SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:24 PM,
#71
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
राजन का जी चाहा कि वह छोकरे का मुंह नोच ले, उसका कलेजा खा जाए, उसका खून पी जाए।
डेजी विपरीत दिशा से गली में दाखिल होकर तभी वहां पहुंची थी और अब उस संकरी गली में दाखिल होने ही वाली थी जिसमें कि उसका घर था कि शंकर ने उसे राजन की ‘चैंट’ बता दिया था। पुलिसियों का रत्ती भर भी उसकी तरफ ध्यान नहीं था लेकिन अब वे सब के सब गौर से उसकी तरफ देखने लगे।
“श्रीपत।”—सब-इन्स्पेक्टर एक हवलदार से बोला—“जरा बुलाना तो उस लड़की को।”
श्रीपत नाम का हवलदार फौरन डेजी की तरफ बढ़ गया।
राजन का दिल डूबने लगा।
“यह लड़की क्या है इसकी?”—सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा।
“चैंट।”—शंकर पूर्ववत् धूर्त भाव से बोला।
“वो क्या होती है?”
“माशूक।”
“माशूक।”—सब-इन्स्पेक्टर ने दोहराया। वह राजन की तरफ घूमा और उसे घूरता हुआ बोला—“तेरी जेब से सिनेमा की दो टिकटें बरामद हुई थीं। लड़का कह रहा है यह तेरी माशूक है। यह भी तकरीबन उसी वक्त घर लौटी है जिस वक्त तू लौटा है। कहीं तू इसी के साथ तो सिनेमा नहीं गया था?”
“अपना अमिताभ बच्चन जरूर गया होगा।”—शंकर चहककर बोला—“अभी परसों मैंने गोलचा पर इसे क्रिस्तान मेम की इस छोकरी के साथ देखा था। बहुत फिल्में दिखाता है यह इसे। फिल्में अंधेरे में जो होती हैं। और अन्धेरे में...”
शंकर बड़ी कुत्सित हंसी हंसा।
राजन बड़ी मुश्‍किल से उस पर झपट पड़ने से अपने-आपको रोक सका।
“तूने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।”—सब-इन्स्पेक्टर निगाहों से भाले बछियां बरसाता राजन से बोला—“अबे लौंडे, मैंने तुझसे कुछ पूछा है। इसी को सिनेमा दिखाने ले गया था न कश्‍मीरी गेट?”
राजन खामोश रहा।
तभी श्रीपत बद्हवास, भयभीत डेजी को साथ लेकर वहां पहुंचा।
“तुम इसी गली में रहती हो?”—सब-इन्स्पेक्टर नम्र स्वर में बोला।
डेजी ने भयभीत भाव से सहमति में सिर हिलाया।
“इतनी रात गए कहां से आई हो?”
“एक रिश्‍तेदार के यहां से।”—वह बोली।
शंकर बड़ी तिरस्कारभरी हंसी हंसा। उसने बोलने के लिए मुंह‍ खोला।
“खबरदार!”—सब-इन्स्पेक्टर आंखें तरेरकर बोला।
शंकर ने होंठ भींच लिए।
तभी आसपास के दो तीन दरवाजे खुले और कुछ लोग बाहर गली में आ गए। वे उत्सुक भाव से पुलिसियों को और बाकी लोगों को देखने लगे।
“तुम इसे जानती हो?”—सब-इन्स्पेक्टर राजन की तरफ इशारा करता बोला।
डेजी हिचकिचाई।
“झूठ मत बोलना।”—सब-इन्स्पेक्टर ने चेतावनी दी।
डेजी ने सहमति में सिर हिलाया। वह राजन से निगाह मिलाने की ताब न ला सकी। अपना पर्स उसने यूं हाथों मे जकड़ा हुआ था कि उसकी उंगलियों में से खून निचुड़ गया था।
“अभी तुम इसके साथ रिट्ज सिनेमा, कश्‍मीरी गेट से प्रेम रोग फिल्म का इवनिंग शो देखकर लौटी हो? ठीक?”
यूं सीधा सवाल पूछे जाते ही डेजी के छक्के छूट गए। वह यही समझी कि पुलिस वाले पहले ही राजन से सब कुछ कुबूलवा चुके थे।
“मैंने कुछ नहीं किया।”—वह आर्तनाद करती हुई बोली—“मैंने तो किसी पर गोली नहीं चलाई। मैंने तो...”
एकाएक वह खामोश हो गई और अपने दांतों से अपने होंठ काटने लगी।
“गोली!”—सब-इन्स्पेक्टर के कान खड़े हो गए।
डेजी खामोश रही।
तभी सब-इन्स्पेक्टर की तजुर्बेकार निगाह डेजी के हाथों में थमे पर्स पर पड़ी जिसे वह एक नवजात शिशु की तरह अपनी छाती से लगाए खड़ी थी।
“पर्स में क्या है?”—उसने कठोर स्वर में कहा।
“मुझे नहीं मालूम।”—डेजी घबराकर बोली।
“नहीं मालूम क्या मतलब? तुम्हें नहीं मालूम तुम्हारे पर्स में क्या है?”
“वह तो मालूम है लेकिन...”
उसने भयभीत भाव से राजन की तरफ देखा।
“तुम इससे बिलकुल मत डरो।”—सब-इन्स्पेक्टर उसकी निगाह का मन्तव्य समझकर बोला—“साफ-साफ बोलो तुम्हारे पर्स में क्या है?”
“मुझे नहीं मालूम।”—डेजी कम्पित स्वर में बोली।
“फिर वही बात!”—सब-इन्स्पेक्टर आंखें निकालता बोला।
“सर, बाई जीसस, मैंने थैली को खोल कर नहीं देखा।”—डेजी ने फरियाद की—“थैली जैसी इसने मुझे दी थी, वैसी ही मैंने अपने पर्स में रख ली थी।”
“इसने तुम्हें कोई थैली दी थी?”
“हां।”
“हरामजादी!”—एकाएक राजन दांत किटकिटाता हुआ डेजी पर झपटा—“कमीनी! कुतिया!”
डेजी चीख मारकर पीछे हट गई।
दो पुलिसियों ने राजन को रास्ते में ही पकड़ लिया।
“अब”—सब-इन्स्पेक्टर उसकी नाक के सामने घूंसा लहराता हुआ बोला—“अपनी जगह से हिला भी तो मार-मार कर कचूमर निकाल दूंगा।”
राजन खामोश रहा। वह खा जाने वाली निगाहों से डेजी को घूरने लगा।
“परे देखो।”—सब-इन्स्पेक्टर गरजा।
राजन ने डेजी की तरफ से गरदन फिरा ली।
“इसने तुम्हें कोई थैली दी थी?”—सब-इन्स्पेक्टर नर्मी से डेजी से सम्बोधित हुआ।
“हां।”—डेजी कम्पित स्वर में बोली।
“कब?”
“अभी थोड़ी देर पहले।”
“जब तुम दोनों आगे-पीछे चलते गली के दहाने पर पहुंचे थे?”
“हां।”
“थैली निकालो।”
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09-29-2020, 12:24 PM,
#72
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
डेजी ने पर्स को और जोर से जकड़ लिया।
“थैली निकालो।”—सब-इन्स्पेक्टर कठोर स्वर में बोला।
डेजी ने भयभीत भाव से राजन की तरफ देखा।
“तुम इसकी फिक्र मत करो।”—सब-इन्स्पेक्टर आश्‍वासनपूर्ण स्वर में बोला—“यह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
डेजी ने पर्स से थैली निकालकर सब-इन्स्पेक्टर को सौंप दी।
सब-इन्स्पेक्टर ने शनील की थैली को पहले बाहर से उलटा-पलटा फिर उसने उसका मुंह खोलकर उसके भीतर झांका। भीतर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र चमक उठे। उसने थैली को अपने एक खुले हाथ पर उलटा।
उसके हाथ पर बेशकीमती हीरे-जवाहरात जगमगाने लगे।
मोतियों की एक लड़ी देखकर तो उसकी खुशी का पारावार न रहा।
कामिनी देवी के यहां से चोरी गए जवाहरात में लड़ीदार मोतियों का विशेष जिक्र था।
उसका आंखों के सामाने अपनी वर्दी पर जड़े तीन सितारे लहराने लगे।
अनायास ही वह इतना बड़ा केस पकड़ बैठा था।
उसने एक नये सम्मान के साथ राजन की तरफ देखा।
तो वह मामूली सा लगने वाला छोकरा इतना छुपा रुस्तम था।
वह कामिनी देवी का खून और उसके यहां चोरी करने वाले बदमाशों में से एक था।
और अभी तो गोली वाली बात बाकी थी। लड़की की बातों से लगता था कि उस छोकरे ने किसी पर गोली भी चलाई थी।
उसने जवाहरात वापिस थैली में डाल दिए और उसका मुंह बन्द कर दिया।
“इसने”—सब-इन्स्पेक्टर फिर बड़ी नर्मी से डेजी से सम्बोधित हुआ—“यह थैली तुम्हें क्या कह कर दी थी?”
“यही कि मैं”—डेजी सिर झुकाए बोली—“इसे इसकी अमानत के तौर पर अपने पास रख लूं। मैं इसे छुपा लूं।”
“यह नहीं बताया था कि इसमें क्या था?”
“नहीं।”
“तुमने पूछा भी नहीं था?”
“पूछा था लेकिन इसने बताया नहीं था।”
“हूं! वह गोली वाली क्या बात थी? गोली इसने किस पर चलाई थी, कब चलाई थी?”
डेजी ने फिर आतंकित भाव से राजन की तरफ देखा।
“तुम इसकी बिल्कुल फिक्र मत करो”—सब-इन्स्पेक्टर बोला—“यह तुम्हारा कतई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
वह खामोश रही।
“लेकिन तुम्हारे खामोश रहने से”—सब-इन्स्पेक्टर के स्वर में चेतावनी का पुट आया—“हम तुम्हारा बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं। यह चोरी का माल है, लाखों की चोरी का माल है जो तुम्हारे पास से बरामद हुआ है। तुम्हारे खामोश रहने से तुम्हें चोरी में इसका सहयोगी माना जा सकता है और ऐसा मान लिए जाने का नतीजा जानती हो क्या होगा? तुम जेल तक जा सकती हो।”
“नहीं!”—वह आतंकित भाव से बोली।
“तो फिर बोलो, गोली का क्या किस्सा है?”
डेजी ने टेपरिकार्डर की तरह सबकुछ दोहरा दिया।
सब-इन्स्पेक्टर की बांछें खिल गईं।
अब तो वह तीन सितारों वाला इंस्पेक्टर बने ही बने।
उसने यूं राजन की तरफ देखा जैसे वह उसकी बीवी के लड़का होने की खबर लाया हो।
वाह! कत्ल अभी होकर नहीं हटा था कि कातिल उसकी गिरफ्त में था।
“तुम्हें चौकी चलना होगा।”—वह डेजी से बोला।
“चौकी?”—डेजी के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं।
“घबराओ नहीं। सिर्फ अपना बयान दर्ज कराने के लिए। ज्यादा से ज्यादा एक घण्टे में मैं तुम्हें घर वापिस भेज दूंगा। चाहो तो अपने मां-बाप को बुला लो।”
डेजी खामोश रही। अपने मां-बाप को सबकुछ मालूम होने के खयाल से वह थर-थर कांपने लगी थी।
गली का एक आदमी उसके मां-बाप को बुलाने चला गया।
“इसके बाप को भी बुलाकर लाओ।”—सब-इन्स्पेक्टर बोला।
“इसका बाप घर नहीं है।”—गली के ही एक आदमी ने बताया—“दरवाजे पर ताला लगा है।”
“रामप्रसाद अफीम खाता है।”—शंकर ने बताया—“कई बार पिनक में दुकान पर ही पड़ा रहता है। शायद वहीं हो।”
“मालूम कर लेंगे। श्रीपत, तुम इसके घर के दरवाजे पर बैठ जाओ। इसका बाप लौट आए तो उसे भीतर मत घुसने देना। इसके घर की तलाशी होगी। शायद वहां से चोरी का और भी माल बरामद हो। मैं सर्च वारन्ट और ज्यादा आदमी लेकर वापिस लौटता हूं।”
श्रीपत ने सहमति में सिर हिलाया। वह पीले मकान के बन्द दरवाजे के सामने डट गया।
तभी डेजी के मां-बाप वहां पहुंच गए।
सब-इन्स्पेक्टर सबको नजदीकी पुलिस चौकी ले चला।
पुलिस चौकी पहुंच कर सब-इन्स्पेक्टर ने पहला जो काम किया, वह था सैण्ट्रल कण्ट्रोल रूम में टेलीफोन काल। उसने डिस्पैचर को जल्दी-जल्दी सबकुछ समझाया और उसे कहा कि एसीपी भजनलाल जहां कहीं भी हों, उन्हें तलाश करके हालात की खबर की जाए।
ऐसा ही उनको निर्देश था।
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09-29-2020, 12:24 PM,
#73
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
शनिवार : आधी रात से पहले
नीचे गली में से आती आवाजों का शोर सुनकर रंगीला बरसाती में से निकला था और मुंडेर पर आ गया था। उसने नीचे झांककर देखा था तो उसे तीन पुलिसियों से घिरा राजन दिखाई दिया था।
उसका दिल धड़कने लगा था।
क्या राजन पकड़ा गया था?
घर के दरवाजे को बाहर से ताला लगा हुआ था। राजन का बाप नौ बजे के करीब घर आया था लेकिन उलटे पांव ही वापिस चला गया था। उसे खबर थी कि रंगीला उसके घर की बरसाती में छुपा हुआ था। राजन ने उसे सब समझा दिया था और उसे इस बात के लिए मना लिया था कि वह रंगीला का जिक्र किसी से न करे। हर वक्त नर्वस और परेशान लगने वाला बूढ़ा वक्ती तौर पर अपनी जुबान बन्द रखने के लिए मान तो गया था, लेकिन रंगीला का उस पर विश्‍वास नहीं बन पाया था। वो रात उसने किसी तरह वहां काटनी थी, उसके बाद उसने हर हाल में अपना कोई दूसरा इन्तजाम करना था।
लेकिन अब उसे वो रात भी चैन से कटती दिखाई नहीं दे रही थी।
नीचे पुलिसिये मौजूद थे, राजन उनकी गिरफ्त में मालूम होता था और वे किसी भी क्षण उसे मकान का ताला खोलने के लिए मजबूर कर सकते थे।
फिर मकान की तलाशी।
फिर रंगीला की गिरफ्तारी।
उसने अपने कपड़े उतारकर बरसाती की एक खूंटी पर टांग दिए थे। उस वक्त वह राजन का एक कुर्ता पायजामा पहने था। वह झपटकर वापिस बरसाती में पहुंचा। उसने कुर्ता पायजामा उतारकर अपने कपड़े पहन लिए।
जब वह मुंडेर पर वापिस लौटा तो उसने देखा कि नीचे गली के कुछ लोग भी जमा हो गए थे और उस भीड़ में एक जींसधारी नौजवान लड़की भी दिखाई दे रही थी। उतनी ऊंचाई से उसे लड़की ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी, उसकी मुंडेर की तरफ पीठ थी, लेकिन फिर भी रंगीला को लगा कि वह राजन की वही सहेली थी जिसे उसने परसों ‘गोलचा’ में राजन के साथ देखा था।
क्या माजरा था?
राजन घर से जाती बार केवल इतना कहकर गया था कि वह रात को लेट वापिस लौटने वाला था, उसने यह नहीं कहा था कि वह कहां जा रहा था और किसके साथ जा रहा था।
क्या वह उस लड़की के साथ ही कहीं तफरीह के लिए गया था और वापसी में पुलिस द्वारा धर लिया गया था?
लेकिन क्यों?
अब क्या कर दिया था उसने?
सस्पेंस से रंगीला के दिल की धड़कन तेज होने लगी थी।
नीचे से लोगों के बोलने की आवाजें तो उस तक पहुंच रही थी लेकिन आवाजें इतनी धीमी थीं कि उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
“मैंने कुछ नहीं किया।”—एकाएक लड़की की चीखती सी आवाज उसके कानों में पड़ी—“मैंने तो किसी पर गोली नहीं चलाई। मैंने तो...”
गोली!
रंगीला की सांस सूखने लगी।
उसे मालूम था, बहुत बाद में मालूम हुआ था लेकिन मालूम था कि सोमवार रात को राजन कामिनी देवी के फ्लैट से उसकी रिवॉल्वर उठा लाया था।
क्या उस रिवॉल्वर से राजन ने किसी पर गोली चला दी थी?
फिर नीचे लड़की ने पहले की तरह आर्तनाद करती आवाज में किसी थैली का जिक्र किया जो कि राजन ने उसे दी थी।
फिर रंगीला ने राजन को गालियां बकते लड़की पर झपटने की कोशिश करते देखा।
फिर शनील की थैली एक पुलिसिये के हाथ में।
फिर उसकी हथेली पर जगमग जगमग करते हुए जवाहरात। जवाहरात की जगमग रंगीला को दो मंजिल ऊपर से भी दिखाई दी।
सत्यानाश!—रंगीला के मुंह से अपने आप ही निकल गया।
एकदम सुरक्षित और चाक चौबन्द लगने वाले काम का मुकम्मल बेड़ा गर्क हो जाने में अब क्या कसर रह गई थी!
पहलवान गायब था।
राजन उसे अपनी आंखों के सामने माल समेत पुलिस की गिरफ्त में दिखाई दे रहा था।
वह खुद पुलिस के हाथों में पड़ने से बाल बाल बचा था और उनके खौफ से दुम दबाकर भागा था।
तभी रंगीला ने लड़की समेत नीचे मौजूद सब लोगों को वहां से विदा होते देखा।
केवल एक पुलिसिया पीछे रह गया।
गली खाली हो गई।
पीछे रह गया पुलिसिया मकान के बन्द दरवाजे के सामने चबूतरे पर जमकर बैठ गया।
रंगीला को उस प्रत्यक्षत: खाली और बन्द मकान के सामने उसकी मौजूदगी का मतलब समझते देर न लगी।
शर्तिया मकान की तलाशी होने वाली थी।
और वह मकान के भीतर फंसा हुआ था।
मकान की बैठक की दो खिड़कियां गली में खुलती थीं और उनमें सींखचे या ग्रिल नहीं थी लेकिन पुलिसिये की मौजूदगी में वह उन खिड़कियों के रास्ते कैसे गली में कदम रख सकता था!
और वहां से निकासी का कोई रास्ता नहीं था।
क्या वह पुलिसिये पर हमला कर दे?
हथियारबन्द तो वह‍ था नहीं, ऊपर से वह उम्रदराज आदमी दिखाई दे रहा था, उसे वह काबू में तो बड़ी सहूलियत से कर सकता था लेकिन उसको काबू करने के लिए उसके सिर पर पहुंचना जरूरी था। खिड़की के भीतर से खुलने की आहट पाकर या उसे खुलती देखकर वह सावधान हो सकता था और चीख चिल्लाकर सारी गली इकट्ठी कर सकता था।
नहीं! उधर से बाहर निकलने का खयाल भी करना मूर्खता थी।
तो?
क्या करे वह?
मकान की तलाशी की नीयत से किसी भी क्षण भारी तादाद में पुलिसिये वहां पहुंच सकते थे। फिर वह चूहे की तरह वहां फंस जाता।
नहीं! उसने वहां से भाग निकलने की हर हालत में कोशिश करनी थी, फौरन कोशिश करनी थी।
उसने छत का चक्कर लगाया।
उस मकान के दायें बायें उतने ही ऊंचे दोमंजिला मकान थे लेकिन पिछवाड़े का मकान एकमंजिला था। पिछवाड़े के मकान की पीठ राजन के मकान की पीठ से जुड़ी हुई थी और उसके सामने इधर की ही तरह गली थी।
रंगीला ने उधर की गली तक पहुंचने का फैसला किया।
मुंडेर फांदकर दाएं बाए के मकानों तक वह सहूलियत से पहुंच सकता था लेकिन वहां से अगर वह नीचे पहुंचता भी तो गली में ही पहुंचता और गली में मौजूद हवलदार उसे ललकार सकता था।
उसने पिछवाड़े की एकमंजिला छत पर निगाह डाली।
छत सुनसान पड़ी थी। उसके एक भाग तक गली की मद्धिम सी रोशनी पहुंच रही थी, बाकी छत अन्धेरे में डूबी हुई थी।
वह बरसाती में पहुंचा।
दो चादरें फाड़कर उसने उनकी रस्सी सी बनाई। उसने रस्सी का एक सिरा मुंडेर के साथ बांध दिया और दूसरे को पिछवाड़े की नीची छत की तरफ लटका दिया।
उस रस्सी के सहारे वह निर्विघ्न पिछले मकान की एकमंजिला छत पर पहुंच गया।
दबे पांव वह उसकी गली की तरफ की मुंडेर तक पहुंचा। उसने गली में नीचे झांका।
गली सुनसान थी।
और उससे मुश्‍किल से बारह तेरह फुट दूर थी।
उसने देखा कि दीवार के साथ लगा एक परनाला ऐन गली के पर्श तक पहुंच रहा था।
उसने एक सावधान निगाह गली के दोनों तरफ डाली और फिर मुंडेर फांदकर उसकी परली तरफ लटक गया। उसने परनाले को हिला-डुलाकर देखा।
परनाला मजबूत था।
बन्दर की सी फुर्ती से परनाला पकड़कर वह नीचे गली में उतर गया।
तभी गली के बाहरले सिरे पर उसे एक आदमी दिखाई दिया।
वह सकपकाया।
क्या उस आदमी ने उसे परनाले से नीचे उतरता देखा हो सकता था?
नहीं।—उसकी अक्ल ने जवाब दिया—नहीं देखा हो सकता था। अगर देखा होता तो वह अभी तक शोर न मचाने लगा होता!
फिर भी किसी भी क्षण वहां से बगूले की तरह भाग निकलने को तत्पर वह सावधानी से आगे बढ़ा।
वह आदमी उसकी बगल से गुजरा तो उसने पाया कि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे और उसके मुंह से ठर्रे के भभूके छूट रहे थे। रंगीला की तरफ तो उसने तब भी न झांका, जबकि वह उसकी बगल से गुजरा।
रंगीला ने चैन की सांस ली।
वह गली से बाहर निकला।
बाजार में पहला कदम पड़ते ही वह ठिठक गया।
अब कहां जाऊं?—उसने अपने आपसे सवाल किया।
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09-29-2020, 12:24 PM,
#74
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
समझदारी की बात तो यही थी कि वह शहर से निकल जाता, लेकिन वह काम मुमकिन कहां था। उसकी तलाश में पुलिस ने शहर से निकासी का हर रास्ता ब्लॉक किया हुआ होगा। पुलिस के पास उसकी तसवीर भी थी। हर रेलवे स्टेशन पर, बस अड्डे पर—एयरपोर्ट पर शायद नहीं, क्योंकि एयर ट्रैवल की उसकी औकात पुलिस को नहीं दिखाई दी होगी—उसकी निगरानी हो रही होगी। इतनी रात हो गई थी। सड़कों पर अकेले भटकना भी खतरनाक था। नाइट पेट्रोल वाले पुलिसिये भी उसे रोक कर उससे सवाल कर सकते थे और फिर कोई उसे पहचान भी सकता था।
तो फिर वह कहां जाए?
सबसे बड़ी समस्या उसके सामने रात गुजारने की थी।
दिन में वह सलमान अली के पास भी जा सकता था। दिन में कम से कम अपने आपको उसके मत्थे मंढ़ने की वह कोशिश तो कर सकता था, रात में तो वह मुमकिन ही नहीं था। मौलाना ने खासतौर से हिदायत दी थी कि उन तीनों में से कोई उसके पास न फटके। रंगीला को इतनी रात गए आया पाकर वह हरगिज दरवाजा न खोलता। रंगीला के बाज न आने पर शायद वह उसको पकड़वा देने से भी गुरेज न करता।
और अफसोस की बात यह थी कि चारहाट की जिस गली के दहाने पर वह उस वक्त खड़ा था, वहां से सलमान अली के घर का मुश्‍किल से दो मिनट का रास्ता था।
क्या वह किसी होटल में चला जाए?
पहाड़गंज का पूरा इलाका होटलों से भरा हुआ था। वहां के किसी घटिया होटल में वह रात गुजार सकता था।
लेकिन वहां उसे पुलिस से ज्यादा दारा के आदमियों से खतरा हो सकता था।
अजीब मुसीबत थी।
वह घर से बेघर हो गया था। अपनी बेवफा बीवी से उसका साथ छूट गया था। पुलिस उसे तलाश कर रही थी और इतनी मुसीबतें जिस दौलत की खातिर उस पर टूटी थीं, उसका आनन्द अभी उससे कोसों दूर था, महीनों दूर था।
चोरी का एक मामूली सा लगने वाला काम इतनी विनाशकारी सूरत अख्तियार कर लेगा, उसने कभी सोचा तक नहीं था।
भारी कदमों से वह आगे बढ़ा, यह सोच कर आगे बढ़ा कि आखिर उसने वहां तो खड़े रहना नहीं था, उसने कहीं तो जाना ही था।
दरीबे के आगे से गुजर कर वह बायीं तरफ एस्प्लेनेड रोड पर मुड़ गया।
वहां कारों की लम्बी कतारें लगी हुई थीं। रंगीला को मालूम था कि दरीबे और किनारी बाजार की तंग गलियों में रहने वाले पैसे वाले लोग वहां अपनी कारें पार्क करते थे।
क्या वह वहां से कोई कार चुरा सकता था?
कैसे चुरा सकता था? गैरेज की सुविधा और सुरक्षा से वंचित जो लोग यूं कारें खड़ी करते थे, वे छ: छ: तरह के तो ताले लगाते थे अपनी कारों में। कोई ताला क्लच के पैडल के साथ तो कोई स्टियरिंग के साथ। कोई इग्नीशन के साथ तो कोई गियर के साथ।
तभी मोती सिनेमा की तरफ से एक एम्बैसेडर कार वहां पहुंची। कार ही हैडलाइट्स बहुत तेज थीं और उसकी चौंधिया देने वाली रोशनी की वजह से वह केवल कार का आकार ही देख पाया।
वह कतार में खड़ी कारों में से एक की ओट में हो गया।
पुलिस का महकमा भी एम्बैसेडर कारें ही इस्तेमाल करता था। वह पुलिस की कोई गश्‍ती गाड़ी भी तो ही सकती थी। उसके गुजर जाने तक उसने रास्ते से हट जाना ही मुनासिब समझा।
लेकिन वह कार वहां से न गुजरी।
रंगीला से थोड़ा परे पहुंच कर वह रुकी, उसकी हैडलाइट बुझ गयी और पार्किंग लाइट जल उठी।
तब रंगीला को दिखाई दिया कि वह पुलिस की गाड़ी नहीं थी। उसके भीतर केवल एक ही आदमी मौजूद था जो अब कार को दो कारों के बीच मौजूद जगह में बड़ी दक्षता से बैक कर रहा था।
रंगीला ने मन ही मन एक फैसला किया और दबे पांव आगे बढ़ा।
कार वाले ने कार को पार्क किया, उसके दरवाजों के भीतर से लॉक चैक किए और उसकी बत्तियां वगैरह बुझा कर कार से बाहर निकला।
तभी रंगीला उसके सिर पर पहुंच गया।
वह कोई पचपन साल का निहायत कृशकाय बूढ़ा था जो उसका एक घूंसा बर्दाश्‍त न कर सका। रंगीला का प्रचण्ड घूंसा उसकी छाती पर ऐन उसके दिल पर पड़ा। उसके मुंह से एक कराह भी न निकली और उसका शरीर कार की बॉडी के साथ फिसलता सड़क पर ढेर हो गया।
रंगीला ने अभी भी उसकी उंगलियों में मौजूद चाबी का गुच्छा निकाल लिया। उसने जानने की कोशिश नहीं की कि वह बेहोश हो गया था या मर गया था।
वह फौरन कार में सवार हुआ। उसने कार का इग्नीशन ऑन किया और बिना हैडलाइट्स जलाए उसे आगे बढ़ाया।
सड़क के पार कुछ रिक्शा वाले एक अलाव के इर्द गिर्द बैठे थे। किसी ने भी कार की दिशा में निगाह न उठायी।
वह कार को सड़क पर ले आया।
अब वह तनिक आश्‍वस्त था कि स्थाई नहीं तो एक चलती फिरती छत का साया उसके सिर पर था।
मोड़ से उसने कार को बाएं मोड़ा और उसे रामलीला मैदान के साथ साथ दौड़ा दिया। आगे मेन रोड पर कार के पहुंचते पहुंचते उसने हैडलाइट्स जला लीं।
उसका दिमाग अभी भी यह सोच रहा था कि वह कहां जाए!
आगे लाल किले के विशाल चौराहे की सिग्नल लाइट्स बन्द हो चुकी थीं और उस वक्त केवल ब्लिंकर चल रहा था। उसने निर्विघ्न चौराहा पार किया।
जमना पार झील के इलाके में उसका एक दोस्त रहता था जिसके पास जाने का इरादा उसके मन में आया था लेकिन अगले चौराहे पर, जहां से कि जमना पार के इलाके के लिए सड़क मुड़ती थी, पहुंचने तक उसने वह इरादा अपने मन से निकाल दिया।
नहीं, किसी नए आदमी की शरण लेने का माहौल तब नहीं था।
जीपीओ के पास से आगे बढ़ने के स्थान पर उसने कार को पीछे हाईवे को जाती सड़क पर दौड़ा दिया।
हाईवे पर आकर उसने कार के पैट्रोल वाले मीटर पर निगाह डाली। कार की टंकी तीन चौथाई भरी हुई थी। यानी कि अभी वह बहुत देर यूं ही कार चलाता रह सकता था और सोचता रह सकता था कि वह कहां जाए।
रास्ता सुनसान पड़ा था।
कभी कभार कोई इक्का दुक्का वाहन ही होता था, जो सर्र से खाली सड़क पर उसकी बगल से गुजर जाता था। उससे काफी आगे एक विलायती कार जा रही थी, जिसके ड्राइवर को उसकी तरह कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं मालूम होती थी।
तभी एकाएक ब्रेकों की भीषण चरचराहट के साथ वह कार रुकी। कार लेफ्टहैंड ड्राइव थी। उसका दाईं तरफ का दरवाजा एकाएक खुला और कोई चीज सड़क पर धप्प से आकर गिरी। तुरन्त कार का दरवाजा बन्द हुआ और कार यह जा वह जा।
उसी क्षण रंगीला ने अपनी कार को दाईं तरफ गहरा झोल न दिया होता तो कार से गिरी, या गिराई गई, चीज जरूर उसकी कार के बाएं पहियों के नीचे आ जाती। उसकी कार उस चीज की बगल से गुजरी तो उसने उसमें हरकत नोट की। कार को आगे ले जाकर उसने रोका और पीछे झांका।
सड़क पर एक लड़की उठ कर खड़ी हो रही थी।
रंगीला को बड़ी हैरानी हुई।
उसने कार को रिवर्स करना आरम्भ किया।
लड़की जींस और हाईनैक का पुलोवर पहने थी। उसके बाल कटे हुए थे जो उस वक्त उसके सारे चेहरे पर इस कदर बिखरे पड़ रहे थे कि रंगीला को उसकी सूरत दिखाई न दी। जिस्म उसका खूब नौजवान था और पके फल की तरह तैयार लग रहा था। रंगीला जानता था कि वैसे खूबसूरत जिस्म के साथ थोबड़ा खूबसूरत न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था।
उसने कार को लड़की के समीप लाकर खड़ा किया।
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09-29-2020, 12:25 PM,
#75
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
तब उसे मालूम हुआ कि लड़की विदेशी थी। वह अपने कपड़े झाड़ रही थी और बार-बार अपने बालों को अपने चेहरे से परे कर रही थी जो कि वापिस फिर वहीं आ जाते थे।
रंगीला ने हाथ बढ़ा कर लड़की की तरफ की खिड़की का शीशा नीचे गिराया और फिर बोला—“क्या हुआ?”
लड़की ने सवाल को पता नहीं क्या समझा, उसने कार का उधर का दरवाजा खोला और भीतर आ बैठी।
“दि फिल्दी सन ऑफ ए बिच!”—वह मुट्ठियां भीचें, नथुने फुलाये सांप की तरह फुंफकारती बोली—“दि लाउजी बास्टर्ड! फर्स्ट ही लेड मी, दैन ही लेड मी अगेन, दैन अगेन, दैन अगेन, दैन अगेन, दैन ही किक्ड मी आउट ऑफ हिज कार।”
रंगीला को उसकी फैंसी अंग्रेजी समझ न आई। वह इतना ही समझा कि वह विलायती कार वाले को गलियां दे रही थी।
“मिस्टर, कैन यू फालो दैट कार?”
“लिसन।”—रंगीला कठिन स्वर में अंग्रेजी में बोला—“मुझे अंग्रेजी खूब अच्छी तरह नहीं आती। इसलिए धीरे-धीरे बोलो और साफ-साफ बोलो।”
“तुम उस कार वाले को पकड़ सकते हो जो मुझे यहां धक्का देकर गया?”
“तुम्हें मालूम है वह कहां गया होगा?”
“नहीं।”
“तो फिर कैसे पकड़ सकता हूं?”
“यह सड़क तो काफी दूर तक सीधी जाती लगती है!”
“सीधी तो यह अमृतसर तक जाती है लेकिन इस पर दाएं-बाएं मुड़ जाने पर कोई पाबन्दी तो नहीं है।”
“ओह!”
“था कौन वो कार वाला?”
“था कोई हरामी का पिल्ला।”
“वह तो वह सरासर था वर्ना तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की को यूं सड़क पर न फेंक गया होता!”
“स्वाइन! डर्टी डबल क्रासर! मदर लवर...”
“कौन था वो?”
“मेरा कोई सगे वाला नहीं था।”
“वाकिफकार होगा।”
“वह भी नहीं।”
“तो?”
“मिस्टर, आई एम इन ट्रबल।”
“सो एम आई।”
“फिर तो शायद हम एक-दूसरे के काम आ सकें।”
“शायद।”
“तुम्हारा क्या प्राब्लम है?”
“पहले तुम बताओ।”
“मैं एक टूरिस्ट हूं। कैनेडा से आठ जनों के एक ग्रुप के साथ घर से निकली हुई हूं। यहां हम इन्टरस्टेट बस टर्मिनस के सामने स्थित टूरिस्ट कैम्प में ठहेर हुए थे। आजकल शहर में डेंगू बुखार फैला हुआ है, वह बद्किस्मती से मुझे हो गया। मेरे साथी इतने हरामजादे निकले कि मुझे पीछे यहां छोड़कर पाकिस्तान चले गए और मुझे कह गए कि मैं दस दिन के अन्दर-अन्दर लाहौर पहुंच जाऊं। कुत्ते के पिल्ले कहते थे कि उनके मेरे साथ ठहरने से वह वायरल फीवर उन सबको हो सकता था इसलिए कमीनों ने मुझे डिच कर दिया।”
“लेकिन वह कार वाला...”
“सुनते रहो। बीच में मत बोलो।”
“ओके।”
“टूरिस्ट कैम्प में से मेरा सारा नकद रुपया चोरी चला गया। जो कीमती सामान मेरी मिल्कियत था, वह मेरे साथी अपने साथ ले गए। अब मेरे पास लाहौर पहुंचने के लिए किराया तक नहीं है। जो कार वाला अभी मुझे यहां फेंक कर गया था, वो कोई हिन्दोस्तानी था जो टूरिस्ट कैम्प में ठहरे किसी फ्रांसीसी टूरिस्ट से मिलने आया था। वह मेरे पास भी आया था।”
“तुम्हारे पास क्यों?”
“वह अपने आपको विलायती माल अच्छे दामों पर बिकवाने में स्पेशलिस्ट बता रहा था। वह मुझसे भी पूछ रहा था कि मैं कोई कैमरा, कोई टू-इन-वन या ऐसी कोई चीज बेचना चाहती थी। मैंने उसे बताया कि मेरे पास ऐसी कोई चीज नहीं थी लेकिन मुझे पैसे की सख्त जरूरत थी और यह कि क्या वह कहीं से मुझे कुछ रुपया उधार दिलवा सकता था? वह बोला छोटी मोटी रकम तो वही मुझे दे सकता था। मैंने उससे लाहौर तक के प्लेन फेयर की मांग की। बदले में उसने पूरी बेशर्मी से मेरी मांग की। मैंने हामी भर दी। मैं उसके साथ उसकी कार पर चली गयी। दिन भर हरामजादे ने मुझे खूब यूज किया। फिर जब पैसे की बात आई तो बोला टूरिस्ट कैम्प में चल कर देता हूं। लेकिन अपनी मां का यार कैम्प पहुंचने से पहले ही मुझे अपनी कार में से सड़क पर धक्का देकर भाग गया।”
“बड़ा कमीना निकला वह आदमी!”—वह हमदर्दीभरे स्वर में बोला।
“हां। और मै हरामजादे के साथ एक्सट्रा डीसेन्सी से पेश आई थी। कमीने को कोई कद्र ही न हुई। ही वाज ओनली आप्टर ए ले।”
रंगीला ने हमदर्दी में जुबान चटकाई। उस लड़की में उसे अपनी मौजूदा दुश्‍वारी का हल दिखाई दे रहा था।
“मिस्टर”—लड़की आशापूर्ण स्वर में बोली—“तुम मेरी मदद करोगे? मुझे प्लेन फेयर दे दोगे? आई डोंट माइन्ड इफ यू ले मी।”
“तुम्हाना नाम क्या है?”—रंगीला ने पूछा।
“टीना।”
“टूरिस्ट कैम्प में जो जगह तुम लोगों ने ली हुई है, उसका किराया वगैरह पेड अप है?”
“हां। मेरे साथी मेरा यहां हर तरह का मुनासिब इन्तजाम करके गए थे। वे तो डेंगू के डर से मुझे यहां छो़ड़ कर भागे थे।”
“तुम मुझे अपने साथ पाकिस्तान ले जा सकती हो?”
“पासपोर्ट है तुम्हारे पास?”
“पासपोर्ट?”
“और वैलिड वीसा भी?”
“है।”—रंगीला ने यूं ही कह दिया।
“तो फिर क्या प्रॉब्लम है? फिर मैंने क्या ले जाना है तुम्हें? टिकट खरीदो और पहुंचो।”
“लेकिन मैं तुम्हारे साथ जाना चाहता हूं।”
“क्यों?”
“तुम इतनी खूबसूरत जो हो।”
“नॉनसैंस।”
“पाकिस्तान तक हम दोनों का साथ रहे तो क्या हर्ज है?”
“कोई हर्ज नहीं। लेकिन मिस्टर....”
“क्या?”
“पहले मुझे प्लेन फेयर दे दो।”
“दे दू्ंगा।”
“पहले दो। ऐसा न हो कि तुम भी मुझे उस आदमी की तरह कहीं ले जाओ और फिर...”
“मैं तुम्हें कहीं नहीं ले जाऊंगा।”
“मतलब?”
“तुम मुझे लेकर जाओ।”
“कहां?”
“अपने टूरिस्ट कैम्प में। तुम्हारी तो वहां ग्रुप बुकिंग होगी?”
“हां।”
“इ‍सलिए जाहिर है कि किसी को मेरे वहां तुम्हारे साथ रहने के कोई एतराज नहीं होगा।”
“नहीं होगा। एतराज का सवाल ही नहीं।”
“और तुम्हें? तुम्हें एतराज होगा?”
“कतई नहीं। मैं तो अकेले बोर हो जाती हूं। अच्छा है, कम्पनी रहेगी।”
“गुड।”
“लेकिन प्लेन फेयर...”
“मैं दूंगा। मेरा विश्‍वास करो।”
“वह आदमी भी यही कहता था। और वह तुमसे ज्यादा मीठा बोलता था।”
रंगीला ने अपनी जेब से सौ-सौ के दस नोट निकाले और उसे थमा दिए।
“यह सिक्योरिटी समझकर रखो।”—वह बोला—“तुमने दो टिकट खरीदने होंगे। एक अपना और एक मेरा। बाकी पैसे भी दे दूंगा।”
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09-29-2020, 12:25 PM,
#76
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नोट देख कर टीना की बांछे खिल गईं। एकाएक वह छलांग मार कर रंगीला के ऊपर चढ़ गई और उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात करने लगी।
रंगीला ने एतराज न किया।
थोड़ी देर बाद उसने लड़की को परे धकेला।
“तुम्हें कार चलानी आती है?”—उसने पूछा।
“यह भी कोई पूछने की बात है?”—वह हैरानी से बोली।
“क्यों पूछने की बात नहीं?”
“हमारे यहां तो ड्राइविंग स्कूल में पढ़ाई के साथ सिखाई जाती है।”
“ओह! यह कार चला लोगी? यह राइट हैण्ड ड्राइव है, इसलिए पूछ रहा हूं।”
“चला लूंगी।”
“तो फिर कार तुम चलाओ।”
“क्यों?”
“मुझे टूरिस्ट कैम्प का रास्ता नहीं आता। खामखाह बार-बार तुमसे पूछना पड़ेगा।”
“सीधा तो रास्ता है...”
“कार तुम चलाओ।”
“ओके।”
दोनों ने कार में बैठे-बैठे ही जगहें बदल लीं।
अपनी उस विषम स्थिति में भी रंगीला को उसके शरीर का स्पर्श बड़ा अच्छा लगा।
टीना ने कार आगे बढ़ाई।
टूरिस्ट कैम्प वहां से मुश्‍किल से एक मील दूर था।
पलक झपकते कार वहां पहुंच गई।
उसने हॉर्न बजाया तो दरबान ने दरवाजा खोल दिया।
कैम्प में लगे कई तम्बुओं में से एक के सामने ले जाकर टीना ने कार रोक दी।
“दिस इज दि प्लेस।”—वह बोली—“पेड-अप फॉर अनदर फाइव डेज।”
रंगीला खामोश रहा।
“आओ।”
दोनों कार से निकले।
टीना उसे तम्बू में ले आई।
तम्बू बहुत विशाल था, लेकिन एक स्लीपिंग बैग और चन्द कपड़ों के अलावा खाली था। स्लीपिंग बैग फर्श पर बिछा हुआ था और उसके समीप एक जॉनीवाकर रैड लेबल की आधी भरी बोतल पड़ी थी।
रंगीला ने होंठों पर जुबान फेरी।
“पियोगे?”—वह उसकी निगाह का अनुसरण करती बोली।
“तुम पियोगी?”—रंगीला ने पूछा।
“पी सकती हूं।”
“सकती हूं क्या मतलब?”
“अगर पहले कुछ खाने का सिलसिला बन जाए। दोपहर से मैंने कुछ नहीं खाया।”
“क्या खाओगी?”
“कुछ भी।”
“चिकन?”
“शौक से।”
“लेने कौन जाएगा?”
“यहां का आदमी ला देगा।”
रंगीला ने उसे एक सौ का नोट दिया।
टीना चिकन का इन्तजाम करने बाहर चली गई।
रंगीला भी बाहर निकला।
उसने देखा, एक तरफ दीवर के साथ पानी का एक नल लगा हुआ था जो कि लीक कर रहा था। उससे बहते पानी ने नल के आसपास की कच्ची जमीन पर कीचड़ सा किया हुआ था।
रंगीला आगे बढ़ा, उसने दोनों हाथों में वह कीचड़ काफी सारा समेटा और उसे कार की आगे और पीछे, दोनों तरफ की नम्बर प्लेटों पर इस प्रकार थोप दिया कि नम्बर ठीक से पढ़ा न जा सके।
फिर उसने हाथ धोये और तम्बू में वापिस लौट आया।
आधे घण्टे बाद उनके पास दो चिकन पहुंच गए।
दोनों खाने और पीने में जुट गये।
“लिसन।”—एकाएक वह बोली।
“हां।”—रंगीला बोला।
“तुमने मुझे अपना नाम नहीं बताया।”
“सलमान अली।”—रंगीला तनिक हड़बड़ाये स्वर में बोला—“सलमान अली नाम है मेरा।”
“मैं तुम्हें अली कहकर पुकारूंगी।”
“ठीक है।”
“तुम इसी शहर में रहते हो?”
“पहले रहता था, अब नहीं रहता। मेरा मतलब है अब नहीं रहूंगा।”
“क्यों?”
“बीवी से झगड़ा हो गया है। मैं हमेशा के लिए घर छोड़ आया हूं।”
“बच्चे भी हैं?”
“नहीं?”
“झगड़ा क्यों हो गया?”
“वह बेवफा निकली। किसी और आदमी से प्यार करती थी।”
“पकड़कर मारा होता उस आदमी को?”
“वह कभी मेरी पकड़ाई में नहीं आया।”
“कभी तो पकड़ाई में आएगा ही!”
“अब क्या फायदा! अब तो मैंने घर छोड़ दिया!”
“ओह! अगर मैं न मिलती तो इतनी रात गए कहां जाते?”
“फिलहाल तो किसी होटल में ही जाता। आगे की देखी जाती।”
“तुम पाकिस्तान क्यों जाना चाहते हो?”
“यूं ही सैर के लिए। तुम्हारे साथ के लिए। तुम साथ ले जाओगी तो तुम्हारे साथ आगे भी जहां कहोगी चला चलूंगा।”
“चले चलना। मुझे क्या एतराज होगा!”
“शुक्रिया।”
“माल पानी काफी लगता है तुम्हारे पास।”
“है गुजारे लायक। कुछ गुजारे से फालतू भी है लेकिन उसके बारे में मैं फिर बताऊंगा। मेरा साथ दोगी तो तुम्हें उसमें हिस्सेदार भी बना लूंगा।”
“सच!”
“हां।”
“हाउ स्वीट!”
“मिसाल के तौर पर यह देखो।”
रंगीला ने उसे एक हीरा दिखाया।
“डायमंड!”—टीना मुंह से किलकारी सी निकालती बोली।
“पसन्द है?”—रंगीला बोला।
“आई लव डायमंड्स।”
“यह मेरी तरफ से अपने लिए भेंट समझे।”
“भेंट?”
“प्रेजेन्ट।”
“तुम मजाक कर रहे हो?”
“नहीं।”
“यह हीरा तुम मुझे दे रहे हो?”
“हां।”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम मुझे अच्छी लगी हो।”
“ओह!”
उसने झिझकते हुए हीरा ले लिया। कुछ क्षण वह उसे अपनी उंगलियों में उलटती-पलटती रही, फिर रंगीला की तरफ सिर उठा कर बड़ी अदा से बोली—“थैंक्यू।”
“मैंशन नॉट।”—रंगीला बड़ी शान से बोला।
“अब बदले में देखो तुम्हें मैं क्या देती हूं!”
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09-29-2020, 12:25 PM,
#77
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“क्या?”
“मिस्टर, आई विल गिव यू दि टाइम आफ दि डे दैट यू विल नैवर फॉरगैट।”
“थैंक्यू।”
“तैयार हो जाओ।”
“मैं तैयार हूं।”
टीना बाज की तरह उस पर टूट पड़ी और उसकी बोटी-बोटी झिंझोड़ने लगी।
वक्ती तौर पर रंगीला को कतई भूल गया कि वह पुलिस से दुम दबा कर भागा हुआ फरार अपराधी था।
रविवार : सुबह
अगले दिन जब रंगीला की नींद खुली तो उसने तम्बू की एक झिरी में से भीतर दाखिल होती तीखी धूप को अपने चेहरे पर खिलवाड़ करती पाया। उसने आंखें पूरी खोलीं और सबसे पहले अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया।
नौ बज चुके थे।
उसने तम्बू में चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
टीना उसे कहीं दिखाई न दी।
वह उठ कर बैठ गया।
अपने कपड़ों को उसने पिछली रात लपेट कर तकिए की सूरत में सिर के नीचे रख लिया था। कपड़े पहनने से पहले उसने अपना कोट चैक किया।
जवाहरात की थैली यथास्थान मौजूद थी।
नोटों का पुलन्दा भी सही सलामत था।
तभी टीना ने भीतर कदम रखा।
“गुड मार्निंग।”—रंगीला को उठ गया पाकर वह बोली।
“गुड मार्निंग।”—रंगीला बोला।
“मैं कैंप की कैन्टीन में ब्रेकफास्ट का ऑर्डर करने गई थी। ब्रेकफास्ट आने में अभी वक्त लगेगा। तब तक शायद तुम टायलेट वगैरह जाना पसन्द करो।”
“टायलेट कहां है?”
टीना ने बताया।
रंगीला ने टीना का एक तौलिया अपने काबू में किया और वहां से निकल गया।
बीस मिनट बाद नहा धोकर जब वह वापिस लौटा तो उसने ब्रेकफास्ट तम्बू में पहुंच चुका पाया।
कॉफी, आमलेट और स्लाइस।
दोनों खामोशी से ब्रेकफास्ट करने लगे।
“एक बात बताओ।”—एकाएक टीना बोली।
“क्या?”—रंगीला तनिक सकपकाए स्वर में बोला।
“यह कार तुम्हारी है?”
“क्यों पूछ रही हो?”—रंगीला और भी सकपकाया।
“कोई खास वजह नहीं। मेरा मतलब है अगर यह कार तुम्हारी है तो क्यों न हम कार पर ही इन्डिया पाकिस्तान बार्डर तक चलें। पैसे भी बचेंगे और ड्राइव का भी मजा आ जाएगा।”
“ओह!”
“क्या खयाल है?”
“खयाल बुरा नहीं।”
“अब प्रोग्राम क्या है?”
“पहला प्रोग्राम तो यही है कि एक बार मुझे अपना पासपोर्ट लाने के लिए अपने घर जाना होगा। उसके बाद सोचेंगे कि कार पर आगे चलें या प्लेन टिकट का इन्तजाम करें।”
“ठीक है।”
रंगीला वहां स्वयं को बहुत सुरक्षित महसूस कर रहा था। पुलिस उस जैसे मामूली आदमी की विदेशी पर्यटकों के लिए बने टूरिस्ट कैम्प में मौजूदगी की उम्मीद नहीं कर सकती थी।
लड़की का साथ, जो कि उसे अनायास ही हासिल हो गया था, अब उसे बहुत रास आ रहा था। अब वह तब तक जरूर उससे चिपका रहना चाहता था, जब तक कि वह सुरक्षित उस शहर से बाहर नहीं पहुंच जाता था।
कार का नम्बर उसे चिन्ता में डाल रहा था। उसका नंबर उस रोज के अखबार में भी छपा हो सकता था। नम्बर प्लेट पर मिट्टी थुपी होने के बावजूद नम्बर ही की वजह से वह कार पहचानी जा सकती थी। वहां का कोई खुराफाती कर्मचारी सोच सकता था कि बाकी साफ सुथरी पड़ी कार की नम्बर प्लेटों पर मिट्टी क्यों थुपी हुई थी। और तो और वह टिप हासिल करने की खातिर उसे साफ करने बैठ सकता था।
और कार को अभी वह अपने काबू से छोड़ना नहीं चाहता था।
उसने ब्रेकफास्ट समाप्त किया।
फिर टीना से विदा लेकर वह वहां से निकल पड़ा।
टीना उसे कार न ले जाता देखकर हैरान तो हुई लेकिन फिर यह सोचकर खामोश रही कि शायद उसने कहीं पास ही जाना था।
रंगीला टूरिस्ट कैम्प से बाहर निकला।
सड़क पर पहुंचते ही सबसे पहले उसने एक अखबार खरीदा। अखबार लेकर वह टूरिस्ट कैम्प के पीछे ही मौजूद कुदसिया बाग में घुस गया। रविवार का दिन होने की वजह से कई धूप सेंकते लोग वहां मौजूद थे।
वह एक कोने के एक खाली बैंच पर बैठ गया।
अखबार खोलते ही उसके छक्के छूट गए।
मुखपृष्ठ पर से उसकी अपनी तसवीर उसकी तरफ झांक रही थी।
वह वही तसवीर थी जो उसके घर की एक दीवार पर लगी हुई थी और जिसके बारे में कोमल ने उसे बताया था कि उसे पुलिस उतारकर ले गई थी।
उसने जल्दी जल्दी तसवीर के साथ छपी खबर को भी पढ़ा।
खबर में उसे साफ साफ कामिनी देवी की हत्या और उसके फ्लैट पर हुई चोरी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। कौशलसिंह डबराल और राजन कुमार नामक दो अन्य व्यक्तियों को उसका सहयोगी बताया गया था। उन दोनों में से राजन पिछली रात चोरी के माल में अपने हिस्से समेत गिरफ्तार हो चुका था और कबूल कर चुका था कि वह अपने रंगीला और कौशल नामक दो साथियों के साथ उस चोरी में शामिल था जिसमें कि किसी की कत्ल की मर्जी न होते हुए भी कामिनी देवी की जान गई थी। उसने यह भी स्वीकार किया था कि पिछली रात कश्‍मीरी गेट के इलाके में उसने दामोदर नामक एक युवक की उस पर गोली चलाकर हत्या कर दी थी।
रंगीला अखबार पढ़ता पढ़ता ठिठका।
तो राजन पिछली रात खून करके लौटा था!
तो यह वजह थी उसकी पुलिस के साथ झैं झैं की।
अब उसे लग रहा था कि पिछली रात वह बहुत ही बाल बाल बचा था।
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09-29-2020, 12:25 PM,
#78
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
उसने अखबार आगे पढ़ना शुरू किया।
अखबार में छपी अपनी तसवीर से भी ज्यादा छक्के उसके इस खबर ने छुड़ाए कि कौशल मर चुका था।
उसकी नृशंस मौत का हौलनाक विवरण पढ़कर उसकी आखें नम हुए बिना न रह सकीं। पहलवान ने मरते दम तक अपनी जुबान नहीं खोली थी, तभी तो उसकी इतनी दुर्गति हुई थी। वह अपनी जुबान खोल देता तो भी उसके जिन्दा बचने की कोई गारण्टी तो नहीं थी लेकिन अपनी जुबान बन्द रखकर उसने अपना फर्ज निभाया था, अपने दोस्तों के साथ किया अपना वादा पूरा किया था और, रंगीला को नहीं मालूम था कि, एक बार जो विश्‍वास की हत्या वह कर चुका था, उसका प्रायश्‍चित किया था।
राजन न पकड़ा जाता तो कौशल की कुर्बानी का उन दोनों को बहुत लाभ पहुंचता। वे पुलिस और दारा के आदमियों के प्रकोप से बचे रहते। लेकिन राजन की गिरफ्तारी ने तो भाण्डा ही फोड़कर रख दिया था। रंगीला को न सिर्फ पुलिस से बचना था बल्कि दारा के आदमियों से भी बचना था।
उसने जल्दी जल्दी बाकी की खबर भी पढ़ी।
अखबार में श्रीकान्त के बारे में भी छपा था। उसका जिक्र पुलिस के एक प्रवक्ता के बयान में था जिसने प्रेस को बताया था कि पुलिस को रंगीला की तथा उसके पास आसिफ अली रोड की चोरी के जवाहरात की मौजूदगी की खबर श्रीकान्त के ही माध्यम से लगी थी जो कि रंगीला की बीवी का प्रेमी था और जो ईनाम के लालच में अपनी प्रेमिका से दगाबाजी करके बीमा कम्पनी वालों के पास पहुंच गया था जहां पर कि पुलिस पहले से ही उसकी घात में मौजूद थी।
उसने बाकी का अखबार भी इस उम्मीद में टटोला कि शायद किसी और हैडलाइन के अन्तर्गत उसी केस से ताल्लुक रखती कोई और बात छपी हो।
ऐसा नहीं था।
रंगीला को बड़ी हैरानी हुई।
सलमान अली का कहीं जिक्र नहीं था।
राजन, जो रंगीला और कौशल के बारे में सब कुछ बक चुका था, सलमान अली के बारे में कैसे खामोश रह पाया?
या शायद वह खामोश नहीं रह पाया था।
शायद पुलिस ने ही वह खबर दबवा दी थी।
शायद उन्हें रंगीला के सलमान अली के पास पहुंचने की उम्मीद थी।
लेकिन अखबार तो सलमान अली ने भी जरूर पढ़ा होगा। जो कुछ अखबार में छपा था, वह बाखूबी उसके छक्के छुड़ा सकता था। जिन लोगों के साथ उसने जवाहरात बांटे थे, उनमें से एक मर चुका था, एक गिरफ्तार हो चुका था और एक फरार था, लेकिन किसी भी क्षण गिरफ्तार हो सकता था। ऐसे हालात तो मौलाना को जुलाब लगा सकते थे और जो इरादा रंगीला अब किए हुए था, वह फेल हो सकता था।
लेकिन यह उसका खयाल ही तो था—फिर उसने अपने-आपको तसल्ली दी—कि पुलिस सलमान अली से सम्बन्धित जानकारी दबाए हुए थी। हो सकता था कि पुलिस को सूझा ही न हो कि उनका कोई चौथा साथी भी हो सकता था और राजन ने खुद सलमान अली का नाम न लिया हो।
उसका दिल कहने लगा कि उसे मालूम होना ही चाहिए था कि सलमान अली पुलिस की निगाह में था या नहीं था। अगर नहीं था तो अखबार में छपी खबर पढ़कर वह आगे क्या करने का इरादा रखता था।
उसने अखबार को लपेटकर वहीं बैंच के नीचे फेंक दिया और उठ खड़ा हुआ।
पैदल चलता वह कश्‍मीरी गेट पहुंचा।
वहां से उसने पीतल के नम्बरों वाली दो नम्बर प्लेटें खरीदीं। नम्बर उसने ऐसा बनवाया कि कार पंजाब स्टेट में रजिस्टर्ड लगे।
नम्बर प्लेटों के साथ वह टूरिस्ट कैम्प वापिस लौटा।
वहां एक पेचकस की सहायता से उसने चोरी की कार की दोनों नम्बर प्लेटें उतारीं और उनकी जगह नई प्लेटें लगा दीं।
कार की चोरी की खबर उसे अखबार में नहीं दिखाई दी थी। शायद वह खबर वक्त रहते अखबार के दफ्तर तक नहीं पहुंच पाई थी।
कार से उतारी प्लेटों को वह समीप ही बहते एक गंदे नाले में फेंक आया।
उस सारे अभियान के दौरान इस बात का उसने खास खयाल रखा था कि किसी का ध्यान उसकी तरफ न जाता।
फिर वह कार पर सवार हुआ और बिना टीना के तम्बू के भीतर निगाह डाले वहां से विदा हो गया।
कैम्प के दरवाजे पर तैनात दरबान ने उसे ठोककर सलाम किया।
वह इस बात का सबूत था कि वह पहचाना नहीं गया था। सलाम का हकदार इज्जतदार टूरिस्ट होता था, न कि इश्‍तिहारी मुजरिम।
रविवार को दरीबा और किनारी बाजार दोनों बन्द होते थे, इसलिए वहां कोई खास भीड़ नहीं थी।
किनारी बाजार वह एक रिक्शा पर सवार होकर पहुंचा था।
अपनी चोरी की कार वह लाल किला के प्रवेश द्वार के सामने खड़ी करके आया था। जिस इलाके से उसने कार चोरी की थी, उसमें कार समेत फटकना उसे मुनासिब नहीं लगा था।
वह सलमान अली की गली में दाखिल हुआ।
सलमान अली के मकान पर ताला झूल रहा था।
कहां गया होगा?
रविवार को तो वह कभी कहीं नहीं जाता था।
और वह भी इतने सवेरे!
एक पब्लिक टेलीफोन तलाश करके उसने वहां से उस नम्बर पर टेलीफोन किया जो कि मौलाना ने उसे इमरजेंसी के लिए दिया था।
कोई उत्तर न मिला।
उसने किनारी बाजार के नयी सड़क वाले सिरे तक दो चक्कर लगाकर वक्तगुजारी की और फिर वापिस सलमान अली के दरवाजे पर लौटा।
दरवाजा बदस्तूर बन्द था।
कहां मर गया कम्बख्त?—उसने झुंझलाकर सोचा।
तभी एकाएक उसके मन में एक खयाल आया।
सलमान अली कहीं घर के भीतर ही तो नहीं था!
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09-29-2020, 12:25 PM,
#79
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
दरवाजे के साथ ही एक खिड़की थी, जिसमें सीखचे नहीं थे। वह दरवाजे को ताला लगाकर उस खिड़की के रास्ते मकान के भीतर दाखिल हो सकता था और खिड़की को भीतर से बन्द कर सकता था।
सलमान अली इस तरीके से भीतर दुबका बैठा हो सकता था।
यानी वह उस रोज का अखबार वह पढ़ चुका था और उसमें छपी रंगीला की तसवीर देख चुका था।
यानी अब रंगीला उसके लिए छूत की बीमारी की तरह परहेज के काबिल हो गया था।
वह गली से बाहर निकल गया, ताकि अगर सलमान अली उसे कहीं से छुपकर देख रहा था तो वह यही समझता कि रंगीला वहां से चला गया था।
पांच मिनट बाद रंगीला फिर गली में दाखिल हुआ। इस बार वह सलमान अली के मकान के सामने तक न पहुंचा।
सलमान अली के मकान और उसकी बगल के मकान के बीच में एक कोई डेढ़ फुट चौड़ी गली-सी थी जिसमें से होकर दोनों घरों के पानी के परनाले बहते थे। कोई दस फुट गहरी वह गली सिर्फ उसी काम आती थी। रंगीला आंखों-आंखों में यह जायजा ले चुका था कि वह उस गली के रास्ते दोनों दीवारों का और परनालों का सहारा लेकर छत तक चढ़ सकता था। गली क्योंकि किसी प्रकार की राहगुजर नहीं थी इसलिए उसके भीतर कोई नहीं झांकता था।
लेकिन फिर भी अगर कोई उसे यूं दिन दहाड़े ऊपर चढ़ता देख लेता तो उसकी कम्बख्ती आ सकती थी।
लेकिन उस वक्त वह उस खतरे को खातिर में न लाया।
उस वक्त उसकी निगाह में सबसे अहम काम सलमान अली के मकान के भीतर पहुंचना था।
राहदारी ज्यों ही खाली हुई, रंगीला उस दरार जैसी संकरी गली में घुस गया। कुछ क्षण वह यूं ही गली में खड़ा रहा। उस क्षण उसे कोई वहां देख लेता तो वह कह सकता था कि वह पेशाब कर रहा था।
दो-तीन मिनट तक जब किसी ने उसमें न झांका तो रंगीला पाइप के सहारे बन्दर जैसी फुर्ती से ऊपर चढ़ने लगा। पाइप बहुत कमजोर था लेकिन गली इतनी संकरी थी कि ऊपर चढ़ते समय दूसरे मकान की दीवार के साथ उसकी पीठ लग जाती थी, इसलिए उसके शरीर का सारा भार पाइप पर नहीं पड़ता था।
वह निर्विघ्न सलमान अली के मकान की छत पर पहुंच गया।
छत पर वह कुछ क्षण सुस्ताता रहा और अपने कपड़े झाड़ता रहा।
फिर उसका ध्यान नीचे जाती सीढ़ियों के दरवाजे की तरफ आकर्षित हुआ।
वह दरवाजा भीतर की तरफ से बन्द था।
उस दरवाजे की झिरियों में से उसने भीतर झांकने की कोशिश की तो नीमअन्धेरी सीढ़ियों के अलावा उसे कुछ न दिखाई दिया।
वह कान लगाकर आहट लेने की कोशिश करने लगा।
नीचे से उसे दो-तीन बार हल्की-सी आवाजें आयीं तो सही लेकिन उन आवाजों की वह शिनाख्त न कर सका। नीचे सलमान अली भी हो सकता था और वह चूहों वगैरह द्वारा मचाई खटपट भी हो सकती थी।
वह अपना अगला कदम निर्धारित करने की कोशिश में दरवाजे के सामने ठिठका खड़ा रहा।
मकान की मुंडेर काफी ऊंची थी और दरवाजे के ऊपर शेड पड़ा हुआ था, जिसकी वजह से आसपास के ऊंचे मकानों में सर्दियों की धूप सेंकते लोगों की निगाहों से वह बच सकता था।
उसने दरवाजे को धक्का देकर देखा।
उसका कुण्डा भीतर से बहुत मजबूती से लगा हुआ था लेकिन लकड़ी कमजोर थी।
उसने आसपास निगाह डाली।
एक तरफ फर्श पर एक डेढ़ फुट लम्बी लोहे की सलाख पड़ी थी। उसने वह सलाख उठा ली। सलाख जंग खाई हुई थी लेकिन मजबूत थी।
उसकी सहायता से वह दरवाजे के तख्तों को उमेठ-उमेठ कर दरवाजे को इतना तोड़ सकता था कि टूटे भाग में से हाथ डालकर वह भीतर से दरवाजे को लगी सांकल खोल सकता।
वह बड़ी खामोशी से उस काम में जुट गया।
पन्द्रह मिनट में वह अपने अभियान में कामयाब हो गया।
दरवाजा खोलकर उसने सीढ़ियों में कदम रखा।
दबे पांव वह पहली मंजिल पर पहुंचा।
सलमान अली वहां नहीं था।
वह सारे मकान में फिर गया।
सलमान अली कहीं नहीं था।
तो क्या उसने गलत सोचा था कि सलमान अली मकान के भीतर था?
वह उसकी वर्कशॉप में पहुंचा।
उसने बत्ती जलाई और एक स्टूल पर बैठ गया।
स्टूल पर औजारों के सामने एक चाय का गिलास पड़ा था जिसमें दो-तीन घूंट चाय अभी बाकी थी। अनायास ही उसका हाथ गिलास को छू गया।
गिलास गर्म था।
रंगीला को बड़ी हैरानी हुई।
उसने नथुने उठाकर लम्बी-लम्बी सांस लीं तो उसे अनुभव हुआ कि वातावरण में बीड़ी के धुएं की गंध बसी थी।
उन दोनों बातों का जो सामूहिक मतलब रंगीला की समझ में आया, उसने उसका खून खौला दिया।
सलमान अली वहीं था।
जिस वक्त वह छत पर सीढ़ियों का दरवाजा खोलने की कोशिश में लगा हुआ था, उस वक्त वह नीचे खिसकने की तैयारी कर रहा था।
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09-29-2020, 12:25 PM,
#80
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
उस रोज का अखबार वर्कशॉप की टेबल पर चाय के गिलास के पास पड़ा था। वह इस प्रकार मुड़ा हुआ था कि रंगीला की तसवीर सामने झांक रही थी।
जाहिर था कि मौलाना उसकी परछाई से भी बचने की कोशिश कर रहा था।
उसने नये सिरे से तलाशी लेनी आरम्भ की। इस बार की तलाशी का मन्तव्य सलमान अली को तलाश करना नहीं था इसलिए हर जगह को उसने बड़ी बारीकी से टटोला।
उसे कहीं कोई नया कपड़ा दिखाई न दिया।
शेविंग का सामान न दिखाई दिया।
फेथ डायमंड या उसके भग्नावषेश न दिखाई दिए।
कैसे भी कोई जवाहरात न दिखाई दिए।
उसका दिल गवाही देने लगा कि सलमान अली वहां से खिसक गया था, न सिर्फ खिसक गया था, हमेशा के लिए खिसक गया था। ऊपर छत की तरफ से क्योंकि रंगीला भीतर घुसने की कोशिश कर रहा था, इसलिए वह सिर्फ अपना इन्तहाई जरूरी सामान ही वहां से समेट पाया था।
मिसाल के तौर पर हीरे तराशने में काम आने वाले उसके कीमती औजार वहीं पड़े थे।
मिसाल के तौर पर वर्कशॉप की बैंच की एक दराज में एक भरी हुई पिस्तौल पड़ी थी।
उसका पिस्तौल भी वहां छोड़कर जाना रंगीला को वह सोचने पर मजबूर कर रहा था कि मौलाना दिल्ली ही नहीं छोड़ रहा था, हिन्दोस्तान ही छोड़ रहा था।
उसने पिस्तौल की गोलियां निकाल कर एक अलग दराज में डाल दीं और पिस्तौल को वापिस वहीं रख दिया जहां से उसने उसे उठाया था।
अब वह अपने आपको सलमान अली की जगह रखकर सोचने लगा कि अगर उसने फौरन मुल्क छोड़कर भागना हो तो उसे कहां जाना चाहिए था?
कौशल ने उसे बताया था कि सलमान अली के तकरीबन रिश्‍तेदार लाहौर रहते थे।
क्या वह हवाई जहाज से लाहौर के लिए रवाना हुआ हो सकता था?
नहीं।
वह तो रंगीला के एकाएक वहां पहुंच जाने की वजह से आनन-फानन भागा था। वैसे ही आनन-फानन उसे लाहौर का प्लेन टिकट कैसे हासिल हो सकता था?
लेकिन वह रेल से अमृतसर जा सकता था।
एक बजे के करीब फ्लाइंग मेल नामक एक गाड़ी अमृतसर जाती भी थी। उससे आगे बॉर्डर मुश्‍किल से तीस किलोमीटर था। अगर सलमान अली पासपोर्ट का इन्तजाम कर चुका था तो यूं वह बड़ी सहूलियत से पाकिस्तान पहुंच सकता था।
उसने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली।
बारह बजने को थे।
वह फुर्ती से सीढ़ियां उतरकर नीचे पहुंचा।
उसने खिड़की को भीतर की तरफ से खोला और बाहर झांका।
ज्यों ही बाहर गली खाली हुई, वह खिड़की में से निकल कर चबूतरे पर आ गया। उसने खिड़की के पल्ले आपस में मिलाकर खिड़की वापिस बन्द कर दी और चबूतरे से उतरा। फिर वह लम्बे डग भरता गली से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसे एक रिक्शा मिल गया। उस पर सवार होकर वह लाल किला के मुख्यद्वार पर पहुंचा। वहां से वह अपनी चोरी की कार में सवार हुआ और नयी दिल्ली स्टेशन की तरफ उड़ चला।
उसके दिल के किसी कोने में एक शंका सिर उठा रही थी।
क्या उसका रेलवे स्टेशन पर कदम रखना मुनासिब होगा?
सलमान अली की तलाश में वह खुद भी तो वहां फंस सकता था।
लेकिन उसने यह सोच कर अपने आपको तसल्ली दी कि उसके स्टेशन के भीतर घुसने की नौबत नहीं आने वाली थी।
सलमान अली उससे कुछ ही मिनट पहले अपने मकान में से खिसका था, उसके पास थोड़ा बहुत सामान भी जरूर था, इस लिहाज से मुमकिन था कि वह सलमान अली से पहले स्टेशन पहुंच जाता। फिर वह उसे स्टेशन के बाहर ही पकड़ सकता था। स्टेशन के भीतर कदम रखना तो वाकई उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता था।
बहरहाल सलमान अली को थामने की कोशिश उसने जरूर करनी थी। और कई बातों के अलावा एक बात यह भी तो थी कि वह फेथ डायमण्ड अकेला ही डकारे जा रहा था।
दिल्ली गेट के चौराहे से वह दाएं घूमा। उसके साथ साथ ही एक डबल डैकर बस मोड़ काट रही थी। उसने बस को तनिक आगे निकल जाने देने के लिए अपनी कार की रफ्तार कम की। बस तिरछी होकर उसके सामने से गुजरी तो रंगीला की निगाह उसके ऊपरले डैक की खिड़कियों पर पड़ी।
एक खिड़की में उसे सलमान अली का चेहरा दिखाई दिया।
तभी बस सीधी हो गई और रंगीला को खिड़कियां दिखाई देनी बन्द हो गई।
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