Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:39 PM,
#71
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
दूधी मोटी मोटी और एकदम लंबी,,,, एकदम तगड़ी देख ले फ्रीज में रखी होगी,,,,,( इतना कहकर निर्मला मुस्कुराने लगी शुभम को अब अपनी मां का या मुस्कुराना और उसके बातों का मतलब थोड़ा थोड़ा समझ में आने लगा था। वह बिना कुछ बोले फ्रीज में से दुधी निकाल कर किचन पर रख दिया,,, उसका लंड लगातार पेट में तंबू बनाए हुए था जिस पर बार-बार निर्मला की नजर पड़ रही थी।और उसे देखकर निर्मला की बुर फूल पिेचक रही थी। उसका बस चलता तो वह खुद ही अपने बेटे के पेंट को निकालकर उसके लंड को अपनी बुर में डलवा कर चुद गई होती लेकिन अभी मजबूर थी,,, अपने बेटी के साथ चुदवाने के बाद भी अभी भी वह शर्मो हया के पर्दे में कैद थी।
शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,,

दुधी कैसी है शुभम?

कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं,,,,

अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी,,,,,
( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)

मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।

हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो ं काम ही होता है बस दूध खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,,,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,,,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,,,,,,,,,,,,,,,, उसी पकाने में। ( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,,)

मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आख़िर ईसे पका कर खाना ही तो है।

तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो,,,, उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।
( निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी,,, यही हाल शुभम का भी था। अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए,,,, अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली,,, और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो,,,,, उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था,,,,, अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला,,,,

क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?

लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।

क्या घुस गया है मम्मी,,,,,,

अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)

तो देख लो ना क्या है?

अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती।,,,,,,,( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)

तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है,,,,,


अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है,,,,,( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली लेकिन इस बार शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे,,,,,, वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली।

बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?

मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)

हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा,,,,,

( अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था,,, अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता । वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था। और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा,,, जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा। यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है। शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी,,,, इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो,,, और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।
कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।

मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।

बेटा मेरी पेंटी मे है,,,,

( अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो ईन्कार होता ।
वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा,,, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।
धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था,,, निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला ।
03-31-2020, 03:39 PM,
#72
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी यहां तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।

( अब उसकी मां क्या कहती कुछ होता तो ना बताती,,,, अब बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं था,,,, निर्मला के बदन में वासना पूरी तरह से बस चुकी थी,,,,, इसलिए वह अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ लाकर शुभम की पेंट के बटन को खोलते हुए बोली,,,,,

ऐसे कैसे कुछ नजर नहीं आ रहा है मुझे तो कोई कीड़ा है है जो बहुत तेज काट रहा है।
( इतना कहने के साथ ही निर्मला ने अपने बेटे की पेंट के बटन को खोल करो उसके लंड को बाहर निकाल कर अपने हाथ में पकड़ ली,,,, शुभम तो एकदम हैरान रह गया वह कुछ और समझ पाता इससे पहले ही,,,निर्मला ने उसके लंड को अपनी गांड की गहरी दरार में धंसाकर रगड़ने लगी,,,, अपनी मां की हरकत पर तो शुभम की हालत एकदम से खराब हो गई,,,, ऊसका गला एकदम से सुख गया उसके मुंह से एक भी शब्द निकल नहीं पा रहे थे। निर्मला जल्द से जल्द अपने बेटे के लंड को अपनी गुलाबी बुर के छेद का रास्ता दिखा देना चाहती थी,,,, लेकिन जिस तरह से वह सीधी खड़ी थी इस तरह से गुलाबी छेद का मिलना बहुत मुश्किल था। इसलिए वो जल्दी से अपना एक पैर उठाकर किचन के टेबल पर रख दें जिससे उसकी गुलाबी रंग का सुराग साफ साफ नजर आने लगा और निर्मला ने अपने बेटे के लंड के सुपाड़े को गुलाबी बुर के छेद पर रखते हुए बोली।

ईसी मे घुसा हुआ है कीड़ा,,,,, अब ईसे तुम्हें ही निकालना है।

( अपनी मां की इतनी बात सुनकर वह अपने मां के ईसारे को समझ गया। दो बार उसने अपनी मां की चुदाई कर चुका था इसलिए उसे मालूम था कि अब क्या करना है। वह तुरंत अपनी मां की गांड को दोनों हाथों से थाम कर अपने लंड को अंदर घुसाना शुरू किया। बुर पहले से ही पनीया चुकी थी,,,, इसलिए लंड को अंदर सरकाने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई और शुभम ने थोड़े से ही झटके में अपने लंड को अपनी मां की बुर की गहराई में उतार दिया। वह समझ गया कि उसकी मां नाटक कर रही थी कोई कीड़ा वीड़ा नहीं था,,,, बल्की ऊसकी बुर में चुदाई का कीड़ा घुसा हुआ था जिसे वह उसके लंड से निकलवाना चाहती थी। थोड़ी ही देर में निर्मला की सिसकारी छूटने लगी,,, शुभम एक बार फिर से पहले वाली ही रफ्तार से अपनी मां की चुदाई कर रहा था। निर्मला को भी जैसे अपने बेटे की इस रफ्तार से मजा आने लगा था। वह भी गरम सिसकारी निकालते हुए अपने बेटे से चुदने का मजा ले रही थी। शुभम का मोटा लंबा लंड बड़ी रफ्तार के साथ उसकी मां की बुर के अंदर बाहर हो रहा था। करीब बीस मिनट तक वह ईसी तरह से अपनी मां को जमकर चोदता रहा,,,,, थोड़ी ही देर में दोनो की सांसे तीव्र गति से चलने लगी दोनों का बदन एक साथ अकड़ने लगा,,,,, और मां बेटे दोनो एकसाथ भलभला कर झड़ने लगे। एक बार फिर निर्मला अपनी प्यास बुझा,, चुकी थी।
03-31-2020, 03:40 PM,
#73
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
अद्भुत संभोग के ऐहसास से निर्मला और शुभम दोनों भर चुके थे। शुभम अपनी मां की एक बार और जबरदस्त चुदाई करने के बाद वहां रुका ही नहीं अपने कपड़े ठीक कर के वह सीधा रसोई घर के बाहर आ गया। निर्मला तो कुछ देर तक उसी स्थिति में खड़ी रही उसके दोनों हाथ किचन फ्लोर पर थे और वो थोड़ा सा झुकी हुई हांफ रही थी। उसका पूरा बदन आनंदित होकर फुदकने लगा था। और उसका मन पुलकित क्यों ना होता बरसों से किस प्यार के लिए जिस गरमा गरम रगड़ के लिए तरस रही थी उसे एक ही दिन में तीन बार उसके ही बेटे ने अपने दमदार मूसल से उसकी बुर को रगड़ चुका था। सब्र का फल मीठा होता है यह कथन निर्मला के लिए बराबर बैठ रहा था। उसने आधी जिंदगी सब्र कर के ही बीता दी थी लेकिन अब लग रहा था कि उसके सब्र का फल उसे मिलने लगा था। निर्मला रसोईघर में उसी स्थिति में हाथ रही थी उसके माथे से पसीने की बूंदें मोतियों की बूंदें बन कर नीचे फर्श पर गिर रही थी। उसे मन ही मन बेहद खुशी हो रही थी कि उसे कर्म का फल मिला था पसीना बहाने का प्रतिफल मिला था इसलिए निर्मला को आया पसीना बहाना बेकार नहीं गया था। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लालिमा पूरी तरह से छाई हुई थी। ब्लाउज के बटन कुछ हद तक टाइट हो चुके थे उत्तेजना के मारे उसके चुचियों का आकार अपने आकार से कुछ हद तक बढ़ चुके थे। निर्मला की बुर से शुभम के साथ साथ खुद उसका भी मदन रस नीचे टपक कर उसकी जांघों को भीगो रहा था। कुछ ही मिनटों में निर्मला की सांसें पूर्वरत हुई तो वह अपनी साड़ी जो कि अभी भी उसकी कमर तक चढ़ी हुई थी,,, और उसकी गोलाकार नितंबं ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रही थी,,, मखमली पेंटी का जो घुटनों में अभी तक सिमट कर रहना निर्मला की स्थिति का बयान कर रही थी।
निर्मला के बदन में आया वासना का तूफान गुजर चुका था,,,
वह अपनी पेंट को ऊपर सरका कर साड़ी को नीचे कर ली और खाना बनाने लगी।
अपने कमरे में शुभम भी बहुत खुश नजर आ रहा था। तीन तीन बार अपनी मां से संभोग करने के बाद भी उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उसने अपनी मां के साथ संभोग किया है। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे उसके हाथों में खूबसूरती का पूरा खजाना लग चुका था। जब से वह औरतों की ताक झांक में लगा था तब से अपनी मां के खूबसूरत बदन का दीवाना हो चुका था। दिन रात अपनी मां की खूबसूरत बदन की कल्पना करके अपने आप को संतुष्ट करता रहता था लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी कल्पना हकीकत में बदल जाएगी। जो भी हो रहा था उसे रोक पाना अब दोनों के बस में नहीं था।
रात का खाना तैयार हो चुका था खाना तैयार करके निर्मला नीचे से ही शुभम को आवाज लगाई और शुभम भी अपनी मां की आवाज सुनकर हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो कर के खाना खाने नीचे आ गया।
दोनों खाना खा रहे थे लेकिन फिर से सुबह की ही तरह दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी बस एक दूसरे को कनखियों में देखे जा रहे थे। दोनों के बीच सब कुछ हो जाने के बावजूद भी वार्तालाप की त्रुटि दोनों के बीच एक तरह की दूरी बनाए हुए थी। निर्मला एक परीपकव महिला थी,,,, भले ही वह खुलकर शारीरिक सुख का मजा भोग नहीं पाई थी लेकिन इतना तो जरूर जानती थी कि औरत और मर्द के बीच का रिश्ता किस तरह से एकदम खुलकर सामने आता है। तीन बार अपने बेटे से संभोग सुख का आनंद उठा चुकी थी,,, लेकिन तीनों बार खुद निर्मला ने ही पहल की थी। उसकी दिली ख्वाहिश यह थी कि शुभम पहल करें वह खुद उसे अपनी बाहों में लेकर उसे प्यार करे के चुमे चाटे उसके गुलाबी होठों को अपने होठों में भरकर चुसे,,,, उसकी बुर में खुद ही उसकी जांघों को फैला कर अपना लंड डाल कर चोदे,,,,, लेकिन वह अच्छी तरह से देख चुकी थी कि सुबह पहल नहीं कर पा रहा था अगर शुभम की जगह कोई और लड़का होता तो निर्मला को इतनी जहेमत उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लड़के तो इसी ताक में रहते हैं कि कब औरत का इशारा मिले और वह कब शुरु पड़ जाए,,,,,
निर्मला खाना खाते समय यही सब सोच रही थी और शुभम पर अपनी नजर गड़ाए हुए थी। फिर वह खाना खाते समय यह सोचे कि शुभम को अगर पूरी तरह से खोलना है तो उससे बात करनी होगी वरना वह अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कर पाएगा हो सकता है कि वह अपनी मां के साथ खुलकर कुछ नहीं कर पा रहा है अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो,,, वह भी सिर्फ उसका इशारा मिलने का इंतजार करता और इशारा मिल जाने पर खुद ही उसके ऊपर चढ़ बैठता । यह बात निर्मला के मन में एक दम पर बैठ गई कि सच में वह रिश्तो की कदर करते हुए खुल नहीं पा रहा है क्योंकि जिस तरह का उसके पास हथियार था वहां किसी भी औरत को अपना दीवाना बना सकने में पूरी तरह से सक्षम था। शुभम उसके साथ रिश्तो की व्याख्या को देखते हुए अभी भी शर्मा रहा था। निर्मला उससे बातचीत करना चाहती थी उसकी सहानुभूति हासिल करना चाहती थी क्योंकि जिस उम्र के दौर से वह गुजर रहा था,,, ऐसे में तो ही वहां अपनी मां के प्रति मन में गलत धारणा बांध लिया तो दोनों का रिश्ता उलझ कर रह जाएगा। इसलिए वह मन में सोच ली कि शुभम से बातचीत करना बेहद जरूरी है खास करके उनके बीच इस नए रिश्ते के बारे में उसकी सहानुभूति भी हासिल करना बेहद जरुरी है लेकिन शुरुआत कहां से करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था घर में दोनों अकेले थे। अशोक घर पर लोटेगा भी या नहीं लौटेगा या नक्ती नहीं था। निर्मला यही मन में सोचते सोचते खाना खा ली शुभम भी खाना खा चुका था। जैसे ही खाना खा कर शुभम कुर्सी पर से उठने वाला था वैसे ही निर्मला बोली,,,,,

बेटा थोड़ा पानी देना तो,,,,( निर्मला शुभम से कुछ और बोलना चाहती थी लेकिन हड़बड़ाहट में उसके मुंह से कुछ और निकल गया,,, ऊसे समझ में नहीं आया कि क्या बोले कहां से शुरुआत करें। तब तक शुभम पानी का जग उठा कर जग से निर्मला की गिलास को पानी से भरने लगा। शुभम भी बेहद शर्म महसूस कर रहा था इसलिए अपनी मां से ठीक से नजर भी नहीं मिला पा रहा था वह जल्दी से गिलास में पानी भरकर अपने कमरे की तरफ चला गया,,,,, निर्मला भी उसे रोक नहीं पाई और शुभम को अपने कमरे की तरफ जाते हुए बेबस होकर देखती रही लेकिन यह बात उसके लिए बड़ी ही संतोष कारक थी की,, शुभम को इस नए रिश्ते से बिल्कुल भी एतराज नहीं था। उसने अभी तक उससे इस तरह के रिश्ते के बारे में जरा भी बात नहीं किया था और ना ही उसके चेहरे से कुछ ऐसा प्रतीत होता था कि निर्मला की हरकत की वजह से वह दुखी है या उसे यह सब अच्छा नहीं लगा तुम कि वह तो चेहरे से बेहद खुश नजर आ रहा था बस उसके अंदर अभी भी शर्म थी जिसकी वजह से वो खुलकर सामने नहीं आ पा रहा था। और कुछ होता भी क्यों नहीं आखिरकार लड़कों को चाहिए भी क्या वह तो दिन रात लड़कियों और औरतों के बारे में ही सोच कर मुठ मारते रहते हैं। ऊनको तो बस लड़कियों और औरतों की बुर से ही मतलब रहता है कि कब मौका मिले और अपना लंड उसमें डाल कर ठंडा हो जाए,,,,,
और शुभम जी तो मन में यही चाहता था तभी तो जब उसे मौका मिला तो कैसी पागलों की तरह बुर में लंड डालकर बिना रूके एक वहीं रफ्तार से उसे चोद डाला,,,, और तीनों बार ऐसा नहीं लगा कि वह अपनी मां को चोदने में जरा भी ऐतराज कर रहा हो,,,, बल्कि वह तो जैसे पहले से ही तैयार रहता था तभी तो उसके पैंट के अंदर ही उसका लंड पूरी तरह से तना हुआ होता था। वह यही सब सोचकर एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,, वो फिर सोचने लगी कि तभी तो रसोई घर में वह प्यार की नजरों से उसे घूर रहा था। और उसे देख देख कर उसके पजामे में तंबू बन गया था। निर्मला यह सोच कर मन ही मन बहुत खुश होने लगी वह समझ गई थी कि उसे शुभम की तरफ से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है।
वह शुभम को पूरी तरह से अपने हुस्न का दीवाना बना देगी,, वह उसे इतना सुख देगी कि वह कभी भी मां-बेटे के रिश्ते के बारे में किसी को कुछ भी नहीं कहेगा क्योंकि इसमें भी तो उसका ही फायदा है रोज उसे चोदने को मदमस्त बुर मिलेगी,,, दबा दबा कर पीने को बड़े बड़े दो खरबूजे मिलेंगे,,,
एक बेहद खूबसूरत मदमस्त बदन वाली और अपने प्यार में मस्त कर देने वाली उसे औरत मिलेगी और क्या चाहिए उसे उसकीे तो दसो की दश उंगलियां घी में ही रहेंगी। यह सब बातें सोच कर तो निर्मला का खुद का बदन उत्तेजना से गनगना गया। निर्मला कुछ देर तक वहीं बैठ कर आगे के प्लान के बारे में सोचती रही और यह सोच कर उठी कि जब वह अपने कमरे में जाएगी तो किसी न किसी बहाने से शुभम को अपने कमरे में बुला लेगी क्योंकि फिर से एक बार निर्मला उत्तेजित हो चुकी थी एक बार फिर से ऊसकी बुर में चीटियां रेंगने लगी थी। वह खुशी खुशी टेबल पर से उठी और जल्दी जल्दी साफ सफाई का काम निपटाकर अपने कमरे में पहुंच गई। और जल्दी जल्दी अपने कपड़े बदल कर एक खूबसूरत गाउन पहन कर तैयार हो गई। वह अपने बिस्तर पर बैठ कर कुछ समय बीतने का इंतजार करने लगी।

निर्मला आज पहली बार अशोक का इंतजार किए बिना अपने कमरे में आ गई थी। वह शुभम के साथ इतने अंतरंग पल बिता चुकी थी कि उसे अशोक का ख्याल ही नहीं रहा।
03-31-2020, 03:40 PM,
#74
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
वह तो अशोक को बिल्कुल भी भूल चुकी थी उसे याद ही नहीं आ रहा कि उसका पति अशोक भी है उसे तो चारों तरफ बस शुभम ही शुभम नजर आता था। अशोक का ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया उसके रंग में भंग पड़ता नजर आने लगा,,,, वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वहां बैठे बैठे निर्मला को काफी समय हो गया और जैसे-जैसे समय बीत रहा था उसके चेहरे की रंगत वापस आ रही थी। क्योंकि उसे अब लगने लगा था कि अशोक आज घर नहीं आएगा,,,,,, दूसरी तरफ शुभम का भी यही हाल था उसकी आंखों से भी नींद कोसों दूर थीे वह भी अपनी मां के ख्यालों में खोया हुआ था।
निर्मला से रहा नहीं गया और वहां बैठकर अपने कमरे से बाहर आ गई वह कुछ देर तक वहीं खड़े होकर सोचने लगी कि वह अपने बेटे के कमरे में जाए या ना जाए,,कहीं वह सो ना गया हो। फीर भी वह कमरे की तरफ चल दी।
03-31-2020, 03:40 PM,
#75
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला की बुर में गुदगुदी हो रही थी। उसके मन में गुब्बारे फूट रहे थे क्योंकि शुभम का कमरा कुछ ही दूरी पर था और वहां पहुंचते ही वह उसकी बाहों में सिमट जाना चाहती थी उसकी लंबी चौड़ी छातीयों में सो जाना चाहती थी उसके मर्दाना हथियार से अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों को पसीज देना चाहती थी। वह बड़े ही उत्सुकता से अपने बेटे की कमरे की तरफ चले जा रही थी। वह चलते हुए अपने बेटे से चुदने के ख्याल से ही मस्त हुए जा रही थी। उसकी बुर की गुलाबी फांके उत्तेजना के मारे कंपकपा रही थी। तकरीबन 11:30 का समय हो रहा था वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि अब शायद अशोक नहीं आएगा इसलिए वह चुदवासी होकर अपने बेटे के कमरे की तरफ आगे बढ़ रही थी। जब एक औरत काम वीह्लल हो जाती है तो वह कुछ भी करने पर उतारू हो जाती है । वासना की चिंगारी सोला का रूप धारण कर चुकी थी। जिसके तपन में निर्मला और शुभम दोनों ही तप रहे थे। जो हाल निर्मला का था वही हाल शुभम का भी था वह भी अपने कमरे में करवटें बदल रहा था उसके जेहन में बस उसकी मा ही बसी हुई थी जिसके खूबसूरत बदन की कल्पना करके पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और अपने हाथ से ही अपने लंड को हिला रहा था उसके मन में भी ढेर सारे सवाल और जवाब खुद-ब-खुद उमड़ रहे थे। वह इतना तो समझ गया था कि उसकी मां पूरी तरह से चुदवाती हो चुकी हे तभी तो एक ही दिन में तीन तीन बार अपने ही बेटे के लंड से चुद चुकी थी। वह यह भी जान चुका था कि उसकी मां बेहद प्यासी औरत है,,, लेकिन यह उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पहले वह इस तरह की नहीं थी कुछ दिन में ऐसा क्या हुआ कि वह बदल गई,,,, पहले वह अपने बदन का एक भी अंग खुला नहीं रखती थी बड़े सलीके से कपड़े पहना करती थी लेकिन कुछ दिनों से उसके पहरावे और रहन सहन में भी बदलाव आ चुका था। और यह बदलाव कुछ हद तक सीमित ना रहकर अपना विस्तार फैला चुका था। और यही मर्यादा भंग करने में कारण रूप भी था।
यह सब सोचते हुए शुभम हैरान भी बहुत था और जो उन दोनों के बीच तीन तीन बार घटित चुका था उस बात को लेकर जब उसके सिर से वासना का भुत ऊतरता तो बहुत पछतावा महसूस करता था। उस बात को लेकर उसके अंदर का मर्द दूर-दूर तक नजर नहीं आता था और एक उसके अंदर का बेटा जाग जाता था। यह ख्याल उसके मन में कई बार आया कि वह अपनी मां को इस बात को लेकर जरुर समझाएगा,,,, क्योंकि जिसके साथ वह इस तरह के शारीरिक संबंध बना चुका था वह उसकी खुद की मां थी और अपनी मां के साथ इस तरह के संबंध बनाना पाप की श्रेणी में आता है इस बात का ज्ञात होते ही वह बहुत परेशान हो जाता था और उसके मन में ढेर सारे सवाल पैदा होने लगते थे कि आखिरकार वह उसका बेटा होने के बावजूद भी क्यों अपनी ही मां के साथ संबंध बनाया यह ख्याल मन में आते ही वह बेहद परेशान और अंदर से टूटने लगता था लेकिन जब उसके जेहन में उसकी मां की खूबसूरत बदन उसकी मखमली काया का एहसास होता,,,, उसके खूबसूरत बदन के उभार और कटाव की रेखा कृति उसकी आंखों के सामने आती और वह मखमली एहसास जब उसका हथियार उसकी मां की खूबसूरत और बेहद नरम अंग के अंदर प्रवेश करता और उसके खूबसूरत गोल गोल बड़ी-बड़ी मखमली गद्देदार नितंब जब ऊसकी जांघों से रगड़ खाती तो उसके अंदर का बेटा मरकर एक मर्द जाग जाता था जो कि अपनी मां को बेटे की नजर से नहीं बल्कि एक मर्द की नजर से उसके अंदर एक औरत को ही ढूंढता रहता था। यह सब ख्याल उसके अंदर से सारे वाद-विवादों को एक तरफ करके जो एक मर्द और औरत के ही रिश्ते को कायम करने की सोचने लगता और यही सब सोचते हुए अपने कमरे में वह अपने लंड को हिला रहा था।
दूसरी तरफ निर्मला पूरी तरह से कामातुर होकर अपने पति की गैरहाजिरी में अपने बेटे से चुदने की आतुरता लिए उसके कमरे की तरफ बढ़ रही थी और अगले ही पल वह शुभम के कमरे के बाहर खड़ी थी। उसका दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपने बेटे के साथ पूरी तरह से निश्चिंत होकर के अपनी रात रंगीन करना चाहती थी। बुर का इस तरह से कामोत्तेजित हो कर फुदकना उसे अच्छे संकेत लग रहे थे वह पूरी तरह से आश्वस्त थी कि कमरे के अंदर उसका बेटा आज उसको जी भर के रगड़ेगा। जैसा वह चाहती है उसका बेटा वैसा ही उसके साथ करेगा। यही सोचकर धड़कते दिल के साथ वह अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठा रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बज गई। दरवाजे पर बेल बजते ही वह पूरी तरह से चौंक गई,,,,,,, उसका हाथ जोकि अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए उठा था वह उठा का उठा ही रह गया,,,,, उसके सारे अरमान बूर के नमकीन पानी में बह गए,,,,,, उसके अंदर ही अंदर बेहद क्रोध की प्रतीति होने लगी। वह समझ गई कि उसका नाश पीटा पति अशोक वापस आ गया है। आज निर्मला के मन में ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह अपने पति को आज जी भर के गालियां दे लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी बस मन में ही दो चार गाली देकर अपना मन मार कर अपने बेटे के कमरे के बाहर से दरवाजे की तरफ दरवाजा खोलने के लिए जाने लगी जब तक वह दरवाजे पर पहुंचती अशोक बार-बार बेल बजाए जा रहा था।

हां हां दरवाजा खोल रहीे हुं इतना बजाने की जरूरत नहीं है। ( वह मन ही मन में बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोली,,,, और दरवाजा के खुलते ही अशोक घर में प्रवेश करते हुए बोला।)

इतनी देर लगती है दरवाजा खोलते हुए,,,, कब से मैं घंटी बजा रहा हूं।

मुझे क्या पता था बस जरा सी आंख लग गई थी। ( निर्मला अपने व्यवहार में नरमी लाते हुए बोली।)
आप हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जाइए मैं आपके लिए खाना लगा देती हुं।

कोई जरूरत नहीं है मैं खाना खा चुका हूं और वैसे भी मैं थका हुआ हूं मुझे सोना है। ( इतना कहते हुए वह सीढ़ियां चढ़ने लगा और निर्मला वहीं खड़ी होकर अपने पति को जाते हुए देखती रही हो मन ही मन में सोचने लगी कि जो इंसान उसके साथ ठीक से बात भी नहीं कर रहा है वह उसे प्यार क्या खाक करेगा। लेकिन अब उसके लिए अशोक का प्यार कुछ मायने नहीं रखता था एक ही दिन में वह अपने बेटे की दीवानी हो गई थी। क्योंकि आज भले ही यह मौका उसके हाथ से ज्यादा रहा लेकिन अब तो ईस तरह के मौके उसे बार-बार मिलने वाले थे। और उन मौकों का बड़े ही गरम जोशी के साथ स्वागत करने के लिए वह पूरी तरह से तैयार थी।
लेकिन इस समय उसके बदन की गर्मी पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी उसके चुदास पन में तप रहा ऊसका बदन अब उसके पति के ठंडे प्रतिभावं के कारण और इस तरह से आ जाने के कारण,,, ठंडा हो गया था उसका मूड पूरी तरह से ऑफ हो गया था। वह गर्म आहें भरते हुए एक नजर अपने बेटे के कमरे की तरफ घूम आई और सीढ़ियां चढ़ने लगी।
बिस्तर पर पहुंचते ही वह करवट लेकर एक हाथ गाउन के ऊपर से ही अपने बुर पर रखकर उसे रगड़ते हुए सो गई।

दूसरे दिन स्कूल में शीतल से मुलाकात होते ही शीतल इस तरह से उससे लिपट गई जैसे कि बहुत दिन बाद मिली हो,,,
अपने शादी की सालगिरह पर ना आने की वजह से वह निर्मला से नाराज थी जबकि निर्मला ने उसे पूरी बात बता भी दी थी।

निर्मला तू मेरी शादी की सालगिरह पर मैं यही मुझे बहुत बुरा लगा।

क्या शीतल तुझे मैं फोन पर बाताई तो थी कि किस तरह से हम लोग बारिश में फंस गए थे।

हां मैं जानती हूं तभी तो मैं बस नाराजगी जाहिर कर रही हूं। वरना मैं तुझ से बात ही नहीं करती।

यार क्या करुं शीतल बरसात ही इतनी तूफानी थी कि मैं ना तो घर वापस लौट सकी और ना ही तेरे घर आ सकी,,,

चल कोई बात नहीं निर्मला लेकिन जिस तरह से क्यों तूफानी बारिश में कार के अंदर फसी हुई थी मुझे तो बड़ा रोमांटिक लग रहा था। सोच एक औरत के लिए कितना मदहोश कर देने वाला मौका होता है जब इस तरह की बारिश हो और वह भी सुनसान जगह पर और कार में केवल एक खूबसूरत औरत (निर्मला की तरफ इशारा करते हुए) और एक जवान हो रहा लड़का जिसका हथियार न जाने कितना तगड़ा होगा (हथियार का जिक्र आते ही निर्मला की आंखों के आगे शुभम का लंबा लंड झुलतें हुए नजर आने लगा।) यार निर्मला तू पूरा का पूरा फायदा उठा सकती थी तु जरा सोच अगर ऐसे हालात में तेरे और तेरे बेटे के बीच में शारीरिक संबंध बन जाता तोभी दुनिया को कहां पता चलने वाला था कि तुम दोनों के बीच क्या है।
( शीतल की ईस तरह की बाते सुनकर निर्मला बड़े असमंजस मे थी। वह समझ में नहीं पा रही थी कि शीतल को क्या जवाब दें क्योंकि जिस तरह की शीतल आशंका जताते हुए उस मौके का फायदा उठाने के लिए उसे बोल रही थी ठीक उसी तरह का भरपूर फायदा उसने उठा चुकी थी और तूफानी बारिश में ही नहीं बल्कि घर पर भी दो बार अपने बेटे से शारीरिक संबंध बना चुकी थी। शर्म के मारे निर्मला शीतल से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी। वह अपनी आंख चुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ बढ़ने लगी,, और आगे बढ़ते हुए बोली।)
03-31-2020, 03:40 PM,
#76
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
धत्त,,,,, तू एकदम पागल हो गई है।

क्या पागल हो गई हुं, सच तो कह रही हुं ( शीतल भी उसके पीछे पीछे जाते हुए बोली।)

शीतल तू चीज मौके का फायदा उठाने के लिए बोल रही है और किसके साथ बोल रही है तो अच्छी तरह से जानती है कि वह मेरे खुद का बेटा है। यह सब जानते हुए भी तो एकदम बेशर्मों की तरह बातें कर रही है।( निर्मला अपनी आंखें चुराते हुए बोली।)

अरे क्या बेशर्मों की तरह बातें कर रहीे हुं जो कह रही हूं सच तो कह रही हूं।


तुझे इतना सब कुछ अच्छा लग रहा है तू जो मुझे कह रही है वह तू ही कर ले।( निर्मला शीतल की तरफ देखते हुए बोली उसे लगा कि ऐसा कहने पर शीतल शांत हो जाएगी लेकिन ऊसका जवाब सुनकर वहां एक दम से दंग रह गई,,, शीतल मुस्कुराते हुए बोली।)

तो भेज दे अपने बेटे को मेरे पास पूरा मर्द बना दूंगी ( इतना कहने के साथ ही वह मुस्कुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ चली गई,,, निर्मला तो उसे आश्चर्य के साथ जाते हुए वहीं खड़ी देखती रह गई वह उसकी बात सुनकर पूरी तरह से दंग रह गई थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह एक शिक्षिका की सोच है। शीतल एक टीचर होने के बावजूद इतनी गंदी बात कैसे बोल गई उसे समझ में नहीं आ रहा था।

हालांकि वह इतना जरूर जानती थी कि,,, शीतल थोड़ा खुले विचारों वाली औरत है लेकिन इस स्तर से वह बात करेगी यह निर्मला को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ पल वह क्लास के बाहर खड़ी रही और फिर अंदर चली गई आज उसका मन बिल्कुल भी क्लास में नहीं लग रहा था बार बार उसकी आंखों के सामने अपने बेटे के साथ बिताए वह कामुक पल याद आ रहे थे। रह रह कर वह अपने बेटे के मोटे लंड की रगड़ को अपनी बुर के अंदर महसूस करके उत्तेजित हो जा रही थी। शीतल की बातें उसे अंदर तक हिलाकर रख दी थी।
लेकिन शीतल जो भी कह रही थी वह ठीक ही कह रही थी क्योंकि निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी कि इस तरह के संबंध में किसी को पता चले ईस बात की जरा भी गुंजाईस नही होती। निर्मला भी अपने रिश्ते को लेकर के थोड़ी बहुत निश्चिंत थी लेकिन फिर भी उसे अपने बेटे को पूरी तरह से विश्वास में लेने के लिए उससे बात करना बहुत जरूरी था।
वह क्लास में बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि घर पर पहुंचेगी तो इस बारे में वह शुभम से वह पूरी बात करेगी और उसे विश्वास मे लेगी।

यही सोचकर वहां घर पहुंचते ही जल्दी-जल्दी घर का सारा काम काज कर के,,, और सुबह के साथ मिलकर खाना खाकर,,,, सारे काम निपटा दी,,,,, वह खाना खाते समय ही शुभम से बात करना चाहती थी लेकिन शर्म के मारे एक शब्द भी नहीं बोल पाई। उससे बोला भी नहीं जा रहा था और बात करना भी बेहद जरूरी था। ऐसी इंतजार और इंतजार की कशमकश में दिन गुजरने वाला था शुभम अपने कमरे में आराम कर रहा था और नीचे निर्मला अपने बेटे से बात करने के लिए बेचैन हुए जा रही थी। वामन में सोचने लगी कि अगर ऐसे ही वहां अभी भी शर्म करती रहीे तो यूं ही रह जाएगी और कहीं इस नए रिश्ते के बारे में शुभम नादानी में किसी से कुछ कह दिया तो खामखां बदनामी हो जाएगी। इसलिए मन में ठान ली कि आज वह शुभम से बात करके ही रहेगी इसलिए वह सोचेगी शुभम के कमरे में जाकर बात करना ही उचित रहेगा,,,,, बात करने के उद्देश्य से वह शुभम के कमरे की तरफ जाने लगी,,,,
03-31-2020, 03:40 PM,
#77
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अपने बेटे से बात करने के बारे में सोच कर ही,,,,, वह बहुत ज्यादा उत्सुक भी थी अपने बेटे से बात करके अपने नए रिश्ते के बारे में सारी रुकावटें और धारणाओं को साफ कर लेना चाहती थी। उसकी इच्छा यही थी कि अपने बेटे के साथ खुलकर आनंद लें और वह भी उसके साथ खुले तौर पर जैसे एक मर्द अपनी प्रेमिका से बर्ताव करते हैं उसी तरह से वह भी बर्ताव करें। इन्हीं सब के बारे में बात करने के लिए अपने बेटे के कमरे की तरफ जाने लगी,,,,, निर्मला के मन में वासना का जो बीज अंकुरीत हो रहा था उस पौधे पर अपने बेटे के हांथों से पानी डालने जा रही थी। निर्मला के मन में इस बात को लेकर बहुत दुविधा थे कि वह अपने बेटे से इस बारे में बात की शुरुआत केसे करेगी। यही सब सोचते हुए निर्मला अपने बेटे के कमरे तक पहुंच गई,,,,, मन में बड़ी हलचल सी मच रही थी क्या कहे क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था दरवाजा बंद था उसे यह नहीं पता था कि अंदर शुभम सो रहा है या जाग रहा है लेकिन फिर भी मन की दुविधा को अपने अंदर उमड़ रही भावनाओं को पंख देने के लिए वह दरवाजे पर दस्तक दी,,, दरवाजे पर खट खट की आवाज से ही शुभम अपने बिस्तर पर से नीचे खड़ा हो गया,,,, वह इतना तो समझ गया था कि दरवाजे पर उसकी माही खड़ी है क्योंकि घर में उन दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था,, लेकीन यह समझ में नहीं आ रहा था की आखिर ऊसकी मां क्यों आई है लेकिन तभी उसकी आंखों में चमक आ गई इस बात को लेकर कि शायद उसकी मां का फिर से मूड बन गया है। वह तुरंत बिस्तर पर से नीचे उतर गया। निर्मला दूसरी बार दरवाजे पर दस्तक देती ईससे पहले ही वह दरवाजा खोलते हुए बोला।

क्या बात है मम्मी आप यहां,,,,,

क्यों आ नहीं सकती क्या,,,,?

नहीं मेरे कहने का यह मतलब नहीं था आप इतने टाइम पर आराम करती हैं इसलिए,,,,,,

हां मुझे तुझसे कुछ जरूरी काम था,,,,,,( निर्मला की यह बात सुनते ही शुभम का दिल जोरो से उछलने लगा उसे लगने लगा कि उसकी मां फिर से उसके साथ चुदवाना चाहती है। इसलिए जानबूझकर बनते हुए वह बोला।)

क्या काम था मम्मी,,,,,


अरे सब कुछ यही खड़े-खड़े पूछता रहेगा या मुझे अंदर भी आने देगा,,,

हां हां मम्मी अंदर आइए ना (इतना कहते हुए वह थोड़ा सा बगल में हो गया और निर्मला कमरे के अंदर प्रदेश कि कमरे में निर्मला के प्रवेश करते ही मारे खुशी के शुभम ने दरवाजा बंद कर दिया,,,,, ऊसे लगने लगा कि अब फिर से मम्मी की खूबसूरत रसीली बुर में लंड डालने को मिलेगा,,,, निर्मला भी बड़ी मस्ती के साथ अपनी साड़ी के आंचल को हवा में लहराते हुए बिस्तर पर अपनी मद मस्त गांड का सारा वजन रख कर आराम से बैठ गई,,,,,, और शुभम से बोली,,,)

आज तू भी इधर मेरे बगल में बैठ,,,, ( शुभम को तो बस सुनने भर की देरी थी वह तुरंत जाकर अपनी मां की बगल में बैठ गया,,,, और बोला,,,,,)

क्या बात है मम्मी आप क्या बात करना चाहती हो,,,,,
( अपने बेटे की इस सवाल पर निर्मला हिचकिचा रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें इसलिए शर्मा कर इधर उधर नजरें घुमा ले रही थी इसलिए यह देखकर शुभम दुबारा अपनी मां से बोला,,,।)

क्या हुआ मम्मी आप क्या बात करना चाहती हैं मुझे बताओ तो,,,,,

बेटा,,,,,, मैं हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उस बारे में बात करना चाहती हुं।,,,,

कैसी बात मम्मी,,,,,


देख आज तुझे मै अपनी जिंदगी की पूरी सच्चाई बताती हूं,,,
( शुभम अपनी मां की तरफ ध्यान से देख रहा था वह तो अपनी मां की खूबसूरती में खोया हुआ था उसका गोऱा रंग ट्यूबलाइट के उजाले में और भी ज्यादा चमक रहा था। वह बार बार पंखे की हवा में लहरा रही अपनी बालों की लटों को बार-बार अपनी उंगलियों से गोरे गाल पर से हटा दे रहीे थी। जिससे निर्मला की यह अदा शुभम के बदन में हलचल मचा दे रही थी।)
बेटा तू मुझे देखकर यही समझता होगा कि मैं बहुत खुश हूं मेरी जिंदगी बड़े अच्छे से गुजर रही है और तेरे पापा मुझे बेहद प्यार करते हैं। ( शुभम अपनी मां की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था और उसकी बातों को सुन रहा था।) मेरे मुस्कुराते हंसते चेहरे के पीछे कितना दर्द कितना दूख छुपा हुआ है आज मैं तुझे सब बताऊंगी।


मम्मी तुम्हारी बात का कोई मतलब नहीं समझ पा रहा हूं आप कहना क्या चाहतीे हैं।( शुभम अपनी मां को बड़े ही आश्चर्य के साथ बोला वाकई में उसे अपनी मम्मी की बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर वह कहना क्या चाह रही थी।)

बेटा पहले तो मैं तुझे साफ साफ शब्दों में बता देना चाहती हुं कि तेरे पापा मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करते।
( अपनी मां की यह बात सुनते ही शुभम एकदम आश्चर्यचकित हो गया उसे अपनी मां के कहे गए शब्दों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था।)
हां बेटा यह बिल्कुल सच है शुरु शुरु में शादी के बाद तो 3 साल तक उन्होंने मुझसे बेहद प्यार किया लेकिन तेरे जन्म के बाद जैसे वह मुझ से दूरी रखने लगे। और यह सिलसिला आज तक जारी है।

मम्मी मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा आपके साथ हुआ है और हो रहा है क्योंकि आप को देख कर आप के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर कभी भी ऐसा नहीं लगता कि आप इतना ज्यादा दुखी है।

क्या करूं बेटा झूठी मुस्कान पर दुनिया के सामने अपना दुख छुपा ले जाती हुं लेकिन अब तू बड़ा हो गया है इसलिए तुझे मैं यह सब बता रही हूं। तेरे साथ जो मुझे इस तरह के संबंध की शुरूआत करनी पड़ी इसके पीछे भी यही कारण है।
( शुभम को अपनी मम्मी की यह बात समझ में नहीं आई वह जानना चाहता था कि उसके साथ इस तरह के संबंध बने हैं उसके पीछे इन हालातो को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ईसलिए वह अपनी मां से बोला,,,,

मम्मी मैं कुछ समझा नहीं,,,,,

अब तुझे कैसे समझाऊं मुझे समझ में खुद नहीं आ रहा है कि यह बात मैं तुझसे बोलु या ना बोलु। ( निर्मला इधर उधर देखते हुए बोली।)

मम्मी आप सब अब बता ही रही हो तो यह भी बता दो,,,,


तुझे जरूर बताऊंगी लेकिन तू मेरे बारे में कुछ गलत मत समझना तेरी मम्मी अभी भी पहले की ही तरह है बस थोड़ा सा प्यार पाना चाहती है। तेरे जन्म के बाद तेरे पापा मुझ से शारीरिक संबंध ना के बराबर रखने लगे,,,, शारीरिक संबंध मतलब तेरे पापा मुझे चोदना ही बंद कर दिए,,,, ( चोदना शब्द सुनते ही शुभम के कान के साथ-साथ उसका लंड भी खड़ा हो गया और यह शब्द बोलते हुए और वह भी अपने बेटे के सामने निर्मला के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,,, शुभम आश्चर्य के साथ बोला।)

मम्मी यह कैसे शब्दों का प्रयोग आप कर रही है।?

क्या करूं बेटा अब यह तुझसे ना कहूं तो किससे कहूं,, मैं अब जानती हूं कि तू बड़ा हो गया है समझदार हो गया है इसलिए तू मेरी इन बातों को जरूर समझेगा,,,,, तू शायद नहीं जानता की औरतों की भी बहुत इच्छा होती है।
( शुभम अपनी मां के कहने का मतलब अच्छी तरह से जानता था फिर भी अनजान बनता हुआ बोला।)

कैसी इच्छा मम्मी?
03-31-2020, 03:40 PM,
#78
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
चुदने की,,ओर कीसकी,,, ( थोड़ा रुककर बोली,,,,, )
मैं कितना तड़प रही हूं इसका एहसास शायद किसी को नहीं होगा एक औरत अपने पति से क्या चाहती है प्यार प्यार और बस प्यार,,,, लेकिन तेरे पापा ने तो मुझसे जैसे मुंह मोड़ लिया हो। मैं रात भर बिस्तर पर करवट बदलती रहती हूं मैं कितने बदनसीब हूं कि तेरे पापा के करीब होने के बावजूद भी मुझे कोई सुख नहीं है। तेरे पापा कभी कबार जब उनका मूड करता है तो मेरे साथ बिना बताए बिना प्यार किए ही चोदने लगते हैं।
( शुभम अपनी मां के बगल में बिल्कुल सट कर बैठा हुआ था अपनी मां की बातें सुनकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी जोंकि उसके लंड पर साफ असर कर रही थी।
वह कभी सपने में भी सोच नहीं सकता था कि उसकी मां उससे इस तरह की बातें करेगी,,,, चोदने चुदने जेसी अश्लील शब्दों का प्रयोग वह बिल्कुल सहज भाव से कर रही थी। शुभम को आप इतना तो समझ में आ रहा था कि उसकी मां उसके सामने पूरी तरह से खुल चुकी है तो उसे इस तरह से दबे दबे रहने से कोई फायदा नहीं था,,,, इसलिए वह भी अपनी मां के सामने खुलते हुए बड़ी हिम्मत जुटाकर बोला।)

मुझे तो मम्मी बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है आप इतनी खूबसूरत है तुम्हारा बदन इतना खूबसूरत है जब दूसरों का मन हो जाता है तो आप तो पूरी तरह से पापा की हो और वह जब चाहे तब आप को चोद सकते हैं तो वह ऐसा क्यों कर रहे हैं।

यही तो मुझे नहीं पता चल रहा है आज कितने बरस बीत गए लेकिन तेरे पापा मुझे ढंग से प्यार नहीं कर सके,,,, और यही कारण है कि मेरा झुकाव तेरी तरफ बढ़ने लगा,,,,

मेरी तरफ,,,, मेरी तरफ क्यों मम्मी,,,,,

बेटा इतने से तू समझ तो गया होगा कि मैं कितने वर्षों से प्यासी हूं और वह भी तेरे पापा से चुदने के लिए लेकिन तेरे पापा मेरी प्यास कभी भी बुझाने की जरूरत नहीं समझे,,,
मै दीन रात चुदाई के सपने देखा करती थी,,,,( शुभम अपनी मां की बातों को सुनकर एकदम चुदवासा हो गया था,,,, पजामे में उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया था,,,
जिसे वह बार बार हाथ लगाकर एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा था और निर्मला की निगाह में उसकी यह हरकत साफ आ रही थी।) मैं बरसों से अपनी प्यास को अपने अंदर दबा कर रखी हूं लेकिन मेरी प्यास उस समय एकदम भड़क गई जब मैं तुझे पहली बार तेरे कमरे में बिल्कुल नंगा खड़ा देखी थी,,,,( अपनी मां की आवाज सुनकर शुभम एकदम से चौक उठा और बोला,,,)

बिल्कुल नंगा,,,, मुझे और मेरे कमरे में,,,,, कब मम्मी,,,,?( शुभम आश्चर्य के साथ बोला उसकी यह बात सुनकर निर्मला मुस्कुराने लगी उसे पता था कि इस रिश्ते को हमेशा कायम रखना है तो दोनों के बीच की दीवार मजबूत होनी चाहिए इसलिए उन दोनों के बीच की सारी ग़लतफ़हमियां की दीवारों को गिराना बहुत जरूरी था इसलिए मुस्कुराते हुए निर्मला बोली।)

शुभम जब मैं तुझे पहली बार उस अवस्था में देखी थी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह मेरा ही बेटा है शाम को किचन में मदद कराने के लिए मुझे तेरी जरूरत थी,,,

किचन में मदद कराने के उद्देश्य से मैं तेरे कमरे की तरफ गई कमरे का दरवाजा तो बंद था लेकिन खिड़की हल्की सी खुली हुई थी जिसमे मेरी नज़र पड़ते ही मैं वह देखी जिस पर मुझे कभी विश्वास ही नहीं हो रहा था,,,,
03-31-2020, 03:41 PM,
#79
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
ऐसा क्या देख ली मम्मी,,,,,

अरे बताती हूं थोड़ा सब्र तो कर ले भागी नहीं जा रही,,,( इतना कहने के साथ ही वह थोड़ा आगे की तरफ झुकी जिसकी वजह से उसके कंधे पर से साड़ी का पल्लु नीचे गिर गया या यू कह लो कि उसने जानबूझकर साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी,,,, जिसकी वजह से ब्लाउज में कैद उसके दोनों कबूतर फड़फड़ाने लगे,,,, बड़ी बड़ी खूबसूरत चूचियां ब्लाउज के बटनों पर अपना सारा वजन डाल चुकी थी,, जिससे बटन टूटने की पूरी की पूरी सक्यता नजर आ. रही थी। चूचियां ऐसी लग रही थी कि मानो पेड़ पर कटहल लटक रहे हो,,,, शुभम की नजर जैसे ही अपनी मां के ब्लाउज के अंदर झांक रही चुचीयो पर पड़ी उसके मुंह में तो पानी आ गया। वह प्यासी अपनी मां की चुचियों को ही देखे जा रहा था जो कि निर्मला को भी साफ दिखाई दे रहा था और वह अपने बेटे को इस तरह से प्यासी नजरों से अपनी तरफ देखता हुआ पाकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। वाह जानबूझकर साड़ी के पल्लू को ठीक करने की जरुरत नहीं समझी और इसी तरह से अपनी चूचियों का प्रदर्शन अपने बेटे के सामने करती रही। और अपने होठों पर कामुक मुस्कान लाते हुए बोली,,,)

तेरे बदन पर मात्र अंडरवीयर ही था जोकि आगे से एकदम तंबू बना हुआ था जिसे साफ साफ पता चल रहा था कि तेरा लंड पूरी तरह से खड़ा है। ( लंड शब्द सुनते ही शुभम के बदन में हलचल सी मच गई,,, और साथ ही निर्मला की बुर में भी पानी का आवागमन शुरू हो गया। शुभम तो बड़े ध्यान से अपनी मां की चुचियों को देखते हुए उसकी बातों को सुन रहा था।)
मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था बेटा कि तेरा तंबू इतना भयानक भी हो सकता है तू ना जाने कसरत कर रहा था कि क्या कर रहा था यह तो मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

क्यों मम्मी,,,?

अरे क्योंकि तेरी हालत कुछ अजीब सी थी तेरा पूरा बदन पसीने से लथपथ था तु बार बार अपने अंडरवियर में बने उस तंबु को ही देखे जा रहा था। मैं तो तेरे स्तंभों को देख कर ही अंदाजा लगा लेी कि तेरा लंड कितना बड़ा होगा,,,,( शुभम को अपनी मां की बातें बेहद मस्ती भरी लग रही थी और उसे याद आ गया कि वह किस दिन की बात कर रही थी,,, वह अपने दोस्तों की बातें सुनकर इस तरह से उत्तेजित हो चुका था क्योंकि वह लोग इसकी मां के बारे में गंदी बातें कर रहे थे यह उसी दिन की बात थी जिस बारे में निर्मला बता रही थी।)
मेरा अंदाजा सही बिल्कुल सही निकला जब तू अपने तंबू को ठीक तरह से देखने के लिए अपने अंडर वियर की नीचे की तरफ सरका कर देखा तो मेरी नजर तेरे लंबे मोटे ताजे और तगडे लंड पर पड़ गई,,,, सच बताऊं तो शुभम मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतना लंबा मोटा तेरा लंड है मैं तो देख कर एकदम चौक सी गई,,,, शायद तुझे भी बड़ा अजीब सा लगा था और तू जल्दी से अपने अंडर वियर को ऊपर चढ़ा लिया। सच यह नजारा 4:से 5 सेकंड का ही था लेकिन इतने भरसे ही मेरा मन एकदम से बदल गया मेरे बदन में पूरी तरह से हलचल होने लगी बार बार मेरी आंखो के सामने तेरा लंबा लंड नजर आने लगा और तेरे लंड के बारे में सोचते ही मेरी बुर हमेशा पानी पानी हो जाती थी।

बुर,,,, ( अपनी मां के मुंह से यह शब्द सुनते ही शुभम के मुंह से भी यह सब्द अचानक ही निकल पड़ा। )

हां मेरी बुर,,,,,,, जिस मे तू अपना लंड डालकर मुझे चोद रहा था।

ऊसे बुर कहते हैं मम्मी ( ऊंगली से शुभम अपनी मां की जांघों के बीच इशारा करते हुए बोला,,, शुभम का इशारा पाते ही उसकी नजर खुद ब खुद अपनी बुर के ऊपर चली गई जो कि वह साड़ी के ऊपर से ही नजर घुमा दी थी और मुस्कुराने लगी। )

हां बेटा इसे ही बुर कहते हैं जिसमें तू अपने लंड को तीन बार डाल कर चोद चुका है और मेरी प्यास को भी बुझाने में मेरी मदद किया है। और मैं यही कहना चाहती हूं कि तू आगे भी मेरी इसी तरह से प्यास बुझाता रहे,,,,, सच बोल बेटा मेरी प्यास हमेशा इसी तरह से बुझाता रहेगा ना,,,, ( इतना कहते हुए मां अपने बेटे का हाथ पकड़कर अपने हाथ में रख ली,,,)
बोल बेटा बोल तू मेरे साथ सब कुछ वैसा ही करेगा ना जो एक मर्द अपनी औरत के साथ करता है,,( शुभम को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मम्मी के सवाल का क्या जवाब दें उसके हांथो में तो ऊसकी मम्मी खुद ही अपने बदन की पूरी विरासत थमा रही थी उसके जिस्म की पूरी सियासत शुभम को अपने हाथों से ही सोंप रही थी,,,,भला एक जवान हो रहे लड़के के लिए इस तरह का एक मदमस्त और जवान औरत के आमंत्रण से भला इंकार कैसे हो सकता था। शुभम तो खुद अपनी मां के प्रति पूरी तरह से आकर्षित हो चुका था वह खुद अपनी मां को दिन रात चोदना चाहता था। ईसलिएे इंकार करने जैसा कुछ भी नहीं था वह झट से अपनी मां की ऊंगलियों को अपनी हथेली में कस कर दबाता हुआ बोला,,,,।

हां मम्मी मैं जरूर करूंगा तुम्हें अब किसी बात की फिक्र नहीं रहेगी,,,,, ( अपने बेटे की यह बात सुनकर वह पूरी तरह से प्रसन्न हो गई और खुश होते हुए बोली।)

मुझे तुझसे ऐसी ही उम्मीद थी बेटा तू ही मेरा सहारा बनेगा तेरे पापा ने मुझे जो खुशियां ना दे पाए वह तु मुझे देगा,,, और सच कहूं तो कार के अंदर तूफानी बारिश में तेरे मोटे लंबे लंड से चुदने के बाद मैं तो तेरी दीवानी हो गई हूं,,, तुने जो इस तरह से चोद कर मेरा पानी निकाला है मुझे यकीन नहीं हो पा रहा है ऐसा सुख मैंने आज तक कभी भी नहीं भोग पाई,,,, तेरे पापा से भी मुझे इस तरह का सुख कभी भी नहीं मिला क्योंकि तेरे पापा का लंड तेरे से आधा भी नहीं होगा,,,, (,,,अपनी मां के मुंह से अपनी तारीफ और अपनी मर्दाना ताकत की तारीफ को सुनकर वो खुश होने लगा,,,)
और एक बात और बेटा तू कभी भी किसी को भी इस रिश्ते के बारे में कुछ भी नहीं कहेगा,,,, मुझसे वादा कर मेरी कसम खा ( इतना कहने के साथ ही वह अपने बेटे के हाथ को अपने सिर पर रख कर उसे कसम खिलाने लगी)

मम्मी ने क्या तुम्हें पागल लगता हूं कि जो इन सब बातों को किसी और से कहूंगा मैं कभी भी उसका ज़िक्र तक नहीं करूंगा लेकिन अगर पापा को पता चल गया तो,,,,

नहीं पता चलेगा उस मूए को कभी भी नहीं पता चलेगा,,,,,

( इतना कहते हुए निर्मला शुभम के एकदम करीब आ गई थी। उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी शुभम का भी यही हाल था अपनी मां के बदन से सटकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी खास करके उसका लंड जोकि पजामे में पूरी तरह से टन टनाकर खड़ा हो चुका था,,, उसकी हालत खराब हो रही थी जिसे वह बार बार अपना हाथ लगाकर एडजस्ट कर रहा था लेकिन निर्मला से देखा नहीं गया और उसने तुरंत उसके पजामे के ऊपर से ही लंड पकड़ ली,,, जैसे ही निर्मला ने अपने बेटे के लंड को बचाने के ऊपर से पकड़ी वैसे ही शुभम के बदन में एक करंट सा दौड़ गया,,,, उत्तेजना के मारे दोनों का गला सूखने लगा निर्मला की बुर से तो मलाई टपक रही थी,,,, वह एकदम से चुदवासी हो चुकी थी,,,, अपनी जवान बेटे को इतने करीब पाकर उससे रहा नहीं गया और वह झट से अपने गुलाबी होठों को उसके हाेठ पर रखकर चूसने लगी,,,, शुभम जी कहां पीछे हटने वाला था वह तुरंत अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा बिस्तर उन दोनों के घमासान युध्ध के लिए पूरी तरह से तैयार था। शुभम ने तुरंत अपनी मां के ब्लाउज के बटन को खोल डाला,,,, निर्मला जैसे पहले से ही तैयारी कर के आई हो इस तरह से उसने आज ब्रा ही नहीं पहनी थी। इसलिए ब्लाउज के बटन खुलते ही उसके दोनों खरबूजे हवा में उड़ने लगे,,,,
निर्मला पूरी तरह से वासना में वशीभूत होकर अपने बेटे के लंड को पजामे के ऊपर से ही दबाए जा रहेी थी। वह अपने बेटे के होठो को चूमते हुए उसे बिस्तर पर लिटाने लगी,,,
दोनों एक बार संभोग सुख प्राप्त करने के लिए अपने आपको तैयार कर चुके थे निर्मला का ब्लाउज खुल चुका था और शुभम अपने पजामे को नीचे की तरफ सरका रहा था।
निर्मला एक बार फिर से अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेना चाहती थी,,,, इसलिए तो दोनों एक दूसरे के कपड़ों को जल्द से जल्द बदन पर से उतार फैंकना चाहते थे। शुभम अपनी मां के गुलाबी होठों से अपने होंठ को हटाकर अपनी मां की बड़ी बड़ी चूचियों को पीने ही जा रहा था कि तभी दरवाजे की घंटी बजने लगी,,,,

दरवाजे पर बज रही घंटी की परवाह किए बिना ही शुभम अपना मुंह अपनी मां की बड़ी बड़ी चूची ऊपर रखकर उसे जोर-जोर से पीने लगा,,,,, निर्मला भी एकदम कामोत्तेजित हो चुकी थी वह अपने बेटे को अपनी बाहों में कस कर दबोचते हुए अपने सीने में समा लेने के लिए पूरी कोशिश कर रही थी। शुभम की उत्तेजना पल-पल बढ़ती जा रही थी उसका लंड तन कर एकदम खड़ा हो चुका था जोकि ईस समय निर्मला अपनी हथेली में दबोच कर उसे जोर जोर से मुठिया रही थी। दोनों उत्तेजना में करो बोर हो चुके थे रह-रहकर दरवाजे पर घंटी बज रही थी लेकिन दोनों एक दूसरे में खोने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके थे। मैंने अपनी हथेली में अपने बेटे के लंड की गर्मी को महसूस करके पूरी तरह से गीली हुए जा रही थी दरवाजे पर बज रही घंटी की परवाह किए बिना ही वह अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगी। उसे लगने लगा था कि शायद अशोक वापस घर पर आ चुका है लेकिन इस समय निर्मला के साथ साथ शुभम के सर पर भी वासना का चुदास पन पूरी तरह से छा चुका था। शुभम तो अपनी मां की चुचियों पर ही जैसे टूट पड़ा हो बार-बार कभी दांई चूची को मुंह मे भर कर चुसता तो कभी बांई.
दोनों में से निकल रहे रस को वह गटक जा रहा था,,,,, वह रह रह कर अपनी मां की निप्पल को दांतो से काट भी ले रहा था जिससे निर्मला की सिसकारी निकल जा रही थी और उसे मजा भी बहुत आ रहा था। उसकी गरम सिसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी।

सससससहहहहहह,,,,, आहहहहहहहह,,,, बेटा बस ऐसे ही चूस मेरी चूची को,,,,, बहुत मजा आ रहा है इस तरह से तो कभी तेरे बाप ने भी मेरी चूचियों के साथ मस्ती नहीं किया,,,, उसकी सारी कसर तू पूरी कर दे और जोर जोर से दबा दबा कर पी सारा रस निचोड़ डाल,,,,, आाााहहहहहह,,,, बेटा,,,,
( शुभम तो अपनी मां की कसम पिचकारी और उसकी बातें सुनकर एकदम से उत्तेजना से भर गया और जोर-जोर से अपनी मां की चुचियों को दबा दबा कर वह पीना शुरु कर दिया। लेकिन उसे दरवाजे पर पहुंच रही घंटी की आवाज सुनकर डर लगने लगा,, था कि उसके पापा को कहीं पता न चल जाए,,,,, इसलिए वह अपनी मां की चूची पर से अपना मुंह उठाकर उससे बोला,,,,)
03-31-2020, 03:41 PM,
#80
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी लगता है पापा घर आ गए हैं,,,, अगर ऊन्हे पता चल गया तो,,,,

तू चिंता मत कर उन्हें कुछ भी पता नहीं चलेगा बस तू लगे रे,,,,, ( इतना कहने के साथ ही वह अपने बेटे को बाहों में भर कर अपने ऊपर चढ़ा ली और झट से अपनी टांगो को फैला दी,,,,, पेंटी को तो वह पहले से ही निकाल चुकी थी इसलिए ज्यादा देर ना लगाते हुए,,, अपने बेटे के खड़े लंड के सुपाड़े को अपनी गुलाबी बुर के छेद पर रख दी,,,,, ओर बोली)

बस बेटा अपने पास समय बहुत कम है तु जल्दी से अपने खड़े लंड को मेरी बुर के अंदर उतार कर जोर जोर से चोद,,,,
( शुभम के लिए तो अपनी मां का यह इशारा ही काफी था उसे काफी तसल्ली मिली थी जब सब कुछ संभाल लेने की बात कही थी इसलिए उसे किसी बात की चिंता फिक्र नहीं थी वह तो अपनी मां की इजाजत पाते ही,,, अपनी कमर को आगे की तरफ बढ़ाने लगा जैसे जैसे अपनी कमर को आगे बढ़ा रहा था वैसे वैसे उसके लंड का मोटा सुपाड़ा निर्मला की पनियाई बुर के अंदर सरकता जा रहा था,,,, जैसे-जैसे निर्मला अपनी बुर के अंदर अपने बेटे के लंड के मोटे सुपाड़े को महसूस करती जा रही थी वैसे वैसे उसकी उत्तेजना चरम शिखर पर पहुंचती जा रही थी उसका गला उत्तेजना के मारे सूखने लगा था।
आज चौथी बार वह अपनी बुर में किसी मर्द के लंड का एहसास कर रही थी जो कि अब तक अपने पति अशोक के पतले लंड से चुदकर वह संतुष्ट नहीं हो पाई थी। निर्मला तो इतने से ही पूरे पसीने से तरबतर हो चुकी थी। शुभम स्वतंत्र जैसे अपनी मां पर टूट ही पड़ा था वह बार-बार अपनी मां के दोनों खरबूजे को दबाता हुआ उसे मुंह में भरकर टुकड़ों में काट रहा था जिससे निर्मला को भी बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी जब जब शुभम अपनी मां की बड़ी बड़ी चूची पर दांत गड़ाकर उसे हल्के से काटता तब तब निर्मला के मुंह से गर्म सिसकारी के साथ साथ ऊई मां जैसे गर्म कर देने वाले शब्द निकल जा रहे थे। माहौल पूरी तरह से करवा चुका हूं शुभम का लंड उसकी मां की बुर की गहराई नापने का था वह धड़ाधड़ अंदर बाहर करते हुए अपनी कमर हिला रहा था।
दरवाजे पर बार-बार बेल बज रही थी जिसकी फिक्र आप दोनों को बिल्कुल नहीं थी क्योंकि दोनों एक अजीब सी दुनिया में विचरण कर रहे थे। जहां पर विचरण करने का आनंद बड़ा ही अद्भुत और उन्मादक होता है। हर धक्के के साथ निर्मला सातवें आसमान पर पहुंच जा रही थी जिस तरह का जबरदस्त प्रहार शुभम कर रहा था इस तरह के प्रहार के लिए वह एकदम तरस रही थी,,, अशोक ने ऐसे घमासान कर रहे जबरदस्त धक़्कों के साथ निर्मला की कभी भी चुदाई नहीं किया था। निर्मला हैरान थी अपने बेटे की ताकत को देखकर पूरा पलंग चरमरा रहा था। चर्र्र चर्र्र,,,,,, की
आवाज से पूरा कमरा गूंज रहा था।शुभम का लंड पिस्टन की तरह निर्मला की बुर के अंदर बाहर हो रहा था। दोनो की सांसे बड़ी तेज चल रही थी,,,, निर्मला से तो उसकी उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वह बड़ी तेजी से और गहरी गहरी सांसे ले रही थी जिस वजह से शुभम का मुंह उसकी दोनों गदराई नरम नरम चुचियों के बीच ढक जा रही थी। जिससे शुभम को भी बहुत मजा आ रहा था।

ओहहहहह,,,,,, शुभम बस ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगा चोद मुझे,,,,,,,ओहहहह शुभम क्या मस्त चोदता है रे तू, मुझे तो यकीन नहीं आ रहा है कि तू मेरा बेटा है बस ऐसे ही धक्के लगा जोर जोर से धक्के लगा,,,ऊम्ममममममम,,,,, ओहह,,,,


निर्मला पूरी तरह से पागल हो चुकी थी चुदाई का ऐसा अद्भुत एहसास उसने कभी भी महसूस नहीं की थी। बैल की घंटी के साथ साथ,,,, उसकी आवाज की लय के साथ शुभम की कमर भी हील रही थी। अपनी मां को इस तरह से मदमस्त होकर चुदवाते हुए देखकर शुभम एक दम मस्त हो गया और वह और भी तेज तेज धक्के लगाने लगा।
मदमस्त हो चुकी निर्मला ने अपने बेटे से चुदते हुए इस समय कुछ ऐसी हरकत कर दी की इस हरकत पर खुद निर्मला भी पूरी तरह से चौंक गई,,,,, ऐसी हरकत उसने आज तक अपने पति से चुदते हुए भी नहीं की थी,,,, आज वह अपने बेटे के जबरदस्त धक्कों का जवाब देते हुए नीचे से अपनी मदमस्त गदराई हुई गांड को ऊपर की तरफ उठा कर खुद धक्के लगाने लगी,,,, दोनों किसी से कम नहीं थे दोनों पलंग पर एक दूसरे को पछाड़ देना चाहते थे इस समय शुभम का कमरा कमरा ना हो कर दो कुश्ती बाजो का अखाड़ा हो चुका था दोनों किसी से कम नहीं थे,,,, एक खेली खाई मदमस्त परिपक्व गजराज हुई जवानी की मालकिन थी तो दूसरी तरफ नए-नए उन्मादों से भरा हुआ जवान लट्ठ,,,, जिसने जवानी का जोश कूट कूट कर भरा हुआ था और वह अपना जोश अपनी मां को पूरी तरह से दिखा रहा था। निर्मला की बड़ी बड़ी भारी भरकम गांड जब ऊपर की तरफ ऊछलती थी तो वह नजारा देख कर किसी की भी सांस अटक जाए,,,,
उन्मादक और अति उत्तेजक नजारा बड़ी किस्मत वालों को देखने और महसूस करने को मिलता है। इस समय वह किस्मत वाला दूसरा कोई नहीं खुद निर्मला का बेटा शुभम था। जो अपनी जवानी के रस से अपनी मां की बुर को भर देना चाहता था।
थोड़ी ही देर में दोनों की सांसे तीव्र गति से चलने लगी दोनों ऐसे लग रहे थे जैसे किसी मैराथन दौड़ की प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हो और एक दूसरे को पछाड़ देने की होड़ में लगे हुए हो,,,, थोड़ी ही देर में तेज झटकों के साथ ही शुभम का बदन अकड़ने लगा साथ ही निर्मला का बदन भी अकड़ना शुरू हो गया,,,, और अगले धक्के के साथ ही शुभम भलभलाकर अपना गरम लावा अपनी मां की बुर में छोड़ने लगा साथ ही निर्मला भी अपना मदन रस बहाने लगी,,,
दोनों एक दूसरे की बाहों में तेज-तेज हांफने लगे,,, थोड़ी देर बाद जब मुझे होश आया तो दरवाजे पर बज रही घंटी का ख्याल हुआ जल्दी-जल्दी दोनों बिस्तर पर से उठ कर अपने कपड़ों को ठीक कर दिए,,, शुभम को डर लग रहा था वह सोच रहा था कि दरवाजे पर उसके पापा होंगे इसलिए घबरा रहा था लेकिन निर्मला ने सारा बहाना तैयार कर ली थी,,,,, उसे मालूम था कि क्या कहना है। दोनों जल्दी जल्दी एक कमरे से बाहर आकर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे लेकिन बेल बजने की आवाज़ अब नहीं आ रही थी,,,,, अब तो निर्मला जी घबराने लगे तो समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा अगर अशोक होगा तो आज बहुत बिगड़ेगा,,,,,,,
यही सोचकर उस ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने देख लिए एक वृद्ध औरत बैठी हुई थी जोकी दूसरी तरफ दीवार को देख रही थी।,,,,, निर्मला को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह औरत कौन है वह और नजदीक जाने लगी तो निर्मला के पैरों की चहल कदमी को भांपकर,,, जैसे ही वह औरत निर्मला की तरफ नजर घुमाई उसे देखते ही निर्मला के चेहरे पर मुस्कान फैल गई,,,,,,, ओर वह चंहकते हुए बोली,,,

मम्मी आप,,,,,,,

हां रे,,,, मैं,,,,, कब से दरवाजे पर घंटी बजा रही हूं लेकिन तू है कि जैसे घोड़े बेच कर सो रही है,,,,, (इतना कहने के साथ ही वह धीरे-धीरे उठने की कोशिश करके अपना हाथ निर्मला की तरफ बढ़ा दी ताकि वह सहारा देकर उठा सके,,,,, और निर्मला अभी तुरंत अपनी मां का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए उठा दी,,,,,)

मुझे माफ करना मम्मी को क्या है कि मेरे सर में थोड़ा दर्द था इसलिए आंख लग गई तो पता ही नहीं चला,,,,,,( निर्मला बहाना बनाते हुए अपनी मां से बोली,,,,)

चल कोई बात नहीं अच्छा यह तो बता कि मेरा नन्हा मुन्ना शुभम कहां है,,,,,,


अरे मम्मी अब वह नन्ना मुन्ना नहीं रह गया है अब तो पूरा जवान लड़का हो गया है अभी बुलातेी हूं।

शुभम को शुभम जरा देख तो कौन आया है,,,,,
( शुभम वही घर के अंदर छुप कर बातें सुन रहा था और उन बातों को सुनकर उसे इतना तो पता चल गया था कि उसकी नानी घर पर आई है,,, वह जल्दी जल्दी घर के बाहर दरवाजे पर आया और खुश होते हुए अपने संस्कारी होने का प्रमाण पत्र देते हुए अपनी नानी के चरण स्पर्श कर लिया,,,,,)


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