उसका मंन ललचा उठा. पर वो आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रही थी. शायद उसके इस डर को संजय ने समझ लिया. अपने हाथ में पकड़ा हुआ दारू का ग्लास संजय ने हल्के से सरला के होठों पे लगा दिया. शायद दर्द का एहसास या संजय के हाथ का प्रेशर कुच्छ मिला जुला असर कर गए. सरला ने 4 - 5 घूँट में दारू ख़तम कर दी और झटके से सुजीत की छाती पे अपनी पीठ लगा दी.


संजय ने एक पल उसकी उफनती हुई गोरी मोटी चूचियो को देखा और फिर नंगा ही घर में चला गया. 1 मिनट बाद वो लौटा तो सरला सुजीत के गोद में बैठी अपना सिर घुमाए हुए उसके साथ चुंबन का खेल खेल रही थी और सुजीत कभी नर्मी और कभी ज़ोर लगा के उसके मम्मे निचोड़ रहा था. संजय 5 फुट की दूरी पे खड़ा अपना लंड सहलाता रहा और दूसरी बार भरे ग्लास से हल्के लेक सिप लेता रहा. इस बार दारू थोड़ी स्ट्रॉंग थी. फिर उसे अचानक ना जाने क्या सूझा, उसने लंड को सहलाते हुए ग्लास को आधा खाली कर दिया. सरला को ज़ियादा दारू की ज़रूरत नही थी अब. बस थोड़ी और ताकि उसको दर्द भूल जाए. संजय बचा हुआ ग्लास लेके आगे बढ़ा और फिर से एक बार सरला के होठों से ग्लास लगा दिया. 2 घूँट अंदर लेते ही सरला का गला जलने लगा. उसके लिए पेग बहुत स्ट्रॉंग था. संजय के हाथ से बचा हुआ ग्लास सुजीत ने लिया पर इससे पहले कि वो पूरा पी पाता संजय ने ग्लास वापिस खींच लिया. ग्लास में आधे से भी कम घूँट बचा हुआ था और संजय में उसमे अपना गरम गरम लोड्‍ा डिप कर दिया. फिर ग्लास को घूमाते हुए उसने ग्लास को एक बार फिर सरला के होठों पे लगाया. सरला जो कि और नही पीना चाहती थी उसने होंठ भींच लए. सुजीत की जीभ उसको अलग नशा दे रही थी. उसका ध्यान अब संजय की तरफ नही था. गांद अब हल्के हल्के थॅर्क्न लगी थी.
क्रमशः...................
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09-03-2018, 09:10 PM,
#73
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--24


गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का चोवीसवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
संजय को थोड़ा गुस्सा आया और उसने सरला का मूह पकड़ के अपनी तरफ खींचा. सरला की आँखों में हल्का गुस्सा उतर आया और उसने ग्लास को साइड करने के लिए हाथ बढ़ाया पर इतने में ही संजय ने एक बार फिर ग्लास में अपना लंड घुसाया और ग्लास को हिलाया. अब सरला का ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ लोड्‍े के आस पास घूमते हुए ग्लास और उसमे पड़ी हुई विस्की की तरफ था. एक अजीब सी हवस उसके चेहरे पे आ गई और उसने संजय के हाथ से ग्लास छीन के एक घूँट में ही उसने ग्लास में पड़ी शराब ख़तम कर ली पर संजय जो कि उसे बड़े ध्यान से देख रहा था उसे वो दारू गले से नीचे उतरती हुई नज़र नही आई. पर उसे क्या पता था कि उसकी चुड़दकर सास क्या गुल खिलाने वाली है. सरला का हाथ आगे बड़ा और संजय के 11 इंच के लोड्‍े को अपनी मुट्ठी में भर लिया. अपनी सास के कोमल हाथ अपने लोड्‍े पे पड़ते ही संजय सिसक उठा. सरला ने एक झटका देके संजय को लंड से अपनी तरफ खींचा और संजय अचानक से लड़खड़ा उठा. लड़खड़ाते हुए संजय का एक हाथ सरला के कंधों पे पड़ा और दूसरे हाथ से ग्लास छूट गया और दूसरा हाथ सुजीत के कंधे पे गिरा. सरला का मूह खट से लोड्‍े के टोपे पे सॅट गया और हल्के से होठों को खोलते हुए एक झटके से लोड्‍ा मूह में घुस गया. लोड्‍े का टोपा और करीब 2 इंच का हिस्सा मूह में गिरी हुई दारू में गोते खाने लगा.

''उूउउम्म्म्म सासू मा..ये क्या कर दिया....उउम्म्म्मम लंड पे दारू और उपर से वो भी तेरे मूह में भरी हुई....उफफफफ्फ़.....'' संजय सिसका उठा.

'' संजय साली रांड़ है सासू सासू बाद में करना..साली के गले तक उतार लंड ..क्या याद रखेगी कि हमारे खानदान में अपनी बेटी दी है इसने...उम्म्म साली के चूचे देख कैसे मोटे मोटे हैं...सखी कोई देख के लगता नही है कि वो इसकी बेटी है....साली कुत्ति ..पर हां एक बात है इसके मम्मे चूस्ते ही पता चल जाता है कि इसकी औलाद कैसी होगी...उस हिस्साब से ...उफफफ्फ़ साली आराम से कूद...'' सुजीत ऑलमोस्ट एक राज़ खोलने वाला था. भला हो सरला की उच्छलती हुई गांद का कि राज़ अभी भी राज़ रह गया...पर कब तक .....

''साले तुम दोनो हरामी हो ..वैसे ही जैसे कि तुम्हारा बाबूजी है...कुत्ते की तरह चोद्ता है ...और तुम दोनो भी वैसे ही हो....कुत्ते साले....कुत्ति बना के रख देते हो लड़की को...उउमम्मूऊउन्न्नज्ग्घ ग्गगूवंन्न गूऊंणन्न्....'' लंड पे चटखारे लेते हुए सरला बोली.

'' लड़की साली तू लड़की कहाँ से हो गई...उफ़फ्फ़ तू तो मस्सस्त माल है ...मिल्फ है ...मिल्फ समझती है ...??? मोम आइ वुड लाइक टू फक...काश तेरे जैसी मेरी भी सास होती ...पर क्या करूँ अभी तो उधार की सास से ही गुज़ारा करना पड़ रहा है....संजय भाई थॅंक यू ..अगर तू सखी को ओके नही करता तो आज इतनी गदराई हुई गांद कहाँ से मिलती...'' सुजीत भी फुल मूड में निपल्स को खींचते हुए बोला. उसके लंड पे अब सरला की गांद गोल गोल घूम रही थी.

'' भैया.. बाबूजी ने कहा तो मैंन कैसे मना करता ..पर शायद बाबूजी ने सही डिसिशन लिया...थॅंक्स तो उन्हे कहना चाहिए...ऐसी थर्कि समधन तो उन्होने ही चुनी...हमारी किस्मत तो उनके लोड की वजह से ही चंकी...चूस ..आअररर्ग्घह उफफफ्फ़.. बहिया 10 इंच गया मूह में ...भैयाअ देखो....उफफफफफ्फ़.....बिना प्रॅक्टीस के तो ......रा...भी नही ले पाई थी....उम्म्म्मममममम मज़ाआआअ एयेए गय्ाआ.....सरलाआ.....'' संजय अब पूरी तरह से मचल चुका था.

'' अबे हरामी की औलादों...साअले बाते बंद करो और चोदो मुझे ...आग लगा दी है और ..बेहेन्चोद...इतनी देर में तो तुम्हारा बाबूजी भी चूत में घुस गया था....ऊओह उसका लोडा...काश वो भी मिल जाए....उउम्म्म्म धन्य कर देता है साला इतनी उमर में भी......उउउंम्म स्ल्ल्ल्लर्ररुउउउप्प्प तूओ...उउंम्म....तूओ....स्लूउर्
र्रप्प्प्प''' सरला के मूह से संजय का लोड्‍ा चमक रहा था.

''ओह्ह्ह मेरी प्यारी आंटी सास...क्या बात है बाबूजी का लोड्‍ा बहुत याद आ रहा है ..ठीक है उनको भी अगली बार बुला लेने और साथ में राजू भैया को भी....सबका एक साथ लेके संतुष्ट हो जाओगी या कुच्छ और भी चाहिए...बोलो जान...'' सुजीत आगे बाद के लंड से भरे मूह के नज़दीक गालों पे किस करते हुए बोला.

'' बस तेरे बाबूजी के साथ तेरी बीवी की चूत मेरे मूह पे लगवा दे ..तुम तीनो भाईओं को तो अब मुहसे और मेरी चूत से कोई नही बचा सकता...अब देखो कैसे कच्चा चबा जाती हूँ तुम लोगों को...मेरी चूत मूह और गांद तीनो तुम लोगों को एक साथ ले लेंगे......उउम्म्म्ममम दामाद आइ अब डालो चूत में ..ये तुम्हारी सास का हुकुम है...नही तो लड़की घर ले जाउन्गि और तुम ये घंटा हिलाते हुए रह जाना...'' सरला ने अपनी ज़ुबान पे लंड को हिलाते हुए थपकीयाँ दी.

""भैया अब तो सास का हुकुम आ गया और साली का मूह भी थॅक गया होगा...अब इसकी चूत बजा लूँ और फिर धन्य हो जाउन्गा....उम्म्म्म सासू मा इसी चूत से मेरे लोड्‍े के लिए चूत निकाली थी आपने...उउम्म्म्म इसकी थोड़ी पूजा कर लूँ पहले...भैया अपनी तरफ खीँचो रंडी को और टांगे खोलो....थोड़ी सी गीली कर दूँ थूक से नही तो बहुत ज़ोर से चिल्लाएगी और फिर रखी भाभी या सभी जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी...'' कहते हुए संजय लंड छुड़वाते हुए नीचे झुक गया.
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09-03-2018, 09:10 PM,
#74
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
बिना किसी के और कुच्छ कहे सरला ही आँखें बंद हो गई और पिछे होते हुए उसकी टांगे खुल गई. संजय की आँखों के सामने अब सबसे बढ़िया नज़ारा था. उसकी सास की हल्की झांतों से भरी हल्की काली हल्की भूरी चूत के मोटे मोटे लिप्स चूतरस से चमक रहे थे. बिना कुच्छ कहे उसके होंठ सास की टाँगों के बीच पड़े होठों से जुड़ गए और अगले 3 - 4 मिनिट तक वो लंड पे नाचती हुई गांद से जुड़ी चूत को अलग अलग ढंग से चूमता और चूस्ता रहा. सरला गांद मत्काति रही और सिसकियाँ लेती रही. सुजीत गाल, होंठ चूस्ता रहा और मम्मे मसलता रहा. उसके लंड का उतावलापन भी बढ़ता रहा.

जब चूत की महक और स्वाद नाक और मूह को लग गया तो शरीर का लोड्‍ा कैसे पिछे रहता..आख़िर कार उसे भी इस चूत की चाहत थी. सत्त्त की आवाज़ के साथ के साथ एक ही झटके में लंड अंदर घुसता चला गया. सरला की हल्के दर्द और हल्के मज़े की आहें गले में ही घुट के रह गई आस अब उसके मम्मो में 4 हाथ घूम रहे थे और साथ ही उसकी चूत में दर्द और सुकून का मिला जुला एहसास होने लगा था.


''उफफफफ्फ़ क्या लंड पाया है दामाद जी ने और उपर से क्या गोल भरे भरे टटटे हैं...मेरे हाथ में कितने अच्छे लग रहे है...हाए सखी तेरी शादी तो बड़े नाज़ से हुई है...एक क्या इस घर के तो सारे मर्द चोदु हैं...काश ये तेरी चूत भी बजाते होते...तू नही जानती तू क्या मिस कर रही है...उउउम्म्म्मम साला बहुत चोदु है...उउंम और दामाद तो दामाद ये इसका भाई भी कॅम नही है वैसे ही जैसे इसकी बीवी...साली की ज़ुबान ऐसा लगता है कि अभी भी चूचों पे फिर रही है. उम्म्म्ममम..हे भगवान इसको शक्ति दो कि मुझे प्यार से और काफ़ी देर तक चोद सके...उउउंम्म'' सरला मंन ही मंन सोच रही थी.

संजय तो जैसे पागल हुआ जा रहा था. सरला की ज़ुबान से ज़ुबान लड़ाए हुए वो अब झटके मारने लगा. उसके मूह मे सरला पूरी उसके साथ लड़ाई कर रही थी. उसके मम्मे इतनी ज़बरदस्ती से निच्चोरे जा रहे थे कि पुछो नही. उपर से उसकी गंद में सुजीत का लोड्‍ा फुडकियाँ मार रहा था. इतने में संजय ने अपने सिर को झुकाया और उसके मम्मो पे पहली बार मूह मारा. इतने में सुजीत ने उसकी चुद्ती हुई चूत की फांके खोल दी और उसकी चूत के दाने को रगड़ने लगा. इतने में संजय ने सरला के दोनो चूचों को साइड से दबाया और इकट्ठे करते हुए दोनो निपल एक साथ मूह में भर लिए.

संजय को अपनी सास और सखी के स्वाद में कोई फरक नही लगा और वो उसके मम्मे चूस्ते हुए और उसकी चूत बजाते हुए बड़बड़ाया. '' भैया....सखी इसकी ही औलाआद. इसके निपल का स्वाद और सखी का एक जैसा है.

''हां संजय सही कहा ...सखी के मम्मे...उफफफफ्फ़.....उम्म्म्म... मुझे लगता है कि यह वाकई में सखी की मा है.....उफ़फ्फ़ वैसे भी चुदाई में भी उससे नही डरती.
फिर वो चाहे तेरा हो या मेरा या बाबूजी का.'' सुजीत झूम रहा था. उसकी हवस सॉफ थी. उसका एक ही मकसद था. सरला की गांद में घुसा.

देखते ही देखते सरला फुल मस्ती में आ गई. फहुच्छ फुच की आवाज़ के साथ सब झूमने लगे. विदिन ए फ्यू मिनिट्स..सरला एक जवान लड़की की तरह झूमने लगी. सनजी की चुदाई अब चरम सीमा पे थी. रह रह के वो झटके बढ़ा रहा था. सरला की चूत रस से भीगी हुई उसके हर हमले का मज़ा ले रही थी.

''ऊओह जाअँ जानन्न.....दोपहर से तेरी इस टाइट गांद की हसरत थी और अब पूरी हो गई ...जाअंन मैं निकाल दूं तेरी गांद में...ऊओह संजया अब तू संभाल मेरा तो ह्म गायाअ..ऊऊऊहह आअरर्रघह.....'''' सुजीत झरने लगा और उसका बदन झटके खाने लगा.

गंद में उबलते हुए लंड का असर सरला पे भी पूरा पूरा हुआ और वो भी मादक आवाज़ें निकालते हुए संजय के लंड पे झरने लगी..उसकी सिसकियाँ और आवाज़ें बहुत तेज़ थी. वैसे भी पूरी चुदाई में उसने कोई ख़ास उँची आवाज़ नही निकाली थी और अब ये सब उसकी सहन के परे था. सहन शक्ति ख़तम होते ही सरला ज़ोर से गुर्र्रई और चटपटाते हुए झरने लगी. संजय उसके मम्मे चूस्ते हुए सब महसूस करता रहा और फिर उसने अपना लंड चूत से निकाला और ज़ोर ज़ोर से मूठ मारने लगा. 2 मीं में ही उसने अपने लंड की बौछार सीधे सरला के मोटे चूचो और पेट पे कर दी. फिर मूठ मारते हुए ही दूसरे हाथ से पेट पे पड़ा वीर्य उंगली से उठाया और सरला के होठों पे रगड़ना शुरू कर दिया. करवा चौथ के व्रत के बाद जैसे एक शादी शुदा औरत पानी पीते हुए होठों को जीभ से गीला करती है ठीक उसी तरह से सरला ने भी किया और फिर देखते ही देखते संजय की उंगलिओ में लगाते हुए वीर्य को पीती रही. करीब 10 - 12 बार वीर्य चूस लेने के बाद सरला ने लंड को मुठियाते हुए फिर मूह में भर लिया और नीचे से उपर तक चूस्ति रही.
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09-03-2018, 09:11 PM,
#75
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
.................................आठ महीने बाद........................................
ड्रॉयिंग रूम की खिड़की से बाहर देखते हुए मिन्नी की आँखें उसी जगह टिकतिकी लगाए हुए थी जहाँ करीब 8 महीने पहले उसने सरला को अपने दोनो देवरों के साथ देखा था. उस रात का नज़ारा एक आक्सिडेंट था. अगर रात को मिन्नी को प्यास ना लगी होती तो नशे में लड़खदाता हुआ संजय उसे नज़र नही आता. फिर संजय का बाहर जाना और उसकी, राजू और सरला की मादक 3 सम चुदाई मिन्नी कभी नही देख पाती. क्या चुदाई थी और सरला की अधेड़ उमर की मस्ती को देख के तो कोई भी इंसान दंग रह जाता. इतनी सती सावित्री दिखने वाली जवान शादीशुदा बच्चों की मा और उपर से दादी ...उफ़फ्फ़ कोई सोच भी नही सकता था...ख़ास तौर से सेक्सी दादी शब्द सोच के मिन्नी के चूचों में गर्मी का एहसास दौड़ने लगता था. उस रात का राज़ और उसके बाद के कई और किस्से अभी भी मिन्नी के दिल में दफ़न थे.

आज फिर एक वीकेंड आ गया था. 3नो बहुओं को मा बने हुए करीब करीब 4 - 5 महीने होने वाले थे. सबसे पहले मिन्नी के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ था. शकल से तो कहा नही जा सकता था पर शायद उसकी आँखें संजय के जैसी थी. उसके बाद सखी के यहाँ भी एक लड़का हुआ था. उसको देख के यक़ीनन कहा जा सकता था कि वो सुजीत की संतान है. सुजीत के जैसे ही उसके गालों में डिंपल पड़ते थे, रंग सांवला था ओर होठों की बनावट भी कुच्छ कुच्छ सुजीत जैसे ही थी. उसको देख के सरला का माथा बहुत ठनका था पर वो कुच्छ बोली नही. पर उस दिन से सरला घर के सभी मर्दों से कटी कटी रहती थी. उसकी बातचीत सिर्फ़ और सिर्फ़ औरतों तक सीमित होके रह गई थी. इन 4 - 5 महीनो में ऐसा लगता था जैसे वो किसी गम में घुली जा रही है. बच्चों की देखभाल में उसने कोई कसर तो नही रखी और ना ही माओं को संभालने में पर उसका मंन शायद उखड़ा हुआ था. सखी के बच्चे के जनम के 3 - 4 दिन ही राखी के यहाँ एक लड़की ने जनम लिया था. शकल और सूरत में वो करीब करीब अपनी मा पे गई थी पर उसका माथा ठीक राजू के जैसा था. तीनो बच्चों को एक साथ देख के सरला अक्सर सोच में डूब जाती थी. इसी के चलते उसने 2 महीने से अपने घर जाने की रट भी लगा रखी थी पर सखी की ज़िद्द के आगे उसे हमेशा झुकना पड़ा और अब भी वो उनके साथ रह रही थी.

पर उस रात के किस्से और बच्चों के पैदा होने के बीच के करीब 3 महीनो में तो जैसे सरला ने सारे बांध तोड़ दिए थे और एक मनचली नदी की तरह बह गई थी. एक ऐसी नदी जो की पहाड़ों से निकल कर खुले मैदानों में आते ही विकराल रूप धारण करते हुए फैल जाती है और तेज़ मान्सून में अपनी आगोश में हर सामने आने वाली चीज़ को ले लेती है. उस रात से अगले 2 - 3 दिन तक कुच्छ नही हुआ था. फिर एक दिन जब शाम को मिन्नी सोई हुई थी तो संजय के कमरे से सरला के चिहुनकने की आवाज़ों ने उसको जगा दिया था. उस दिन संजय के लंबे लंड पे सरला ऐसे कूदी थी कि मानो उसे स्वर्ग जाने का रास्ता मिल गया था. खुशकिस्मती से उस दिन घर में और कोई नही था क्योंकि सब मूवी देखने गए हुए थे. अपने देवेर का लंड खाने वाली भाभी की चूत जल के राख हो गई थी वो नज़ारा देख के.

उस किस्से के बाद तो जैसे एक सिलसिला सा बन गया. हर दूसरे तीसरे दिन कभी सुजीत और कभी संजय की अवस्था ऐसी होती कि जैसे उनमे से किसी ने सरला के शरीर का सेवन किया है. एक दो बार तो मिन्नी को अपने पति राजू पे भी शक हुआ. फिर एक दिन जब पूरा परिवार कंचन बुआ के घर गया तो शायद उस रात बाबूजी और फूफा ने भी सरला की चूत का कस्स कस्स के सेवन किया. मिन्नी देख तो नही पाई थी पर अगले दिन जब घर वापिस आने पर बाबूजी का बॅग जो कि ग़लती से मिन्नी के रूम में रखा गया और उसमे से सरला की ब्रा और पॅंटी निकली तो मिन्नी को यकीन हो गया था कि बाबूजी ने ज़रूर अपना लंड सरला की चूत में पेला था.

फिर जैसे कुच्छ दिन के लए सब थम गया था. करीब 3 हफ्ते शांत रहने के बाद मिन्नी ने रात के समय संजय, सुजीत और सरला को एक साथ घर की छत पे जाते हुए देखा था. उनका पिच्छा करते हुए जब मिन्नी छत पे पहुँची तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गई. उस रात 2 घंटे में करीब 3 - 3 बार दोनो भाइयों ने रख के सरला की बजाई. सरला का कोई छेद ऐसा नही था जहाँ से वीर्य की धाराएँ ना बही. उसकी दबी दबी सिसकियाँ 2 घंटे तक लगातार चलती रही और दोनो मुश्टंडे भाई उसके जिस्म को निचोड़ते रहे. बीच में एक बार तो दोनो के सूपदे एक साथ मूह में भर के सरला ने दोनो हाथों से उनकी मूठ मारी और मूह में रखे रखे ही दोनो को एक साथ झारवाया. उस समय दोनो ने इतना वीर्यपात किया कि सरला का मूह, थोड़ी और चूचे पूरे के पूरे सन गए. उस दिन सरला का असली स्टॅमिना भी सामने आया.
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09-03-2018, 09:11 PM,
#76
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
फिर उसके बाद बच्चे आ गए और सब ठंडा पड़ गया. इतना ठंडा कि मिन्नी को आश्चर्या होने लगा कि जितना भी उसने इतने महीनो में देखा वो वाकई में कभी हुआ भी था. खैर जो भी था अब तीनो बहुएँ एक बार फिर से चुदम चुदाइ के खेल खेलने के लए तैयार हो चुकी थी. बच्चों के होने से सबके शरीर थोड़े भर गए थे. सबसे ज़ियादा फरक राखी में आया था जिसके मम्मे करीब 2 साइज़ बड़े हो गए थे. सरला के कहने से एक मालिश करने वाली पिच्छले 2 महीने से रेग्युलर आने लगी थी और 3नो बहुओं की अच्छे से मालिश करती थी. हर रोज़ एक बहू का नंबर आता. सरला का बनाया हुआ स्पेशल तेल इस्तेमाल होता और 3नो बहुओं को अपने बदन में एक नया सा आभास होने लगा था. उनके मम्मे जो कि काफ़ी ढीले पड़ सकते थे उनमे तेल की मालिश से काफ़ी सुडोल पन बना रहा. पेट, झांघों और कुहलों पे एक्सट्रा चर्बी जो प्रेग्नेन्सी में इकट्ठी हो गई थी वो भी धीरे धीरे गलने लगी थी. तीनो बहुओं की चूतो की मालिश सरला खुद करती थी जिसकी वजह से उनकी चूतो में भी कसाव वापिस आने लगा था. इसी बीच बाबूजी के कहने पे घर में एक ट्रेडमिल भी आ गई थी जिसपे सभी बहुएँ दिन में 2 बार 10 - 15 मीं तक एक्सररसाइज़ करती थी और उसके बदन की मसल्स अब टोन अप होने लगी थी. कुल मिला के कहा जाए तो 3नो को देख के कहा नही जा सकता था कि उन्होने 4 - 5 महीने पहले ही बच्चे जने थे.

बच्चों के नामकरण अभी नही हुए थे पर पंडित ने सबके नामों के अक्षर बता दिए थे. आज की शाम उसी पे डिस्कशन होनी थी और 1 महीने बाद सबके नामकरण होने थे. महॉल में एक अजीब सी सुबगुबहात थी. वैसे भी सर्दिओ के दिन शुरू होने वाले थे. मौसम भी हल्का रोमॅंटिक था...क्या आज फिर से कोई शुरुआत हो पाएगी...?? या अब कभी भी कुच्छ भी पहले जैसा नही होगा ?? क्या बाबूजी की बताई हुई कहानी और परिवार से जुड़े हुए श्राप का अंत होते ही उन सब की रास लीलाएँ अब बंद हो जाएँगी ?? क्या अब कभी भी मुझे मेरे देवरों के लंड नही मिलेंगे ??? कुच्छ ऐसे ही सवाल मिन्नी के मॅन में घूम रहे थे. ईनी सवालों को लेके वो गहरी सोच में थी. अचानक उसे बाबूजी की आवाज़ सुनाई दी. मिन्नी का बेटा नींद से जाग गया था और रो रहा था. शायद उसे भूख लगी थी और बाबूजी उसे उठा के अपने कमरे में ले गए थे. पर जब उसका रोना बंद नही हुआ तो उन्होने मिन्नी को आवाज़ दी थी. घर में उस समय बाबूजी के अलावा घर की औरतें ही थी. सखी और सरला उसके कमरे में सोए पड़े थे और राखी अपने कमरे में.

क्रमशः...................................
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09-03-2018, 09:11 PM,
#77
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--25

गतान्क से आगे..............



मिन्नी तेज़ गति से चलते हुए बाबूजी के कमरे में आई और बच्चे को उनसे ले लिया. बच्चे को ढूढ़ पिलाने के लिए अपने कमरे में जाने के लए मूडी तो अचानक उसके मंन में कुच्छ आया और वो वहीं बाबूजी के कमरे का दरवाज़ा बंद करके ईज़ी चेर पे बैठ गई. अपना ब्लाउस ढीला करते हुए उसने अपनी राइट चूची निकाली और दूध से नम हुई निपल को बच्चे के मूह में डाल दिया. बाबूजी जो की कुच्छ फाइल्स देख रहे थे थोड़ा सकपका गए. सरला के घर में रहते हुए मिन्नी उनके कमरे में ऐसी अवस्था में बैठी हुई थी तो उन्हे थोड़ी सी घबराहट हुई.

''बहू तू अपने कमरे में चली जा. कहीं समधन जी ना जाग जाएँ..फिर अच्छा नही होगा. '' बाबूजी ने करीब करीब आदेश दिया.

''बाबूजी आप चिंता ना करें. दरवाज़ा बंद है और अगर सरला आंटी आई भी तो मैं इसे दूध पिलाना बंद कर दूँगी. उनके आने पे मैं अपने कमरे में चली जाउन्गि. पर अभी मुझे आपसे कुच्छ बातें करनी हैं. कुच्छ ऐसी बातें जो हमारे भविश्य से जुड़ी हैं.'' मिन्नी ने बाबूजी की ओर देखते हुए अपनी दूसरी चूची भी ब्लाउस से बाहर निकाल दी. फिर बच्चे को पलट के दूसरी चूची का निपल उसके मूह में भर दिया.

बाबूजी जो कि स्टडी टेबल की कुर्सी पे बैठे हुए काम करने की कोशिश कर रहे थे अब हल्का सा मूड़ के मिन्नी को देखने लगे. मिन्नी के मम्मे अभी भी पहले जैसे ही लग रहे थे. सरला की तेल मालिश का आइडिया बहुत ही अच्छा रिज़ल्ट दे रहा था. बच्चे का छोड़ा हुआ निपल एक दम कड़क था और चमक रहा था. मिन्नी डाइरेक्ट्ली बाबूजी को नही देख रही थी. बच्चे की ओर देखते हुए उसने बाबूजी को संबोधित किया था. उसके चेहरे पे अभी किसी भी तरीके के भाव नही थे पर उसकी जवानी का भोला पन अब थोड़ा मेचुरिटी में बदल चुका था. बाबूजी के सामने एक परिपक्व चुदी चुदाई मेच्यूर मिलफ (मोम आइ वुड लाइक टू फक) थी. बाबूजी का लंड अपने आप हरकत में आने लगा. मूह में अपने चश्में की दांडी को दबाए बाबूजी मिन्नी की खूबसूरती को निहार रहे थे. आज से करीब साल पहले यही मम्मे उनके मूह की और लंड की शोभा बढ़ाते थे. वक्त बदल गया था और सब कुच्छ एक अरसे जैसा लगता था पर मिन्नी की कामुकता अभी भी बरकरार थी और उसके चूचों का स्वाद अभी भी बाबूजी की ज़ुबान पे ....

''बोल बहू..क्या बात करनी है..??'' बाबूजी ने हल्के हाथ से अपनी धोती को अड्जस्ट किया. लंड टेंट बनाने को तैयार हो रहा था.

''बाबूजी मुझे पुछ्ना था कि क्या अब हमारा परिवार पहले जैसा नही हो पाएगा..??? क्या जिस तरीके के वीकेंड हम लोग मिल के मनाया करते थे अब वो नही हो पाएँगे..?? मुझे ये बात कुच्छ दिन से परेशान कर रही है. और शायद राखी और सखी को भी. पिच्छले कई दिनो से मैं राजू के साथ हल्का फूलका सेक्स करने लगी हूँ. पर उनमे शायद अभी जोश कम हो गया है या फिर कोई और बात है. मुझे अब सेक्स की भूख फिर से लगने लगी है. क्या ऐसा तो नही कि जब तक हम लोग पहले जैसे सामूहिक संभोग नही करेंगे तब तक हमारे मर्द हममे दोबारा रूचि नही लेंगे ?? बताइए बाबूजी क्योंकि अब धीरे धीरे सब्र के बाँध टूटने लगे हैं. जैसे जैसे शरीर वापिस शेप में आ रहा है वैसे वैसे ही काम वासना भी जाग रही है. '' मिन्नी के बच्चे ने अब निपल चूसना छोड़ दिया था और फिर से सो गया था. मिन्नी दोनो नंगे चूचे लिए करीब करीब आधी नंगी अवस्था में बैठे हुए बाबूजी की नज़रों से नज़रें मिलाते हुए उनसे सवाल कर रही थी. उसके चेहरे पे अब मादकता झलकने लगी थी.

बाबूजी उसका सवाल सुन कर अपनी सीट से उठे और पहले कुच्छ सोचते हुए कमरे में टहलते रहे. एक कोने से दूसरे कोने तक 2 - 3 मीं खामोश रहने के बाद वो मिन्नी के नज़दीक आए और कुर्सी के आगे खड़े हो गए. फिर ईज़ी चेर के दोनो बाजुओं पे अपने हाथ रखते हुए वो आधे झुके और मिन्नी की आँखों में आँखें डाल के उससे सवाल किया.

''तुम क्या चाहती हो बहू ?? और तुम्हे क्या लगता है कि सखी और राखी क्या चाहते हैं ?? मर्दों का मुझे पता है कि वो क्या चाहते होंगे. मर्द जात तो कुत्ति चीज़ है जहाँ भी मौका मिलेगा तो मूह मारेगा. इन तीनो को अगर फ़ैसला लेना हो तो ये तो एक दूसरे के बेडरूम में घुस जाएँ. सबसे ज़ियादा चेंज तो तुम 3नो बहुओं में आया है. शादी से पहले तुम लोग कच्ची कलियाँ थी. फिर फूल बनी और अब तुम फल देने वाले पेड़ बन चुकी हो. तुम लोग बताओ कि क्या करना है. फिर मैं सोचूँगा.'' बाबूजी की आँखें एक पल के लए भी मिन्नी के चेहरे से हटी नही और ना ही मिन्नी की नज़रें उनकी आँखों से.

''बाबूजी मेरे फ़ैसले के लिए मेरे पास शब्द नही हैं ...है तो सिर्फ़ ये ..जो मैं अभी कर के दिखाउन्गि....'' कहते हुए मिन्नी ने बाबूजी की धोती में अपना हाथ डाल दिया. एक बार फिर से एक पुराने दोस्त से मिलने का सुखद एहसास दोनो के बदन में दौड़ने लगा. बाबूजी का आधा तना हुआ लोड्‍ा मिन्नी के हाथों स्पर्श पाते ही पूरा सख़्त हो गया. मिन्नी के हाथ एक बार फिर उसी लंड की नोक से खेल रहे थे जिस नोक से गाढ़ा सफेद थूक उसने अपनी टाँगों, मम्मो और मूह में ना जाने कितनी बार लिया था.

''उफ्फ बहू मुझे तेरा जवाब मिल गया....उम्म्म इससे ज़ियादा कुच्छ नही जानना मुझे...तेरा फ़ैसला क्या है ये तो मैं जान गया....''बाबूजी के बदन में एक तेज़ झुरजुरी सी दौड़ गई. पर मिन्नी की तरफ से जवाब अभी अधूरा था. उसने आगे बढ़ के बाबूजी के होठों से अपने होंठ मिलाए और उन्हे चूसने लगी. बाबूजी का मूह थोड़ा सा खुला और जीभ बाहर को आई पर फिर 2 - 3 सेकेंड में वो अंदर चली गई और होंठ सिल गए. मिन्नी का हाथ उनके लंड को पकड़े हुए था पर लंड अचानक से हल्का ढीला पड़ने लगा था. मिन्नी इससे पहले कि कुच्छ और करती या कहती बाबूजी ने उसका हाथ बाहर खींच दिया और जाके अपनी कुर्सी पे बैठ गए.
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09-03-2018, 09:12 PM,
#78
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''बहू अब तू जा और रेस्ट कर. मुझे तेरा जवाब मिल गया और अब मुझे सखी और राखी से अपने तरीके से जवाब लेने हैं. उसके बाद मैं आज रात अपना फ़ैसला तुम लोगों को सुना दूँगा. अगर तुम लोगों को उस फ़ैसले से इनकार होगा तो देखेंगे. अब तुम जाओ..मैं कुच्छ सोचता हूँ. ये सरला का चक्कर भी देखना पड़ेगा..'' आख़िरी सेंटेन्स कहते हुए बाबूजी के चेहरे पे शिकन आ गई और उन्होने एक ठंडी साँस ली.

''ठीक है बाबूजी मैं जाती हूँ ..पर जाने से पहले एक बात आपको बताना ज़रूरी समझती हूँ. जिस औरत को लेके आप परेशान हो रहे हैं उस औरत के भी कुच्छ ऐसे राज़ हैं जो आपको नही पता. मैं ये यकीन से कह सकती हूँ कि अगर आपको वो बातें पता चल जाएँ तो आपकी दुविधा का अंत हो सकता है.'' मिन्नी अपने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए बोली.

''क्या मतलब है बहू..सॉफ सॉफ कहो...क्या तुम सरला की बात कर रही हो..?? मेरे, कंचन और तुम्हारे फुफाजी के अलावा ऐसा क्या राज़ है सरला का जो मुझे नही पता..?? बताओ मुझे.'' बाबूजी ने आदेश दिया.

''बाबूजी 2 बातें ध्यान से सोचिएगा कि बच्चों के पैदा होने से पहले सरला आंटी का चेहरा कितना खिला खिला रहता था. और उसकी वजह थी इस घर के मर्द, वो मर्द जिनमे आप शामिल नही थे सिवाए एक बार के शायद. दूसरे जब से बच्चे हुए तब से वो जैसे मुरझा गई हैं. घर के मर्दों से अलग अलग रहती हैं. आपका और उनका रिश्ता समधी समधन का है सबके सामने और कभी कभी लवर्स का पीठ पिछे. पर यहाँ इस घर में 2 या फिर शायद 3 ऐसे मर्द हैं जिन्होने सबकी पीठ पिछे उनके साथ अच्छे ख़ासे संबंध बनाए थे. बस फिलहाल मैं इतना ही कहूँगी. आप सोचिए इन बातों को और अगर कुच्छ समझ ना आए तो मुझे बुला लीजिएगा. मैं सब बता दूँगी.'' मिन्नी थोड़ा सा गुस्से में बोली. बाबूजी का लंड छुड़ाना और उसकी ऑलमोस्ट भीगी हुई चूत को अतृप्त छोड़ देना उसे अच्छा नही लगा था.

इससे पहले कि बाबूजी कुच्छ और कहते मिन्नी उनके कमरे से बाहर चल दी. बाबूजी मूह खोले अवाक उसको जाते हुए देखते रहे और फिर एक गहरी सोच में डूब गए.

शाम को एक बार फिर से ड्रॉयिंग रूम में महफ़िल जमी. सभी सदस्य एक साथ पहुँच गए. बाबूजी और मिन्नी थोड़े सीरीयस मूड में थे. सरला आस यूषुयल थोड़ा बहुत मुस्कुरा रही थी. तीनो बच्चे अपनी अपनी मा के पास थे. राजू और संजय किचन से समान ला रहे थे और सुजीत सबको ड्रिंक्स दे रहा था. आदमियो को विस्की और लॅडीस को शरबत. बच्चों को दूध पिलाने की ड्यूरेशन में तीनो बहुओं ने ड्रिंक्स पे रोक लगा रखी थी. सरला वहीं बैठी तीनो से गप्पें मार रही थी और बीच बीच में मुस्कुरा देती.

बाबूजी थोड़े शांत अपनी जगह पे बैठे सोच रहे थे. सुजीत ने उनकी ड्रिंक साइड टेबल पे रख दी और फिर किचन में चला गया. थोड़ी देर बाद सब इकट्ठे हुए, चियर्स किया और बाबूजी की तरफ देखने लगे. स्नॅक्स का दौर शुरू हुआ. बाबूजी ने एक एक करके सबको गौर से देखा. मिन्नी की नज़रों में गुस्सा और सवाल थे. राखी और सखी नॉर्मल थी. सरला भुजी भुजी थी पर अपने को कंट्रोल करके रखा हुआ था. तीनो भाई नॉर्मल हल्की फुल्की चिटचॅट कर रहे थे और बीच बीच में बच्चों से खेल रहे थे. बाबूजी ने सबको देखते हुए चुप्पी तोड़ी.

''हां तो आज हम सब यहाँ बच्चों के नाम सोचने के लिए इकट्ठे हुए हैं. पर उससे पहले मुझे आप सब से कुच्छ कहना है. सबसे पहले मैं सरला जी के लए कुच्छ कहना चाहता हूँ.

सरला जी आपको हमारे घर में आए हुए करीब 10 महीने हो रहे हैं. इन 10 महीनो में जिस प्रकार आपने मेरी बहुओं का ख़याल रखा है और इस घर के कामो को देखा है उसके लिए मैं और हम सब आपके बहुत आभारी हैं. आपने अपना घर परिवार छोड़ के यहाँ की ज़िम्मेवारियाँ ली ऐसा आजकल कोई नही करता. जब आप यहाँ आई थी तो बिना किसी झिझक के आपने इस परिवार को अपनाया और सबको भरपूर प्यार दिया. पर पिच्छले कुच्छ दिनो से मैं देख रहा हूँ कि आप उदास रहती हैं. अपने में खोई खोई रहती हैं, बहुओं और बच्चों को लेके बिज़ी रहती हैं. क्या ऐसी कोई बात है जो कि आप के मंन को चुभ गई है ? या कोई चिंता है जो कि आपको खाए जा रही है ? मुझे बताइए शायद मैं कुच्छ कर सकूँ..''

''समधी जी ऐसी कोई बात नही है..बस मुझे लगता है कि मुझे वापिस अपने घर जाना चाहिए. बच्चे अब इतने बड़े हो गए हैं कि बहुएँ उन्हे संभाल सकती हैं. मुझे अपने घर की याद सताती है सो मुझे जाने का मंन है. शायद इसी वजह से मैं कभी कभी गुम्सुम रहती हूँ. यहाँ सबके बीच रहते हुए भी कभी कभी अकेली महसूस करती हूँ.'' सरला ने थोड़ा उदास होते हुए कहा.

''ठीक है सरला जी आप जैसा ठीक समझे, वैसे एक बात ज़रूर है ....आप सच नही कह रही. कोई बात है जो आपको खाए जा रही है और वो बात आपको अपने घर जाने के बाद भी परेशान करती रहेगी...खैर आप समझदार है सो मैं और क्या कहूँ...

अब मुझे एक और ज़रूरी बात कहनी है बाकी सबसे. बच्चों आगर तुम्हे याद हो कि कुच्छ समय पहले हमने घर और काम के बटवारे को लेके कुच्छ बातें की थी. उस समय बहुएँ साथ में नही थी. तब तुम सब ने एक राई दी थी कि ऐसा कुच्छ नही होना चाहिए. हम सब एक संयुक्त परिवार है और रहेंगे. पर मुझे बहुत दुख के साथ ये डिसिशन लेना पड़ रहा है कि जैसा मैने सोचा था वैसा बटवारा अब करने का समय आ गया है. '' बाबूजी की बात जैसे बॉम्ब की तरह पड़ी. सबके चेहरे परेशान थे और मूह खुले के खुले. यहाँ तक की सरला भी हैरान थी.

''बाबूजी ये ..ये आप क्या कह रहे हैं बाबूजी....ये सब...अचानक..ऐसा क्यों बाबूजी...क्या हमसे कोई ग़लती हो गई..क्या हुआ प्लीज़ बताइए ..प्लीज़ ऐसा फ़ैसला ना लीजिए ..बोलिए बाबूजी...क्या ग़लती हुई या क्या बात है...'' राजू घर का सबसे बड़ा लड़का एक छ्होटे बच्चे की तरह बिखाल उठा. ऐसा लग रहा था कि वो अभी बोलते हुए फूट पड़ेगा. उसकी ये हालत देख के बाबूजी का मन भी एक बार के लिए डोल गया. पर ये सब उनको कहना और करना था. संयम बरतते हुए उन्होने बात आगे बढ़ाई.

''हां राजू ग़लती तो हुई है तुम लोगों से. सबसे नही पर कुच्छ लोगों से...कौन कौन हैं ये मैं नही जानता. पर इतना जानता हूँ कि आज पहली बार ऐसा कुच्छ हुआ है जो कि घर के मुखिया से च्छुपाया गया है. वो विश्वास और प्यार जो की इस परिवार की नींव है उसपे किसी ने चोट पहुँचाई है. इन हालत में इससे पहले कि ऐसे किस्से और आगे हों और घर के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति नफ़रत हो, तो इस घर की बाँट हो जानी चाहिए.'' बाबूजी ने सबकी आँखों में बारी बारी देखते हुए ये शब्द कहे. एक बार को उनको लगा कि सरला की आँखों में डर आ गया और उसने चोर नज़र से सुजीत को देखा. सुजीत और सरला.......बाबूजी को कुच्छ कुच्छ समझ आने लगा. बात कहते कहते उनका दिमाग़ चला और उन्हे पुराने किस्से याद आ गए.
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09-03-2018, 09:12 PM,
#79
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
सब एक दूसरे को देखने लगे. सुजीत ने सबकी तरफ देखा. सबके घबराए हुए चेहरे और दबदबाती आँखों को देख के उसे शरम महसूस होने लगी. बाबूजी के इस फ़ैसले के पिछे क्या वजह थी ये उसे समझ आ गया था. शायद ऐसा ही कुच्छ संजय को भी लगा. उसका मन भी बहुत उखड़ा हुआ था. राजू जो कि कम्मो और मुन्नी के साथ किए गए कांड को भूल चुका था, उसे भी अचानक लगने लगा कि कहीं बाबूजी उसकी और इशारा तो नही कर रहे. राखी और सखी दोनो ही हैरान थी पर मिन्नी को समझ आ गया था कि बाबूजी ने बात को कहाँ घुमाया है.

इससे पहले की कोई कुच्छ कहता सरला ने सबसे पहले अपना मूह खोला. उसके मन में बड़ी जबरदस्त उथल पुथल चल रही थी. डर, आत्म्गलानि, शर्मिंदगी, गुस्सा और ना जाने कैसे कैसे भाव एक साथ उसके मन में चल रहे थे.

''समधी जी मुझे लगता है कि मुझे यहाँ से जाना चाहिए क्योंकि ये सब बातें आपके परिवार रिलेटेड हैं...मेरा यहा कोई काम नही.....'' सरला उठ के जाने लगी.

''बैठिए समधन जी. आप हमारे घर की सदस्य हैं. इन सबकी बड़ी हैं. आपका दर्जा मेरे बराबर का है इस घर में और कोई भी ये नही कह सकता कि आप इस घर से अलग हैं. आप ना माने तो आपकी मर्ज़ी पर हम आपको अपना मानते हैं. इसलिए आप कहीं नही जाएँगी ....सब बातें आपके सामने होंगी. '' बाबूजी ने कड़क आवाज़ में आदेश दिया.

''नही समधी जी.....हर रिश्ते की मर्यादा होती है और ये सब बातें जो चल रही हैं......ये इस रिश्ते से बाहर हैं इसलिए मेरा यहाँ रहना ठीक नही है.'' सरला ने अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ा दिए.

''और अगर ये रिश्ते की मर्यादा पहले ही भंग हो चुकी हो ...?? और वो भी अगर आपने की हो....खुद....और आपका ऐसा करना ही वो वजह हो जिसकी वजह से मैं ये फ़ैसला ले रहा हूँ..तब भी आप यहाँ से जाएँगी ...???'' बाबूजी की आवाज़ उँची थी और कठोर. उसमे बड़ा सवाल था. सरला के पैर जहाँ थे वहीं जम के रह गए. सखी की आँखें और मूह खुला था और वो अपनी मा को देख रही थी. सबकी तरफ पीठ करके खड़ी सरला पहले तो डर गई और फिर ना जाने क्यों उसके मन में बहुत ज़ोर का गुस्सा आया और वो उबल पड़ी.

''राजपाल जी अब आप मेरी बात ध्यान से सुनिए...'' आज पहली बार उम्र में बड़ी होने के बावजूद सरला ने बाबूजी को नाम से बुलाया था.

"" मा ये तुम क्या कह रही हो...'' सखी के मूह से अचानक तीखे स्वर निकले. उसे अपनी मा से ये उम्मीद नही थी कि वो उसके ससुर को फर्स्ट नेम से बुलाए.

''तुम चुप रहो बहू...ये समधी और समधन के बीच की बात है...कहिए सरला जी मैं सुन रहा हूँ....'' बाबूजी ने गुस्से पे काबू पाते हुए बात आगे की.

'' तो सुनिए आप....मैने कोई मर्यादा भंग नही की ...की है तो आप सब लोगों ने. इन बच्चों को देखिए और पहचानिए इन्हे...... इनके चेहरे आपकी बातों के जवाब दे देंगे. यही वजह है जो मैं इतने दिन से यहाँ से जाना चाहती हूँ. यही वजह है.....कि अब शायद मैं अपनी बेटी को भी बेटी कहना पसंद नही करती..पर मजबूरी है...जनम दिया है कोख से'' कहते हुए सरला रो पड़ी. उसके आँसू बहने लगे और उसकी बातें सुन के सखी भी फूट फूट के रो पड़ी.

''तो ठीक है सरला जी अब आप सुनिए वो सब बातें जो आप कहते हुए कह नही पाई और वो सब चीज़ें जो आप देखते हुए भी देख नही पाई. हां ये सब बच्चे मेरी इन बहुओं की कोख से हुए हैं पर इनके बाप वो नही हैं जो कि समाज को दिखते हैं. ये सब बच्चे एक जोड़े के नही हैं. और इसके पिछे की वजह भी आप को बताउन्गा. पर वो बाद में. पहले आप को वो बता दूं जो आप अब तक देख के भी समझ नही पाई. ये सब बच्चे सब कुच्छ जानते हुए भी इसी परिवार में रहना चाहते है और इन छ्होटे मासूम बच्चों को अपनी औलाद की तरह पालना चाहते हैं. शायद आपने देखा कि सखी का बेटा उसके और सुजीत पे गया है पर प्यार उसे संजय से मिलता है. राखी की बेटी शकल से राजू पे गई है पर हमेशा सुजीत की गोद में खेलती है. उसी तरह संजय का बेटा मिन्नी का दूध पीता है पर बाप कहलाने का सुख राजू का ही है. आप ये सब देख के भी समझ नही पाई कि बहुओं के गर्भ का ठहरना आपके आने से पहले हुआ.

आप के आने से पहले किसके पेट में किसका बच्चा था ये आपको नही पता था. आपने सबको अच्छे से देखा और प्यार दिया. बच्चे होते ही आप सब समझ गई पर क्या कभी ये सोचा कि एक बहू का बच्चा उसके पति का नही होता तो उसके कॅरक्टर पे शक करना सही था. पर जब तीनो के ही अलग अलग थे तो ऐसा क्यों? कभी सोचा कि जो बातें आप देख समझ सकती हैं वो क्या हम सब नही ? कभी सोचा कि इसके बावजूद आज तक किसी बहू या बेटे ने कोई शिकायत या झगड़ा किया ? नही सोचा. तो अब सुनिए वो सब बातें जिस वजह से इनमे इतना प्यार था, है और रहेगा. '' ये कहते हुए बाबूजी ने शॉर्ट में सारी कहानी सरला को सुना दी.

क्रमशः...........................
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09-03-2018, 09:12 PM,
#80
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--26

गतान्क से आगे..............



खुले मूह के साथ चेहरे पे बदलते हुए एक्सप्रेशन्स लिए वहीं खड़ी खड़ी सरला सब बातें सुनती रही. 5 मीं के बाद बाबूजी ने सब बात कह के एक पॉज़ लिया. सरला सबको फटी फटी आँखों से देख रही थी. उसे अपने कानो पे यकीन नही हो रहा था. इसी समय राखी की बेटी ने रोना शुरू किया तो राखी ने ब्लाउस खोल के उसे वही दूध पिलाना शुरू कर दिया. बाबूजी और बाकी मर्दों के सामने किए गए उसके आक्षन से सॉफ था कि जो भी बातें सरला ने सुनी सब सच थी.

''पर अब समधन जी मैं फिर से वही कहूँगा जो कह चुका हूँ...कि आपने मर्यादा का उलंघन किया और उसी वजह से मुझे ये फ़ैसला लेना पड़ रहा है.'' बाबूजी ये कह के एक घूँट में अपना ड्रिंक ख़तम कर गए.



'' हां सही कहा आअप्ने समधी जी....मुझे नही पता कब और कैसे पर सच है कि आप सच कह रहे हैं.....इस से जीयादा नही कहना मुझे '' सरला धम्म से वहीं ज़मीन पे बैठ गई. उसका सिर उसके हाथों में था. आँखो में आँसू.

''सरला जी बात ये नही कि आपने मर्यादा तोड़ी....बात ये है कि ये बात घर में सबसे च्छुपाई गई. घर के सदस्य जो कि इस घर के रीत रिवाज जानते थे उन्होने छुपाया. आप घर की हैं पर आपको यहाँ का पूरा नही पता. जिनको पता है उन्होने ग़लत किया. इसलिए मैं दुखी हूँ'' बाबूजी ने स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कही. इस बीच सखी भी अपने बेटे को दूध पिलाने लग गई थी.

''बाबूजी मुझे मांफ कर दीजिए....ये ग़लती मुझ से हुई है. इनका दोष नही था. दोष था तो किस्मत का और हालत का.'' सुजीत बाबूजी के पैरों पे गिर पड़ा और गिड़गिदाने लगा. राखी हैरानी से उसे देख रही थी. उसे उम्मीद नही थी कि ऐसा कुच्छ सुजीत कर सकता है. पर तभी उसे माल वाली सब बातें याद आ गई. उसी ने खुद उस दिन सरला को गरम किया था. अब उसके बाद अगर कुच्छ हो गया तो उसमे सरला और सुजीत का भी पूरा दोष नही था. इसलिए वो चुप रही. सुजीत अगर ये बात बाबूजी को नही बता पाया तो राखी को कैसे कहता.

''सुजीत तुमने मुझे बहुत दुख दिया है...मुझे ये उम्मीद थी कि अगर कुच्छ हुआ भी तो तुम बता दोगे. जैसा कि पहले भी बताया करते थे. पर अभी भी एक और है जो बात को च्छूपा रहा है.'' बाबूजी ने बचे हुए लोगों की तरफ देखा.

''नाहहिईीईईईई कुच्छ मत कहना........मैं मर जाउन्गि.......बस जो हुआ सुजीत और मेरे बीच हुआ.......और कोई नही था....प्लीआससस्स.......'' सरला जैसे नींद से जागी और चिल्लाई. अपने दामाद से सम्बंध बनाने का जो अपराध उसने किया वो सबके सामने आने से वो डर गई.

''मम्मी इसका मतलब आप अभी तक कुच्छ नही समझी....इतना कुच्छ सुना और देखा फिर भी नही......पर मुझे अपनी ग़लती स्वीकार करनी है ....यही सही है और यही प्रय्श्चित भी. बाबूजी वो दूसरा शक्स मैं हूँ.......मैं ही हूँ जिसने इनके साथ सम्बन्ध बनाए. '' संजय अपनी जगह पे खड़ा होके कहने लगा.

सखी के मूह से एक हल्की सी चीख निकली और फिर वो अपने मूह पे हाथ रख के बैठ गई. उसकी आँखें भी फटी की फटी रह गई थी. उधर सरला ये सब सहेन नही कर पाई और वही पे बेहोश हो गई. राजू और संजय ने दौड़ के उसे उठाया और उसके बेडरूम में ले गए. मिन्नी तुरंत अपने बच्चे को सुजीत के पास पकड़ा के सरला को देखने चली गई. संजय और राजू भी वहीं रुक के उसकी मदद करने लगे.
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