RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
रानी- उनको मत बताना कुछ भी। उन्होंने कहा है किसी को भी बताया तो जान से
मार देंगे!
बूढ़े ने जब रानी को नए कपड़ों में देखा तो वो शक से आशीष की और देखने लगा।
रानी- बापू, मेरे कपड़े गंदे हो गए थे। इन्होंने दिलवा दिए। इनके पास
बहुत पैसा हैं।
बापू- धन्यवाद बेटा। हम तो गरीब आदमी हैं।
कविता इस तरह से आशीष को देखने लगी जैसे वो भी आशीष से ड्रेस खरीदना चाहती हो।
आशीष- अब क्या करें? किसी होटल में रेस्ट करें रात तक!
बूढ़ा- देख लो बेटा, अगर पैसे हों तो।
आशीष- पैसे की चिंता मत करो ताऊ जी। पैसा बहुत हैं।
बूढ़ा इस तरह से आशीष को देखने लगा जैसे पूछना चाहता हो। कहाँ है पैसा।
और वो एक होटल में चले गए। उन्होंने 2 कमरे रात तक के लिए ले लिए। एक
अकेले आशीष के लिए। और दूसरा उस 'घर परिवार' के लिए।
थोड़ी ही देर में बूढ़ा उन दोनों को समझा कर आशीष के पास आ गया।
बेटा मैं जरा इधर लेट लूं। मुझे नींद आ रही है। तुझे अगर गप्पे लड़ाने हों
तो उधर चला जा। रानी तो तेरी बहुत तारीफ़ कर रही थी।
आशीष- वो तो ठीक है ताऊ। पर आप रात को कहाँ निकल गए थे?
बूढ़ा- कहाँ निकल गए थे बेटा। वो किसी ने हमें बताया की ऐसी लड़की तो शहर
की और जा रही है इसीलिए हम उधर देखने चले गए थे।
आशीष उठा और दूसरे कमरे में चला गया। योजना के मुताबिक। कविता दरवाजा
खुला छोड़े नंगी ही शीशे के सामने खड़ी थी और कुछ पहनने का नाटक कर रही
थी। आशीष के आते ही उसने एक दम चौकने का नाटक किया। वो नंगी ही घुटनों के
बल बैठ गयी। जैसे अपने को ढकने का नाटक कर रही हो!
रानी बाथरूम में थी। उसको बाद में आना था अगर कविता असर न जमा पाए तो!
कविता ने शरमाने की एक्टिंग शुरू कर दी!
आशीष- माफ़ कीजिये भाभी!
कविता- नहीं तुम्हारी क्या गलती है। मैं दरवाजा बंद करना भूल गयी थी।
कविता को डर था वो कहीं वापस न चला जाये। वो अपनी छातियों की झलक आशीष को
दिखाती रही। फिर आशीष को कहाँ जाना था? उसने छोटे कद की भाभी को बाँहों
में उठा लिया।
कविता- कहीं बापू न आ जायें।
आशीष ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसको बेड पर लिटा दिया। सीधा।
दरवाजा तो बंद कर दो।
आशीष ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा- "रानी कहाँ है?"
कविता- वो नहा रही है।
आशीष- वो बूढ़ा तुम्हारा बाप है या ससुर।
कविता- अ! अ! ससुर!
"कोई बच्चा भी है?"
कविता- ह! हाँ
आशीष- "लगता तो नहीं है। छोटा ही होगा।" उसने कविता की पतली जाँघों पर
हाथ फेरते हुए कहा!
कविता- हाँ! 1 साल का है!
आशीष ने उसकी छोटी पर शख्त छातियों को अपने मुंह में भर कर उनमें से दूध
पीने की कोशिश करने लगा। दूध तो नहीं निकला। क्यूंकि निकलना ही नहीं था।
अलबत्ता उसकी जोरदार चुसाई से उसकी चूत में से पानी जरूर नकलने लगा!
आशीष ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को जोर से मसल दिया। कविता ने आनंद
के मारे अपने चुतड़ हवा में उठा लिए।
आशीष ने कविता को गौर से देखा। उसका नाटक अब नाटक नही, असलियत में बदलता
जा रहा था। कविता ने आशीष की कमर पर अपने हाथ जमा दिए और नाख़ून गड़ाने
लगी।
आशीष ने अपनी कमीज उतर फैंकी। फिर बनियान और फिर पैंट। उसका लंड कच्छे को
फाड़ने ही वाला था। अच्छा किया जो उसने बाहर निकाल लिया।
उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और नंगी रानी को भी उठा लाया और बेड पर लिटा
दिया! आशीष ने गौर से देखा। दोनों का स्वाद अलग था। एक सांवली। दूसरी
गोरी। एक थोड़ी लम्बी एक छोटी। एक की मांसल गुदाज जान्घें दूसरी की पतली।
एक की छोटी सी चूत। दूसरी की फूली हुयी सी, मोटी। एक की चूचियां मांसल
गोल दूसरी की पतली मगर सेक्सी। चोंच वाली। आशीष ने पतली टांगों को ऊपर
उठाया और मोड़कर उसके कान के पास दबा दिया। उसको दर्द होने लगा। शायद इस
आसन की आदत नहीं होगी।
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