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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अगले दिन उस दुर्लभ ताज के सम्बन्ध में एक अखबार के अंदर आधे पेज की प्रचार सामग्री छपी ।
प्रचार सामग्री में दुर्लभ ताज का पूरा वर्णन था और उसे शान्ति तथा खुशहाली का प्रतीक भी बताया गया था ।
इतना ही नहीं, दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिये अखबार के अन्दर कई बड़ी दिलचस्प बातें भी छपी थीं ।
जैसे अखबार में लिखा था, रुडोल्फ यूबे नामक जिस राजा ने उस दुर्लभ ताज का निर्माण कराया, वह एक सौ बीस वर्ष का होकर मरा ।
अपने पूरे जीवनकाल में उसे या उसके राज्य को किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा ।
आगे लिखा था, वह दुर्लभ ताज अपनी सुरक्षा खुद करता है । जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने की कोशिश की, इतिहास साक्षी है कि वह खुद बर्बाद हो गया या फिर मारा गया ।
ऐसी ही ढेरों किस्म की बातें उस ताज के सम्बन्ध में अखबार के अन्दर छपी थी ।
साथ ही बेहद लुभावने शब्दों में लिखा था:
अब यह रहस्यपूर्ण ताज एक सप्ताह के लिये आपके शहर दिल्ली में आ पहुँचा है । ताज को देखने का यह शानदार मौका किसी भी हालत में न खोयें । कल मंगलवार से उस दुर्लभ ताज के दर्शन हेतु आप सब नेशनल म्यूजियम के हॉल नम्बर चार में पहुंचे ।
चार नम्बर हॉल के खुलने और बंद होने का समय-
सुबह दस बजे से शाम छः बजे तक
विशेष नोट-दर्शक अपने साथ किसी भी तरह का कोई सामान न लायें, क्योंकि यह सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है ।
उस प्रचार सामग्री से एक बात पूरी तरह साबित हो गयी ।
वो यह कि सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी ने उस दुर्लभ ताज के सम्बन्ध में जो-जो बातें अपने मैसेज में लिखी थीं, वह सब सच थीं ।
☐☐☐
मंगलवार को सुबह ग्यारह बजे सेठ दीवानचन्द, दुष्यंत पाण्डे के साथ उस दुर्लभ ताज को एक नजर देखने और उसकी सिक्योरिटी का मुआयना करने नेशनल म्यूजियम पहुँचा ।
वहाँ दर्शकों की खूब भीड़ थी ।
लगभग सौ सुरक्षा कर्मियों ने नेशनल म्यूजियम को चारों तरफ से घेर रखा था ।
दस-बारह सुरक्षाकर्मी सेल्फ लोडिंग राइफल (एस०एल०आर०) लिये म्यूजियम की छत पर अलग-अलग दिशाओं में खड़े थे ।
म्यूजियम में प्रवेश करने के लिये लोहे के दो बड़े-बड़े एन्ट्रेंस डोर थे ।
लेकिन अब उन दोनों में-से एक एन्ट्रेंस डोर को सात दिन के लिये सील कर दिया गया था । सिर्फ मुख्य सड़क से जुड़े एन्ट्रेंस डोर द्वारा ही दर्शक आ-जा रहे थे ।
वहीं दो मेटल डिटेक्टर भी लगे थे ।
प्रत्येक दर्शक को उन मेटल डिटेक्टरों के ऊपर से गुजरकर अन्दर प्रवेश करना होता था ।
हालांकि यह विशेष नोट अखबार में ही छाप दिया गया था कि कोई भी दर्शक अपने साथ कैसा भी कोई-सामान न लाये, लेकिन फिर भी कुछ दर्शक भूल से अपने साथ हैण्ड बैग, वेनिटी बैग या ब्रीफकेस जैसी साधारण चीजें ले आये थे । एन्ट्रेंस डोर पर खड़े सुरक्षाकर्मी अब उन चीजों को अपने पास ही जमा कर रहे थे और बदले में उन्हें एक स्लिप दे रहे थे ।
वापसी पर दर्शक वह स्लिप सुरक्षाकर्मियों को लौटा देते और उन्हें उनका सामान मिल जाता ।
सेठ दीवानचन्द, दुष्यंत पाण्डे ने भी मेटल डिटेक्टर के ऊपर से गुजरकर म्यूजियम में प्रवेश किया ।
एन्ट्रेंस डोर के बाद म्यूजियम का मेन गेट था ।
वहाँ भी छः सुरक्षाकर्मी खड़े थे, जो प्रत्येक दर्शक की अपने हाथों से टटोल-टटोलकर तलाशी लेने के बाद ही अंदर जाने दे रहे थे ।
दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे की भी तलाशी ली गयी ।
जेबों का सामान निकालकर देखा गया ।
पीठ और सीने से लेकर, पैंट की बेल्ट और जांघ तक को सुरक्षाकर्मियों ने खूब थपथपाकर देखा कि कहीं उन्होंने कोई प्राणघातक हथियार वहाँ तो नहीं बांधा हुआ है । तलाशी का ऐसा ही एक और सिलसिला म्यूजियम के विशाल गलियारे के अंदर भी चला ।
फिर वह न जाने कितने इंफ्रारेड कैमरों के सामने से गुजरकर हॉल नम्बर चार में दाखिल हुए ।
☐☐☐
हॉल नम्बर चार की महिमा ही अलग थी ।
वहाँ का सारा माहौल तिलस्मी थीं ।
फॉल्स सीलिंग की छत और लगभग एक फुट चौड़ी प्लास्टर पेरिस की परत चढ़ी दीवार में दो दर्जन से भी ज्यादा रंग-बिरंगे बड़े-बड़े हैरीजन बल्ब लगे हुए थे, जिनका तीखा प्रकाश आपस में एकाकार होकर माहौल में विचित्र-सा माधुर्य बिखेर रहा था ।
उस छोटी-सी रंगीन दुनिया के बीचों-बीच एक चार फुट ऊंचे डायस पर शीशे के बॉक्स में बन्द वह दुर्लभ ताज रखा था ।
डायस से चार-चार फुट दूर लोहे के पाइप की बेरकेट्स लगायी गयी थीं ।
उन्हीं बेरकेट्स के सहारे आगे बढ़ते हुए दर्शकों को उस दुर्लभ ताज के दर्शन करने थे ।
सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे दर्शकों की बेरकेट्स वाली लाइन में लग गये ।
फिर वो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए उस दुर्लभ ताज को देखने लगे ।
सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे दर्शकों की बेरकेट्स वाली लाइन में लग गये ।
फिर वो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए उस दुर्लभ ताज को देखने लगे ।
उनकी आंखें अपलक उसी ताज पर चिपककर रह गयीं थीं ।
क्या लाजवाब चीज थी ।
बेहद अद्भुत !
बेहद आश्चर्यजनक !
वह ताज जितना पुराना था, उतनी ही उसमें चमक थी ।
उसके अन्दर जड़े पचास बेशकीमती हीरे इस तरह जगमगा रहे थे, जैसे उन हीरों में लाइटें फिट कर दी गयी हों ।
वाकई वह एक नायाब चीज थी ।
दुर्लभ ताज को देखते ही सेठ दीवानचन्द और दुष्यंत पाण्डे के मुँह में पानी भर आया ।
जितनी देर वह हॉल नम्बर चार में रहे, उतनी देर उनकी एक सैकिण्ड के लिये भी दुर्लभ ताज के ऊपर से नजर नहीं हटी ।
दस मिनट बाद जब वह दोनों म्यूजियम से बाहर निकले, तो बुरी तरह मंत्रमुग्ध थे ।
उनके मन में यह धारणा अब और पक्की हो चुकी थी कि चाहे कुछ भी हो जाये ।
चाहे कितनी ही मुश्किलों का उन्हें सामना करना पड़े, लेकिन वह उस दुर्लभ ताज को हर हालत में हासिल करके रहेंगे ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
उसी रात सेठ दीवानचन्द ने अपनी कार में सवार होकर नेशनल म्यूजियम के आगे से दो चक्कर काटे ।
यह देखने के लिये कि रात के समय वहाँ सिक्योरिटी का क्या इंतजाम रहता है ।
परन्तु यह देखकर उसे भारी निराशा हुई कि रात के समय वहाँ सिक्योरिटी और बढ़ा दी गयी थी ।
दिन में जहाँ नेशनल म्यूजियम के चारों तरफ सौ पुलिसकर्मी फैले थे, वहीं अब दो सौ के आसपास थे ।
लेकिन फिर भी सेठ दीवानचन्द ने हिम्मत नहीं हारी ।
☐☐☐
अड्डे पर लौटते ही उसने काफ्रेंस हॉल में मीटिंग बुलायी ।
हमेशा की तरह उस मीटिंग में तीन व्यक्ति शामिल हुए- खुद सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे ।
अपने सर्वेण्ट क्वार्टर जैसे कमरे में लेटा राज, जो बहुत देर से उसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, वह भी कम्बली ओढ़े-ओढ़े दबे पांव दौड़ता हुआ कांफ्रेंस हॉल के दरवाजे पर जा पहुँचा और फिर वो अंदर होने वाले वार्तालाप को बड़े ध्यान से सुनने लगा ।
“इसमें कोई शक नहीं साईं !” सेठ दीवानचन्द बोला- “वह दुर्लभ ताज वाकई बड़े कमाल की चीज है, उस पर एक नजर डालते ही लगता है कि वो कोई मूल्यवान वस्तु हो सकती है । कुल मिलकर जितना शानदार वो दुर्लभ ताज है, भारत सरकार ने उतनी ही शानदार उसकी सिक्योरिटी कर रखी है ।”
सिक्योरिटी तो उसकी वैसे भी शानदार होती बॉस ।” दशरथ पाटिल बोला- “आखिर भारत सरकार की नाक का सवाल है । अगर कहीं वो दुर्लभ ताज चोरी हो गया, तो यहाँ की सरकार कजाखिस्तान के अधिकारियों को अपना क्या मुँह दिखायेगी ? क्या कहेगी उनसे ? आखिर उन लोगों ने यकीन के बलबूते पर ही तो अपनी इतनी महत्वपूर्ण चीज को प्रदशन के लिये इण्डिया भेजा है ।”
सेठ दीवानचन्द एकाएक हो-हो करके हँसने लगा ।
“वडी दशरथ साईं !” दीवानचन्द हँसते हुए ही बोला- “इण्डिया की नाक तो अब कटनी ही कटनी है ।”
“क्यों ?”
“क्यों क्या ? वडी जब ताज ही चोरी हो जायेगा, तो फिर नाक भी कैसे बची रहेगी नी ?”
दशरथ पाटिल के होठों पर भी मुस्कान थिरक उठी ।
“पाण्डे साईं !” सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा- “वडी क्या बात है ? तू कैसे खामोश है नी ? तू कुछ बोलता-बालता क्यों नहीं ?”
“ऐसे ही ।”
“कोई तो बात जरूर है साईं, वरना खामोश बैठने वाले आदमियों में तो नहीं तू ।”
“बॉस !” दुष्यंत पाण्डे थोड़ा शुष्क स्वर में बोला- “न जाने क्यों मेरा दिल उस दुर्लभ ताज को चुराने के लिये गवाही नहीं दे रहा है ।”
“क्यों, गवाही क्यों नहीं दे रहा ?”
“मुझे लगता है बॉस, अगर हमने उस दुर्लभ ताज को चुराने की योजना बनायी, तो यह तो ईश्वर जाने कि हम अपनी योजना में कामयाब हो पायेंगे या नहीं, लेकिन हमें बर्बाद जरूर हो जाना है, हमारा सर्वनाश जरूर हो जाना है ।”
“वडी यह क्या बकवास कर रहा है तू ?” दीवानचन्द गुर्रा उठा- “खोपड़ी खराब हो गयी है तेरी ?”
दुष्यंत पाण्डे ने दोबारा खामोशी धारण कर ली ।
“पागल आदमी, वडी यह बात तेरे दिमाग में आयी भी कैसे ?” सेठ दीवानचन्द उसे फटकार-सी लगाता हुआ बोला- “तुझे यह सूझा भी कैसे कि अगर हमने इस योजना पर काम किया, तो हमारा सर्वनाश हो जायेगा ? वडी इन्द्रलोक से तेरे को आकाशवाणी हुई या फिर जो मुँह में आया, बक दिया ।”
“नहीं ।” दुष्यंत पाण्डे ने धैर्यपूर्वक जवाब दिया- “मैंने ऐसे ही कुछ भी नहीं बका ।”
“यानि तुझे सर्वनाश होता दिखाई दे रहा है ?”
“हाँ ।”
“कैसे ?”
“आपने दुर्लभ ताज के उस विज्ञापन को तो पढ़ा ही था, जो अखबार के अंदर छपा था ।”
“बिलकुल पढ़ा था, सबने पढ़ा था ।”
“फिर तो आपने विज्ञापन में यह भी जरूर पढ़ा होगा ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “कि वह दुर्लभ ताज अपनी सिक्योरिटी खुद करता है, ऐसी कितनी ही कहानियां उस ताज के बारे में प्रसिद्ध हैं कि जब-जब किसी ने उस ताज को चुराने का प्रयास किया, तब-तब वही बर्बाद हुआ ।”
“वडी तू कहना क्या चाहता है साईं ? एकदम साफ-साफ बोल ।”
“मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि हमें आज से पहले घटी उन घटनाओं से कुछ सीखना चाहिये, कोई सबक लेना चाहिये !”
“और सबक हम यह लें साईं !” सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे को कहर बरपा करती आंखों से घूरा- “कि हम उस दुर्लभ ताज को चुराने का ख्याल भी अपने दिमाग से निकाल दें । वडी तू यही कहना चाहता है नी, हम अपने हाथों से अपनी किस्मत फोड़ लें । कुल्हाड़ी चला ले अपनी गर्दन पर ।”
दुष्यंत पाण्डे थोड़ा बौखलाया-सा नजर आने लगा ।
“जवाब दे पाण्डे साईं ! वडी तू चुप कैसे हो गया नी ?”
“म...मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ बॉस ।” दुष्यंत पाण्डे शुष्क स्वर में बोला- “किस्मत तो हमारी तभी बदलेगी, जब हमारे हाथ वह दुर्लभ ताज लगेगा । कहीं ऐसा न हो कि हमारे हाथ दुर्लभ ताज भी न लगे और हम बर्बाद भी हो जायें ?”
“तू गधा है ।” दीवानचन्द गुर्रा उठा- “वडी तू बिलकुल एक नम्बर का पग्गल आदमी है । यह हैरानी की बात है साईं, तू कजाखिस्तान सरकार द्वारा रचा गया इतना-सा नाटक नहीं समझ सका ।”
“न...नाटक, कैसा नाटक ?”
“वडी आज के सुबह के अखबार में उस दुर्लभ ताज के बारे में जो कुछ छपा था, वह सब झूठ-ही-झूठ है । किसी प्रोफेशनल राइटर द्वारा लिखी गयी वो एक ऐसे मनगढंत कहानी है, जिसे पढ़कर हर कोई आकर्षित हो सके । इतना ही नहीं, अगर कोई अपराधी उस दुर्लभ ताज को चुराने की कल्पना करे, तो उस सनसनीखेज स्टोरी को पढ़कर उसके हौंसले पस्त हो सकें, वो आतंकित हो जाये । तुझे नहीं मालूम पाण्डे साईं, आज सुबह के अखबार में जो स्टोरी छपी, वो उस दुर्लभ ताज की सबसे बड़ी सिक्योरिटी है ।”
“स...सिक्योरिटी ।” दुष्यंत पाण्डे के साथ-साथ अब दशरथ पाटिल की आंखों में भी हैरानी के भाव उभरे- “वो कैसे ?”
“वडी जब अपराधियों को यह मालूम होगा कि आज तक जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया, वही बर्बाद हो गया, फिर दुर्लभ ताज को चुराने का दुस्साहस ही कौन करेगा नी ? वडी जैसे उस बात को सोच-सोचकर अब तेरी पतलून गीली हो रही है, वह भी तो घबरा रहे होंगे । ऐसी परिस्थिति में वो स्टोरी उस दुर्लभ ताज की सबसे बड़ी सिक्योरिटी हुई कि नहीं हुई ?”
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे, दोनों दंग रहे गये ।
दोनों के नेत्र हैरत से फैल गये ।
कितनी दूर की सूझी थी सेठ दीवानचन्द को ।
लेकिन अहम् सवाल ये था क्या उतनी दूर की कजाखिस्तान के अधिकारियों को भी सूझी थी ?
क्या उन्होंने सचमुच उस दुर्लभ ताज के बारे में वो भ्रमजाल फैलाया था ?
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
“लेकिन वो दुर्लभ ताज एक ऐतिहासिक वस्तु है बॉस ।” दशरथ पाटिल कुछ सोचकर बोला- “क्या किसी ऐतिहासिक वस्तु के बारे में इस तरह का झूठा प्रचार किया जा सकता है ?”
“क्यों नहीं किया जा सकता ?” सेठ दीवानचन्द फौरन बोला- “वडी वो झूठा प्रचार उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के लिये किया जा रहा है, उसकी हिफाजत के लिये किया जा रहा है, फिर इसमें गलत क्या है ?”
दशरथ पाटिल चुप हो गया ।
बात सही थी ।
वाकई इसमें गलत क्या था, कुछ नहीं ।
लेकिन एक आशंका दुष्यंत पाण्डे और दशरथ पाटिल के दिल में आखिर तक नगाड़े की तरह बजती रही, अगर वह प्रचार कोई झूठी कहानी न होकर सच्चाई की जीती-जागती तस्वीर हुआ, तब क्या होगा ?
तब क्या वो बर्बाद हो जायेंगे ?
तब क्या उनका सर्वनाश निश्चित था ?
उन दोनों ने उस सब्जैक्ट पर जितना सोचा, उतनी ही उनके दिमाग की उलझनें बढ़ीं ।
☐☐☐
“वडी तुम लोग अब क्या सोचने लगे नी ?”
“इसका मतलब उस दुर्लभ ताज को चुराना अब पूरी तरह तय है ?” दशरथ पाटिल बोला ।
“वडी मैं तुम लोगों को क्या मूर्ख दिखाई देता हूँ ।” सेठ दीवानचन्द काले नाग की तरह फुफकारा- “अगर ताज चुराना तय न होता, तो क्या मैं तुम लोगों के साथ यहाँ बैठा अपनी रात ही काली करता ।”
दशरथ पाटिल ने सकपकाकर पहलू बदला ।
“साईं, ताज चुराना तो हण्ड्रेड परसेण्ट तय है । वडी अब हम लोगों को सिर्फ यह सोचना है कि वो ताज चोरी कैसे होगा, उसकी सिक्योरिटी को किस तरह भेदा जायेगा ?”
“जब हम लोग ताज चुराने का फैसला कर ही चुके हैं ।” तभी दशरथ पाटिल ने अपने बुद्धिमान होने का परिचय दिया- “तो क्यों न हम सबसे पहले ताज की सिक्योरिटी के फुल इंतजाम का पता करें ।”
“सिक्योरिटी का बंदोबस्त था बॉस !” दशरथ पाटिल बोला- “वह वो बंदोबस्त था, जो पहली नजर में ही दिखाई दे जाता हैं, जबकि वास्तव में भारत सरकार ने उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के वास्ते ऐसे कई सीक्रेट इंतजाम किये हो सकते हैं, जो हमें पहली नजर में दिखाई नहीं देते । ऐसे गुप्त सुरक्षा इंतजाम न सिर्फ ज्यादा शक्तिशाली होते हैं बल्कि हम जैसे अपराधियों के लिये ऐसे इंतजाम ही ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं बॉस !”
सेठ दीवानचन्द के चेहरे पर थोड़ी हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
“वडी तू कैसे गुप्त इंतजामों की बात कर रहा है दशरथ साईं ! जरा साफ-साफ बोल ।”
“जैसे उदहारण के तौर पर ऐसे जगह सेफ्टी अलार्म लगा दिया जाता है ।” दशरथ पाटिल बोला- “जैसे ही कोई व्यक्ति गलत तरीके से वहाँ घुसता है, तो वह सेफ्टी अलार्म खुद-ब-खुद नजदीक के पुलिस स्टेशन में, पुलिस कण्ट्रोल रूम में या फिर बाहर मौजूद सुरक्षाकर्मियों के नजदीक बज उठता है । वह तुरन्त भांप जाते हैं कि वहाँ अंदर कुछ गड़बड़ है, कण्ट्रोल रूम से फौरन यही रिपोर्ट वायरलेस द्वारा तमाम पुलिस पैट्रोलिंग वेन्स को सर्कुलेट कर दी जाती है । जिसका नतीजा यह निकलता है कि अपराधी घटनास्थल पर ही चूहे की तरह फंस जाता है और पुलिस उसे रंगे हाथों गिरफ्तार कर लेती है । इसके अलावा मूलयवान वस्तु के आसपास ऐसी वायरें बिछाकर उनमें करण्ट प्रवाहित कर दिया जाता है, जो वायरें एकाएक नजर नहीं आतीं । इतना ही नहीं, मेरे कहने का मकसद है कि भारत सरकार ने उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के लिये और भी ऐसे इंतजाम किये हो सकते हैं । इसलिये जब तक हमें उन तमाम गुप्त इंतजामों के बारे में फुल जानकारी हासिल नहीं हो जाती, तब तक हमारा उस दुर्लभ ताज को चुराने के बारे में सोचना भी बेवकूफी है । अगर हमें उस दुर्लभ ताज को चुराना है, तो सबसे पहले हमारा काम यह होना चाहिये कि हम उन गुप्त इंतजामों के बारे में फुल जानकारी हासिल करें ।”
सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल की बातों से बड़ा प्रभावित हुआ ।
“लेकिन दशरथ साईं, हमें इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कैसे होगी नी ?”
“जानकारी हासिल करने का सिर्फ एक रास्ता है ।”
“कौन- सा रास्ता ?”
“हमें किसी तरह ‘इनसाइड हैल्प’ हासिल करनी होगी, हमें नेशनल म्यूजियम के किसी ऐसे सिक्योरिटी ऑफीसर को अपने साथ मिलाना होगा, जो दुर्लभ ताज की फुल सिक्योरिटी की जानकारी रखता हो ।”
अब !
अब दीवानचन्द ने नेत्र फट पड़े ।
“वडी तेरा दिमाग तो ठिकाने है दशरथ साईं !” दीवानचन्द गुर्राया- “साईं तुझे मालूम है, तू क्या बक रहा है ? ऐसा भी कहीं हो सकता है ?”
“बिलकुल हो सकता है ।”
“कैसे ?”
“मैं बताता हूँ ।” तभी दुष्यंत पाण्डे बीच में बडे उत्साह के साथ बोला- “मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिससे नेशनल म्यूजियम के किसी सिक्योरिटी ऑफीसर से मदद ली जा सकती है ।”
अब सेठ दीवानचन्द ने हैरान निगाहों से दुष्यंत पाण्डे को देखा ।
“क...क्या योजना है ?”
“अभी बताता हूँ योजना !”
दुष्यंत पाण्डे फौरन लपककर वहीँ कॉफ्रेंस हॉल में एक स्टूल पर पड़ा पिछले दिन का ‘संध्या टाइम्स’ अखबार उठा लाया ।
फिर दुष्यंत पाण्डे ने उस अखबार का पन्ना खोला, जिस पर क्लासीफाइड एडवर्टाइजमेंट छपे रहते हैं ।
“इस विज्ञापन को पढ़ो बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने अखबार सेठ दीवानचन्द के सामने रखकर एक छोटे से विज्ञापन को उंगली से ठकठकाया- “इस विज्ञापन को पढ़ते ही सारा माजरा खुद-ब-खुद आपकी समझ में आ जायेगा ।”
दीवानचन्द के साथ-साथ दशरथ पाटिल ने भी उस विज्ञापन को बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा ।
लिखा था :
आवश्यकता है
आवश्यकता है एक ऐसी गवर्नेंस की, जो छः माह के एक बच्चे की अच्छी तरह देखभाल कर सके । शैक्षिक योग्यता जरुरी नहीं, लेकिन आवेदनकर्ता के अपना कोई छोटा बच्चा न हो । मासिक आय तीन अंकों में, इच्छुक औरत/लड़की नीचे लिखे पते पर फौरन सम्पर्क करें ।
जगदीश पालीवाल
(मुख्य सुरक्षा अधिकारी-नेशनल म्यूजियम)
4/17 बी, न्यू फ्रेण्डस कॉलोनी
नई दिल्ली
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उस विज्ञापन को पढ़कर सेठ दीवानचन्द ने थोड़ी भौंचक्की निगाहों से दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा ।
“वडी इस विज्ञापन में क्या खास बात है ?”
“आपको कोई खास बात नहीं दिखाई दी ?”
“नहीं ।”
“यह तो इस विज्ञापन से आप समझ ही गये होंगे ।” दुष्यंत पाण्डे बोला-“कि जगदीश पालीवाल नाम का यह व्यक्ति नेशनल म्यूजियम का चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर है और उसे अपने छः महीने के बच्चे की देखभाल के लिये एक गवर्नेस की जरुरत है । अब आप जरा मेरा आइडिये पर कल्पना कीजिये बॉस, अगर हम जगदीश पालीवाल के घर में अपनी तरफ से किसी लड़की को गवर्नेस बनाकर भेज दें, तब कैसा रहेगा ?”
“उससे क्या होगा ?”
“उससे यह होगा कि हमारे द्वारा भेजी गयी लड़की सबसे पहले जगदीश पालीवाल को अपने प्रेमजाल में फांसेगी, उसे अपने संगमरमरी जिस्म का दीवाना बनायेगी । और जब जगदीश पालीवाल उसके इश्क में पूरी तरह गिरफ्तार हो चुका होगा, जब उसे उस लड़की के अलावा इस दनिया में कुछ नजर नहीं आयेगा, तब वो उससे बड़ी सहूलियत के साथ दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में सब कुछ उगलवा लेगी ।”
“वडी लेकिन इस बात की क्या गारण्टी है कि पालीवाल उस लड़की की मोहब्बत में गिरफ्तार होगा ही होगा ?”
“गारण्टी है ।” दुष्यंत पाण्डे दृढ़तापूर्वक बोला- "अगर लड़की कोई स्वर्ग की अप्सरा हो, अलिफ लैला के किस्से-कहानियों की हूर हो, मर्द को फांसने में हुनरमंद हो, तो उस बेचारे जगदीश पालीवाल की तो औकात ही क्या है, ऐसी लड़की के सामने तो बड़े-बड़े देवताओं का ईमान भी डोल जाना है ।”
सेठ दीवानचन्द हक्का-बक्का सा दुष्यंत पाण्डे को देखता रह गया ।
“वडी तू कहता तो ठीक है साईं ।” दीवानचन्द बोला- “लेकिन सवाल ये है कि हमें जन्नत की ऐसी हूर कहाँ मिलेगी, जो हमारे लिये यह सब कुछ करे ?”
“वह हमें मिलेगी नहीं बॉस, बल्कि मिल चुकी है ।”
“क...क्या मतलब ?”
दीवानचन्द के साथ-साथ दशरथ पाटिल भी चौंका ।
“आपने डॉली को देखा है बॉस ?”
“म...डॉली, कौन डॉली ?”
“राज की प्रेमिका डॉली ! वही डॉली जो सोनपुर में रहती है और जिसके साथ राज का बड़ा जबरदस्त, बड़ा तगड़ा रोमांस चल रहा है ।”
“नहीं, वडी मैंने तो उसे नहीं देखा ।”
“बॉस, बाई गॉड अगर उस लड़की को देखोगे, तो बस देखते रह जाओगे । वह कीचड़ में खिला कमल है । वह महलों की वह शहजादी है, जिसने गलती से सोनपुर जैसे बस्ती में जन्म ले लिया है । वो साक्षात स्वर्ग की अप्सरा है, जन्नत की हूर है । उसका सरु-सा लम्बा कद, उसका छरहरा बदन, उसकी तनी हुई सुडौल भरपूर छातियां, उसके गोरे-चिट्टे हाथ-पांव, बॉस क्या लड़की है । कसम से आग का गोला है, गोला !” बोलते-बोलते दुष्यंत पाण्डे की सांसे तेज-तेज चलने लगीं- “वह जब चलती है, तो उसके पैरों की धमक से उसके कूल्हों में ऐसी थिरकन पैदा होती है, जैसे वो चल नहीं रही हो बल्कि संगीत की ताल पर थिरक रही हो ।”
“बस-बस ।” सेठ दीवानचन्द ने उसे फौरन टोका- “वडी पाण्डे साईं, तूने तो उस लड़की के जिस्म का पूरा भूगोल ही नाप डाला नी ।”
“वह लड़की है की इसी काबिल बॉस, बेपनाह तारीफ के काबिल ।”
“लेकिन जब वो इतनी ख़ूबसूरत है, तो राज के फंदे में कैसे फंस गयी ?”
“बस फंस गयी बॉस, इस राज की किस्मत किसी और मामले में तेज हो या न हो, लेकिन कम-से-कम लड़की के मामले में बड़ी किस्मत तेज है ।”
“बहरहाल अब तू यह चाहता है साईं ।” दीवानचन्द बोला- “कि डॉली को गवर्नेस बनाकर जगदीश पालीवाल के यहाँ भेजा जाये ।”
“बिलकुल बॉस ! मेरी गारण्टी है कि जगदीश पालीवाल उसके प्रेमजाल में फंसेगा ही फंसेगा । डॉली को देखते ही उसके सदाचार की चिता जल जानी है और बस वो भूखा कुत्ता बन जाना है । यह वो हथियार है बॉस, जिसका निशाना किसी भी हालत में खाली नहीं जायेगा ।”
“वडी पाण्डे साईं, लेकिन डॉली हमारे लिये काम क्यों करेगी ?”
“क्यों नहीं करेगी बॉस ! राज कहेगा, तो वह करेगी, हजार मर्तबा करेगी ।”
“राज कहेगा उससे ?”
“कैसे नहीं कहेगा ।” दुष्यंत पाण्डे के चेहरे पर एकाएक बड़े खूंखार भाव उभरे- “अगर उसने नहीं कहा, तो हमने उसे यहाँ से बाहर नहीं निकाल देना है ? उस हरामी को जहन्नुम नहीं पहुँचा देना है ?”
बात सेठ दीवानचन्द के दिमाग में भरी ।
“वडी तू कहता तो ठीक है ।” दीवानचन्द बोला- “अगर यह बात है, तो तू बुलाकर ला राज को ।”
राज, जो दरवाजे से कान लगाये खड़ा सारी बातचीत सुन रहा था, एकाएक उसके हाथ-पांव फूल गये ।
सांसे उसे अपने गले में फंसती महसूस हुई ।
वह वापस बड़ी तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा ।
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जल्द ही राज अपने कमरे में इस तरह लेट चुका था, जैसे गहरी नींद सो रहा हो ।
तभी वहाँ दुष्यंत पाण्डे के कदम पड़े ।
राज फिर भी सोने का अभिनय करता रहा ।
दुष्यंत पाण्डे ने उसे झंझोड़कर उठाया ।
“क...कौन है ?” राज हड़बड़ाकर उठा ।
“जल्द खड़ा हो, तुझे बॉस बुला रहे हैं ।”
“ब...बॉस !” राज की आवाज कांपी- “ल...लेकिन क्यों ?”
“अब हिलेगा भी, बाकी कहानी तुझे वही बतायेंगे ।”
राज भीगी बिल्ली बना खामोशी से उसके पीछे-पीछे चल पड़ा ।
उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जिसे वो बलि का बकरा हो और उसे अब कुर्बानी के लिये ले जाया जा रहा था ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज जैसे ही कांफ्रेंस हॉल में दाखिल हुआ, तो सेठ दीवानचन्द की एक भरपूर नजर उसके ऊपर पड़ी ।
कांप उठा राज ।
“अ...आपने मुझे याद किया साहब ?”
“हाँ, मैंने तुम्हें याद किया राज साईं ! आओ, मेरे पास आओ ।”
राज कंपकंपाते कदमों से चलता हुआ सेठ दीवानचन्द के नजदीक पहुँचा ।
“तुमने हमसे यह विनती की थी न राज साईं, तुम्हें कुछ दिन के लिये यहीं रहने दिया जाये ।”
“ह...हाँ, साहब ! म...मैंने विनती की थी ।”
“वडी हमने तुम्हारी इस विनती पर अच्छी तरह सलाह-मशवरा किया है ।” सेठ दीवानचन्द बोला- “और साईं, खूब सलाह-मशवरा करने के बाद हम लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि तुम यहाँ रह सकते हो । लेकिन तुम्हें उसके बदले हमारी एक शर्त पूरी करनी होगी ।”
“क...कैसी शर्त ?” राज फंसे-फंसे स्वर में बोला ।
उसे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई दानव उसके सीने को अपनी मुट्ठी में जकड़कर जोर से भींच रहा हो ।
“दशरथ साईं !” दीवानचन्द, दशरथ पाटिल की तरफ घूमा- “वडी तू इसको शर्त के बारे में बता । इसे यह बता कि इसने क्या करना है नी ?”
दशरथ पाटिल ने गला खंखारा ।
फिर उसने राज को सबसे पहले दुर्लभ ताज की चोरी के बारे में बताया ।
फिर उसे यह बताया कि उस चोरी में डॉली को उन लोगों की किस प्रकार मदद करनी थी ।
राज सकते जैसी स्थिति में खड़ा रहा ।
खून उसकी कनपटी पर ठोकरें-सी मारने लगा ।
कितने घटिया इंसान थे वो ।
कितने नीच ।
एक लड़की को, एक लड़की की आबरू को, वह अपने मतलब के लिये दांव पर लगा देना चाहते थे ।
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द कुछ रुककर बोला- “वडी तूने अभी तक जवाब नहीं दिया, तू डॉली को गवर्नेस बनाकर जगदीश पालीवाल के घर भेजेगा या नहीं ?”
“म...मैं उसे कहीं भी कैसे भेज सकता हूँ साहब ।” राज डरे-डरे लहजे में बोला- “कहीं भी जाने या न जाने का फैसला तो खुद डॉली ही कर सकती है ।”
“वडी बकवास मत कर !” सेठ दीवानचन्द एकाएक नाग की तरह फुंफकार उठा- “हम लोग कोई दूध पीते बच्चे नहीं है कंजर ! याद रख-पुलिस तेरे पीछे भूखे कुत्ते की तरह घूम रही है । तू पुलिस के हत्थे चढ़ा और फौरन तेरी लुटिया डूबी । फौरन तेरी जिंदगी का दिया बुझा । इस समय तेरे ऊपर खतरा-ही-खतरा है और ऐसी स्थिति में डॉली तुझे खतरे से बचाये रखने के लिए कुछ भी कर सकती है । वडी वो प्रेमिका है तेरी । लवर है तेरी । फिर उसे मोहब्बत का एक नाटक ही तो करना होगा । एक ड्रामा ही तो खेलना होगा ।”
राज चुप खड़ा रहा ।
“साईं !” दीवानचन्द ने उसे साफ-साफ चेतावनी दी- “अगर तू हमारी छत्रछाया में रहना चाहता है, अगर तू चाहता है कि तू पुलिस के हत्थे न चढ़े, तो वडी तेरे को डॉली से यह काम कराना ही होगा ।”
राज फिर चुप ।
“यह सोचने का समय नहीं है राज !” इस बार दशरथ पाटिल गरजा- “जल्दी से हाँ या ना में जवाब दो, अगर ना करते हो तो दफा हो जाओ यहाँ से । हम लोग पागल नहीं हैं, जो तेरे जैसे दिल्ली पुलिस में वाण्टेड, इनामशुदा हुए इश्तिहारी मुजरिम को अपने यहाँ शरण दें और ख्वामखाह किसी बड़े झमेले में फंसे ।”
राज के चेहरे पर कशमकश के भाव छाये रहे ।
वो फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिये ?
“पाण्डे साईं !” एकाएक दीवानचन्द चिंघाड़ उठा ।
“यस बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने फौरन तत्परता से कहा ।
“वडी तू क्यों हम लोगों का भेजा खराब करता है नी, तू इस कमीने को वापस सोनपुर छोड़कर आ । यह हमारे किसी मतलब की दवा नहीं है ।”
“न...नहीं ।” राज आतंकित हो उठा- “म...मैं सोनपुर नहीं जाऊंगा ।”
“कैसे नहीं जायेगा ।” दुष्यंत पाण्डे ने अपनी शर्ट की बाहें चढ़ाई और रौद्र रूप में उसकी तरफ बढ़ा- “तेरा तो बाप भी जायेगा साले ! मादर… !!”
राज के पूरे शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
वो जानता था कि वह उनके कई रहस्यों से वाकिफ हो चुका है ।
इसलिये ऐसी परिस्थिति में दुष्यंत पाण्डे उसे सोनपुर नहीं बल्कि कहीं और ही छोड़कर आने वाला था ।
शायद दूसरी दुनिया में !
ऐसी दुनियां में, जहाँ से वापसी को कोई रास्ता नहीं ।
इस बीच दुष्यंत पाण्डे ने उसकी बांह कसकर पकड़ ली थी, फिर वह उसे बुरी तरह घसीटता हुआ बोला- “बाहर निकल ! बाहर निकल सुअर के बच्चे !!”
“स...सुनो ।” राज चिल्ला उठा- “स...सुनो ।”
दुष्यंत पाण्डे ठिठक गया ।
“म... मैं तैयार हूँ साहब !” राज सेठ दीवानचन्द की तरफ देखता हुआ आहत् स्वर में बोला- “म...मैं तैयार हूँ, मैं आज ही डॉली के पास जाकर इस बात की कोशिश करता हूँ कि वो गवर्नेस बन जाये ।”
“कोशिश नहीं ।” दीवानचन्द चिंघाड़ा- “वडी कोशिश नहीं, तूने यह काम हर हालत में करना है । अगर डॉली, पालीवाल के घर गवर्नेस बनकर नहीं गयी, तो समझ तेरा और हमारा रिश्ता खत्म । वडी फिर हम तुझे नहीं जानते और तू हमें नहीं जानता ।”
“और उसे वहाँ जाकर सिर्फ बच्चा ही नहीं खिलाना है ।” तभी दशरथ पाटिल भी गुर्राया- “बल्कि उसने वहाँ जाकर बच्चे के बाप को भी खिलाना है । उसकी भी लल्ला-लल्ला लोरी करनी है । बच्चे से ज्यादा बच्चे के बाप की देखभाल करनी है । उससे दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में सारे राज उगलवाने हैं, तभी हमारा काम मुकम्मल होगा ।”
“म...मैं समझ गया ।” राज ने बेबसी की स्थिति में अपनी गर्दन हिलाई- “स...सब कुछ समझ गया ।”
उसकी हालत अब ऐसी हो रही थी, जैसे उसने किसी शेर की मूछें पकड़ ली हों ।
जिन्हें वो न छोड़ सकता था और न ज्यादा देर तक पकड़े रह सकता था ।
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
रात के उस समय बारह बज रहे थे, जब राज छिपता-छिपाता सोनपुर पहुँचा ।
सोनपुर में घुसते हुए वो बेहद सावधान था, बल्ले का डर उसके दिमाग में बैठा हुआ था ।
बल्ले के खौफ की वजह से ही वो डॉली के घर में पीछे से खिड़की कूदकर अंदर घुसा ।
डॉली तब बेखबर पड़ी सो रही थी ।
राज ने उसे झंझोड़कर जगाया ।
“त...तुम !” डॉली, राज को देखते ही चौंक पड़ी- “त...तुम !!”
फौरन उसकी आंखों से नींद उड़ गयी ।
“सब कुछ ठीक तो है न डॉली ?”
“त...तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिये था राज ।” एकाएक डॉली के चेहरे पर आतंक के भाव उभर आये थे ।
“क...क्यों ?”
“इंस्पेक्टर योगी तुम्हें तलाश करता घूम रहा है राज ! वह सुबह से दो बार सोनपुर में आ चुका है । यही हाल बल्ले का है-वह योगी के खौफ की वजह से खुलेआम तो नहीं घूम रहा-लेकिन मुझे खबर है कि वह अपने चाकू से तुम्हारे पेट की अंतड़ियां फाड़ डालने के लिये बेहद व्याकुल है । इसके अलावा तुम्हारे लिये एक और बड़ी बुरी खबर है राज ।”
“क... क्या ?”
सिर्फ यही दोनों तुम्हारी तलाश में नहीं लगे हुए बल्कि जबसे दिल्ली पुलिस ने तुम्हारे ऊपर एक लाख का इनाम घोषित किया है, तब से इनाम हासिल करने के लालच में सोनपुर के कई दूसरे गुण्डे भी तुम्हारी तलाश में लग गये हैं । इसीलिये तो मैंने तुमसे कहा, तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिये था । तुम नहीं जानते राज, आज पूरे दिल्ली शहर में तुम्हारे नाम की चर्चा है, हर गली में, हर चौराहे पर, हर नुक्कड़ पर तुम्हारे बारे में बातें हो रही है । लोग तुम्हें लॉटरी का टिकिट समझ रहे हैं राज, हर कोई तुम्हें गिरफ्तार कराकर एक लाख कमाने का इच्छुक है ।”
दाता !
दाता !!
राज को अपने हाथ-पैर बर्फ होते महसूस हुए ।
वह दिन-ब-दिन कैसे भयानक जाल में फसता जा रहा था ।
“राज !”
“हूँ !” राज के अचेतन मस्तिष्क पर हथौड़े जैसी चोट पड़ी- “हूँ !”
“सुबह जब यहाँ इंस्पेक्टर योगी आया था ।” डॉली थोड़े सकुचाये स्वर में बोली- “तो उसके साथ पूरी पुलिस पलटन भी थी ।”
“फिर ?”
“व...वह तुम्हारे घर का सारा सामान कुर्क करके ले गया, यहाँ तक कि उसने ऑटो रिक्शा भी नहीं छोड़ी ।”
“हे देवा !”
राज के मुँह से सिसकारी छूट गयी ।
☐☐☐
फिर राज वहीं बैड पर धम्म् से बैठ गया था ।
उसके चेहरे से पसीने की धारायें बहने लगीं ।
डॉली भी उसी के नजदीक ही बैठ गयी और बड़ी अजीब नजरों से उसे देखती हुई शुष्क लहजे में बोली- “तुम कल से कहाँ थे ? मैं तुम्हारे बारे में सोच-सोचकर परेशान हो रही थी ?”
“स...सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर ही था ।”
“वह लोग अब तुम्हारे साथ किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं ?”
“ठ...ठीक ही कर रहे हैं ।” राज ने विचलित स्वर में कहा- “उन्होंने मुझे वहीं रहने के लिये एक छोटा -सा कमरा दिया हुआ है ।”
“अगर यह बात है, तो फिर तुम इस खतरनाक जगह पर क्यों आये हो ? यहाँ तो तुम्हारे लिये मौत-ही-मौत है ।”
राज के चेहरे पर अब हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
“जवाब क्यों नहीं देते ?”
“म...मैं इस समय एक बड़ी भारी मुसीबत में फंसा हुआ हूँ डॉली !”
“मुसीबत !” डॉली का दिल जोर से उछला- “कैसी मुसीबत ?”
राज ने अपना चेहरा दोनों हथेलियों में छिपा लिया ।
“म... मुसीबत भी ऐसी है, जिससे सिर्फ तुम ही मुझे छुटकारा दिला सकती हो ।”
“म...मैं ?”
“हाँ, तुम ।”
“ऐसी भी क्या मुसीबत है ?” डॉली की आंखों में आश्चर्य के भाव उभरे ।
राज की उससे फिर भी कुछ कहने की हिम्मत न हुई ।
“राज, आखिर तुम कुछ बोलते क्यों नहीं, क्या बात है ?”
राज ने बेहद डरते-डरते सारी बात डॉली को बता दी ।
उसे यह भी बताया कि उसने किस तरह गवर्नेस बनकर जगदीश पालीवाल को अपने प्रेमजाल में फांसना था ।
और यह भी बताया कि अगर उसने वो काम न किया, तो उसका क्या अंजाम होना था ।
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
डॉली सन्न बैठी रह गयी ।
फिर उसके पास से उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी ।
“क्या बात है डॉली !” राज फौरन उसके पीछे-पीछे खिड़की के पास पहुँचा-“क्या तुम मुझसे नाराज हो गयीं ?”
डॉली ने अपना चेहरा खिड़की के पल्ले से सटा लिया ।
“तुम कुछ बोलती क्यों नहीं डॉली ?”
राज ने डॉली का चेहरा झटके से अपनी तरफ किया, तो उसके दिल-दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
वो रो रही थी, उसका चेहरा आंसुओं से तर था ।
“म...डॉली !” तड़प उठा राज- “मैं जानता हूँ कि मैंने यह बात कहकर तुम्हारा दिल दुखाया है । ल...लेकिन तुम्हीं बताओ, मैं और क्या करता डॉली ?” राज की आंखों में भी आंसू छलछला आये- “उन शैतानों ने मुझे मजबूर किया कि मैं तुमसे आकर यह बात कहूँ । लेकिन चिन्ता मत करो, अब अगर उनकी छत्रछाया मेरे ऊपर से उठती है, तो उठ जाये । मुझे परवाह नहीं । मुझे किसी बात की परवाह नहीं ।”
“न...नहीं राज !” डॉली ने जल्दी से अपने आंसू साफ किये थे- “नहीं । इस समय तुम्हें उन लोगों की मदद की बहुत जरुरत है । अगर उन लोगों की छाया तुम्हारे ऊपर से उठ गयी, तो तुम नहीं जानते कि तुम कितने बड़े संकट में फंस जाओगे ।”
“ल...लेकिन... ।”
"बेफिक्र रहो राज ।” डॉली कसकर उसके सीने से लग गयी- “मैं तुम्हारे लिये यह काम करूंगी, तुम्हारी खुशियों के लिये यह काम करूंगी ।”
“य...यह बात तुम दिल से कह रही हो डॉली ?”
“ह...हाँ ।” डॉली की आवाज भावनाओं के वेग से कंपकंपायी- “द...दिल से ही तो कह रही हूँ ।”
रो पड़ा राज ।
डॉली भी उसके सीने से लिपटी धीरे-धीरे सुबक रही थी ।
☐☐☐
उस रात राज जब वापस सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर लौटा, तो उसका मन भारी-भारी था ।
उस दिन भी दुष्यंत पाण्डे ने सोनपुर में उसकी आंखों पर पट्टी बांधी और तब वो उसे अपने अड्डे पर लेकर गया ।
उन लोगों का अड्डा कहाँ है, इस राज से राज अभी तक अनजान था ।
उसने कई बार रात को चोरी-छिपे अड्डे का गुप्त रास्ता पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन हर बार उसे अपने मकसद में नाकामी मिली ।
बेपनाह कोशिशों के बाद उसे सिर्फ इतना मालूम हो सका कि वह लोग कॉफ्रेंस हॉल के अंदर ही कहीं से प्रकट होते हैं और फिर वहीं से गायब हो जाते हैं ।
यानि आने-जाने का रास्ता उसी कॉफ्रेंस हॉल के अंदर से था ।
☐☐☐
बहरहाल उस रात के बाद से डॉली की परीक्षा की घड़ी शुरू हुई ।
वह अगले दिन ही नेशनल म्यूजियम की चीफ सिक्योरिटी ऑफीसर जगदीश पालीवाल की कोठी पर जा पहुँची थी ।
पहला झटका तो उसे यही देखकर लगा कि वहाँ उससे पहले ही तीन लड़कियां मौजूद थीं ।
डॉली का दिल धाड़-धाड़ करके बजने लगा ।
उसे वो नौकरी किसी भी हालत में चाहिये थी ।
किसी भी कीमत पर ।
चाहे कुछ भी ड्रामा क्यों न करना पड़े ।
डॉली का दिमाग एकाएक काफी तेजी से चलने लगा ।
☐☐☐
एक-एक करके तीनों लड़कियों को ड्राइंग हॉल में बुलाया गया ।
सबसे आखिर में डॉली की बारी आयी ।
डॉली डरती-डरती ड्राइंग हॉल में दाखिल हुई, वह काफी भव्य ढंग से सजा हुआ एक ड्राइंग हॉल था, जिसमें सामने दो अलग-अलग कुर्सियों पर मिस्टर एण्ड मिसेज पालीवाल बैठे थे ।
दोनों जवान थे, खूबसूरत थे, उनकी उम्र तीस-बत्तीस के आसपास थी और शक्ल-सूरत से ही काफी सभ्य नजर आ रहे थे ।
मिसेज पालीवाल की गोद में एक गोरा-चिट्टा बच्चा पड़ा किलौली-सी कर रहा था, वह भी अपने मम्मी-डैडी की तरह ही खूबसूरत था ।
“नमस्ते !” उन दोनों को देखते ही डॉली ने अपने हाथ जोड़ लिये ।
“नमस्ते !”
उन दोनों के हाथ भी ‘नमस्ते’ की मुद्रा में जुड़े ।
“बैठो ।” फिर जगदीश पालीवाल ने कहा ।
डॉली सिकुड़ी-सिमटी सी एक कुर्सी पर बैठ गयी ।
“तुम्हारा नाम क्या है ? पहला सवाल मिसेज पालीवाल ने पूछा था ।
“स...संध्या शर्मा ।” उसने जानबूझकर नकली नाम बताया ।
“तुम्हारी शादी हो गयी ?”
जी नहीं ।”
“ओह !” मिसेज पालीवाल ने राहत की सांस ली- “फिर तो किसी छोटे बच्चे के होने का भी सवाल नहीं उठता, कहाँ तक पढ़ी हो ?”
“बी० ए ० फाइनल ।”
“गुड, रहती कहाँ हो ?”
यही वो पल था, जब डॉली ने ड्रामा किया ।
मिसेज पालीवाल के उस सवाल के पूछते ही डॉली की आंखों में आंसू छलछला आये ।
उसने दोनों हथेलियों से अपना चेहरा छिपा किया और जोर से सुबक उठी ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
हड़बड़ा उठे पालीवाल दम्पत्ति !
जबकि जगदीश पालीवाल तो कुर्सी से उछलकर खड़ा हो गया था ।
“क...क्या बात है ?” जगदीश पालीवाल बौखलये स्वर में बोला- “क...क्या हम लोगों ने कोई गलत सवाल पूछ लिया ?”
“न...नहीं साहब !” डॉली ने सुबकते हुए ही कहा- “आप लोगों ने कोई गलत सवाल नहीं पूछा ।”
“फ...फिर तुम रो क्यों रही हो ?”
“जिसकी किस्मत में ही रोना लिखा हो साहब ।” डॉली भाव-विह्वल स्वर में बोली- “वह रोने के अलावा और कर भी क्या सकती है । यूं तो यह दुनिया इतनी बड़ी है साहब, लेकिन इस इतनी बड़ी दुनिया में मेरा कोई घर नहीं, कोई ठिकाना नहीं ।”
“यह कैसे हो सकता है ।” पालीवाल दम्पत्ति चौंके- “कि इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हारा कोई घर नहीं, कोई ठिकाना नहीं ?”
“ऐसा ही है साहब ।”
“तुम्हारे मा-बाप नहीं ?”
“नहीं ।”
“बहन-भाई, कोई नहीं ?” जगदीश पालीवाल के स्वर में हैरत उमड़ी ।
“नहीं साहब ।”
“कमाल है, एकाएक यकीन नहीं आता ।”
“मुझे खुद भी यकीन नहीं आता साहब ।” डॉली नौकरी हासिल करने के लिये शानदार ड्रामा करती हुई बोली- “क्योंकि आज से सिर्फ तीन महीने पहले मेरे पास सब कुछ था, सब कुछ । मेरे मां-बाप थे, एक बड़ा भाई था । मैं चण्डीगढ़ की रहने वाली हूँ, वहीं मेरे पिताजी का कपड़े का बड़ा अच्छा कारोबार था । नीचे दुकान थी और ऊपर मकान । उ...उस रात मैं अपनी एक सहेली के घर गयी हुई थी, जिसकी अगले दिन बारात आने वाली थी । और...और उसी रात सब कुछ तबाह हो गया, सब कुछ ।”
“क...क्या हुआ था ?” जगदीश पालीवाल के चेहरे पर जबरदस्त सस्पैंस झलका ।
“द...दरअसल उस रात पंजाब पुलिस से बचकर भागते हुए दो आतंकवादी हमारे घर में घुस आये थे, उन्होंने जब हमारे घर में शरण चाही, तो पिताजी और भैया ने उनका विरोध किया, बस इसी बात से क्रोधित होकर आतंकवादियों ने मम्मी सहित मेरे पिताजी और भैया की हत्या कर दी । इतना ही नहीं, उन्होंने हमारे घर और दुकान में भी आग लगा डाली ।”
“ओह, वैरी सैड !” पालीवाल दम्पत्ति सन्न रह गये ।
जबकि डॉली अब पहले से भी ज्यादा जोर-जोर से सुबक रही थी ।
☐☐☐
डॉली के उस ड्रामें का मिसेज पालीवाल पर और भी गहरा असर हुआ ।
वह अपने बच्चे को गोद में उठाये-उठाये डॉली के नजदीक आ गयी तथा फिर उसके कंधे पर स्नेह से हाथ रखा- “धीरज रखो संध्या, धीरज रखो । इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारे साथ बहुत भयंकर दुर्घटना घटी है, लेकिन भगवान बहुत बड़ा है, वो सबकी मदद करता है ।”
डॉली फिर भी धीरे-धीरे सुबकती रही ।
“हमारी सहानुभूति तुम्हारे साथ है संध्या ।” जगदीश पालीवाल ने भी उसे ढांढस बंधाया- “तुम्हें चिन्ता करने की कोई जरुरत नहीं ।”
“इ...इसका मतलब आपने मुझे नौकरी दे दी साहब ?”
“क्यों नहीं, और यह नौकरी देकर मैं तुम्हारे ऊपर कोई अहसान नहीं कर रहा संध्या ।” जगदीश पालीवाल बोला- “बल्कि यह नौकरी कबूल करके तुम मेरे ऊपर अहसान कर रही हो । मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं तुम्हारे जैसी बेसहारा लड़की के काम आ सका ।”
“थैंक्यू-थैंक्यू पालीवाल साहब ।” डॉली ने जल्दी-जल्दी अपनी आंखों के आंसू पोंछे ।
“और हाँ ।” तभी मिसेज पालीवाल बोली- “आज से तुम इसी कोठी में रहोगी, हमारे साथ । अब यही तुम्हारा घर है ।”
"ल...लेकिन... ।” डॉली के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
“प्लीज संध्या, इंकार मत करना । अब तुम इसी घर की एक सदस्य हो ।”
“ठ...ठीक है ।” वह शब्द कहते हुए डॉली ने उन दिनों के सामने अपनी गर्दन झुका ली थी ।
☐☐☐
इस तरह डॉली, जगदीश पालीवाल के यहाँ न सिर्फ गवर्नेस की नौकरी पाने में सफल हो गयी बल्कि उसी कोठी के अंदर उसे रहने के लिये एक बैडरूम भी मिल गया ।
जगदीश पालीवाल के जिस बच्चे की डॉली को देखभाल करनी थी, उसका नाम ‘गुड्डू’ था ।
यह बात डॉली को बाद में पता चली कि मिसेज पालीवाल कृषि डॉलीलय में सचिव थीं ।
वह अपने गुड्डू बेटे को डॉली के हवाले करके उसी दिन सरकारी काम से एक सप्ताह के लिये उदयपुर चली गयीं ।
डॉली का काम अब और भी आसान हो गया ।
अब वो और ज्यादा सहूलियत से जगदीश पालीवाल को अपने फंदे में फांस सकती थी ।
☐☐☐
उसी रात से डॉली का ‘खेल’ शुरू हुआ ।
रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे, जब डॉली की ह्रदय विदारक चीख से पूरी कोठी दहल गयी ।
जगदीश पालीवाल उस समय तक जाग रहा था और अपने बैडरूम में लेटा “कमांडर करण सक्सेना सीरीज” का एक जासूसी नॉवेल पढ़ रहा था ।
डॉली की हृदयविदारक चीख सुनते ही उसने नॉवेल एक तरफ रखा तथा फिर अद्वितीय फुर्ती के साथ डॉली के बैडरूम की तरफ झपटा ।
बैडरूम का दरवाजा खुला था ।
वह दनदनाता हुआ अंदर दाखिल हो गया ।
वह जैसे ही अंदर घुसा-फौरन डॉली बेहद दहशतजदां अवस्था में चीखती हुई उसके शरीर से आ लिपटी तथा बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगी ।
वह अभी भी नींद के आगोश में थी ।
“संध्या ! संध्या !!” पालीवाल ने उसे बुरी तरह झंझोड़ा ।
डॉली ने चौंकने का जबरदस्त अभिनय किया ।
उसकी आंखें खुलीं ।
फिर वो एकदम झटके से पीछे हटी ।
उसके वक्ष वेग से ऊपर-नीचे उठ गिर रहे थे, सांसों में तूफान था, कपड़े अस्त-व्यस्त थे ।
“संध्या-क्या हुआ संध्या ?” पालीवाल ने उसे हैरान निगाहों से देखा-“तुम चिल्लाई क्यों थीं ?”
जवाब देने की बजाय डॉली धम्म से बैड पर बैठ गयी और अपनी सांसों को संतुलित करने का प्रयास करने लगी ।
“तुमने क्या कोई बुरा सपना देखा था ।”
“कैसा सपना ?”
“वही सपना !” डॉली की आंखें उदास हो गयीं-“हमारे घर में आग लग रही है-मेरे मम्मी, डैडी और भाई का खून बहाया जा रहा है-खून के छींटे उड़ रहे हैं-उनकी चीखें गूंज रही हैं । म...मुझे यह सपना अक्सर दिखाई देता है साहब-और जब भी मैं इस सपने को देखती हूँ-तो इसी तरह चिल्लाकर उठ बैठती हूँ ।” बोलते-बोलते डॉली की आंखों में आंसुओं का समंदर तैर गया ।
उसने जोर से एक सुबकी ली ।
“धीरज रखो ।” जगदीश पालीवाल ने उसे ढांढस बंधाया-“वक्त के साथ-साथ हर जख्म भर जायेगा ।”
“सॉरी साहब !” डॉली ने अपने आंसू साफ किये-मेरी वजह से आपको इतनी रात को परेशानी उठानी पड़ी ।”
“इसमें परेशनी की कोई बात नहीं-वैसे भी अभी तो मैं जाग ही रहा था ।”
“म...मैं आपसे एक विनती करूं साहब ?”
“क्यों नहीं-जो कहना है, बे-हिचक कहो ।”
“दरअसल जिस रात मुझे यह सपना दिखाई देता है उस रात अगर मैं अपने कमरे में अकेली सोती हूँ, तो यह सपना मुझे बार-बार आता है ।”
“क्या मतलब ?”
“अगर आप इजाजत दें साहब-तो आज की रात मैं आपके कमरे में सोना चाहती हूँ । म...मैं जमीन पर ही सो जाऊंगी-वरना यह सपना बार-बार मुझे परेशान करता रहेगा ।”
“ल...लेकिन... ।” जगदीश पालीवाल, डॉली के उस प्रस्ताव पर हक्का-बक्का रह गया ।
“लेकिन क्या ?”
पालीवाल चुप ।
“शायद आपको कोई ऐतराज है साहब ?”
“नहीं-नहीं-ऐतराज जैसी कोई बात नहीं ।”
“फिर ?”
पालीवाल को सूझा नहीं-वो उस लड़की को क्या कहे ?
“ठीक है साहब-मैं यहीं सो जाऊंगी ।”
“नहीं-नहीं-अगर तुम्हें सपने की वजह से ज्यादा परेशानी होती है-तो तम मेरे बैडरूम में ही सो जाओ ।”
“थैंक्यू-थैंक्यू साहब ।”
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