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RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी। रुखसाना को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर बिठाया। “और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!” रुखसाना किचन से पानी लाकर अज़रा को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।
अज़रा: “मैं ठीक हूँ... तू सुना तू कैसी है?”
रुखसाना: “मैं भी ठीक हूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?”
अज़रा: “तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!”
रुखसाना किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत अज़रा को देकर बोली, “भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ...!” रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी। गिरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी और रुखसाना को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। “हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!”
अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, “आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!” ये बात सही थी कि रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।
अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, “घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!”
डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, “भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?”
अज़रा: “अरे फ़ारूक मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!”
सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार किया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था जिसे अज़रा ने बनाया था।
उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि रुखसाना सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।
“फ़ारूक मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!” अज़रा ने फ़ारूक का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
फ़ारूक: “क्या हुआ जानेमन... किस बात की कमी है?”
अज़रा: “हम्म देखो ना... पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!”
फ़ारूक: “आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!”
“अरे फ़ारूक़ मियाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है...!” अज़रा ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद अज़रा फ़ारूक के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। रुखसाना के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, “फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही हूँ!”
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RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सुनील: “अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा... क्या खायेंगी आप...?”
सुनील के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, “कुछ भी ले आ सुनील!”
सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के दिमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, “तूने ऐसी हर्कत क्यों की सुनील?”
उसकी बात सुन कर सुनील फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, “मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अंजाने में हो गया!” उसने एक बार रुखसाना की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।
“अंजाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा लिखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे आ गया...?” सुनील ने एक बार फिर से रुखसाना की आँखों में देखा। इस दफ़ा रुखसाना की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि सुनील के लिये फ़िक्रमंदी थी।
सुनील नज़रें नीचे करके बोला, “भाभी सच कहूँ तो आप नहीं मानेंगी... पर सच ये है कि इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... दर असल कल अज़रा भाभी बार-बार ऊपर आकर मुझे उक्सा रही थी... मैं इन सब बातों से अपना दिमाग हटाने के लिये बाहर बज़ार चला गया... बज़ार में अपने काम निपटा कर मैं लौटते हुए व्हिस्की की बोतल भी साथ लाया था। दोपहर में मैंने सोचा आप दोनों खाने के बाद शायद सो गयी होंगी तो मैं अपने कमरे में ड्रिंक करने लगा। इतने में अचानक अज़रा भाभी ऊपर मेरे कमरे में आ गयीं और बैठते हुए बोली कि अकेले-अकेले शौक फ़र्मा रहे हो सुनील मियाँ हमें नहीं पूछोगे... पीने का मज़ा तो किसी के साथ पीने में आता है... उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया और इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो खुद ही एक गिलास में अपने लिये ड्रिंक बनाने लगी। फिर ड्रिंक करते -करते वो फिर मुझे अपनी हर्कतों से उक्साने लगीं। मुझे ये सब अटपटा लग रहा था लेकिन अज़रा भाभी तेजी से ड्रिंक कर रही थीं और उन्हें नशा चढ़ने लगा तो उनकी हर्कतें और भी बोल्ड होने लगीं। उन्होंने अपनी कमीज़ के हुक खोल दिये और मेरी टाँगों के बीच में अपना हाथ रख कर दबाते हुए गंदी-गंदी बातें बोलने लगीं। मैंने उन्हें वहाँ से जाने को कहा और आपका वास्ता भी दिया कि रुखसाना भाभी आ जायेंगी लेकिन अज़रा भाभी ने एक नहीं मानी और मुझे नामर्द बोली... मैं फिर भी चुप रहा तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और मेरे सामने नंगी होते हुए मुझे गंदी-गंदी गालियाँ देकर उक्साने लगी कि तू हिजड़ा है क्या जो एक खूबसूरत हसीन औरत तेरे सामने नंगी होके खड़ी है और तू मना कर रहा है... भाभी मैंने भी ड्रिंक की हुई थी और आप यकीन करें कि अज़रा भाभी की उकसाने वाली गंदी-गंदी बातों से और उन्हें अपने सामने इस तरह बिल्कुल नंगी खड़ी देख कर खासतौर पे सिर्फ़ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी... मैं कमज़ोर पड़ गया और मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझसे और रुका नहीं गया....!” ये कहते हुए सुनील चुप हो गया।
रुखसाना अब उसकी हालत समझ सकती थी। आखिर एक जवान लड़के के सामने अगर एक औरत नंगी होकर उक्साये तो उसका नतीजा वही होना था जो उसने अपनी आँखों से देखा था। “भाभी मैं सच कह रहा हूँ... मेरा ये पहला मौका था... इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं किया था... हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दें भाभी..!” ये कह कर सुनील ऊपर चला गया। सुनील ने बिल्कुल सच बयान किया था और वाकय में ये उसका चुदाई करने का पहला मौका था। फिर वो थोड़ी देर में फ्रेश होकर नीचे आया तो अभी भी शर्मसार नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा कि उसे शर्मिंदा होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी कोई गल्ती नहीं है। फिर सुनील खुश होकर ढाबे से खाना लेने चला गया। रुखसाना भी उठी और तैयार होकर थोड़ा मेक अप किया और फिर टेबल पर प्लेट और पानी वगैरह रखने लगी। थोड़ी देर में सुनील भी खाना लेकर आ गया। हालांकि सुबह का नाश्ता तो सुनील ने कईं दफ़ा फ़ारूक के साथ नीचे किया था लेकिन आज पहली बार सुनील रात का खाना रुखसाना के साथ नीचे खाना खा रहा था। रुखसाना ने नोटिस किया कि हमेशा खुशमिजाज़ रहने वाला सुनील इस वक़्त काफ़ी संजीदा था और कुछ बोल नहीं रहा था। इसी बीच रुखसाना ने बड़े प्यार और नरमी से पूछा, “सुनील एक और बात बता... वो अज़रा भाभी उस दिन रात को दोबारा भी आयी थी क्या तेरे कमरे में... तेरे साथ.... हमबिस्तर...?”
“जी भाभी वो आयी थीं रात को करीब तीन-साढ़े तीन बजे... मैं गहरी नींद सोया हुआ था... गरमी की वजह से कमरा खुला रखा हुआ था मैंने... जब मेरी आँख खुली तो वो पहले से ही मेरे ऊपर सवार थीं... मैंने फिर एक बार उन्हें संतुष्ट किया और फिर वो नीचे चली गयीं... काफी नशे में लग रही थीं वो!” सुनील ने काफ़ी संजीदगी से जवाब दिया।
खाना खतम करने के बाद जब रुखसाना बर्तन उठाने के लिये उठी तो सुनील ने उसे रोक दिया और बोला, “रहने दें भाभी! मैं कर देता हूँ...!” रुखसाना ने कहा कि नहीं वो कर लेगी पर सुनील ने उसकी एक ना सुनी और उसे बेड पर आराम करने को कह कर खुद बर्तन लेकर किचन में चला गया और बर्तन साफ़ करके सारा काम खतम कर दिया। सुनील फिर से रुखसाना के बेडरूम में आया तो वो बेड पर पीछे कमर टिकाये हुई थी। सुनील ने एक गिलास पानी रुखसाना को दिया और बोला “भाभी जी... बताइये कौन सी दवाई लेनी है आपको!” रुखसाना ने उसे बताया कि उसका दर्द अब काफ़ी ठीक है और अब किसी दवाई की जरूरत नहीं है। तभी सुनील के नज़र साइड-टेबल पे रखी हुई बाम पर गयी तो वो बोला, “चलिये आप लेट जाइये... मैं आपकी कमर पर बाम लगा कर मालिश कर देता हूँ... आपका जो थोड़ा बहुत दर्द है वो भी ठीक हो जायेगा!”
वो सुनील को मना करते हुए बोली, “नहीं रहने दे सुनील... मैं खुद कर लुँगी...!”
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RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
सुनील: “आप लगा तो खुद लेंगी पर मालिश नहीं कर पायेंगी... मैं आपकी मालिश कर देता हूँ... आप का रहा सहा दर्द भी ठीक हो जायेगा!” ये कह कर सुनील कुर्सी से उठ कर बेड पर आकर रुखसाना के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, “चलिये भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है...!” अपने लिये सुनील की इतनी हमदर्दी और फ़िक्र देख कर रुखसाना उसे और मना नहीं कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी कि उसे दर्द तो कभी हुआ ही नहीं था और ये दर्द का तो सिर्फ़ बहाना था अज़रा को परेशान करने का। रुखसाना शर्माते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा लिया और बोली यहाँ कमर पर! सुनील ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगलियों पर लगाया और फिर रुखसाना की कमर पर मलने लगा। जैसे ही उसके हाथ का लम्स रुखसाना ने अपनी नंगी कमर पर महसूस किया तो उसका पूरा जिस्म काँप गया। उसकी सिस्करी निकलते-निकलते रह गयी। सुनील ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की मालिश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का लम्स उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की सलवार के जबर से टकरा जाती तो उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।
“भाभी ज्यादा दर्द कहाँ पर है?” सुनील ने पूछा तो बिना सोचे ही रुखसाना के मुँह से मदहोशी में खुद बखुद निकल गया कि थोड़ा सा नीचे है!
सुनील ने फिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर दिया। भले ही उस मालिश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंकि चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर फिर भी रुखसाना को उसके हाथों के लम्स से जो सुकून मिल रहा था उसे वो बयान नहीं कर सकती थी। “भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो ताकि अच्छे से बाम लग सके...!” सुनील की बात सुन कर रुखसाना के ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे सुनील के हाथों का लम्स अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी मिल रहा था। रुखसाना ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसलिये सलवार पूरी नीचे नहीं हो सकती थी पर फिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी। “भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो... मैंने इतना गोरा जिस्म आज तक नहीं देखा..!” सुनील की बात सुनकर रुखसाना के गाल शर्म के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था कि रुखसाना उल्टी लेटी हुई थी। रुखसाना को यकीन था कि अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा। सुनील ने थोड़ी देर और मालिश की और रुखसाना ने जब उसे कहा कि अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया। रुखसाना को आज बहुत सुकून मिल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके जिस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था जिसके लम्स में हमदर्दी और प्यार मिला हुआ था। सुनील के बारे में सोचते हुए रुखसाना को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी।
नहाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई... आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊँची हील के सैंडल भी पहने। फिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो किचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार करते हुए वो बार-बार किचन के दरवाजे पर आकर सीढ़ियों की तरफ़ देख रही थी। सुनील के काम पर जाने का वक़्त भी हो गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो सुनील सीढ़ियों से नीचे उतरा। “आज तो आपकी तबियत काफ़ी बेहतर लग रही है भाभी जी... लगता है कल की मालिश ने काफ़ी असर किया!” उसने रुखसाना के लिबास और फिर उसके पैरों में हाई पेंसिल हील के सैंडलों की तरफ़ देखते हुए अपने होंठों पर दिलकश मुस्कान लाते हुए कहा। बदले में रुखसाना ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?” तो सुनील थोड़ा झेंपते हुए बोला कि “भाभी जी वो आज आपने फिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं... तो मुझे लगा कि कमर का दर्द अब बेहतर है!”
रुखसाना: “बिल्कुल ठीक पहचना तूने... अब डायनिंग टेबल पे बैठ... मैं नाश्ता लेकर आती हूँ!” फिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करने लगे। इसी बीच में सुनील ने रुखसाना से पूछा कि, “भाभी जी... आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?”
रुखसाना: “पहनती हूँ लेकिन बहोत कम... साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो... क्यों!”
सुनील: “नहीं बस वो इसलिये कि कभी देखा नहीं आपको साड़ी में... मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!”
फिर सुनील जाते हुए रुखसाना से बोला, “भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊँगा... आप बनाना नहीं..!”
रुखसाना ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठीक है तो सुनील ने फिर कहा, “अगर किसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीजिये... मैं आते हुए लेता आऊँगा!”
रुखसाना ने कहा कि किसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और फिर सुनील के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग गयी। फिर ऊपर आकर सुनील के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान रुखसाना को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। उसने नीचे झुक कर उसे बाहर निकाला तो उसकी आँखें एक दम से फैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी पैंटी थी। अब इस डिज़ाइन की पैंटी ना तो रुखसाना के पास थी और ना ही सानिया के पास। तभी रुखसाना को दो दिन पहले का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब सुनील ने अज़रा को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर अज़रा की ही पैंटी थी।
उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से निकले पानी और शायद सुनील के लंड से निकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिस पर उस दिन हुई घमासान चुदाई के निशान ना हों। रुखसाना ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर नाक के पास ले जाकर सूँघा तो मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके जिस्म को झिनझोड़ गयी। वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ गयी और उसे देखते हुए उस दिन के मंज़रों को याद करने लगी। सुनील का मूसल जैसा लंड अज़रा की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। रुखसाना एक बार फिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं बेड के नीचे फेंक दिया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो देखा कि पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी। “अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती हूँ.!” रुखसाना ने जल्दी से सुनील का कमरा बंद किया और नीचे आकर दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। वो दोपहर में कईं बार रुखसाना के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें किया करती थी। उस दिन भी रुखसाना और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की।
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RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
नज़ीला के जाने के बाद वो फिर नहाने चली गयी। सुबह सुनील ने साड़ी का ज़िक्र किया था इसलिये रुखसाना ने नहा कर फिरोज़ा नीले रंग की प्रिंटेड साड़ी पहन ली और साथ में सिल्वर रंग के हाई पेंसिल हील वाले खूबसुरत सैंडल भी पहने। सुनील के आने का समय भी हो चला था। सुनील आज पाँच बजे ही आ गया। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो वो उसे बड़े गौर से देखने लगा। उसे यूँ अपनी तरफ़ ऐसे घूरता देख कर रुखसाना शरमाते हुए लेकिन अदा से बोली, “ऐसे क्या देख रहा है सुनील!” तो वो मुस्कुराता हुआ बोला, “वॉव भाभी! आज तो आप बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में..!” ये कह कर वो अंदर आ गया। वो साथ में रात का खाना भी ले आया था। “भाभी ये खाना लाया हूँ... आप बाद में रात को गरम कर लेना... मैं ऊपर जा रहा हूँ फ्रेश होने के लिये... आप एक गिलास शर्बत बना देंगी प्लीज़?”
रुखसाना उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, “हाँ क्यों नहीं..!”
फिर सुनील ऊपर चला गया और फ्रेश होकर जब वो नीचे आया तो उसने एक ढीली सी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहना हुआ था। रुखसाना ने शर्बत बनाया और उसे अपने बेड रूम में ले गयी क्योंकि वहाँ पे कूलर लगा हुआ था। सुनील रूम में आकर बेड के सामने कुर्सी पर बैठ गया और रुखसाना भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की। इस दौरान सुनील ने रुख्सना से पूछा, “भाभी अब आपकी कमर का दर्द कैसा है?”
रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, “अरे अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूँ... कल तूने इतनी अच्छी मालिश जो की थी!”
अपना शर्बत का खाली गिलास साइड टेबल पे रखते हुए सुनील उससे बोला, “भाभी आप उल्टी लेट जाओ... मैं एक बार और बाम से आपकी मालिश कर देता हूँ...!”
रुखसाना मना किया कि, “नहीं सुनील! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ..!” लेकिन सुनील भी फिर इसरार करते हुए बोला, “भाभी आप मेरे लिये इतना कुछ करती है... मैं क्या आपके लिये इतना भी नहीं कर सकता... चलिये लेट जाइये!”
रुखसाना सुनील के बात टाल ना सकी और अपना खाली गिलास टेबल पे रखते हुए बोली, “अच्छा बाबा... तू मानेगा नहीं... लेटती हूँ... पहले सैंडल तो खोल के उतार दूँ!”
“सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी... इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं... आप ऐसे ही लेट जाइये!” सुनील किसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला तो रुखसान को हंसी आ गयी और वो उसकी बात मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंकि आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसलिये उसकी कमर पीछे से सुनील की आँखों के सामने थी। सुनील ने बाम को पहले अपनी उंगलियों पर लगाया और रुखसाना की कमर को दोनों हाथों से मालिश करना शुरू कर दिया। “एक बात बता सुनील! तुझे मेरा ऊँची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?” रुखसाना ने पूछा तो इस बार सुनील का चेहरा शरम से लाल हो गया। वो झेंपते हुए बोला, “जी... जी भाभी आप सही कह रही हैं... आपको अजीब लगेगा लेकिन मुझे लेडिज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं... और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल पहने रहती हैं!”
“अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है... और मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगा... मैं तेरे जज़्बात समझती हूँ... कुछ कूछ होता है... है ना?” रुखसाना हंसते हुए हुए बोली। सुनील के हाथों की मालिश से पिछले दिन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। सुनील के हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। रुखसाना को मज़ाक के मूड में देख कर सुनील भी हिम्मत करते हुए बोला, “भाभी... आपकी स्किन कितनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम... भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो... पूरी कमर पे नीचे तक अच्छे से मालिश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।“ रुखसाना ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। रुखसाना को पिछली रात मालिश से बहुत सुकून मिला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसलिये उसने ना-नुक्कर नहीं की। जैसे ही रुखसाना की साड़ी ढीली हुई तो सुनील ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपनी उंगलियों को डाल कर उसे नीचे सरका दिया पर रुखसाना को तभी एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। रुखसाना ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी... पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब सुनील की नज़रों के सामने थे।
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जैसे ही सुनील रुखसाना के ऊपर से उठा तो वो भी काँपती हुई बिस्तर से उठी और सिर्फ़ ब्लाउज़ और सैंडल पहने नंगी हालत में ही बाथरूम में चली गयी। उसके दिल में उलझने बढ़ने लगीं कि हाय ये मैंने क्या कर दिया... शादीशुदा होकर दूसरे मर्द से चुदवा लाया... वो भी सानिया की उम्र के लड़के से... खुद से पंद्रह साल छोटे लड़के से गैर मज़हब वाले लड़के से... नहीं ये गलत है... सरासर गलत है... जो हुआ नहीं होना चाहिये था... मैं कैसे बहक गयी... अब क्या होगा...! रुखसाना बाथरूम में कमोड पे बैठ कर मूतने लगी। उसे बहोत तेज पेशाब लगी थी। उसने झुक कर देखा तो उसकी रानें और चूत उसकी चूत के पानी और सुनील के वीर्य से चिपचिपा रही थी। मूतने के बाद रुखसाना खड़ी हुई और टाँगें थोड़ी चौड़ी करके उसने अपनी चूत की फ़ाँकों को फैलाते हुए चूत की माँसपेशियों पर जोर लगाया तो सुनील का वीर्य उसकी चूत से बाहर टपकने लगा। एक के बाद एक वीर्य की कईं बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत से बाहर नीचे गिरती रही। फिर उसने अपनी चूत और रानों को पानी से साफ़ किया। उसने सोचा कि कल सुबह -सुबह केमिस्ट की दुकान से बच्चा ना ठहरने की दवाई ले आयेगी। फिर वो अपना ब्लाऊज़ और सैंडल निकाल कर नहाने लगी। फिर तौलिया लपेट कर वो बाथरूम से निकल कर बाहर आयी। सुनील ऊपर जा चुका था। रुखसाना ने अलमारी में से सलवार सूट निकाल कर पहन लिया और बाल संवार कर आदतन थोड़ा मेक-अप किया और अपने बेड पर जाकर गिर पड़ी। शाम के छः बज रहे थे। खुमारी में उसे नींद आ गयी। वो आज कईं सालों बाद चुदी थी... चुदाई अंजाने में अचानक हुई थी पर चुदाई तो चुदाई है! रुखसाना मुतमाईन होकर ऐसे मीठी नींद सोयी कि रात के नौ बजे बाहर डोर-बेल बजने की आवाज़ से ही उठी। उसने घड़ी में वक़्त देखा तो नौ बज रहे थे। उसके मुँह से निकला, “हाय अल्लाह ये क्या नौ बज गये...!” वो जल्दी से उठी और बाहर जाकर दरवाजा खोला तो बाहर नज़ीला खड़ी थी और उसके साथ में उसका छोटा बेटा सलील था जो महज आठ साल का था।
“नज़ीला भाभी आप इस वक़्त... खैरियत तो है ना?” रुखसाना ने पूछा तो नज़ीला बोली, “रुखसाना मेरे अब्बू की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गयी है... अभी फ़ोन आया है... मैं और अकरम साहब अभी वहाँ के लिये रवाना हो रहे है... तुम सलील को दो दिन के लिये अपने पास रख लो प्लीज़ हम दो दिन बाद वापस आ जायेंगे!”
रुखसाना ने कहा कि, “कोई बात नहीं भाभी जान ये भी तो आपका अपना ही घर है... आप इसे छोड़ कर बेफ़िक्र होकर जायें!”
उसके बाद नज़ीला सलील को रुखसाना के पास छोड़ कर चली गयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और सलील के साथ अंदर आ गयी। उसने एक बार फिर से घड़ी की तरफ़ नज़र डाली तो नौ बज के पाँच मिनट हो रहे थे। उसने टीवी चालू किया और सलील से पूछा कि उसने खाना खाया है कि नहीं तो वो बोला, “नहीं आँटी अभी नहीं खाया!” रुखसाना ने उसे कहा कि, “तुम टीवी देखो... मैं खाना गरम कर के लाती हूँ..!” वो किचन में गयी और खाना गरम करने लगी। खाना काफ़ी था इसलिये किसी बात की परेशानी नहीं थी। उसने खाना गरम किया और फिर डायनिंग टेबल पर लगा दिया और सलील को खाना परोस कर उसके साथ कुर्सी पर बैठ गयी।
सुनील अभी तक खाना खाने नहीं आया था। रुखसाना उसे ऊपर जाकर भी नहीं बुलाना चाहती थी क्योंकि उसकी तो सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कसूर किसका है... उसका खुद का या सुनील का। वो अभी यही सोच रही थी कि सुनील के कदमों की आहट सुन कर सुनकर उसका ध्यान टूटा। रुखसाना उसकी तरफ़ देखे बिना बोली, “खाना खा ले सुनील... गरम कर दिया है!” सुनील उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगा। रुखसाना भी खाना खा रही थी। वो अपनी नज़रें भी नहीं उठा पा रही थी। बार-बार उसके जहन में यही ख्याल आ रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी उसने ये कैसा गुनाह कर डाला। खाना खाते हुए सुनील ने पूछा, “ये साहब कौन हैं भाभी?”
रुखसाना ने नज़रें झुकाये हुए ही जवाब दिया, “ये पड़ोस की नज़ीला भाभी का बेटा है... उनके वालिद की तबियत खराब हो गयी अचानक तो वो उनके यहाँ गये हैं!” फिर ना वो कुछ बोला और ना ही रुखसाना। सुनील ने खाना खाया और उसे गुड नाइट बोल कर ऊपर चला गया। उसने बर्तन उठा कर किचन में रखे और अपने रूम में आकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। रुखसाना सलील के साथ जाकर बेड पर लेट गयी। सलील तो बेचारा मासूम सा बच्चा था... जल्द ही सो गया। रुखसाना अभी तक जाग रही थी। शाम को तीन घंटे तक सोने की वजह से नींद भी नहीं आ रही थी और आज तो उसकी ज़िंदगी ही बदल गयी थी। वो दो हिस्सों में बट गयी थी... दिल और दिमाग! दिल कह रहा था कि जो हुआ ठीक हुआ और दिमाग गलत करार दे रहा था। दिल कह रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी अपने शौहर के होते हुए भी वो एक बेवा जैसी ज़िंदगी जी रही थी... और अगर अल्लाह तआला ने उसकी सुन कर उसके लिये एक लंड का इंतज़ाम कर दिया है तो क्या बुराई है। रुखसाना यही सब सोच रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई। घर में उसके और सलील और सुनील के अलावा कोई नहीं था तो ज़ाहिर है सुनील ही होगा। रुखसाना ने सोचा कि अब वो क्यों आया है। उसका दिल फिर जोर से धड़कने लगा। वो चुपचाप लेटी रही पर फिर से दस्तक हुई।
सलील कहीं उठ ना जाये... भले ही वो मासूम था पर कहीं उसे किसी तरह का शक हो गया तो यही सोचकर रुखसाना उठी और धीरे से जाकर दरवाजा खोला। सामने सुनील ही था। उसे देख कर रुखसाना झेंप गयी, “अब क्या है क्यों आये हो यहाँ पर...?”
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06-24-2019, 12:02 PM,
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RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
“भाभी जी मैं अंदर आ जाऊँ?” सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने उसे मना करते हुए कहा कि, “नहीं तू जा अभी यहाँ से..!” ये कह कर रुखसाना ने दरवाजा बंद कर दिया। उसकी साँसें तेज हो गयी थी। वो सोचने लगी कि “ये तो अंदर आने को कह रहा है... क्या करेगा अंदर आकर... मुझे फिर से चोदेग...? हाय अल्लाह सलील भी तो कमरे में है... दोबारा चुदाई... तौबा मेरी तौबा एक दफ़ा गल्ती कर दी अब नहीं..!” तभी उसके दिल के कोने से आवाज़ आयी, “तो क्या हो गया इसमें सब करते हैं... अब एक बार तो तू कर चुकी है... एक बार और कर लिया तो क्या है? अगर दोबारा भी करवा लिया तो क्या बिगड़ जायेगा... अल्लाहा तआला ने मौका दिया है इसे ज़ाया ना जाने दे... बार-बार ऐसे मौके नहीं आने वाले ज़िंदगी में... पिछले दस सालों से तरसी है इसके लिये..!” रुखसाना बेड पर बैठी सोचती रही, “मौका मिला है तो रुखसाना इसका फ़ायदा उठा... आधी से ज्यादा जवानी तो यूँ ही निकल गयी... बाकी भी ऐसे ही निकल जायेगी... अच्छा भला आया था बेचारा... उसे तो कोई और मिल जायेंगी... वो तो अभी-अभी जवान हुआ है... शादी भी होगी... तेरा कौन है... वो फ़ारूक जिसने तुझे कभी प्यार से छुआ तक नहीं... ये सब गुनाह ये गलत है... वो गलत है... इन ही सब में ज़िंदगी निकल गयी... उधर अज़रा को देख ज़िंदगी के मज़े ले रही है... तू तो उससे कहीं ज्यादा हसीन है तुझे हक नहीं है क्या ज़िंदगी के लुत्फ़ उठाने का!” यही सब सोचते-सोचते थोड़ी देर गुज़रने के बाद रुखसाना के दिल और दिमाग की जंग में आखिरकार दिमाग की शिकस्त हुई।
रुखसाना को अब सुनील के साथ अपने रवैय्ये के लिये बुरा महसूस होने लगा। फिर वो कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए उठी और अलमारी में से एक बेहद दिलकश सुर्ख रंग का जोड़ा निकाल कर बाथरूम में जा कर कपड़े बदले। फिर कमरे में आकर अच्छा सा मेक-अप किया और लाल रंग के ही ऊँची पेन्सिल हील वाले कातिलाना सैंडल पहने। ये सोच कर रुखसाना के होंठों पे मुस्कुराहट आ गयी कि अगर सुनील उससे खफ़ा भी होगा तो और कुछ नहीं तो उसे ये कातिलाना सैंडल पहने देख कर तो जरूर घायल होकर उसके कदमों में गिर पड़ेगा। फिर उसने पर्फ्यूम लगाया और एक दफ़ा तसल्ली करी कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके बेडरूम से बाहर निकल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। रुखसाना आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में नाईट लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जब वो उसके दरवाजे तक पहुँची तो उसे हैरानी हुई कि सुनील तो अंदर था ही नहीं। तभी उसे अपने पीछे सुनील के कदमों आहट आयी तो वो पलटी। उसने देखा सुनील के हाथ में शराब का गिलास था। शायद वो इतनी देर से छत पर शराब पी रहा था। सुनील उसके करीब आया तो रुखसाना झिझकते हुए बोली, “तू सोया नहीं अब तक...?”
सुनील ने आगे बढ़ कर रुखसाना के एक हाथ को अपने हाथ में थाम लिया। उसके मर्दाना हाथ का एहसास पाते ही रुखसाना पे नशा सा होने लगा। “मुझे यकीन था आप जरूर आओगी..!” ये कह कर सुनील ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो उसकी तरफ़ खिंचती चली गयी... बिना किसी मुज़ाहिमत किये। सुनील ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसके चौड़े सीने से लग कर रुखसाना को जवानी का अनोखा सुकून मिलने लगा। रुखसाना ने उसके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा लिया और बोल पड़ी, “सुनील मुझे डर लगता है..!” सुनील ने उसकी कमर को अपनी बाहों में और जकड़ लिया। “डर... कैसा डर भाभी?”
रुखसाना उसकी बाहों में कसमसायी। अपने जवान जिस्म को सुनील की जवान बाहों की गिरफ़्त में उसे बहुत अच्छा लग रहा था। रुखसाना फुसफुसाते हुए बोली, “कोई देख लेगा!”
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