Thriller मोड़... जिंदगी के ( completed )
[color=rgb(184,]#12 The assault....[/color]
और उस गाड़ी में शायद मोनिका थी, गाड़ी होटल के गेट की तरफ बढ़ रही थी, और साथ साथ अमर के दिल की धड़कन भी, वो वापस अपनी उन गुनाहों की गलियों में नही जाना चाहता था, और सबसे बड़ी बात, अनामिका उसके दिल में जगह बना चुकी थी, और मोनिका शायद कहीं भी नही थी, बल्कि ये जानने के बाद की उसने अनामिका को धमकी दी थी, अमर के दिल में मोनिका के प्रति नफरत सी हो गई थी। लेकिन आप अपने अतीत से कब तक पीछा छुड़ा सकते हैं। लेकिन अमर आज तो कम से कम ये नही चाहता था।
गाड़ी आगे बढ़ते हुए होटल के गेट से आगे बढ़ गई और अमर ने एक चैन के सांस ली। मोनिका ने भी शायद उसे नही देखा था। बाकी रात भी शांति से निकल गई।
अगली सुबह अनामिका ने अमर को उठाया और बोला की सबको मंदिर जाना है इसीलिए जल्दी से तैयार होने को कहा।
अमर कुछ देर में तैयार हो कर बाहर आता है और सारे लोग गाड़ी में बैठ कर मंदिर निकल जाते हैं। वहां रमाकांत जी ने अमर के लिए पूजा रखी थी। पूजा के बाद वो सब वापस से घर आते हैं और अमर अनामिका के साथ कुछ देर होटल का थोड़ा बहुत काम देखता है।
दोपहर के खाने के बाद रमाकांत जी अमर को ले कर स्टडी में चले जाते हैं, और अमर से बात करने लगते हैं।
रमाकांत जी: अमर मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, उम्मीद है तुम बुरा नही मानोगे।
अमर: क्या बात कर रहे है दादाजी, आपकी कोई बात का में बुरा नही मानूंगा। अब आप ही लोग तो मेरे सब कुछ हैं।
रमाकांत जी: अनु के बारे में है ये। क्या वो तुमको पसंद है?
अमर: शायद.... बल्कि हां अनु मुझे पसंद है, बहुत पसंद है।
रमाकांत जी: मुझे पता है अमर, फिर भी मैं अपनी बच्ची के लिए तुमसे 2 बातें पूछना चाहता हूं।
अमर: जी जरूर पूछिए।
रमाकांत जी: पहला तो ये कि अनु एक विधवा है, उसके बाद भी क्या तुम उसके साथ आगे बढ़ने को तैयार हो? और दूसरी बात कि हो सकता हो कि तुम्हारी पिछली जिंदगी में तुम्हारा कोई प्यार हो, लेकिन अभी तो वो सामने नही आया है, लेकिन आगे कहीं तुमको कुछ ऐसा याद आए तो....?
अमर: देखिए दादाजी, मेरी पिछली जिंदगी में जो कोई भी है या था, उसे अब तक तो मेरी कोई खोज खबर लेने थी ना, लेकिन आज 10 दिन होने आए कोई नही आया। और दूसरी, अनु का पास्ट मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। सच कहूं आपसे तो होश में आते ही सबसे पहले मेरी नजर अनु पर ही पड़ी थी, और उसी समय से वो मेरे दिल में बस गई।
रमाकांत जी: अच्छा लगा जान कर, लेकिन अमर मैं एक बात अच्छी तरह से बता देना चाहता हूं, अनु अपनी जिंदगी में कई दुख झेल चुकी है, लेकिन डॉक्टर ने साफ बोला कि अब वो एक और इमोशनल झटका शायद ही बर्दास्त कर पाए। और बेटा अब मैं भी बूढ़ा हो चुका हूं, पता नही कितने और दुख देखने को मिलेंगे मुझे। इसीलिए मैं तुमसे बस इतना कहना चाहता हूं कि अनु के साथ आगे बढ़ने से पहले तुम अच्छी तरह से सोच विचार कर लो।
अमर: आपकी बात से मैं इत्तेफाक रखता हूं। और सच मानिए आगे बढ़ने से पहले मैं भी अच्छी तरह सोच विचार करूंगा।
फिर दोनो लोग होटल की तरफ चल देते हैं। रिसेप्शन पर अमर अनामिका के साथ बैठ जाता है। तभी उसे होटल के गेट पर मोनिका की झलक दिखती है, मगर वो अंदर नही आती। अमर बहार की तरफ जाता है तो वहां कोई नहीं होता। अमर थोड़ा बाहर की तरफ बढ़ता है तो एक लड़का उसे एक चिट्ठी ला कर देता है।
अमर चिट्ठी खोल कर पढ़ता है, उसमे बस इतना ही लिखा होता है, "रात 11 बजे बाहर घर के गार्डन में।"
अमर उस चिट्ठी को अपनी जेब में रख कर वापस से अपने कमरे में चला जाता है, और बाकी का दिन ऐसा ही बीत जाता है। रात 11 बजे वो उठ कर दबे पांव बाहर निकलता है।
गार्डन की तरफ निकलते हुए उसकी नज़र एक तबके पर रखे एक तार के टुकड़े पर जाती है, जिसे वो पता नही क्या सोच कर उठा लेता है।
बाहर निकलते ही उसे एक कोने में खड़ी मोनिका दिखती है, वो उसकी तरफ बढ़ता है।
अमर: मोनिका...
मोनिका पीछे मुड़ कर, थोड़ा गुस्से में: तो आखिर उस चुड़ैल अनामिका ने तुम्हे फसा ही लिया??
अमर: मोनिका, जैसा तुम समझ रही हो वैसा नही है।
मोनिका: तो फिर कैसा है? तुम आखिर आ ही गए ना दादाजी की बात में।
और ये बोलते हुए हुए पीछे की ओर मुड़ कर वापस जाने लगती है, तभी अमर उस तार को अपने दोनो हाथों में ले कर उसकी गर्दन पर कस देता है.......
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