XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-20-2021, 11:45 AM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
तभी देवराज चौहान की निगाह गुफाओं से साठ फीट नीचे पड़ी। वहां कुछ हिलता सा दिखा उसे।
अगले ही पल भरभराती हुई मध्यम-सी आवाज उसने सुनी।

आजाद करो मुझे। अब तो बहुत वक्त हो गया है।” एकाएक देवराज चौहान के मस्तिष्क में उठता तूफान थमने लगा। धीरे-धीरे सब कुछ शांत हो गया। देवराज चौहान गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। सिर से दोनों हाथ खुद-ब-खुद हटते चले गए। आंखें खुल गईं। भिंचे होंठ ढीले पड़ते चले गए। चेहरे पर और शरीर पर पसीना ही पसीना बह रहा था।

क्या हो गया आपको?” नगीना परेशान-सी कह उठी।

वो...वो गुफाएं नहीं थीं, नाक के दो छेद थे।” देवराज चौहान गहरी सांसें लेता कह उठा।

नाक के छेद?” पारसनाथ बोला।

छोरे, लागो हो, देवराज चौहान भयंकरो माजरो देखो हो।”

हां, नाक के छेद थे बो।” देवराज चौहान की हालत अभी भी ठीक नहीं हुई थी—“पहाड़ पर लेटा हुआ था वो। वो उसका चेहरा था। पहले...पहले मैंने समझा वो...वो नाक के छेद गुफाएं हैं।” ।

“लेकिन वो था कौन?” मोना चौधरी बोली।

“मैं नहीं जानता।” देवराज चौहान सोचों में डूबा कह उठा–“मैं उसे पहचान नहीं पाया। शायद उसका चेहरा ठीक से देख ही नहीं सका मैं। उसकी नाक के छेद गुफा जैसे लग रहे थे। इसी से उसका आकार-प्रकार महसूस किया जा सकता है। परंतु वो पत्थर का था। लेकिन उसके होंठ हिल रहे थे, वो बोल रहा था।”

बोल्लो हो वो। पत्थरो का बुत बोल्नो हो? सुन लयो छोरो।”

सुनेला बाप ।”

“क्या बोल रहा था वो?” नगीना ने पूछा।

वो अपनी आजादी के लिए कह रहा था। कह रहा था कि बहुत वक्त हो गया है। मुझे आजाद कर दो।” देवराज चौहान ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा-“लेकिन मैं उसकी बात को जरा भी नहीं समझ पाया कि वो कैसी आजादी की बात कर रहा

“जथूरा की जमीन पर पहुंचते ही तुम्हारे मस्तिष्क ने ये सब देखा।” मोना चौधरी बोली-“ये सब पूर्वजन्म का असर है।”

“तो बेबी तुम्हें भी तो कुछ याद आना चाहिए।” महाजन ने कहा।

मुझे ऐसा कुछ याद नहीं हुआ।” देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

अब आप ठीक महसूस कर रहे हैं?” नगीना व्याकुल थी। देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिला दिया।

“तुम इन बातों से क्या अंदाजा लगाते हो?” पारसनाथ ने पूछा।

मेरे खयाल में वो मुझे बुला रहा था।” देवराज चौहान बोला-“मुझे आजादी के लिए कह रहा था।” \

और तुम्हें याद नहीं आया कि वो कौन है?” ।

“नहीं। मेरे मस्तिष्क ने जो देखा, उसके अलावा मुझे कुछ याद नहीं। मैं नहीं जानता वो कौन था।”

पत्थर का बुत था वो?”

नहीं जानता वो क्या था उसका नाक और होंठ देखे, वो मुझे पत्थर के लगे।”

शायद तुम्हें इसके अलावा और कुछ भी याद आ जाए।” मोना चौधरी ने कहा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। उसके चेहरे पर उलझन की छाया थी। फिर कह उठा।।

“उसके होंठ ऐसे थे कि जैसे कोई बड़ी दरार हो। जब भी वो होंठ खोलता तो बीच का खाली हिस्सा दरार जैसा लगता। वो किसी दैत्य जैसा था। मैं नहीं समझ पाया कि वो क्या था, कैसा था?”

“हमें चलते रहना चाहिए।” महाजन बोला–“इससे हमारा वक्त बचेगा।”

वो सब पुनः चल पड़े। “तुम खुद को ठीक महसूस कर रहे हो?” महाजन ने पूछा।

हां।” देवराज चौहान के होंठ हिले। ये सब क्या हो रहा है?* नगीना कुह उठी। “जो मुझे याद आया वो मेरे पूर्वजन्म का ही हिस्सा था। पूर्वजन्म की जमीन पर पांब रखते ही, पहला जन्म ताजा होने लगा परंतु आपको तो ठीक से कुछ भी याद नहीं।”

हां, ठीक से याद नहीं। लेकिन शायद बाद में कुछ याद आ जाए।”

सब चलते जा रहे थे। सबसे आगे कमला रानी और मखानी थे।

छोरे।” बांकेलाल राठौर मूंछों पर हाथ फेरकर रुस्तम राव के पास पहुंचा–“यो तो बोतो ही गम्भीरो बात हौवे ।”

क्या बाप?”

“उसके नाको के छेदो गुफाओं जैसो। होंठ खुलते हैं तो दरार जैसो दिखे।” ।

तुम्हें क्या परेशानी होईला बाप?”

*अंम उसो की गर्दनो का अंदाजा लगायो कि वो कित्ती मोटी हौवे ।”

“काये को?” ।

“गर्दन तो उसो की मन्ने ही ‘वडनी' हौवे । इत्ती मोटी गर्दनो अंम कैसों वडो हो। ख़ासो हथियारों की जरूरत पड़ो हो ।”

आपुन तेरे साथ होईला बाप। उसकी गर्दन पर मोटा आरा चलाईला।”

म्हारे को सोचनो दयो उसो की गर्दनो के बारो में ।”

जब वे चले तो कमला रानी ने धीमे स्वर में मखानी से कहा।

तूने देवा की बात सुनी मखानी?”

हां।” ।

तेरे को उसकी बात सुनकर क्या लगता है कि वो किसकी बात कर्...।” ।

वो झूठा है।”

क्यों?”

कोई भी इतना बड़ा हो ही नहीं सकता कि उसकी नाक के छेद गुफाओं जैसे हों।” *

“तेरा मतलब कि देवा झूठ कहकर सबको भटकाने की चेष्टा में ये ही बात है। वो जरूर कोई चाल चल रहा है, तभी तो।”

“तू वहम का मारा है।”

“तू हमेशा मुझे ऐसा ही कहती है।”

तो गलत क्या कहती है। तू तो हर बात में शक ले आता है। तेरे को कोई बात भी सीधी नहीं लगती।”

“एक बात तो सीधी है।” मखानी मुस्कराया।

क्या?" ।

चुम्मी ।”

फिर तू...।।

अब तो दे दे।” ।

तेरे को कहा है न कि औरत से चुम्मी नहीं मांगते ।”

तो क्या मांगते हैं?” ।

कुछ भी नहीं मांगते ।” मखानी ने बाज की तरह झपट्टा मारा और कमला रानी की चुम्मी ले ली।

“अब तू समझदार होता जा रहा है।” कमला रानी मुस्करा पड़ी।

“हमें किसी पेड़ की छाया मिल जाए। तने की ओट मिल जाए तों...।”

“ये बातें औरत के साथ नहीं करते।”
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