09-19-2020, 12:46 PM,
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desiaks
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RE: Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज
जब मै लेखक नहीं था . आपकी तरह केवल एक पाठक था , तब मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पसंद करता था , परन्तु उन उपन्यासों का ' अंत ' पढ़कर अक्सर झुंझला उठता था । कारण था ---- अंत में लेखक द्वारा किसी भी ऐसे किरदार को अपराधी बता देना जिसका मुख्य कहानी से कुछ लेना - देना नहीं होता था । अन्त में एक नई ही कहानी पाठकों को पढ़ा दी जाती थी ! उस वक्त मैं सोचता --- यह तो लेखक द्वारा पाठकों को बेवकूफ बनाना हो गया । जब कहीं कोई ' क्लू ' ही नहीं छोड़ा गया । असली कहानी ही कुछ और थी तो पाठक अपराधी को पहचानता कैसे ? केवल चौंकाने की गर्ज से लेखक द्वारा किसी ऐसे किरदार को अपराधी खोल देना मुझमें हमेशा खीझ भर देता था जिसके खिलाफ उपन्यास में कहीं कोई इशारा तक न किया गया हो । मैं नहीं चाहता वह खीझ आपमें पैदा हो । भरपूर तौर पर कोशिश मेरी भी यही रहती है कि जब अपराधी खुले तो पाठक चौंके परन्तु खिंझे नहीं । अंत पढ़कर उन्हें लगे ---- ' हा . उपन्यास में जगह - जगह ऐसे पॉइंट छोड़े गए हैं जिन पर ध्यान देने पर अपराधी को पहचाना जा सकता था , नहीं पहचान पाये तो ये हमारी चूक है । जो पकड़ लेते है , उन्हें खुशी होती है कि हां , हमने उपन्यास ध्यान से पढ़ा है । तो मि ० चैलेंज को ध्यान से पढ़ें ! अपराधी की तरफ इशारे किए गए हैं , क्लू छोड़े गए हैं । अगर आप रहस्य खुलने से पहले रहस्य को पकड़ सके तो मुझे खुशी होगी । आप उसी प्यार , विश्वास और सहयोग का इच्छुक जो पैंतीस साल से लगातार मिल रहा है । वहीं मेरी असली ताकत है ।
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desiaks
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RE: Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज
दिन निकलते ही मैं लेखन - कक्ष में बंद हो जाता । सूरज ढलने पर बाहर निकलता तो चेहरा लटका हुआ होता , दिमाग पर सवार होती थी ---- अजीब सी झुंझलाहट । कारण ? पिछले तीन दिन से मैं मि ० चैलेंज लिखने की कोशिश कर रहा था , परन्तु शुरू नहीं कर पा रहा था । ऐसा नहीं कि दिमाग में कोई प्लाट ' न था । प्लॉट एक नहीं कई थे । और शायद मेरी असली समस्या भी यही थी । निश्चय नहीं कर पा रहा था उन कई प्लाटस में से किस पर मि ० चैलेंज के कथानक की इमारत खड़ी करू । कक्ष का दरवाजा खुला । आहट बहुत हल्की थी , इसके बावजूद मेरी तंद्रा भंग कर गयी । पलकें उठाकर देखा । दरवाजे पर मधु खड़ी थी ! मेरी पत्नी । होठों पर मुस्कान , हाथों में शाम का अखबार । उसकी मुस्कान के जवाब में मुस्करा नहीं सका मैं । दिमाग पर चिड़चिड़ाहट सवार थी परन्तु जानता था , वह बगैर ' एमरजेंसी " के मुझे डिस्टर्ब नहीं कर सकती थी । अतः स्वयं को नियंत्रित रखकर पूछा ---- " क्या बात है ? " "
अखबार लाई हूँ । " उसके होठों पर शरारत नाच रही थी । मेरे दिमाग का मानो फ्यूज उड़ गया । लगभग ' गुर्रा ' उठा मैं--- " मधु , क्या तुम नहीं जानती जब मै लिख रहा होता हूँ तो अखबार नहीं पड़ता । " "
देखू तो सही , क्या लिख रहे है जनाब ? " कहती हुई वह अपने करेक्टर के विपरीत आगे बढ़ी और मेज से कोरा कागज उठाकर मेरी आंखों के सामने नचाती बोली --.- " तो ये है चार दिन की सिरखपाई का फल ? " "
ओफो मधु , तुम्हें कैसे समझाऊं कि ... " समझने की जरूरत मुझे नहीं , आपको है पतिदेव । " " मतलब ? " मैंने उसे घुरा । " अच्छा लिखने के लिए अखबार पढ़ते रहना जरूरी है । " " मधु ,क्या पहेलियां बुझा रही हो तुम ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।
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