RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
"तो क्या! अब मैं आपके पास नहीं रहूंगी। मुझे यहाँ डर लगता है। आपके जाते
ही!" रानी मायूस होकर बोली।
"तुम कहीं नहीं जा रही मेरे पास से। खाना खाओ। फिर बात करेंगे!" आशीष ने
मुस्कुराकर रानी से कहा और बिस्तर पर एक कोने में बैठ गया।
कृतज्ञ सी होकर वो लड़की काफी देर तक आशीष को देखती रही। रानी की बातों से
उसको लगने लगा था की आशीष बुरा आदमी नहीं है। उसका दिल कह रहा था की 'वो'
उससे एक बार और नाम पूछ ले।
"खाना खाओ आराम से। किसी से डरने की जरुरत नहीं। इनकी तो मैं! " आशीष के
दिमाग में कुछ चल रहा था।
लड़की रानी के साथ बैठ कर खाना खाने लगी।!।
"हेल्लो, मुंबई पुलिस!" आशीष के फ़ोन पर आवाज आई।
"जी। मैं आशीष बोल रहा हूँ। धरावी से!" आशीष ने संभल कर उन दोनों को चुप
रहने का इशारा किया।
"जी, बताईये हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं!?" उधर से इस बार भी थकी थकी
सी आवाज आई।
"जी। जहाँ अभी मैं गलती से आ गया हूँ। वहां नाबालिग लडकियों को जबरजस्ती
लाकर उनसे वैश्यावृति करायी जा रही है। यहाँ.." आशीष की बात को उधर से
बीच में ही काट दिया गया।
"जी। पता लिखवाईये। "
"जी एक मिनट! " आशीष ने एक मिनट पहले ही मकान के बाहर से नोट करके लाया
पता ज्यों का त्यों लिखवा दिया।
"आप का नाम? "
"जी। आशीष!"
"मोबाइल नम्बर।?"
"जी 9215..........!"
"ठीक है। मैं अभी रिपोर्ट करता हूँ। " उधर से फोन कट गया।
"कहाँ फोन किया है आपने?" लड़की ने पूछा।
"पुलिस को। यहाँ किसी से बात मत करना!" आशीष ने कहा।
लड़की का चेहरा उतर गया!- "पुलिस तो यहाँ रोज ही आती रहती है। एक बार तो
पुलिस वाला मुझे गाली भी देकर गया था। इनकी बात न मानने के लिए! "
"अच्छा? आशीष ने कुछ सोचा और एक बार फिर 100 नम्बर ड़ायल कर दिया।
"हेल्लो, मुंबई पुलिस!" इस बार आवाज किसी महिला पुलिसकर्मी की थी!
"जी, मैं आशीष बोल रहा हूँ।!"
"जी, कहिये। पुलिस आपकी क्या मदद कर सकती है। "
आशीष ने पूरी बात कहने के बाद उसको बताया की लोकल पुलिस पर उसका भरोसा
कतई नहीं है। वो यहाँ से 'महीना ' लेकर जाते हैं। इसीलिए खानापूर्ति करके
चले जायेंगे। "
"OK! मैं आपकी कॉल फॉरवर्ड कर रही हूँ। कृपया लाइन पर बने रहिये।" महिला
पुलिसकर्मी ने कहा!
"जी धन्यवाद!" कहकर आशीष कॉल के कोनेक्ट होने का इंतज़ार करने लगा।
"हेल्लो! मुंबई मुख्यालय!"
आशीष ने पूरी बात विस्तार से कही और उनको अपना नाम, मोबाइल नम्बर। और
यहाँ का पता दे दिया। पर आवाज यहाँ भी ढीली इतनी थी की कोई उम्मीद आशीष
के मनन में न जगी!
तभी दरवाजा खुला और बूढ़ा दरवाजे पर चमका- "क्यूँ भाई? क्यूँ हमारी रोज़ी
पर लात मार रहे हो? इसको ऐसे ही खाना खिलाते रहे तो हम तो भिखारी बन
जायेंगे न!" बूढ़े के बात ख़तम करते ही दरवाजे पर उनके पीछे मोटे तगड़े
तीन मुस्टंडों के सर दिखाई दिए।
"खाना ही तो खिला रहा हूँ ताऊ। इसमें क्या है?" आशीष पीछे खड़े लोगों के
तेवर देख कर सहम सा गया।
"वो तो मैं देख ही रहा हूँ। तेरा खाना हमें 50,000 में पड़ेगा। पता है
क्या? ये साली किसी को हाथ तक नहीं लगाने देती अपने बदन पर। चल फुट यहाँ
से! " ताऊ ने उसके बाल पकड़ कर बिस्टर से उठा दिया! " वह कराह उठी!
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