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RE: non veg kahani एक नया संसार
"जी बिलकुल।" अभय सिंह ने कहा___"अच्छा भाई साहब मैं ज़रा आज की दवाइयों को अंदर रख कर आता हूॅ। वो अभी कार में ही रखी हुई हैं।"
"ओह हाॅ।" जगदीश ओबराय ने कहा___"और हाॅ अंदर गौरी बहन से कहना ज़रा गरमा गरम चाय तो बना कर पिलाए।"
जगदीश ओबराय की बात सुन कर अभय सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया और कुर्सी से उठ कर कार की तरफ बढ़ गया। कार से उसने एक प्लास्टिक की थैली निकाली और उसे लेकर बॅगले के अंदर चला गया।
वहीं एक तरफ निधी के कमरे में निधी और आशा बेड पर बैठी हुई थी। पिछले दिन हुई बातचीत से निधी आशा के सामने आने से थोड़ा असहज सा महसूस करती थी, किन्तु आशा के समझाने पर उसकी झिझक व शर्म बहुत हद तक दूर हो गई थी। आशा पहले भी ज्यादातर उसके पास ही रहती थी किन्तु जब से उसके सामने ये बात खुल गई थी कि निधी विराज से प्यार करती है तब से वो और भी निधी के समीप ही रहती थी। आशा उमर में रितू जैसी ही थी तथा एक समझदार व सुलझी हुई लड़की थी इस लिए वो निधी को एक पल के लिए उदास या मायूस नहीं होने देती थी।
आशा के ही पूछने पर निधी ने उसे बताया कि कैसे उसे अपने भाई से प्यार हुआ और कैसे उसने अपने उस प्यार को विराज के सामने उजागर भी किया था। आशा सारी बातें सुन कर हैरान थी। सबसे ज्यादा इस बात पर कि निधी ने विराज से अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया है। ये अलग बात है कि विराज ने इसे अनुचित व ग़लत कहते हुए उसे इस संबंध में समझाया था। उसने उसे ये भी समझाया था कि इस रिश्ते को दुनियाॅ वाले कभी स्वीकार नहीं कर सकते और ना ही उसके घर वाले। विराज अपनी इस लाडली को जी जान से चाहता था किन्तु एक बहन भाई के रूप में। वो नहीं चाहता था कि उसकी कठोरता से निधी को ज्यादा दुख पहुॅचे। छोटी ऊम्र का आकर्शण कभी कभी ज़िद के चलते इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि अगर उसे समय रहते सम्हाला न गया तो परिणाम गंभीर भी निकल आते हैं।
शुरू शुरू में आशा को भी यही लगा था कि निधी अपने भाई पर महज आकर्षित है। किन्तु जब उसने निधी से इस संबंध में सारी बातों को जाना और उसकी डायरी के हर पेज पर दिल को झकझोर कर रख देने वाले मजमून को पढ़ा तो उसे महसूस हुआ कि ये महज आकर्शण नहीं है बल्कि ये बेपनाह मोहब्बत का प्रत्यक्ष सबूत है। आशा ने निधी की इजाज़त से ही उसकी डायरी को पढ़ना शुरू किया था। यूॅ तो डायरी में लिखी हर बात अपने आप में निधी की तड़प बयां करती थी किन्तु निधी के द्वारा लिखी गई ग़ज़लें ऐसी थीं जो आशा के दिल को बुरी तरह तड़पा देती थी। उसे ऐसा लगता जैसे ग़ज़ल की हर बात में उसी का हाले दिल बयां किया गया है। निधी अपने आपको बहलाने के लिए ज्यादातर किताबों में ही डूबी रहती थी। आशा उसकी पढ़ाई में कोई हस्ताक्षेप नहीं करती थी। किन्तु उसे भी पता था कि किसी चीज़ में अति हानिकारक होती है। इस लिए वो निधी का हर तरह से ख़याल भी रखती थी। इस वक्त भी वह उसके लिए चाय लेकर आई थी।
निधी ने चाय पिया और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद वह फिर से किताबों में डूब गई थी। जबकि आशा बेड पर सिरहाने की तरफ रखे पिल्लो के नीचे से निधी की डायरी निकाल कर उसे पढ़ने लगी थी। उसमें एक ग़ज़ल थी जिसे वो बार बार पढ़े जा रही थी।
अब किसी भी बात का यूॅ मशवरा न दे कोई।
इश्क़ गुनाहे अजीम नहीं तो सज़ा न दे कोई।।
अज़ाब तो मोहब्बत के साथ ही मिल जाते हैं,
फिर ग़मों को हमारे घर का पता न दे कोई।।
कैसे समझाएॅ के ऑधियों के बस का भी नहीं,
ये तो दिल के चिराग़ हैं इन्हें हवा न दे कोई।।
दिल की चोंट तो दिलबर से ही रफू होती है,
बेवजह इस दिल की अब दवा न दे कोई।।
इस लिए अपने दिल को समझा लिया हमने,
सरे राह मेरे महबूब का सिर झुका न दे कोई।।
आग लगे इस इश्क़ को के इसकी वजह से,
परेशां हो के मुझको कहीं भुला न दे कोई।।
आशा ने इस ग़ज़ल को बार बार पढ़ा। उसके दिल में अजीब सी हचचल होने लगी थी। काफी देर तक वो उसके बारे में सोचती रही। वो हैरान भी थी कि निधी इतना कुछ कैसे लिख सकती है? पर सबूत तो उसकी ऑखों के सामने ही था। आशा ने निधी से पूछा भी था कि ये किस शायर की लिखी हुई ग़ज़ल है, जवाब में निधी ने बस मुस्कुरा दिया था। जब आशा ने ज़ोर दिया तो उसने बताया कि ये उसके ही दिल की आवाज़ है जिसे उसने शब्दों में पिरो कर ग़ज़ल का रूप दे दिया है। निधी की इस बात पर आशा सोचों में गुम हो गई। फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला। उसकी नज़र डायरी के दाहिने वाले पेज़ पर लिखी एक और ग़ज़ल पर पड़ी। उसने उस ग़ज़ल को भी पढ़ना शुरू किया।
दिल तो दरिया ही था इक ग़म भी समंदर हो गया।
फक़त दर्द से फाॅसला था वो भी मयस्सर हो गया।।
हर वक्त ज़हन में अब उनका ही ख़याल तारी है,
मेरी पलकों के तले हर ख़्वाब सिकंदर हो गया।।
इसके पहले तो बहारे गुल का हर मौसम हरा रहा,
अब खिज़ां क्या आई के हर बाग़ बंज़र हो गया।।
मेरी ज़रा सी आह पर तड़प उठते थे कुछ लोग,
आजकल तो मोम का हर पुतला पत्थर हो गया।।
कितनी हसीं थी ज़िन्दगी मरीज़-ए-दिल से पहले,
अब तो नज़र के सामने बस वीरां मंज़र हो गया।।
अपनी बेबसी का ज़िक्र भला करें भी तो किससे,
बस छुप छुप के रोना ही अपना मुकद्दर हो गया।।
इस ग़ज़ल को पढ़ कर आशा के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दिल में इक हूक सी उठी जिसने उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसुओं का सैलाब सा ला दिया। उसने पलट कर चुपके से निधी की तरफ देखा। निधी पूर्व की भाॅति ही किताबों में खोई हुई थी। ये देख कर आशा को ऐसा लगा जैसे उसका दिल एकदम से धड़कना बंद कर देगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर के प्रबल वेग में मचलने लगे जज़्बातों को सम्हाला और फिर डायरी को बंद कर बेड पर चुपचाप ऑखें बंद करके लेट गई। दिलो दिमाग़ एकदम से शून्य सा हो गया था उसका। उसे निधी के दर्द का बखूबी एहसास हो चुका था। किन्तु दिमाग़ में ये सवाल ताण्डव सा करने लगा कि कोई लड़की इस हद तक कैसे किसी को चाह सकती है कि उसके प्रेम में इस तरह बावरी सी होकर ग़ज़ल व कविता लिखने लग जाए? मन ही मन जाने क्या क्या सोचते हुए आशा को पता ही नहीं चला कि कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया था।
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अजय सिंह तेज़ रफ्तार से कार चलाते हुए शहर की तरफ जा रहा था। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर सी कठोरता विद्यमान थी। उसकी नज़र बार बार कार के अंदर लगे बैक मिरर पर पड़ जाती थी। वह काफी समय से देख रहा था कि उसके पीछे लगभग सौ मीटर के फाॅसले पर एक जीप लगी हुई है। पहले उसे लगा था कि शायद कोई लोकल आदमी होगा जो उसकी तरह ही शहर जा रहा है किन्तु फिर जाने क्या सोच कर अजय सिंह ने उसे परखने का सोचा था? अजय सिंह ने कई बार अपनी कार की रफ्तार को धीमा किया था, ये सोच कर कि पीछे आने वाली जीप उसे ओवरटेक करके उसके आगे निकल जाएगी मगर ऐसा एक बार भी नहीं हुआ था। बल्कि उसकी कार के धीमा होते ही उस जीप की रफ्तार भी धीमी हो जाती थी।
अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि पीछे लगी जीप वास्तव में उसका पीछा कर रही है। इस बात के समझते ही उसे ये भी समझ आ गया कि संभव है ऐसा उसके साथ अब से पहले भी हो चुका हो। उसके मस्तिष्क में दो नाम आए रितू और विराज। यकीनन इन दोनो ने उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखने के लिए कोई आदमी उसके पीछे लगा रखा था। अजय सिंह को अब सब समझ आ गया था कि क्यों वो बार बार मात खा रहा था अपने दुश्मन से। उसके दुश्मन को उसकी हर ख़बर रहती थी तभी तो वो उससे चार क़दम आगे रहता था। अजय सिंह को अपने आप पर बेहद गुस्सा भी आया कि उसने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा था? जबकि ये एक अहम बात थी। उसकी बेटी के लिए ये सब करना महज बाएॅ हाथ का खेल था। वो एक पुलिस वाली थी, जिसके तहत मुजरिमों को खोजने के लिए उसके अपने गुप्त मुखबिर होना लाजमी बात थी। किन्तु अब भला इस बारे में सोचने का क्या फायदा था? जो होना था वो तो हो ही चुका था, मगर अब जो होने वाला था ये उसने सोच लिया था।
अजय सिंह ने अपने पीछे लगी उस जीप को चकमा देने का मन बना लिया था। अब वो अपनी गतिविधियों की जानकारी अपने दुश्मन तक नहीं पहुॅचने देना चाहता था। उसने कार को तेज़ रफ्तार से दौड़ा दिया और कुछ ही समय में शहर के अंदर दाखिल हो गया। बैक मिरर पर उसकी नज़र बराबर थी। वो देख रहा था कि पीछे लगी जीप भी उसी रफ्तार से आ रही थी। अजय सिंह को पता था कि उस जीप को चकमा देने का काम वो शहर में ही कर सकता था। क्योंकि यहाॅ पर आबादी थी तथा कई सारे रास्ते थे जहाॅ पर पल में गुम हो सकता था। अजय सिंह ने ऐसा ही किया, यानी शहर में दाखिल होते ही कई सारे रास्तों से चलते हुए पीछे लगी जीप की पहुॅच से दूर हो गया। इस बीच उसने किसी से फोन पर बात भी की थी।
थोड़ी ही देर में अजय सिंह ने कार को सड़क के किनारे रोंक दिया। वह बैक मिरर पर अभी भी देख रहा था। लगभग दस मिनट गुज़र गए। पीछे लगी जीप का कहीं कोई पता न था। अलबत्ता इस बीच एक कार ज़रूर उसके सामने आकर रुकी। कार से एक साधारण कद काठी का आदमी बाहर निकला और चल कर अजय सिंह के पास आया। उस आदमी को देख कर अजय सिंह अपनी कार से नीचे उतरा। अजय सिंह के उतरते ही वो आदमी अजय सिंह की कार में बैठ गया। कार में बैठते ही उसने कार को आगे पीछे करके यू टर्न लिया और वहाॅ से चला गया। उस आदमी से अजय सिंह ने कोई बात न की थी, शायद उसने फोन पर ही उसे सब कुछ समझा दिया था। ख़ैर उस आदमी के जाते ही अजय सिंह भी उस आदमी की कार के पास पहुॅचा और कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार को आगे बढ़ा दिया।
कुछ ही समय में अजय सिंह की ये कार जिस जगह रुकी उसके बाएॅ तरफ एक ऊॅची सी बिल्डिंग थी। ये बिल्डिंग पाॅच मंजिला थी। नीचे के ग्राउंड फ्लोर पर कई दुकानें थी जबकि दूसरे फ्लोर पर बिल्डिंग की बाहरी दीवार पर स्टील के बड़े बड़े अच्छरों से "दा जिम" लिखा था। बाॅकी के ऊपरी फ्लोर पर कुछ और भी चीज़ें थीं जिनका ज़िक्र करना यहाॅ ज़रूरी नहीं है।
कार से उतर कर अजय सिंह उसी बिल्डिंग की तरफ बढ़ चला। बिल्डिंग के ऊपरी फ्लोर पर जाने के लिए दोनो तरफ की दुकानों के बीच एक बड़ा सा चैनल गेट लगा था। उस चैनल गेट से ही सीढ़ियाॅ लगी थी। अजय सिंह तेज़ तेज़ क़दमों से चलता हुआ उस चैनल गेट के पास पहुॅचा और फिर सीढ़ियाॅ पर चढ़ता हुआ ऊपर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में वो दूसरे फ्लोर यानी कि दा जिम वाले हिस्से के एक बड़े से मीटिंग हाल में दाखिल हुआ। मीटिंग हाल में पहले से ही कुछ गिनती के लोग बैठे हुए थे।
"हैलो फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह उन सबकी तरफ देखते हुए कहा और फिर फ्रंट की मुख्य कुर्सी पर बैठ गया।
"अच्छा हुआ ठाकुर साहब।" उनमे से एक ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"कि आपने ये मीटिंग की और हम सबको यहाॅ बुला लिया। हम खुद भी चाहते थे कि सामने बैठ कर इस बारे में तसल्ली से बात करें। हम सबने आपकी मदद के लिए अपने अपने आदमियों को आपके पास भेजा था किन्तु उस दिन के हादसे में हमारे वो सब आदमी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। ये हमारे लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं हुआ है। आप समझ सकते हैं कि पुलिस के पास पत्थरों का भी मुह खुलवा लेने की कूवत होती है। इस लिए अगर हमारे आदमियों ने पुलिस के सामने अपना अपना मुह खोल दिया तो उसका अंजाम यही होगा कि बहुत जल्द हम सब भी पुलिस के द्वारा धर लिये जाएॅगे।"
"मामला वाकई बेहद गंभीर हो गया है कमलकान्त।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया, फिर बोला___"इस मामले को हम बड़ी आसानी से सुलझा लेते मगर आज मंत्री जी की गिरफ्तारी से बहुत बड़ा झटका लगा है। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि मंत्री जैसा चतुर व शातिर इंसान इस तरह पलक झपकते ही पुलिस के द्वारा धर लिया जाएगा। ख़ैर, आप सब चिंता न करें, क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि पुलिस उन सबको छोंड़ देगी।"
"क्याऽऽऽ???" मीटिंग हाल में बैठे वो सब इस बात को सुन कर उछल पड़े थे, एक अन्य बोला___"ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ठाकुर साहब? जबकि ये असंभव बात है। पुलिस भला ऐसे संगीन अपराधियों को कैसे छोंड़ देगी?"
"उसकी एक ठोस वजह है।" अजय सिंह ने कहा___"इस शहर की पुलिस का सारा महकमा भले ही बदल गया था किन्तु इस बात को गुज़रे हुए काफी समय हो गया है। इस देश में ऐसे पुलिस वालों की कमी नहीं है जिनका इमान थोड़े से पैसों के लिए डगमगा जाता है। कहने का मतलब ये कि पुलिस महकमे में एक खास पुलिसिया ऐसा ही है जिसका इमान हमने पैसे से डगमगा दिया है। उसी ने हमे फोन पर इस सबके बारे में जानकारी दी थी।"
"क..कैसी जानकारी ठाकुर साहब?" कमलकान्त के चेहरे पर हैरानी के भाव आए।
"यही कि पुलिस ने हमारे जिन आदमियों को गिरफ्तार किया था।" अजय सिंह ने कहा___"उनके खिलाफ कोई केस फाइल नहीं किया गया है अब तक और महकमे के अंदर का माहौल भी यही ज़ाहिर कर रहा है कि आगे भी अभी उन पर कोई केस फाइल होने की संभावना नहीं है। दरअसल पुलिस डिपार्टमेंट अभी मंत्री की गिरफ्तारी पर ज्यादा ज़ोर दे रहा है। पुलिसिये ने बताया कि एसीपी रमाकान्त शुक्ला को केन्द्र से भेजा गया था मंत्री और उसके साथियों के खिलाफ़ गुप्तरूप से सबूत इकट्ठा कर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए। ताकि इस प्रदेश से गंदगी दूर हो सके।"
"वो सब तो ठीक है ठाकुर साहब।" अभिजीत सहाय नाम का आदमी बोल पड़ा___"लेकिन इससे ये तो साबित नहीं होता कि मंत्री की वजह से पुलिस हमारे आदमियों पर कोई केस फाइल नहीं करेगी। बल्कि पुलिस का तो काम ही यही है मुजरिमों को सज़ा दिलाना। अतः देर सवेर पुलिस अपना काम ज़रूर करेगी।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट........《 61 》
अब तक,,,,,,,
"क्या मतलब है आपका?" कमलकान्त के माॅथे पर शिकन उभरी, बोला___"आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि आपके पास अपने दुश्मन के खिलाफ कोई बहुत बड़ा सबूत लग गया है जिसके तहत आप अपने दुश्मन को बड़ी आसानी से अपने पंजे पर दबोच लेंगे।"
"बिलकुल सही कहा कमलकान्त।" अजय सिंह के चेहरे पर चमक थी, बोला___"ऐसा ही हुआ है। उसने हमारे साथ बहुत खेल खेला अब एक खेल हम भी दिखाएॅगे उसे। एक ऐसा खेल जिसके बारे में उसने ख़्वाब में नहीं सोचा होगा। सबके सब एक ही झटके में हमारे क़दमों तले पालतू कुत्तों की तरह दुम हिलाते नज़र आएॅगे।"
"ऐसी क्या बात हो गई है ठाकुर साहब?" अभिजीत के चेहरे पर हैरानी थी___"जिसके तहत आप इतनी दृढ़ता व इतने विश्वास के साथ कह रहे कि सबके सब आपके पैरों तले आ जाएॅगे?"
"बस देखते जाओ सहाय।" अजय सिंह ने प्रभावशाली लहजे में कहा___"सब कुछ बहुत जल्द समझ आ जाएगा। ख़ैर, हम ये कह रहे हैं कि हमें इसी वक्त वैसे ही कुछ आदमी चाहिए जैसे आप लोगों ने हमारी मदद के लिए भेजे थे।"
अजय सिंह की इस बात पर वहाॅ बैठे सभी लोग कुछ देर तक तो चकित भाव से उसे देखते रहे फिर उन लोगों सहमति में सिर हिलाया। कुछ देर बाद ही मीटिंग खत्म हो गई। अजय सिंह के उठते ही बाॅकी सब भी अपने अपने रास्तों पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,
बड़ा ही सनसनीखेज मंज़र था।
ये कोई फार्महाउस था जो कि शहर की आबादी से दूर था। फार्महाउस काफी बड़ा था। बीचो बीच दो मंजिला इमारत बनी हुई थी। चारो तरफ हट्टे कट्टे तथा काली वर्दी पहने गनधारी तैनात थे। इमारत के सामने विशाल मैदान में कई कार व जीपें खड़ी हुई थी। किन्तु इस बीच सबसे सनसनीखेज बात ये थी कि इमारत के बगल से बने गेस्टहाउस के आकार का जो घर बना था उसके सामने की दीवार पर कुछ लोग रस्सियों में बॅधे खड़े थे। सबके हाॅथ आपस में बॅधे ऊपर की तरफ घर की रेलिंग से झूलती रस्सियों पर बॅधे हुए थे।
विराज, गौरी, निधी, अभय, करुणा, दिव्या, शगुन, आशा, रुक्मिणी, आदित्य, रितू, सोनम, नीलम, नैना, बिंदिया तथा शंकर व हरिया ये सब मोटी मोटी रस्सियों में बॅधे हुए छटपटा रहे थे। विराज, रितू व आदित्य के चेहरों पर जहाॅ कठोरता के भाव थे वहीं बाॅकी सबके चेहरे दहशत से भरे पड़े थे। जबकि इन सबके सामने खड़े थे अजय सिंह, प्रतिमा, शिवा तथा उनके कई सारे हथियारबंद आदमी। सबके होठों पर जानदार व विजयात्मक मुस्कान छाई हुई थी। अजय सिंह कुछ देर पहले ही ज़ोर ज़ोर से अट्ठहास लगा रहा था। किन्तु उसके तुरंत बाद ही उसका चेहरा गुस्से से आग बूबला नज़र आने लगा था। यही हाल प्रतिमा व शिवा का भी था। इन तीनों के चेहरों पर इस वक्त गुस्सा व नफ़रत के बेशुमार भाव गर्दिश कर रहे थे।
"हर ब्यक्ति से चुन चुन के हिसाब लूॅगा।" वातावरण में मानो अजय सिंह की दहाड़ गूॅजी___"बहुत तड़पाया है तुम सबने मुझे। मेरे दिन का चैन व रातों की नींद हराम कर रखी थी तुम लोगों ने। सबका हिसाब सूद समेत लूॅगा मैं।" कहने के साथ ही अजय सिंह विराज के नज़दीक आया फिर उसके जबड़े को अपने दाहिने हाॅथ से शख्ती से पकड़ते हुए कहा___"क्या समझता था तू अपने आपको? दो चार बार मुझे करारी शिकस्त क्या दे दी साला अपने आपको जेम्स बाॅण्ड का बाप समझने लगा। अरे तेरे जैसे जेम्स बाण्ड तो मेरे कच्छे के अंदर पाये जाते हैं समझा? देख लिया न, एक ही झटके में चारो खाने चित्त कर दिया है तुम सबको मैने। मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तुम सबके साथ जो चाहूॅ वो कर सकता हूॅ, और करूॅगा भी। अपने हर नुकसान का बदला लूॅगा मगर उससे पहले अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करूॅगा मैं। मेरी ख्वाहिशों के बारे में तो तुम सब बहुत अच्छी तरह जानते हो न।"
"एक बार मेरे ये हाॅथ खोल कर देखो बड़े भइया।" सहसा अभय गुस्से से उबलता हुआ बोल पड़ा___"अकेले तुम तीनों का राम नाम सत्य न कर दिया तो ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद न कहलाऊॅ।"
"यही, बस यही।" अजय सिंह तपाक से बोला___"यही अकड़ तो तुम सबकी निकालनी है मुझे। तुम सबके गुरूर और स्वाभिमान को अपने पैरों के तले रौंदना है मुझे। उसके बाद यहाॅ सबके सामने तुम सबके साथ ऐसा नंगा नाच करूॅगा कि ऊपर बैठे फरिश्तों का कलेजा भी दहल जाएगा।"
"डैड आपको जो भी करना है करिये।" सहसा अजय सिंह के पीछे से आता हुआ शिवा बोल उठा____"किन्तु अब मुझसे बरदास्त नहीं हो रहा। आप तो जानते हैं कि मेरी ख्वाहिश क्या है। अतः आप मुझे मेरी इस जाने बहार निधी का जी भर के रस पान करने की इजाज़त दीजिए।"
"अरे इजाज़त क्यों माॅगता है शहज़ादे?" अजय सिंह ने ज़ोर का ठहाका लगाते हुए कहा____"ये सब तो यहाॅ आए ही इसी सबके लिए हैं। तुझे जो पसंद आए उसे भोगना शुरू कर दे। मेरा शिकार तो ये गौरी है। कसम से इसे पाने के लिए मैं कितना तड़पा हूॅ ये तो सिर्फ मैं ही जानता हूॅ।"
"हरामज़ादे।" रस्सियों से बॅधा विराज बुरी तरह दहाड़ते हुए चिल्ला उठा____"अगर मेरी माॅ बहनों को हाॅथ लगाने की कोशिश की तो समझ लेना तेरे हाॅथ उखाड़ कर कुत्तों के सामने डाल दूॅगा।"
"चिल्ला मेरे भतीजे।" अजय सिंह ज़ोर से हॅसा___"और ज़ोर से चिल्ला। क्योंकि अब तू सिर्फ यही कर सकता है। जबकि मैं और मेरा बेटा यहाॅ मौजूद हर औरत व लड़की का रसपान करेंगे। उसके बाद यहाॅ मौजूद मेरे सभी आदमी उन्हें जी भर के भोगेंगे। उफ्फ! बाद मुद्दत के ये दिन आया है जिसका मुझे शिद्दत से इन्तज़ार था।"
अजय सिंह की इस बात पर रस्सियों में बॅधे विराज, आदित्य, अभय, हरिया व शंकर जैसे मर्द बुरी तरह छटपटा कर रह गए। गुस्सा, अपमान, व जलालत का कड़वा घूॅट पी जाने के सिवा जैसे उनके पास कोई दूसरा चारा ही नहीं था। जबकि अजय सिंह की बात तथा उसके मंसूबों का देख कर सभी औरतों व लड़कियों की रूह तक फना हो गई।
इधर ज़ोरदार कहकहे लगाते हुए अजय सिंह व शिवा अपने अपने पसंदीदा शिकार की तरफ बढ़ चले। रस्सियों में बॅधे सबके सब बुरी तरह छटपटा रहे थे। औरतों व लड़कियों की हालत पल भर में ख़राब हो गई। कुछ ही पलों में अजय सिंह व शिवा अपने अपने शिकार यानी कि गौरी व निधी के पास पहुॅच गए।
"उफ्फ।" निधी के क़रीब पहुॅचते ही शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"मेरी राॅड बहन तो पहले से और भी ज्यादा खूबसूरत हो गई है। लगता है मुम्बई का पानी काफी सूट किया है तुझे। चल ये तो और भी बहुत अच्छा हुआ। तेरी इस मादक किन्तु कच्ची जवानी का रसपान करने में अब और भी मज़ा आएगा।"
"हरामज़ादे कुत्ते।" विराज पूरी शक्ति से बंधनों को खींचते हुए चिल्लाया____"मेरी बहन से इस तरह बात करने का अंजाम बहुत भयंकर होगा। अगर अपनी खैरियत चाहता है तो दूर हट जा गुड़िया से वरना माॅ कसम यहीं ज़िंदा गाड़ दूॅगा तुझे।"
"ये गीदड़ भभकी किसी और को देना बेटा।" शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"चिन्ता मत कर, तेरा भी हिसाब करना है मुझे। तूने उस समय मुझ पर हाॅथ उठाया था न। उसका हिसाब तो ज़रूर लूॅगा तुझसे। मगर उससे पहले अपनी जाने जिगर से अपना मूड तो बना लूॅ।"
शिवा की बात पर विराज बुरी तरह छटपटा कर रह गया। उसे अपनी बेबसी पर बेहद क्रोध भी आ रहा था और रोना भी। उधर अजय सिंह भी गौरी के पास पहुॅच चुका था। उसने गौरी को बहुत ही नज़ाकत से ऊपर से नीचे तक कई बार देखा और फिर उसकी ऑखों में देखते हुए मुस्कुराया।
"सचमुच।" फिर अजय सिंह ने मानो मंत्रमुग्ध हो चुके भाव से कहा___"आज भी वैसी ही हो जैसे तब थी जब मैने तुम्हें पहली बार देखा था। वही सादगी, वही तीखे नैन नक्श, वही साॅचे में ढला हुआ मदमस्त कर देने वाला गदराया हुआ जिस्म। कसम से गौरी, तुम्हें अगर हज़ार बार भी भोग लूॅ तो मेरी तिश्नगी न बुझेगी। तुम्हें पता है, तुम वो दूसरी स्त्री हो जिससे मुझे सचमुच का प्यार हो गया था। मैं चाहता था कि तुम खुशी खुशी मेरी आगोश में आ जाओ। मगर जब तुम नहीं आई तो मुझे हर वो रास्ता अख्तियार करना पड़ा जिसके तहत मुझे लगता था कि तुम मेरी आगोश में आ सकती हो। पर कदाचित मैं ग़लत था गौरी या फिर मेरे प्यार में वो बात ही नहीं थी जिसके तहत तुम मेरी हो जाती।"
"भाभी से तमीज़ से बात करो बड़े भइया।" अभय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___"इतनी भी नीचता मत दिखाओ कि ईश्वर को भी शर्म आ जाए।"
"ओहो।" अजय सिंह ने ब्यंगात्मक भाव से उसे देखते हुए कहा___"तो मेरा छोटा भाई भी अब मुझसे इस ज़ुबान में बात करेगा। लगता है गौरी ने थोड़ा बहुत अपनी मदमस्त जवानी का स्वाद चखा दिया है तुम्हें।"
"ख़ाऽऽऽमोश।" अभय सिंह पूरी शक्ति से दहाड़ा था, बोला____"अपनी ज़बान को लगाम दे बेशर्म इंसान। बस एक बार मुझे इस बंधन से आज़ाद कर दे। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूॅ तेरा।"
"इस तरह चिल्लाने का कोई फायदा नहीं है छोटे।" अजय सिंह ने पूरी ढिठाई से कहा____"क्योंकि अब यहाॅ पर वही होगा जो सिर्फ और सिर्फ मैं चाहूॅगा। तुम सबकी ऑखों के सामने हम दोनो बाप बेटे एक एक औरत व एक एक लड़की की इज्ज़त का मर्दन करेंगे।"
इतना कहने के साथ ही अजय सिंह पलटा और पुनः गौरी के समीप आ गया। उसने जैसे ही हवस भरी ऑखों से गौरी की तरफ देखा वैसे ही गौरी ने नफरत व घृणा से उसके चेहरे पर थूॅक दिया। ये देख कर अजय सिंह तो आग बबूला हुआ ही किन्तु इस बीच गौरी के समीप तेज़ी से आकर प्रतिमा ने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया।
"साली कुतिया।" प्रतिमा किसी शेरनी की भाॅति गुर्राते हुए बोली___"तेरी हिम्मत कैसे हुई अजय के चेहरे पर थूॅकने की? अपने आपको बड़ी सती सावित्री समझती है न। अभी यहीं सबके सामने तेरे इस जिस्म को नुचवाती हूॅ। अपने रूप और सौंदर्य का बहुत घमंड है न तुझे, रुक ऐसा हाल करवाऊॅगी कि सब थूॅकेंगे तुझ पर।" कहने के साथ ही प्रतिमा एक झटके से अजय सिंह की तरफ पलटी, फिर गुस्से से फुंफकारते हुए बोली____"देख क्या रहे हो अजय? आगे बढ़ो और चीर फाड़ कर फेंक दो इस रंडी के जिस्म से इसके सारे कपड़े। ज़रा भी रहम न करना इस दो टके की राॅड पर।"
प्रतिमा का भभकता हुआ चेहरा तथा उसकी बातें सुन कर अजय सिंह पर तुरंत प्रतिक्रिया हुई। वह झटके से आगे बढ़ा और गौरी के जिस्म पर मौजूद सफेद साड़ी के ऑचल को पकड़ कर एक झटके से अपनी तरफ खींच लिया। जिससे गौरी का ऊपरी जिस्म अर्धनग्न सा हो गया। सफेद ब्लाउज पर कसे हुए उसके बड़े बड़े उन्नत उभार सबकी नज़रों में आ गए। उधर अजय सिंह की इस हरकत से वातावरण में कई सारी चीखें गूॅज गईं। गौरी तो लाज व शर्म की वजह से चिल्लाई ही थी किन्तु उसके साथ ही विराज आदि सब भी चीख पड़े थे। एकदम से जैसे वातावरण में कोलाहल सा मच गया था।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
मैं और आदित्य बाहर से घूम फिर कर शाम को लगभग सात बजे घर पहुॅचे। अंदर आते ही आदित्य ने कहा वो फ्रेश होने अपने कमरे में जा रहा है। उसके जाने के बाद मैं सीधा नीलम के कमरे में उसको देखने के लिए चला गया। नीलम के कमरे का दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था बल्कि थोड़ा सा खुला हुआ था। मैने उस खुले हुए हिस्से के पास चेहरा ले जाकर पहले सोनम दीदी को आवाज़ दी। किन्तु जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो मैं कुछ पल सोचने के बाद खुद ही दरवाजा खोल कर कमरे के अंदर आ गया।
कमरे में रखे शानदार बेड पर नीलम करवॅट के बल लेटी हुई थी। उसकी ऑखें बंद थी इस वक्त। कदाचित सो रही थी या फिर ऑखें बंद करके आराम कर रही थी। मैं उसके क़रीब जा कर बेड के पास ही खड़ा हो गया। मेरी नज़र उसके मासूम व खूबसूरत से चेहरे पर पड़ी। इस वक्त वो किसी छोटी सी बच्ची की भाॅति मासूम दिख रही थी। मुझे उसकी इस मासूमियत पर बेहद प्यार आया। मेरे होठों पर मुस्कान फैल गई। तभी अचानक मेरे मन में उसे छेंड़ने का ख़याल आया मगर फिर मैंने अपने मन से उसे छेंड़ने का ख़याल झटक दिया। मुझे लगा इस वक्त इसे आराम से सोने देना चाहिए। ये सोच कर मैं उसके चेहरे के क़रीब झुका और प्यार से उसके माॅथे पर हौले से चूॅम लिया। उसके बाद मैं पुनः सीधा खड़ा हुआ और फिर बिना कुछ बोले ही पलट कर कमरे से बाहर की तरफ जाने के लिए बढ़ा ही था कि सहसा तभी मैं चौंक पड़ा। पीछे से नीलम ने उसी वक्त मेरी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया था।
उसके इस तरह मेरी कलाई पकड़ लेने पर मैं बरबस ही मुस्कुरा उठा। मेरे दिमाग़ में तुरंत ही ये बात आई कि नीलम ने कदाचित मुझे छेंड़ने के लिए ही मेरी कलाई पकड़ ली है। अतः ये सोचते हुए मैं पूर्वत मुस्कुराते हुए उसकी तरफ पलटा। नीलम ने अपने एक हाॅथ से मेरी कलाई को पकड़ा हुआ था, किन्तु उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वो बस मुझे एकटक देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में कुछ था जो फिलहाल मेरी समझ में नहीं आया कि वो क्या था?
"क्या बात है बंदरिया?" मैने उसे इस तरह देखते देख छेंड़ने वाले भाव से कहा___"क्या मुझसे पंगा लेने का इरादा है? देख अगर ऐसा है तो फिलहाल अपने ज़हन से इस ख़याल को निकाल दे। क्योंकि इस हालत में तुझको मुझसे पंगा लेना भारी पड़ जाएगा। इस लिए मेरी बात मान पहले तू ठीक हो जा। उसके बाद तू शौक से मुझसे जैसे चाहे पंगे ले लेना।"
"ऐसी कोई बात नहीं है राज।" नीलम ने सहसा गंभीरता से कहा___"तुमसे तो मैं इस हाल में भी पंगा लेने को तैयार हूॅ और यकीन मानो मुझे पंगे के भारी पड़ने की कोई फिक्र नहीं है। मगर मैं इस वक्त तुमसे कुछ और ही बात कहना चाहती हूॅ।"
"ओह आई सी।" मैने उसे गंभीर हालत में देखते हुए ज़रा खुद भी कुछ गंभीरता का नाटक करते हुए कहा___"तो ये बात है। फरमाइए, क्या कहना चाहती हैं आप?"
"कहने को तो बहुत कुछ है मेरे दिल में।" नीलम की आवाज़ सहसा लड़खड़ा सी गई, किन्तु तुरंत ही जैसे उसने खुद को मजबूती से सम्हालते हुए कहा___"मगर सिर्फ यही कहना चाहती हूॅ कि मेरी रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखना। मैं नहीं चाहती कि उनका मोम का बन चुका दिल फिर से पत्थर में तब्दील हो जाए।"
"क्या मतलब???" मैं नीलम की इस बात से एकदम से चकरा सा गया, बोला___"ये क्या ऊल जुलूल बोल रही हो तुम?"
"एक गुजारिश भी है तुमसे।" नीलम ने मेरी बात पर ज़रा भी ध्यान न देते हुए फीकी मुस्कान से कहा___"इतने कम समय में भी मुझे एहसास हो चुका है कि तुम्हारे दिल में हम सबके लिए बेपनाह प्यार व सम्मान की भावना है। इस लिए मेरी गुज़ारिश है कि हमेशा ऐसे ही बने रहना। चाहे जैसी भी परिस्थितियाॅ आ जाएॅ मगर तुम खुद को नहीं बदलना।"
"ये तुम कैसी बातें कर रही हो नीलम?" मैं नीलम की इन बातों से बुरी तरह हैरान व चकित रह गया था, फिर बोला___"देखो किसी भी तरह की पहेलियाॅ मत बुझाओ। जो भी बात है उसे साफ साफ कहो।"
"अब इससे ज्यादा साफ साफ नहीं कह सकती मेरे भाई।" नीलम ने भारी आवाज़ में कहा___"मुझे पता है कि तुम बेहद समझदार हो, इस लिए मैं उम्मीद करती हूॅ कि तुम मेरी बातों को समझ जाओगे।"
"देखो अगर तुम्हारे ये सब कहने का मतलब।" मैने इस बार ज़रा गंभीर भाव से कहा___"इस बात से है कि इस सबके बाद क्या होगा तो तुम इस बात से बेफिक्र रहो। मैं जानता हूॅ कि इस जंग का अंत यकीनन बेहद दुखदायी होगा। मगर होनी तो अटल है न। पाप और बुराई का अंत तो निश्चित है। किन्तु उसके बाद हम सब साथ मिल कर एक नया संसार बनाएॅगे। उस नये संसार में हम सब एक साथ ढेर सारी खुशियों का हिस्सा होंगे। मैं तुमसे वादा करता हूॅ कि जीवन में कभी भी किसी को मैं उदास या दुखी होने का मौका नहीं दूॅगा।"
"मुझे पता है राज।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं जानती हूॅ कि तुम्हारे रहते कोई भी जीवन में दुखी नहीं हो पाएगा। किन्तु मेरे ये सब कहने का मतलब इन सब बातों से नहीं था भाई, बल्कि मैं तो बस रितू दीदी के लिए वो सब कह रही थी।"
"क्या मतलब??" मेरे चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे।
"यही तो बिवसता है राज।" नीलम ने बेबस भाव से मेरी तरफ देखा___"कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें मुख से नहीं कहा जाता बल्कि सामने वाले को खु ही समझ जाना होता है और मैं तुमसे यही उम्मीद करती हूॅ कि तुम बिना कुछ बताए सब कुछ समझ जाओगे।"
"कमाल है।" मैं चकित भाव से कह उठा____"भला ये क्या बात हुई? मैं कोई अंतर्यामी हूॅ क्या जो किसी के बताए बिना ही सब कुछ जान लूॅगा या फिर समझ लूॅगा?"
"क्यों नहीं राज।" नीलम ने बड़े ग़ौर से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तुम यकीनन बिना कुछ बताए सब कुछ समझ सकने की काबीलियत रखते हो और मुझे ऐसा लगता भी है कि तुम सब कुछ समझते भी हो।"
"अब ये क्या बात हुई यार?" मैं बुरी तरह चौंका।
"पता नहीं क्यों?" नीलम ने पूर्वत मेरी तरफ बड़े ग़ौर से देखते हुए ही कहा___"पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम जानते समझते सब कुछ हो मगर प्रत्यक्ष रूप में ज़ाहिर यही करते हो कि तुम्हें सामने वाले की कोई भी बात समझ में नहीं आई है। है ना?"
"और मुझे ऐसा लग रहा है।" मैने कहा___"कि जैसे तुम मुझसे पंगा लेने के मूड हो। क्योंकि तुम्हारी ये बेसिर पैर की बातें इसी बात का इशारा करती हैं। मगर मिस नीलम, जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूॅ तुमसे कि तुम इस वक्त मुझसे पंगा लेने की हालत में नहीं हो। इस लिए बेहतर होगा कि अपने ज़हन से पंगा लेने वाले ख़याल निकाल दो।"
मेरी इस बात से नीलम कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। मैं खुद भी उसी की तरफ देख रहा था। उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवागवन चालू था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात के लिए उसे अपने आपसे काफी ज़द्दो जहद करनी पड़ रही हो। एकाएक ही उसने मेरे चेहरे से अपनी नज़रें हटाईं और अपने सिर को दूसरी तरफ कर लिया। मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि दूसरी तरफ सिर किये नीलम की ऑखों से ऑसू छलक पड़े थे। मुझे कुछ समझ न आया किन्तु इतना ज़रूर हुआ कि उसकी ऑखों से इस तरह ऑसू छलकते देख मैं बेचैन हो गया।
"अरे ये क्या मेरी प्यारी सी बहन की ऑखों से ऑसू क्यों छलक पड़े?" मैं एकदम से उसके समीप ही बेड के किनारे पर बैठ गया और फिर उसके हाॅथ को अपने हाॅथ में लेकर बोला___"देख अगर तुझे मेरी किसी बात से बुरा लगा हो तो मुझे माफ़ कर दे। मैं तुझे इस तरह ऑसू बहाते नहीं देख सकता। तू तो जानती ही है कि मैं कितना बेवकूफ हूॅ। मुझमें किसी की भावनाओं को समझने का ज्ञान नहीं है। अतः अगर तुझे मेरी किसी बात से तक़लीफ हुई है तो प्लीज माफ़ कर दे मुझे।"
"ऐसा मत कह राज।" नीलम एकदम से मेरी तरफ पलट कर सिसक उठी____"तू तो ऐसा है जो भूल से भी किसी को कोई तक़लीफ नहीं दे सकता। मुझे खुशी है दुनियाॅ में सबसे खूबसूरत दिल का लड़का मेरा भाई है। ये ऑसू तो फक़त ऐसी ही खुशी के तहत छलके हैं। मैं नहीं जानती कि किसके जीवन में क्या क्या खोना और पाना लिखा है मगर मेरी हसरत तो यही है कि मेरी रितू दीदी को हर वो चीज़ मिल जाए जिस चीज़ की उन्होंने रज़ा की हो।"
"मेरे रहते मेरी बहनों को कभी भी किसी चीज़ की कमी का एहसास तक नहीं होगा नीलम।" मैने कहा___"मैं बहनें मेरी जान हैं, उनके लिए कुछ भी कर सकता हूॅ मैं। रितू दीदी ही बस क्यों मैं तो अपनी सभी बहनों को बराबर प्यार व सम्मान दूॅगा।"
"जैसा तुम्हें अच्छा लगे वैसा करना राज।" नीलम ने गहरी साॅस ली____"अब तुम जाओ और नैना बुआ या सोनम दीदी में से किसी को भेज दो। मेरा सिर ज़रा भारी भारी सा लग रहा है।"
"सिर भारी लग रहा है???" मैं चौंका___"इतनी सी बात के लिए उनको क्यों कष्ट देना? लाओ मैं तुम्हारे सिर की मालिश कर देता हूॅ। इतना तो मैं भी कर सकता हूॅ।"
"तुम रहने दो राज।" नीलम ने कहा___"तुम परेशान न हो। सोनम दीदी को भेज देना।"
"ओये चिंता मत कर यार।" मैं सहसा मुस्कुराया___"सिर की मालिश ही करूॅगा, तेरा गला नहीं दबाऊॅगा मैं।"
"काश! तू मेरा गला ही दबा दे भाई।" नीलम की आवाज़ एक बार पुनः जाने क्या सोच कर भर्रा गई___"तेरे पास तेरी ही बाहों के दरमियां इस दुनियाॅ से रुख़्सत हो जाऊॅगी।"
"ज्यादा बकवास मत कर।" मैने सहसा कठोर भाव से कहा___"वरना कान के नीचे एक लगाऊॅगा तो सारा सेन्टिमेंट निकल जाएगा तेरा। अब अगर कुछ बोला तो देखना फिर।"
मेरी बात सुन कर नीलम बस मुस्कुरा कर रह गई। जबकि मैं उसके सिरहाने के क़रीब ही बैठ कर उसके माॅथे पर हाॅथ से मालिश का दबाव आहिस्ता आहिस्ता करने लगा और साथ ही सोचने लगा कि नीलम ने आख़िर ऐसी बात क्या सोच कर कही हो सकती है? अभी मैं नीलम की बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी कमरे में नैना बुआ व सोनम दीदी एक साथ ही आ गईं। मुझे इस तरह नीलम का सिर दबाते देख वो दोनो ही चौंकते हुए एक जगह ठिठक गईं।
"ओहो।" फिर सहसा नैना बुआ ने मुस्कुराते हुए कहा___"क्या बात है राज, अपनी लाडली बहन की बड़ी सेवा कर रहे हो तुम। वैसे मैने सुना है कि तुम दोनो आपस में बड़ा लड़ते झगड़ते हो। फिर ये सेवा भाव कैसे?"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
"ज्यादा समय नहीं है हमारे पास।" उस आदमी के आते ही अजय सिंह ने धीमे स्वर में कहा___"इस लिए जैसा कहा गया था फौरन ही वैसा करो। उसके बाद जल्दी से यहाॅ निकलना भी है।"
अजय सिंह की इस बात को सुन कर उसके अन्य आदमी फौरन ही हरकत में आ गए। कुछ लोग नीचे की तरफ के कमरों की तलाशी लेने लगे और बाॅकी लोग सीढ़ियों के द्वारा ऊपर की तरफ चले गए। लगभग दस मिनट बाद ही मंज़र ये था कि ऊपर से आने वाले आदमियों के कंधों पर एक एक इंसानी जीव बेहोश अवस्था में लदा हुआ नज़र आ रहा था। नीचे के एक कमरे से एक आदमी शंकर के बेहोश जिस्म को कंधे पर लादे आ रहा था।
उन सबके आते ही अजय सिंह बिंदिया व हरिया को पकड़े आदमियों को भी इशारा किया। इशारा मिलते ही उन आदमियों ने पलक झपकते ही खतरनाॅक हरकत की। जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ ही पलों में बिंदिया व हरिया दोनो ही बेहोश हो चुके थे। सबको लेकर बाहर की तरफ बढ़ चले वो लोग।
कुछ ही देर में सभी बेहोश हो चुके लोगों को बाहर खड़ी गाड़ियों पर भूसे की तरह ठूॅस दिया गया। उसके बाद सभी आदमी अपनी अपनी गाड़ियों पर बैठ गए। टाटा सफारी के चलते ही बाॅकी तीनों गाड़ियाॅ भी उसके पीछे चल दी। गहरी नींद में सोये शहर वासियों को इस सबका ज़रा भी इल्म न हुआ कि रात के सन्नाटे में यहाॅ क्या कुछ हो चुका था? जबकि अजय सिंह सबको लेकर अपने नियत स्थान की तरफ ऑधी तूफान की तरह बढ़ा चला जा रहा था।
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सुबह हुई।
उधर मुम्बई में,
उस वक्त सब लोग सुबह का नास्ता कर रहे थे जब एकाएक ही पवन के मोबाइल फोन की घंटी बजी थी। पवन अपने कमरे से तैयार होकर ही नास्ता करने आया था। नास्ता करने के बाद उसे कंपनी चले जाना था। डायनिंग हाल में कुर्सी पर बैठे पवन का मोबाइल उसकी पैन्ट की जेब में बज रहा था। चारो तरफ कुर्सियों पर बैठे बाॅकी सबका ध्यान भी उसके मोबाइल की रिंगटोन पर गया। सबका ध्यान एक साथ जाने की विशेष बात ये थी कि पवन के मोबाइल की रिंग टोन पर "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोंड़ेंगे" बज रही थी।
पवन पहले तो हड़बड़ाया फिर सबकी तरफ देखते हुए वह कुर्सी से उठा और अपनी बाईं जेब से मोबाइल निकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर "राज" लिखा नज़र आ रहा था। यानी कि उसके मोबाइल पर विराज की काल आ रही थी। ये देख कर पवन के चेहरे पर सहसा खुशी की चमक उभर आई। उसने मुस्कुराते हुए तुरंत ही काल को रिसीव किया और फिर जाने क्या सोच कर उसने मोबाइल का स्पीकर ऑन करके बोला___"आख़िर तुझे इतने दिनों बाद ही सही मगर मेरी याद आ ही गई न राज।"
"हमें तो तुम सबकी ही बहुत ज़ोरों से याद आती है बर्खुरदार।" मोबाइल पर उधर से अजय सिंह की इस आवाज़ को पहचानने में किसी को ज़रा सी भी देर न हुई। सबके सब इस आवाज़ को सुन कर एकदम हक्के बक्के से रह गए। जबकि उधर से स्पीकर पर पुनः अजय सिंह की इस बार ज़रा कठोर आवाज़ उभरी____"मैं अच्छी तरह जानता हूॅ कि इस वक्त इस नंबर से मेरी आवाज़ सुन कर तुम सबके पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई होगी। हर किसी को साॅप सा सूॅघ गया होगा। ख़ैर मुझे लगता है कि तुम में से किसी को भी मुझे ये बताने की या फिर समझाने की ज़रूरत नहीं है कि इस वक्त तुम लोगों का वो मसीहा विराज तथा उसके साथ साथ और भी बाॅकी लोग मेरे रहमो करम पर हैं। इस लिए बेहतर होगा कि बग़ैर मेरी किसी चेतावनी के तुम सब वहाॅ से फौरन मेरे पास या यूॅ कहो कि मेरे सामने आकर घुटनों के बल मेरे पैरों पर झुक जाओ।"
स्पीकर से उभर रहे अजय सिंह के ये वाक्य डायनिंग टेबल पर मौजूद लगभग सभी के मनो मस्तिष्क में ऐसा धमाका कर रहे थे जिसकी भीषण गूॅज से सभी के कानों के पर्दे तक झनझना रहे थे। और फिर ऐसा लगा जैसे एक ही पल में सब कुछ खत्म हो गया हो। चारो तरफ कुर्सियों पर बैठे सबके सब मानो किसी ऋषि के द्वारा दिए गए भयंकर श्राप की वजह से अचानक ही पत्थर की शिला में तब्दील होते चले गए हों। एक ही पल में वक्त मानो ठहर सा गया था। जो जिस हालत में बैठा था वो वैसी ही हालत में स्टेच्यू में तब्दील हो गया था।
सबकी चेतना तब जागृत हुई जब पुनः स्पीकर से अजय सिंह की आवाज़ के साथ साथ ज़ोरों का अट्ठहास गूॅजा था___"देखा, मैने कहा था न कि तुम सबको साॅप सा सूॅघ जाएगा। मगर साॅप सूॅघ जाने से कुछ नहीं होगा मेरे प्यारो बल्कि जो कुछ भी होगा मेरे पास आने के बाद ही होगा। इस लिए फौरन वहाॅ से चले आओ। वरना तुम लोग सोच भी नहीं सकते कि यहाॅ पर मैं तुम्हारे उस मसीहा के साथ साथ बाॅकी सबका भी क्या हस्र कर सकता हूॅ?"
अभी स्पीकर पर अजय सिंह का ये वाक्य पूरा ही हुआ था कि सहसा डायनिंग हाल में एक भयंकर चीख़ गूॅज उठी, साथ ही फर्श पर किसी चीज़ के गिरने की ज़ोरदार आवाज़ हुई। इस चीख़ व आवाज़ को सुन कर सबके सब बुरी तरह उछल पड़े। जैसे ही सबने चीख़ की दिशा में देखा तो सबके होश उड़ गए। दरअसल ये चीख गौरी के हलक से खारिज़ हुई थी। वो अपने हाॅथ में बर्तन पर कुछ लिए हुए किचेन से आ रही थी और डायनिंग हाल में आते ही उसने स्पीकर पर उभर रही अजय सिंह की उस आवाज़ के साथ साथ उसके संपूर्ण वाक्य को सुन लिया था। उसके बाद ही उसके हलक से ये भयंकर चीख़ निकली थी।
पवन के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा। उधर गौरी की चीख़ सुन किचेन से रुक्मिणी व करुणा भी भागती हुई डायनिंग हाल की तरफ आ गई थीं। गौरी को डायनिंग हाल के फर्श पर अजीब हालत में लुढ़की पड़ी देख कर भौचक्की सी रह गई वो दोनो। इधर डायनिंग टेबर के चारो तरफ रखी कुर्सियों पर बैठे बाॅकी सब लोग भी अपनी अपनी जगहों से उठ कर गौरी की तरफ दौड़ पड़े थे। देखते ही देखते डायनिंग हाल में रोना धोना शुरू हो गया। यहाॅ का रोना धोना चालू मोबाइल के द्वारा अजय सिंह भी सुन रहा था और ज़ोरों से हॅसे जा रहा था।
"हाहाहाहाहा यही।" उधर से अजय सिंह की आवाज़ पुनः उभरी____"अब यही हाल होगा तुम सबका। मगर जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूॅ इस सबसे कुछ नहीं होगा बल्कि यहाॅ आने पर ही होगा। इस लिए अब मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि तुम सब वहाॅ से फौरन ही मेरे सामने हाज़िर हो जाओ। कल दोपहर तक तुम सब मेरी ऑखों के सामने होने चाहिए। दोपहर तक अगर तुम सब नहीं आए तो समझ लेना कि इसका परिणाम कितना घातक हो सकता है।"
इन वाक्यों के साथ ही अजय सिंह कहकहे लगा कर हॅसा और फिर काल कट हो गई। किन्तु उसके इन वाक्यों को सुनने की हालत में यहाॅ था ही कौन? यहाॅ तो बस रोना धोना तथा चीख़ पुकार ही मचा हुआ था। बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को सम्हाला सबने।
उधर होश में आते ही गौरी दहाड़ें मार मार रोने लगी और चीख़ चीख़ कहने लगी____"मैने कहा था न कि हत्यारे ने मेरे बेटे को मार दिया है। हे भगवान! अब अगर मेरा बेटा ही नहीं तो मैं भला जी कर क्या करूॅगी? मुझे भी मौत दे दे भगवान। मैं अपने बेटे के बग़ैर एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती।"
"शान्त हो जाइये भाभी।" अभय सिंह सिसकते हुए बोल उठा___"हमारे राज को कुछ नहीं होगा। वो मादरजाद तो बस गीदड़ भभकियाॅ ही दे रहा था। जबकि मैं जानता हूॅ कि वो मेरे भतीजे का बाल भी बाॅका नहीं कर सकता। मेरा भतीजा शेर है शेर....ये साले सब गीदड़ हैं भाभी। भगवान के लिए भरोसा कीजिए और शान्त हो जाइये। सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
"कुछ भी ठीक नहीं होगा अभय।" गौरी बुरी तरह बिलखते हुए बोली___"वो हत्यारा मेरे बेटे को गोलियों से छलनी छलनी कर देगा। वो मेरे बेटे के खून प्यासा है। मुझे मेरे बेटे के पास पहुॅचा दो अभय मैं तुम्हारे पाॅव पड़ती हूॅ।"
गौरी पागल सी हो गई थी। सचमुच ही वो अभय के पैरों पर गिर पड़ी। अभय का कलेजा ये देख कर हाहाकार कर उठा। बुरी तरह तड़प उठा वह। तेज़ी से वह पीछे की तरफ हटा और फिर तुरंत ही गौरी को दोनो कंधों से पकड़ कर ऊपर किया।
"क्यों मुझे पाप के सागर में डुबा रही हैं भाभी?" अभय सिंह रो पड़ा____"आप जानती हैं कि मैंने हमेशा आपको अपनी माॅ की तरह समझा है। मेरे पैरों में गिर कर मुझे ऐसे गर्त में मत डुबाइये कि जहाॅ से मैं फिर कभी निकल ही न पाऊॅ।"
"मुझे मेरे बेटे के पास पहुॅचा दो कोई।" गौरी पागलों की तरह सबकी तरफ याचना भरी दृष्टि से देखते हुए बोले जा रही थी___"मेरा बेटा बहुत कष्ट में है। वो सब मिलके उसे मार देंगे। मुझे अभी के अभी मेरे बेटे के पास जाना है और अगर तुम लोग मुझे नहीं पहुॅचाओगे तो मैं खुद ही चली जाऊॅगी। मुझे यहाॅ अब नहीं रहना। मेरे बेटे को मार देंगे वो लोग।"
इतना सब कहने के साथ ही गौरी को चक्कर आ गया और वह रुक्मिणी की गोंद में ही शिथिल पड़ गई। उसकी हालत देख कर हर कोई रो रहा था। निधी की हालत बेहद ख़राब थी। वो अपनी माॅ को अपने बेटे के लिए इस तरह तड़पते देख खुद भी तड़पी जा रही थी। हालत तो सबकी ही ख़राब थी।
"ऐसे कब तक यहाॅ इन्हें रोता तड़पता हुआ देखते रहेंगे अभय चाचू?" सहसा पवन ऊॅचे स्वर में मानो चीख सा पड़ा___"मेरा दोस्त वहाॅ भयंकर संकट में है। मैं खुद भी अब यहाॅ एक पल के लिए भी रुकना नहीं चाहता। उस कसाई का कोई भरोसा नहीं है। वो कुछ भी कर सकता है।"
"सही कहते हो तुम।" अभय सिंह ने सहसा अपने ऑसुओं को पोंछते हुए बोला____"फौरन यहाॅ से चलने की तैयारी करो पवन। गौरी भाभी को अगर राज के पास न ले जाया गया तो ये यहीं पर अपना सिर पटक कर मर जाएॅगी। वैसे भी जिस तरह से उसने चेतावनी देकर हम सबको वहाॅ बुलाया है तो हम सबको फौरन जाना ही पड़ेगा। इसके सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है। मौजूदा हालात में वो कुछ भी कर सकता है। इंसान से राक्षस बन गया है वो। मगर भवानी माॅ की कसम अगर उसने मेरे भतीजे को ज़रा सी भी चोंट पहुॅचाई तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं।"
"ठीक है चाचू।" पवन ने कहा___"आप इन्हें देखिये। मैं तब तक सबकी टिकटों का इंतजाम करता हूॅ। वैसे मुमकिन तो नहीं मगर देखता हूॅ शायद सबके लिए टिकटें मिल ही जाएॅ।"
"आप एक बार जगदीश भाई साहब को भी फोन पर इस बारे में सब कुछ बता दीजिए।" पवन के जाते ही करुणा ने अभय सिंह की तरफ देखते हुए दुखी भाव से कहा___"आख़िर इस बारे में जानकारी तो उन्हें भी होनी ही चाहिए कि हम अचानक यहाॅ से किस वजह से जा रहे हैं?"
"सही कहा तुमने।" अभय सिंह ने कहने के साथ पैन्ट की जेब से अपना मोबाइल निकाला, फिर बोला___"भाई साहब को बताना बेहद ज़रूरी है। वैसे भी वो हमें अपने सगे जैसा ही मानते हैं। उन्हें इस बारे में बताना ही चाहिए। रुको मैं अभी बात करता हूॅ उनसे।"
कहने के साथ ही अभय ने जगदीश ओबराय को फोन लगाया। कुछ देर तक टुक टुक की आवाज़ आती रही, उसके बाद सहसा मोबाइल से आवाज़ उभरी___"आप जिस उपभोक्ता से बात करना चाहते हैं वो इस समय उपलब्ध नहीं है अथवा नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हैं।"
ये सुन कर अभय सिंह परेशान सा हो गया। उसने पुनः नंबर रिडायल कर फोन लगाया। किन्तु फिर से वही जवाब मिला। अभय ने कई बार फोन मिलाया मगर हर बार यही बताया गया कि वो इस समय उपलब्ध नहीं है अथवा नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हैं। अभय को चिंतित व परेशान देख कर करुणा ने उससे पूछा कि क्या हुआ? उसके सवाल पर अभय सिंह ने उसे सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर वो भी चिंता में पड़ गई।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
अपडेट.......《 62 》
अब तक,,,,,,,
सारा दिन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दुनियाॅ से ही जा चुका हो। डायनिंग टेबल पर नास्ते के लिए परोसी गई थाली व प्लेट सब वैसी की वैसी ही रखी रह गई थी। किसी ने उस तरफ देखा तक न था और ना ही कोई अपने कमरे की तरफ गया था। बॅगले के नौकर चाकर तक संजीदा थे इस सबसे। अभय सिंह सुबह से अब तक हज़ारों बार जगदीश ओबराय को फोन लगा चुका था किन्तु उसका नंबर अभी भी नेटवर्क क्षेत्र के बाहर ही बता रहा था।
बड़ी मुश्किल से ही सही किन्तु वक्त अतिमंद्र गति से गुज़र ही गया। ट्रेन के निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुच गए। रुक्मिणी व करुणा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास व दुखी था। आधे घंटे बाद जब ट्रेन आई तो सब ट्रेन की तरफ लगभग भागते हुए बढ़े। ट्रेन में चढ़ कर हर कोई सीट पर बैठ चुका था। रिज़र्व सीटों पर औरतों और लड़कियों को बैठा दिया गया था। हलाॅकि रिज़र्व में पाच ही सीटें मिली थी। जिनमें गौरी रुक्मिणी करुणा निधी व दिव्या को बैठा दिया गया था। शगुन दिव्या के साथ ही बैठा हुआ था। जबकि पवन अभय व आशा ट्रेन के फर्श पर ही खड़े थे।
गौरी को रुक्मिणी व करुणा ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। सारा दिन रोती रही थी वो जिसकी वजह से उसकी ऑखें लाल सुर्ख पड़ चुकी थीं। चेहरे पर ऐसी वीरानी थी जैसे इस चेहरे ने कभी किसी तरह की खुशियो से भरी बहार को देखा ही न हो। कुछ ही समय बाद ट्रेन अपने गंतब्य स्थान के लिए चल पड़ी। ट्रेन के चल पड़ने से सबके मन में थोड़ी राहत के भाव उभर आए थे। आने वाले समय में किसके साथ क्या क्या होने वाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,
दूसरे दिन।
उस वक्त दोपहर हो चुकी थी।
अजय सिंह के इस विशाल फार्महाउस पर इस वक्त अलग ही नज़ारा था। ये दृष्य तो गौरी के स्वप्न की तरह ही था किन्तु उससे थोड़ा भिन्न ही था। लम्बे चौड़े फार्महाउस के बीचो बीच दो मंजिला बड़ा सा मकान बना हुआ था। चारों तरफ हरी हरी घाॅस से भरा हुआ विशाल मैदान तथा हर तरफ लगे हुए तरह तरह के पेड़ पौधे यहाॅ की खूबसूरती का एक बड़ा ही सुंदर नज़ारा पेश कर रहे थे। किन्तु इस वक्त इस खूबसूरत नज़ारे में भी जैसे ग्रहण सा लगा हुआ था।
मैदान में लगे पेड़ पौधों के बीच का ही दृष्य था ये। कतार में लगे पेड़ों पर कई सारे लोग रस्सियों से बॅधे जकड़े हुए थे। विराज, रितू, आदित्य, नैना, सोनम, नीलम, बिंदिया, हरिया व शंकर आदि सब कतार से ही पेड़ों से रस्सियों द्वारा बॅधे हुए थे। विशाल मैदान में चारो तरफ काली वर्दी में तैनात गुंडे मवालियों जैसी शक्ल के काफी सारे लोग हाथों में बंदूखें लिए खड़े थे। मैदान में एक तरफ कुछ दूरी पर कई सारी गाड़ियाॅ भी खड़ी हुई थी।
उन्हीं पेड़ों की गहरी छाॅव में अजय सिंह एक कुर्सी पर बैठा हाॅथ में लिए हुए रिवाल्वर को बार बार अपनी उॅगली पर नचा रहा था। उसके पीछे उसका बेटा शिवा खड़ा था। उसकी कमर में भी एक रिवाल्वर ठुॅसा हुआ था। अजय सिंह की पत्नी यानी कि प्रतिमा भी अजय सिंह के पास ही खड़ी हुई थी। वातावरण में चारो तरफ एक अजीब सा भयावह सन्नाटा फैला हुआ था।
"दोपहर तो हो चुकी है ठाकुर साहब।" तभी सहसा एक आदमी अजय सिंह के पास आता हुआ बोला____"किन्तु आपके बाॅकी शिकार तो अभी तक यहाॅ नहीं पहुॅचे। कहीं ऐसा तो नहीं कि वो लोग पुलिस के पास चले गए हों सहायता माॅगने के लिए? अगर ऐसा हुआ तो यकीन मानिए हमारे सारे किये कराए पर पानी फिर जाएगा और हम सब जेल के अंदर चक्की पीसते नज़र आएॅगे।"
"नहीं सहाय।" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"वो लोग पुलिस के पास जाने का सोच भी नहीं सकते हैं। वो जानते हैं कि अगर उन लोगों ने इस मामले में पुलिस को कुछ भी बताया तो उसका अंजाम बहुत ही खतरनाॅक हो सकता है। इस लिए तुम इस बात से बेफिक्र रहो। वो सब सिर के बल भागते दौड़ते हुए रेलवे स्टेशन से सीधा यहीं आएॅगे। उसके बाद क्या होगा ये समझाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"
"हाॅ ये तो सही कहा आपने।" अभिजीत सहाय ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"आज यहाॅ पर एक अनोखा इतिहास लिखा जाएगा। आने वाले बाॅकी शिकार यहाॅ आ तो जाएॅगे मगर तुरंत ही हमारे आदमियों द्वारा धर लिए जाएॅगे और फिर वो सब भी इन लोगों की तरह पेड़ों पर रस्सियों में बॅधे नज़र आने लगेंगे।"
"मुझसे तो अब बरदास्त ही नहीं हो रहा डैड।" शिवा अपने बाप के सामने आते हुए बोला____"एक एक पल कैसे काट रहा हूॅ ये सिर्फ मैं जानता हूॅ। मेरी ऑखों के सामने ही मेरी ये बहने रस्सियों में बॅधी पेड़ों पर चिपकी खड़ी हैं और आप मुझे कुछ करने ही नहीं दे रहे हैं।"
"बस थोड़ी देर और सब्र करो मेरे बेटे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"उसके बाद तुम्हें जो करना हो करते रहना। मज़ा तो तभी आएगा न जब बाॅकी के लोग भी यहाॅ पर हर तरह का तमाशा देखने के लिए पहुॅच जाएॅ।"
"ठीक है डैड।" शिवा ने मन मसोस कर कहा___"आप कहते हैं तो मैं थोड़ी देर और सब्र कर लेता हूॅ।"
"ये हुई न बात।" अजय सिंह मुस्कुराया, फिर सहाय की तरफ देखते हुए बोला___"अपने आदमियों को पूरी तरह से सतर्क रहने का अल्टीमेटम दे दिया है न सहाय तुमने?"
"डोन्ट वरी ठाकुर साहब।" अभिजीत सहाय ने कहा___"हमारे आदमी पूरी तरह से सतर्क हैं। उनकी नज़र से एक परिंदा भी यहाॅ से छूट कर नहीं जा सकेगा।"
"वेरी गुड।" अजय सिंह ने कहा____"उन लोगों के आते ही हमारे आदमी उन सबको धर लेंगे और फिर उन्हें भी इन लोगों की तरह यहाॅ के पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध देंगे। ये फाइनल गेम है सहाय और इस गेम का विनर सिर्फ और सिर्फ हम ही होंगे। असली खिलाड़ी वही है जो सामने वाले को पूरी तरह से पस्त करके उसे नेस्तनाबूत कर दे।"
अभी अजय सिंह ने इतना कहा ही था कि पीछे की तरफ से किसी के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं। चिल्लाने की आवाज़ें सुनते ही सबका ध्यान उस तरफ गया। कई सारे बंदूख धारियों से घिरे हुए अभय, पवन, गौरी, रुक्मिणी, करुणा, आशा, निधी, दिव्या व शगुन, इस तरफ ही चले आ रहे थे। ये सब देख कर अजय सिंह के साथ साथ सहाय, शिवा व प्रतिमा के होंठो पर जानदार मुस्कान उभर आई।
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