RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“मैंने कहा न, जो जुर्म उसने किया था उसके लिए कानून में कोई सजा नहीं है। जबकि जुर्म तो उसने बराबर किया था और कड़ी सजा का भी वह हकदार था। लिहाजा उसका इंसाफ तो करना ही था।”
अजय जानकी लाल को देखता ही रह गया।
“वह इंसान सहगल ही था एकाउंटेंट साहब, जिसने हर किसी से मेरा विश्वास उठा दिया।" जानकी लाल ने आगे कहा “इस सहगल की नजीर मैंने इसीलिए बनाई थी ताकि दूसरे उससे सबक लेते और फिर हमारी कम्पनी में कोई गद्दार पैदा नहीं होता। लेकिन लगता है वह नजीरें धुल चुकी हैं उसका असर खत्म हो गया है। यह काम फिर से करना पड़ेगा।" उसने सहसा अजय की आंखों में अपलक देखा “अपने बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है।"
"जी?" अजय उछल पड़ा था। "क्या मतलब?"
“वह तुम जानते हो?" जानकी लाल का स्वर स्लेट की तरह सपाट व सख्त हो गया “ मेरे लिए किसी इंसान को दुनिया से उठा देना बहुत आसान है। लेकिन रहम उन पर आ जाता है, जो उस इंसान के पीछे होते हैं। सहगल के पीछे भी बहुत लोग थे. जो अगर वह दनिया से उठ जाता तो बेसहारा हो जाते। इसीलिए मैंने उसे दुनिया से नहीं उठाया था। तुम्हारे पीछे भी एक इंसान है। सुगंधा बहुत अच्छी लड़की है। तुम्हें जानकर हैरानी होगी, मैं उससे एक बार मिल चुका हूं।"
“सु...सुगंधा।” अजय चकित होकर बोला था। उसके जेहन को जबरदस्त झटका सा लगा था “आ...आप सुगंधा को जानते हैं?"
"बहुत अच्छी लड़की है बहुत प्यारी भी। दिलोजान से चाहती है तुम्हें। वैसे तो यह सरासर गलत है। अपने किसी एम्पलाई की व्यक्तिगत जिंदगी में ताक-झांक करना बहुत बुरी बात है। लेकिन कभी-कभी इंसान न चाहते हुए भी करने पर मजबूर हो जाता है अपनी न सही तो सुगंधा की खातिर ही लिहाज करना एकाउंटेंट साहब और मुझे आइंदा कोई नजीर बनाने पर मजबूर मत करना। अगर कुछ किया भी हो तो आगे कसम खा लेना। बदले में मैं आज तक की सारी तुम्हारी गलतियां माफ कर दूंगा।"
“आ...आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है सर...।” अजय का स्वर ना चाहते हुए भी लरज गया था “मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो मुझे नहीं करना चाहिए।"
“नहीं किया तो फिर कैसा डर!"
“मुझे कोई डर नहीं है। आप जैसे भी चाहें अपनी तसल्ली कर सकते हैं।"
"वह तो अब करना ही पड़ेगा, क्योंकि अगला टेंडर दो सौ करोड़ का है। और उस कंसाइनमेंट का हर टेंडर आज तक केवल ब्लूलाइन को ही मिलता है। यह मेरी कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल है। इस टेंडर को मैं हर कीमत पर हासिल करके रहूंगा उसे नैना चौधरी को मैं हरगिज भी नहीं हथियाने दूंगा।"
“म...मैं भी तो यही चाहता हूं सर।"
“खैर...।" जानकी लाल ने अचानक विषय बदला “जाने दो। फिलहाल एक काम है जो तुम्हें फौरन करना होगा एकाउंटेंट
साहब?"
“ज...जी कहिए।” अजय ने अनिश्चित भाव से उसे देखा।
जानकी लाल ने बताने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि एकाएक उसे ठिठक जाना पड़ा।
अचानक ही वातावरण में डुगडुगी की आवाज उभरना आरंभ हो गई। डुगडुगी की ठीक वैसी ही आवाज जैसे कि कोई मदारी बंदर की कलाबाजी का तमाशा दिखाते वक्त बजाता है।
दोनों चौंके।
“जहांपनाह का काम अगर मुझसे ताल्लुक रखता है तो किसी को भी तकल्लुफ करने की जरूरत नहीं है।" तभी एक नई आवाज फिजां में उभरी “मिलने के लिए बंदा यहीं हाजिर हो रहा है।"
दोनों की निगाहें तत्क्षण आवाज की दिशा में घूमी। उसी क्षण वार्ड का दरवाजा एक झटके से खुला और फिर किसी ने अंदर कदम रखा। उसके साथ ही डुगडुगी की आवाज भी तेज हो गयी थी।
जानकी लाल के साथ ही अजय ने भी उसे फौरन पहचाना। और उसे पहचानते ही वह दोनों बेसाख्ता चौंक पड़े। निगाहें आगंतुक पर इस तरह चिपक गईं जैसे कि फेवीकोल से चिपका दिया गया हो।
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