Thriller Sex Kahani - मोड़... जिंदगी के
06-22-2024, 11:09 PM,
#9
Thriller मोड़... जिंदगी के ( completed )
[color=rgb(184,]#7 Bride of the Night.....[/color]

खंजर देखते ही अमर डर से पीछे हटता है और किसी तरह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर जाने की कोशिश करने लगता है, उसकी कमजोरी और पैर की चोट के कारण उसको बहुत जद्दोजहद करना पड़ता है, मगर किसी तरह वो दरवाजा खोल देता है और चिल्लाते हुए बेहोश हो जाता है।

होटल स्टाफ उसकी आवाज सुन कर उसके कमरे की तरफ आता है, और उसे बेहोश देख कर तुरंत अनामिका को बताता है। अनामिका उसकी बेहोशी की बात सुन कर फौरन चंदन को फोन लगती है और अपने दादाजी को भी बताती है।

20 मिनट के बाद उसके कमरे में डॉक्टर चंदन आते हैं, और एक इंजेक्शन अमर को लगा देते हैं। थोड़ी देर के बाद अमर को होश आता है। और वो देखता है कि उसके कमरे में चंदन, रमाकांत जी और अनामिका होते हैं।

रमाकांत जी: क्या हुआ बेटा, स्टाफ के लोग बता रहे थे कि तुम चिल्लाते हुए कमरे के बाहर आ रहे थे और बेहोश हो गए? क्या कोई डरावना सपना देख लिया था क्या?

अमर: नही दादाजी, मुझे बालकनी में सड़क के उस तरफ वही साया दिखाई दिया जिसने हॉस्पिटल में मेरे ऊपर हमला किया था, वो वहां से भी मुझे चाकू दिखा कर मारने का इशारा कर रहा था, इसी से में घबरा गया और जल्दी जल्दी में दरवाजा खोलने की कोशिश की और बेहोश हो गया।

चंदन: मेंटल और फिजिकल स्ट्रेस की वजह से आप बेहोश हुए हैं अमर जी। अभी आपका शरीर बहुत कमजोर है और आपको ज्यादा स्ट्रेस नही लेना चाहिए।

रमाकांत जी: लेकिन चंदन बेटा, अब कोई किसी को जान से मरने की धमकी दे रहा हो तो स्ट्रेस होना स्वाभाविक ही है ना।

चंदन: जी अंकल वो तो है ही, वैसे मुझे लगता है कि पुलिस को सब बता कर सुरक्षा ले लेनी चाहिए।

रमाकांत जी: बात तो तुम्हारी सही है चंदन, लेकिन हम तो ये भी नही पता कि कोई अमर की जान के पीछे क्यों पड़ा है, और वो एक आदमी है या और ज्यादा लोग है? कही ऐसा ना हो हम पुलिस को बताएं और हमले और बढ़ जाय।

चंदन: फिर हम क्या करना चाहिए अंकल?

रमाकांत जी: फिलहाल तो हम यही कर सकते है कि मैं सिक्योरिटी और बढ़वा देता हूं, और अमर को पीछे अपने घर में शिफ्ट करवा देता हूं, उधर का हिस्सा बाहर से नही दिखाई देता तो कोई भी नही जान सकता कि अमर यह पर है।

अनामिका (थोड़ा नाराजगी में): पर दादाजी ऐसे किसी को भी घर के अंदर रखना सही है क्या? वैसे भी हम इनके बारे में जानते ही क्या हैं?

रमाकांत जी: बेटी वो हमारा मेहमान है, और उसकी सुरक्षा भी अभी हमारी ही जिम्मेदारी है।

अनामिका: पर अंदर किस कमरे में रुकवाएंगे? कोई कमरा भी तो रहने लायक नही है अभी?

रमाकांत जी: क्यों? एक तो है ही।

अनामिका: पर वो तो उसका है न?

रमाकांत जी: हैं तो क्या हुआ, अभी तो खाली ही है। तुम सही करवाओ उसे, तब तक मैं अमर को वहा ले कर आता हूं।

अनामिका अनमने भाव से वहां से चली जाती है।

कुछ समय बाद अमर रमाकांत जी के घर के एक कमरे में था, उस कमरे में एक बेड और कुछ अलमारियां थी, और एक दीवार पर एक लड़की की तस्वीर लगी थी, सुंदर सा चेहरा, नाक में रिंग, छोटे बाल, स्कर्ट टॉप पहने हुए सुडौल काया की मालकिन थी। तस्वीर से वो कद काठी में अनामिका के बराबर ही थी।

उसे देख कर अमर को ऐसा लगा की वो इसे जनता है शायद, उसकी ओर देखते हुए रमाकांत जी अमर से कहते है।

"ये मेरे छोटी पोती और अनामिका और पवन की बहन, मोनिका। दूसरे शहर में जॉब करती है और यहां बहुत कम ही आती है।

अमर: ओह अच्छा।

रमाकांत जी कमरे के बाहर जाते हुए: थोड़ी देर में खाना खाने बाहर आ जाना।

कुछ देर बाद अमर बहार खाना खाने आता है, टेबल पर रमाकांत जी, पवन और अनामिका बैठे होते हैं। पवन अमर को देखते ही उसे नमस्ते करता है, और अमर भी मुस्कुरा कर जवाब देता है। अनामिका उसे देख कर भी अनदेखा कर देती है। अमर जब अनामिका की तरफ देखता है तो उसे उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई देता है।

खाना खा कर वो वापस अपने कमरे में चला जाता है। और बाकी का दिन ऐसे ही बीत जाता है। रात का खाना खा कर अमर अपने रूम वापस आता है, और सोने की कोशिश करता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती, तो वो उठ कर कमरे में इधर उधर टहलने लगता है, फिर वो एक अलमारी को खोल कर उसमे देखता है तो वहां उसे कुछ लड़कियों के कपड़े दिखते हैं, वो इनको ऐसे ही देखने लगता है और ध्यान देता है की ये सारे कपड़े वेस्टर्न आउटफिट थे और बहुत रिवीलिंग थे, ऐसा लगता था की उसे पहनने वाली बहुत ही खुले विचारों की होगी।

तभी उसे बाहर हॉल की तरफ से कुछ आहट सी आती है तो वो डरते हुए कमरे का दरवाजा खोल कर देखना है तो उसे अपने कमरे के बाहर अनामिका खड़ी दिखाई देती है।

वो पूरे दुल्हन के लिबास में खड़ी थी और काफी आकर्षक दिख रही थी, लेकिन उसकी आंखो में वैसा ही सूनापन होता है.....
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