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RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
आज मैं अपनी ही बेटी...अपने ही खून की नजरों में दोषी बन चुकी थी...दोषी! अब मुझे इस पाप का प्रायश्चित करना था....किसी भी हाल में! मैं अपने बच्चों के सर से उनके पापा का साया कभी नही उठने देना चाहती थी...और ऐसा कभी नही होगा, कम से कम मेरे जीते जी तो नही! वो सारी रात मैं ने जागते हुए काटी.... सुबह सात बजे माँ और पिताजी आये, आयुष को सीधा स्कूल छोड़ के.... कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था… नेहा अब भी सो रही थी| पिताजी ने मझसे पूछा की क्या मैंने नेहा को समझा दिया तो मैंने कहा; "यहीं पिताजी...कल बात करने का समय नही मिला| थक गई थी इसलिए सो गई...आज बात करुँगी और कल से वो स्कूल भी जाएगी|" मेरी बात से पिताजी को आश्वासन मिला और वो निश्चिन्त हो गए| हम चाय पी रहे थे की नेहा जाग गई..और आँखें मलती हुई अपने पापा के पास गई और उनके गाल पे Kiss किया और फिर बाथरूम चली गई| ये नेहा का रोज का नियम था .... उसे देख-देख के आयुष ने भी ये आदत सीख ली पर वो मुझे और इन्हें (मेरे पति) को kiss करता था| जैसे ही वो बाथरूम से निकली तभी अनिल (मेरा भाई) आ गया| उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए और अपने जीजू की तबियत के बारे में पूछने लगा|
"पिताजी...ये सब कैसे हुआ? जीजू तो एकदम भले-चंगे थे?"
पिताजी के जवाब देने से पहले ही नेहा बोल पड़ी; "मम्मी की वजह से...." सब की नजरें नेहा पर थीं और उसकी ऊँगली का इशारा मेरी तरफ था|
अब आगे.....
नेहा के कुछ बोलने से पहले पिताजी ने उसे झिड़क दिया; "नेहा...आप बहुत बद्तमीज हो गए हो! ऐसे बात करते हैं अपने से बड़ों से?" नेहा का सर झुक गया और उसे अपना सर झुकाये हुए ही माफ़ी मांगी; "sorry दादा जी!" मैं उसके पास गई और उसे अपने सीने से लगा लिया और पुचकारने लगी ... पर वो कुछ नहीं बोली और ना ही रोइ...जैसे उसके आँखों का पानी सूख गया हो! इधर अनिल के मन में उठ रहे सवाल फिर से बाहर उमड़ आये; "पर पिताजी...जीजू को आखिर हुआ क्या है? गाँव से पिताजी का फोन आया तो उन्होंने बस इतना कहा की तेरे जीजू हॉस्पिटल में admit हैं...तू जल्दी से दिल्ली पहुँच और मैं सीधा यहाँ पहुँच गया|"
मैं एक बार फिर से अपना इक़बाले जुर्म करने को तैयार थी..."वो मैं.........." पर मेरे कुछ कहने से माँ ने मेरी बात काट दी; "बेटा काम की वजह से टेंशन चल रही थी... और तुझे तो पता ही है की चन्दर की वजह से क्या हुआ था...इसलिए ये सब हुआ|” माँ ने मेरी तरफ देखा और ना में गर्दन हिला के मुझे कुछ भी कहने से रोक दिया और मैं ने उन्हें सहमति देते हुए अपनी गर्दन झुका ली| पिताजी न उसे घर हल के आराम करने को कहा पर अनिल ने मन कर दिया ये कह के; "पिताजी मैं यहाँ आराम करने नही आया| मैं यहाँ जीजू के पास रुकता हूँ, आप सब घर जाइए और आराम कर लीजिये| अगर कोई जर्रूरत पड़ी तो मैं आपको फ़ोन कर लूँगा|"
"नहीं...मैं यहाँ हूँ...तू जा और कपडे बदल के फ्रेश हो जा और फिर आ...." मैंने उसे हुक्म देते हुए कहा| चूँकि मैं उससे बड़ी थी तो वो बिना किसी बहस के मेरी बात मान लेता था| माँ ने जाते-जाते कहा की वो अनिल के हाथों मेरा और नेहा का नाश्ता भेज देंगी| जब सब चले गए तब मैंने सोचा की मुझे नेहा को प्यार से समझाना चाहिए ताकि वो कल से स्कूल join कर ले| नेहा स्टूल ले के अपने पापा के बाईं तरफ बैठी हुई थी और टकटकी बंधे उन्हें देख रही थी| शायद इस उम्मीद में की वो अब पलकें झपकाएं ...अब पलकें झपकाएं! मैंने उसे पीछे से आवाज दी; "नेहा...बेटा मेरे पास आओ|" वो बेमन से उठ के मेरे पास आई और चुप-चाप खड़ी हो गई| मैंने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया और वो सर झुकाये सोफे पे बैठ गई|
"बेटा मुझे आपसे कुछ बात करनी है....|" मेरी बात शुरू होने से पहले ही वो बोल पड़ी; "Sorry .....!" उसका सॉरी सुन के मैं सोच में पड़ गई की भला ये मुझे क्यों सॉरी बोल रही है? पर मुझे उससे कारन पूछने की जर्रूरत नही पड़ी वो खुद ही बोलने लगी; "मैंने आपको सॉरी इसलिए नही बोला की कल मैं ने जो कहा वो गलत था या मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ...बल्कि आपको सॉरी इसलिए बोला की मेरा कल आपसे बात करने का लहज़ा ठीक नही था| आप मेरी माँ हो और मुझे इस तरह अकड़ के आपसे बात नही करनी चाहिए थी| इसलिए I'm really very sorry!"
नेहा की बात सुन के मुझे वो दिन याद आगया जब इन्होने (मेरे पति) ने मेरे लिए पहली बार अपने बड़के दादा से लड़ाई की थी| "बेटा आपको एक बात बताऊँ.... जिस दिन मुझे पता चला की मैं माँ बनने वाली हूँ उस दिन घर में सब खुश थे| क्योंकि उन्हें एक लड़के की आस थी और मुझे और आपके पापा को लड़की की वो भी बिलकुल आपके जैसी तब आपके पापा ने अपने बड़के दादा से इस बात पे लड़ाई की कि लड़का हो या लड़की क्या फर्क पड़ता है| उन्होंने ठीक आपकी तरह ही उनसे बात कि...और फिर बाद में नसे माफ़ी माँगी... इसलिए नही की उन्होंने सच बात बोली, बल्कि इसलिए की उनका लहज़ा गलत था|" ये सुन के नेहा के चेहरे पे मुस्कान आ गई|
"बेटा.... मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ?" नेहा ने हाँ में सर हिला के अपनी अनुमति दी|
"बेटा... I know आप अपने पापा से बहुत प्यार करते हो और उनके देख-रेख करने के लिए आप अपनी studies तक कुर्बान कर रहे हो पर जरा सोचो, जब आपके पापा पूरी तरह ठीक हो जायेंगे और उन्हें ये पता चलेगा की आपने उनके लिए अपनी स्टडीज sacrifice की है तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? उन्हें कितना hurt होगा? वो खुद को ही आपकी studies के नुकसान के लिए blame करेंगे और फिर से उनकी तबियत ख़राब हो सकती है! वहां घर पर आपके दादा-दादी अकेले हैं..उनकी देखभाल करने के लिए आपका वहाँ होना जर्रुरी है? और फिर आयुष...उसका स्कूल का होमोररक कौन करायेगा? और फिर मैं यहाँ हूँ ना आपके पापा की देखभाल करने के लिए|" ये सब सुन के भी नेहा के दिल को तसल्ली नही मिली थी इसलिए मैंने उसके दिल को तसल्ली देने के लिए उसे आश्वासन इया; "बेटा... मैं जानती हूँ की आपको डर है की पपा मुझे देखेंगे तो उनकी तबियत ख़राब हो जाएगी.... तो I promise मैं उनके होश में आते ही उनके सामने से चली जाऊँगी... और जबतक आप नही कहोगे मैं सामने नही आऊँगी|" इतना सुनने के बाद उसस्के इल को चैन मिला और उसने हाँ में सर हिलाया और उठ के बाथरूम चली गई| मुझे लगा की वो रोने के लिए बातरूम गई होगी पर भगवान का शुक्र है की ऐसा नही हुआ| मेरी बेटी अब बड़ी हो चुकी थी...इतनी बड़ी की अगर मुझे कुह हो जाए तो वो घर को संभाल सकती थी| नजाने क्यों ये ख़याल मेरे मन में आया ...खेर कुछ देर बाद अनिल नाश्ता ले कर आया और मैंने और नेहा ने नाश्ता किया| नाश्ता करने के बाद मैने अनिल से एक मदद माँगी; "अनिल...बीटा तुझसे एक मदद चाहिए! कल पिताजी ने बताया था की एक-दो जगह पेमेंट फांसी हुई है और दो दिन पहले इन्होने बताया था की कुछ contracts की deadline नजदीक है| मैं चाहती थी की अगर तू कुह दिन काम संभाल ले तो?"
"आप चिंता मत करो दीदी|" मुझे अनिल की बात सुन के थोड़ी शान्ति हुई की कम से कम पिताजी का बोझ कुछ कम हो जायेगा| दपहर के समय तक पिताजी और माँ आ गए| उनके आने पर अनिल ने काम की बात छेड़ी तो पिताजी बोले; "बेटा..तू यहाँ आया है....कुछ दिन आराम कर... काम-धंदा मैं देख लूँगा|"
"पिताजी...मैं यहाँ आपका हाथ बँटाने आया हूँ, आराम करने नही आया| अगर जीजू को पता लग गया की मैं यहाँ आराम कर रहा था तो वो तो मेरी क्लास ले लेंगे...ही..ही..ही..ही... वैसे जीजू ने कहा था की कुछ contracts deadline पर हैं| प्लीज पिताजी मुझे बताइये ...|"
पिताजी ने डेडलाइन की बात सुनी और मेरी तरफ देख के मुस्कुराये; "ये बात तुझे इसी शैतान ने बताई होगी? ठीक है तू इतनी जिद्द करता है तो चल मेरे साथ मैं तुझे पार्टियों से मिलवा देता हूँ और साइट भी दिखा देता हूँ| वैसे तुझे गाडी चलाना आता है ना?"
अनिल ने हाँ में सर हिलाया और पिताजी ने उसे चाभी दे दी और दोनों निकल गए| आयुष के स्कूल की छुट्टी होने वाली थी इसलिए मैंने सोचा की माँ को क्यों तकलीफ देनी तो मैं ही तैयार होक आई और नेहा को उनके पास बैठा के स्कूल चली गई और आयुष को लेके वापस हॉस्पिटल आ गई| कैंटीन से सैंडविच ला कर हम चारों ने खाए| शाम को सात बजे में पिताजी और अनिल लौटे; "बहु बेटा... तेरा भाई तो बहुत तेज है! आज तो इसने पाँच हजार का फायदा करा दिया| मुझे नहीं पता था की मानु contracts समय से पहले करने पर extra commission लेता था? वो तो अनिल था जिसने मानु की प्रोजेक्ट रिपोर्ट पढ़ी थी और उसे ये clause पता था! खेर मैंने इसे सारा काम समझा दिया है संतोष से मिलवा दिया है औरकल से ये उसके साथ coordinate करेगा|" अपने भाई की तारीफ सुन के मेरा मस्तक गर्व ऊँचा हो गया|
"चलो भाई..अब सब क्या यहीं डेरा डाले रहोगे? घर जाके खाना-वाना नही बनाना? और आयुष बेटा आपने होमवर्क किया या नहीं? यहाँ तो माँ-बेटी रहने वाले हैं!"
"दादा जी... मैंने आयुष का होमवर्क करा दिया है और मैं भी आपके साथ चलूँगी| मुझे कल स्कूल जाना है|" नेहा की बात सुनके पिताजी मुस्कुराये और उसके सर पे हाथ फिरके बोले; "बेटा अपने से बड़ों से हमेशा तमीज़ से बात करते हैं वरना लोगों को लगेगा का आपके मम्मी-पापा ने आपको अच्छे संस्कार नही दिए|"
"सॉरी दादा जी...आगे से ऐसी गलती कभी नही होगी|"
"बिलकुल अपने पापा की तरह...अपनी गलती हमेशा मान जाता था और दुबारा कभी वो गलती नही दोहराता था| खेर...चलो घर चलते हैं और हाँ बहु अनिल तुम्हारा खाना लेके आजायेगा| अपना ख़याल रखना ...|" इतना कह के सब चले गए और finally मैं और ये (मेरे पति) अकेले रह गए| मैं इनके पास स्टूल ले जा के बैठ गई..इनका हाथ अपने हाथों में लिए कुछ पुराने पलों को याद करने लगी और मेरी आँखें भीग गईं|
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RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
दोपहर को अनिल बच्चों को स्कूल से सीधा हॉस्पिटल ले आया और वापसी में माँ को अपने साथ घर ले गया| आयुष तो आते ही अपने पापा के पास जा बैठा और उनसे बात करने लगा| नेहा सोफे पे बैठ के अपना होमवर्क निकाल के बैठ गई| आयुष कुछ खुसफुसाने लगा और उसकी इस खुसर-फुसर में हम माँ-बेटी दोनों की दिलचस्पी जाग गई| "आयुष...बेटा पापा से क्या बात कर रहे हो?" इतने में नेहा उठ के अपने पापा के पास स्टूल पर बैठ गई| उसे इतने नजदीक बैठा देख वो बोला; "दीदी....आप उधर सोफे पर बैठो...मुझे पापा से बात करनी है|"
"मैं नहीं जाती... तू बोल जो बोलना है|" नेहा ने अकड़ते हुए जवाब दिया|
"प्लीज दीदी ...प्लीज......" आयुष ने बड़ी भोली सी शकल बनाते हुए कहा| पर नेहा टस से मस नहीं हुई आखिर मुझे ही बात संभालनी पड़ी वरना दोनों लड़ाई शुरू कर देते|
"आयुष....जो सीक्रेट बात तुम करने वाले हो मुझे पहले से पता है!" मैंने थोड़ा सा नाटक किया| (Bluffing)
"आपको कैसे पता?.... ये तो पापा और मेरा सीक्रेट है!" उसने बड़ी हैरानी से पूछा|
"बेटा....मैं आपकी माँ हूँ| उस दिन जब आप पापा से बात कर रहे थे ना, तब मैंने सब सुन लिया था|" मैंने फिर से Bluff किया|
"ठीक है.... !" शर्म से उसके गाल लाल हो गए थे! "वो...... आज उसने मुझसे बात की!" बस इतना कह के आयुष रुक गया और अपने पापा की तरफ देखने लगा| 'उसने' सुन के मुझे थोड़ा शक हुआ की जर्रूर ये कोई लड़की है! दरअसल आयुष अपने पापा पर ही गया है| इन्होने भी स्कूल में कभी किसी लड़की से बात करने की कोशिश नही की...हाँ अगर कोई लड़की सामने से बात करे तभी ये उसका जवाब देते थे|
"अच्छा...wow! क्या बोला उसने?" मैंने पूछा तो आयुष शर्मा गया|
"वो....उसने....पूछा की .....क्या मैंने होमवर्क किया है?" आयुष ने अटकते-अटकते हुए कहा, ये सुनते ही मेरी हँसी छूट गई| पर नेहा के चेहरे पर कोई भाव नही थे| वो अब भी मुझसे नाराज थी और मेरी हँसी उसे रास नही आई थी इसलिए वो चिढ़ते हुए बोली; "तो? तू स्कूल पढ़ने जाता है या girlfriends बनाने? पढ़ाई में ध्यान लगा!" आयुष का मुँह लटक गया तो मैंने उसे अपने साथ चलने को बोला और उसे ले के मैं कैंटीन आ गई|
"बेटा ये लो आपका फेवरट मिल्क शेक.... happy!" उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने ही से बात शुरू की; "बेटा....आपकी दीदी पापा को लेके थोड़ा परेशान है| देखो मुझसे भी वो बात नही करती.... जब पापा ठीक हो जायेंगे तब सब ठीक हो जायेगा| तबतक कोशिश करो की आपकी दीदी को गुस्सा ना आये पर उसे अकेला मत छोड़ना, वो आपसे बहुत ज्यादा प्यार करती है...मुझसे भी ज्यादा!" वो प्यार से मुस्कुराया और स्लुर्प...स्लुर्प... कर अपना मिल्क शेक पीने लगा| आज रात को मैं और बच्चे यहीं सोने वाले थे तो खाना खाने के बाद हम सब लेट गए| मैं सोफे पर और बच्चे नीचे| रात के बारह बजे होंगे की मुझे किसी के बोलने की आवाज आई, ये कोई और नहीं नेहा की आवाज थी| वो अपने पापा से कुछ बात कर रही थी|
अब आगे......
"पापा ..... मुझे आपको सॉरी बोलना था!" इतना कह के वो चुप हो गई.....लगा जैसे आगे बोलने के लिए हिम्मत बटोर रही हो| कुछ देर बाद फिर से बोली; "i'm sorry पापा! मैंने आपको गलत समझा..... इतने साल मम्मी के साथ रही ना इसलिए उनका रंग मुझ पर भी चढ़ गया..... जब आप हमें गाँव में छोड़के शहर आ गए थे ये तब की बात है| आप कभी-कभी फोन किया करते थे ....पर मुझसे आपकी कभी बात नहीं हुई! मुझे बहुत बुरा लगता था.... जबकि मैं जानती थी की आप मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो फिर भी आप हमेशा मम्मी से ही बात करते थे| रात को मम्मी मुझे बताती थी की तेरे पापा का फोन आया था और तेरे बारे में पूछ रहे थे| तब मैं उनसे पूछा करती की पापा मुझसे बात क्यों नहीं करते तो मम्मी कहती की बेटा तू घर पर नहीं थी इसलिए तुझसे बात नही हो पाई| ये सुन के मुझे यही लगता की मम्मी आपका बचाव कर रही हैं और मैं चुप हो जाती| पर फिर कुछ दिन बाद आपका फोन आना भी बंद हो गया! मम्मी उदास रहने लगी थी .... अब चूँकि आपने मुझे मम्मी को खुश रखने की जिम्मेदारी दी थी तो मैं मम्मी को हँसाने की कोशिश किया करती| एक दिन रात को मैंने मम्मी से पुछ्ह् की अब पापा का फोन क्यों नहीं आता? तो माँ ने कहा की बेटा पापा पढ़ाई कर रहे हैं...उन्हें बहुत बड़ा आदमी बनना है ....इसलिए अभी उनसे बात नहीं हो रही| इस बार फिर मैंने उनकी बातों पर भरोसा कर लिया| पर मन में कहीं न कहीं ये लगता था की आप को हमारी परवाह नहीं है! आयुष के आने के बाद मुझे लगा था की आप जर्रूर आओगे ....पर आप नहीं आये! मैं बहुत रोई.... पर मम्मी ने मुझे चुप करा दिया, ये कह के की बेटा पापा बिजी हैं ...जल्दी ही आएंगे|
आयुष दो महीने का हो गया था....गर्मी की छुट्टियाँ मजदीक आ गई थीं, तो मैंने मम्मी से फिर पूछा की मम्मी इस बार गर्मियों की छुटियों में पापा आएंगे ना? तो माँ ने झुंझलाते हुए जवाब दिया, जब देखो पापा..पापा...पापा... करती रहती है! उन्हें पढ़ने दे .... उन्हें जिंदगी में कुछ बनना है..... कुछ हासिल करना है... यहाँ के लोगों की तरह खेतों में हल नहीं चलाना! ये सुन के मैं चुप हो गई..... आपके दुबारा आने की जो उम्मीद थी उसे भी बुझा दिया! मेरे मन ने मुझसे मम्मी की बातों का ये अर्थ निकालने पर मजबूर किया की आप हमें भूल चुके हो ..... आप पढ़ाई में इस कदर मशगूल हो गए की आपने हमें भुला दिया है| आपके मन में मम्मी के लिए जो प्यार था वो खत्म हो गया तभी तो आपने फोन करना बंद कर दिया और यही कारन है की मम्मी इतना दुखी और परेशान है और इसीलिए वो मुझ पर बरस पड़ीं| मैंने आगे बढ़ के माँ को अपने हाथों से जकड लिया और हम दोनों रोने लगीं| मैंने उस दिन ठान लिया की मैं माँ को कभी आपकी याद नहीं आने दूँगी और उस दिन से मैंने उनका ख़याल रखना शुरू कर दिया|
मैंने माँ को कभी भनक तक नहीं लगने दी की मैं आपको कितना miss करती हूँ! पूरे घर में सिर्फ एक आप ही तो थे जो मुझसे प्यार करते थे| बाकी तो कभी किसी को मेरी फ़िक्र थी ही नहीं| साल दर साल बीतते गए और फिरर वो दिन आया जब मैं आपसे मिली और आपने मुझे वो ड्रेस गिफ्ट की| उस गिफ्ट पैक में सबसे ऊपर मेरे फेवरट चिप्स का पैकेट था| तब मुझे एहसास हुआ की आप मुझे जरा भी नहीं भूले... आपको मेरी पसंद आज भी याद थी| मेरे मन में इच्छा जाएगी की आखिर ऐसी क्या वजह थी की आप को मुझसे इतने सालों तक दूर रहना पड़ा और तब मजबूरन मैंने छुप के आप दोनों की बात सुनी| सब सुनने के बाद पापा मैंने खुद को बहुत कोसा ...इतने साल मैं आपको कितना गलत समझती रही! मम्मी के साथ रह-रह के मैं भी उन्हीं की तरह हो गई थी...उन्ही की तरह सोचने लगी थी| मैं उस दिन से आपसे माफ़ी माँगना चाहती थी पर कभी हिम्मत नहीं हुई| फिर आप को और मम्मी को इस तरह खुश देख के मैं ये बात कहना ही भूल गई ...पर अब मम्मी ने सारी हद्द पार कर दी| उनकी वजह से आपकी तबियत ख़राब हुई....और अगर इस बार मैंने आपको खो दिया तो i swear पापा मैं उन्हें कभी माफ़ नहीं करुँगी और कभी उनसे बात नहीं करुँगी| प्लीज पापा आप जल्दी से ठीक हो जाओ.....प्लीज ....प्लीज!!!" ये कहते-कहते नेहा रो पड़ी!
ये सब सुनने के बाद मैं रो पड़ी.... मेरी वजह से मेरी बेटी इतने साल अपने पापा के प्यार से महरूम रही! ये बात मुझे अंदर ही अंदर खाने लगी और ये दर लगने लगा की अगर मैंने इनको (अपने पति) को खो दिया तो ये परिवार जिसे आपने इतने प्यार से बाँधा है वो बिखर जाएगा| मुझसे नेहा के आँसूं बर्दाश्त नहीं हुए तो मैं उठ के उसके पास गई और उसके कंधे पे हाथ रख के उसे उठाया और बिस्तर पर ला कर लिटा दिया| ना तो मैं उस समय कुछ कहने की हालत में थी और ना ही नेहा! मैंने उसका सर थप-थापा के सुलाने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ झटक दिया और आयुष की तरफ मुँह कर के लेट गई| मैं अपना मन मसोस कर लेट गई....पर एक पल के लिए भी सो न सकी, सारी रात नेहा की कही बातें दिमाग में गूँजती रही| सुबह हुई तो अपने सामने "बड़की अम्मा और अजय " को देख मैं हैरान रह गई! मैंने तुरंत उनके पाँव छुए और उन्होंने बड़े प्यार से मुझे अपने गले लगा लिया और इनका हाल चाल पूछा| इतने में आयुष बाथरूम से निकला तो बाथरूम से भागा-भागा अपनी दादी जी के गले लग गया| नेहा भी उस समय कमरे में थी पर न जाने क्यों झिझक रही थी| वो बहुत छोटे-छोटे क़दमों से आगे बढ़ी और अपनी दादी के पाँव छुए पर उस समय अम्मा का ध्यान आयुष पर था तो उन्होंने उसे देखा नहीं| नेहा अपना सर झुकाये वापस सोफे पर बैठ गई| मैंने तुरंत माँ (सासु माँ) को फोन कर दिया|
अमा जा के इनके पास बैठ गईं और सर पर हाथ फेरने लगीं| आँखों में आंसूं लिए मेरी तरफ देख के बोलीं; "बेटी ...तूने भी मुझे मानु की इस हालत के बारे में नहीं बताया?" मेरा सर झुक गया क्योंकि इस हफदडफडी में मुझे याद ही नहीं रहा| मैंने तो अपने माँ-पिताजी तक को नहीं बताया था| शायद उन्हें मेरी हालत समझ आ गई.... तभी अजय ने सवाल पूछा; "भाभी... मानु भैया को हुआ क्या?"
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