01-04-2019, 01:51 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 53,184
Threads: 4,454
Joined: May 2017
|
|
RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
"पता नहीं मुझे कल क्या होगया था? प्लीज.... मुझे माफ़ कर दो!" मैं रो पड़ी और गिड़गिड़ाने लगी|
"तुम्हें पता है....पर तुम बताना नहीं चाहती| ठीक है.... मैं नहीं पूछूँगा!" 'इन्होने' मेरे आँसूं पोछे और मुझे चुप कराया|मुझे लगा की इन्होने मुझे माफ़ कर दिया पर ये दूसरी तरफ मुँह कर के सोने लगे| मैंने इनसे पूछा; "आपने मुझे माफ़ कर दिया?" जवाब में इन्होने बस; "हम्म्म्म...." का जवाब दिया| पर मेरे अंदर तूफ़ान सा खड़ा हो गया था.... मन कह रहा था की तूने इनका प्यार खो दिया.... और मैं चाह कर भी इनसे ये पूछने को नहीं रोक पाई; "तो क्या आप मुझे कभी हाथ नहीं लगाओगे?"
इन्होने कुछ जवाब नहीं दिया...... पर मैंने मन ही मन सोच लिया की मैं इन्हें मना कर ही रहूंगी और इनके दिल में अपना प्यार वापस जगा के रहूँगी|
अब आगे........
रात के करीब बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई| मैं उस समय बाथरूम से निकल रही थी.... मैंने दरवाजा खोला तो नेहा थी और रो रही थी|"आजा बेटा...फिर से बुरा सपना देखा?" 'इन्होने' इशारे से उसे अपने पास बुलाया| ये थोड़ा पीछे की तरफ सरक गए और नेहा आकर इनके दाहिने तरफ लेट गई| इन्होने उसे अपनी छाती से लगा लिया और से चुप करने लगे| "बस...बस...बास...मेरा बेटा तो बहुत बहादुर है ना? बस.... अच्छा कहानी सुनोगे?" नेहा ने सर हाँ में हिलाया| इन्होने कहानी शुरू की पर नेहा को अपनी छाती से अलग नहीं किया|मैं भी इंनके पीछे आ कर लेट गई और इनकी कमर पर हाथ रख दिया| इन्होने मेरा हाथ पकड़ के आगे की तरफ खींचा और नेहा की पीठ पर रख दिया| इनकी कहानी सुनते-सुनते कब मुझे और नेहा को नींद आ गई पता ही नहीं चला|
______________________________
सारी रात नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए निकली| एक पल के लिए भी उसे खुद से जुदा नहीं होने दिया| अब उसका यूँ रात में चौंक कर उठ जाना मुझे गंवारा ना था| मैं जानता था की मेरी बेटी को कोई दिमागी बिमारी नहीं है पर मुझे कैसे भी कर के उसे उसके डर से बाहर निकलना था| अपने बचपन में मैंने भी डरावने सपने देखे थे, जिन्हें देख कर मैं जाग जाया करता था| जब में तकरीबन नेहा की उम्र का था तब मैंने पडोसी दोस्त के घर 'आहात' नाम का नाटक देखा था और तब से तो मुझे अकेले रहने में बहुत डर लगने लगा था| उस समय हमारे घर में बाथरूम पहली मंजिल पर था, तो अँधेरे में मैं बाथरूम तक नहीं जाया करता था| जब मैंने ये डरने वाली बात अपने माता-पिता को बताई तो माँ ने तो ये कह दिया की तू इतना बड़ा हो गया है और ऐसी चीजों से डरता है? पिताजी ने तो एक दिन मेरी दडे से सुताई कर दी थी, वो भी इस बात पर की मैं रात में अकेले सोने में डरता था| उस दिन उन्होंने मुझे भगा-भगा के मारा था| मेरे दोस्त लोग मेरा मजाक उड़ाया करते थे की ये देखो भूत-प्रेत से डरता है,, मर्द बन मर्द और अपने डर का सामना कर| हुँह कहना बहुत आसान होता है पर करना उतना ही मुश्किल| पर किस्मत से मेरा ये डर उम्र बढ़ने के साथ निकल गया| मैंने अपना मन पूजा-पाठ में लगाया और भगवान पर भरोसा आने लगा की जब तक वो हैं मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं होगा| पर अपनी बेटी नेहा के लिए में बेसब्रा हुआ जा रहा था| मुझे जल्द से जल्द उसकी इस परेशानी का जवाब ढूँढना था| पर कैसे? ये सवाल ही मेरी चिंता का कारण था| मैं ने एक नजर नेहा को देखा, वो अब भी सो रही थी और संगीता भी नींद में थी| मैं उठा और नह धो कर भगवान का नाम लेने लगा, अपनी बेटी के लिए दुआ करने लगा की मेरी बेटी को ये डरावने सपने आने बंद हो जाएँ| जब भी मुझे कुछ सुझाई नहीं देता तो मैं भगवान का नाम लेता हूँ, ये सोच कर की वो मुझे कोई न कोई रास्ता अवश्य ही सुझाएंगे|
शायद रास्ता मिल भी गया| उस वक़्त घडी में पाँच बज रहे थे और मेरी बैचनी बढ़ने लगी थी इसीलिए मैंने डॉक्टर सरिता जी को फ़ोन किया:
मैं: हेलो? डॉक्टर सरिता?
डॉक्टर सरिता: हेलो
मैं: माफ़ कीजिये सरिता जी मैंने आपको इतनी सुबह तंग किया?
डॉक्टर सरिता: अरे कोई बात नहीं मानु| सब ठीक तो है ना?
मैं: जी नहीं| नेहा को हर तीसरे दिन बुरे सपने आते हैं और वो डर के मारे रोने लगती है और आधी-आधी रात को उठ कर मेरे पास आ जाती है| जब-जब मैं उसके साथ सोता हूँ तो वो ठीक रहती है और आराम से सोती है| प्लीज सरिता जी मदद कीजिये!
डॉक्टर सरिता: घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा| मैं तुम्हें डॉक्टर अंजलि का नंबर देती हूँ वो बच्चों की मनौवैज्ञानिक हैं| तुम, संगीता और नेहा उनसे जा कर मिलो वो तुम्हारी जर्रूर मदद करेंगी|
मैं: जी ठीक है| आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!
डॉक्टर सरिता: मैं तुम्हें अभी नंबर मैसेज करती हूँ|
अगले पाँच मिनट में डॉक्टर सरिता का मैसेज आ गया| मन तो कर रहा था की अभी फ़ोन करूँ पर ये ठीक नहीं होता| इसलिए मैं घडी में दस बजने का इन्तेजार करने लगा| पर ये घडी कम्बखत बहत धीरे चल रही थी| माँ-पिताजी भी उठ चुके थे तो मैंने सोचा की चलो चाय ही बना लूँ|चाय बना कर जब मैं माँ-पिताजी को देने गया तो मेरे हाथ में चाय देख कर माँ-पिताजी परेशान हो गए|
माँ: बहु की तबियत ठीक है ना?
मैं: जी ठीक है|
पिताजी: फिर चाय तू क्यों ले कर आया?
मैं: वो मैं जल्दी उठ गए तो सोचा आज मैं ही चाय बना लूँ|
पिताजी: अच्छा अब जा कर बहु और बच्चों को भी उठा दे|
मैं अपनी और संगीता की चाय ले कर कम्मर में पहुँचा| संगीता बाथरूम से निकल रही थी और मेरे हाथ में चाय का कप देख वो सकपका गई|
संगीता: आप? चाय?
मैं: सारी रात सोया नहीं, लेटे-लेटे ऊब गया था तो उठ कर नहाया फिर पूजा की और फिर भी समय नहीं कटा तो सोचा चाय बना लूँ|
संगीता: नींद क्यों नहीं आई? अब भी नाराज हो मुझसे?
मैं: नहीं यार| मैं नेहा के लिए परेशान हूँ|
संगीता: उसके बुरे सपनों को ले कर? जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी ये बुरे सपने आना बंद हो जायेंगे|
मैं: अब और उसे रोते हुए नहीं देख सकता| तुम चाय पियो मैं बच्चों को उठाता हूँ|
बच्चों को उठा कर स्कूल के लिए तैयार किया और इतनी देर में संगीता ने उनका टिफ़िन भी बना दिया| बच्चों को स्कूल छोड़ कर घर आया तो सोचा की माँ-पिताजी से नेहा के बारे में बात कर लूँ|पिताजी अखबार पढ़ रहे थे और माँ साग चुन रही थी| संगीता भी माँ के साथ साग चुन रही थी|
मैं: माँ ... पिताजी... आप लोगों से कुछ बात करनी है|
पिताजी ने अखबार मोड़ के रख दिया और माँ और संगीता भी रूक गए| सबका ध्यान मेरी तरफ था:
मैं: पिताजी मैंने डॉक्टर सरिता को फ़ोन किया था|
पिताजी: किस लिए?
मैं: कल रात को नेहा फिर से ..... (मैंने अपनी बात पूरी नहीं की और पिताजी भी समझ गए|)
पिताजी: बेटा तू क्यों चिंता करते है| बुरे सपने सब बच्चों को आते हैं और चूँकि वो छोटे होते हैं इसलिए दर जाते हैं| जब वो बड़े हो जाते हैं तो उनका ये दर खत्म हो जाता है| तू चिंता ना कर वरना फिर से बीमार पड़ जायेगा|
संगीता: पिताजी कल रात भर नहीं सोये| (संगीता ने मेरी चुगली की|)
माँ: बेटा एक बात बता तू फिर से बीमार पड़ना चाहता है?
मैं: नहीं माँ ऐसा नहीं है| आप एक बात बताओ, क्या आप लोग कभी मेरी आँखों में आँसूं देख पाते थे? फिर मैं अपनी बेटी को रोता हुआ कैसे देखूं? और चलो एक आध बार की बात होती तो ठीक था पर हर तीसरे दिन उसका इस कदर डर जाना?
संगीता(मेरी बात काटते हुए): ये सब मेरी.......
मैं (संगीता की बात काटते हुए): Shut up संगीता!
मैंने संगीता को झिड़कते हुए कहा| उसका कारन ये था की मैंने अपने माँ-पिताजी को संगीता और अपने बारे में सब कुछ नहीं बताया था| वरना उनके मन में शायद संगीता की वो छबि न बन पाती जो मैं चाहता था| अब आप लोग इसे सही कहें या गलत ये आपके ऊपर है|
मेरा इस कदर संगीता को झिड़कना पिताजी और माँ को पसंद नहीं आया क्योंकि वे मुझे घूर कर देख रहे थे| मेरी झिड़की से संगीता सहम गई और खामोश हो गई थी तथा अपना सर झुका कर बैठी थी| मैंने अपनी बात जारी रखी:
मैं: अगर ये सब प्राकर्तिक भी है तो भी मैं एक बार अपने मन की तसल्ली के लिए डॉक्टर से मिलना चाहता हूँ| डॉक्टर सरिता ने मुझे मुझे एक बाल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अंजलि का नंबर दिया है| मैं उन्हें फोन कर के कल की अपॉइंटमेंट ले लेता हूँ|
पिताजी: जैसा तुझे ठीक लगे, पर तू नेहा को क्या कहेगा?
मैं: यही की आगे चल कर उसे क्या करना है इसके लिए एक जानकार से परामर्श लेने जा रहे हैं| उसे ये सब बोल कर मैं मानसिक रोगी नहीं बनाना चाहता| उसके सामने हम ऐसे ही पेश आएंगे जैसे ये कोई आम बात है|
पिताजी: ठीक है|
इतना कह कर पिताजी उठ कर चले गए|
|
|
|