Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड
02-12-2022, 01:24 PM,
#46
RE: Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड
अपडेट २७ : (संपूर्ण)

" पायल रानी चिकन-चाकन, फल-फुल सब खाये,
पापा न मिले तो फिर केले से काम चलाये....!!,
बोलो हई रे .... हई रे .....हई हाsss......!! "

उर्मिला पायल के साथ छत पर अमरुद की टहनी के निचे बैठी उसे होली के गीत गा कर छेड़ रही थी. सुबह के ९ बज रहे थे और गाड़ी वापस आ जाने से घर में शांति थी. बाबूजी किसी काम से बाज़ार चले गए थे और उमा भी टीवी में लगी हुई थी. सोनू अब भी सो रहा था. ऐसे में भाभी और ननद को कुछ वक़्त साथ बिताने का मौका मिल गया था.

उर्मिला ने जो होली का गीत गाया था उसे सुन कर पायल की पैन्टी में चुलबुल मचने लगी थी. उर्मिला अच्छे से जानती थी की पायल को सिर्फ एक चुंटी काटने की जरुरत होती है. उसकी जवानी में ऐसी आग लगी है की बस थोड़ी से हवा दे दो और वो धूं-धूं कर के जलने लगती है. पापा और पायल पर उर्मिला के इस होली के गीत ने हवा का काम करते हुए पायल की जवानी की आग फिर से भड़का दी थी. वो मुस्कुराते हुए नखरे वाले अंदाज़ में कहती है.

पायल : (नखरे से मुस्कुराते हुए) धत्त भाभी...!! आप ऐसे ही हमेश मुझे छेड़ती रहती हो. जब पापा है तो मैं केले से काम क्यूँ चलाऊँगी ?

उर्मिला : तू तो ऐसे कह रही है जैसे रोज पापा का लंड बुर में ले कर सोती है.

पायल : अभी ले कर नहीं सोती तो क्या हुआ? जब मिलेगा तब ले लुंगी लेकिन केले से काम नहीं चलाऊँगी.

उर्मिला : मेरी भोली पायल तो कुछ जानती ही नहीं. अरे...!! केले और मोटे बैगन तो न जाने कितनी लड़कियों और औरतों का सहारा होते है. मैं जब कॉलेज में थी तो हम सब सहेलियां केले और बैगन को 'बी . एस . वाई (B.S.Y)' कहते थे.

पायल : (आश्चर्यचकित होते हुए) बी . एस . वाई ...?? ये क्या होता है भाभी ?

उर्मिला : (हँसते हुए) पगली तुझे 'B.S.Y' नहीं पता? कॉलेज में क्या सिर्फ पढ़ने जाती है? B.S.Y का मतलब होता है 'बूर शंतुष्टि यंत्र'.

उर्मिला की बात सुन कर पायल को हंसी आ जाती है और उसे अपनी भाभी पर गर्व भी महसूस होता है की वो कितनी खुले विचारों वाली है.

पायल : (हँसते हुए) हा हा हा हा भाभी....!! सच में. कॉलेज की लाइफ तो आपने पूरी एन्जॉय की है. फिर तो ये B.S.Y सारे कॉलेज में सबको पता होगा?

उर्मिला : सभी को नहीं. ये हमारे ग्रुप की लड़कियों का कोड था. हम तो खुले आम इस कोड का इस्तेमाल करते थे. हमे पता होता था की किसी न किसी के पास तो केला या बैगन होगा ही. जब भी किसी लड़की की बूर में खुजली होती वो सबके सामने ही पूछ लेती की किसी के पास B.S.Y है क्या ?

पायल : (बड़ी-बड़ी आँखों से ) पर भाभी ये बात कोई समझ नहीं पता था क्या?

उर्मिला : (हँसते हुए) मजे की बात तो ये थी पायल की जो नहीं जानते थे की B.S.Y क्या है उन्हें लगता था की हम लोग एक दुसरे से 'सेनेटरी पैड' मांग रही है और फिर जब हम वाशरूम चली जाती थी तो सबको लगता था की पैड बदलने जा रही है. और असल में वाशरूम में तो हम जम कर केले और बैगन चला कर आती थी.

उर्मिला की बात सुन कर पायल को अपनी कॉलेज की लाइफ बहुत ही नीरस सी लगने लगती है. उसका दिल करता है की काश वो भी भाभी के उस ग्रुप का हिस्सा होती.

पायल : भाभी आपका ग्रुप तो बड़ा मजेदार था.

उर्मिला : मजेदार...? एकदम धमाकेदार ग्रुप था. किसीका मुहँ बोले भाई के साथ चक्कर था तो किसी का अपने सगे भाई के साथ. कोई अपने चाचा-मामा के साथ फंसी थी तो कोई अपने ही पापा से. सब एक से बढ़कर एक कामिनी लडकियाँ थी.

पायल : (बड़ी-बड़ी आँखों से ) बापरे भाभी..!! अपने ही सगे भाई और पापा से भी?

उर्मिला : और नहीं तो क्या? मेरी जो सबसे पक्की सहेली थी, कंचन, उसका चक्कर तो अपने ही पापा के साथ था. कॉलेज के बाद जब हम हॉस्टल आते तो मैडम कमरे में जा कर नंगी हो कर बिस्तर पर टाँगे फैला कर अराम से बैठ जाती और बूर में ऊँगली करते हुए घंटो अपने पापा से फ़ोन पर बात किया करती.

उर्मिला की इस बात पर पायल की बूर में पानी आने लगता है. वो बड़ी-बड़ी आँखे और खुले हुए मुहँ से उर्मिल को देखते हुए कहती है.

पायल : बाप रे भाभी....इतनी गर्मी थी क्या कंचन की बूर में?

उर्मिला : हाँ पायल...बहुत गर्मी थी. अपने पापा से फ़ोन पर बात करते हुए कंचन इतनी गरम हो जाती थी की कई बार मुझे उसकी बूर में मोटा बैगन देना पड़ जाता था. अपने पापा से बात करते हुए जब बूर में मोटा बैगन जाता था तब जा कर कंचन को चैन मिलता था.

पायल : उफ़ भाभी...!!

उर्मिला : क्या हुआ पायल रानी?

पायल झेंप जाती है और बात बदलते हुए कहती है.

पायल : कुछ नहीं भाभी. वैसे आप होली के गीत बहुत अच्छा गाती है भाभी. इस होली में भी आपने कितने अच्छे-अच्छे गीत गाये थे.

उर्मिला : हम्म..!! होली में मेरे गाये गीत याद है और तेरे साथ क्या हुआ था वो भूल गई?

पायल : (मुहँ बनाते हुए) मेरे साथ ? क्या हुआ था मेरे साथ भाभी?

उर्मिला : ओहो ...!! देखो तो इस भोली लड़की के चेहरे को? जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं. तेरे मोटे-मोटे दूध पर जो बड़े-बड़े पंजो के रंग के निशान थे, भूल गई?

उर्मिला की बात सुन कर पायल थोड़ा शर्मा जाती है. फिर मुस्कुराते हुए कहती है.

पायल : होली का दिन था ना भाभी. लगा दिया होगा किसी ने....

उर्मिला : हाँ हाँ .... जैसे तुझे पता ही नहीं था की कौन लगा रहा है. घर के पिछवाड़े बाबूजी को तेरी टॉप में हाथ डाल कर तेरे मोटे दूधों पर रंग मलते मैंने देख लिया था पायल.....

अपनी चोरी पकड़ी जाने पर पायल शर्मा जाती है और मुस्कुराते हुए धीरे से कहती है.

पायल : होली वाले दिन तो पापा भांग के नशे में थे न भाभी.

उर्मिला : बाबूजी नशे में थे पर तू तो होश में थी ना? खड़े-खड़े अपने मोटे दूध मसलवा रही थी. भाग क्यूँ नहीं गई वहाँ से ? बोल ?

उर्मिला की बात सुन कर पायल अपना चेहरा उर्मिला के सीने में छुपा लेती है.

पायल : (चेहरा उर्मिला के सीने में छुपाते हुए) धत्त भाभी...!!

उर्मिला पायल के मोटे दूध को एक हाथ से दबाते हुए कहती है.

उर्मिला : सच बता पायल...मजा आ रहा था ना?

पायल : (धीरे से ) हाँ भाभी....पर उस वक़्त तक मैं पापा के लिए ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं सोचती थी.

उर्मिला : जानती हूँ रे. पर अब तो तू तैयार है ना?

पायल : हाँ भाभी...अब तो मैं पूरी तैयार हूँ...

दोनों भाभी-ननद हंसी मजाक में लगे हुए थे. कुछ पुरानी, कुछ नई बातों को याद करते हुए दोनों मजे से अमरुद की टहनी की के नीचे बैठे हुए थे. तभी उन्हें सीढ़ियों पर क़दमों की आहट सुनाई देती है. दोनों का ध्यान छत के दरवाज़े की ओर चला जाता है. कुछ ही क्षण में दरवाज़े पर बाबूजी धोती और कुरते में चलते हुए आते है. बाबूजी को देखते ही पायल और उर्मिला एक दुसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा देती है. रमेश भी धीरे-धीरे चलते हुए थोड़ी दूर पर राखी अपनी खाट पर बैठ जाते है.

रमेश : क्या चल रहा है भाभी और ननद के बीच ?

उर्मिला : (हँसते हुए) कुछ नहीं बाबूजी....बस ऐसे ही बैठे हुए होली की बातें याद कर रहे थे.

रमेश : (हँसते हुए) हा हा हा.... हाँ बहु. इस बार होली में बड़ा मजा आया था.

उर्मिला : लेकिन बाबूजी, पायल जितना मजा तो किसी और को आया ही नहीं होगा.
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