Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
01-12-2019, 02:33 PM,
RE: Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
राजेश (आगे से राज ) और कविता (आगे से कवि) दोनो एक दूसरे में खो चुके थे…कवि की आँखें बंद हो चुकी थी …उसकी सांसो की रफ़्तार तेज हो चुकी थी…….उसके निपल धीरे धीरे सख़्त होते जा रहे थे और उसके हाथ खुद ब खुद राज की पीठ पे जा उसे सहला रहे थे……दोनो धीरे धीरे सरकते हुए बिस्तर की तरफ बढ़ रहे थे ……..और इस बीच उनका चुंबन बिल्कुल नही टूटा……कवि के जिस्म से निकलती भीनी भीनी खुश्बू राज को मदहोश करती जा रही थी …और चुंबन से जनम लेती भावनात्मक तरंगे कवि को बेचैन करती जा रही थी…….

दोनो बिस्तर पे एक दूसरे को चूमते हुए बैठ भी गये और उन्हें पता भी ना चला………

कवि धीरे धीरे पीछे होने लगी और राज उसे चूमता हुआ उसके साथ ही उसपे झुकता चला गया …..कवि ने राज के बालों को सहलाना शुरू कर दिया ….और उसे अपने होंठों की मदिरा पिलाती चली गयी ….यहाँ तक की दोनो को साँस लेना मुश्किल हो गया था पर फिर भी उनका चुंबन नही टूटा…जब राज के हाथ सरकते हुए बाथरोब में घुस्स कवि के पेट को सहलाने लगे …तो कवि ये झटका सह ना सकी और अपने होंठ अलग कर हाँफती हुई सिसकने लगी…आह…आह…अह्ह्ह्ह….राज…..अहह

राज…..कवि के गले को चूमते हुए बोला……आइ लव यू जान
कवि …ओह राज मी टू डार्लिंग……और सख्ती के साथ राज से चिपक गयी…
कवि की गर्दन को चूमते हुए राज ने उसके कंधों से टवल हटा दिया और अपने होंठ उसके कंधों पे रगड़ने लगा …….माहह आअहह 

राज…..उफफफफ्फ़ मुझे कुछ हो रहा है….

राज….होने दो आज जो भी होता है……

कवि…..अहह अहह उम्म्म्मम

राज के चुंबन कवि के जिस्म में थल्थलि मचा रहे थे ….आग और फूस एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे……कामग्नि की जवाला भड़क रही थी …..काम और रति की प्रणय लीला अपना रूप ले रही थी ……

राज ने कवि के बाथरोब की डॉरी खोल दी 

कवि ने शर्मा के चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया और राज उसके मदमाते जिस्म को देख और भी नशे में उतारता चला गया......उसने फटाफट अपने कपड़े उतार डाले और सिर्फ़ अंडरवेर में रह गया जिसमे उसका लंड इतना सख़्त हो चुका था कि बस अंडरवेर के क्वालिटी ने उसे बचा रखा था वरना कब का फट गया होता.

दिल थामे अपनी धड़कनो पे काबू रखने की कोशिश करते हुए कवि आने वाले पलों का इंतेज़ार कर रही थी....आज वो मन से चाहती थी कि उसका और राज का मिलन पूरा हो जाए...उसकी रूह राज की रूह से मिलने को बेचैन हो रही थी ...और रूहों का संगम तो जिस्म के संगम से ही बनता है......

कवि तिरछी नज़रों से बार बार राज के अंडरवेर के फूले हुए भाग को देखती और अनुमान लगाती कितना बड़ा और मोटा होगा ...कैसे जाएगा ये उसके अंदर ....फिर अपनी सोच पे शरमा जाती.......

अपने कपड़े उतारने के बाद राज ने उसकी नाभि को चूमना शुरू किया ..कभी ज़ुबान उसकी नाभि में घुसाता तो कवि की सिसकी निकल पड़ती .....जिस्म में गुदगुदी के अहसास के साथ कभी ना महसूस की हुई तरंगों के तालमेल ने उसे बलखाने पे मजबूर कर दिया ....अपने गर्दन तकिये पे इधर से उधर करती और अपने जिस्म को लोच देने लगती ......

राज ने जब उसकी नाभि को मुँह में भर चूसना शुरू किया तो तड़प उठी कवि .....ऊऊऊ उूउउइई म्म्म्मा आ ज़ोर से सिसक पड़ी और जिस्म कमान की तरहा उठता चला गया .....राज ने उसे वापस बिस्तर पे गिरने ना दिया और उसे अपनी बाँहों में थाम लिया .....

ओह राज्ज्जज्ज्ज ओह माआ अहह हहाऐईयईईईईईईईईई

कवि ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी ...उसकी नाभि से उसकी चूत तक एक जवरभाटा फैल गया.......चूत में ऐसी हलचल मची के उस अहसास को महसूस कर वो बोखला गयी.....

उफफफफफफफफफ्फ़ र्र्र्ररराआआजजजज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज अहह अकड़ गया उसका जिस्म और जल बिन मछली की तरहा तड़प्ते हुए झड़ने लगी.......उसके चूत से निकलता सारा रस बेचारा बाथरोब अपने अंदर सोखता रहा और कुछ पलों बाद कवि का जिस्म निढाल हो राज की बाँहों में झूल गया

राज ने कवि को धीरे से बिस्तर पे लिटा दिया ...जो अपनी आँखें बंद रख अपने अदभुत आनंद की दुनिया में खो चुकी थी....राज उसे यूँ ही निहारता रहा ...जब कवि ने आँखें खोली और राज को यूँ निहारते हुए पाया तो शरमा के मुँह दूसरी तरफ कर लिया......

राज....नही जान आज तो मुँह ना फेरो ....और उसके चेहरे को अपनी तरफ कर अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिए....धीरे धीरे राज कवि के जिस्म पे छा गया...और दोनो का गहरा चुंबन शुरू हो गया...कवि राज को अपने होंठ पिलाती हुई कभी उसके सर पे हाथ फेरती तो कभी उसके गाल सहलाती.......

दोनो एक दूसरे में खो गये ...राज कभी कवि का निचला होंठ चूस्ता तो कभी उपरवाला...कवि भी उसका पूरा साथ दे रही थी ...वो भी राज के होंठों को चूसने में लग गयी थी...

दोनो की ज़ुबान एक दूसरे से मिल रही थी...जैसे एक दूसरे का हाल पूछ रही हों.....और अपनी प्यास से पहचान करा रही हों.....कभी राज की ज़ुबान कवि के मुँह में घुस जाती और उसका पीछा करते हुए कवि की ज़ुबान राज के मुँह में घुस जाती ....दोनो एक दूसरे के ज़ुबान चूसने लग जाते और अपने अनोखे आनंद की दुनिया में खोए रहते.
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