RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
कमरे को रानी ने इस तरह सजा दिया था मानो वह कोई सुहाग की सेज हो। सारा
कमरा अच्छी तरह से धोकर, बिस्तरे की चादर बदली करके और दीवार पर टंगे
नंगे पोस्टर को हटा कर कोने में उसने अगरबत्ती जला रखी थी। कविता के वापस
जाते ही आशीष ने बिस्तर पर चढ़ कर रानी को अपनी गोद में बैठा लिया।
आशीष रानी को प्यार करने के बाद नंगी ही बाहों में लिए पड़ा हुआ था। तभी
अचानक बाहर से किसी ने दरवाजा खटखटाया। रानी डरकर तुरंत आशीष की और देखने
लगी।
"घबरा क्यूँ रही हो!? लो। ये चद्दर औढ़ लो! " आशीष ने उसके जिस्म पर चादर
लपेटी और बिस्तर से ही झुकते हुए चिटकनी खोल दी। बाहर राजू खड़ा था!
"खाना ले लो भैया!" कह कर उसने एक खाने का डिब्बा आशीष की और बढ़ा दिया।
"थैंक्स! " आशीष ने कहा और दरवाजा बंद कर लिया।- "लो। खाओगी न?"
"और नहीं तो क्या? मुझे तो बहुत भूख लगी है। मैं कपडे पहन लूं एक बार! "
रानी उठी और अपने गले में समीज डालते हुए बोली।
अचानक आशीष के मन में कविता की बात कौंध गयी। 'देखते हैं कब तक भूख के
आगे इसके नखरे टिकते हैं '
"एक मिनट। तुम खाना शुरू करो। मैं अभी आता हूँ "- आशीष ने कहा और दरवाजा
खोल कर उस 'खोखे ' से बाहर निकल गया।
आशीष ने देखा। सभी दरवाजे खुले थे और सभी लड़कियां खाना खाने में व्यस्त
थी। सिर्फ 'उस ' लड़की का कमरा छोड़ कर। आशीष ने धीरे से दरवाजा अन्दर की
और धकेला। वो खुल गया। अन्दर बैठी वो लड़की सुबक रही थी। उसने धीरे से
अपना चेहरा दरवाजे की और घुमाया। अपने सामने अजनबी इंसान को देख कर 'वो
सहम सी गयी और अपनी छातियों पर चुन्नी डाल ली।
"क्या नाम है तुम्हारा?" आशीष ने कमरे के अन्दर घुस कर दरवाजा थोडा सा बंद किया।
"देखो! मुझसे जबरदस्ती करने की कोशिश की तो तुम्हारा सर फोड़ दूँगी। यकीन
नहीं आता हो तो बाहर पूछ लो। 2 दिन पहले भी आया था एक। तुम्हारी तरह! "
लड़की ने आशीष की तरफ घूरते हुए कहा। पर सच तो ये था की वो खुद आशीष को
'ग्राहक ' जान कर डर के मारे कांपने लगी थी।
"मैं.....मैंने तो सिर्फ नाम पूछा है। मैं 'गलत ' लड़का नहीं हूँ। " आशीष
ने प्यार से दूर खड़े-खड़े ही कहा।
लड़की ने एक बार फिर आशीष की नजरों में देखा। इस बार वह थोड़ी आश्वस्त सी
हो गयी थी- "मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी। किसी को कुछ नहीं बताना। "
कहकर उसने फिर से रोना शुरू कर दिया।
"ऐसा मत करो। रो क्यूँ रही हो? आओ। मेरे पास आकर खाना खा लो। मैं दो चार
दिन यहीं रहूँगा। तब तक मुझसे दोस्ती करोगी?" कहकर आशीष ने अपना हाथ उसकी
और बाढ़ा दिया।
पर लड़की ने आशीष का हाथ नहीं थमा। हालाँकि वह अब उस पर विश्वास करने की
कोशिश कर रही थी!- "नहीं। खाना खाऊँगी तो 'वो ' लोग मुझे भी मारेंगे। और
आपको भी! !" सहमी सी नजरों से उसने आशीष को देखा।
"क्या मतलब? खाना खाने पर मारेंगे क्यूँ?" आशीष ने अचरज से पूछा।
"कल साइड वाली दीदी ने थोडा सा दे दिया था मुझे। आंटी ने मुझे भी बहुत
मारा और दीदी को भी शाम को खाना नहीं दिया।"
"क्या? पर क्यूँ?" आशीष का दिल कराह उठा।
"क्यूंकि...क्यूंकि मैं। तुम्हारे जैसे आने वाले लोगों के साथ सोती नहीं
हूँ। इसीलिए। कहते हैं की जब तक मैं नंगी होकर किसी के साथ सौउंगी नहीं।
मुझे खाना नहीं मिलेगा। " लड़की की आँखें द्रवित हो उठी।!
"ओह्ह। तुम आओ मेरे पास। मैं देखता हूँ। कौन तुम्हे खाना खाने से रोकता
है, उठो!" आशीष ने जबड़ा भींच कर कहते हुए उसका हाथ पकड़ लिया!
लड़की ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की- "नहीं। वो मारेंगे!"
"तुम उठो तो सही! " कहकर आशीष ने लगभग जबरदस्ती उसको बिस्तर से खींच लिया।
जैसे ही वो बाहर आये। बाहर बैठा राजू दूर से ही चिल्लाया!- "ए भैया। इसको
कहाँ लिए जा रहे हो। पागल है ये!"
"आशीष ने घूर कर उसकी तरफ देखा और सीधा अपने कमरे में घुस गया। रानी खाना
शुरू कर चुकी थी। आशीष की ओर देख कर पहले हंसी। और फिर उस लड़की का हाथ
उसके हाथ में देख कर बेचैन हो गयी- "ये कौन है?"
"दोस्त है। तुम इसको खाना खिलाओ। मुझे भूख नहीं है। " आशीष ने मुस्कुराते हुए कहा।
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