Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
08-30-2020, 03:17 PM,
RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
67 त्रिकोणीय शृंखला

जब मिस्टर शर्मा ने बेडरूम में पुनः पदार्पण किया और गतिविधियों का मुआयना किया, तो उनका लिंग तपाक से सावधान मुद्रा में आ गया। उन्होंने सर्वदा कल्पना की थी कि टीना जी को किसी अन्य महिला की योनि से मुखमैथुन करते देखें , और आज तो वही कल्पना यथार्थ बनकर उनके समक्ष दृष्टिगोचर हो रही थी। दरसल उनका लिंग इसलिये फड़क - धड़क उठा था क्योंकि उन्हीं की कामुक नवयौवना पुत्री की योनि में उनकी पत्नी अपना मुख चिपटाकर भूखी कुतिया जैसी चाट-चुपड़ कर रही थीं।

मिस्टर शर्मा बिस्तर के समीप पहुंचे और उन्होंने अपने पुत्र को उनकी पत्नी के साथ ठोक-ठोक कर सम्भोग करते हुए देखा। जैसे वह अपने लम्बे, कठोर लिंग को उनकी उचकी मांद में जोतता जा रहा था, किशोर जय के अण्डकोष ‘फत्थ - फच्चाक' की जोरदार ध्वनि के साथ माँ के पेट पर टक्कर कर रहे थे।

“आओ डैडी, देखो बेशरम कुतिया कैसे चूत चाटती है !”, जय ने पिता का स्वागत किया। उसके ठेलों के बल के प्रभाववश हर ठेले के साथ उसकी माँ का मुख सोनिया की रिसती योनि में अन्दर दब जाता था, जिससे उसकी वासना से बेसुध जवान बहन के मुख से रह रह कर लैंगिक आनन्द की अभिव्यक्ति करती किलकारियाँ फूट पड़ती थीं।

“मादरचोद, रुक नहीं सकता था मेरे लिये ?”, मिस्टर शर्मा मुस्काते हुए बिस्तर पर चढ़ बैठे और अपने लिंग को पुत्री के कामुक मुख में उडेलते हुए बोले।

सोनिया अपने पूरे सामर्थ्य से मिस्टर शर्मा के लिंग को चूसने लगी। अपनी योनि पर माँ के होंठों और जिह्वा का अनुभव उसे मारे मस्ती के पागल किये देता था, और अब मुंह में पिता का लिंग उसकी मादक मस्ती के अनुभव को परिपूर्ण कर रहा था। जैसे मिस्टर शर्मा ने अपने लिंग को उसके मुख में चलाना प्रारम्भ किया, सोनिया ने फिर एक बार ऑरगैस्म का अनुभव किया। भूखी माँ उसकी योनि के अति - संवेदनशील चोंचले को चूसती जा रही थी। प्रतिक्रिया में वह केवल पिता के लिंग पर मुँह कसे हुए मदमस्त होकर कराहती जा रही थी।

“साली, डैडी का वीर्य पियेगी ? बोल ?”, मिस्टर शर्मा ने पूछा।

“बेटीचोद, तू सोनिया से चुसवा रहा है ?”, अब तक उनकी गतिविधियों से अनभिज्ञ टीना जी ने हैरानी प्रकट की।

“अबे हरामजादी, तू चुपचाप जय से चुदवा! तेरी बेटी मेरे लन्ड की सेवा कर रही है !” पिल्ले जनेगी! मेरी माँ मेरे पिल्ले जनेगी!”

जय भी अब वीर्य स्खलन के निकट आ चुका था। उसकी माँ की तंग, भींचती योनि की चिपचिपाहट उसके सारे बाँध तोड़े देती थी। उसपर अपनी बहन को पिता के लिंग को चूसते देख, और साथ में माँ द्वारा योनि चुसवाता देख, जय की उत्तेजना और अधिक बढ़ गयी थी। लड़के को अपने वीर्य-कोष में खिंचाव का आभास हुआ। अब किसी भी सैकेण्ड उसकी माँ को उसके वीर्य की हर बूंद प्राप्त होने वाली थी!

“ऊ ऊहहह! कुतिया! अब मेरा लन्ड भी झड़ने वाला है, मम्मी !”, जय गुर्राया, और अपने फड़कते लिंग को माँ की चुपड़ी योनि की गहनता में पागलों जैसा पीटने लगा।

टीना जी पुत्री की योनि के भीतर कराहीं और अपने नितम्बों को संकेतात्मक लहजे में हिलाती हुई उससे अपनी योनि के भीतर वीर्य स्खलन का आग्रह करने लगीं। इस निर्लज्जता भरे आह्वाहन ने जय के संयम के बाँध को तोड़ दिया। माँ की जकड़ती तपन के भीतर उसका लिंग फड़ाका। उसके अण्डकोष उबल पड़े और एक लबालब बौछार के साथ अपने भीतर संग्रहित वीर्य को टीना जी की मचलती योनि की गहनता में उडेल दिया।

“ले कुतिया, मेरा बीज !”, वो चीखा, “उँहह अँ आ ... आह ऊहह ! ले अपनी कुतिया चूत में मेरा वीर्य ! ओहहह, मादरचोद! माँ की चूत ! चोद मेरा लन्ड !”

“आह ऐंह पी जा अपनी चूत में मेरे टट्टों का वीर्य! देख बेटीचोद, जिस चूत को चोदकर तूने मुझे पैदा किया था, उसी चूत को चोदकर आज मैं हराम के पिल्ले पैदा करूंगा!” पिता को सम्बोधित करता हुआ बड़े गर्व से बोला था जय।

“मादरचोद, चोद माँ की चूत! मेरे शेर, दे साली को अपना वीर्य !” मिस्टर शर्मा ने पुत्र का उत्साह वर्धन किया।

टीना जी ने भी अपने पुत्र के गरम, गाढ़े वीर्य को अपनी योनि में प्रवाहित होता महसूस कर लिया था। जय के लिंग का तना उनके चोंचले पर खूबसूरती से रगड़े जा रहा था, परन्तु वे अपने ऑरगैस्म के तनिक भी करीब नहीं थीं।

जय के लिंग ने तो उनके भीतर ज्वलन्त कामाग्नि को हलका सा भड़काया भर था। मैं पहले भी कह चुका हूँ किन कारणों से यह स्वाभाविक था। टीना जी ने अपनी निस्वार्थ ममता का प्रेम अपने पुत्र के लिंग से वीर्य स्खलित कर अभिव्यक्त किया था। करुणा की सागर उनकी योनि में पुत्र-वीर्य को ग्रहण कर उन्होंने अपने असीम और निश्छल प्रेम का एक और उदाहरण दिया था।

उनके चूसते मुख ने तले, सोनिया अपने तीसरे ऑरगैस्म के प्रभाव में ऐंठ रही थी। उनकी नन्हीं बिटिया की कामक्षुधा तो बुझाये नहीं बुझती थी, पर टीना जी की देह तो तृप्ति के लिये अधीर हो रही थी। वे अपनी पुत्री से क्षुधा पूर्ति की अपेक्षा कर रही थीं। | जब जय ने अपना लिंग उनकी योनि से बाहर खींच निकाला, तो टीना जी ने पीठ के बल लोटकर सोनिया को अपने संग खींचते हुए, उसके सर को अपनी दुखती योनि पर नीचे दबा दिया। मिस्टर शर्मा के लिंग ने ‘सुड़प्प' के गूंजते स्वर के साथ पुत्री के मुख का त्याग किया। उन्होंने सोनिया को अपने हाथों और घुटनों के बल बैठकर माँ की जाँघों के बीच सर घुसाते हुए देखा।

“चूस मुझे, सोनिया !”, टीना जी कराहीं, “आ बिटिया, तेरी कुतिया माँ तुझे रन्डी बनने की ट्रेनिंग देगी !”

सोनिया ने इससे पहले कभी योनि को चाटा नहीं था, पर मैथुन की इस नवीन शैली को सीखने का इससे अच्छा अवसर भला और कौनसा हो सकता था ? आखिरकार माँ ने अभी-अभी तो उसकी योनि के संग मुख मैथुन किया था। उसकी नन्हीं योनि अब भी माँ द्वारा प्रदान किये अति-तीक्षण ऑरगैस्मों के प्रभाववश में गुदगुदा रही थी। उसे तनिक भी ग्लानि अथवा शर्म का आभास नहीं हुआ। जानती थी तो बस इतना की पूरी रात उसे चूसना और चुदना है! एक पाश्विक कराह के साथ किशोरी सोनिया ने अपना मुँह टीना जी की पटी योनि पर दबा डाला और आतुरता से अपनी कामुक माता की टपकती योनि पर ऊपर-नीचे चाटने-चुपड़ने लगी। | मिस्टर शर्मा पुत्री के उचके हुए नितम्बों के पीछे आ पहुंचे और घुटनों के बल बैठ गये। फिर उन्होंने अपनी जिह्वा को पीछे की दिशा से उसकी आकर्षक योनि के भीतर घुसेड़ना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने सोनिया की रसीली योनि-कोपलों को चाटा और चूसा। सोनिया भी इसी क्रिया को माता पर दोहरा रही थी। फिर खड़े होकर मिस्टर शर्मा ने, उस स्थान पर, जहाँ कुछ देर पहले उनकी जिह्वा थी, अपने विशालकाय लिंग के सिरे को टिका दिया।

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सोनिया माँ की योनि में जोर-जोर से कराही, और उसके पिता अपने सुपाड़े को उसकी महीन रोमों से सजी योनि पर ऊपर-नीचे मसल-मसल कर अपने दैत्याकार लिंग को रिसते हुए द्रवों की चिपचिपाहट में लथेड़ने लगे। लिंग के चिकने-चपाट हो जाने के पश्चात उन्होंने अपने सुपाड़े को सोनिया की संकारी प्रजनन गुहा में घुसा डाला। जैसे ही उसने डैडी के लिंग को अपनी योनि में प्रविष्ट होता महसूस किया, सोनिया उचकने और बलखाने लगी। वह अपनी गीली, लिसलिसी, टाइट योनि को मिस्टर शर्मा के लिंग की संतोषजनक कठोरता के विपरीत ठेलती रही।

68 थका कुटुम्ब जैसे ही उनके पति अपने दानवाकार लिंग द्वारा नवयौवना सोनिया की जकड़ती योनि के भीतर सैक्स-क्रीड़ा करने लगे, टीना जी को अपनी योनि में पुत्री की जिह्वा के बेतहाशा थीरकने का आभास हुआ। । “ओह, आह आँह ! चाट मेरी चूत , लौन्डिया !”, सोनिया के केशों को दबोच कर टीना जी ने आदेशात्मक स्वर में कहा। “रन्डी, तेरा बाप तेरी जवान चूत को चोद रहा है, तू मम्मी की चूत को चाट! अहहहह! हे राम! चाट मुझे, सोनिया! चाट चोंचले को भी, लाडली! अम्म अहह • आँह! शाबाश अब तो तू पेशेवर :: अ आहह रन्डी बन गयी समझ !” ।

अतुल्य दैहिक सौन्दर्य की स्वामिनी टीना जी ने अपनी गोरी सुडौल टाँगों को चौड़ा फैला दिया। जिस प्रकार वे अपने नितम्बों को बिस्तर से उचका-उचाका कर पुत्री के चेहरे को अपनी गुंघराले रोमों से मण्डित योनि पर लथेड़ते जा रही थीं, उनके विशाल स्तन बड़े-बड़े रसगुल्लों जैसे फुदकते जा रहे थे। टीना जी ने दीवार पर लगे आईने में झांका तो मिस्टर शर्मा के लिंग को सोनिया की कोमल जवान योनि के भीतर लुप्त होते देख अप्रत्याशित आनन्द भरी एक कराह उनके कंठ से फूट पड़ी।

ओह दीपक डार्लिंग! चोद रन्डी को! दम लगा के चोद !”, टीना जी चीखीं, “चोद हरामजादी का मुँह मेरी चूत में, मेरे आशिक़ ! हे राम, मेरी प्यास तो बढ़ती जा रही है !” उन्होंने मुड़कर जय को देखा, जो हस्तमैथुन किये जा रहा था, संयम से वो अपने नौजवान लिंग को किसी तपते और चिपचिपे छिद्र में घोंपने के अवसार की प्रतीक्षा कर रहा था।

इधर आ, हरामी", टीना जी ने फंकार कर काहा। “ला इधर अपना मोटा, टनाटन लन्ड, मम्मी इसे चूसना चाहती है !”

“अभी लाया मम्मी!”, जय हँसते हुए माता के स्तनों पर चढ़कर बैठ गया। “ले चूस मेरा लन्ड, मम्मी !” | उसका दानवाकार लिंग टीना जी के मुख के सामने तनकर फड़क रहा था।

कामुक माता ने तुरन्त मुख को पूरी तरह से खोला, और आनन्द के मारे बिलबलाते हुए, ममतापूर्वक अपने होंठों को पुत्र के धड़कते लिंग पर लिपटा दिया।

“उहहह, अहहह! ले मम्मी चूस ले मेरा मोटा लौड़ा”, जय ने कराह कर नीचे हाथ बढ़ाया और माँ के विशाल, पुखता श्वेत वर्ण के स्तनों को दबाने लगा। मेरी रन्डी मम्मी! अगर ऐसे ही मस्ती से चूसती रही तो तेरे मुँह में ही मेरा वीर्य बह जायेगा !”

टीना जी ने पुत्र के फड़कते लिंग को अपने गले की गहराईयों में निगल लिया। पुचकारते हुए, उन्होंने अपने पुत्र के लिंग को धीरे-धीरे चूस- चूस कर अपने गले में खींचना शुरू किया, और तब कहीं जा कर थमीं, जब वो उनके गले में पूरा का पूरा उतर नहीं गया। अपनी सौंदर्यवती पत्नी को अपने पौरुषवान पुत्र के लिंग पर मुखमैथुन करता देख , मिस्टर शर्मा अत्यन्त उत्तेजित हो गये, उन्होंने तुरन्त अपने लिंग का गतिवर्धन किया और सोनिया की प्रेम से सिकोड़ती योनि में उसे अपनी पूरी क्षमता के साथ ठेलने लगे।

पापी परीवार का उदिक्त सामूहिक सम्भोग कुछ ही मिनट और चला। सोनिया का मुख व जिह्वा माँ के रसीले योनि माँस में गहरी घुसी हुई थी, और योनि में ठेलते , पिता के विशाल लिंग द्वारा उत्पन्न विलक्षण आनन्द उस नवयौवना से सहा नहीं जाता था। किसी कुदाल की तरह मिस्टर शर्मा अपने लिंग को पुत्री की मलाईदार योनि में चला रहे थे। यौन तृप्ति की वेला को विलम्बित करने की चेष्टावश उनका आग-बबूला और पसीने से सना हुआ था, परन्तु उनकी चेष्टा विफल हुई।

टीना जी ज्वर- पीड़िता जैसी जय के ठोस लिंग को चूसे जा रही थीं और उनके चोंचले पर सोनिया का चुपड़ता मुख उनके सारे बाँध तोड़े दे रहा था। आखिरकार जब उन्होंने चरमानन्द की प्राप्ति की, तो उनका सम्पूर्ण बदन थरथरा उठा। वे बेचारी चीख भी नहीं पायीं , मुँह में पुत्र का मोटा लिंग जो ठूस रखा था उन्होंने। परन्तु सोनिया को ज्ञात हो गया कि उसकी माँ को चरमानन्द प्राप्त हो रहा है। टीना जी की भीगी योनि अचानक सिकुड़ी, फिर अपनी किशोर पुत्री की लपलपाती जिह्वा पर कुलबुलाती - बलखाती हुई फड़की। सोनिया निरन्तर प्यासे जानवर की तरह चाटती-चुपड़ती हुई उस निर्लज महिला की तप्त, रोमयुक्त योनि पर जिह्वा चलाती रही। उसने मुख-मैथुन-क्रीड़ा में चरमानंद की आखिरी घड़ी तक माँ का साथ निभाया।

पिता और पुत्र के बीच वीर्य स्खलन स्पर्धा में, मिस्टर शर्मा अग्रिम आये। वीर्य का देर तक संयमित किया हुआ फ़व्वारा सोनिया की आक्रमित युवा योनि में फूटा, और उसके प्रजनन मार्ग को चिपचिपे गाढे, श्वेत वर्ण के वीर्य- प्रवाह से लबालब भरता गया। उनकी सिकुड़ती- ढील देती योनि पर सोनिया के मुख का शिकंजा कायम तो था ही, अब टीना जी अतिरिक्त मस्ती से कराहने लगीं थीं क्योंकि उनके पुत्र का लिंग भी अब वीर्य का स्खलन कर रहा था।

| टीना जी निर्लज्जता से अपने पूरे सामर्थ्य से जय के लिंग को चूस रही थीं। उसके झटकते लिंग को वे अपनी मुट्ठी में कस के पकड़े हुए, कराहते हुए किशोर जय के अण्डकोष से स्फुटित वीर्य की बूंद-बूंद को दुह - दुह कर पुत्र-वीर्य का पान कर रही थीं। उन्हें इसकी तनिक भी परवाह नहीं थी कि मुख में वीर्य बहाता लिंग उनके कोख - जने पुत्र का है, उनका पूरा ध्यान तो बस जय के पुरुषाकार लिंग को चूसने पर केन्द्रित था।

टीना जी ने अपना मुँह उसके पेड़ पर गाड़ दिया, और जय के सम्भोगास्त्र को अपने गले में जितना अन्दर जा सकता था, ठूस लिया। उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया कि कब सोनिया उठकर पलटी और मिस्टर शर्मा के लिंग को चूसना प्रारम्भ करा। टीना जी तो केवल अपने पुत्र के वीर्य का रसास्वादन करती जा रही थीं।

दोनों महापुरुषों के लिंग जब अपने भीतर सिमटे वीर को उडेल चुके, तो पापी परीवार के सदस्य संतुष्ट और प्रसन्न मुद्रा में थक कर बिस्तर पर लेट गये। सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि सभी रात को अपने-अपने बिस्तरों पर सो कर विश्राम करेंगे।
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69 भोर का शोर

किसी भी साधारण, गबरू नौजवान लड़के की तरह ही, जय जब अगले दिन सवेरे उठा, तो उसका लिंग आंशिक रूप से कठोर था - साधारण से कुछ अधिक कठोर, जिसका कारण जय ने बीती रात के घटनाक्रम को माना।

अभ्यासवश, उसका हाथ चादर के अंदर घुसकर अपने लम्बाते लिंग पर लिपट गया। पिछली रात की प्रत्येक घटना को उसने अपने मस्तिष्क में पुनरकल्पित किया और अपने ठोस लिंग को दबा-दबा कर मसलता गया, जब तक की वो अपनी पूरी लम्बाई, मोटाई और बुलंडगी की स्थिति में नहीं आ गया। जय लम्बे, लम्बे, निर्धारित स्ट्रोक लगा लगा कर हस्तमैथुन करने लगा, जैसी बालकावस्था से उसकी नियमित आदत बनी हुई थी। | पर तब उसके मस्तिष्क में कौंधा ... अब भला उसे हस्तमैथुन का सहारा क्यों लेना पड़ेगा! देह तृप्ति वास्ते घर की चारदिवारी में ही अब उसे दो कामुक योनि जो उपलब्ध थीं! इस विचार से उसका लिंग उछल पड़ा, और वह शीघ्रता से बिस्तर से निकल खड़ा हुआ।

गलियारे में तेजी से चलता हुआ वो सोनिया के कमरे की ओर चल पड़ा, इस आशा में, कि उसकी कामुक बहन उसकी कामाग्नि शांत करने के लिये तैयार बिस्तर में लेटी होगी। कमरे का दरवाजा तो खुला था, पर सोनिया का बिस्तर तो खाली पड़ा था। ‘केला!', जय ने अफ़सोसपूर्वक सोचा। जय उलटे पैर गलियारे में वापस लौटा और माता-पिता के बेडरूम के दरवाजे के सामने ठिठक कर खड़ा हो गया। | मर्यादावश, उसने दरवाजा खटखटाने को हाथ बढ़ाया, पर तभी उसे अपने परिवार में नवस्थापित यौन स्वतंत्रता का स्मरण हुआ, तो उसने सहजता से दरवाजे को धकेला और चुपचाप भीतर प्रवेश किया। देखा तो अपनी माँ को डबल बेड के बीचों-बीच पसर कर लेटा पाया।

वे गहरी निद्रा में थीं, उनकी छरहरी गौर-वर्ण की स्त्री - देह पर ओढ़ी हुई सफ़ेद चादर से उनकी लुभाती नग्नता का आंशिक ढकाव ही हो रहा था। जय ने दायें और बायें नजरें फेरीं, फिर धीमे से बिस्तर के आगे आ खड़ा हुआ। ‘डैडी जरूर दफ़्तर निकल गये होंगे', मुस्कुरा कर उसने सोचा। उसने फिर एक बार नीचे अपनी सुप्त माँ की नग्नता पर अपनी पाप-भरी निगाहें फेरीं, तो उसका लिंग में फिर सरसराहट हुई। क्या विलक्षण सौन्दर्य था :: कैसी खालिस कामुकता, एक एक अंग तराशा हुआ, स्तनों का क्या आकार, कैसा लोच, अचूक संतुलन। उसपर सज्जित बड़े-बड़े गुलाबी निप्पल जो जय के किशोर मन को ललचा रहे थे। मातृत्व की जीती-जागती देवी थीं वे, जिन्होंने ममता की पराकष्ठा पर खरा उतर कर अपना तन-मन पुत्र को न्यौछावर कर दिया था! मातृ प्रेम को पाने की कामना से उसकी इन्द्रियाँ पुलकित हो रही थीं, माता के प्रति वासना उसे पागल किये दे रही थी! | मुस्कुरा कर जय ने हाथ नीचे किया, और चादर के सिरे को अपनी मुट्ठी में दबोचा। फिर हौले-हौले वो उसे अपनी माँ की चिकनी, मांसल जाँघों पर से अनावृत करने लगा। जय की तो बांछे खिल गयीं जब सहसा टीना जी ने नींद में अंगड़ाई लेकर, अपनी जाँघों को चौड़ा खोला, जिसके फलस्वरूप उनके तन पर ढकी चादर धीरे-धीरे नीचे सरकने लगी।

जब उसकी माता की रोमयुक्त योनि दृष्टिगोचर हुई, तो जय का हृदय धौंकनी सा चल रहा था। योनि की फूली नम कोपलें पटी हुई थीं, और जय को टीना जी की टपकती, रिझाती मांद की साफ़-साफ़ तस्वीर दिखला रही थीं। जाने अनजाने टीना जी जय को मनचाहा दर्शन दिखला रही थीं। अपनी सैक्स कल्पनाओं में जय ने अनेक बार अप्सरओं के दल को अपने समक्ष टीना जी की जैसी ही नग्न सुप्तावस्था में लेटा हुआ कल्पित किया था। इन स्वप्नों में वो अपसराएं उसकी दासी हुआ करती थीं, और वो उनका एकमात्र स्वामी, जिसे उनकी देह के उपभोग का एकछत्र अधिकार था! उनका अस्तित्व का केवल एक ही पर्याय था - उसका लैंगिक आनन्द। अपसराओं के जीवन का लक्षय केवल उसके संग सम्भोग करना, चुम्बन करना, और मौखिक मैथुन करना था, उसके मनवांछित समय पर। बदले में उन अपसराओं को भी आनन्द प्राप्ति होती थी। क्योंकि उसके स्वप्नों में वो उन्हें लैंगिक असीम चरमानण्द देता और प्रत्येक अपसरा उसके बदन के तले, मारे मस्ती के तड़पती और उचकती थी। उसके स्वप्नों में स्वयं की और अपसराओं की यौन क्षुधा कदैव तृप्त नहीं होती थी!

चादर जैसी ही मिसेज शर्मा की जाँघों से सरक कर गिर गयी, जय भूखे गिद्ध की निगाहों से अपनी माँ की प्रदर्शित योनि को घूरने लगा। मुख से टपकती लार पर जय जीभ फेरता हुआ टीना जी की नग्न देह के अलाव से लपकती ज्वाला पर अपने लोभी नेत्रों को सेक कर मन के पापी इरादों को गरम कर रहा था। कुछ पल वो मन्त्रमुग्ध सा धरा पर पाँव जमाये खड़ा रहा, फिर हरकत में आया और उनकी नग्नता पर झुक गया। टीना जी के तन में ऐसा छरहरापन और लोच था जैसा युवा नर्तकियों का होता है। अनेक लोग तो उन्हें सोनिया की बड़ी बहन मान कर धोखा खा जाते थे। सृजनकर्ता ने उनके हर अंग को ऐसा सांचे में ढाला था मानो सम्पूर्ण मानवीयता के सम्मुख देह-सौन्दर्य का आदर्श रखना चाहते हों। हाड़ और माँस का बिलकुल सटीक नपा-तुला अनुपात जो देखने वाले को सहज आकर्षित करता था - एकदम स्वदेशी भारतीय उत्पाद थीं वे। अपने शारीरिक सौन्दर्य के लिये विख्यात पेशेवर सैक्स फ़िल्मों में काम करने वाली विदेशी महिलाओं, जिनके चित्र देख-देख कर जय हस्तमैथुन करता था, को भी मात देती थीं वे। बड़ी सावधानी से, ताकि टीना जी की निद्रा भंग न हो, जय मुंह पर वासना लिप्त मुस्कान लिये, बिस्तर पर चढ़ा और अपनी माँ की बेपरवाही से फैलायी जाँघों के बीच घुटनों के बल बैठ गया।

जैसे जय ने अपना सर उनके खुले पेड़ पर झुकाया, माँ की नम योनि की मादक, सुगंधि उसके नवयुवा नथुनों में समा गयी। किशोर जय ने बड़ी ध्यानपूर्वक उसकी सपाट मक्खनदार जाँघों को और चौड़ा फैलाया और अपने मुख को टीना जी के लम्बे, चमचमाते योनि मार्ग के ठीक ऊपर ले आया। उसकी निद्रामग्न माँ की योनि की कोपलें अश्लील शैली में खुली पड़ी थीं, और अपने भीतर की गुलाबी, लिसलिसी सीलन को प्रकट कर रही थीं। ऐसा उत्कृष्ट दृश्य था, जिसके समक्ष उतावले किशोर ने आत्म नियंत्रण खो ही दिया।

तत्पर हाथों के द्वारा जय अपनी माँ के नग्न पेट और चिकनी जाँघों को सहलाने लगा। साहसवश, वह यदा-कदा अपनी उंगलियों को टीना जी के चुंघराले, नम योनि - रोमों पर भी फेर देता।
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70 रिश्तों की दास्तान

जय मातृ योनि से प्रज्वलित होते कामताप को अनुभव कर पा रहा था, जो उसके अन्दर हिनहिनाते वासना रूपी अश्व को ऐड़ दे रहा था। किशोर जय कोहनी के बल आगे झुका और उसने टीना जी के गुलाबी योनि मार्ग को ढके कोमल रोमों को अलग कर, हौले से अपनी एक उंगली अन्दर घुसायी। टीना जी दबे स्वर में कराहीं और मूर्छित होने के बावजूद उनके कूल्हे अतिक्रमण करती उंगली के विपरीत उचकने लगे। टीना जी तो गहन निद्रा में थीं परन्तु उनकी योनि की माँसपेशियाँ मचलती हुई जय की उंगली पर कसमसा रही थी। जय ने अपनी दूसरी उंगली को भी अन्दर घुसाया और उनके द्वारा माँ की संकरी, फिसलन भरी सैक्स गुहा में मसलने लगा। नींद से जागृति के किसी पूर्वसंकेत की प्रतीक्षा में जय उनके मुख को लगातार ताकता रहा। टीना जी के योनि द्रव पुत्र की मैथुन करती उंगलियों पर रिसने लगे और उनकी योनि से बाहर निकलकर, उनके नितम्बों के मध्य स्थित दरार पर बहने लगे।

आवेगवश जय आगे झुका और इससे पहले कि ओस जैसे पारदर्शी और मधुर गंध वाले द्रव की बूंदें लिहाफ़ पर टपकतीं, अपनी जीभ से उन्हें चाट लिया। जैसे ही उन्होंने अपनी संवेदनशील त्वचा पर जय की तप्त और नम जिह्वा के घिसाव का अनुभव किया, टीना जी की पलकें झट से खुल गयीं। उनके दृष्टि-पटल पर पड़ा पहला दृश्य उनके पुत्र के सर का शीर्ष भाग का था। जय उनकी चौड़ी फैली जाँघों के बीच सर घुसाये ऊपर नीचे हिला रहा था, मानो उनके मातृत्व का नमन कर रहा हो। टीना जी का प्रथम मृदु अहसास था पुत्र की जिह्वा और उंगलियों द्वारा उनकी कुलुबुलाती योनि पर मैथुन। जब उन्होंने सचेत होकर सुध ली तो मारे उन्माद के वे कराह उठीं, और अपने पुत्र के सर को हाथों में दबोचकर उसके मुख को अपनी आतुर योनि पर दबाने लगीं।

“ओहहह, मादरचोद ! जय! मुझे लगा मैं कोई सपना देख रही हूँ! आहहहः ‘आँहहह आहहह! बेटा चूस मुझे ! कल रात तुझे मैने जैसा सिखलाया था, वैसे ही मम्मी की चूत को चाट, मेरे लाल !” ।
जय ने उनकी जाँघों के बीच से उठकर उनको देखा और उसके द्रव से सने मुख पर एक कुटिल मुस्कान नाच गयी।

सुबह-सुबह माँ की सेवा करूंगा तभी तो आशीर्वाद पाउंगा ना !”, वो हँसा, “क्यों मम्मी, मेरे लौड़े को दोगी नहीं अपना आशीर्वाद ?”

“अम्मम्मम्म, दूंगी क्यों नहीं जय बेटा, पर जैसी सेवा, वैसा मेवा!”, टीना जी बेशर्मी से मुस्कुरायीं और किसी पेशेवर रन्डी की तरह आमंत्रणसूचक शैली में अपनी जाँघों को फैला दिया। फिर उन्होंने और अधिक सेवा पाने के आशय से अपने पुत्र के मुखड़े को अपनी योनि पर दबा डाला। “चाट मुझे !”, टीना जी ने फंकार कर कहा।।

चूस मेरी गरम चूत, बेटा! बाप रे, कितनी गीली हो गयी मेरी चूत ! घुसा अंदर मेरे लाल, घुसा अपनी प्यारी-प्यारी लम्बी जीभ, बेटा, और अपनी कुतिया मम्मी की चूत को पिल्ले जैसा चाट! पुच पुच्च :::

जय के आग्नेय होंठों ने जैसे ही उनकी योनि को स्पर्श किया और उनकी फूले हुई योनि-कोपलों को चूसते हुए अकड़ते चोंचले को मुंह में दबाया, तो टीना जी चीख पड़ीं। उन्होंने अपने घुटने मोड़े और जाँघों को पूरी तरह फैला कर इस तरह पीछे की ओर खींच दिया कि उनका पूरा योनि स्थल उभर कर सम्भोग के लिये अनावृत हो गया।

जय किसी भूखे पिल्ले की तरह अपनी माँ की योनि को चूसने और चाटने लगा। उसने टीना जी के दोनों नग्न नितम्बों को हाथों में दबोच कर उनके ज्वलन्त और तत्पर योनि माँस को अपने मुख के पास उठा लिया, और जिस योनि ने उसे जनम दिया था, उसी को मुँह से चाटता चुपड़ता हुआ मुखमैथुन करने लगा। यही तो उसकी कामोत्तेजना का मुख्य कारण था - उसकी सगी माँ का उससे दैहिक आकर्षण और उसके संग सम्भोग की कामना। यही दो बातें उसकी कामाग्नि को में धधकाये देती थी।

हैरानी की बात नहीं थी की स्वयं टीना जी के विचार भी ऐसे ही कुछ थे। बरसों तक उन्होंने अपने हृदय में नवयुवकों, खासकर उनके हट्टे-कट्टे, गबरू जवान बेटे, के प्रति अपने आकर्षण को दबा रखा था। किंतु सैक्स तो शर्मा कुल की रग रग में बसा था, और पिछली रात घटा घटनाचक्र तो देर-सवेर होना ही था। अब आवश्यकता थी तो नये रिश्तों को जोड़ने की, अनुराग अभिव्यक्ति की नवीन शैली को अपनाने की। अपने चोंचले पर जय का मुख टीना जी को पागल किये दे रहा था। जैसे-जैसे किशोर जय माँ के उत्तेजित चोंचले को हौले-हौले चबा रहा था, कामोन्माद के मारे टीना जी कंठ ही में गुड़ग-गुड़ग आवजें निकाल रही थीं। “ओहहह! मादरचोद, शाबाश, बेटा! चूस मम्मी का चोंचला !”

अँह ... आहहह .:: झड़ा मुझे ! मुझे झड़ायेगा तो तुझे मेरी टपकती गरम चूत को चोदने दूंगी !” “आहहह उह ::' बोल, चोदेगा ना मम्मी की चूत , जय ?”

जय उत्तर तो नहीं दे पाया, पर अपने चोंचले पर उसके मुख की तीव्र हुई गति टीना जी को बतला रही थी कि उनका कमोत्तेजित जवान बेटा सदैव की तरह सम्भोग के लिये समक्ष और तत्पर है। जय ने भूखे अंदाज में टीना जी की पटी हुई योनि की उमस में अपने मुँह को घुमा-घुमा कर चाटना प्रारम्भ कर दिया। टीना जी की फैली हुई योनि-कोपलें उसके चेहरे को चिपचिपे, सुगंधयुक्त द्रवों से लथेड़ते जा रही थीं। जब-जब उसकी कामुक माँ चिल्ला कर अपनी योनि को उसकी ठोड़ी पर उचकातीं, जय अपने हाथों को उनके पुखता, माँसल नितम्बों के नीचे सरका देता, औ उनकी तप्त, दव-छलकाती योनि को अपने खुले मुख पर और कस के दबा देता। उसके मुख पर टीना जी का योनि-स्थल कसमसा कर फुदकता, और जय अपनी लम्बी नोकीली जिह्वा को उनके सुलगते योनि-मार्ग में गहरा घुसेड़ देता।

जिस प्रकार से जय मुख से ‘सुपड़ - स्लरप्प-चप्प- पच्च - फच्चक' सी गन्दी-गन्दी आवाजें निकालता हुआ उनके प्रचुर द्रवों को चाटता जाता, और फिर अपनी अकड़ी जिह्वा को उनकी कंपकंपाती योनि में कीसी, छोटे और मोटे लिंग की तरह सरसरा कर चलाता, टीना जी तो सातवें आसमान में उड़ती हुई स्वर्ग तुल्य आनन्द की प्राप्ति कर रही थीं। टीना जी ने अपने तन और मन दोनो को पूरी तरह से दो देहों के बीच संचरित होती पाश्विक और पाप भरी काम ऊर्जा पर न्यौछावर कर रखा था। उनका संभोग किस कदर घोर पापयुक्त था, दुश्कर्म और हैवानियत की पराकष्ठा था, और समाज के द्वारा नियुक्त हर सीमा का उलंघन कर रहा था, '' ऐसे सारे विचार उनके मन से कोसों दूर थे। परस्पर अपनी देहों का आनन्दभोग करते हुए, उन दोनो का संबंध अब माता और पुत्र का नहीं रहा था। अब था तो केवल एक नर और एक मादा का संबंध, जिनका तो सृजन ही हुआ है लैंगिक कर्म-काण्ड के वास्ते। वे युगों-युगों से चली आ रही, परस्पर लैंगिक संतुष्टि की परम्परा को निभा रहे थे।
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08-30-2020, 03:17 PM,
RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
गुड मॉर्निंग


जैसे-जैसे उसकी नाक अपनी माँ के चोंचले पर दस्तक करती जाती, जय अपनी माँ की बेलगाम कराहों के स्वर को और ऊँचा और तीक्षण होता अनुभव कर रहा था। टीना जी की योनि सिकुड़ने लगी थी, वह जय की जिह्वा पर बार-बार कसती और ढिलती, यहाँ तक कि जय को श्वास में अवरोध होने लगा। फिर उसने अपनी हथेलियों के उपयोग से उनकी जाँचें और भी पाट दीं और नन्हें सपोले की तरह लगा अपनी जिह्वा द्वारा नागिन माँ के तने। हुए चोंचले पर अनुराग भरे डंक मारने। वह माँ को लैंगिक तृप्ति देने का भरसक यत्न कर रहा था। जय उनके अकड़े हुए और तने हुए चोंचले को जिह्वा की शैतानी गति से ऐसे सता रहा थे, कि टीना जी अपने आनन्द की तीक्षणतावश मूर्छित हुए जाती थीं।

। “आहहह ... गग्घह अह! माददररचोदद! चूस, जय! चिपका अपने होंठ उसपर और खींच-खींच कर चूस ! बेटा, मम्मी तेर मुँह पर झड़ने वाली है !”

ओहहहह, राम! चूस जय, जैसे मेरे मम्मों से चूस-चूस कर दूध पीता था, अब मेरी चूत को चूस ! कुतिया की औलाद , चूस! ऊँहह ... आहहह !”
जब वे अपने ऑरगैस्म के करीब आ गयीं, तो टीना जी की जिह्मा द्वारा त्रस्त योनि किसी खिलते पुष्प की तरह स्वतः और भी खुल गयी। उनके योनि द्रव निरंकुशता से पुत्र के चूसते मुख और ठोड़ी पर प्रवाहित होने लगे, और नीचे बहकर उनके नितम्बों के माँस के बीच स्थित खाई में एकत्र होने लगे। जब जय ने अपने होंठों द्वारा उनके चोंचले को दबोच कर अपने मूह में चूस कर अन्दर लिया, तो माता की पूर्णतय उत्तेजित योनि की मादक सुगंधि उसके नथुनों में फैल गयी। क्रुद्धता से उसने चोंचले को चूसा और चबाया, फिर अपने होंठों के बीच पकड़ कर मरोड़ा। वह कभी-कभी अपनी जिह्वा के सिरे से उसे चाट लेता, परन्तु फिर तुरन्त पलट के उसे किसी स्तनपान करते शिशु की भांति अपने मुख में लेकर पुनः चूसने लगता।

टीना जी निकट आती सैक्स संतुष्टि का पूर्वाभास कर रही थीं। लैंगिक आनन्द की अनुभुतियाँ उनके स्नायुओं से विकिर्णित होति, एक समुद्री तूफ़ान की प्रचण्डता लिये हुए, उनके सम्पूर्ण तन पर फैलती जा रही थीं। वे बेतहाशा मुखमैथुन में संलग्न पुत्र के सर को नीचे की ओर दबाये जा रही थीं और किसी हिंसक राक्षसी जैसी अपनी योनि को उसके मुख के विपरीत घिसे जा रही थीं।

अचानक, उनका पूरा तन अकड़ा, और अपने विकराल ऑरगैस्म के प्रभाव में वे दहाड़कर चिल्लाने लगीं।

“ओहहह! ओहहहह! आर्हहह! ::: राम! ओह, जय, मैं झड़ रही हूँ! :::: तेरे मादरचोद मुँह में मैं झड़ रही हूँ, मेरे लाल ! चाट मम्मी का जूस, बेटा! ओहहह, चोद देऽ!” ।

योनि द्रवों की अनेक बौछारें उसके दूत - गति से मैथुन करते मुख पर फूट पड़ीं, और अपनी चिपचिपी ऊष्मा को उसके गालों पर फैलाती हुई, ठोड़ी से टपकने लगीं। आखिरकार, उसकी माँ एक अंतिम दफ़ा फुदकीं और हुंकार कर अपनी दैहिक तृप्ति का आखिरी झटका दिया, फिर धम्म से बिस्तर पर ढेर हो गयीं।

लड़के ने मुँह ऊपर कर के अपनी माँ को देखा, उसके मुंह का निचला भाग अब भी उनकी योनि पर दबा हुआ था। वह उनके स्तनों को देख रहा था, जिनके ऊपर गुलाबी रंग के निप्पल, जो अकड़कर ऊपर को ताकते थे, शोभित थे। टीना जी ने भी नीचे, जय को देखा और एक संतुष्टि भरी मुस्कान उनके उज्जवल चेहरे पर नाच गयी।

* जय, बेटा तूने तो कमाल कर दिता !”, लम्बे-लम्बे श्वास भरते हुए मिसेज शर्मा बोलीं, “सच कहूँ तो कल रात से भी ज्यादा मज़ा आया !”

“अब अच्छी प्रैक्टिस जो हो गयी है मम्मी”, जय मुस्कुराया। “क्यों बेटा, कल रात अपने रूम में जाकर सोनिया के साथ खूब प्रैक्टिस की थी तूने ?”

“अरे नहीं मम्मी! कल तो मैं पूरा थक चुका था! कल तो सोनिया और आपने मेरी ऐसी चोदी, ऐसी चोदी, कि आखिर में बिलकुल ठन्डा पड़ गया था मैं ।” एक झेपी सी मुस्कान देकर जय बोला।।

“सिर्फ़ तेरी कहाँ, तेरा बाप भी तो था,”, टीना जी ने आँख मारकर कहा, “चलो भई, अच्छा किया कि रात को आराम कर लिया, आज तो तुझे पूरा दमखम दिखाना होगा, कहे देती हूँ जय ::: आज मम्मी की चूत को सैक्स जी जबरदस्त तलब लगी है !

टीना जी ने अपनी बाहें उठा कर उसे आमंत्रण दिया, तो जय रेंगकर उनकी देह पर चढ़ा और ऊपर लेट गया। उसका सख्त, जवान लिंग धीमी गति से फड़कता हुआ आतुरता से उनके पेट की नम त्वचा पर दबा रहा था। जब उन्होंने अपने पेट पर पुत्र के लम्बे लिंग का स्पर्श पाया, तो पुनर्जीवित कामाग्नि के प्रभाव से टीना जी की योनि सिहरने लगी। कदाचित् वे अभी-अभी एक शक्तिशाली ऑरगैस्म का अनुभव कर चुकी थीं, परन्तु फिर भी अपनी योनि को जय के वज्र से कठोर और यौवन से जीवन्त लिंग द्वारा ठूस दिये जाने के लिये तरस रही थीं। रह-रह कर बीती रात का एक एक पल उनके मानस पटल पर कौंध जाता था। उनके पुत्र का मजबूत, हट्टा-कट्टा बदन एक ऐसा अमृत था जो उनकी कामक्षुधा को तृप्त तो अवश्य कर देता, पर जिसका पान कर शीघ्र ही ज्यादा की मांग कर देतीं। ::: कैसी विकट परिस्थिति थी उनकी, कैसी तीक्षण क्षुधा थी उस अतिकामी स्त्री की, जो केवल पापी सम्भोग से ही शांत हो सकती थी!

टीना जी ने हाथों को नीचे, उसकी माँसल जाँघों के बीच बढ़ाया, और अपनी लम्बी पतली उंगलियों को उसके सूजे लिंग पर लपेट कर, अपनी मुट्ठी को पुत्र के लम्बे, ठोस अंग पर अनेक बार मूसल की तरह रगड़ा। एक कराह निकाल कर, टीना जी ने खींच कर उसके योनि - द्रवों से चुपड़े मुख को अपने मुख पर लगाया, और भावुक अंदाज में उसका चुम्बन लिया। वे अपने भीगे, कोमल होठों पर लेकर अपनी ही योनि के द्रवों का स्वाद चख रही थीं। जय ने माँ के गोल-गोल, ठोस स्तनों को हाथों में भरकर प्रेम से दबाया। उसकी जिह्वा उनके होठों को अलग कर उनके गले में सरसरा कर उतरी। पट्ठा अपनी माँ के गरम और आतुर चुम्बन का उतने ही आवेश से प्रति उत्तर दे रहा था। टीना जी ने अपने होठों को उसके होठों से जुदा किया और बोलीं:।

“मेरे लाल , बोल, मुझे चोदने का मन कर रहा है ?”, उसके मुंह पर गरम साँसें फेंकती हुई वे बोलीं। “चोदना चाहता है अपनी माँ की चूत को ?”

“जरूर, मम्मी! मैं तुझे इसी वक़्त चोदना चाहता हूँ !”, जय ने शुश्क कंठ को साफ़ किया, और अपने नितम्बों को उचका कर लिंग को संभोग मुद्रा में ले आया।

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08-30-2020, 03:18 PM,
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72 शिक्षा

इतनी जल्दी नहीं, मेरे चोटू मादरचोद बेटे !”, टीना जी फुकारीं, और पुत्र के अधीर लिंग को कस के पकड़े हुए बोलीं, “एक बात गांठ बाँध ले, जब भी किसी औरत को चोदने का मन करे, तो पहले औरत को अच्छी तरह से चुदाई के वास्ते गरम करना बड़ा जरूरी है ।' समझा, मेरे लाल ?”

“नहीं, मम्मी, मेरे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ा। तू तो गर्मा ही चुकी होगी, तभी तो मुझसे चोदने चाहती हो।”, लड़के ने मासूमियत से कहा। उसके मुख पर कुछ हताशा का भाव था।

“अरे बुद्ध, मैं बेशक चुदना चाहती हूँ, बच्चा ।”, उसकी माँ ने उत्तर दिया, “पर तुझे समझना चाहिये की बढ़िया चुदाई मतलब सिर्फ ये नहीं कि ले आये अपना मोटा बम्बू, और पेल दिया चूत में ।”

“अच्छा तो तुम्हीं बता दो ना, कैसी होती है बढ़िया चुदाई ?”, जय बोला। टीना जी अपनी देख को उसकी देह पर धीरे-धीरे, मादल लय में मसलने लगीं। वे उसके लिंग के शीर्ष भाग को अपने योनि स्थल पर रगड़ने लगीं, और लिंग को अपनी रिसती और द्रवों से सनी योनि के द्वार की सम्पूर्ण लम्बाई पर घसीटने लगीं।

“इस तरह जय !”, वे कराहीं, “इसे कहते हैं चुदाई के पहले का खेल :: : ओहहह! ::: यही तो फ़र्क है ::: अहंहह! ::: एक अच्छी चुदाई, और एक मस्त चुदाई में, आह ... जिससे चूत शराबी और लन्ड कबाबी हो जाये ::' आहहहह ... साला वो लन्ड ही क्या जो चूत से खेलकर उसे सताये नहीं ::: अहाँह :: सैक्स में एक्स्पर्ट वही मर्द है जो औरत के बदन को गुदगुदा, मचला कर चुदाई के वास्ते पूरा गरम कर दे, पर खुद जरा भी नहीं विचलित हो !”

टीना जी ने बिलबिलाते हुए जय के लिंग को अपने चोंचले पर रगड़ा। जय ने निगाहें नीची कर के अपने नितम्बों को यौवन की आतुरता से कसमसाया। उसके मन में तनिक भी मौका मिलने पर अपनी माँ की कस कर खींची हुई योनि में अपने कामातुर लिंग को घोंप देने की प्रवृत्ति प्रबल हो रही थी। टीना जी ने ऊपर, कामविभोर नेत्रों से अपने पुत्र की आँखों में आँखें डालकर देखा।

“बोल, माँ की गरम और गीली चूत से मजा आ रहा है, बेटा ?”, वे कराहीं, “मुझे बता, जय! बता क्या चाहता है ::: आज तक तेरे मन में मेरे साथ जो - जो हरकतें करने की ख्वाहिश हुई हैं, सब बता दे मुझे बेटा!” ।

अब टीना जी का श्वास भारी हो चला था। वे लम्बी गहरी साँसें ले ले कर हाँफ़ रही थीं, और उसके फूले सुपाड़े को तीव्रता से अपनी फिसलन भरी योनि -गुहा में आगे-पीछे मसलती जा रही थीं। जय ने अनुमान लगा लिया था कि उनकी क्या मंशा थी, वे उसके लिंग द्वारा स्वयं को बहला रही थीं, और उसके मुख से अश्लील और गन्दा वर्तालाप सुनना चाहती थीं, उनके बीच निश्चित होने वाली सम्भोग क्रिया के रोमांच को भद्दे वर्तालाप द्वारा उत्पन्न छवियों से संवार कर दुगुना करना चाहती थीं वे :: :: ऐसी कामुक और वर्जित छवियाँ जो उनके मन में पनपती कल्पनाओं को जीवन्त कर दें। कितने समय से वे अपने सगे पुत्र के संग उन कल्पनाओं को यथार्थ में अनुभव करने को तरस रही थीं।

तेरी चूत पूरी गीली और गरम है, मम्मी !”, वो बोला, और एक एक करके उनके दोनो निप्पलों को चूम दिया। ६ . . मेरे मोटे काले लन्ड के वास्ते तेरी गरम और भीगी चूत ! मम्म !” | टीना जी ने प्रशंसा में सर हिलाया, उनके नेत्र जय के चेहरे पर गड़े हुए थे, जैसे उसका अश्लील शब्द - जाल उन्हें वशीभूत किये हो।

“अ ह! हाँ बेटा! तेरा लन्ड तो वाकई खूब मोटा है! और काला भी !”, टीना जी ने बड़े धीमे स्वर में, बुदबुदा कर कहा।

जय का लिंग उनके हाथ में फड़क पड़ा। “मेरे बाप जितना मोटा ?”, उसने पूछा। व अपने भीतर के पौरुष बल का अनुबोध कर फूला नहीं समा रहा था।

। “ओहहह, हाँ! जरूर! शायद उससे से भी मोटा, डार्लिंग! मेरे तो पंजे में भी फिट नहीं आ पा रहा!”, जो संबोधन अब तक अपने पति के लिये ही आरक्षित था, टीना जी ने उसी से अपने पुत्र को संबोधित कर, उसे अपने जीवन में एक अनुपम स्थान प्रदान किया था। उनका पुत्र अब उनके स्त्रीत्व का समपूरक था ::: उनके पति का स्थान ले लिया था जय ने !

टीना जी ने अतिशयोक्ति नहीं कही थी, सच में उनके पंजे में जय के लिंग की मोटाई नहीं समा पा रही थी। जैसे जय रोमांचित होता गया, उसके लिंग का तनाव भी बढ़ता चला गया। इसका एकमात्र कारण केवल माँ की हथेली का उसके लिंग पर होना नहीं था, हालांकि इसमें कोई संशय नहीं कि माता की मुष्टि में उसका लिंग बड़ा इठला रहा था। एक और अन्य कारण था कि उसे अपनी सगी माँ के साथ इस निरंकुश और स्पष्ट अश्लील लहजे में बतियाने में बड़ा मजा आ रहा था।

“मम्मी, तूझे चुदाई की लत है, है न ?”, जय बत्तीसी निकाल कर मुस्कुराया और उनके बड़े-बड़े गुलाबी निप्पलों पर च्यूंटी काटता हुआ बोला। “एकदम रन्डी है तू, जब तक तेरी गर्मा-गरम बुर में दो चार लम्बे तगड़े लन्ड नहीं मारते, तेरी चोटू चूत को चैन नहीं पड़ता ?” टीना जी ने सिहरते हुए उसके लिंग को दबाया और अपने प्रथम सम्भोग का स्मरण करने लगीं।

बिलकुल सही! मैं तो चुदाई की शौकीन हूँ! बचपन से ही !”, जय को कानों सुनी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था! “हरामजादी फ्राक पहने की उमर में ही चुद चुकी होगी !”, मुस्काते हुए जय ने सोचा।

“रन्डी, तू अपनी चूत में खुद भी उंगल करती है ना?”, उखड़ी - उखड़ी साँसों में उसने पूछा। फिर जय अपनी माँ के मक्खनदार और मोटे स्तनों के इन्च -इन्च पर हाथों को फेरने, और निप्पलों को मसलने लगा।

“साली, जब तू घर में अकेली होती है, तो तेरी चुदास चूत तो बड़ी गर्मा जाती होगी।” जय का स्वर भर्रा रहा था। उसने अपनी उंगलियाँ उनकी जाँघों के बीच फेरीं और हाथों में उनकी योनि को दबोच लिया। उसकी माँ की रोमदार योनि से धधकती नम ऊष्मा का अनुभव कर वो मानो खुशी से झूम गया। अत्यधिक उमस थी उनके योनि स्थल में । प्रतिक्रिया में टीना जी ने और अधिक गति से अपने पुत्र के मोटे लिंगस्तम्भ को रगड़ना प्रारम्भ कर दिया। वे उन्मत्त होकर अपनी आतुर योनि पर जय की हस्तक्रीड़ा का आनन्द ले रही थीं।
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08-30-2020, 03:18 PM,
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73 दीक्षा

मुझे तो लगता है तू अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेटती होगी और टांगें फैला कर अपनी गरम-गरम चूत को अपनी उंगलियाँ घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती होगी! बोल मेरी रन्डी माँ, करती है ना ऐसे ही ?” टीना जी ने स्वीकृति में सर हिलाया, और अपने चौड़े कूल्हों को उसके मालिश करते हाथों पर रगड़ने लगीं।

“हाँ, बेटा! ऐसा ही करती हूँ!', उन्होंने स्वीकारा, अब करू भी तो क्या, तेरा मुआ बाप तो तेरी बेचारी माँ की प्यास भर नहीं पाता! जय ::: तेरी माँ बड़ी हरामजादी औरत है, अब भगवान ने मुझे रन्डियों वाली चूत दे दी तो मैं क्या करूं, साली जितना भी चुदवाओ, और लन्ड की माँग करती है, एक मर्द से तो जी ही नहीं भरता !”

“मम्मी, मैं तेरी चूत की प्यास बुझाऊंगा! तेरा जब भी चुदने का मन करे, तू मुझे कहना, मेरा लन्ड तो मादरचुदाई के लिये हर वक़्त रैडी है! प्रौमिस !” ऐसा कहकर जय ने अपनी मध्य वाली उंगली अपनी माँ की मुँह बाती योनि में साफ़ उतार दी। जैसे उंगली उनकी योनि में प्रविष्ट हुई, वे बिस्तर से अपने नितम्बों को उचका कर कंठ के भीतर ही भीतर हुंकार उठीं !

“फिर तेरी बहन का क्या होगा ?”, मिसेज शर्मा ने एक लम्बी आह भरी, और उसके मुख पर प्रेम से चुम्बन किया, “उसे भी तो तेरा लन्ड पसन्द है। क्या वो बेचारी घरेलू सैक्स की मस्ती की हक़दार नहीं ?” टीना जी ने अपनी अनुभवी योनि की मासपेशियों को पुत्र की टटोलती उंगली पर कसमसाया।

“हरामजादी की चूत का खयाल तो डैडी रखेंगे, मैं तो पहले मम्मी को चोदूंगा, अगर सोनिया को मुझसे चुदना है तो करे इंतजार अपनी बारी का । है ना मम्मी ?” जय ने सर झुकाया, और अपनी माँ के बायें स्तन को मुँह में चूसने की चेष्टा की। टीना जी ने मातृ प्रेम भरी एक कराह निकाली, और स्तनपान की मुद्रा में सुप्त अपने पुत्र के सर को प्यार से थपथपाया। ‘अब तो जिंदगी एक सिलसिला बन जायेगी, चुदाई और सैक्स का!', उन्होंने सोचा। जय नटखट भरे अंदाज में उनके निप्पलों को हलके से काट रहा था, जिसे पिल्ले कुतिया के थनों से दूध पीते हुए काट देते हैं। पाश्विक वासना व ममता का कैसा बेजोड़ सम्मिश्रण था :: : कैसा मर्मस्पर्शी दृश्य!

उनके उभरे स्तनों से अपने सर को अलग उठा कर, जय ने अपनी माँ को अंगार उगलते नेत्रों से देखा। उसके वासना-ज्वर से ग्रस्त दिमाग में एक खौफ़नाक विचार अंकुरित हुआ था।
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08-30-2020, 03:18 PM,
RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
“मम्मी, क्या तू मुझसे गाँड मरवाना चाहेगी ?”, किसी सर्प जैसे हुंकार कर जय ने माँ के समक्ष बेशर्मी से अपना अश्लील प्रस्ताव प्रस्तुत किया, और संकेतत्मक रूप में अपनी माँ के गुदा द्वार पर एक उंगली को दबाया।

अपने पृष्ठ द्वार पर अचानक दबाव और अप्रत्याशित आनन्द का अनुभव कर टीना जी चौंक गयीं और बिलबिला उठीं। गुदा-मैथुन सदैव से उनके सैक्स - अनुभवों के तरकश में एक विशिष्ट स्थान रखता था, और अपने नौजवान पुत्र के द्वारा उनके मलद्वार में उसका मोटा तगड़ा लिंग घुसेड़ दिये जाने की कल्पना भर से वे मारे प्रसन्नता के झूम उठीं। जय ने उनकी प्रतिक्रिया भांप ली तो और अधिक दबाया, अपनी उंगली टेढ़ी कर उसे सहजता से उनकी मक्खन सी चिकनी गुदा के भीतर उतार दिया। टीना जी उसके तन पर सिमट गयीं और उमड़ते आनन्द के प्रभाववश ऊंचे स्वर में कराहने लगीं।

“अहा! मेरी माँ को पसन्द आया, हैं ना मम्मी ?”, जय ने आह भरी। अपनी माँ की प्रतिक्रिया के उतावलेपन और ऊर्जा ने उसे विस्मित कर दिया था। सोलह आने सत्य वचन कहे थे जय ने, वो अति-उत्तेजित स्त्री अपने संकरे गुदा मार्ग में उसकी उंगली के आभास से अत्यंत संतोष पा रही थीं। उनके पुत्र ने उन्हें इस कदर उत्तेजित कर दिया कि उनकी सुलगती योनि मैथुन के लिये बेताब हो गयी थी।

“ऊ ऊहहह, जय! गाँड बाद में मार लेना !”, वे चीखीं, “पहले मेरी चूत का तो कुछ बन्दोबस्त कर! मेरे लाल, चोद मुझे ! इस काले मुस्टंडे साँप को, जिसे तू लन्ड बोलता है, माँ की चूत में पेल दे, मेरे लाल, और मुझे कस के चोद दे !”

जय जानता था कि मंगल वेला आ गयी है। उसकी माँ पागलों जैसे अपनी योनि को फुदकाती हुई उसके लिंग को जोरदार झटके देती जा रही थीं ... दुनिया और दीन से बेपरवाह होकर वे अपना सम्पूर्ण ध्यान को केवल अपनी भूखी और कभी तृप्त न होने वाली योनि द्वारा सैक्स क्रिया करने पर केंद्रित कर चुकी थीं।

“जैसी तेरी इच्छा, माँ! पाट दे जाँघे पट्टे दे वास्ते, लौन्डिया !”, जय ने आदेश दिया, और अपने लिंग को माता की छलकती योनि के द्वार पर साधा। “चौड़ी खोल दे अपनी चूत की खिड़की, आ रहा है तेरी कोख का लाल अपना दनादन लन्ड लिये, मम्मी। आज तो दिल खोल के तेरा बेटा तेरी चूत को चोदेगा, जिससे तूने उसे जना था! साली रन्डी मम्मी, तेरी चूत को चोद - चोद कर गर्मी नहीं निकाली, तो नाम नहीं जय !”

टीना जी मारे आनन्द के बिलबिलायीं, और अपने एक हाथ को नीचे लेजाकर अपनी योनि के द्वार को पाट दिया। दूसरे हाथ में पुत्र के विकराल और खौफ़नाक तरह से फूल चुके लिंगस्तम्भ को लेकर, ना आव देखा, ना ताव, ढूंस दिया अपनी गरम-गरम रिसती योनि में !

जैसे उसका लिंग भीतर प्रविष्ट हुआ, जय ने आगे को ठेला, और एक ही बलशाली झटके समेत , उसे जाहिलों जैसे पेल दिया माँ की कस कर खिंची हुए योनि-छिद्र में ::. उसके अण्डकोष थप्प' के जोरदार स्वर से टीना जी के तन पर जा टकराये।

“ऊ ऊहह हे मादरचोद! क्या लन्ड पाया है जय!” , टीना जी चीखीं, कितना लम्बा ... कितना तगड़ा! ओहह, डार्लिंग! ::: कितना बड़ा है तेरा पहलवान लन्ड! मुस्टंडा मेरी कोख में घुस गया है! ओह साले! शाबाश जय! :::: माँ को चोद !!” ।

“श्श्श : भगवान के लिये मम्मी! इतना जोर से मत चीख !”, जय ने आह भरी, “पूरा मादरचोद मोहल्ला जान जायेगा कि कोई रन्डी चुद रही है!”

टीना जी ने बात अनसुनी कर दी, वे तो पूरी तरह से अपने पुत्र के विलक्षण लिंगोभार को यथासंभव अपनी योनि में ठूस लेने में तल्लीन थीं। उनकी योनि की मासपेशियाँ जय के दीर्घाकार और धड़कते लिंग पर अपना शिकंजा जमाये हुए थीं, बड़ी पुखतगी से उसे अपनी पाश्विक गिरफ़्त में दबोचे हुए थीं। । “माँ के बड़वे , गाँड उचका !”, टीना जी ने ऐड़ दी, “ऊह, येह बात मर्दो वाली! अब ऐसे ही उचका उचका के चोद! चोद मम्मी की गरम चूत, रन्डी वाली चूत है ये, तू ठीक से नहीं चोदेगा तो मोहल्ले के मर्द चोदेंगे! चोद! ऊहहहह अंहहह! भोंसड़चोद, लगा अपने टट्टों का जोर, नहीं तो सड़क पर चुदवाऊंगी !”
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08-30-2020, 03:18 PM,
RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
जय ने कोहनी का बिस्तर पर सहारा लेकर अपने बदन को ऊपर उठाया और अपने कूल्हे उचका दिये, फिर माँ की मांद में अपने लिंग को आगे और पीछे ठेलता हूअ, लम्बे, दमदार झटकों के साथ पाप संभोग करने लगा। टीना जी ने सर उठाया और उनकी पसीने से सनी देहों के बीच झांककर, बड़ी उतावली से अपने पुत्र के पौरुषयुक्त लिंग को उत्कृष्टता से उनकी योनि के भीतर फिसलते हुए देखा। जय ने माँ को ऐसा करते देखा और उनके नम माथे को चूम लिया।

“मम्मी, देखें कैसे मेरा मोटा-मोटा लन्ड तेरी झांटेदार चूत को चोद रहा है, देख रही है मम्मी ???, उसने पूछा। टीना जी की आँखें फटी की फटी रह गैई, उनकी निगाहें पुत्र के काले-काले और मोटी-मोटी हरे रंग की नसों वाले लिंग को अपनी टपकती योनि में प्रहार करते देख रही थीं। जैसे जय ने आगे को झटका दिया, उन्होंने अपने हाथों को उसके कंधों पर सहारे के लिये रखा, फिर भी जय के बलशाली ठेले के कारण उनका सर बिस्तर के सिरहाने टकराने लगा।

“ठीक है, ठीक है, लवड़े की मोटाई दिखाना अपने बाप को! साला कुतिया की औलाद लन्ड काला-काला तो है, पर कुछ दमखम भी है या, मुठ मार मार के अब सिरफ़ पेशाब ही निकालता है ?” मिसेज शर्मा ने व्यंग्य बाण फेंका।

“देख रन्डी, भड़का मत मुझे !”, जय ने हंकार कर कहा। “देसी माँ के देसी दूध को पी-पी कर मेरा देसी लन्ड मोटा-तगड़ा हुआ है, और मेरे टट्टे भी कम मादरचोद नहीं, साले रात भर वीर्य बना रहे थे। कि बेटा सुबह उठकर माँ को चोदना है ना। एक बार तेरे पाँव भारी कर दिये, फिर नौ महीने तेरी चुदने की छुट्टी! देख हरामजादी, देख अपने बेटे के चोदते लन्ड को !” ।

उसकी माँ का पेड़ उसपर ऊपर नीचे फुदक रहा था, और उसके चमचमाते काले लिंग को यथासंभव गहरा खींचे चले जा रहा था। अन्दर ठेलता हुआ जय अपने कूल्हों को घुमा-घुमा कर बलखा रहा था, और अपने पेड़ को पटक-पटक कर उनके अकड़े और धड़कते हुए चोंचले पर मसले जा रहा था।

“ओहहह, जय! मादरचोद, कितना बदमाश हो गया है! साले, पता नहीं तेरी मम्मी तेरी बातें सुनकर कितनी गर्मा रही है! :::

नजर न लगे मेरे लाल के चिकने लन्ड को, क्या लौड़ा है, भगवान !”, वे चीखीं, “हाँ बेटा लगे रह! चोद मुझे! तेरी कुतिया माँ की चूत में आग लगी है आग! अब बस तू ही इसे बुझा सकता है! साले तू नहीं होता, तो कबकी कोठे पर जाकर बैठ गयी होती! तेरा हरामी बाप तो साला सिरफ़ जवान लड़कियों में दिलचस्पी लेता है! मेरे लाल, चोद! चोद मेरे देसी मादरचोद !” | हाँफ़ते उन्माद से, वे अपने नितम्बों और और अधिक गती से उचकाती गयीं, वे जय के बलवान लिंग प्रहारों का कन्ढे से कन्ढा मिला कर मुक़ाबला कर रही थीं। उनका पुत्र किसी उपजाऊ बैल के जैसा सैक्स क्रीड़ा कर रहा था, और टीना जी उसका यथासंभव आनन्द उठाना चाहती थीं ::: हमेशा, हमेशा के लिये! जय ने अपने हाथों को उनकी सनसनाती त्वचा पर फेर रहा था, और उनके खरबूजों जैसे, झूलते स्तनों और मक्खन सी चिकनी जाँघों को दबाता जा रहा था। माँ को संतुष्ट करने के लिये ऐसा उतावला हुए जाता था कि जय किसी छोटे राक्षस जैसा माँ के संग प्रणय लीला कर रहा था। वो अपने दोनो हाथों में उनके तने हुए नितम्बों पर दबोच कर, उनकी भूखी योनि को अपने धड़कते हुए, नौ इन्ची लिंग से भरे जा रहा था।

“दे मार मेरे अन्दर, डार्लिंग ::: झड़ा अपनी माँ को! दम लगा के चोद मुझे बेटा ::: समझ तेरी माँ तेरे घर की भंगिन है, चोद साले जैसे भंगिन कमलाबाई को चोदता है! अहहहह, और अन्दर! तेरे बाप से भी गहरा !” ।

जय माँ को देह-तृप्ति की भिक्षा मांगते सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। जब उसकी माता उसके कान में निर्लज्जता से गन्दे - गन्दे उद्गार कह कर उकसातीं, तो उसे लगता था कि लिंग ने अतिरिक्त दीर्घता प्राप्त कर ली हो। जय का वीर्य से लबालब अण्डकोष थपथपाता हुआ टीना जी की गुदा के मध्य स्थित दरार पर टकराये जा रहा था, उधर उनकी योनि की सिकोड़ती माँसपेशियाँ उसके ताबड़तोड़ लिंग को कस के जकड़े हुए थीं। हर बार जब वो उसे बाहर खींचता, लगता था जैसे उसका लिंग उखड़ कर तन से अलग हो जायेगा। जय दो इन्च आगे को खिसका, और लिंग के योनि में प्रविष्टि के कोण को बदल कर, अपना लिंग इतना गहरा घोंप डाला, कि टीना जी को कभी कभी ऐसा लगता कि सुपाड़ा उनके गर्भाशय के मुख में घुस रहा है!
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08-30-2020, 03:18 PM,
RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
“अब इतना :... अंहह! ::: गहरा काफ़ी है, मम्मी!”, जय हाँफ़ता हुआ बोला, और अपने ठेलों की लय और लम्बाई को बढ़ा दिया। उसका स्वर अब भर्रा गया था, और शब्दों के बीच दैहिक परिश्रम के मारे अनेक हुंकारें निकलती थीं।

“ममम! रन्डी की औलाद ! ओह, मेरे लाल ! मादरचोद लवड़ा खूब अंदर घुस रहा है! ::: ऊँहह ... आँह ::: ऊँहह ... आँह अब किसी सैकन्ड भी झड़ सकती हैं। रुकना मत, मादरचोद, जरा भी रुका, तो लन्ड चबा जाऊंगी! :: आँह ::: ऊहहहह ::: बस, मम्मी झड़ी समझ !”

जय ने उनके गोलमटोल स्तनों को दोनो हाथों में दबोच कर, अपने क्रुद्ध लिंग को माँ की उचके हई योनि में अपने पूरे सामर्थ्य से संभोगशील किया, जिससे उनकी गिड़गिड़ाती आवाज एक स्वरहीन बुदबुदाहट में कहीं गुम हो गयी। जय की पीठ और जाँघों की मासपेशियाँ उसके परिश्रम के कारणवश उभर कर फड़क रही थीं। जी हाँ पाठकों, जय को उस कामोन्मादित पापी नारी की मनचाही मुराद पूरी करने के लिये अभूतपूर्व परिश्रम और पौरुष बल का व्यय करना पड़ रहा था!

जय ने माँ के ऑरगैस्म का पूर्वाभास, उनके कंठ से तीखी चीत्कार फूटने से कहीं पहले पा लिया था। टीना जी की चिपचिपी और कंपकंपाती योनि जो उसके लिंगस्तम्भ पर लिपट कर उसके रौन्दते लिंग को किसी भूखे और चूसते मुँह की भांति जकड़ती और खींचती जा रही थी। जय के अण्डकोष भी फूले और सिकुड़े, जब उसने एक जबरदस्त शोर के साथ अपने यौनानन्द को शिखर पर पहुंचते हुए आभास किया।

आहहहह! ऊहहह, जय! बेटा मैं झड़ रही हूँ! ऊहहह देख माँ के बड़वे, तेरा मादरचोद लन्ड कैसे थूक रहा है! कुतिया, की औलाद, तेरा लन्ड थूक रहा है, माँ की चूत में! आँहह !” , इस प्रकार टीना जी चीखीं जब उन्होंने अपने पुत्र के शक्तिशाली वीर्य स्खलन को उसके लिंग के शीर्ष से फूटता हुआ महसूस किया। जय का दुष्ट लिंग माता की फड़कती योनि को उबलते गाढ़े वीर्य से सराबोर कर रहा था। । “ओह, कुतिया! मैं भी, मम्मी! मैं भी झड़ रहा हूँ! ठीक तेरी रन्डी चूत में! अँहहह हरामजादी, ले मेरा वीर्य अपनी चूत में और जन दे मेरे पिल्ले !”

माँ और पुत्र के बदन दो सर्पो जैसे बिजली की गती से बिस्तर पर लहरा रहे थे। वे जहरीले नागों जैसे पाप के दंश मार-मार कर दैहिक आनन्द की प्राप्ति में छटपटा रहे थे। दोनों ने स्वयं को यौन चरमानन्द के थपेड़ों में भुला दिया था। उनके प्रजननांगों द्वारा स्खलित किये द्रव आपसे में घुल मिल गये, और टीना जी की योनि को छलकाने लग्गे, किसी झड़ने की तरह जय के लिंग का अभिषेक करने लगे। जय तब तक टीना जी की देह ठेलता गया, जब तक उनका तन ठन्डा होकर उसके नीचे शीथील न पड़ गया। इस समस्त घटना के दौरान टीना जी की योनि जय के लिंग को पुचकारती रही थी, और अपने पुत्र के वीर्य से लबालब अण्डकोष से वीर की अंतिम बून्द को दुहती रही। जय उनके पास ढेर हो गया और टीना जी को गले लगा कर उनकी पसीने से सनी गरम देह को अपनी देह पर चिपटा कर लेट गया।

“ग्रेट चुदाई मम्मी! सच, मजा आ गया! ऐसी मस्ती से चूत फेक फेंक कर तो प्रोफ़ेशनल रन्डियाँ भी नहीं चुदवा सकतीं !”, जय ने आह भरी, “तुझे मजा आया कि नहीं, मम्मी ?” ।

उसकी माँ उसपर लिपट गयी, और अपनी कंपकंपाती उंगलियों को उसके शीथील होते लिंग पर लिपटा दिया। अब भी खासा मोटा था वो, मातृ योनि के प्रचुर द्रवों से चुपड़ा हुआ कैसे रेस में जीते घोड़े जैसा खुशी से हिनहिना रहा था!

“ओहहह! ... मादरचोद ! ... बिलकुल आया !”, टीना जी हाँफ़ती हुई बोलीं, “खूब मजा आया, डार्लिंग! मुझे तो अब भी ... मम्म्म! :: साले रन्डीचोद जय! ... अब भी तेरे मुस्टंड लवड़े का कसाव महसूस हो रहा है ! सैक्स के घुलते आनन्द के प्रभाववश उनकी योनि अब भी कसमसा रही थी और उनकी देह पर रौंगटे खड़े को रहे थी।

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