Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 04:00 PM,
#71
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
सब उठ गये और एक दूसरे को देखने लगे। सब के सब नंगे। मर्द तो बेशरम थे, इसलिए आराम से कपड़े पहनने लगे, किंतु मम्मी और चाची का तो शर्म से बुरा हाल था। झट से अपने कपड़े उठा कर बाथरूम की ओर भागी। रात की बात और थी। कामुकता का माहौल था और उस माहौल में कामुकता के मारे उन्होंने लाज शरम को ताक पर रख दिया था, किंतु अभी सवेरे सवेरे जब उन्होंने सामान्य माहौल में अपने नग्न देह को इतने नंगे मर्दों के बीच नुची चुदी पड़ी देखा तो लाज के मारे दोहरी हो गयीं। मैं उनकी हालत देख कर मुस्कुरा रही थी।

हरिया तुरंत फ्रेश हो कर किचन में चले गए और मैं भी पीछे पीछे किचन में कदम रखी। अब मैं उस घर की मालकिन थी। मैं ने पीछे से हरिया को बांहों से जकड़ कर बड़े प्यार से पूछा, “पतिदेव जी, अब तो मैं किचन में आ सकती हूं ना?”

“ओह रानी, बिल्कुल बिल्कुल।” कहते हुए पीछे पलटकर मुझे बांहों में भर कर चूम लिया और बोले, “अब तो तू इस घर की मालकिन है मेरी जान, जहां मर्जी जाओ” उनकी इस अदा पर मैं कुर्बान हो गई। हरिया और मैं ने सबका नाश्ता तैयार किया और करीब दस बजे हम सब नाश्ते के लिए इकट्ठा हुए। मां और चाची के चेहरे रात की बातों को सोच सोच कर लाल भभूका हो रहे थे। पंडित जी नाश्ता करने के उपरांत चले गए किंतु जाते जाते आशा और याचना भरी नजरों से मुझे देख रहे थे जिसके प्रत्युत्तर में मैं ने आंखों ही आंखों में जता दिया कि उनकी याचना को मैंने पढ़ लिया है और उनकी याचना व्यर्थ नहीं जाएगी। मैं उनसे मिलती रहूंगी।आश्वस्त हो कर पंडित जी प्रफुल्लित मन से चले गए।

नाश्ते की मेज पर ही नाश्ते के पश्चात दादाजी ने चाची, मम्मी और बड़े दादाजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, “हां, तो अब बताओ तुम लोग अपने अपने किस्से जो रात को बोल रहे थे। कामिनी के बाप के बारे में और रमा तू बता अपने बारे में, कि तेरे साथ ऐसा क्या हुआ कि तू इतनी बड़ी चुदक्कड़ बन गई है? वैसे तुझे देख कर तो ऐसा नहीं लगता है कि तुझे कई मर्दों से चुदने का कोई दुःख है।”

“हां मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं है कि मैं एक शरीफ घरेलू औरत से चुदक्कड़ औरत बन गई हूं। मैं अपने चुदक्कड़ पन से खुश हूं क्योंकि मुझे इसमें आनंद मिलता है और मैं जीने का पूरा मज़ा ले रही हूं। लेकिन आपलोग जब हमें छिनाल कहते हैं तो मुझे गुस्सा आता है। आप लोग किसी भी औरत को मना कर या जबरदस्ती चोद लेते हैं तो आप लोगों के लिए सब ठीक है, आप लोग शरीफों की गिनती में फिर भी रहेंगे, और हम औरतें अगर यही काम स्वेच्छा से या मजबूरी में करें तो हमें आपलोग छिनाल कहने लगते हैं, ऐसा क्यों?” चाची अपने मन की भंड़ास निकालने लगी थी।

“अरे नहीं रे पगली, तू तो ख्वामख्वाह नाराज हो रही है। चुदाई के वक़्त जब हम तुम औरतों को छिनाल कहते हैं तो वह सिर्फ वक्ती तौर पर दिल का उद्गार है, उत्तेजना के आवेग में निकलता हुआ महज उद्गार। उसे गंभीरता से मत ले। सिर्फ मजा ले। अब बता तेरी कहानी।” दादाजी बोले।

“ठीक है तो सुनिए। मैं शुरू में एक शरीफ घरेलू औरत थी। शादी के दस साल तक मैं एक वफादार पत्नि और एक बच्चे की अच्छी मां थी। मैं पास के सरकारी हाई स्कूल में टीचर हूं। आप लोगों को तो पता ही है कि एक दुर्घटना में मेरे पति, आपके भतीजे राकेश, की मौत आठ साल पहले हुई थी। उस समय मेरी उम्र तीस साल थी। आपके ममेरे भाई अर्थात राजेन्द्र सिंह जी, मेरे ससुर, गांव में रहते हैं। मैं अकेली, पति की मौत के बाद से विधवा मां की भूमिका निभा रही थी। लेकिन एक विधवा का जीवन कितना कठिन होता है यह तो आप सबको पता है खास कर के तब जब एक स्त्री की उम्र तीस साल की हो। मेरी जवानी मेरे लिए हर कदम में मुश्किलें पैदा करता रहता था। सारे मर्द मुझे ऐसी नज़रों से देखते थे मानों मौका मिले तो कच्चा ही चबा जाएं। स्कूल के आवारा लड़के भी कम नहीं थे। 16 – 17 साल के हमारे स्कूल के कई आवारा लड़कों का ध्यान क्लास लेते वक्त पढ़ाई में कम और मेरे तन पर ही ज्यादा रहता था। उनकी नजरों से ऐसा लगता था मानो वे मेरे कपड़े के अंदर भी मेरे नंगे जिस्म को देख रहे हों। ऐसा लगता था मानो उनका वश चलता तो क्लास रूम में ही मेरी चुदाई कर डालते। मैं हवश के भूखे ऐसे किसी भी मर्द को अपने पास फटकने नहीं देती थी। एक सीमा रेखा के बाद न कोई लड़का और न कोई व्यस्क मर्द मुझसे घनिष्ठता कर सकता था। लेकिन एक अकेली जवान औरत कब तक अपने आप को इस समाज की बुरी नजरों से बचा कर रख सकती थी।”
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11-27-2020, 04:00 PM,
#72
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चाची ने आगे बताना शुरू किया, “यह पांच साल पहले की बात है। हमारे स्कूल के सालाना फंक्शन के लिए तैयारी के दौरान अभ्यास और रिहर्सल के कारण घर लौटने में सात आठ बज जाते थे। फाइनल रिहर्सल के दिन रात का नौ बज गया था। उस दिन बड़ी मुश्किल से एक ऑटो मिला। जैसे ही मैं ऑटो में बैठी, मुझे शराब की गंध आई। मैं समझ गई कि ऑटो वाला शराब पिए हुए है। मैं थोड़ी घबराई, किंतु मेरे पास लौटने के लिए उस ऑटो के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं था। मन ही मन भगवान का नाम लेती रही, मगर शायद भगवान की मर्जी कुछ और ही थी। ऑटो वाला करीब चालीस साल का अधेड़ आदमी था। नामकुम चौक और हमारे घर के बीच करीब डेढ़ किलो मीटर का फासला है और हाईवे से करीब दो सौ गज अंदर है। यह रास्ता घनी झाड़ियों के बीच से होकर गुजरता था। शाम होते होते यह रास्ता सुनसान हो जाता था। हाईवे से करीब सौ गज की दूरी पर अचानक ऑटो बाईं ओर घूमा और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, घनी झाड़ियों को पार कर एक खेत के पास रुक गया।

मैं घबराकर बोली, “अरे इधर कहां ले आए तुम?”

“मैं ठीक जगह ले आया हूं मैडम। चिंता मत कीजिए, मैं आपको सही सलामत घर तक छोड़ दूंगा लेकिन आधा घंटा बाद। तब तक थोड़ा मेरा साथ दीजिए।” नशे से लाल लाल आंखों से मुझे खा जाने वाली वहशी नजरों से देखते हुए बोला। मैं उसकी गंदी नीयत को समझ गई थी। उस सुनसान जगह इतनी रात को उस ऑटो वाले से मुझे बचाने कोई आने वाला भी नहीं था।

फिर भी हिम्मत जुटा कर मैं बोली, “तुम करना क्या चाहते हो?”

“कुछ खास नहीं मैडम जी, बस आपके साथ थोड़ा मजा करना चाहता हूं। आपको भी मजा आएगा, आप ऑटो से बाहर तो निकलिए” कहते हुए मेरी बांह पकड़ कर ऑटो से जबरदस्ती बाहर खींच लिया।

“छोड़ो मुझे, यह क्या कर रहे हो? मैं चिल्लाऊंगी।” मैं विरोध करती हुई खोखली धमकी दी।

“चिल्लाने से इतनी रात को कोई यहां नहीं आएगा मेरी जान। आपको पता है मैं क्या करने वाला हूं। चुपचाप मैं जो कर रहा हूं करने दीजिए। बहुत दिन से कोई औरत नहीं मिली है चोदने के लिए। आज किस्मत से आप मिल गई हैं। बिना चोदे कैसे छोड़ दूं।” वह बोल उठा।

फिर भी मैं चिल्लाई, “बचाओ बचाओ”

उस छः फुटे हट्ठे कट्ठे मर्द के सामने मेरे विरोध का कोई असर नहीं हुआ। उल्टे मेरे चिल्लाने से वह गुस्से के मारे पागल हो गया और खींच कर दो झापड़ मेरे गालों पर जड़ दिया और खूंखार आवाज में बोल उठा, “साली कुतिया चिल्लाती है। अब तक मैं इज्जत से पेश आ रहा था, हल्ला करेगी तो गला दबा दूंगा हरामजादी।”

अब मैं गिड़गिड़ाने लगी, रोने लगी, “छोड़ दो मुझे प्लीज।”

“छोड़ दूंगा, घर तक पहुंचा भी दूंगा, पहले मुझे चोदने तो दीजिए।” कहते हुए मुझे घास से भरे हुए जमीन पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गया, ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलने लगा। मेरे रोने सिसकने का उस दरिंदे पर कोई असर नहीं हुआ। फिर मेरे ब्लाऊज और ब्रा को जल्दी जल्दी खोल कर खींच खांच कर अलग कर दिया। उस चांदनी रात में मेरी चमकती हुई नंगी चूचियों को देख कर तो मानो पागल ही हो गया। पान खा-खा कर काले दांत और लाल होंठों के कारण वह और भयानक दिख रहा था, ऊपर से देसी दारू की दुर्गन्ध के कारण मैं घृणा से भर उठी थी। उसने अपने मजबूत पंजों से मेरी चूचियों को बेरहमी दबोच लिया। मैं दर्द से बिलबिला कर कराह उठी। आंखों से आंसू बह निकले। मैं फिर भी उस दरिंदे के चंगुल से आजाद होने के लिए फड़फड़ाती रही छटपटाती रही, लेकिन उस पर तो चुदाई का भूत सवार था। एक हाथ से मेरी चूचियां मसलता रहा और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी कमर तक उठा दिया और एक झटके में मेरी पैंटी को नीचे खींच लिया। अब मैं करीब करीब नंगी हो गई थी। मैं जबरदस्ती जांघों को सटाने की कोशिश करती रही मगर उसकी अमानुषि ताकत के सामने असफल रही। उसने जबरदस्ती अपनी उंगली सीधे मेरी सूखी और कसी हुई चूत में पेल दिया। पति के गुजरने के बाद पिछले पांच सालों से मैं किसी मर्द से नहीं चुदी थी, इस कारण मेरी चूत काफी कसी हुई थी। “आह” मैं पीड़ा के मारे कराह कर रह गई। मेरी कराहों को नजरंदाज करके उसने अपनी उंगली को मेरी चूत में अंदर बाहर करना शुरू किया। शुरू शुरू में मुझे काफी दर्द का अहसास होता रहा किन्तु कुछ ही देर में मेरी चूत पनियाने लगी और उसकी उंगली आराम से अन्दर बाहर होने लगी। अब दर्द के स्थान पर मुझे आनंद आने लगा और मेरी कराहट सिसकारियों में बदल गयीं। अब उसने मौका ताड़ कर फटाफट पैंट खोला और चड्डी समेत नीचे खिसका दिया। हां, इतना किया कि लंड निकाल कर मुझे उसका दर्शन कराया, “यह देख मेरा लौड़ा, कैसा है? अच्छा है ना? अब मैं इसी लौड़े से तुझे चोदुंगा।”
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11-27-2020, 04:00 PM,
#73
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पांच साल बाद मैं किसी मर्द का लौड़ा इतने करीब से देख रही थी। चांदनी रात में सब कुछ साफ़ साफ़ दिख रहा था। काले घने झांटों से भरा, सात इंच लंबा और कम से कम तीन इंच मोटा, काला काला सांप के जैसा। मैं घबरा कर बोली, “नहीं, प्लीज, मत चोदो मुझे प्लीज, मैं मर जाऊंगी।”

“चुप रह साली कुतिया, तू मरेगी नहीं, तू खुद बोलेगी चोद राजा चोद, और चोद।” वह बेहद घटिया तरीके से बोल उठा। फिर धीरे धीरे मेरे पैरों को फैला कर मेरी चूत के मुंह पर लौड़ा टिकाया और बिना किसी पूर्वाभास के एक ही झटके में पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया। “आह्ह्ह् ओह्ह्ह मर गई, आह मा्म्म्म्मा्आ्आ” मेरी दर्दनाक चीख निकल पड़ी। मैं दर्द के मारे छटपटाने लगी, किंतु उस जालिम दरिंदे को तो खून का स्वाद मिल गया था, मेरी चीख पुकार की परवाह किए बगैर दनादन लंड अंदर बाहर करने लगा और बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को मसलते हुए चोदने में मशगूल हो गया। अब सोचिए, पांच साल से किसी का लंड मेरी चूत में नहीं गया था, इतना मोटे और लम्बे लंड से एकदम टाइट मेरी छोटी हो चुकी चूत की चुदाई से मेरा क्या हाल हुआ होगा। मैं दर्द से बिलबिला उठी थी। वैसे भी मेरे पति का लंड सिर्फ करीब पांच इंच लम्बा और दो इंच मोटा रहा होगा। एक तो इतने लंबे अरसे के बाद और दूसरे मेरे पति से करीब डेढ़ गुना बड़ा लंड, तकलीफ तो होनी ही थी। लेकिन कुछ ही देर की दर्दनाक चुदाई के पश्चात धीरे धीरे मेरी चूत ढीली होने लगी और दर्द भी धीरे-धीरे गायब होने लगा और कुछ ही मिनटों के बाद मैं आराम से चुदने लगी। वह अब अपने गंदे मुंह से मुझे चूमने लगा और मेरी गांड़ के नीचे हाथ लगा कर कस कस के ठाप पर ठाप लगाने लगा। अब मुझे भी मज़ा आने लगा था और मैं भी उत्तेजित हो कर नीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवाने लगी।

“आह ओह ओ्ओ्ओ्ओह मां, आह आह अम्मा ऊऊऊऊऊऊऊऊफ्फ्फ्फ आ्आ्आ्आ रज्ज्जा्आ्आ्आ ओह ओ्ओ्ओ्ओह आह,” आंखें बंद कर के आनंद के मारे मेरे मुंह से भी उद्गार निकले लगा।

“हां रानी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह अब आ रहा है ना मज़ा, मैं बोला था ना, मजा आएगा, ओह मस्त चूत है तेरी मैडम, उफ्फ” वह मस्त हो कर बोले जा रहा था और चोदे जा रहा था। करीब आधे घंटे तक चोदने के बाद मुझे कस के दबोच लिया और फचफचा के अपने लंड का पानी मेरी चूत में डालने लगा। आनंद में मग्न खुद के और उसके झड़ने के सुख में डूब गयी और उसके गठीले शरीर से चिपक गई। जैसे ही हम दोनों खलास हुए, तुरंत ही अपने कपड़े पहन कर चुपचाप चलने को तैयार हो गये। मैं किसी तरह अपने फटे चिटे ब्रा और ब्लाउज से अपने तन के ऊपरी हिस्से को ढंक कर साड़ी वगैरह ठीक की। अंदर ही अंदर खुश हो रही थी, इतने सालों बाद लंड नसीब हुआ और चुदाई का मज़ा मिला, मगर उसके सामने प्रकट नहीं होने दी।

“आखिर बर्बाद कर ही दिया मुझे” प्रकट तौर पर बोली।

“झूठ मत बोलिए मैडम, आपको चोदने में मुझे तो बहुत मजा आया, लेकिन आपने भी कम मज़ा थोड़ी लिया है, कैसे आप बोल रही थीं आह राजा ओह राजा और कैसे मुझसे चिपक रही थीं आप।” वह बोल पड़ा।

मैं शर्मिंदा हो कर सर झुका कर रह गई। शुरू मेरे बलात्कार से हुआ मगर अंत सुखद अहसास के साथ हुआ। मेरे अंदर दबी हुई इतने सालों की चुदास फिर से जाग उठी थी।

उस ऑटो वाले ने मुझे घर तक छोड़ा और जाते जाते बोला, “मैडम, हम गरीब लोगों पर इसी तरह मेहरबानी करते रहिएगा।” मैं कुछ नहीं बोली, सिर झुका कर चुपचाप घर के अंदर चली गई। हमारे घर की नौकरानी ने बेटे को खाना खिला दिया था। मैं भी खाना खा कर बेटे को सुला कर सोते सोते सोचती रही कि वैसे भी मैं अकेली औरत कब तक अपने आप को बचाती रहती। कभी न कभी यह तो होना ही था। ऐसे भी एक अकेली विधवा औरत को किसी पराए मर्द से चुद कर अगर सुख हासिल होता है तो इसमें हर्ज क्या है। सिर्फ हमारी बस्ती के लोग ही नहीं, बाहर भी ऐसे मर्दों की कमी नहीं है जो मुझ जैसी औरतों को मौका मिलते ही चोद डालने की फिराक में रहते हैं। बस इस तथाकथित शरीफ लोगों से भरे सभ्य समाज में बदनामी न हो, इसी बात से हम डरते हैं ना? तो बदनामी का डर किसे नहीं है? इस तरह का जो भी काम होता है गुपचुप ढंग से ही तो होता है। मैं ने उसी समय ठान लिया कि अब मैं भी अपने अंदर की आग को और दबा कर नहीं जिऊंगी। शराफत का चोला ओढ़कर चुदाई का मजा लेने के लिए ऐसे बहुत तथाकथित शरीफ मर्द आसानी से मिल जाएंगे। फिर मैं ने अपने अंदर से परपुरुष के संसर्ग की ग्लानि को झटक कर दूर फेंक दिया और निश्चिंत हो कर नींद की गोद में चली गई। दूसरे दिन सवेरे जब मैं उठी, मैं दूसरी औरत बन चुकी थी। मेरे सामने नया सवेरा, नया दिन, नयी दुनिया थी। मुझमें नये आत्मविश्वास का संचार हो चुका था। जब मैं अपने विद्यालय के लिए घर से निकली तो मैं सर झुका कर नहीं, सर उठा कर चल रही थी। अपनी ओर देखते वासना की भूखी नजरों से नजरें मिला करदेखने में मुझे कोई झिझक नहीं महसूस हो रही थी। विद्यालय में भी मेरा आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्तित्व मेरे सहयोगी शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए बिल्कुल नया था।

इसके आगे की घटना अगली कड़ी में।
दोस्तो आपको कहानी कैसे लग रही है कमेंट जरूर करे
........सलील

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11-27-2020, 04:00 PM,
#74
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह एक ऑटो वाले ने मेरी चाची का बलात्कार ही सही मगर चुदाई का मजा दिया और उनकी सोई हुई भावनाओं को फिर से भड़का दिया था। उनकी सुषुप्त कामेच्छा फिर से जागृत हो गई थी। इसके आगे क्या हुआ, उन्हीं की जुबानी सुनिए।

“उस दिन मैं विद्यालय के वार्षिकोत्सव में दिनभर व्यस्त रही और शाम को करीब साढ़े छः बजे जब घर आने के लिए गेट से जैसे ही बाहर निकली, वही ऑटो वाला अपने ऑटो के साथ फिर से हाजिर हो गया। “आईए मैडम, आपको घर तक छोड़ देता हूं।” मुस्करा कर बोला। मैं समझ गई कि उसके मुंह में खून लग गया है और मेरी चूत के लालच ने उसे फिर से यहां खींच लाया है। अवश्य ही मुझे चोदने की मंशा से ही आया था। इतने सालों बाद लंड का स्वाद पुनः पा कर मेरी चूत में भी चुदास जाग उठी थी और अब मैं भी खुल कर और इत्मिनान से चुदना चाहती थी, मगर अपनी इस कामना को मैं सार्वजनिक भी नहीं कर सकती थी, इस तरह अपने विद्यालय के विद्यार्थियों और सहयोगी शिक्षकों के समक्ष तो बिल्कुल ही नहीं।

इसलिए मैं ने ऑटो वाले को आंखों के इशारे से आगे बढ़ने का इशारा किया और करीब पचास गज आगे जाकर उसके ऑटो में बैठते हुए बोली, “कमीने, इस तरह स्कूल गेट पर आकर बेशर्मों की तरह खड़े हो कर मुझे बदनाम करने का इरादा है क्या? कल तो मेरे साथ जबरदस्ती किया, अब जबरदस्ती नहीं, आराम से। किसी को भनक नहीं लगना चाहिए समझे। तू घर में अकेला रहता है या परिवार के साथ?”

उसकी बांछें खिल गयीं। “परिवार तो है, मगर बीवी दो हफ्ते के लिए मायके गई हुई है। अभी मैं अकेला हूं। आप अभी चलिएगा क्या?” खुशी से झूम कर वह पूछा।

“पहले तू अपना नाम बता।” मैं पूछी।

“मैडम मेरा नाम कालीचरण है, मगर लोग मुझे कालिया के नाम से जानते हैं।” वह बोला।

“तेरा घर कहां है? अगर दूर नहीं है तो मैं आ जाऊंगी” मैं अपने रोमांच और खुशी को दबा कर बोली।

“दूर नहीं है मैडम, आपके घर के रास्ते में ही मेरा घर है। अभी चलिए।” वह बेताबी से बोला।।

“नहीं, पहले मैं घर जाकर फ्रेश हो जाऊं फिर आ जाऊंगी। तुम मुझे अपना घर दिखा दो।” मैं बोली।

“ठीक है,” कहता हुआ ऑटो एक छोटे से मिट्टी से बने खपरैल मकान के सामने रोका और बोला, “यही मेरा घर है। शायद आपको पसंद न आए।”

“कोई बात नहीं, चलेगा” मैं अपनी उत्तेजना को बमुश्किल नियंत्रित करती हुई बोली। “मैं ठीक नौ बजे आ जाऊंगी।”

“ठीक है मैडम ठीक है” कहते हुए उसकी आंखों में वासना की भूख, बेताबी और खुशी चमक उठी। फिर वह मुझे घर छोड़ कर वापस अपने घर लौट गया।

बेटे को खाना खिला कर और सुला कर नौकरानी से कहकर कि मैं एक डेढ़ घंटे में आऊंगी, मैं धड़कते दिल से रात के अंधेरे में सुनसान रास्ते पर कालिया के घर की ओर चल पड़ी। जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया, कालिया तुरंत दरवाजा खोल कर बेताबी से बोला, “आईए मैडम, अंदर आ जाईए।” उस के मुंह से निकलती फिर वही परिचित देशी शराब की दुर्गन्ध का भभका मेरे नथुनों से टकराया। मुझे उस महक से आज कोई घृणा नहीं हुई। चौंक तो मैं तब पड़ी जब मैं ने उस खपड़ैल मिट्टी के घर के छोटे से कमरे में एक कुर्सी पर हमारे घर के सामने से रोजाना सब्जी का ठेला ले कर गुजरने वाले मंगू को बैठे देखा। उसके सामने स्टूल पर एक शराब की बोतल और दो ग्लास रखे हुए थे। मैं तुरंत कालिया से बोली, “यह यहां क्या कर रहा है?”

“मैडम, यह मेरा पड़ोसी है। बगल में ही रहता है। अचानक आज बोतल ले कर आ गया और बोलने लगा, आज यहीं पिएंगे। मेरे मना करने पर भी माना नहीं।” कालिया जवाब दिया।

“ठीक है तुम लोग पियो, मैं जा रही हूं।” मैं नाराजगी भरी आवाज में बोली और वापस पलटी।

“अरे जाती कहां हैं मैडम जी, मंगू कोई गैर थोड़ी ना है। कल आपने मुझसे अकेले मज़ा लिया, आज हम दोनों से ले लीजिए। कसम से बहुत मजा आयेगा।” कालिया ने मेरी बांह पकड़ कर मुझे वापस खींच कर वासना से ओत-प्रोत नजरों से मुझे देखते हुए कहा।

मंगू, जो तीस पैंतीस साल का हट्ठा कट्ठा सांवले रंग का जवान था, वासनामय दृष्टि से मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था, बोल उठा, “मैडम जी, कालिया और हम कोई अलग नहीं हैं। जैसा कालिया वैसा हम। थोड़ा हमको भी मज़ा दे दीजिए ना। इसने हमको सब बता दिया है। सच में आप बहुत मस्त चीज़ हैं।”

“कितने हरामी हो कालिया। मुझे रंडी समझ लिया है क्या?” मैं विरोध करती हुई बोली, “छोड़ दो मुझे कमीने, मैं सोची कि…..” बाकी बातें मेरे मुंह में ही रह गई।
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11-27-2020, 04:00 PM,
#75
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
मेरी बात काटते हुए बीच में ही कालिया बोला, “क्या कि कि? चुदवाने ही तो आप आई हैं ना? क्या मेरा लौड़ा क्या मंगू का लौड़ा? क्या फर्क पड़ता है? हम दोनों अच्छी तरह आपको चोदेंगे। खुश हो जाइएगा आप। आप भी क्या याद रखियेगा। चलिए अब नखरे मत कीजिए,” कहते हुए उसने मुझे जबरदस्ती अपनी बांहों में कस लिया और बेहताशा चूमने लगा। उसके चुम्बनों से धीरे धीरे मेरा विरोध कम होने लगा और कुछ ही देर में मेरे अंदर कामुकता का नाग जाग कर फुंफकारें मारने लगा। इतने सालों से दबी वासना की भूख, जिसे कालिया ने कल ही अपनी चुदाई से एक बार फिर से जगा दिया था, वह भूख अब मेरे नियंत्रण से बाहर हो गया था जिसके आगे मैं अपना भला बुरा सब भूल गयी। अब कालिया हो या चंगू मंगू, क्या फर्क पड़ता है? मैं ने विरोध छोड़ कर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और उनके साथ पूरे मन से सहयोग कर यौवन का आनंद प्राप्त करने हेतु समर्पित हो गई।

मेरी स्थिति को भांप कर कालिया खुश हो गया और बोला, “यह हुई ना बात। चल मंगू, मैडम को बिस्तर पर ले चल और हम मैडम जी को करवाते हैं जन्नत की सैर। मैडम जी, एक एक पैग हम और पिएंगे मगर हमारे साथ आप भी एक पैग ले लीजिए, फिर आपको इत्ता मजा आएगा कि पूछिए ही मत।”

मैं घबरा कर बोली, “नहीं बाबा नहीं, मैं दारू नहीं पीती, फिर तुम दोनों के साथ? सामुहिक चुदाई? ना बाबा ना, एक साथ नहीं, एक एक करके करो ना, मैं कहीं भागी जा रही हूं क्या?”

“मंगू, चल बना एक पैग मैडम के लिए भी, कैसे नहीं पीती है साली, अरे मेरी जान पहले पीजिए, फिर हम दोनों एक साथ आपको चोदेंगे, और ऐसा चोदेंगे कि आप भी क्या याद रखियेगा। घबराईए मत। आज के बाद आप खुद हम दोनों को घर बुला कर चुदवाने के लिए तड़पिएगा, जैसा कि इस मुहल्ले की कई औरतें तड़पती हैं।” कालिया बोला।

“अच्छा, तो तुम लोग इस मुहल्ले की और भी औरतों की चुदाई करते रहते हो?” मैं चकित हो कर पूछ बैठी।

“हां मैडम जी, हम लोग यहां की इक्कीस औरतों को चोद चुके हैं। आप नाम पूछिएगा तो एक एक औरत का नाम भी बता सकते हैं। जिन औरतों को हमने एक बार चोद लिया वे चुदवाने के लिए हमें बुलाती रहती हैं। लेकिन आपकी बात और है। उन सब औरतों में कोई भी आप जैसी मस्त नहीं हैं।आपको तो देखते ही लंड अपने आप खड़ा हो जाता है। कई दिनों से आपको चोदने की फिराक में था, कल जा कर मौका मिला, सच में बड़ा मज़ा आया।” अब इसे मैं अपनी प्रशंसा समझूं कि कालिया का मस्का, मैं निर्णय नहीं कर पा रही थी और न ही करना चाहती थी। खैर, चुदने की बेकरारी में सोची कि एक पैग लेने में क्या हर्ज है, मंगू के हाथ से पैग ले कर दारू की दुर्गन्ध से बचने के लिए सांस रोक कर ही सांस में हलक उतार दिया। ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे गले में तेजाब डाल दिया हो। इस बीच कालिया मेरी चूचियां मसलता रहा। मुझ पर तुरंत ही नशा चढ़ने लगा और साथ ही चुदास की बेकरारी भी। उस बात को ज्यादा तूल देना आवश्यक नहीं समझी कि ये एक नहीं दो हैं। चलो एक मर्द का मज़ा तो ले ही चुकी हूं, आज दो दो मर्दों का मज़ा भी ले कर देख लेती हूं।

जैसे ही मेरा पैग खत्म हुआ, उन लोगों ने भी एक सांस में फटाफट अपने पैग डकार लिए और मंगु अपनी मजबूत बाहों से मुझे गोद में उठा कर दूसरे कमरे की ओर बढ़ा। वह कमरा भी काफी छोटा सा था, करीब आठ बाई आठ का होगा। एक सिंगल तख्तपोश और उसपर बिछा गंदा सा चादर। कमरे में सीलन की बदबू और 60 वाट के एकलौते बल्ब की रौशनी। मंगू ने मुझे उसी गंदे बिस्तर पर लिटा दिया।

“आज हम आपको पूरा नंगा कर के चोदेंगे। कल तो सिर्फ साड़ी उठा के चोदा था।” कहते हुए उन लोगों ने मिलकर मेरे शरीर से सारे कपड़े उतार दिए और मेरे कामोत्तेजक तन को कुछ पल एक टक देखते रह गए। दोनों की आंखों में भूखे भेड़ियों सी चमक आ गई थीं। मंगू से और बर्दाश्त नहीं हुआ और फटाफट अपने कपड़े उतार कर पूरा नंगा हो गया। उसका छः फुटा गठा शरीर और ओह ओ्ओ्ओ्ओह मां, लंड करीब आठ इंच लम्बा फनफनाता हुआ, गजब का मोटा। कालिया के लंड से भी बड़ा। अगर मैं हल्के नशे में नहीं रहती तो अवश्य दहशत में आ जाती। मगर इस वक्त तो मैं नशे और चुदास के मारे पागल हुई जा रही थी।

“कसम से यार, आज तक इतना मस्त माल चोदने को पहली बार मिला है। क्या मस्त चूची है, ओह क्या मस्त चूत है, उफ्फ और गांड़ इतना बड़ा और चिकना। आज मजा आएगा चोदने का।” मेरे शरीर के हरेक अंग को छू छू कर मंगू बोल रहा था। मैं उसके स्पर्श से उत्तेजित होती जा रही थी। अब तक कालिया भी नंगा हो चुका था।

” मैं बोला था ना, मस्त माल मिलेगी चोदने के लिए। अब देख क्या रहा है साले, चल शुरू कर चुदाई, देख नहीं रहे मैडम की चूत कैसे पनिया कर फक फक कर रही है।” कालिया बोला। सच में मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। मंगू तुरंत मेरे पैरों को फैला कर जांघों के बीच आ गया और अपने फुंफकार मारते लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रख कर रगड़ना चालू किया। “आह्ह्ह ओ्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्,” मैं सिसक उठी। लोहा गरम था, हथौड़ा मारने की देर थी। फिर मंगू अपने लौड़े पर दबाव बढ़ाने लगा, धीरे धीरे उसका मोटा लौड़ा मेरी चूत को फैलाता हुआ अन्दर घुसा जा रहा था और मेरी सांसें जैसे रुक सी गई थी। धीरे धीरे उसने पूरा लौड़ा मेरी चूत में घुसेड़ ही दिया। ऐसा लग रहा था मानो उसके लंड का सुपाड़ा मेरी कोख में दस्तक दे रहा हो।
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11-27-2020, 04:00 PM,
#76
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह मां्आ्आ्आ्आ, म्म्म्आ्आ्आ्आर्र्र्र्र डा्आ्आ्आल्आ्आ्आ रे मंगू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ” मेरे मुंह से दर्दनाक कराह निकल पड़ी।

“मैडम जी यह मंगू का लौड़ा है, कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे का नुनी नहीं, थोड़ा धीरज रखिए,” कहते हुए एक पल रुका और फिर लंड बाहर निकालने लगा। सुपाड़ा अन्दर ही रहने दिया और इसके बाद तो मानो क़यामत ही ढा दिया। एक झटके में एक करारा ठाप मार कर फिर से जड़ तक ठोक दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” मैं दुबारा कराह उठी। अगर शराब का नशा नहीं होता तो मैं चीख पड़ी होती। लेकिन एक अद्भुत आनंद भी मिल रहा था मेरी चूत में उसके मोटे लंड के घर्षण का। इसके बाद तो फिर मंगू कहां रुकने वाला था, दनादन आठ दस ठाप लगा कर जैसे मेरे दर्द को छू मंतर कर दिया। मैं मस्ती में भर कर मंगू के होंठों को चूमने लगी। मंगू अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल कर चुभला रहा था। फिर मंगू मुझे लिए दिए पलट गया और सरक कर फिर बिस्तर के बीच में आ गया। अब मंगू नीचे था और मैं ऊपर। इसी समय मैं ने पीछे से मेरी गांड़ में दस्तक महसूस किया। मैं ने सर घुमा कर देखा तो पाया कि कालिया मेरे पीछे आ चुका था और अपना लौड़ा मेरी गांड़ की छेद पर रख रहा था।

मैं घबरा गई और बोली, “मत कर कालिया, मेरी गांड़ में मत कर, प्लीज, मर जाऊंगी मैं।” मैं हटना चाहती थी, बचना चाहती थी कालिया के लौड़े से मेरी गांड़ में होने वाले हमले से, लेकिन मंगू ने मुझे इस कदर जकड़ रखा था कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। इधर कालिया अपने लौड़े पर थूक लगा कर मेरी गांड़ में दबाव बढ़ाने लगा और देखते ही देखते मेरी कसी हुई गांड़ के सुराख कोई चीरता हुआ अन्दर घुसाता चला गया। ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी गांड़ में चाकू घुसेड़ दिया हो। दर्द के मारे मेरी आह निकल पड़ी और नशे में होने के बावजूद मेरी आंखों से आंसू बह निकले।

“ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह फाड़ दिया मेरी गांड़ मादरचोद हाय राम” मैं सिर्फ कराह कर रह गई। चीख भी नहीं सकती थी।

“चुप हो जा रंडी, अभी देता हूं तुझे मजा। ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, क्या मस्त गांड़ है ओह ओ्ओ्ओ्ओह मस्त टाईट है आह, मजा आ रहा है मैडम, ऐसा गांड़ जिंदगी में कभी नहीं चोदा।” बड़ी बेशर्मी और बेरहमी से मुझे दबोच कर चोदते हुए कालिया बोला। पूरा लंड अन्दर घुसा कर एक पल के लिए कालिया रुका और फिर तो मुझ पर जैसे क़यामत बरपा हो गया। कालिया भी मेरी कमर पकड़ कर कुत्ते की तरह पीछे से दनादन मेरी गांड़ का भुर्ता बनाने लग गया। कुछ ही क्षण की वेदना के बाद मुझे जो मजा मिलने लगा उसे बता पाना मुश्किल था। चूत में मंगू का लौड़ा और गांड़ में कालिया का लौड़ा घमासान हलचल मचा कर मुझे स्वर्ग में पहुंचा दिया था। करीब आधे घंटे तक दोनों ने मुझे चोद चोद कर मस्ती के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर दिया। फिर कुछ ही पलों के अंतराल में दोनों झड़ने लगे और मुझे पूरी तरह से तृप्त कर दिया। मैं इस दौरान दो बार झड़ चुकी थी।

“आह राजा मजा आ गया, तुम दोनों सच में बहुत मस्त चुदक्कड़ हो जी। मुझे फिर से औरत होने का अहसास करा दिया।” जैसे ही वे खलास हो कर निवृत्त हुए, मैं उनके नंगे बदन से बारी बारी से लिपट लिपट कर उन्हें अपने चुंबनों से सराबोर कर बैठी। वे भी प्रतिदान में मुझे अपने बीच भींच कर चुंबनों की झड़ी लगा बैठे।

“हमने कहा था ना कि खूब मज़ा देंगे हम। कैसा लगा?” कालिया पूछा।

“उफ्फ राजा, स्वर्ग का सुख दे दिया तुम दोनों ने तो।” मैं बोली। करीब पांच मिनट बाद ही फिर से चुदाई का दूसरा दौर शुरू हुआ और यह भी करीब आधे घंटे तक चला। इस बार कालिया मेरी चूत का भोग लगाया और मंगू मेरी गांड़ का। मुझे तो निहाल कर दिया दोनों ने। करीब बारह बजे मैं उनके घर से थक कर चूर, लस्त पस्त, लड़खड़ाते हुए निकल कर अपने घर तक आई और दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खोल कर मेरी हालत देख कर मेरी नौकरानी के मुख पर रहस्यमयी मुस्कुराहट खेलने लगी। वह पैंतीस साल की एक विधवा औरत थी और शायद उसकी अनुभवी आंखों ने मेरी हालत देख कर सब कुछ समझ लिया था। उसका नाम कमला था। मुझे तो बाद में पता चला कि कालिया और मंगू की चुदाई लिस्ट में कमला का भी नाम शामिल है। अब जो भी सोचना है सोचती रहो, भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी सोच, मुझे तो स्वर्गीय सुख का रास्ता मिल गया था। बिना कुछ बोले सीधे अपने बिस्तर पर धम्म से गिर कर लंबी हो गई। उस दिन के बाद मैं कालिया और मंगू से मिलती रहती थी और उनके साथ साथ हमारी बस्ती के और भी कई लोगों से चुदवाने लगी थी। परचून की दुकान वाला पचपन साल का छद्दू सेठ, कोने में रहने वाले सिंह जी का अठारह साल का लड़का समीर, हमारे घर की लाईन में चौथे घर के चालीस साल के श्रीवास्तव जी, गली का टेलर मास्टर, 60 साल का दढ़ियल अंसारी, उसी के बगल वाले दुबले पतले काले 45 साल के मोची, हमारे गांव का मुखिया नाटा मोटा काला कलूटा सुखराम हांसदा और हमारे थाने का दरोगा ठाकुर साहब, सबसे मैं चुदती रहती हूं। इनके अलावे मेरे स्कूल के 55 साल के हेडमास्टर और उनका बूढ़ा चपरासी भी कभी कभी चोदते रहते हैं, आप लोग भी तो बहती गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं। यह सब कुछ भगवान की दया से अब तक ढका छिपा ही है और आशा करती हूं कि भविष्य में भी मैं सफलता पूर्वक इसी तरह जिंदगी बिता लूंगी। यही मेरी चुदाई भरी सुखद जिंदगी है और मैं इस जिंदगी में बहुत खुश हूं। जो मेरी चुदाई के राजदार हैं वे इज्जतदार लोग मेरे सेक्सी शरीर का रसपान भी करते रहते हैं इसलिए राज खुलने का भय भी नहीं है और समाज के लोगों के बीच शराफत का चोला ओढ़कर आराम से जी रही हूं।”

“वाह रमा, बहुत खूब। चलो तुम खुश हो इस जिंदगी में तो हमें क्या। तुम खुश रहो बस।” दादाजी बोले। मैं सोच रही थी कि सच में औरत होना कितने नसीब की बात है। अगर औरत खूबसूरत हो तो फिर बात ही क्या है। सिर्फ एक ही खास बात हमारे अंदर होनी चाहिए, और वह है खुद पर विश्वास और नियंत्रण, वरना समाज की नजरों में सार्वजनिक रुप से छिनाल का धब्बा लगने में देर नहीं लगती है और उस औरत का जीना दुश्वार हो जाता है। चाची की कहानी सुनते हुए एक घंटा कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। कहानी काफी उत्तेजक था। सभी उत्तेजित हो चुके थे किंतु 11 बज रहे थे और हरिया को खाना भी बनाना था, अतः हरिया उठा और किचन की तरफ बढ़ा, लेकिन जाने से पहले मुझे सबके सामने बांहों में भर कर एक जोरदार चुम्बन दिया और बोला, “मन तो कर रहा है अभिए चोद लूं, मगर खाना भी बनाना है।”

“हरिया, अब कामिनी हमारी पत्नी है, कहीं भागी नहीं जा रही है। खाना खाने के बाद कामिनी की मां अर्थात हमारी सासू मां से हमारे ससुर अर्थात कामिनी के पापा की गांडूपनई के बारे में सुनेंगे और हमारी दुल्हन के साथ रासलीला भी करेंगे। जा तू खाना बना।” दादाजी बोले।

“मैं भी चलती हूं किचन में, हरिया के साथ खाना बनाने।” मैं बोली और उठ कर किचन की तरफ बढ़ी।

इस के बाद की कड़ी में मैं बताऊंगी मेरे पापा के समलैंगिक होने की कथा। तब तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
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11-27-2020, 04:04 PM,
#77
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
हां तो मेरे प्यारे सुधी पाठकों, मैं ने पिछली कड़ी में बताया कि किस तरह चाची के वैधव्य जीवन में एक ऑटो वाले ने प्रवेश किया और उसका बलात्कार करके उसके अंदर की दबी हुई वासना की चिंगारी को फिर से हवा दे दिया। सिर्फ हवा ही नहीं दिया, बल्कि मंगू के साथ मिलकर चाची के अंदर कामुकता की आग को और भड़का दिया। वे लोग चाची के जिस्म मनमाने ढंग से भोग भोग कर अपनी कामपिपाशा शांत करते रहे और उन कामुकतापूर्ण खेलों में चाची ने जो अद्भुत आनंद का रसास्वादन किया, परिणाम स्वरूप उसकी वासना की आग इतनी भड़क उठी कि किसी भी गैर मर्द की अंकशायिनी बनने में उसे कोई झिझक का अनुभव नहीं होता था। चाची की अदम्य कामपिपाशा का बांध खुल चुका था। मैं चकित थी कि इन सब बातों को मेरे पतियों और मेरी मां ने बड़ी रुचि से सुना और चाची के कृत्यों पर कोई प्रतिक्रिया देने की जगह एक तरह से उनकी जीवन शैली पर खुशी खुशी स्वीकृति की मोहर लगा दी।

मेरा जीवन दर्शन भी कुछ इसी तरह का था। अपनी जिंदगी अपने अंदाज में अपने शर्तों पर, स्वतंत्रता पूर्वक जीने का, यदि इससे किसी को तकलीफ़ न हो तो।

दोपहर खाने के पश्चात जब हम इकट्ठे बैठे थे उसी दौरान दादाजी ने मेरी मां से कहा, “अब तू बता लक्ष्मी क्या बता रही थी अपने पति, मेरे बेटे और कामिनी के पिता अशोक की नामर्दी और गांडूपन के बारे में।”

“छि: मैं कैसे बताऊं?” मेरी मां बोली।

“अरे बता कर अपने दिल का बोझ हल्का कर ले सासू मां, अब हमसे का पर्दा।” दादाजी बोले।

“ठीक है, तो मैं बताती हूं उसकी नामर्दी के बारे में, लेकिन उसके गांडूपन के बारे में कामिनी के बड़े दादाजी बेहतर जानते हैं, वही बताएंगे।” मेरी मां बोली।

“ठीक है, वह मैं बताऊंगा।” बड़े दादाजी बोले।

“तो सुनिए। हमारे सुहागरात में जब कामिनी के पापा मेरे पास आए तो ज्यादा खुश नहीं दिख रहे थे। उन्होंने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा “तुम बहुत थक गई होगी, काफी रात हो गई है, तुम आराम से सो जाओ, मैं भी सो जाता हूं।” फिर वे सुहाग सेज पर एक तरफ लेट गये। मेरे तो सारे सपने एक पल में चूर चूर हो गये। मैं फिर भी हिम्मत नहीं हारी। बेशर्मी से घूंघट हटा कर उनके चेहरे की ओर देखा। कितना खूबसूरत चेहरा था। गोरा रंग, घुंघराले बाल, मासूम सा चेहरा, लाल लाल होंठ, जैसे लिपस्टिक लगाया होगा। मुझे उनपर बहुत प्यार आ रहा था।

फिर मैं बेशर्मी से उनके पास आई और बोली, “क्या हुआ जी? मैं थकी हुई नहीं हूं। आप को कोई प्रॉब्लम है क्या?”

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।” वे बोले।

“फिर ऐसी बेरुखी क्यों? मुझसे कोई समस्या है क्या?” मैं पूछी।

“नहीं तो” उन्होंने कहा।

मैं ने हौले से उनके सीने पर सर रख दिया और हाथ उनके सीने पर फेरने लगी। धीरे से उनका हाथ भी मेरी पीठ पर आ गया और वे भी मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगे। धीरे धीरे वे खुल रहे थे। फिर मैं अपना चेहरा उनके चेहरे की ओर उठाई, वे एकटक मेरी खूबसूरती को निहारने लगे। फिर उन्होंने दोनों हाथों में मेरा चेहरा लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पहले हौले से चूमा, जिसके प्रत्युत्तर में मैं भी अपने होंठ खोल दी और उसके बाद वे मुझे बेहताशा चूमने लगे। अब मैं समझ गई कि वे उत्तेजित हो रहे हैं। अब वे एक हाथ से मेरे ब्लाऊज खोलने लगे। मैं उन्हें सहयोग करने लगी और उनकी शेरवानी की बटन खोलने लगी। इधर मेरी ब्लाऊज खुली तो फिर मेरी ब्रा के ऊपर से ही मेरे उन्नत उरोजों को सहलाने लगे। मुझे बेहद खुशी हो रही थी कि अंततः मैं अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें उत्तेजित करने में कामयाब हो रही थी। फिर धीरे धीरे एक एक करके मेरी ब्लाऊज खुली, ब्रा खुली, साड़ी खुली, पेटीकोट खुली और अन्ततः पैंटी भी उतर गई। मेरी खूबसूरत देह को देख कर उनकी आंखों में प्रशंसा मिश्रित प्रसन्नता नृत्य करने लगा। वे मेरी नंगी देह को सर से लेकर पांव तक चूमने लगे। मैं रोमांचित हो उठी। मैं भी बेकरारी में उनकेे सारे कपड़े उतारने में सहयोग करने लगी। कुछ ही पलों में वे भी मादरजात नंगे हो गए। वाह क्या बदन था उनका। पूरा चिकना छरहरा शरीर। गोरा चिट्टा। बदन में एक भी बाल नहीं और न ही कोई दाग। लेकिन मुझे थोड़ी निराशा इस बात की थी कि उनका शरीर स्त्रियों की तरह कोमल था और लिंग सिर्फ चार इंच लम्बा। सीना भी करीब करीब स्त्रियों की तरह अर्धविकसित चूचियों की तरह। खैर फिर भी आकर्षक व्यक्तित्व था और अब वह मेरा पति था। चेहरे की मासूमियत ने भी मेरा मन मोह लिया था। फिर वह पल भी आ गया जो पल एक स्त्री को स्त्रीत्व की संपूर्णता का अहसास कराता है। वे थोड़ा झिझक रहे थे किंतु मैं ने अब कमान अपने हाथ में संभाल लिया था, आखिर मैं भी खेली खाई औरत थी, इस हरिया के हरामीपन की वजह से।”
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11-27-2020, 04:04 PM,
#78
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“चुप साली रंडी, तुझे मजा नहीं आ रहा था क्या?” हरिया बीच में ही बोल उठा।

“साले कुत्ते, मैं तो नादान थी उस वक्त। तूने ही ना मेरी नादानी का फायदा उठाकर कर मुझे चुदाई का रास्ता बताया।” मेरी मां विफर उठी।

“अरे हरामखोरो अब लड़ना बंद करो और चुपचाप लक्ष्मी का किस्सा सुनो” दादाजी डांटे।

“ठीक है तो सुनिए। फिर मैं उनके ऊपर चढ़ गई और अपने दोनों पैरों को फैला कर उनके चार इंच के टनटनाए लिंग के सुपाड़े पर अपनी चूत का मुंह रख दिया और धीरे-धीरे नीचे दबाव देने लगी। मैं किसी कुंवारी कन्या की तरह आह आह करते हुए दर्द का नाटक करने लगी और अशोक भी मस्ती में आ गया और उनके मुख से भी आनंद भरी सिसकारी निकल पड़ी। जब पूरा लिंग मेरी चूत में घुस गया तो मैं धीरे धीरे कमर ऊपर नीचे करने लगी। ऐसा करते करते दो मिनट बाद मैंने ने उन्हें अपने ऊपर ले लिया और मैं नीचे हो गई। अब अशोक के लंड को चुदाई का मज़ा मिल गया था, वे ऊपर से धकाधक चोदने लगे। करीब तीन मिनट बाद ही उन्होंने मेरी चूचियों को जोर से पकड़ लिया और एक लंबी सांस छोड़ते हुए खलास हो गये। उफ्फ, मेरी निराशा का पारावार न रहा। मैं झुंझला उठी। अभी तो मैं जोश में आ ही रही थी। वे ढीले हो कर एक ओर लुढ़क गये। शायद शर्मिंदा भी थे। मैं ने उनकी अवस्था को समझा और उन्हें सान्त्वना देते हुए उनके सीने पर हाथ फेरने लगी और उनके एक हाथ को मेरी चूत पर रख दिया और रगड़ना शुरू किया। उन्होंने मेरा इशारा समझ लिया और मेरी चूत के भगांकुर को अपनी उंगली से रगड़ना चालू किया और कुछ ही मिनटों में मैं भी स्खलन के करीब पहुंच गयी, पूरा बदन थरथरा उठा, मैं अकड़ने लगी और तभी मेरा स्खलन होने लगा। करीब एक मिनट तक मैं उनके नंगे जिस्म से कस कर चिपकी रही फिर निढाल हो गई। मैं ने उन्हें एक प्याार भरा चुम्बन दिया और हम एक दूसरे से लिपट कर सो गए। दूसरे दिन वे मुझसे नज़रें नहीं मिला रहे थे किंतु मैं ने परिस्थिति से समझौता कर लिया था और मान लिया था कि भगवान ने मेरी किस्मत में यही

लिखा है और इसे मैं नहीं बदल सकती। मैं ने हालात से समझौता करना ही अच्छा समझा। दूसरी रात के लिए मैं ने कुछ अलग ही सोच रखा था। जब हम बिस्तर पर आए, उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा और दूसरी ओर मुंह फेर कर सोने का नाटक करने लगे। पिछली रात के अनुभव के कारण शायद वे शर्मिंदा थे। मैं ने फिर अपनी ओर से पहल करने की ठानी।

मैं उनके पीछे से लिपट गई और बोली, “क्या हुआ जी, आप नाराज़ हैं मुझसे?”

“नहीं तो। मैं शर्मिंदा हूं खुद से कि मैं तुम्हें पूरा सुख नहीं दे पाया।” उन्होंने कहा।

“छि: कैसी बातें करते हैं जी। इसमें शर्मिंदा होने की क्या बात है। आप दूसरी तरह से कोशिश तो कर के देखिए।” मैं ने हिम्मत बंधाते हुए कहा। वे मेरी ओर मुड़े और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखने लगे। मैं उस समय पूरी बेशरम हो उठी थी। मैं ने उन्हें बांहों में भर लिया और उनके होंठों पर गरमागरम चुम्बनों की बौछार करने लगी। धीरे धीरे वे फिर से जोश में आने लगे। मैं उस वक्त नाईटी में थी। वे भी मुझे बांहों में जकड़ कर चूमने लगे। धीरे धीरे हम फिर से निर्वस्त्र हो गये और एक दूसरे से गुंथ गये। लेकिन मैं आज कुछ और करना चाहती थी। मैं उनके नंगे जिस्म को चूमते हुए उनके लंड तक पहुंच गई और उनके लंड को चाटने लगी। फिर मैंने उनके लंड को मुंह में ले कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। उस वक्त मैं जान बूझ कर उनके साथ 69 की पोजीशन में आ गई थी और अब मेरी चूत उनके चेहरे के सामने थी जिसे मैं धीरे धीरे नीचे करके ठीक उनके मुख के पास ले आई और हौले हौले उनके होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया। अशोक अब तक जोश में आ चुका था और उनका चार इंच का लंड करीब करीब पांच इंच का हो चुका था जो कि शायद पूर्ण उत्तेजित अवस्था में अधिकतम था। अब अशोक भी अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने में मग्न हो गया। मैं गनगना उठी और तुरंत ही झड़ने के करीब पहुंच गई। यह खेल सिर्फ पांच ही मिनट चला। अशोक तो वैसे भी तुरंत झड़ने वाला था। उनके लंड की स्थिति से ही मैं समझ गई कि वह कुछ ही सेकेंड का मेहमान है, मैंने तुरंत पोजीशन बदला और गप्प से उनके लंड को अपनी चूत में समा लिया और लो, छरछरा कर दोनों एक साथ झड़ने लगे।

“आह रानी ओह मेरी जान” वे सिर्फ इतना ही बोल पाए। “हां राजा ओह मेरे स्वामी उफ्फ मां मैं गई” कहते कहते हम दोनों एक दूसरे से चिपक गये और एक साथ स्खलन के अभूतपूर्व आनंद में डूब गये। एक बार खलास हो कर वे तो निढाल हो कर लुढ़क गए और कुछ ही देर में निद्रा की आगोश में चले गए जबकि मेरी आंखों से निद्रा कोसों दूर थी। कहां मैं एक ही चुदाई में दो दो तीन तीन बार झड़ने वाली, इस एक पांच मिनट की चुदाई में कहां मन भरता भला। खैर किसी तरह मन मसोस कर दिन काटती रही। फिर हरिया से चुद कर मां बनी और फिर आप लोगों ने मुझेचोद चोद कर मेरी चुदास की आग में घी डालने काम किया। कामिनी के पापा के मानसिक संतोष के लिए उनसे भी चुदवाती रहती थी, हालांकि मुझे यह सिर्फ रस्म अदायगी ही लगता था। इसी दौरान कामिनी के बड़े दादाजी से मुझे पता चला कि अशोक को गांड़ मरवाने की आदत है। मैं समझ गई कि यही कारण है कि वे औरतों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते हैं। उन्हें औरतों के बनिस्पत मर्द बहुत पसंद हैं। बड़े ससुरजी ही उनके समलैंगिक होने की कहानी अच्छी तरह बता सकते हैं, क्योंकि इनको अशोक के गांड़ मरवाने की आदत का ठीक ठीक पता है और जिसका इन्होंने खूब मज़ा भी लूटा है, अत: आगे की कहानी उन्हीं के मुंह से सुुुनिए।” इतना कहकर मेरी मां चुप हो गई और बड़े दादाजी की ओर देखने लगी।

इसके बाद मेरे पापा के समलैंगिक संबंधी विस्तृत वर्णन आपलोग मेरे बड़े दादाजी की जुबानी अगली कड़ी में पढ़िएगा।
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11-27-2020, 04:04 PM,
#79
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि मेरी मां किस प्रकार मेरे पापा की नामर्दी को अपनी सुहागरात से झेलती आ रही थी और किसी प्रकार अपनी वासना की आग को बुझाने की चेष्टा करती हुई दिन बिता रही थी। फिर उन्होंने मेरे पापा के समलैंगिक होने की बात पता चली, जिसके राजदार बड़े दादाजी थे, जिन्होंने मेरे पापा के समलैंगिक रुझान का भरपूर लुत्फ उठाया और आज तक उठाते आ रहे हैं। इसलिए मेरी मां ने मेरे पापा के समलैंगिक संबंधों की विस्तृत जानकारी देने के लिए बड़े दादाजी की ओर दृष्टि फेरी। बड़े दादाजी कुछ पल चुप रहे फिर उन्होंने बोलना शुरू किया :-

“ठीक है, अशोक के गांडूपन की बात मुझसे सुनो।” इतनी देर चुप रहने के बाद बड़े दादाजी ने मुह खोला। सब उत्सुकता से उनकी ओर देखने लगे।

“मैं जब दस साल पहले जमशेदपुर आया था एक शादी में शरीक होने के लिए उस समय मुझे पता चला कि अशोक को गांड़ मरवाने का बहुत शौक है और गांड़ मरवाने में उसे बहुत मज़ा आता है। वह शादी थी अशोक की ममेरी बहन रेखा की। तुम भी तो आए थे।” दादाजी की ओर मुखातिब हो कर बड़े दादाजी बोले।

“हां मुझे याद है, आगे बोलिए” दादाजी बोले।

बड़े दादाजी ने आगे बोलना शुरू किया, “अशोक उस दिन बहुत ही सुन्दर दिख रहा था। भीड़ में भी बिल्कुल अलग। उसका बदन, जैसा कि अभी लक्ष्मी ने बताया और सबको पता भी है कि बिल्कुल लड़कियों की तरह है। मुझे करीब दस दिनों से किसी औरत को चोदने का मौका नहीं मिला था। वहां जा कर लक्ष्मी को देखा कि वह बहुत व्यस्त है, किसी और औरत को फंसा कर चोदने का सारा प्रयास व्यर्थ हो रहा था, मैं बेहद व्याकुल था चोदने के लिए। किसी भी औरत को देख कर मेरा लौड़ा खड़ा हुआ जा रहा था, तभी मेरी नज़र अशोक पर पड़ी। उस दिन पता नहीं मुझे क्या हुआ कि अशोक को देख कर ही मेरा लौड़ा टाइट हो गया। अशोक भीड़ में खड़ा हो कर शादी की रस्म देखने में मग्न था। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और भीड़ को चीरते हुए ठीक अशोक के पीछे सट कर खड़ा हो गया। मेरा खड़ा लन्ड ठीक अशोक की गांड़ की दरार पर सटा हुआ था और मैं हल्के हल्के उसकी गांड़ पर दबाव दे रहा था। उसका कद करीब करीब पांच फुट छः इंच का होगा, इसलिए मैं हल्का सा घुटना मोड़ कर खड़ा ठीक उसकी गांड़ के छेद पर दस्तक दे रहा था। वह चूड़ीदार पाजामा पहना हुआ था इसलिए जरूर उसने मेरे लंड को अपनी गांड़ में चुभता हुआ अनुभव कर लिया होगा और तब मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने भी हौले हौले अपनी गांड़ पीछे ठेलना शुरू किया। फिर धीरे से सिर घुमाकर पीछे देखा और मुझे देख कर थोड़ा शरमा गया लेकिन उसके होंठों पर मुस्कान थी। मेरा मन बढ़ गया। मैं अपने हाथों से उसकी गोल गोल गांड़ को सहलाने लगा।

“यह क्या कर रहे हैं बड़े पापा?” वह मेरे कान में फुसफुसाया।

“अच्छा नहीं लग रहा है?” मैं उसकी कान में फुसफुसाया। वह बोला कुछ नहीं लेकिन सिर्फ सिर हिला कर जता दिया कि उसे अच्छा लग रहा है। फिर वह धीरे से दाहिना हाथ पीछे ले कर धोती के ऊपर से ही मेरा लौड़ा सहलाने लगा। मैं समझ गया कि अशोक को यह सब पसंद आ रहा है।

मैं धीरे से उसके कान में फुसफुसाया, “बेटा, चलो थोड़ा बाहर घूम आते हैं।”

अशोक की सांसें बहुत जोर जोर से चल रही थीं, “चलिए” वह बोला।

जब हमलोग बाहर निकल रहे थे तो अशोक के दोस्तों में से किसी की हल्की सी आवाज सुनाई दी, “साला बूढ़ा हमारा माल खाने के चक्कर में है।” मैं अनसुना करते हुए अशोक के साथ बाहर निकल कर घर के बगल में घनी झाड़ियों के पीछे चला गया। मैं ने दिन में देखा था कि वहां घास से भरा हुआ एक छोटा सा मैदान है। वहां पहुंच कर मैंने चारों तरफ देखा, सुनसान जगह थी, चांदनी रात में वह जगह काफी महफूज थी उस काम के लिए जो मैं करने जा रहा था।

मैं सीधा उससे पूछ बैठा, “बेटा तुझे मालूम है ना हम यहां क्यों आए हैं?”

“हां बड़े पापा, मुझे खूब पता है आप क्या चाहते हैं।” वह बोला। मुझे और कुछ सुनने की जरूरत नहीं थी। मैं सीधे उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके रसीले होंठों को चूमने लगा। उसकी छाती पर जैसे ही हाथ लगाया, ऐसा लगा मानो किसी चौदह साल की लड़की की तरह छोटी छोटी चूचियां हों। उसकी गांड़ तो मैं पहले ही पकड़ कर देख चुका था, जो किसी लड़की की तरह मस्त गोल गोल थी। मैं और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। फटाफट उसके कपड़े उतारने लग गया और वह भी मेरी धोती खोलने लगा। कुछ ही पलों में हम बिल्कुल नंगे हो गए। उसके लड़कियों की तरह शरीर को देख कर मेरा लौड़ा तो एकदम फनफना कर खड़ा हो गया। मैं धोती बिछा कर उसे लेकर सीधे जमीन पर लेट गया और उसकी चूचियां दबाने लगा। वह मस्ती में आह उह कर रहा था।

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11-27-2020, 04:04 PM,
#80
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
फिर मैंने अपना टन टन करता लौड़ा उसके हाथ में दिया तो एक बार तो घबरा गया, “बाप रे बाप, इतना बड़ा लंड! उफ्फ बड़े पापा, आपका लौड़ा तो बहुत बड़ा है। फाड़ ही दीजियेगा आज तो आप मेरी गांड़।”

“अरे नहीं बेटा कुछ नहीं होगा, चिंता मत करो। सभी पहली बार यही कहते हैं, फिर खूब मजे से चुदवाते हैं।” मैं उसके डर को समझ कर बहलाने फुसलाने लगा। मैं जानता था कि 7″ लंबा लंड औसत से थोड़ा ही ज्यादा है लेकिन 3″ मोटा वाकई औसत से काफी मोटा है। मैं यह भी जानता था कि मीठी मीठी बातों में उलझा कर किसी तरह एक बार उसकी गांड़ में लंड घुसा लूं तो फिर धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।

फिर मैंने उससे कहा, “ले बेटा मेरा लौड़ा थोड़ा मुह में ले कर चूसो, डरो मत, मजा आएगा, तुझे भी और मुझे भी।” वह मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगा। जिस ढंग से वह चूस रहा था, मैं समझ गया कि वह लंड चूसने में काफी माहिर है। जिस लंड से वह डर रहा था, उसी लंड को करीब तीन चौथाई मुंह में ले कर बहुत मज़े से चूसने लगा। आज तक सिर्फ अशोक और कामिनी ने ही मेरे लंड को इतनी अच्छी तरह से चूसा है। उफ्फ, ऐसा खूबसूरत गांड़ मैंने आज तक नहीं देखा था, उसके अलावे अगर और किसी की गांड़ इतनी खूबसूरत है तो वह है कामिनी की। इस बीच मैं उसके पैरों को फैला कर उसकी चिकनी और चमकदार गोल गोल मस्त गांड़ को चाटने लगा और उसकी गांड़ के छेद में जीभ डाल कर अंदर-बाहर करने लगा। उसकी गांड़ लड़कियों की गांड़ से भी कहीं ज्यादा सुंदर थी, बिल्कुल कामिनी की गांड़ की तरह चिकनी मक्खन की तरह। उसकी गांड़ औरउसके गांड़ के छेद को चाटते चाटते मुझे अहसास हुआ कि वह अब तक काफी लंड ले चुका है।

करीब पांच मिनट बाद मैंने उसे कुतिया की तरह चार पैरों में खड़ा किया और उसके पीछे आ गया। फिर उसकी गांड़ के छेद के पास अपने लंड का सुपाड़ा टिकाया तो उसने फिर कहा, “प्लीज आराम से डालिएगा, बहुत मोटा है आपका लौड़ा।”

“तू चिंता मत कर बेटा, तुझे पता ही नहीं चलेगा कि मेरा लौड़ा कितने आराम से तेरी गांड़ में जा रहा है।” मैं झूठ मूठ ही उसे तसल्ली देते हुए और आश्वस्त करते हुए बोला। मेरा लौड़ा तो उसने पहले ही अपने मुंह से गीला किया हुआ था और मैं भी उसकी गांड़ को गीला कर चुका था, धीरे धीरे लंड में दबाव देने लगा। जैसे ही मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी गांड़ के सुराख में घुसा, उसकी आह निकल पड़ी।

मैं फिर भी रुका नहीं और दबाव बढ़ाता गया, वह दर्द के मारे छटपटाने लगा और बोला,” ओह ओ्ओ्ओ्ओह पापा जी दर्द हो रहा है आह धीरे धीरे प्लीज फट जायेगी ओह,” बिलबिला उठा था वह। मैं अब थोड़ा रुका, अब तक मैं आधा किला फतह कर चुका था। जैसे ही उसका छटपटाना बंद हुआ मैं पूरी ताकत से एक करारा ठाप मार कर पूरा लौड़ा उसकी गांड़ में पेल दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह मार डाला पापा आप ने ओ्ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह” किसी हलाल होते बकरे की तरह कराह उठा। मैं तो किला फतह कर चुका था। उफ्फ उसकी चुदी चुदाई गांड़ थी फिर भी मेरे लंड के लिए बहुत टाइट थी। ऐसा लग रहा था मानो उसकी गांड़ ने मेरे लंड को जकड़ लिया हो। कुछ पल मैं रुका और फिर जैसे ही मैंने देखा कि वह शांत हो गया है, मैं फिर कहां रुकने वाला था, दनादन दनादन चोदने लगा। उसकी चूचियों को कस कस के दबाने लगा और खूब मज़े से रगड़ रगड़ कर चोदने लगा।

अब उसे भी मज़ा आने लगा और वह मस्त हो कर बोलने लगा, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह पापा आह्ह्ह्ह्ह पापा, चोदिए राजा ओह चोदिए मेरी गांड़ ओह ओ्ओ्ओ्ओह मां मज़ा आ रहा है”।

मैं भी मस्ती में भर कर धक्के पर धक्का लगाने लगा और बोलने लगा, “मस्त गोल गोल गांड़ है रे बेटा ओह मेरी जान आह आह मेरी चिकनी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह साले गांडू, ऐसा गांड़ आज तक नहीं चोदा।” करीब दस मिनट उसी तरह चोदने के बाद मैं ने उसे लिटा दिया और उसके दोनों पैरों को फैला कर उठाया और अपने कंधों पर चढ़ा लिया फिर उसकी गांड़ में पुनः लौड़ा पेल दिया और भकाभक चोदने में मशगूल हो गया। करीब पच्चीस मिनट तक खूब जम के उसकी गांड़ की चुदाई किया और फिर अंत में जब झड़ने का समय आया तो उसे कस के दबोच लिया और फचफचा के लंड का पूरा रस उसकी गांड़ में डाल कर खलास होने लगा। उस वक्त ऐसा लग रहा था मानो वह अपनी गांड़ से मेरा लौड़ा दबोच कर चूस रहा हो। ओह मैं बता नहीं सकता कि कितना गजब का अहसास था वह। मैं तो मानो जैसे स्वर्ग ही पहुंच गया था और वह तो जैसे पागल ही हो गया था। मुझसे लिपट गया और बोलने लगा, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह पापा, आज आपने तो मुझे निहाल कर दिया। ऐसा तो आज तक किसी ने नहीं चोदा था। मैं आपके लंड और आपकी चुदाई का दीवाना हो गया।” मुझसे ऐसे लिपट कर चूमने लगा जैसे मुझे छोड़ना ही नहीं चाहता हो।
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