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Sex Hindi Kahani राबिया का बेहेनचोद भाई
राबिया का बेहेनचोद भाई--1
यू तो मैने जवानी की दहलीज़ पर पहला कदम उमर के चौदह्वे पराव में ही रख दिया था. मेरी छातियों के उभर छोटे छोटे नींबू के आकर के निकल आए थे. घर में अभी भी फ्रॉक और चड्डी पहन कर घूमती थी. अम्मी अब्बू के अलावा एक बड़ा भाई था, जो उमर में मुझसे दो साल बड़ा था. यानी वो भी सोलह का हो चुका था और मूछों की हल्की हल्की रेखाएँ उसके चेहरे पर आ चुकी थी. मूछों की हल्की रेखाओ के साथ उसके नीचे की मुच्छे भी आ चुकी होगी ऐसा मेरा अंदाज़ है. मेरी भाई के जैसी मुच्छे तो नही आई थी मगर बगलो में और नीचे की सहेली के उपर हल्के हल्के रोए उगने शुरू हो गये थे. 15 साल की हुई और नींबू का आकर छोटे सेब के जैसा हो गया, तब अम्मी ने मुझे नक़ाब पहना दिया यानी बाहर जाने पर हर समय मुझे बुर्क़ा पहन कर घूमना परता था. घर में लड़के नहीं आते, सिर्फ़ रिश्तेदारों के सिवा . भाय्या के दोस्त भी अगर आए तो ड्रॉयिंग रूम से ही चले जाते. फ्रॉक अब कम ही पहनती थी. बाहर निकालने पर सलवार कमीज़ के अलावा बुर्क़ा पहन ना परता था. घर में अभी भी कभी कभी फ्रॉक और चड्डी पहन लेती थी. जवानी की दहलीज़ पे कदम रखते ही, अपनी चूचियों और नीचे की सहेली यानी की चूत में एक अजीब सा खिचाओ महसूस करने लगी थी. जब सोलह की हुई तो यह खिचाव एक हल्की टीस और मीठी खुजली में बदल गई थी. बाथरूम में पेशाब करने के बाद जब पानी दल कर अपनी लालपरी को धोती तो मान करता कुछ देर तक यूँही रगर्ति रहूं. गोरी बुवर का उपरी हिस्सा झांटों से बिल्कुल धक गया था. नहाते वक्त जब कपड़े उतार कर अपनी चूचियों और चूत पर साबुन लगती तो बस मज़ा ही आजाता, हाथ में साबुन लेकर चूत में दल कर थोड़ी देर तक अंदर बाहर करती और दूसरे हाथ से चूचियों को रगर्ति.....अहह... .. खुद को बात रूम में लगे बड़े आईने में देख कर बस मस्त हो जाती......बड़ा मज़ा आता था...लगता था बस अपनी चूत और चूचियों से खेलती रहूं. घर में खाली समय में लड़को के बारे में सोचते सोचते कई बार मेरी बुर पासीज जाती और मैं बाथरूम में जाकर अपनी गर्मी कम करने के लिए उनलीयों से अपनी लालपरी की उपर वाली चोंच को मसालती थी और नीचे वाले छेद में उंगली घुसने की कोशिश करती थी. शुरुआत थोड़ी तकलीफ़ से हुई मगर बाद में बड़ा मज़ा आने लगा था. रात में अपने बिस्तर पर अपनी उंगलियों से करती थी और कई बार इतनी गरम हो जाती की दिन में टीन-टीन दफ़ा बाथरूम में पेशाब करने के बहाने अपनी चूत की घुंडी रगड़ने चली जाती थी. आप सोच रहे होंगे मैं इतनी छ्होटी उमर में इतनी गरम कैसे हो गई....मेरे अंदर लंड के लिए इतना दीवानापन... क्यों कर आ गया है.... तो जनाब ये सब मेरे घर के महॉल का असर है. वैसे अभी तो मेरा कमरा अम्मी अब्बू के बगल वाला है.... मगर जब में छ्होटी थी मैं अपने अम्मी अब्बू के साथ ही सोती थी. मुझे याद आता है.....मेरी उमर उस वक़्त 7 साल की होगी....मैं अम्मी के कमरे में ही सोती थी....अम्मी और अब्बू बड़े पलंग पर साथ सोते मैं बगल में सिंगल बेड पर सोती....कमरे में नाइट बल्ब जलता रहता था....कभी- कभी रातों को जब मेरी आँख खुलती तो अम्मी और अब्बू दोनो को नंगे एक दूसरे के साथ लिपटा छिपटि कर रहे होते .... कभी अम्मी अब्बू के उपर कभी अब्बा अम्मी के उपर चड़े होते.....कभी अब्बू को अम्मी के जाँघों के बीच पति....या अम्मी को अब्बू के पेट पर बैठे हुए पाती.... कभी अब्बू को अम्मी के उपर चढ़ कर धक्के मरते हुए देखती....दोनो की तेज़ साँसों की आवाज़ और फिर अम्मी की सिसकारियाँ.....उउउ...सस्स्स्स्स्सिईईई.....मेरे सरताज....और ज़ोर सी....सीईईईई..... कभी -कभी तो अम्मी इतनी बेकाबू हो जाती की ज़ोर ज़ोर से अब्बू को गलियाँ देती...भड़वे और ज़ोर से मार....आिइ...तेरी अम्मी को छोड़ू...रंडी की औलाद....गाँड का ज़ोर लगा....गाँड में ताक़त नही......चीखतीं... .बालों को पकड़ कर खींचती.... और दोनो एक दूसरे के साथ गली गलोज़ करते हुए चुदाई में मसरूफ़ रहते.... जबकि मैं थोड़ी सी डरी सहमी सी उनका ये खेल देखती रहती.... और सोचती की दिन में दोनो एक दम शरीफ और इज़्ज़तदार बन कर घूमते है..... फिर रात में दोनो को क्या हो जाता है. सहेलियों ने समझदारी बढ़ने में मदद की और....इस मस्त खेल के बारे में मेरी जानकारी बढ़ने लगी. मेरी नीचे की सहेली में भी हल्की गुदगुदी होने लगी.....अब मैं अम्मी अब्बू का खेल देखने के लिए अपनी नींद हराम करने लगी... शायद उन दोनो शक़ हो गया या उन्हे लगा की मैं जवान हो रही हूँ....उन लोगो ने मेरा कमरा अलग कर दिया...हालाँकि मैने इस पर अपनी नाराज़गी जताई मगर अम्मी ने मेरे अरमानो को बेरहमी कुचल दिया और अपने बगल वाले कमरे में मेरा बिस्तर लगवा दिया. मैने इसके लिए उसे दिल से बाद-दुआ दी.... जा रंडी तुझे 15 दिन तक लंड नसीब नही होगा. मेरा काम अब अम्मी-अब्बू की सिसकारियों को रात में दीवार से कान लगा कर सुन ना हो गया था.....अक्सर रातों को उनके कमरे से प्लांग के चरमरने की आवाज़..... अम्मी की तेज़ सिसकारियाँ.....और अब्बू की....ऊओन्ंह... ..ऊओं... की आवाज़ें....ऐसा लगता था की जवानी की मस्ती लूटी जा रही है....की आवाज़ो को कान लगा कर सुनती थी और अपने जाँघो के बीच की लालमूनिया को भीचती हुई...अपने नींबुओ को हल्के हाथो से मसालती हुई सोचती.... अम्मी को ज़यादा मज़ा आता होगा, शाई की चूचियाँ फूटबाल से थोड़ी सी ही छ्होटी होगी. मेरी अम्मी बाला की खूबसूरत थी. अल्लाह ने उन्हे गजब का हुस्न आता फरमाया था. गोरी चित्ति मक्खन के जैसा रंग था. लंबी भी थी और मशाल्लाह क्या मोटी मोटी जांघें और चुटटर थे. गाँड मटका कर चलती तो सब गान्डुओन की छाती पर साँप लॉट जाता होगा ऐसा मेरे दिल में आता है. रिश्तेदारो में सभी कहते थे की मैं अपनी अम्मी के उपर गई हूँ....मुझे इस बात पर बरा फख्रा महसूस होता....मैं अपने आप को उन्ही के जैसा सज़ा सॉवॅर कर रखना चाहती थी. मैं अपनी अम्मी को छुप छुप कर देखती थी. पता नही क्या था, मगर मुझे अम्मी की हरकतों की जासूसी करने में एक अलग ही मज़ा आता था और इस बहाने से मुझे जिस्मानी ताल्लुक़ात बनाने के सारे तरीके मालूम हो गये थे. वक़्त के साथ-साथ मुझे यह अंदाज़ा हो गया की अम्मी - अब्बू का खेल क्या था....जवानी की प्यास क्या होती है....और इस प्यास को कैसे बुझाया जाता है. मर्द - औरत अपनी जिस्म की भूक मिटाने के लिए घर की इज़्ज़त का भी शिकार कर लेते है....अम्मी की जासूसी करते करते मुझे ये बात पता चली.....अम्मी ने अपने भाई को ही अपना शिकार बना लिया था....मुझे इस बात से बरा ताजुउब हुआ और मैने मेरी एक सहेली आयशा से पुछा की क्या वाक़ई ऐसा होता है ...या फिर मेरी अम्मी ही एक अलबेली रंडी है.....उसने बताया की ऐसा होता है और....वो खुद अपनी अम्मी के साथ भाई और उसके दोस्तूँ की चुदाई का मज़ा लेती है.... उसकी किस्मत पर मुझे बड़ा जलन हुआ.... मैं इतनी खुश किस्मत नहीं थी.....हुस्न और जवानी खुदा ने तो दी थी ...लेकिन इस हसीन जवानी का मज़ा लूटने वाला अब तक नहीं मिला था....मेरी जवानी ज़ंज़ीरों में जकड़ दी गई है....अम्मी का कड़ा पहरा था मेरी जवानी पर....खुद तो उसने अपने भाई तक को नहीं छोड़ा था....लेकिन मुझ पर इतनी बंदिश के अगर चूचियों पर से दुपट्टा सरक जाए तो फ़ौरन डांट लगती.....राबिया अब तू बच्ची नहीं.....ढंग से रहा कर....जवानी में अपने भाई से भी लिहाज़ करना चाहिए....कभी- कभी तो मुझे चिढ़ आ जाता....मन करता कह डू...साली भोंसड़ी..... रंडी... खुद तो ना जाने कितनी लंड निगल चुकी है....
अपने भाई तक को नहीं छोड़ा ....और मेरी चूत पर पहरे लगती है....खुद तो अपने शौहर से मज़े लेते समय कहती है खुदा ने जवानी दी है इसीलिए की इसका भरपूर मज़ा लूटना चाहिए और मुझ पर पाबंदी लगती है....मगर मैं ऐसा कह नही पाई कभी....घर की इसी बंदिश भरे माहौल में अपनी उफनती गरम जवानी को सहेजे जी रही थी.....घुटन भी होती थी...दिल करता था...इन ज़ंज़ीरो को तोड़ डू....अपने नक़ाब को नोच डालु...
अपने खूबसूरत गदराए मांसल चूतरों को जीन्स में कस कर...अपनी छाती के कबूतरो को टी - शर्ट में डाल कर उसके चोंच को बरछा (भाला ) बना कर लड़कों को घायल करू.... लड़कों को ललचाओ.... और उनकी घूरती निगाहों के सामने से गाँड मटकती हुई गुज़रु...पर अम्मी साली घर से निकालने ही नही देती थी....कभी मार्केट जाना भी होता था....तो नक़ाब पहना कर अपने साथ ले जाती थी. एक बार एक सहेली के घर उसकी सालगिरह के दिन जाना था....मैने खूब सज-धज कर जीन्स और टी - शर्ट पहना फिर उसके उपर से नक़ाब डाल कर उसके घर चली गई...वहा पार्टी में अम्मी की कोई सहेली आई थी उसने देख लिया....अम्मी को मेरे जीन्स पहन ने का पता चला तो मुझे बहुत डांटा ...इतनी घुटन हुई की क्या बताए.
एक बार अब्बू कही बाहर चले गये....15 दिनों की अब्बू की गैर मौजूदगी ने शायद अम्मी की जवानी को तड़पने को मजबूर कर दिया था.....जब वो नहाने के लिए गुसलखाने में घुसी तो मैने दरवाजे के छोटे छेद के पास अपनी आँखो को लगा दिया और अम्मी की जासूसी करने में मैं वैसे एक्सपर्ट हो चुकी थी. साली ने अपनी सारी उतरी फिर ब्लाउज के उपर से ही अपने को आईने में निहारते हुए दोनो हांथों को अपनी चूचियों पर रख कर धीरे-धीरे मसलने लगी...मेरे दिल की धरकन तेज हो गई....इतने लंड खा चूकने के बाद भी ये हाल....15 दिन में ही खुजली होने लगी.....यहाँ मैं 17 साल की हो गई और अभी तक....
खैर अम्मी ने चूचियों पर अपना दबाओ बढ़ाना शुरू कर दिया ....सस्सिईईईईई... ..अम्मी अपनी होंठों पर दाँत गाडते हुए सिसकारी ली......फिर ब्लाउस के बटन एक-एक कर खोलने लगी.....अम्मी की दो बड़ी- बड़ी हसीन चूंचीयाँ काले ब्रसियर में फाँसी बाहर नेकालने को बेताब हो गयी..... अम्मी ने एक झटके से दोनो चूचियों को आज़ाद कर दिया..... फिर पेटिकोट के रस्से (नारे) को भी खोल कर पेटिकोट नीचे गिरा दिया.... आईएनए में अपने नंगे हुस्न को निहार रही थी.....बड़ी-बड़ी गोरी सुडोल चूंचीयाँ... हाय !! मेरी चूंची कब इतनी बड़ी होगी....साली ने भाई और अब्बू से मसलवा मसलवा कर इतना बड़ा कर लिया है.....गठीला बदन.....ही कितनी मोटी जांघें है.....चिकनी....वैसे जांघें तो मेरी भी मोटी चिकनी और गोरी गोरी थी......तभी मेरी नज़र इस नंगे हुस्न को ....देखते हुए चूत पर गयी.....ही अल्लाह! कितनी हसीन चूत थी अम्मी की....बिल्कुल चिकनी....झांटों का नामोनिशान तक नहीं था उनकी बुर पर....
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RE: Sex Hindi Kahani राबिया का बेहेनचोद भाई
राबिया का बेहेनचोद भाई--5
. फिर हम दोनो कॉलेज की कैंटीन के पीछे जहाँ एक दम सन्नाटा होता है वाहा चले गये....पत्थर पर बैठने के बाद उसने कहा...हा पूछ क्या पूछ ना है....पहले तो ये बता कब हुई तेरी सगाई.....कल.....ही....तूने बताया भी नही पहले....किसके साथ...पहले से चक्कर था तेरा....शबनम झल्ला उठी....धत ! बकवास किए जा रही है....तुझे पता है मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नही.....फिर इतनी जल्दी कैसे....जल्दी तो नही है....बस तुझे पता नही था इसलिए....अच्छा चल अब तो बता दे कौन है वो खुशकिस्मत जो मेरी शब्बो रानी के रानों के बीच की सहेली का रस चखेगा....शबनम का चेहरा लाल हो गया.....धत ! साली हर समय यही सोचती है क्या.....
ज़रा भी लिहाज़ नही है तेरे से दो साल बड़ी हूँ मैं...मैने शबनम की जाँघो पर हाथ मारते हुए कहा....तो फिर बता ना मेरी शाब्बो बाजी कौन है वो....शबनम हंस दी फिर मस्कुराते हुए शरमाते हुए बोली....खालिद नाम है उनका....खालिद अच्छा यही के है या....यही के है....मेरी खाला के लड़के....मतलब तेरे खलजाद भाई....हा....अर्रे वा तब तो पहले से देख रखा होगा तूने....हा हमारे घर से जयदा दूर नही है उनका घर.....हम जब छोटे थे साथ में खेलते भी थे.....जब बड़े हो गये तो थोड़ी दूरी आ गई...मतलब.... शबनम बोली अर्रे कामिनी मतलब क्या समझोउ....जब लड़का-लड़की जवानी की दहलीज़ पर कदम रख देते है तो फिर दूरी तो आ ही जाती है, है ना.....
मैने और छेड़ने के इरादे से पुछा ....ही मतलब बचपन का प्यार है....धत !...क्या बोलती है...अरे मैने क्या बोला....तूने ही तो कहा...बचपन में साथ खेलते थे और जब तेरी चूची बड़ी हो गई तो दूरी आ गई....इसका तो यही मतलब निकला की बचपन से अम्मी अब्बा वाला खेल चल रहा था.....धत ! साली ....मुझे खुद नही पता था की खालिद भाई...है खालिद मुझे चाहते है....मैं बीच में बोल पड़ी ....पर तू उन्हे चाहती थी....अरी नही रे....मैं उन्हे खालिद भाई कह कर बुलाती थी....जब भी कभी घर आते थे तो घर का महॉल बरा खुशनूमा हो जाता था....हम साथ में वीडियो गेम्स खेलते और हसी मज़ाक करते थे...मैं बीच में बोल पड़ी ....ही बस तुम दोनो साथ में....अरे नही रे मेरी बाकी दोनो बहनें भी...हम चारों जाने ....खालिद भाई....ओह तौबा तौबा....
खालिद के कोई भाई या बहन नही है ना.... उनका मान हमारे यहाँ बहल जाता था....ही! ये मान बहलाते बहलाते लगता है कुछ ज़यादा ही बहल गये तेरे खालिद भाई......चुप्प कर साली अब वो मेरे खाविंद है.....मैने कमर में चिकोटी काट कर कहा.....ही रब्बा....अभी से इतनी वफ़ादारी.... तू बाज आएगी या फिर तेरा कुछ और इलाज़ करना परेगा...ही! इलाज़ क्या करोगी....बस मिठाई खिला दो....खाली हाथ आ गई...बड़ी बाजी बनती हो इतना तो शरम लिहाज़ रखो की अपनी सगाई पर मुँह मीठा करा दो....भले ही अपने मियाँ से नही मिलवाना...शबनम मुस्कुराने लगी....बोली क्लास छोड़ चल मेरे साथ...मैने पुछा क्यों कर भला....अर्रे चल ना बस....घर चलते है वही तेरा मुँह भी मीठा करा दूँगी....घर पर अभी कोई नही होगा फिर आराम से बाते करेंगे....मैं भी उस से उसके खालिद भाई के बारे में खोद खोद कर पूछ ना चाह रही थी..... इसलिए थोड़ा सोचने के बाद हामी भर दी......
टॅक्सी पकड़ घर पहुचे....घर पर केवल उसकी अम्मी थी.....ड्रॉयिंग रूम में बैठ कर टीवी देख रही थी....उनको सलाम करने के बाद कुछ देर वही बैठी उनसे बाते करती रही फिर वो उठ कर पड़ोस में चली गई......शबनब ने टीवी ऑफ किया और कहा.... चल मेरे कमरे में वही बैठ कर बाते करेंगे.....अम्मी तो अब दो घंटे से पहले नही आने वाली.....कमरे में पहुच...दरवाजा बंद कर.... हम दोनो बिस्तर पर बैठ गये....मैं पेट के बाल हाथो के नीचे एक तकिया डाल कर लेट गई....शबनम दीवान की पुष्ट से पीठ टीका कर बैठी थी.... एसी की ठंडी हवा में....हम दोनो कुछ देर तक तो यू ही उसके घर के बारे में बाते करते रहे....फिर थोड़ा आगे सरक, शबनम का हाथ थाम पुछा ...... ही शाब्बो बाजी ये तो बता......भाई बहन से मियाँ बीबी बन ने का ख्याल कब और क्यों कर आया....
मेरे इतना बोलते ही शबनम ने मेरी पीठ पर कस कर थप्पड़ जमा दिया और हँसते हुए बोली....तू मानेगी नही....जा मैं नही बताती....साली हर बात का उल्टा मतलब निकल देती है....हाए !!! शाब्बो मेरी जान प्लीज़ बता ना....आख़िर तुम दोनो का प्यार कैसे परवान चढ़ा....हाए !!! मुझे भी तो एक्सपीरियेन्स.....बड़ी आई एक्सपीरियेन्स वाली....इसमे क्या बात है जो तेरे फाएेदे की....मैं शबनम की तुड़ी पकड़ बोली हाए !!! प्लीज़ बता ना....नही...मैं मिठाई लाती हूँ....मैं इतराती हुई बोली नही खानी मुझे.....पहले बता....हाए !!! रब्बा क्या बताऊँ तुझे....जो बताना था बता तो दिया....नही मुझे विस्तार से बता.....तुझे कब पता चला कहलीद भाई तेरी जाँघो के दरमियाँ आने चाहते है....अफ....कामिनी है तू....साली एक नंबुर की....ले दे कर वही बात....कहते हुए मेरी पीठ पर एक चपत लगाई...और ये क्या बार बार खालिद भाई...निगोरी....
मैं हँसते हुए बोली चल नही बोलूँगी.....पर कुछ तो बता....मैं थोड़ा मासूम सा मुँह बनाते हुए कहा....शबनम मेरे मासूम से चेहरे को देखती हुई मुस्कुरा दी....कुतिया साली....क्या बताऊँ ....किसने शुरुआत की...मैने पुछा ....मुझे नही पता...खाला आई थी उन्होने अम्मी से बात की....कब आई थी....करीब एक महीने पहले.....ओह...पर फिर भी पहले कुछ तो हुआ होगा....नही ऐसा तो कुछ नही था....हा कई बार खालिद भाई ओह ओह...वो कई बार बात करते करते एकदम से खामोश हो जाते....और मेरे चेहरे की तरफ देखते रहते..... बड़ा अटपटा सा लगता की ऐसा क्यों करते है....फिर राहिला ने एक दिन बताया की आपा खालिद भाई आपको अपने चस्मे के पीछे से बहुत देखते है....मैने उसको बहुत डांटा मगर....फिर मैने भी नोटीस किया मैं जब इधर उधर देख रही होती तो वो लगातार मुझे घूरते रहते....
जैसे ही मुझ से नज़रे मिलती....वो सकपका जाते.....फिर मुझे लगने लगा था की डाल में ज़रूर कुछ काला है.... शबनम की जाँघ को दबाते हुए मैं बोली....ही पूरी डाल ही काली निकली.....वो भी हँसने लगी...फिर मैने पुछा ....अच्छा ये तो बता की उन्होने कभी और कोई हरकत नही की तेरे साथ....और कोई हरकत से तेरा मतलब अगर वैसी हरकतों से है....तो नही....वैसा कुछ नही हुआ हमारे बीच....हा जब से मुझे इस बात का अहसास हुआ तो मैं उनके सामने जाने में थोड़ा हिचकिचाने लगी....फिर कभी मौका भी नही मिला...हर वाक़ूत कोई ना कोई तो होता ही था....ही कभी कुछ नही किया....क्या यार कम से कम लिपटा छिपटि, का खेल तो हो ही सकता थे तुम दोनो मे, मैं होती तो एक आध बार मसलवा लेती....चुप साली....मैं तेरे जैसी लंड की भूखी नही हू.....कौन कितना भूखा है ये तो निकाह होने दो फिर पता चलेगा....दो महीने में पेट फुलाए घुमोगी.....चल निगोरी....ही शाब्बो मैने तो सोचा एक आध बार उन्होने अब तक तेरी कबूतारीओयोन को दबा दिया होगा....
अल्लाह कसम बता ना....एक बार भी नही....अब तक शबनम भी धीरे धीरे खुलने लगी थी....उसके चेहरे पर हल्की शर्म की लाली दौर गई.... मुस्कुराती हुई बोली....पहले तो कभी नही पर कल....ही! मुझे शर्म आ रही है....कहते हुए उसने अपनी हथेली से अपना चेहरा धक लिया....ही! कल क्या...बता ना....प्लीज़...वो फिर शरमाई...ही! नही...ही! बता ना प्लीज़....फिर मुस्कुराते हुए धीरे से सिर को नीचे झुकती बोली.....ही कल जब माँगनी हो गई....फिर सब ने हमे पाच सात मिनिट के लिए अकेला कमरे में छोड़ दिया....ही! फिर क्या…??
तब खालिद मेरे पास आए....और धत !!....कैसे बोलू....ही बता ना क्यों तडपा रही है....ही फिर उन्होने मेरे गालो को हल्के से चूमा....ही मैं तो घबरा कर सिमट गई....मगर उन्होने मेरे दोनो हाथो को पकड़ लिया और हम सोफे पर बैठ गये फिर....फिर क्या मेरी जान....फिर उन्होने मुझे बताया की वो बचपन से मुझे चाहते है...और दिलो-जान से प्यार करते है....वो हमेशा मुझे ही अपने ख्वाबो में देखते थे....उन्हे बस इसी बात का इंतेज़ार था की कब उनकी नौकरी लग जाए....उन्होने ने मुझ से पुछा की मैं राज़ी हूँ या नही....मैं क्या बोलती सगाई हो चुकी थी.....मैने चुपचाप सिर हिला दिया....वो खिसक कर मेरे पास आ गये और मेरी थोड़ी को उपर उठा मेरे चेहरे को देखते हुए हल्के से मेरे होंठो पर अपनी एक उंगली फिराई....
मेरा पूरा बदन काँप उठा....फिर आगे बढ़ कर उन्होने हल्के से अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया....ओह मैं बतला नही सकती....सहेली मेरा पूरा बदन कपने लगा....मेरे पैर थरथरा उठे....दिल धड़ धड़ कर बाज रहा था....तभी उन्होने मेरे होंठों को अपने होंठों में कस कर पकड़ लिया और अपना एक हाथ उठा कर हल्के से मेरी चूची पर रख दिया....और और सहलाने लगे....उफ़फ्फ़! मैं बयान नही कर सकती राबिया उस लम्हे को....मेरे बदन का रॉयन रॉयन सुलग उठा था.....लग रहा था जैसे मैं पिघल कर उनकी बाहों में पानी की तरह बह जौंगी....उनकी हथेली की पकड़ मजबूत होती जा रही थी....वो अब बेशखता मेरी चूचियों को मसल रहे थे....ये मेरा पहला मौका था....किसी लड़के के हाथ चूचियों को मसलवाने का....मेरी जाँघो के बीच सुरसुरी होने लगी थी....
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उफफफफ्फ़....!!! क्या बताऊँ मैं....ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चारो तरफ की ज़मीन घूम रही है.....कहते कहते शबनम की साँसे उखाड़ सी गई...उसकी आँख एकदम लाल हो चुकी थी...उसने मेरा कंधा पकड़ कर एक बार भीच कर फिर छोड़ दिया....मैं बेताबी से इंतेज़ार कर रही थी की वो और आगे कुछ बोलेगी मगर वो चुप हो गई....अपनी आँखो को उसने बंद कर लिया था....लग रहा जैसे कही खो गई है....मैने हल्के से उसका कंधा पकड़ हिलाते हुए कहा....शाब्बो.....धीरे से उसने अपनी आँखे खोली और हल्के से मुस्कुराते हुए बोली....जानती है फिर क्या हुआ...क्या मैं बोली....सुनेगी तो तू बहुत हासेगी...मैने खालिद को थोड़ा पीछे धकेलते हुए उनके होंठों के चंगुल से अपने होंठों को आज़ाद करते हुए कहा...ही खालिद भाई छ्चोड़िए.....ही ये क्या कर रहे है....ही खालिद भाई ये ठीक नही...तू समझ सकती है खालिद की क्या हालत हुई होगी....वो एकदम से घबरा गये....
झट से मुझे छोड़ कर उठ खड़े हुए और फिर कमरे से बाहर निकल गये.....हम दोनो हँसने लगे....मेरा तो बुरा हाल हो रहा था हँसते हँसते ....फिर भी मैने पुछा ...ही बुरा तो नही मान गये तेरे मियाँ......नही यार मैं अपना पसीना पोच्च कर बाहर निकल गई....घर में बहुत सारे लोग थे गुप-सॅप करने लगी....मौका देख कर मैने खालिद को सॉरी बोल दिया....तो वो मुस्कुरा कर बोले....आदत तो धीरे धीरे ही जाएगी बेगम साहिबा....और मेरी कमर पर चिकोटी काट ली.....मैं फिर भाग गई इस से पहले की वो कोई और हरकत करे....ही शाब्बो डार्लिंग तूने मौका गावा दिया....मज़ा तो आया होगा तुझे....थोड़ी देर और चुप रहती तो शायद चूत में उंगली भी कर देता....या उसका लंड देख लेती....कॉलेज की तरह खुले गंदे लफ़जो का इस्तेमाल करते हुए मैने कहा....शबनम भी शरमाई नही....हँसते हुए बोली...साली पहली बार किसी लड़के ने हाथ लगाया था...
मैने ये एक्सपेक्ट नही किया था.....मुझे होश कहा था....जो मान में आया बोल दिया....अब अफ़सोस तो होता है....लगता है थोड़ी देर और मसलवा लेती....उंगली तो मैने बहुत डलवाई है....
ये सुनकर मुझे बरा ताज्जुब हुआ....ही खुद से तो मैं भी डाल लेती हूँ....मगर तूने किस से डलवा ली....जब तेरा कोई बाय्फ्रेंड नही.....ही मेरी लालपरी...तुझे नही पता......ही रब्बा....मुझे कैसे पता ....तू कैसे करती थी...डार्लिंग ये खेल ज़रा अलहाड़े किस्म का है....पर होता कैसे है ये खेल......दिखौ....कहते हुए उसने हाथ बढ़ा कर मेरी एक चूंची को समीज़ के उपर से पकड़ लिया....ही रब्बा...मैने घबरा कर उसका हाथ झटका....वो हँसने लगी और पूरे ज़ोर से हमला बोल दिया....मुझे पीछे धकेल बेड पर गिरा, मेरी पेट पर बैठ.....दोनो हाथो से मेरी दोनो चूचियों को अपनी हथेली में भर मसल दिया......आईईइ....क्या करती है मुई....उफफफ्फ़....छोड़ ....
पर उसने अनसुना कर दिया....अपना चेहरा झुकते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों में भर मेरी चूचियों को और कस कस कर मसलने लगी.....मैं उसे पीछे धकेल तो रही थी मगर पूरी ताक़त से नही....वो लगातार मसले जा रही थी.....मैं भी इस अंजाने खेल का मज़ा लेना चाहती थी.....देखना था की शाब्बो क्या करती है.....कहा तक आगे ......कुछ लम्हो के बाद ऐसा लगा जैसे जाँघो के बीच सुरसुरी हो रही है......मुझे एक अजीब सा मज़ा आने लगा......मैने उसको धखेलना बंद कर दिया...... मेरे हाथ उसके सिर के बालो में घूमने लगे.....तभी उसने मेरे होंठों को छोड़ दिया....हम दोनो हाँफ रहे थे....वो अभी भी हल्के हल्के मेरी छातियों को सहला रही थी.....मुस्कुराते हुए अपनी आँखो को नचाया जैसे पूछ रही हो क्यों कैसा लगा....मेरे चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गयी......उसकी समझ में आ गया......
मेरी आँखे मेरे मज़े को बयान कर रही थी......नीचे झुक मेरे होंठों को चूमते, मेरी कानो में सरगोशी करते बोली......ऐसे होता है ये खेल......मेरे लिए ये सब अंजना सा था....शाब्बो का ये एकदम नया अंदाज था......कुछ पल तक हम ऐसे हे गहरी साँसे लेते रहे.....मेरे चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट और शर्म की लाली फैली हुई थी..... मैने पुछा .....आगे .....शबनम ने फिर से मेरी दोनो चूंची यों को दबोच लिया और बोली.....ही साली तूने आज मेरी आग भड़का दी.....अब पूरा खेल खेलेंगे......कहते हुए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठों और गालो को चूमने चाटने लगी....मुझे फिर से मज़ा आने लगा....और मैं भी उकसा साथ देने लगी......हम दोनो आपस में एक दूसरे से लिपट गये....
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