05-07-2020, 02:23 PM,
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hotaks
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RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--10
गतान्क से आगे.....................
आदित्य को ये ध्यान भी नही था कि वो एक साल बाद होश में आया है. कोमा से उठे व्यक्ति के लिए समय और वक्त का ज्ञान असंभव है. लेकिन आदित्य को इतना ध्यान ज़रूर था कि उसे सनडे को ज़रीना को लेने जाना है. उसे क्या पता था की जिस सनडे को उसे ज़रीना को लेने जाना था वो कब का बीत चुका है और जींदगी एक साल आगे बढ़ चुकी है.
"चाचा जी आज दिन क्या है"
"आज शनिवार है बेटा... क्यों."
"शनिवार... मुझे चलना होगा. मुझे कल हर हाल में देल्ही पहुँचना है." आदित्य धीरे से बड़बड़ाया और उठने की कोशिस करने लगा.
रघु नाथ पांडे समझ नही पाया कि आदित्या ने क्या कहा. उन्होने आदित्य के कंधे पर हाथ रखा और बोले, "बेटा क्या बोल रहे थे तुम. और अभी जल्दबाज़ी मत करो उठने की. एक साल बाद होश आया है तुम्हे. शरीर में जंग लग चुका है.थोड़ा वक्त दो अपने शरीर को."
ये सुनते ही आदित्य भोंचका रह गया. उसका सर घूमने लगा. उसे विश्वास नही हो रहा था अपने कानो पर.
"एक साल बाद होश आया...ये कैसे हो सकता है." आदित्य ये मान-ने के लिए बिल्कुल तैयार नही था.
"हां बेटा तुम कोमा में थे. एक साल बाद उठे हो तुम आज. भगवान का लाख लाख शूकर है कि तुम्हे होश आ गया." रघु नाथ पांडे ने कहा.
आदित्य के दिमाग़ की हालत ऐसी नही थी को वो कुछ भी समझ पाए. उसे तो बस इतना पता था कि आज अगर शनिवार है तो कल उसे ज़रीना को लेने देल्ही जाना है. वो अभी भी बीते कल में जी रहा था. मगर जींदगी उसके चारो और बहुत आगे निकल गयी थी.
आदित्य इतना स्तब्ध था कि कुछ भी नही बोल पाया. उसकी नज़र जब दीवार पर टाँगे कॅलंडर पर गयी तो उसकी आँखे भर आई. 2003 का कॅलंडर था वो.
"चाचा जी कौन सा महीना है."
"20 एप्रिल 2003 है आज बेटा. तुम परेशान मत हो, सब ठीक है. तुम्हारी फॅक्टरी ठीक चल रही है. कोई चिंता की बात नही है."
आदित्य की तो हालत खराब हो गयी. ऐसा लग रहा था जैसे की वो फिर से बेहोश हो जाएगा. "एक साल बीत गया. ज़रीना ने बहुत इंतेज़ार किया होगा मेरा. बहुत रोई होगी मेरे इंतेज़ार में वो. मैं क्यों नही जा पाया...क्यों....हे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ." आदित्य चिंता में पड़ गया.
रघु नाथ पांडे नही जानता था कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है. आदित्य की हालत वैसे उठने लायक नही थी मगर फिर भी वो उठ गया किशी तरह बिस्तर से और बोला, “चाचा जी मुझे देल्ही जाना है तुरंत.”
प्यार की तड़प और बेचैनी शायद ताक़त भर देती है इंसान के शरीर में. वरना आदित्य नही उठ सकता था.
"क्या बात है बेटा, कुछ बताओ तो सही, तुम बहुत परेशान लग रहे हो."
"मुझे बहुत ही ज़रूरी काम है चाचा जी. मुझे हर हाल में देल्ही जाना है." आदित्य किसी को कुछ नही बताना चाहता था. बात ही कुछ ऐसी थी. वैसे भी अगर वो बताता भी तो शायद ही कोई समझ पाता उसकी बात को.
"आदित्य डॉक्टर को फोन किया है मैने वो आता ही होगा. अगर डॉक्टर सफ़र की इज़ाज़त दे तो तुम बेसक जा सकते हो." रघु नाथ पांडे ने कहा.
"डॉक्टर चाहे कुछ भी कहे मुझे जाना ही होगा." आदित्य ने कहा.
"बेटा ऐसी क्या बात है जो की तुम तुरंत जाना चाहते हो." रघु नाथ ने पूछा.
तभी डॉक्टर आ गया.
"लो डॉक्टर साहिब आ गये." रघु नाथ ने कहा.
"बड़ी ख़ुसी हुई मुझे आपको होश में देख कर मिस्टर आदित्य." डॉक्टर ने कहा.
डॉक्टर आदित्य का चेक उप करने के बाद बोला, "सब कुछ ठीक है अब. चिंता की कोई बात नही है. लेकिन अभी आराम ही कीजिए."
डॉक्टर के जाने के बाद आदित्य ने जाने की बात नही की. उसे पता था कि चाचा जी उसे नही जाने देंगे. मगर उसे हर हाल में देल्ही के लिए निकलना था. वो लेट गया वापिस बिस्तर पर चाचा जी को दीखाने के लिए. शाम घिर आई थी. आदित्य रात को आराम से निकल सकता था. उसने अपना पर्स चेक किया. ज़्यादा पैसे नही थे उसमे. शूकर है एटीम कार्ड था उसमे.
रात को सबके सोने के बाद आदित्य चुपचाप घर से निकल दिया. एक टॅक्सी पकड़ी उसने एरपोर्ट के लिए. रास्ते में उसने एक एटीम से पैसे निकलवाए. एक शोरुम से उसने नये कपड़े भी खरीद लिए, क्योंकि जिन कपड़ो में वो था वो मैले लग रहे थे. ना जाने क्यों उसकी नज़र एक जीन्स पर पड़ी और वो उसने खरीद ली. “ज़रीना को पसंद आएगी ये जीन्स.” शोरुम के ट्राइयल रूम में ही उसने कपड़े चेंज कर लिए. उसने खुद जीन्स ही खरीदी थी और खूब जच रही थी उस पर.
टिकेट आसानी से मिल गयी उसे. सुबह 4 बजे की फ्लाइट थी. आदित्य बोरडिंग पास लेकर सेक्यूरिटी चेक कराने के बाद बैठ गया बोरडिंग के इंतेज़ार में.
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RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“कैसी होगी मेरी ज़रीना, क्या बीती होगी उस पर उस सनडे को. काश मैं अपने गुस्से को शांत रख पाता तो ये नौबत ना आती. मगर मेरी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता. मुझे माफ़ करदो ज़रीना, तुम्हारा गुनहगार हूँ मैं. आ रहा हूँ अब तुम्हारे पास. जैसे ही होश आया मुझे मैं निकल पड़ा हूँ तुम्हारे लिए. पता नही किस हाल में हो तुम. तुम ठीक तो हो ना ज़रीना ?” आँखे नम हो गयी आदित्य की ये सब सोच कर.
“अगर मैं कोमा में नही होता तो बिल्कुल आता मैं ज़रीना चाहे पत्तिया बँधी होती चारो और मेरे पर आता ज़रूर.” आदित्य बहुत भावुक हो रहा था.
स्वाभिक भी था. जब प्यार आदित्य और ज़रीना के प्यार जैसा हो तो भावुक हो जाना सावभाविक है.
बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई तो आदित्य फ़ौरन उठ गया. ये अहसास कि वो अपनी ज़रीना के पास जा रहा है उसके चेहरे पर रोनक आ गई.
2 घंटे में वो मुंबई से देल्ही पहुँच गया. मगर अभी सुबह के 6 ही बजे थे. “उसी होटेल में चलता हूँ जिसमे ज़रीना के साथ ठहरा था.”
आ गया आदित्य टॅक्सी लेकर उसी होटेल में और रिक्वेस्ट करने पर रूम नो 114 ही मिल गया उसे. सुबह के 7 बज चुके थे. फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया उसने. कब 9 बज गये पता ही नही चला. रूम से चेक आउट नही किया उसने. “एक बार यही वापिस आ कर उस दिन की लड़ाई को याद करेंगे. कितने तडपे थे हम दोनो एक दूसरे से लड़ कर.”
चल दिया आदित्य ज़रीना से मिलने की उम्मीद दिल में लेकर उसकी मौसी के घर की ओर. दिल में एक अजीब सी तड़प और बेचैनी थी उसके जिसे सब्दो में नही कहा जा सकता. प्यार करने वाले इस तड़प को बखूबी समझ सकते हैं.
आदित्य को याद था अड्रेस ज़रीना की मौसी का. ठीक 10:30 पर वो ज़रीना की मौसी के घर के बाहर था. दरवाजा खड़काया उसने. मौसी ने दरवाजा खोला.
“किस से मिलना है आपको.” मौसी ने कहा.
“मुझे ज़रीना से मिलना है, प्लीज़ बुला दीजिए उसे.”
मौसी तो हैरान रह गयी ये सुन कर, “क्या तुम आदित्य हो?”
“जी हां मैं आदित्य हूँ.”
मौसी के चेहरे पर डर के भाव उभर आए. उन्होने बाहर दायें..बायें झाँक कर देखा और आदित्य को अंदर खींच लिया.
“किसी और से तो ज़रीना के बारे में नही पूछा तुमने.”
“नही मैं सीधा यहीं आया हूँ.” आदित्य ने हैरानी में कहा.
“कितने दिनो बाद आए हो. कैसी मोहबत थी तुम्हारे दिल में ज़रीना के लिए. बहुत तड़पती थी वो तुम्हारे लिए और तुम आज आए हो, एक साल बाद.”
“ज़रीना कहा है, उशे बुला दीजिए प्लीज़.” आदित्य गिड़गिडया
मौसी कुछ बोलने की बजाए खुद फूट-फूट कर रोने लगी. “वही तो पता नही चल रहा कि कहा है मेरी बच्ची.”
“आप ये क्या कह रही हैं.”
“सच कह रही हूँ बेटा, कुछ नही पता कि वो कहा है, कैसी है, किस हाल में है.”
आदित्य तो सुन ही नही सका ये सब. बहुत बेचैन हो गया वो और बोला, “ये सब कैसे हुवा, क्या आप बताएँगी.”
“पहले तुम ये बताओ कि तुम्हे आज अचानक याद कैसे आ गयी ज़रीना की. चिट्ठी में तो तुमने उसे ले जाने को लिखा था. सारा दिन वो बाल्कनी में आ-आ कर पागलो की तरह तुम्हे ढूंड रही थी. क्यों किया तुमने ऐसा मेरी बच्ची के साथ.”
“मैं कोमा में था, नही आ सकता था..अगर होश होता मुझे तो कोई ताक़त मुझे नही रोक सकती थी यहा आने से.” आदित्य मौसी को पूरी बात सुनाता है.
“अल्लाह रहम करे तुम दोनो की महोब्बत पर. मैं तो समझ ही नही पाई थी शुरू में तुम दोनो के प्यार को. ज़बरदस्ती शादी करवा रही थी ज़रीना की एमरान से.”
“एमरान…कौन एमरान.” आदित्य ने हैरानी में पूछा.
“एमरान एक ऐसा बाहरूपिया है जिसे समझने में मैने बहुत बड़ी भूल की थी. सुनो तुम्हे सब बताती हूँ तभी तुम पूरी बात समझ पाओगे.”
“तुम्हारे बारे में पता चलने के बाद, मैने तो ज़रीना को एक कमरे में बंद कर दिया था. एक हफ्ते के अंदर शादी कर देना चाहती थी ज़रीना की एमरान के साथ. ज़रीना बहुत दरखास्त करती थी मुझसे की मेरी बात सुन लो एक बार. पर मैने उसकी एक नही सुनी. पर एक रात जब मैं उसे खाना देने गयी तो वो फूट-फूट कर रोने लगी और सुबक्ते हुवे बोली, “मौसी थोड़ा सा ज़हर दे दो मुझे. मैं जीना नही चाहती. मैं आदित्य से बहुत प्यार करती हूँ. मैं उसके सिवा किसी और से शादी नही कर सकती. मेरा शरीर और मेरी रूह आदित्य की है मौसी. अगर मेरे साथ ज़बरदस्ती की गयी तो मैं जान दे दूँगी अपनी. पर मैं किसी भी हालत में एमरान शी शादी नही करूँगी. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूँगी.”
मेरा तो दिल बैठ गया ये सब सुन कर. मैने दरवाजा खोला और ज़रीना के पास आकर उस से पूछा, “आख़िर क्या कारण है की तुम उस काफ़िर के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हो.”
“प्यार करती हूँ मैं आदित्य से. वो भी मुझे बहुत प्यार करता है. उसके कारण ही जींदा हूँ मैं वरना मर जाती कब की. उसी ने मुझे दंगो से बचाया और उसी ने मुझे जीने की चाह दी. वरना मैं कब की खुद को ख़तम कर चुकी होती.” ज़रीना ने सुबक्ते हुवे पूरी कहानी सुनाई मुझे
मैने कहा, “हाई रब्बा कितना बड़ा गुनाह करने जा रहे थे हम. मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर्दे. नही होगी तुम्हारी शादी एमरान से. लेकिन ये बात अपने तक ही रखना. शमीम और उसके अब्बा को भनक भी नही लगनी चाहिए इस सब की.”
“मौसी मेरा वो खत मुझे वापिस दिलवा दो.”
“दिलवा दूँगी….एमरान अछा लड़का है वो दे देगा चुपचाप वो खत. पर एक बात बताओ तुम्हारा आदित्य तो आया नही तुम्हे लेने. उसे तो आना चाहिए था अगर इतनी महोब्बत थी तुमसे.”
“ज़रूर कोई बात रही होगी मौसी वरना आदित्य ज़रूर आता. बहुत प्यार करता है वो मुझे. मुझे जाने दो मौसी. अगर वो नही आ पाया तो मैं चली जाती हूँ. मैं नही रह सकती उसके बिना” ज़रीना रोने लगी थी ये बोलते हुवे
मुझे वो बिल्कुल दीवानी लग रही थी. मैने कहा, “तुम कैसे जाओगी अकेले और मैं साथ चल नही सकती. क्या करूँ.”
“मैं चली जाउन्गि मौसी…मुझे जाने दो…यहा मैं और रही तो घुट-घुट कर मर जाउन्गि.”
“टिकेट भी तो करवाना पड़ेगा. मैं करती हूँ कुछ. कल या परसो का टिकेट करवा देती हूँ. तुम चिंता मत करो. खाना खाओ चुपचाप मैं टिकेट का इंटेज़ाम करती हूँ.”
क्रमशः...............................
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