RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
रानी बेचारी करती भी तो क्या करती। फिर से चुप हो गयी!
आशीष ने पैन्ट में से मोबाइल निकाला और उसको चालू करके उससे रोशनी कर ली।
आशीष ने देखा रानी डर से काँप सी रही है और उसके गाल गीले हो चुके थे।
थोड़ी देर पहले रोने की वजह से।
आशीष ने परवाह न की। वो रोशनी की किरण नीचे करता गया। गर्दन से नीचे
रोशनी पड़ते ही आशीष बेकाबू होना शुरू हो गया। जो उसकी जाँघों तक जाते
जाते पागलपन में बदल गया।
आशीष ने देखा रानी की चूचियां और उनके बीच की घाटी जबरदस्त सेक्सी लग रहे
थे। चूचियों के ऊपर निप्पल मनो भूरे रंग के मोती चिपके हुए हो। चुचियों
पर हाथ फेरते हुए बहुत अधिक कोमलता का अहसास हुआ। उसका पेट उसकी छातियों
को देखते हुए काफी कमसिन था। उसने रानी को घुमा दिया। गांड के कटाव को
देखते ही उससे रहा न गया और उन पर हलके से काट खाया।
रानी सिसक कर उसकी तरफ मुढ़ गयी। रोशनी उसकी चूत पर पड़ी। चूत बहुत छोटी
सी थी। छोटी-छोटी फांक और एक पतली सी दरार। आशीष को यकीन नहीं हो रहा था
की उसमें उसकी उंगली चली गयी थी। उसने फिर से करके देखा। उंगली सुर से
अन्दर चली गयी। चूत के हलके हलके बाल उत्तेजना से खड़े हो गए। चूत की
फांकों ने उंगली को अपने भीतर दबोच लिया। उंगली पर उन फाकों का कसाव आशीष
साफ़ महसूस कर रहा था!
उसने रानी को निचली सीट पर लिटा दिया। और दूसरी एकल सीट को एक तरफ खींच
लिया। रानी की गांड हवा में थी। वो कुछ न बोली!
आशीष ने अपनी पैंट उतार फैंकी। और रानी की टांगो को फैलाकर एक दूसरी से
अलग किया। उसने रोशनी करके देखा। चूत की फांके चौड़ी हो गयी थी!
आशीष का दिल तो चाहता था उसको जी भर कर चाटे। पर देर हो रही थी। और आशीष
का बैग भी तो होटल में ही था। उसने लंड को कच्छे से बहार निकाला। वो तो
पहले ही तैयार था। उसकी चूत की सुरंग की सफाई करके चौड़ी करने के लिए।
आशीष ने चूत पर थूक-थूक कर उसको नहला सा दिया। फिर अपने लंड की मुंडी को
थूक से चिकना किया। और चूत पर रखकर जोर से दबा दिया। एक ही झटके में लंड
की टोपी चूत में जाकर बुरी तरह फंस गयी। रानी ने जोर की चीख मारी। आशीष
ने डर कर बाहर निकालने की कोशिश की पर रानी के चुतड़ साथ ही उठ रहे थे।
उसको निकलने में भी तकलीफ हो रही थी। उसका सारा शरीर पसीने से भीग गया।
पर वो कुछ नहीं बोली। उसको अपने बापू के पास जाना था।
आशीष का भी बुरा हाल था। उसने रानी को डराया जरूर था पर उसको लगता था की
रानी उसका लंड जाते ही सब कुछ भूल जाएगी। ऐसा सोचते हुए लंड नरम पड़ गया
और अपने आप बहार निकल आया।
रानी की चूत तड़प सी उठी। पर वो कुछ न बोली। हाँ उसको मजा तो आया था। पर
लंड निकलने पर।
जाने क्या सोचकर आशीष ने उसको कपड़े डालने को कह दिया! उसने झट से ब्रा और
कमीज डाला और अपनी कच्छी ढूँढने लगी। उससे डर लग रहा था पूछते हुए। उसने
पूछा ही नहीं और ऐसे ही सलवार डाल ली। जिसके नीचे से रास्ता था।
आशीष भी अब जल्दी में लग रहा था- "जल्दी चलो!"
वो तेज़ी से होटल की और चल पड़े!
रानी मन ही मन सोच रही थी की बापू के पास जाते ही इस हरामजादे की सारी
करतूत बताउंगी।
पर जब वो होटल पहुंचे तो झटका सा लगा। न बापू मिला और न ही कविता!
आशीष ने बैरे को बुलाया- "वो कहाँ हैं। जो अभी यहाँ बैठे थे?"
" वो तो जनाब आपके जाने के पांच मिनट बाद ही खाना खाए बगैर निकल गए थे! "
बैरे ने कहा
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