Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:18 PM,
#21
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
क्या यार निर्मला,,,,,, एक औरत हो करके औरत से औरत वाली बात करने पर तुम्हें शर्म महसूस हो रही है जाओ तो मैं भी तुम्हें कुछ नहीं बताती,,,,,,

यार शीतल ऐसी बात नहीं है,,, लेकिन मैंने कभी भी ऐसी बातें नहीं की और ना ही किसी के सामने ऐसे शब्दों का प्रयोग की हूं। इसलिए मुझे शर्म सी आ रही है।

यार सच में कमाल हो,,,, यह जरूरी तो नहीं कि तुम हमेशा ऐसी बातें करने से कतराती रहो,,,, एक न एक दिन तो सबको पहली बार ही करना होता है। अब मैं भी तुम्हारी तरह शर्माती तो क्या तुम्हें यह सब बातें बताती,,,, तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो इसलिए मैं तुमसे ऐसी बातें करती हूं वरना मैंने आज तक किसी से भी अपने बारे में या ऐसी बातें कभी नहीं की।,,,,,,,,,, ( शीतल बातें जरूर निर्मला से कर रही थी लेकिन उसकी नजर बार बार गाड़ी में बैठे शुभम पर चली जा रही थी। शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,,)

अच्छा चलो बताओ किसके बदले मे बैगन का उपयोग करने के लिए मैं बता रही हूं।
( शीतल की बात सुनकर फिर से निर्मला शर्मा कर इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगी और फिर से ऊसे नजरें चुराते हुए देखकर शीतल जोर से बोली,,,,,)

बोलो जल्दी,,,,,,,,

( शीतल की आवाज सुनकर एकाएक निर्मला के मुंह से निकल गया।)

ललल,,,, लंड,,,,,
( निर्मला के मुंह से इतना निकलना था कि शीतल मुस्कुराने लगी लेकिन निर्मला का हाल बुरा हो रहा था वह एकदम से शर्मा गई बल्कि शर्म के मारे वह शीतल के सामने गड़ी जा रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके मुंह से आखिर यह शब्द कैसे निकल गया लेकिन उसके बदन में डर के साथ साथ उन्माद की तरंगे भी लहराने लगी। "लंड" शब्द बोलकर उसे अजीब के सुख की अनुभूति हो रही थी जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। वहीं दूसरी तरफ से चल बड़ी खुश नजर आ रही थी और खुश होते हुए वह बोली।)

हां अब आए ना लाइन पे,,,,,,,, शर्माओगी तो जिंदगी का मजा नहीं ले पाओगी,,,,,,,, चलो यह तो बता दीे की किस के बदले बैगन का उपयोग किया जाता है। ऊसके आकार और ऊसकी लंबाई चौड़ाई और उसकी मोटाई से तो तुम अच्छी तरह से वाकिफ हो,,,,, बैगन देखने में एकदम किस की तरह लगता है यह भी बता दो,,,,,, देखो शर्माना मत।

लंड की तरह,,,,,( इस बार भी वह झट से बोल दी,,, शीतल मुस्कुरा रही थी। क्योंकि वह भी पहली बार ही निर्मला के मुंह से इतने अश्लील शब्द सुन रही थी। निर्मला की बात सुनकर शीतल बोली।)

लंड की तरह तो होता ही है लेकिन उससे भी ज्यादा भयंकर होता है।,,, अगर एक अच्छा खासा बैगन मिल जाए तो उसके आगे आदमी का लंड उसकी अपेक्षा आधा और पतला ही होता है ।
निर्मला तुम तो अच्छी तरह से जानती हो और तुम सच-सच बताना बैगन के आगे तुम्हारे पति का लंड छोटा ओर पतला नहीं लगता,,,,,,,
( शीतल इतना कहकर निर्मला की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी और शीतल की बात सुनकर निर्मला सोच में पड़ गई उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस सवाल का जवाब दे या ना दे लेकिन जो बात शीतल कह रही थी वह बिल्कुल सच ही थी। वास्तव में जिस बैगन को वह अपने घर पर लेकर गई थी उस बैगन की अपेक्षा उसके पति का लंड छोटा ही था। यह सब उसके दिमाग में चल ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि वह अपने बेटे के लंड को भी देख चुकी है जिसकी लंबाई चौड़ाई मोटाई बिल्कुल बैगन जैसी ही थी। अपने बेटे के हथियार के बारे में सोच कर उसकी आंखों में चमक आ गई,,,,, वहां शीतल से बताने के लिए अपना मुंह खोल ही थी कि उसके शब्द गले में ही अटक कर रहे गए। उसे जैसे कुछ याद आ गया हो,,, वह कुछ बोल ना सकी और उसे इस तरह से खामोश देखकर शीतल ने अपने सवाल दुबारा दोहराई तो वह बोली कुछ नहीं बल्कि हां में सिर हिला दी। )

मैं जानती थी तुम्हारा जवाब यही होगा निर्मला क्योंकि बेगन के आगे तो मेरे पति का भी लंड छोटा ही है। और यह बात सभी औरतों को अच्छी तरह से मालूम है।

अच्छा यह बताओ निर्मला,,, कि अपने पति के लंड,,, जो की बेगन से आधा और पतला ही होता है उस से चुदने में तुम्हें मजा आता है ना,,,,,, बोलो,,,,,

(शीतल के ईस बात पर निर्मला फिर से सक पका गई,,,, उसके लिए फिर से इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा था लेकिन फिर भी बताना तो था ही,,,, इसलिए वह बोली।)

हां मजा तो आता ही है,,,,,,,


तो सोचो निर्मला जब बैगन से भी आधे और पतले लंड से चुदने मे ईतना मजा मिलता है,,,, तो जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर मे घुसेगा तो औरत को कीतना मजा मिलेगा,,,,,

( शीतल की यह कामुक बात सुनते ही ऊत्तेजना के मारे निर्मला की सांस ऊपर नीचे हो गई ऊसकी बुर से तुरंत मदन रस की बुंद टपक गई।
03-31-2020, 03:18 PM,
#22
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शीतल की बात सुनकर निर्मला की हालत खराब हुए जा रही थी। जब शीतल के मुंह से उसने यह बात सुनी कि जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर में घुसेगा तो कितना मजा देगा इस बात को सुनते ही,,,, निर्मला की रसीली बुर कुलबुलाने लगी और तुरंत उत्तेजना के मारे उसमें से मदन रस की बूंदे टपकने लगी जिससे निर्मला को बेहद ही अजीबो किस्म की सुख की अनुभूति हो रही थी। निर्मला शीतल की यह बात सुनकर क्या जवाब दे यह तो उसके समझ के भी बाहर था। शीतल उसे बहुत ही कामुक तरीके से बता रही थी। जिसे सुनकर निर्मला पल-पल उत्तेजना की खाई में उतरती ही जा रही थी।,,,, बात को आगे बढ़ाते हुए शीतल बोली।

सच निर्मला जब मैं पहली बार इस तरह की हरकत की थी तो मैं तो खुशी से झूम ही उठी थी। अब मैं तुझसे कुछ नहीं छुपाऊंगी,,,, वह क्या है कि एक ही लंड से बार बार चुदने पर इतना मजा नहीं आता और तो और जैसे-जैसे हम मैच्योर होते जाते हैं,,, अपने हम उम्र की औरतों की प्यास और भी ज्यादा बढ़ने लगती है और उस प्यास को बुझाने के लिए,,,, मोटा ताजा और जवान लंड की जरूरत होती है। लेकिन इस उम्र में तो पति का लंड ऊतना मजा नहीं दे पाता है जितना कि जवानी के दिनों में देता था। और तो और उसकी लंबाई चौड़ाई भी अपनी प्यास के मुताबिक और कम लगने लगती है। सच कहूं तो मुझे अपने पति से चुदने ऊतना में मजा नहीं आता जितना मजा मुझे बैंगन मूली और केले से मिल जाता है। ( शीतल की खुली बातें सुनकर तो निर्मला की हालत और खराब होने लगी उसकी सांसे तेज चलने लगी उसका चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल होने लगा। वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि कोई सब्जी और फलों के सहारे से भी अपनी प्यास बुझा सकता है। शीतल भी ये सब करती होगी इस बात पर ऊसे विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ वह बता रही थी इससे बिल्कुल साफ था कि शीतल भी एेसा जरुर करती होगी तभी तो उसे इसके उपयोग के बारे में इतनी बारीकी से मालूम है। शीतल को भी बताते बताते उत्तेजना का अनुभव होने लगा था उसका भी चेहरा सुर्ख लाल हो रहा था। निर्मला को तो कल के बारे में जानना था कि वह बैगन का उपयोग सच में करी थी कि नहीं,,,,, वह सीधे सीधे खुलकर तो पूछ नहीं सकती थी क्योंकि उसे ऐसा करने में अभी भी शर्म महसूस हो रही थी। इसलिए एक बहाने से बात को घुमाते घुमाते बोली,,,,,,

शीतल कल रात भर जागकर क्या करी? ( निर्मला हिचकीचाते हुए बोली,,,, निर्मला की बात सुनकर शीतल मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली।।)

अरे वही तो बता रही हूं कल वैसे भी मुझे मस्ती चढ़ी हुई थी।
अब अपनी प्यास बुझाने के लिए जवान लंड कहां से लाऊ,,,,,, मिल तो जाए लेकिन बदनामी का डर बना रहता है। और जवान लंड घर में ही पर उपलब्ध होता तोउस का भरपूर उपयोग करती,,,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह कुछ देर खामोश रहकर गाड़ी की तरफ इशारा करते हुए) निर्मला तुम्हारे पास तो जवान लंड उपलब्ध है,,,,, तुम तो उसका पूरा फायदा उठा सकती हो,,,,,, तड़पना तो हम जैसी औरतों के ही किस्मत में है। ( शीतल बात बात में बहुत बड़ी बात कह गई थी लेकिन इस समय उत्तेजना के असर की वजह से निर्मला ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दी और शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,) हां तो में यह कह रही थी कि मेरे बदन में चुदाई की आग भड़की हुई थी और ऐसे में मेरे पति घर पर नहीं थे और घर पर होते भी तो शायद ऊनकी चुदाई से मेरी प्यास बुझने वाली नहीं थी,,,, इसलिए मैं रात को सोने से पहले एक अच्छा मोटा और तगड़ा जिसकी लंबाई लंड से दो गुनी थी,,,, उसे पानी से साफ करके अपने साथ कमरे में ले गई। सच कहूं तो निर्मला उस बैगन को हाथ में लेते ही मेरी बुर कुलबुलाने लगी थी। कमरे में जाते ही मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर एक दम नंगी हो गई और उस बैगन पर जो की कुछ ज्यादा ही मोटा था उस पर नारियल का तेल लगा कर उसे चिकना कर दी,,,,,( शीतल की बातें सुनकर तो निर्मला कि सांसे ऊपर नीचे हुए जा रही थी । उसकी पैंटी बुर के मदन रस की वजह से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसके गीलेपन का एहसास उसे अच्छी तरह हो रहा था लेकिन वह जानबूझकर अपना हाथ जांघों के बीच नहीं ले जा रही थी। शीतल अपनी बात बताते हुए निर्मला को और भी ज्यादा उत्तेजित किए जा रही थी।)
अब क्या था मैं तो पूरी नंगी हो कर के अपने बिस्तर पर लेट गई। मेरे बदन में कितनी ज्यादा उत्तेजना फैली हुई थी कि मेरी सांसे ऊपर नीचे चल रही थी। मेरी सांसो के साथ साथ मेरी ये ( अपनी छातियों की तरफ देखते हुए) बड़ी बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी,,,, जिसे देख कर मेरी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ने लगी और मैं तुरंत अपनें एक हाथ से अपनी चूची को पकड़कर दबाने लगीे और एक हाथ में बैगन को ले करके उसे अपनी बुर पर रगड़ने लगी। ( शीतल कि यह गरम और उत्तेजक बातें सुनकर निर्मला का गला सूखने लगा था उसे पेट ठीक से थुक भी नहीं निगला जा रहा था। ) सच कहूं तो निर्मला मुझे सिर्फ बैगन को रगड़ने मात्र से ही ईतना आनंद मिल रहा था तो सोचो जब मैं उसे अपनी बुर में डाल ती तो कितना मजा मिलता। ( शीतल की बात करते तो निर्मला के होश उड़ चुके थे वहां आश्चर्यचकित होते हुए बोली।)

सच शीतल,,,,,

हां यार मैं बिलकुल सच कह रही हूं जब मैं उसे धीरे धीरे अपनी बुर में डालने लगी तो मेरा बदन उत्तेजना के मारे ऐसा लग रहा था कि हवा में उड़ रहा हो,,,,, मैं बैगन को जितना हो सकता था उतना अपनी बुर में डाल दी,, मेरी बुर में बैगन पूरी तरह से समाने के बाद भी 5 इंच बाहर ही था। ( यह सुनकर केतु निर्मला के होश ही उड़ गए उसे यकीन नहीं आ रहा था कि शीतलने सचमुच ऐसा कारनामा कर दी है। लेकिन उसकी बात कर पर निर्मला को यकीन करना ही पड़ा क्योंकि उसे मालूम था कि वह इस मामले में बिल्कुल भी झूठ नहीं बोल रही थी। )
निर्मला एक बार बैगन पूरी तरह से मेरी बुर में घुसा तो मैं उसे अंदर बाहर करते हुएे अपने मन में कल्पना करने लगी कि कोई मुझे चोद रहा है जिसका लंड मोटा और लंबा है। सच कहूं तो निर्मला मुझे बहुत मजा आया,,,, और मैं रात भर लगभग पांच छ: बार झड़ी,,,,, बस एक बात का मलाल हमेशा रह जाता है।

कौन सी बात,, ? ( निर्मला गले मे थुक निगलते हुए बोली।)

अरे यार यही कि काश ऐसा कोई मर्द होता है,,, जिसका बैगन जितना ही लंबा तगड़ा लंड होता,,,, जो मेरी बुर में अपना लंड डालकर मुझे चोदकर मेरी प्यास बुझाता।
( निर्मला तो शीतल की ऐसी गंदी और खुद ही बातें सुनकर एकदम से बेहाल हुए जा रहीे थी,,,, शीतल की यह बात सुनकर निर्मला को तुरंत उसके बेटे की याद आ गई क्योंकि जिस तरह के लंड के साइज की वह बात कर रही थी वैसा ही बेगन जैसा लंड शुभम का था। शुभम की याद आते ही निर्मला की आंखों में चमक आ गई एक पल को तो उसे ऐसा लगा की वह शीतल को अपनी बेटे के हथियार के बारे में बता दें लेकिन ऐसा कहना उसे उचित नहीं लगा तो वह खामोश ही रह गई। हां लेकिन शीतल के मुंह से अपनी दिली ख्वाहिश को जानकर यह ख्वाहिश निर्मला के मन में भी जगने लगी,,,, जिन शब्दों में शीतल ने बैगन की उपयोगिता को बताई थी वह सुनकर निर्मला का भी मन डोलने लगा,,,, उसे भी याद आ गया कि वह भी मार्केट से लंबे मोटे बेगन को खरीदकर फ्रीज में रखी हुई है। दोनों का चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था फिर दोनों को वहां खड़े खड़े बातें करते काफी टाइम भी हो गया था। शीतल अपनी कलाई में बड़ी घड़ी की तरफ देखते हुए बोली।


काफी समय हो गया निर्मला अब हमें चलना चाहिए,,,,,
( शीतल की बात सुनकर निर्मला ने भी अपनी कलाई मे बंधी घड़ी की तरफ देखी और फिर अपनी गाड़ी की तरफ जिसमें शुभम बैठा हुआ था और बोली।)

हां समय तो काफी हो गया है,,,,,,,,,,,, ठीक है अच्छा मैं चलती हूं। ( इतना कहकर वह गाड़ी की तरफ कदम बढ़ाना ही वाली थी कि शीतल बोली,,,,,,)

निर्मला मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार बैगन जरूर ट्राई करना फिर देखना तुम्हें कितना मज़ा आता है। ( इतना कहने के साथ ही वह गाड़ी की तरफ देखते हुए ) हां लेकिन तुम्हें बैंगन की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तुम्हारे घर में ही जवान लंड है। ( इतना कहने के साथ ही वह हंसने लगी और उसे हंसता हुआ देखकर और उसकी बात का मतलब समझ कर निर्मला बोली।)

धत्त,,,,,, कितनी गंदी हो तुम,,,,,,,
03-31-2020, 03:18 PM,
#23
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
गंदी नहीं बल्कि सच कह रही हूं एक बार जरूर ट्राई करना।
( इतना कहने के साथ ही वह चली गई और उसे जाते हुए निर्मला देखती रह गई क्योंकि शीतल जाते-जाते उसके दिमाग को और उसकी ख्वाहिशों को झकझोर कर रख,,,, दी थी। शीतल के जवान लंड का मतलब वह अच्छी तरह से समझती थी,,,, वह अभी भी वहीं खड़ी थी यह देखकर शुभम गाड़ी में से ही अपनी मां को आवाज लगाते हुए बोला।)

मम्मी अब वहां धूप में क्यों खड़ी हो शीतल मैडम चली गई।

( शुभम की आवाज सुनकर जैसे उसका ध्यान तो उठा हो और वह गाड़ी की तरफ जाने लगी,,,,, रास्ते भर उसने शुभम से बिल्कुल भी बात नहीं की के दिमाग में बस शीतल की बातें ही चल रही थी उसने अपनी पैंटी को पूरी तरह से गीली कर ली थी। शुभम अपनी मां से यह जरुर पूछा की वह शीतल मैडम से इतनी देर तक क्या बातें कर रही थी तो वहां पर पढ़ाई के ही सिलसिले की बात करके असली बात को टाल गई,,,,, लेकिन शुभम एक बात पर जरूर ध्यान दे रहा था कि उसकी मां का हाथ बार बार उसकी जांघो के बीच गाड़ी चलाते समय भी चला जा रहा था और कुछ देर तक वहां के बीच वाले अंग को खुजला ले रही थी । और उस जगह पर अपनी मां को खुजलाते हुए देखकर उसके मन में उत्तेजना के साथ साथ उत्सुकता भी बढ़ती जा रही थी। शुभम के मन में जांगो के बीच वाली जगह को लेकर उत्सुकता ज्यादा थी,,,,
क्योंकि आज तक उसने किसी भी लड़की या औरत को नंगी नहीं देखा था तो उनके नाजुक अंगों के बारे में उनके आकार के बारे में शुभम को कुछ भी नहीं मालूम था और ना ही वह कल्पना में उन अंगों के आकारों के बारे में सोच सकता था। इसलिए अब उसके मन में पूनम को को देखने और जानने की जिज्ञासा पनपने लगी थी।
इसलिए वह बड़े गौर से अपनी मां को गाड़ी चलाते हुए देख रहा था और बार-बार उसके हाथ जो की गीली पैंटी को एडजस्ट करने और बुर को खुजलाने के लिए जांगो के बीच जा रहा था उसे वह बड़े ध्यान से देख रहा था और ऊस नजारे को देखकर उत्तेजित भी हुआ जा रहा था। निर्मला भी गाड़ी चलाते समय शीतल की बातों को याद करके उत्तेजित हुए जा रही थी,,, और बार-बार बैंगन की तुलना अपने बेटे के मोटे और तगडे लंड से किए जा रही थी। शीतल जोकि लंबे और मोटे बिल्कुल बैगन जैसे लंड से चुदाना चाहती थी,,, ठीक है वैसा ही लंड तो उसके बेटे शुभम कहां है बार-बार यही बात निर्मला के मन में आ रही थी। निर्मला को शीतल की यह बात भी बार-बार याद आ रही थी कि जब औरतों को छोटे लंड से चुदने में इतना मजा आता है तो सोचो लंड से भी लंबा और उससे भी डबल मोटाई वाले बेगन से कितना मजा आता होगा। यह बात बार-बार याद करके निर्मला की बुर गिली हुई जा रही थी। क्योंकि उसने तो आज तक बस अपने पति के ही लंड से चुदते आई थी जो की बेगन से भी आधे और एकदम पतला था। फिर भी वह तड़पती थी अपने पति से चुदने के लिए उसके लंड को अपनी बुर में लेने के लिए।
तो वह भी यही सोच रही थी कि अगर छोटे और पतले लंड से उसे इतना मजा आता है तो अगर वह लंड की जगह मोटे तगड़े बैगन को अपनी बुर में डालें तो उसे कितना मजा आएगा,,,,, निर्मला गाड़ी चलाते हुए पीतल की कही हुई बातों को याद करके अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी तभी उसे शीतल कि वह बात याद आ गई जवान लंड वाली जो की उसका इशारा शुभम की तरफ ही था,,,, शीतल का मतलब बिल्कुल साफ था वह ईशारों ही ईशारों में उसे अपने ही बेटे के लंड से चुदने के लिए बोल रही थी,,,,,। शीतल तो जवान लंड के लिए शुभम की तरफ इशारा की थी लेकिन यह बाद उसे बिल्कुल नहीं मालूम था कि शुभम के पास जवान लंड तो था ही साथ ही साथ उसकी लंबाई और मोटाई बिल्कुल बैगन की ही तरह थी,,,, जिस तरह से वह अपनी दिली ख्वाहिश निर्मला को बता रही थी कि वह मोटे तगड़े बैगन जैसे लंड से चुदना चाहती है तो अगर उसे इस बात की थोड़ी सी भी भनक लग जाए की शुभम का लंड वैसा ही है जैसा कि वह कल्पना करती है तो शायद वह शुभम से भी चुदवा ले। शीतल को शुभम से चुदवाने की कल्पना ही निर्मला को उत्तेजित किए जा रही थी। और जिस तरह से वह बता रही थी कि लंबे लंड से और ज्यादा मजा मिलता है तो निर्मला भी कल्पना में ही अपने बेटे से चुदवाने और उसके मोटे लंड को अपनी बुर में लेने का ख्वाब गाड़ी चलाते-चलाते मन में ही सोचने लगी।,,,, लेकिन जल्द ही उसे इस बात का आभास हो गया कि जिस बारे में वह कल्पना कर रही है वह ठीक नहीं है। दूसरी तरफ शुभम लगातार अपनी मां को ही,,,,,, देखे जा रहा था,,,, अपनी मां के भजन के बारे में सोच-सोच कर ही उसके अंदर प्रचंड कामोत्तेजना की अनुभूति हो रही थी। वह तो सिर्फ अभी अपनी मां को कपड़ों में ही देखा था तो उसका यह हाल था अगर वह अपनी मां को संपूर्ण नग्नावस्था में देख लो तो ना जाने उसका क्या हाल होगा।
दोनों के मन में एक दूसरे के बदन को लेकर के ढेर सारी भावनाएं उत्पन्न हो रही थी कि तभी घर आ गया।


दोनों मां बेटे एक दूसरे के बदन और अंगों के प्रति आकर्षित हुए जा रहे थे।
03-31-2020, 03:18 PM,
#24
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
घर पर पहुंचकर शुभम तो अपने कमरे में चला गया लेकिन निर्मला के लिए तो कहीं भी चैन नहीं था। शीतल की बातों ने उसके बदन में कामाग्नि को पूरी तरह से भड़का चुकी थी।
अपने ही काम रस में वह अपनी पैंटी को गीली कर ली थी।
बार बार उसे शीतल की कही हुई वह बहुत याद आ रहे थेी जब वह उसके बेटे की तरफ देख कर उसे जवान लंड की तरफ इशारा कर रही थी। निर्मला अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह इशारे इशारे में क्या कहना चाह रहीे थीे उसका सारा बिल्कुल साफ था। एक तरह से वह निर्मला को अपने ही बेटे के साथ संबंध बनाने के लिए उकसा रहीे थी। जोकि निर्मला के लिए बिल्कुल भी संभव नहीं था। निर्मला के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे यह सवाल भी बार-बार उसके मन में आ रहा था कि शीतल अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम उसका बेटा है तो वह कैसे कह दी की निर्मला को बैगन की जरूरत नहीं है उसके तो घर में ही जवान लंड है। तो क्या शीतल को इस बात से कभी एतराज नहीं होता कि एक मां और बेटे के बीच शारीरिक संबंध के साथ नाजायज संबंध है।
जाओ उसे इस तरह के पारिवारिक रिश्ते पर कोई भी एतराज नहीं है। यही सब सोच-सोच कर वहां शीतल के ख्यालात के प्रति हैरान हुए जा रही थी। इन सभी ख्यालों ने उसके बदन में चुदासपन की गजब की लहर चला दी थी। निर्मला की बुर में आग लगी हुई थी। उसे अपनी बुर में लंड लेने की प्यास बड़ी तेजी से लगी हुई थी। वह मन ही मन अपनी किस्मत को इस बात से कोसने लगी,,,,, की औरतें भी अपनी प्यास बुझा लेती है जो की खूबसूरत नहीं होती,,,, लेकिन फिर भी वह अपनी बुर की प्यास किसी भी लंड से बुझा लेती हैं और लोग तैयार भी रहते हैं उन्हें चोदने के लिए,,,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी वह प्यासी रह जा रही थी। उस की रसीली बुर एक लंड के लिए तरस जा रहीे थी। लेकिन वह यह भी जानती थी कि अपने बदन की प्यास वह खुद भी बुझा सकती है। पति न सही कोई और ही सही,,,, लेकिन इसके लिए उसे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती। उसके एक इशारे की देरी थी इशारा मिलते ही ना जाने कीतने लोग थे जो कि उसकी प्यास बुझाने के लिए तैयार खड़े थे। लेकिन ऐसे कामों के लिए उस के संस्कार और उसकी परवरिश गवाही नहीं दे रही थी। और इसी बात के लिए अपने संस्कार की वजह से वह अपने आप को कोसे जा रही थी।
निर्मला से अपने बदन की आग बिल्कुल भी सही नहीं जा रही थी। उसे तुरंत फ्रिज में रखे हुए बैगन याद आ गए।
वह जाकर तुरंत फ्रिज खोली और उसमें रखे हुए बेगन को
अपने हाथ से टटोलने लगी,,, बैगन को टटोलते समय उसके बदन में अजीब सा उन्माद जग रहा था। उसने मार्केट से बड़े बड़े लंबे और मोटे बैगन ही पसंद करके लाई थी,,, जिसे वह अपनी हथेली में पकड़ते समय ऐसा महसूस कर रही थी कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए हैं। वह फ्रिज में से एक बैंगन बाहर निकाल ली,, और ऊस बैगन को अपनी हथेली में कस के पकड़ ली जैसे कि किसी लंड को पकड़ा जाता है। निर्मला के बदन में तुरंत उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा,,,,, रसोई घर में थी लेकिन बार-बार दरवाजे पर देख ले रहीे थीे कि कहीं शुभम ना आ जाए। निर्मला दरवाजे पर नजर गड़ाए हुए ही,, उस बैगन पर अपनी हथेली को इस तरह से आगे पीछे करने लगी कि जैसे किसी लंड को मुठीया रही हो,,,, निर्मला की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुकी थी बार-बार उसका एक हाथ गीली बुर पर चली जा रही थी,, जो ती ऊसके कामरस से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।
उसके हाथ में पकड़ा हुआ बेगन उसे लंड की तरह लग रहा था। जिसे देख कर और महसूस करके उसकी बुर में और भी ज्यादा खुजली होने लगी थी। काम ने उसके दिमाग और उसके बदन पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था।
मौका और जरूरत दोनों निर्मला के पक्ष में थे । बार बार उसे शीतल की वह बात याद आ रही थी जो कि उसे एक बार बैगन को ट्राई करने के लिए कहीे थी।
कामांध हो करके वह एक हाथ से साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर को सहला रही थी जिससे उसके बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी,,,,, क्योंकि ऐसा करने पर उसे उसके बेटे का टनटनाया हुआ लंड याद आ रहा था। और ऊसके हांथ मे पकड़ा हुआ बैगन ऊसे ऊसके बेटे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। शीतल ने उसे बताई थी कि मोटे लंड से चुदवाने में बहुत मजा आता है लेकिन उसका अनुभव निर्मला को बिल्कुल भी नहीं था। क्योंकि वह तो आज तक सिर्फ अपने पति से ही चुदते आई थी। इसलिए उसके मन में लंबे लंड के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसके लिए यह अगन अब ज्यादा देर तक सहन कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था वैसे तो वह काम की पीड़ा में ना जाने कितने वर्षों से तड़पती आ रही थी । लेकिन जिस प्रकार की प्यास आज उसके बदन में उठी थी ऐसी प्यास ईससे पहले कभी भी नहीं ऊठी। रसोई घर का दरवाजा खुला हुआ था जिस पर उसकी नजर बार बार चली जा रही थी और उसका एक हांथ बुर को साड़ी के ऊपर से सहलाने मे लगा हुआ था और दूसरे हाथ में बैगन था जिस पर उसकी नाजुक उंगलियां इस प्रकार से चल रही थी जैसे कि उसके हाथ में बैगन ना हो एक तगड़ा मोटा लंड हो। काम की प्यास अक्सर इंसान की सोचने समझने की शक्ति को क्षीण कर देती है वैसा ही कुछ निर्मला के साथ भी हो रहा था। निर्मला बेहद पढ़ी-लिखी और संस्कारी थी लेकिन काम की प्यासी थी जो कि एक टीचर होने के बावजूद भी उसे काम की प्यास इस तरह की हरकत करने पर मजबूर कर दे रही थी। हाथ में बैगन लिए हुए उसके मन में शीतल की कही बातें घूम रही थी जिससे उसने भी उसकी बात रखते हुए मन में ही सोची की एक बार बेगन को ट्राई कर लेने में क्या हर्ज है ऐसा सोच कर वह तुरंत रसोई घर का दरवाजा बंद कर दी,,, वहं उस बैगन को थोड़ा चिकना करना चाहती थी इसलिए रसोईघर मैं ही उसे सरसों का तेल मिल गया जिसकी दो चार बूंदे लेकर के वह बैगन पर लगाने लगी ताकि वह एकदम चिकना हो जाए,,,, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि बैगन के आगे वाला भाग की मोटाई लंड के सुपारे से दुगुना था,,, जोकि आसानी से ऊसकी बुर में घुसने वाला नहीं था।
वह सरसों का तेल लगाकर बैगन को एकदम चिकना कर ली थी। उत्सुकता और उत्तेजना की वजह से उसकी हालत खराब हुए जा रही थी। वह सोच-सोच कर कामोत्तेजित हुए जा रही थी कि बैगन से उसे किस तरह का आनंद प्राप्त. होगा,,,, घर में केवल सुभम ही ं था जो कि अपने कमरे में बैठा हुआ था,,,, कमरे में ज्यादा देर बैठने की वजह से उसे प्यास लग रही थी ।

रसोईघर में निर्मला शीतल की ट्राई करने वाली बात को साक्षात्कार करने के लिए अपने प्यार के वशीभूत होकर के बेगन को ट्राई करने जा रही थी। निर्मला के दिल की धड़कन तेज चल रही थी पंखा चालू होने के बावजूद भी उसके माथे से पसीना टपक रहा था। वह दीवार का सहारा ले कर के खड़े खड़े ही अपनी साड़ी को धीरे धीरे कर के ऊपर की तरफ उठाने लगी,,, उसकी दूधिया गोरी टांगे ट्यूबलाइट के उजाले में और भी ज्यादा चमक रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी,,, कमर तक साड़ी के उठते ही उसकी गीली पैंटी नजर आने लगी जिसे वह थोड़ा सा झुक कर देख रही थी इस तरह से देखने पर ही उसे पता चला कि उसकी पैंटी किस कदर गीली हो चुकी है। अपनी पैंटी का गीलापन देख कर उसे अपनी हालत का अंदाजा लग गया और वह अपनी हालत पर हल्के से मुस्कुरा दी। आने वाले पल के बारे में सोच सोच कर उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसने धीरे से अपनी पैंटी को एक ही हाथ से नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,,, अगले ही पल उसकी पैंटी उसकी जांघों के नीचे घुटनो में जा फसी थी।
ऊफ्फ्फ्फ,,,,,, पेंटी को नीचे आते ही एक गजब का नजारा आंखों के सामने नजर आने लगा,,,, निर्मला की चिकनी बुर जिस पर बाल का एक रेशा तक नहीं था वह सिर्फ एक पतली सी लकीर के आकार में नजर आ रही थी। सोचने वाली और दंग कर देने वाली बात यह थी कि निर्मला की बुर जिस तरह से एक पतली लकीर के रूप में ही नजर आती थी,, ऐसी बुर स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से इस उम्र में जबकि वह एक बच्चे की मां भी थी,,,नही नजर आती। इसलिए तो निर्मला की बुर ओर ज्यादा रसीली हो जाती थी। इस बात से निर्मला बिल्कुल भी अनजान थे कि इस उम्र में जिस तरह कि उसकी बपर बस एक पतली लकीर के रूप में थी उसकी उम्र में किसी दूसरी औरतों कि इस तरह की चिकनी और रसीली बुर शायद ही होती हो बल्कि नहीं होती,,,,, वह तो बस झुककर और एक हाथ में बैगन को पकड़े हुए अपनीे बुर को देखे जा रही थी। अपनी ब** की हालत देखकर उसका हाथ कांप रहा था क्योंकि उसमें से अभी भी मदन रस का रीसाव बराबर हो रहा था,,,,,
03-31-2020, 03:18 PM,
#25
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
दूसरी तरफ कमरे में बैठे बैठे शुभम का गला जब सूखने लगे तो उससे प्यास बर्दाश्त नहीं हुई और वह अपने कमरे से बाहर आ गया पानी पीने के लिए,,,, जो कि उसे पानी पीने के लिए रसोई घर में ही आना था।
दूसरी तरफ निर्मला के बदन की प्यास बढ़ती जा रही थी और इसलिए वह बेगन को हाथ में पकड़े हुए उसके चिकने वाली भाग को अपनी बुर की दरार में हल्के से स्पर्श कराई ही थी की उसके मुंह से गर्म कुछ कारी निकल पड़ी है क्योंकि उसकी कल्पना में वह बैगन उसके बेटे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। उत्तेजना का अनुभव करते हुए उसकी आंखें मस्ती में मुद गई,,,, वह बैंगन के आगे वाले भाग को अपनी बूर पर रगड़ रही थी जिससे उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी। वह अपनी बुर की दरार में बैगन को रगड़ते हुए सिसकारी ले रही थी।


सससससहहहहहह,,,,, आहहहहहह,,,,,, ऊईईईईई,,,,,, मांअ्अ्अ,,,,,,,,

निर्मला के बदन मे चुदास की लहर पूरी तरह से फैलने लगी थी। अपनी इस हरकत की वजह से उसके बदन की प्यास और ज्यादा बढ़ रही थी। अब सिर्फ बुर की गुलाबी पत्तियों पर बैगन रगड़ने से ऊसकी प्यास बुझने वाली नहीं थी वह भी चाहती थी कि वह बेगन को अपनी बुर में प्रवेश कराएं,,,,
बैगन की मोटाई कुछ ज्यादा थी लेकिन जिस तरह से उसकी बुर मे चिकनाहट भर चुकी थी उसे देखते हुए थोडी सी मेहनत की जरूरत थी।

निर्मला अपनी प्यास बुझाने के लिए अगला कदम उठाते हुए
बैगन को धीरे धीरे करके वह अपनी गुलाबी बुर के छेद पर रख दी,,, गुलाबी छेद पर बैगन का स्पर्श होते ही निर्मला का पूरा बदन उत्तेजना में झनझना गया।

दूसरी तरफ शुभम पानी पीने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ता चला आ रहा था,,,, और निर्मला भी अपनी प्यास बुझाने के लिए पहली बार ऐसा कदम उठा रही थी। अगले ही पल निर्मला ने बैगन को गुलाबी छेद पर रखते हुए,,, ऊस छेद पर बैगन का दबाव बढ़ाने लगी,,,, बुर मे से रिसाव हो रहे मदन रस की चिकनाहट और बैगन पर लगाए हुए सरसों के तेल की चिकनाहट की वजह से बैगन की आगे वाला भाग हल्का सा बुर में प्रवेश करने लगा,,,, बैगन हल्का सा उसकी बुर में प्रवेश कर गया है ऐसा महसूस होते ही उसके चेहरे पर उत्तेजना और खुशी के भाव साफ साफ नजर आने लगे,,,,
उसे अजीब से लेकिन बेहद अत्यंत कामुकता का एहसास और आनंद आ रहा था जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। उसका बदन अजीब से सुख की अनुभूति करते हुए कसमसा रहा था। हल्के से बैगन के प्रवेश कराने मात्र से ही उसे शीतल की कही गई बात शत प्रतिशत सच. लगने लगी,,, इतने से ही उसे यकीन हो चला था कि मोटे और लंबे लंड से औरतों को बेहद मजा आता है।
रसोईघर का नजारा पूरी तरह से कामुकता से भरा हुआ था अगर यह नजारा कोई देख ले तो सच में देखने मात्र से ही उसका लंड पानी छोड़ दें। सच में यह नजारा बेहद चुदास से भरा हुआ था। रसोईघर में निर्मला अपने ही हाथों से अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।
और दूसरी तरफ शुभम इन बातों से बिल्कुल अंजान अपनी प्यास बुझाने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ रहा था। इस समय दोनों प्यासे थे फर्क सिर्फ इतना था कि शुभम की प्यास पानी से बचने वाली थी और उसकी मां की प्यास एक मोटे तगड़े लंड से बुझने वाली थी।

निर्मला बैगन पर और ज्यादा दबाव बढ़ा रही थी ताकि बैगन उसकी बुर में ज्यादा प्रवेश कर जाए। वह बैगन को बुर में और ज्यादा प्रवेश कराने के लिए जेसे ही बैगन पर दबाव बढ़ाई वैसे ही रसोई घर के बाहर टेबल पर रखा हुआ बर्तन शुभम के पैर की ठोकर की वजह से टेबल पर से नीचे गिर गया,,,, बर्तन गिरने की आवाज सुनते ही निर्मला की तो हालत खराब हो गई,,,, और उसके हाथ से हड़बड़ाहट में बैगन छूट कर नीचे गिर गया,,,, वह समझ गई थी कि शुभम रसोई घर की तरफ आ रहा है और उसने जल्दी-जल्दी अपने कपड़ों को दुरुस्त की। कपड़ों को दुरुस्त करते ही उसने सबसे पहले उस लंबे तगड़े बैगन को छुपा दी,,, और जाकर तुरंत दरवाजे की कड़ी खोल कर खुद इधर उधर का काम करने लगी तब तक शुभम नीचे गिरे बर्तन को उठाकर टेबल पर रख चुका था और रसोई घर की तरफ आगे बढ़ रहा था वह रसोई घर में प्रवेश करके खोल कर उसमें से पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया और उसे वापस फ्रिज में रख कर वापस चला गया। रसोई घर के बाहर जाते ही निर्मला की जान में जान आई,,,, वह एकदम से घबरा चुकी थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। लेकिन शुभम के जाते ही उस ने राहत की सांस ली थी शुभम को बिल्कुल भी शक ही नहीं हुआ कि कुछ ही मिनट पहले रसोई घर में उसकी मां अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।
03-31-2020, 03:19 PM,
#26
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला के बदन में चुदास से भरी मस्ती चढ़ी हुई थी,,,, कि इस तरह से शुभम के आ जाने की वजह से वह एकदम से डर गई थी। हड़बड़ाहट ही हड़बड़ाहट में तो वह शुभम के सामने अपनी स्थिति को संभाल ले गई,,,,,, लेकिन उसके मन में इस बात को लेकर एक डर सा बैठ गया। उसे यह लगने लगा कि अगर कहीं उसकी यह हरकत उसका बेटा देख लिया होता तो क्या होता,,,,, क्या होता अगर उस की नजर उस समय उसके ऊपर पड़ती जब वह बैगन को अपनी बुर में डालने की कोशिश कर रही थी,,,, उसका मन यही सोच सोच कर हैरान था,,,, उसके अंदर जो अपनी काम प्यास को तृप्त करने की आस थी वह पानी में मिल चुकी थी। आज बड़ी मुश्किल से अपने अंदर निर्मला ने इतनी हिम्मत जुटा ली थी कि आज पहली बार वह अपने संस्कारों के विरुद्ध कोई काम करने जा रही थी,,,,, लंड से ना सही बेगन से ही वह उन मादक चरम सुख की अनुभूति करना चाह रही थी लेकिन बनता काम बिगड़ गया था,,, उसके मन में इस बात का मलाल जरूर रह गया कि काश शुभम 10:15 मिनट बाद में आता ताकि वह अपनी प्यास को कुछ हद तक बुझा कर एक नया अनुभव प्राप्त कर सकती लेकिन इस बात से राहत भी थी की अच्छा ही हुआ कि शुभम के रसोई घर में आने से पहले ही उसे आने की आहट सुनाई दे दी,,,, वरना वह उसे साड़ी उठाकर अपनी बुर में बैगन डालते हुए जरुर देख लेता और अगर इस हाल में वह उसे देख लेता तो उसके मन मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव पड़ता वह उसे एक गिरी हुई औरत के रूप में देखने लगता,,, और वह खुद भी अपने बेटे से नजरें नहीं मिला पाती,,,,,

रसोई घर वाले घटना की बात से निर्मला अपना ध्यान इन सभी बातों से हटाने लगी वह नहीं चाहती थी कि ऐसी कोई हरकत वह करते हुए शुभम के हाथों पकड़ी जाए और जिंदगी भर वह अपने ही बेटे की नजरों से गिर जाए।
निर्मला तो अपने आप को संभाल ले गई थी लेकिन शुभम के मन मस्तिष्क में उसके दोस्तों के ही द्वारा उसकी मां की जो ऊन्मादक छवि बनाई गई थी उस छवि को शुभम अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया और हर वक्त जब भी उसे मौका मिलता था तो वह अपनी मां के अंग उपांगो को नजर भर कर देखता जरूर था और उन अंगों की नग्न कल्पना करके अपने आप को उत्तेजना के सागर में सराबोर कर लेता था।
शुभम तो अपनी मां के नंगे बदन की कल्पना करके ही मस्त हो जाया करता था क्योंकि उसने आज तक अपनी मां को नंगी नहीं देखा था और ना ही उसके कामुक रूप को नग्नावस्था में देख कर उस के नंगे बदन का नजरों से ही रसपान किया था। उसे यह सब करने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी धीरे-धीरे उसे अब इस बात का पता चलने लगा था कि जब भी वह अपनी मां के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाता था तभी उसका लंड उत्तेजित होकर खड़ा हो जाता था,,,, इस ताक-झांक के खेल में उसे मजा आने लगा था लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह जवानी के जिस चिंगारी से खेल रहा था वह चिंगारी कभी भी शोला का रूप धारण कर सकती थी।
शुभम के मन में औरतों के बदन का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था वह दूसरी औरतों के अंग को भी गौर से देखने लगा था। रही-सही कसर उसके दोस्त पूरा कर दिया करते थे। अपने दोस्त से झगड़ने के बाद वह फिर भी बार बार समय मिलने पर खेल के मैदान में पहुंच जाया करता था लेकिन उसका खेल में मन नहीं लगता था बल्कि उन लोगों की बातें सुनने में मजा आता था। ऐसे ही एक दिन खेल के मैदान में उसके मन में एक नया अरमान जन्म लेने लगा जब उसने उस दिन मैदान पर विकेट कीपिंग करते हुए अपने साथी खिलाड़ी की बात सुनी,,,, जिसमें से एक अपने ही दोस्त को कह रहा था कि,,, यार मैंने कल अपनी चाची को एकदम नंगी बाथरूम में नहाते हुए देख लिया,,,,,,
( इतना सुनते ही शुभम के तो कान के साथ-साथ उसका लंड भी खड़ा हो गया,,,, वह अपने काम बराबर अपने दोस्त की बात सुनने मैंने लगा दिया,,,,, उसकी बातें सुनकर उसका दूसरा साथी बोला।)

सच,,,,,, अच्छा यह तो बता क्या क्या देखा तूने?

अरे यार अब क्या बताऊं कि मैंने क्या-क्या देखा यह पूछ कि क्या नहीं देखा साली बाथरुम में एकदम नंगी होकर के नहा रही थी। मैंने उसका सब कुछ देख लिया उसकी बड़ी बड़ी चूचियां की बड़ी बड़ी गांड और तो और उसकी बालों वाली बुर भी देखा,,,,,,,


यार तब तो मजा आया होगा तुझे,,,,,



यार इतना मजा आया कि पूछ मत मुझे अपने आप को शांत करने के लिए दो बार लंड को हिला कर मुठ मारना पड़ा।


यार इससे अच्छा तो तू जा कर के अपनी चाची को चोद दिया होता। ( वह अपना लंड पैंट के ऊपर से सहलाते हुए बोला।)

नहीं यार ऐसा नहीं कर सकता था ऐसा करने पर कहीं चाची मेरी मां को बता देती तो,,,,,,


अरे यार ऐसा कुछ नहीं होता एक बार ट्राई तो किया होता ऐसे भी तेरी चाची को लगता है कि मोटे लंड की जरूरत है,,,, तभी तो नंगी होकर के नहा रही थी।
( शुभम तो उन लोगों की बातें सुनकर हैरान हुए जा रहा था लेकिन उसे मजा भी बहुत आ रहा था। तभी वह ं उसकी बात सुनकर बोला। )

यार तू सच कह रहा है मुझे एक बार जरूर ट्राई करना चाहिए था वैसे भी मेरी चाची का खूबसूरत बदन देख कर मेरी तो हालत खराब हो गई थी। जी मैं तो यही आ रहा था कि मैं अभी बाथरुम में हो जाऊं और चाची को अपनी बाहों में भरकर ऊनकी बुर में पूरा लंड पेल दुं।,,,,, ( उन लोगों की बातें शुभम के बदन में हलचल मचा रही थी,,,,, वह भले ही क्रिकेट खेल रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उन दोनों की बातें सुनने में ही था,,,,,, तभी वह अपनी चाची को चोदने की बात करते-करते बोला,,,,,,

प्यार तूने कभी ट्राई किया है क्या,,,, ?

नहीं यार अपनी किस्मत में कहा चाची और कहां भाभी है।


तेरी मम्मी तो है ना,,,,,,
( उसकी बात सुनकर वह मुस्कुराने लगा लेकिन मम्मी वाली बात कान में पड़ते ही शुभम के लंड में सुरसुराहट होने लगी।)

तूने अपनी मां को तो कभी ना कभी नंगी देखा ही होगा,,,,,,
( शुभम अपने दोस्त के द्वारा ऐसा सवाल पूछता देखकर एकदम दंग रह गया उसका दिमाग तब और ज्यादा झटका खा गया जब ऐसे सवाल पर,,,,,भी,,, उसका दूसरा दोस्त गुस्सा होने की जगह मुस्कुरा रहा था ,,,,,, और मुस्कुराते हुए बोला;।)

हां यार देखा तो हूं,,,,, बहुत बार देखा हूं ज्यादातर मैंने अपनी मां को बाथरूम में ही कपड़े धोते हुए एकदम नंगी या तो नहाते हुए एकदम नंगी देखा हुँ।

( इसका जवाब सुनकर शुभम तो एक दम सन्न रह गया। और उसका दूसरा दोस्त अपने पैंट पर से ही अपने लंड को सहलाते हुए बोला। )

यार मेरा तो सोचकर ही बुरा हाल हुए जा रहा है कि तेरी मां कैसे बाथरूम में नंगी नहाती होगी किस तरह से कपड़े धोती होगी ऊसकी बड़ी-बड़ी गांड,,,,ऊफ्फ्फ्फ,,,,, जी में तो आ रहा है कि अभी जाकर के तेरी मां को चोद दुं,,,

मेरी भी कुछ ऐसे ही इच्छा कर रही है मुझे भी लगता है तेरे घर आना पड़ेगा,,,,,,


हा हा हा आ जाना मेरी मां भी अपने कमरे में नंगी ही रहती है मैं भी बहुत बार देख चुका हूं,,,,,

( उन लोगों की बातें सुनकर शुभम एकदम हैरान हुए जा रहा था इतना तो उसे पता चल ही गया था कि लगभग सभी लोग अपनी मम्मी को किसी न किसी रूप में नंगी दे चुके हैं बस वही रह गया था कि जिस ने अभी तक अपनी मां को नंगी नहीं देख पाया था उन लोगों की बातें सुनकर अब उसके मन में भी यह अरमान जगने लगे कि वह भी अपनी मां को नंगी देखें। अभी उसके मन में यह सब ख्याल चल रहे थे कि तभी शुभम के दोस्त ने उसी से ही पूछ लिया,,,,,,, )
03-31-2020, 03:19 PM,
#27
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
यार शुभम तेरी मां तो बहुत ज्यादा चिकनी और मस्त है तूने भी तो कभी ना कभी अपनी मां को नंगी देखा ही होगा,,,,,

( अपने दोस्त के द्वारा यह सवाल पूछे जाने पर इस बार उसे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह अब तो समझ ही गया था कि आपस में यह लोग इसी तरह से बात करते हैं लेकिन इस बार पहले की तरह सुबह में अपने दोस्त की इस बात पर नाराजगी ना दर्शाते हुए बस मुस्कुरा कर ना में सिर हिला दिया।
अब शुभम के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अब तो उसके कल्पनाओ के परिंदे मन चाहे वहां पर अपने पर फैलाकर उड़ रहे थे। अब से शुभम ज्यादातर समय इस ताक झांक में लगाकर व्यतीत करता था कि कब ऊसे उसकी मां का नंगा बदन देखने को मिल जाए। क्योंकि मन ही मन हुआ है इस बात पर भी जरूर गौर करता था कि जब उसकी मां कपड़ों के अंदर इतनी ज्यादा मस्त और सेक्सी लगती है तो बिना कपड़ों के तो वह तन बदन में आग लगा देगी। इसलिए वह अब अपनी मां के कमरे में बिना दरवाजे पर दस्तक दिए ही कमरे में घुस जाता था । और बाथरूम के दरवाजे को भी हल्के से धक्के देकर के यह जानने की कोशिश करता था कि दरवाजा अंदर से बंद है या नहीं लेकिन उसकी किस्मत खराब रहती थी इसलिए दरवाजा उसे हमेशा बंद ही मिलता था। शुभम बहुत कोशिश कर लिया लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
जिस तरह से शुभम अपनी मां के प्रति आकर्षित होकर के उसके बदन को एकदम नंगा देखना चाहता था उसी तरह से निर्मला भी अपने बेटे के प्रति आकर्षित होकर के अपने बेटे के मोटे ताजे लंड को लेकर ढेर सारी कल्पनाएं कर कर के अपने आप को शांत करने की कोशिश करती रहती थी। उसके द्वारा खरीद के लाए गए बैगन तो ना जाने कब से खराब हो चुके थे जिसे वह कूड़ेदान में फेंक चुकी थी। मौका मिलने पर बस वह अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी फांकों को रगड़ लेती थी। क्योंकि पति से तो प्यार मिलने से रहा,,,,,।

आखिरकार एक दिन शुभम की मेहनत रंग. लाई हुआ यूं कि कपड़े धोने की वाशिंग मशीन बिगड़ी हुई थी और रविवार का दिन था। रविवार को ही निर्मला ढेर सारे कपड़े धोतीे थी। करीब-करीब दोपहर में शुभम क्रिकेट खेल कर घर लौटा तो देखा कि घर में उसकी मां मौजूद नहीं थी उसने जहां तहां सब जगहो पर देख लिया लेकिन कहीं भी उसे निर्मला नजर नहीं आई यहां तक कि बाथरुम में भी मन में एक आस ले करके नजर दौड़ा लिया लेकिन वहां भी निर्मला नहीं थी। शुभम घर में अपनी मां को ना पाकर एकदम परेशान हो गया,,,, इतना तो तय था कि वह कहीं बाहर नहीं गई हुई थी क्योंकि अगर ऐसा होता तो दरवाजे पर ताला लटक रहा होता,,,,,
03-31-2020, 03:19 PM,
#28
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम अपनी मां को घर में चारों तरफ ढुंढ़ चुका था लेकिन उसकी मां का कहीं अता-पता नहीं था। तभी उसे ख्याल आया कि वह घर के पीछे वाले भाग में अभी तक नहीं ढूंढा था,,,, जहां पर निर्मला कभी-कभी कपड़े धोने जाया करती थी। उस जगह का ख्याल आते ही शुभम बिना कुछ सोचे समझे घर के पीछे की तरफ जाने लगा,,,,, जैसे ही वह घर के पीछे पहुंचा तो वहां का नजारा देखकर वह एक दम से दंग रह गया,,,,, वह तुरंत दीवार की ओट में छुपकर देखने लगा,,,,,
घर के पीछे थोड़ा खुला मैदान था जिसकी चारों ओर दीवार घिरी हुई थी,,,,, जिसकी वजह से बाहरी लोगो की नजर अंदर तक नहीं पहुंच पाती थी । जहां पर पानी की अच्छी खासी व्यवस्था थी इसलिए जब भी कभी पानी की समस्या होती थी तो निर्मला यहीं पर आकर सारे काम किया करतीे थी।
शुभम दीवार की ओट में छिपकर सब कुछ देख रहा था,,,,, क्या करें नजारा ही कुछ ऐसा था कि सामने खड़ा होकर के देख नहीं सकता था क्योंकि अगर ऐसा होता तो शायद नजारे पर पर्दा पड़ जाता,,,,, घर के पीछे का नजारा देख कर शुभम की आंखों में एक कामुकता भरी चमक नजर आने लगी थी।

वह छीप कर सब कुछ देख रहा था उसके मन में एक अजीब सी उमंग जगने लगी थी,,,, यहां का नजारा देख कर उसे तुरंत अपने दोस्तों की कही गई बातें याद आने लगी,,,,, और दोस्तों की बातें सुनकर जो उसके मन में एक आंख भरी हुई थी उसे ऐसा लगने लगा कि आज उसके भी अरमान पूरे हो जाएंगे क्योंकि वह भी अपनी मां को पूरी तरह से संपूर्ण नंगी देखना चाहता था। और इधर पर उसे वैसा होता नजर भी आ रहा था। निर्मला की पीठ शुभम के तरफ थी,, और उसके बदन पर मात्र पेटीकोट ही थी जिसे उसने कमर से खोल कर अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो के उपर टिकाकर बांध रखी थी,,, जिसकी वजह से उसकी लंबी गोरी चिकनी टांगे जांगो से नीचे नजर आ रही थी । मोटी मोटी और चिकनी जांघों को देखते ही शुभम के लंड में सुरसुराहट होने लगी,,, ध्यान से देखने पर शुभम को इस बात का अंदाजा लग गया कि उसकी मां भी पूरी तरह से पानी में भीगी हुई थी और साथ ही उसकी पेटीकोट भी,,,, जिसकी वजह से पेटीकोट पानी में भीगने की वजह से उसके बदन से चिपक गई थी,,, और तो और पेटीकोट के भीगने की वजह से उसके बदन का हर एक अंग साफ-साफ उभरा हुआ नजर आ रहा था । यह सब देख कर तो शुभम की सांसे एकाएक तेज चलने लगी,,, वह अपने आप को दीवार की ओट में छिपाकर अपनी मां की गीले बदन का रसपान अपनी नजरों से कर रहा था । शुभम इस बात का भी ख्याल रख रहा था कि उसकी मां उसे देख ना ले उसकी मां कपड़ों को बाल्टी में डाल डाल कर भीगो रही थी। जिसकी वजह से वो बार-बार बाल्टी में कपड़े भिगोने के लिए झुकती थी और जब वह झुकती थी तो उसकी बड़ी-बड़ी गांड का उभार कुछ ज्यादा ही उभरकर बड़े ही कामुक तरीके का मोड़ ले लेता था जिसे देखकर शुभम के पूरे बदन में हलचल सी मच जा रहे थे। पेटीकोट के गीले होने की वजह से निर्मला के कमर के नीचे का भाग का कटाव और उभार इतना साफ साफ नजर आ रहा था कि देखने वाले को यह अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होता कि उसकी गांड का साइज कितना है। निर्मला यहां आकर अपने सारे कपड़े उतार दी थी यहां तक कि ब्रा और अपनी पैंटी तक को निकाल कर ऊसे धो रही थी,,,, लेकिन शुभम की बिन अनुभवी नजरें अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड की चिकनाई को पेटिकोट की सतह पर उभरते हुए देख कर भी यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि उसकी मां ने पेटीकोट के अंदर पेंटी नहीं पहनी हुई है वह पेटीकोट के अंदर बिल्कुल नंगी है उसे तो यही लग रहा था कि उसकी मां ने पेंटी पहन रखी है। लेकिन भीगे बदन में भले ही वह संपूर्ण रुप से निर्वस्त्र ना हो लेकिन फिर भी अर्धनग्न अवस्था में भी वह एकदम कयामत लग रही थी जो कि जवान हो रही शुभम के लिए यह मादक दृश्य भी कामोत्तेजना का भंडार ही साबित हो रहा था।
शुभम अपने तन-बदन में प्रचंड उत्तेजना का अनुभव कर रहा था जिसका सीधा असर उसकी जांघों के बीच लटक रहे उसके हथियार पर हो रहा था। शुभम ने कभी सोचा भी नहीं था कि अपनी मां को इस हालत में कभी देख पाएगा वह तो बस यह सब कल्पना में ही देख रहा था और अपने आप को शांत करने की कोशिश कर ले रहा था। शुभम के दोस्तों की बातों ने शुभम के अंदर भी अपनी मां को पूरी तरह से नंगी देखने का लालच बढ़ा दिया था वरना इस बात की लालच उसके अंदर अभी तक नहीं पनप पाई थी। शुभम एक टक अपनी नजरों को अपनी मां के बदन पर गड़ाए हुए था,,,, वह एक पल का भी दृश्य अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देना चाहता था। उसकी मां भी इन सब बातों से बेखबर अपने ही धुन में कपड़ों को धो रही थी,,,,, हालांकि इस समय उसके मन में भी चुदासपन भरा हुआ था। तभी तो वह यहां आते ही अपने सारे कपड़े उतार फेंकी थी और बस अपनी पेटीकोट को ही अपने बदन पर लपेट रखी थी। निर्मला बार-बार कपड़े धोने के लिए नीचे झुक रही थी और जब भी झुकती थी तो एक बहुत ही गजब प्रचंड मादकता से भरा हुआ नजारा शुभम को देखने को मिल जा रहा था। पेटीकोट और बदन गीला होने की वजह से बार-बार पेटीकोट नीचे की तरफ तरफ जा रहा था जिसे निर्मला अपने हाथों से एडजस्ट कर ले रही थी,,, ऐसे ही पेटीकोट के नीचे वाला भाग जो कि उसके नितंबों को ढका हुआ था उसे एडजस्ट करने में भूल से पेटीकोट थोड़ा सा कमर के ऊपर चढ़ गई जिसकी वजह से उसकी मदमस्त मादक और भरी हुई गांड की उत्तेजित कर देने वाली गहरी लकीर नजर आने लगी और साथ ही भरपूर नितंब का अच्छा खासा भाग भी शुभम को नजर आने लगा,,
यह नजारा देखते ही शुभम का लंड पैंट के अंदर ठुनकीे लेने लगा,,,, शुभम की सांसे ऊपर नीचे होने लगी,,,,, अपनी मां की मदमस्त बड़ी-बड़ी और गोरी गांड को देखकर उसका मुंह आश्चर्य और उत्तेजना के कारण खुला का खुला रह गया। नंगी गांड को देखते ही उसे इस बात का पता चला कि उसकी मां ने पेंटी नहीं पहन रखी है। आज जिंदगी में पहली बार उसने अपनी मां की नंगी गांड को देखा था जोकी बिल्कुल चांद के टुकडे की तरह चमक रही थी और जिसे देखते ही उत्तेजना के परम शिखर पर वह विराजमान हो चुका था। उसे अपनी आंखों पर और इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि औरत की गांड इतनी ज्यादा खूबसूरत होती है। वैसे भी आज वह पहली बार नंगी गांड को देख रहा था। पर जिस तरह से उसके दोस्त मजे ले लेकर अपनी मां को नंगी देखने की बात कर रहे थे उसी तरह से शुभम को भी अपनी मां को नंगी देखने में मजा आ रहा था।
निर्मला इस बात से बेखबर कि उसका बेटा उसके नंगे बदन का रसपान कर रहा है अपने काम में मशगूल थी। वह कपड़े धो चुकी थी उसकी भी हालत कुछ कम ठीक नहीं थी मोटे लंड की प्यास उसके बदन को तड़पा रही थी। वह बार-बार अपनी हथेली को अपने पूरे बदन पर फिरा रही थी। धीरे-धीरे वह भी उत्तेजित हो चुकी थी। उसे तो पहले से ही एक जबरदस्त चुदाई की आवश्यकता हो रही थी लेकिन वह अपनी प्यास ना तो लंड से बुझा पा रही थी और ना ही बैगन से क्योंकि खरीद के लाए हुए बैगन भी खराब हो गए थे जिसे उसने कूड़ेदान में फेंक चुकी थी। निर्मला पूरी तरह से चुदास के रंग में रंग गई थी। इसलिए तो वहां उत्तेजित हो करके अपने बदन पर चारों तरफ अपनी हथेली फिराकर अपनी आग को और ज्यादा भड़का रही थी। जैसे ही उसने अपनी हथेलियों को अपनी कमर से नीचे की तरफ ले गई तो नितंबों पर हथेली पड़ते ही उसे इस बात का अंदाजा लग गया कि उसकी गांड भी पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी है। लेकिन इस बात का अंदाजा लगने के बावजूद भी उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी की घर के पीछे वाला भाग चारों तरफ से दीवारों से घिरा हुआ था जिससे किसी के देखे जाने का डर बिल्कुल भी नहीं था।
लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसका ही बेटा उसे छिप कर देख रहा था। शुभम कीे तो दिल की धड़कन बहुत ही तीव्र गति से चल रही थी। उसकी हालत पल पल खराब होते जा रही थी ।उसकी पेंट में पूरी तरह से तंबू तन चुका था। अपने दोस्तों की बात सुनकर उसके मन में भी अपनी मां को नंगी देखने का अरमान बन चुका था जिसकी ताक में वह हर पल लगा रहता था लेकिन फिर भी उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी,,, उसे ऐसा लगने लगा था कि शायद अब वह अपनी मां को कभी भी नग्नावस्था में नहीं देख पाएगा,,,, और अपनी मां को नग्नावस्था में देखकर बदन में कैसी मस्ती चढ़ती है शायद वह उस मस्ती के एहसास को कभी भी महसूस नहीं कर पाएगा उसने तो शायद आस ही छोड़ दिया था,,, लेकिन आज अनजाने में ही उसे अपने अरमान पूरे होते नजर आ रहे थे।
शुभम बार-बार अपनी मां की नंगी गांड को देखकर पेंट के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था और उसे ऐसा करने में बहुत ही आनंद मिल रहा था। उसकी मां भी मस्ती में जहां तहां अपने बदन को अपनी हथेली में भर कर दबा दे रही थी।
निर्मला के बदन में पूरी तरह से उत्तेजना का सुरूर चढ़ चुका था इसलिए वह बार-बार अपनी चुचियों को भी अपनी हथेली में भरकर पेटीकोट के ऊपर से ही दबा दे रही थी,,,, लेकिन जहां शुभम खड़ा था उसे इस अतुल्य दृश्य का रसपान करने को नहीं मिल पा रहा था क्योंकि निर्मला की पीठ शुभम की तरफ थी वहां से बस उसे उसके हाथों की हरकत ही नजर आ रही थी और दिन अनुभवी शुभम को इस बात का अंदाजा लगा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था कि उसकी मां अपने हाथों से अपनी चुचियों का मर्दन कर रही है।
निर्मला मस्ती से सराबोर हो चुकी थी और वह जोर-जोर से अपनी चूचियों को दबाकर सिसकारी ले रही थी। हालांकि उसकी सिसकारी अभी बहुत ही मंद थी जिसकी वजह से गर्म सिसकारियों की आवाज शुभम के कानों तक नहीं पहुंच पा रहीे थी। लेकिन शुभम को इसमें इतना ज्यादा आनंद और मस्ती की अनुभूति हो रही थी कि शायद ही उसे इस तरह की अनुभूति हुई हो। पेंट में उसका लंड तनकर एकदम लोहे की छड़ की तरह हो गया था। जिसे वह पेंट के ऊपर से ही मसल रहा था।
निर्मला धीरे-धीरे मस्ती के सागर में डूबती चली जा रही थी।
निर्मला धीरे-धीरे मस्ती के सागर में डूबती चली जा रही थी वह एकदम बेफिक्र और बिंदास होकर के अपने बदन से आनंद ले रही थी। वह पेटीकोट के ऊपर से ही अपनी बड़ी बड़ी चूचियां को मसलते चली जा रही थी। थोड़ी ही देर बाद उसका एक हाथ चूची पर और दूसरा हाथ धीरे धीरे नीचे की तरफ फीसलता हुआ आगे बढ़ रहा था। और शायद हथेली को उसकी मंजिल मिल गई थी और हथेली जांघो के बीच की पतल़ी दरार पर हरकत करना शुरु कर दी। निर्मला बड़े ही मादक अंदाज में अंगड़ाई ले रही थेी जो कि शुभम को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कार उसकी मां कर क्या रही है लेकिन इतना जरुर पता था कि जो भी कर रही थी उसे देखकर शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी। निर्मला के ऊपर कामोत्तेजना का असर भारी होता चला जा रहा था। वह जोर जोर से अपनी हथेली को अपनी बुर पर रगड़ रही थी लेकिन ऐसा करने से उसकी प्यास शांत होने की वजाय और ज्यादा भड़कने लगी,,,, आज खुले में पहली बार हुआ इस तरह की हरकत कर रही थी,,,, इससे पहले भी उसने बहुत बारिश है वहां पर आकर कपड़े धोने थे और घर के काम भी किए थे लेकिन जिस तरह की कामुकता का एहसास की वजह से उसने अपने सारे कपड़े उतार फेंके थे और सिर्फ पेटीकोट में ही अपने वदन से खेल रही थी ऐसा कभी उसने बंद कमरे में भी नहीं की थी। निर्मला भी मजबूर थी आखिर कब तक अपने बदन की प्यास ओर उसकी जरुरतो पर काबू कर पाती,,,,, अपने पति से उपेछित होने के बाद उसके पास यही एक राह रह गई थी।
03-31-2020, 03:19 PM,
#29
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
अपनी हथेली को अपनी बुर पर रगड़ रगड़ कर वह अपनी प्यास को और ज्यादा बढ़ा ली थी और अपनी मां को अपने बदन से खेलते देखकर शुभम की हालत पतली हुए जा रही थी। वह भी जोर जोर से अपने लंड को पैंट के ऊपर से ही रगड़ रहा था। पूरी तरह से संपूर्णता कामुकता से भरा हुआ मंजर नजर आ रहा था। निर्मला की प्यास और ज्यादा बढ़ती जा रहीे थी। उससे रहा नहीं गया तो वह अपनी हथेली से बुर को रगड़ते रगड़ते अपनीे बीच वाली उंगली को धीरे से बुर की गुलाबी छेद में घुसा दी,,,,, और जैसे ही उसकी उंगली बुर में प्रवेश की वैसे ही तुरंत उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी। शुभम को तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां क्या कर रही है बस उसे उसका हाथ हिलता हुआ नजर आ रहा था लेकिन इतने से उसके लिए अंदाजा लगा पाना मुश्किल था। शुभम की जगह अगर कोई और होता तो वह जरुर समझ जाता कि आखिर निर्मला क्या कर रही है।
ईधर देख देख कर शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी।
और उधर निर्मला अपनी बुर में उंगली कर कर के अपनी प्यास को शांत करने की कोशिश कर रही थी। निर्मला से अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वह अपनी उंगली को बड़ी तेजी से अपनी बूर. में अंदर बाहर कर रही थी। और अब उसके मुंह से सिसकारी की आवाज तेज आने लगी थी जो कि अब शुभम के कानों तक आराम से पहुंच रही थी। अपनी मां के मुंह से अजीब अजीब सी आवाज सुनकर शुभम तो एकदम हैरान हो गया,,,,, उसने आज तक ऐसी गरम आवाज नहीं सुनी थी।
सससससहहहहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,, ऊूूहहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहह,,,,,
( निर्मला के मुंह से इस तरह की आवाजें आ रही थी,,,, जिसे सुनकर शुभम की हालत खराब हो रही थी। यह आवाजे उसे बेहद आनंददायक और खुद की उत्तेजना को बढ़ाने वाली लग रही थी तभी तो वह अब जोर जोर से पेंट के ऊपर से ही अपने लंड को मसलने लगा था। उसकी निगाह बराबर अपनी मां के तेज चल रहे हाथ की हरकत और उसकी भरावदार गांड पर टिकी हुई थी।
निर्मला की उत्तेजना पल पल बढ़ती जा रही थी वह अपनी उंगली को बड़ी तेजी से अपने बूर में अंदर बाहर करते हुए मस्त हुए जा रही थी। शुभम तो बस देख कर ही मस्त हुए जा रहा था हालांकि उसने अभी तक अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को ही देख पाया था,,, उसकी नजरों से अभी उसकी मां की रसीली बुर और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां दूर थी। इतने से ही शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी तो अगर वह अपनी मां की रसीली बुर और बड़ी बड़ी चूचियां देख लें तो शायद खड़े-खड़े उसका पानी निकल जाए।
शुभम यहां से बस देखे जा रहा था उसे यह नहीं पता था कि उसकी मां अपनी उंगलियों का सहारा ले कर के अपनी बुर की प्यास बुझा रही थी क्योंकि यहां से सिर्फ उसे अपनी मां के हाथ की हरकत ही नजर आ रही थी बाकी वह अपने हाथ से क्या कर रही है यह बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहा था।
और नजर आता भी तो कैसे क्योकि निर्मला खड़ी हो करके अपनी बुर में उंगली पेल रही थी,,,, और उसकी मांसल मोटी मोटी जांघों के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी भऱावदार गांड की वजह से उसकी उंगलियों की हरकत देख पाना शुभम के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। शुभम अपने मां बाप का वजन कितना देखा था शायद अब उससे उसका मन नहीं भरा था। अब वह अपनी मां की जानवरों के बीच के उस जगह को देखना चाहता था जिसे बुर कहते हैं। कोई इसलिए वह मन ही मन थोड़ा उदास भी नजर आ रहा था पर उत्तेजना तो उसके बदन में अपना पूरा असर दिखा रहा था। उत्तेजना के मारे उसका चेहरा लाल लाल हो गया था। वह इसी ताक झांक में था कि उसे जांघों के बीच की वह जगह नजर आ जाए,,,, तभी जैसे उसके मन की बात को निर्मला सुन ली हो,,, और वह तुरंत अपनी बुर में उंगली अंदर बाहर करते हुए झुक गई,,,, और जैसे ही वह नीचे झुकी शुभम को उसकी जांघों के बीच कि वह पतली और गुलाबी दरार नजर आने लगी जिसे बुर कहा जाता है। उस पतली गुलाबी दरार पर नजर पड़ते हैं शुभम की तो जेसे सांस ही अटक गई,,, उसका दिमाग काम करना बंद हो गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या देख रहा है। आज पहली बार उसने बुर के दर्शन किए थे उसकी बनावट को दूर से ही सही पर देख रहा था। शुभम का तो गला सूखने लगा था उत्तेजना के मारे वह थुक को भी निगल नहीं पा रहा था। शुभम कीे सांसे ऊपर नीचे हो रही थी। अपनी मां के अतुल्य अंग को ईस समय वह देख रहा था उसके बारे में उसने कभी ईतनी कल्पना भी नहीं कर पाया था। कभी ध्यान से देखने पर उसे जो नजर आया उसे देखकर वह दंग रह गया। ऊसे अब ऊसकी मां के हाथों के हरकत के बारे में समझ आया था।
वह साफ साफ देख पा रहा था की ऊसकी मां की ऊंगलियां ऊसकी बुर के अंदर थी जिसे वह बड़ी तेजी से अंदर-बाहर कर रही थी। यह नजारा देखकर शुभम की कामोत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई उसका लंड पैंट के अंदर ही अकड़ने लगा,,,, उससे भी अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था और अपनी मां को बुर के अंदर उंगली अंदर बाहर करते हुए देखकर वह कब अपनी पेंट की चेन को खोलकर लंड अपने हाथ में ले कर मसलने लगा उसे पता ही नहीं चला। अपनी मां को देख देख कर उसे अपने लंड को मसलने में बेहद आनंद मिल रहा था। उसकी मां अभी भी झुक कर अपनी बुर में उंगली को अंदर बाहर करके मजा ले रही थी। उत्तेजना की वजह से उसके मुंह से तेज तेज सिसकारियां निकल रही थी जोकी शुभम को साफ सुनाई दे रही थी।
निर्मला की उत्तेजना इस तरह से ऊंगली से शांत होने वाली नहीं थी लेकिन फिर भी कुछ हद तक वह अपने मन को बहलाने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन उससे अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। इसलिए वह तुरंत अपनी चुचियों पर बंधी हुई पेटीकोट की डोरी को खोलकर जल्दी-जल्दी पेटीकोट को नीचे सरकाते हुए अपने कदमों में गिरा दी। अब निर्मला पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी शुभम तो यह नजारा देखकर एकदम आश्चर्य चकित हो गया। उसके अरमान आज पूरे हो गए थे उसकी आंखों के सामने उसकी मां पूरी तरह से नंगी खड़ी थी। उसे अपनी आंखों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था वह अपने आप को छुपाते हुए अपने लंड को जोर जोर से मसल रहा था।
लेकिन फिर भी अभी उसकी इच्छा अधूरी ही थी क्योंकि वह अपनी मां की पीठ के ही तरफ का भाग देख रहा था सामने से उसने अभी तक अपनी मां को नंगी नहीं देख पाया था।
पेटीकोट को उतारने के बाद निर्मला फिर से उसी तरह से झुक कर अपनी बुर को अपनी उंगली से पेलने लगी।
निर्मला आज पहली बार इतनी बेशर्म हुई थी। इस तरह से पूरी तरह नंगी होने के बावजूद उसके चेहरे पर शर्म की एक रेखा तक नजर नहीं आ रही थी। बल्कि उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया था उसकी खूबसूरती और भी ज्यादा निखर आई थी। शुभम को यही चाह रहा था कि एक बार उसकी मां उसकी तरफ चेहरा कर के घूम जाए लेकिन उसे डर भी था कि अगर इस तरह उसकी मां चेहरा करेगी तो कहीं वह उसे देख ना ले।
गजब का नजारा बना हुआ था शुभम अपनी मां को एकदम नंगी देखकर अपने लंड को हिला रहा था और उसकी मां एकदम बेशर्म हो करके अपने पूरे कपड़े उतार कर अपने ही उंगली से अपनी बुर को चोद रही थी। अपनी ब** में ऊंगली करते हुए उसके मन में बैंगन का विचार जरूर आ रहा था वह मन में यही सोच रही थी की अगर उंगली की जगह बैगन भी होता तो आज शायद उसे बेहद आनंद की प्राप्ति होती यह सोचते हुए वह जोर-जोर से अपनी उंगली को अंदर बाहर करके अपनी बुर को चोद रही थी। और साथ ही जोर-जोर से गर्म सिसकारियां भी ले रही थी। निर्मला चरम सुख के बिलकुल करीब पहुंच चुकी थी उत्तेजना के मारे उसके पैर कांप रहे थे। उसे भी इस बात का एहसास हो गया था कि वह झड़ने वाली है इसलिए वह अपने घुटनों के बल बैठ गई और अपने बुर में जोर जोर से उंगली पेलने लगी।
इधर अपनी मां को संपूर्ण नग्न अवस्था में देखकर और उसे देखते हुए अपने लंड को मसल का उसे भी अजीब सा महसूस होने लगा था उसे भी ऐसा लग रहा था कि उसके हाथ पांव फूल रहे हैं और उसके पैरों में कंपन सा महसूस हो रहा था। तभी निर्मला अपने चरम सुख के बिल्कुल करीब पहुंच गई उसका हाथ पाव कांपने लगा और उसके मुंह से सिसकारी ओ की आवाज भी तेज हो गई,,,,, यह देखकर शुभम भी जोर-जोर से अपने लंड को मसलने लगा,,,,,
तभी निर्मला के मुख से जोर से चीख निकली और वह भल भला कर झड़ने लगी,,,, अपनी मां की हालत को देख कर शुभम भ ी अपने आप पर काबू ना कर सका और उसके लंड ने एक तेज पिचकारी की धार मारी और शुभम झड़ने लगा।
अपने लंड से निकल रहे सफेद गाढ़े पदार्थ को देखकर शुभम के तो जैसे होश ही उड़ गए,,, ऊसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये हो क्या रहा है। क्योंकि आज पहली बार उसे इस तरह का अनुभव हो रहा था वह एकदम डर गया था लेकिन जितनी देर तक उसके लंड से पानी निकलता रहा उसे बेहद आनंद की प्राप्ति होती रही उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह हवा में झूला झूला हो। लेकिन वह एकदम से डर गया था एक नजर अपनी मां की तरफ देखा तो वह अभी भी घुटनों के बल बैठ कर हांफ रही थी और उसकी उंगली अभी भी उसकी बुर में ही थी।
शुभम डर के मारे जल्दी से अपने लंड को वापस पैंट में ठूस कर जल्दी से वहां से चला गया।
03-31-2020, 03:20 PM,
#30
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम डर के मारे जल्दी से अपने लंड को वापस पैंट में ठूस कर जल्दी से वहां से चला गया।
शुभम वहां से वापस आ गया था,,, और अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर धम्म से बैठ गया था उसने जो आज अपनी आंखों से देखा था उस पर उसे जरा भी विश्वास नहीं हो रहा था उसे अभी तक ऐसा ही लग रहा था कि कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा था। उसने आज तक अपनी मां का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था। सच में आज अपनी मां को नग्नावस्था में देखकर जिस तरह का उन्माद का अनुभव वह कर रहा था ऐसा अनुभव उसे आज तक नहीं हुआ था। दोस्तों की कही बातें उसे सच लगने लगी थी उसे आज इस वास्तविकता का ज्ञान हो चुका था। वह मन ही मन इस बात को सोच रहा था कि सच में उसने आज तक इस तरह के अमूल्य मौके गवा दिया था। अब से पहले उसने इस तरह की उत्तेजना का कभी भी अनुभव नहीं किया था। उसकी आंखों के सामने बार बार उसकी मां का मादक नंगा बदन तैर जा रहा था। सुबह मैंने अब तक अपनी मां को संपूर्ण कपड़ों में ही देखा था। हां कभी कबार उसकी नजर उसकी चिकनी गोरी कमर पर चली जाती थी लेकिन कभी भी उसने उस नजर से अपनी मां के बदन को नहीं नीहारां था। अपने दोस्तों कि कहीं गई बातों की वजह से ही अपनी मां को देखने का नजरिया बदल गया था और उन लोगों के कहने के अनुसार ही शुभम अपनी मां को नंगी देखने का मौका ढूंढ रहा था और काफी दिनों से ताक झांक में लगा दी हुआ था लेकिन आज अनजाने में ही उसे सुनहरा मौका हाथ लग गया और उसने वह नजारा देख लिया जिसकी कभी भी उसने कल्पना नहीं की थी।
पहले तो वह अपनी मां को कपड़ों में ही देख कर मस्त हो गया था और उत्तेजना का अनुभव करता था यदि उसे बखूबी मालूम था कि उसकी मां बेहद खूबसूरत है,,, लेकिन आज अपनी मां को संपूर्ण नग्नावस्था में देखकर उसे इस बात को महसूस करते जरा भी वक्त नहीं लगा कि उसकी मां उसकी कल्पना से भी ज्यादा सुंदर हसीन और सेक्सी है। बार बार उसे निर्मला नग्नावस्था में कपड़ा धोते हुए नजर आ रही थी वह एक एक पल को अपने मन मस्तिष्क में एकदम बैठा सा लिया था। पानी में भीगा हुआ उसका पेटीकोट कैसे उसके बदन से चिपककर उसके बदन का सारा भूगोल उजागर कर रहा था। शुभम को अपनी मां का बदन खास करके उसका भरावदा़र नितंब और वह भी पानी में भीगा हुआ इतना ज्यादा उत्तेजित कर गया था कि उस पल को सोचते ही उसके लंड में सुरसुराहट होने लगी थी। तभी उसे वह दृश्य भी याद आ गया जब उसकी मां एकदम से झुककर अपनी बड़ी बड़ी गोल गांड को ठीक शुभम की आंखों के सामने कर दी,,,, और उसकी उंगली,,,,,ऊंगली वाला नजारा आंखों के सामने तैरते ही शुभम का पूरा वजूद कांप सा गया उसके बदन में अजीब प्रकार के सुख की अनुभूति होने लगी। उसे यह बिल्कुल समझ में नहीं आया कि आखिर कार उसकी मां अपनी बुर में उंगली डाल,कर बड़ी तेजी से अंदर बाहर करते हुए कर क्या रही थी,,,, लेकिन उसे इतना समझ में जरुर आ रहा था कि उसकी मां जो भी कर रही थी उस क्रिया को करने में उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी तभी तो उसके मु्ख से अजीब-अजीब प्रकार की आवाज आ रही थी जो कि उन आवाजों को शुभम पहली बार ही सुन रहा था। और उस दृश्य को देखकर उसके भी बदन में कामोत्तेजना की तरंगे बड़ी तेजी से पांव से लेकर सर तक. सरपट दौड़ रही थी और उस नजारै ने उसे भी मजबूर कर दिया था अपनी पेंट से लंड को बाहर निकालने के लिए,,,,, उस कामुक दृश्य को देखकर शुभम को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं चला कि कब उसने अपनी पेंट के बटन को खोलकर लंड को बाहर निकाला और उसे मसलने भी लगा। लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके लंड़ से गाढ़ा सफेद पानी क्यों निकल रहा था और उस पानी को आज वह पहली बार ही देख रहा था। लेकिन जब तक वहां पानी निकलता रहा मैसेज बहुत ही सुखद अनुभूति हो रही थी ऐसा सुख उसे प्राप्त हो रहा था कि जिस कि उसने कल्पना भी नहीं की थी ना तो वह उसे शब्दों में बता ही सकता था। उन पलों को याद करके एक बार फिर से शुभम उत्तेजित हो गया था। उसके पैंट में फिर से तंबू बन चुका था लेकिन इस बार उसकी हिम्मत नहीं हुई उसे हाथ लगाने की।

दूसरी तरफ निर्मला अपनी बुर का पानी निकालकर कुछ हद तक शांत हो चुकी थी। वहां पर उसने संपूर्ण रूप से नग्नावस्था में ही स्नान करके अपने कपड़े पहन कर और धुले हुए कपड़े लेकर के आ गई। और इन कपड़ों को रस्सी पर सुखने के लिए डाल दी।
शुभम के लिए तो यह पल एकदम अतुल्य था क्योंकि आज तक उसने ऐसे दृश्य को कभी भी नहीं देखा था लेकिन निर्मला इस बात से बिल्कुल अंजान थी कि उसे नग्नावस्था में अपने ही हाथों से अपनी प्राप्त की जाती उसके बेटे ने देख भी लिया है और उसे देखकर अनजाने में ही मुठ भी मार लिया है।

कुछ दिन तक बिल्कुल सामान्य चलता रहा। सब कुछ पहले की ही तरह था उसको कभी भी रात को जब भी उसका मन करता था उसी तरह से उस पर चढ़कर अपनी प्यास तो बुझाा लेता था लेकिन निर्मला पहले की ही तरह प्यासी तड़पती रह जाती थी,,,,, लेकिन इतने दिनों में निर्मला में एक बदलाव जरुर आया था कि जब भी अशोक उसे चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़ता था,,,, तो वह अशोक की जगह अपने बेटे शुभम की कल्पना करने लग जाती थी,,,, जब भी अशोक उसके ऊपर चढ़कर उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ सर काटा था तो वह आंखें बंद करके ऐसा कल्पना करती थी कि अशोक नहीं बल्कि उसका बेटा शुभम उसकी साड़ी को ऊपर जांघो तक सरका रहा है। और जैसे ही अशोक अपनी दोनों हथेलियों में ब्लाउज के ऊपर से ही बड़ी-बड़ी सूचियों का भर्ता तो वह ऐसा महसूस करती थी उसका बेटा अपनी मजबूत हथेलियों में उसकी बड़ी बड़ी चूची को पकड़ कर मसल रहा है उन्हें दबा रहा है। अशोक की जगह शुभम की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठती थी उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौडने़ लगती थी। जब भी अशोक अपने लंड को जो कि शुभम के लंड की अपेक्षा आधा भी नहीं था उसे उसकी बुर में प्रवेश कराता तो वह आंखों को बंद करके एकदम ध्यान लगाकर के ऐसी कल्पना करती थी कि उसका बेटा शुभम उसकी बुर में अपना मोटा लंबा लंड डाल रहा है।
और अशोक कि आगे पीछे हो रही कमर को वह खुद अपनी हथेली में भरकर ऐसा महसूस करती कि उसका बेटा अपने मोटे ताजे और लंबे लंड से जमकर उसकी चुदाई कर रहा है।
और यह कल्पना करके ही अपने पति से चुदवाते समय उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ती थी। लेकिन जैसे ही उसे चुदवाने का आनंद मिलना शुरू होता की वैसे ही अशोक का पानी निकल जाता,,,, और वहां फिर से बिस्तर पर तड़पती रह जाती लेकिन उसके लिए सुकून वाली बात यह थी कि अब पहले से कुछ तो बेहतर स्थिति हो गई थी जब से वह अपने बेटे की कल्पना करके संभोग सुख का आनंद लेती थी। उसे बेटे की कल्पना करने वाली बात से ग्लानी भी होती थी और वह हर बार अपने मन को आगे से ऐसा न करने की सलाह से समझा लेती थी। लेकिन जब भी उसके बदन में कामोत्तेजना अपना असर दिखाना शुरू करता था वैसे ही बिस्तर पर अशोक के साथ संभोग की शुरुआत होते ही उसकी कल्पना में फिर से शुभम का भी ध्यान आने लगता था अब तो उसे कल्पना करने की लत सीे लग गई थी।
शुभम भी खेल के मैदान की मुलाकात बराबर लेता रहता था
खेल के उद्देश्य से नहीं बल्कि अपने दोस्तों की बातें सुनने के लिए और रोज ही उसे अपने दोस्तों से सेक्स ज्ञान मिलता रहता था। ऊन्ही दोस्तों से उसे पता चला कि औरतों को भी करवाने का मन करता है और जब ऊन्हे लंड नहीं मिलता तो वह खुद ही अपनी उंगली को अपनी बुर मे अंदर बाहर करते हुए अपनी चुदास की प्यास बुझाती है। यह बात जानते ही उसे उस दिन उसकी मां घर के पीछे नंगी हो कर के अपनी उंगली को अपनी बुर में अंदर बाहर क्यों कर रही थी इस बात का पता चल गया। इस बात को जानकर शुभम को एक झटका सा लगा था, ऊसे इस बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था कि उसकी मां को भी लंड लेने की प्यास है क्योंकि उसके दोस्तों ने बताया था कि जब औरत चुदवाने की प्यासी हो जाती है और लंट का जुगाड़ ना होने पर इस तरह के कदम उठाती है। एक और ज्ञानवर्धक बात वह अपने दोस्तों से जान कर आया था कि अगर कोई औरत मोटे लंबे और तगड़ा लंड को देख ले तो उनकी बुर में उस लंड को लेने के लिए सुरसुराहट और तड़प दोनो बढ़ जाती है। फिर वह चाहे कोई भी हो उसका लंड लिए बिना उससे चुदवाएै बिना उनकी प्यास नहीं बुझती।
यह बात जानते ही उसका दिमाग एकदम से चकरा गया,,,, उसके दिमाग में एक नई युक्ति ने जन्म लिया,,,,, वह इतना तो जान ही गया था कि उसकी मां भी लंड की प्यासी है तभी तो उस दिन वह संपूर्ण नग्नावस्था मैं अपनी प्यास बुझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी। तभी उसके मन में विचार आया कि अगर ऐसा सच में है तो किसी भी तरह से अगर उसे वह अपना लंड का दर्शन करा दे तो उसके दोस्तों के बताए अनुसार जरूर वह उसका लंड लेगी,,,,, और तभी वह ईस विचार में पड़ गया कि आखिर वह अपनी मां को अपने मोटे लंबे लंड को दिखाएं कैसे,,,,,


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