07-19-2021, 11:25 AM,
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desiaks
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
थोड़ी देर बाद शीतल उठी तो फिर से उसे अपने आप में गुस्सा आ रहा था। लेकिन आज का गुस्सा कल से कम था। इन 24 घंटों में उसके दिमाग में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी और शीतल अपने फेवर में अपने मन को समझा चुकी थी। शीतल नहाने जाने लगी तो उसकी नजर दरवाजे में पड़ी जो खुला था। उसका मुँह खुला रह गया, क्योंकी वो अब तक नंगी ही थी। हे भगवान... मैं पागल हो गई हैं। ऐसे दरवाजा खोलकर मैं नंगी घूम रही हैं और क्या-क्या कर रही हैं। कहीं किसी ने देखा तो नहीं? फिर वो सोचने लगी की अभी भला कौन आएगा क्योंकी मुख्य दरवाजा तो बंद ही था और वसीम चाचा तो 3:00 बजे नीचे उतरते हैं। वो रिलैक्स हो गई और दरवाजा बंद करके नहाने चली गई।
विकास के आने के बाद आज फिर शीतल और विकास का टापिक वसीम खान ही था। बातें करते-करते शीतल वसीम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रही थी। इसलिये बिकास से पछी- "वसीम चाचा इतने साल अकॅलें रहे कसं? क्या इन्हें औरत की कमी महसूस नहीं होती होगी, तुम तो एक हफ्तें में पागल हए जा रहे थे..."
विकास हँस दिया और बोला- "जिसके पास तुम जैसी हसीन बीवी हो वो एक हफ्तं क्या एक दिन में ही पागल हो जाएगा। मैं बहुत खुशनशीब हूँ की तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की मेरी बीवी है.."
अब हंसने की बारी शीतल की थी। वो हँसती हुई बोली- "इतनी भी खूबसूरत तो नहीं हूँ.."
विकास ने उसे पीछे से पकड़ लिया और बोला- "तुम माल हो, मस्त माल... गोरा चिकना बद्दन। तुम्हारी चिकनी पीठ, फिसलती हुई कमर और गोरी मुलायम छाती को देखकर मेरा लण्ड कई बार टाइट हो जाता है। मैं तुमसे दूर होकर तो पागल हो ही जाऊँगा."
ऐसी तारीफ सुनकर शीतल शर्मा गई। रात को शीतल विकास को बोली- "कल हम वसीम चाचा को अपने यहाँ खाना खिलाएंगे, रात में। तुम कल उन्हें बाल देना। जो इंसान इतने सालों से अकेला है, खद से सब कुछ कर रहा है, उसे हम कभी कभार लंच या डिनर तो खिला हो सकते हैं। वैसे भी वो हमारा मकान मालिक हैं और जब से हम आए हैं, तब से एक बार भी हमने उन्हें अपने घर नहीं बुलाया है.."
अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों से अच्छे रिश्ते बनाना, मिलना जलना, खाना खिलाना शीतल और उसकी परिवार की आदत में शुमार था। लेकिन जब से शीतल यहाँ आई थी तो वो अपने आप में और अपने मेहमानों में ही बिजी थी। कभी वो विकास के साथ घूमने चली गई थी तो कभी उसके पेरेंट्स या विकास के पेरेंट्स यहाँ आ गये थे। वसीम का मुस्लिम होना भी एक वजह था।
विकास बोला- "क्या बात है, आजकल बसीम चाचा का ज्यादा ही ख्याल रखा जा रहा है?" उसने शरारती मुश्कान के साथ में कहा था।
लेकिन शीतल शर्मा गई और अंदर से डर भी गई थी। वो बोली- "क्या तुम भी कुछ भी बोल देते हो। कहाँ वो 50-55 साल का आदमी और कहाँ मैं?"
शीतल सोते समय बेड पे आने से पहले अपनी नाइटी को टीला कर ली और विकास से सटकर लेट गई। विकास के लण्ड में थोड़ी हलचल मच गई। दोनों रोज सेक्स नहीं करते थे। कभी कभार तो एक सप्ताह 15 दिन भी हो जाता था। लेकिन आज शीतल मूड में थी। विकास उसे किस करते हुए उसका बदन सहलाने लगा। शीतल ने खुद को नंगी होने दिया और विकास के नंगे होने का इंतजार करने लगी। वो अच्छे से करीब से विकास का लण्ड देखने लगी। उसे लगा की ये तो किसी बच्चे का लण्ड है।
वसीम का लण्ड उसकी नजरों के सामने घूम गया। विकास का लण्ड वसीम के लण्ड का आधा भी नहीं होगा और उसके सामने बिल्कल पतला था। विकास का लण्ड स्किन से टका हआ था। वो हाथ में लेकर सहलाने लगी और स्किन को पीछे खींचकर सुपाड़े को बाहर करने लगी तो विकास को दर्द होने लगा और उसने मना कर दिया।
शीतल उठकर बैठ गई और लण्ड को दोनों हाथों में लेकर सहलाने लगी। शीतल के इस रूप को देखकर विकास साइज्ड था। अब तक शीतल सेक्स में विकास का बस साथ देती थी, वो भी कभी कभार और आज तो खुद लीड कर रही थी। दो दिन पहले भी शीतल ने पहल की थी, लेकिन आज तो उसने हद ही कर दी थी।
विकास शीतल के ऊपर आ गया और लण्ड को चूत पे रगड़ते हुए अंदर डालने लगा। शीतल विकास के लण्ड को चूमना चाहती थी, उसके वीर्य की खुश्बू लेना चाहती थी, लेकिन विकास तब तक उसके ऊपर आ चुका था। विकास ने लण्ड अंदर डाल दिया और 8-10 धक्के लगाते ही उसके लण्ड ने पानी छोड़ दिया। शीतल का तो समझ में ही नहीं आया की हुआ क्या है? वो तो अभी तक शुल भी नहीं हुई थी की बिकास का खेल खतम हो गया। विकास बगल में हो गया और करवट बदलकर सो गया।
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07-19-2021, 11:26 AM,
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
चूत से पानी निकालने के बाद शीतल नंगी ही सो गई और शाम तक नंगी ही अपना काम करती रही। बसीम के वीर्य की खुश्बू ने उसके अंदर की काम ज्वाला को प्रज्वल्लित कर दिया था। विकास के आने से पहले वो नहाकर फ्रेश हो गई और शाम के दावत की तैयारी करने लगी।
शाम में विकास आया तो पता चला की उसने वसीम को अब तक इन्वाइट ही नहीं किया है। शीतल उससे झगड़ने लगी की मैं इतनी तैयारी कर रही हैं और तुमने गेस्ट को इन्वाइट ही नहीं किया। विकास ने तुरंत ही वसीम खान को काल किया। बिकास सोचने पे मजबूर हो गया की शीतल आजकल बसीम में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट ले रही है। कहीं सच में दोनों के बीच कुछ है तो नहीं? उसके दिमाग में बहुत कुछ चलने लगा और उसके लण्ड में हलचल होने लगी की उसकी 23 साल की जवान और बेहद हसीन बीवी एक 50-55 साल के गैर मदं के चक्कर में है।
वसीम खान के पास विकास का फोन आया की आपका आज रात का खाना हमारे घर में ही होगा। वसीम में दाबत कबूल किया और मुश्करा उठा। अब वो दिन दूर नहीं था जब शीतल जैसी मस्त हसीन औरत उसके लण्ड के नीचे होने वाली थी। बसीम के मन में आगे का पूरा प्लान बन रहा था। उसका शिकार अब उसके पंजे से ज्यादा दूर नहीं था।
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शीतल में वसीम को डिनर पर बुलाया शीतल में बसीम पे दया दिखाते हुए मैं दावत रखी थी की वो अकेले रहते हैं इतने सालों से और खाना भी खुद बनाते हैं, तो हम हफ्ते में एक बार तो उन्हें अपने यहाँ खिला ही सकते हैं। शीतल की सोच अब बन गई थी की उनके मन में मेरे लिए अरमान हैं, तो मैं उन्हें पता नहीं लगने दूंगी की मुझे पता है और उनकी हेल्प करेंगी। उन्हें मुझे देखना पसंद है तो वो घर आएंगे तो अच्छे से देख सकेंगे, खुलकर बातें कर सकेंगे। इस तरह उन्हें शायद आराम मिले।
शीतल को क्या पता था की जो बीमारी वसीम को है में उसका इलाज नहीं है, बल्कि उस मर्ज को और आगे बढ़ाने का उपाय है। शायद पता भी हो लेकिन उसने अपने मन को यही समझा लिया था की वो इस तरह वसीम की मदद कर रही है।
विकास भी राजी था की सही बात है, कभी कभार तो हमें वसीम चाचा को लंच या डिनर तो कराना ही चाहिए। विकास भी खाना बनाने में अपनी बीवी की मदद कर रहा था। शीतल बहुत अच्छी साड़ी पहनी थी और बड़े प्यार से सारा खाना बनाया था। उसकी ये साड़ी भी डिजाइनर ही थी जिसमें क्लीवेज और पीठ दिख रही थी। शीतल लो-वेस्ट साड़ी ही पहनी थी। साड़ी का आँचल ट्रांसपेरेंट था जिससे शीतल की नाभि और क्लीवेज साफ दिख रही थी। हालाँकी ये कोई नई बात नहीं थी। शीतल हमेशा ऐसे ही कपड़े पहनती थी।
फिर भी विकास में मजाक में शीतल से कहा- "आज तो वसीम चाचा पे तुम बिजलियां गिराने वाली हो..."
शीतल भी मुश्करा दी। उसका इरादा तो यही था।
वसीम खान अपने बढ़त पे घर आ गया और फ्रेश होकर विकास के घर आ गया। वसीम में सफेद कुर्ता पाजामा पहना था। दरवाजा पे नाक करते ही शीतल दौड़कर दरवाजा खोली। विकास टीवी देख रहा था और जितनी देर में बो उठता तब तक शीतल दरवाजा खोल चुकी थी।
वसीम के ऊपर दरवाजा खुलते ही जैसे बिजली गिर पड़ी। शीतल को देखकर उसके जिम में सिहरन हो गई। बसीम ने शीतल को जब भी देखा था तो दूर से देखा था। इतने करीब से ये पहला मौका था उस हश्न का दीदार करने का। शीतल भी बिजली गिराने को तैयार ही थी।
ट्रांसपेरेंट साड़ी के अंदर से झांकता गोरा चिकना कमसिन बदन, माँग में सिदर, माथे में लाल बिंदी, आँखों में काजल, होठों पे मरून लिपस्टिक, गले में एक चैन क्लीवेज तक और मंगलसूत्र ब्लाउज़ के ऊपर, कसे हुए ब्लाउज़ के ऊपर से झांकती हुई चूचियां, गोरा चिकना पेट नाभि के नीचे तक, दोनों हाथों में पूरी चूड़ियां और पैरों में पायल। शीतल साक्षात अप्सरा लग रही थी। वसीम उसे देखता ही रह गया। उसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी। उसका मन हआ की अभी ही शीतल को बाहों में भर ले और उसे चूमना स्टार्ट कर दे।
शीतल जब मुश्कराती हई खनकती आवाज में- "आइए ना चाचाजी." बोलती हई दरवाजे के आगे से हटी तब वसीम झटके से होश में आया।
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07-19-2021, 11:26 AM,
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल खाने बैठी तो विकास ने उससे कहा- "आज तो तुम वसीम चाचा में कयामत टा रही थी.."
शीतल हँस पड़ी और फिर मजाक में बोल दी- "लेकिन फिर भी बसीम चाचा ने तो देखा भी नहीं। बो कितने शरीफ और जेक इंसान हैं..."
विकास को शीतल की ये हँसी अजीब लगी और उसने भी हँसते हए मजाक में पूछा- "क्या तुम वसीम चाचा के लिए ही इतना सजी थी?"
शीतल मुश्कुरा दी और हँसकर बोली- "ही... तुम्हारे लिए इतना क्यों सजू? तुम तो ऐसे ही मुझे इतना प्यार करते हो..."
बात मजाक में कही गई थी लेकिन विकास की आँखों के सामने ये दृश्य चलने लगा की कैसे शीतल खाना खिलाते वक़्त झक रही थी बार-बार। वो अकेला बैठकर टीवी देख रहा था लेकिन उसकी आँखों के सामने ये दृश्य चल रहा था की वसीम के सामने झुकने पे शीतल का आँचल उड़ गया और वो हड़बड़ा कर वसीम पे गिर पड़ी थी, और वसीम उसकी चूचियों को मसलने और चूसने लगा। अपनी हसीन बीवी का उस बटे मर्द के साथ ये बात सोचकर विकास का लण्ड टाइट हो रहा था। वो खाना खाती हई शीतल को गौर से देखने लगा और सोचने करने लगा की कैसे वसीम उसके चिकने जिम को मसल रहा है, और कैसे शीतल उस बढ़े आदमी के साथ मस्ती कर रही है।
सोने जाते वक्त शीतल अपने सारे कपड़े उतार दी और नाइट सूट पहनकर सोने आ गई। उसे गुस्सा आ रहा था की उसकी इतनी मेहनत बेकार गई। कितने जतन से वो सजी थी, ताकी बसीम उसे देखकर अच्छा महसूस कर पाए लेकिन उसने देखा तक नहीं। उसे लगा था की शीतल को इस तरह अच्छे से देखकर उसे आराम मिलेगा। लेकिन उसे क्या पता था की यहाँ तो बसीम किसी तरह खुद पे काबू किए रहा, लेकिन रूम में जाते ही वो नंगा हुआ और शीतल का नाम जप्ते हुए लण्ड से वीर्य निकालकर बर्बाद कर दिया।
विकास का लण्ड टाइट था। उसने चोदने के लिए शीतल के जिश्म पे हाथ लगाया।
दी, और सोचने लगी- "मझ नहीं चदवाना इस बच्चे टाइम के लण्ड से। दो मिनट होगा नहीं की खुद तो सो जायेगा और मैं मरती रहगी। एक वा वसीम चाचा हैं जिनके पास इतना बड़ा मोटा मूसल टाइप का लण्ड है और जिसका वीर्ष वो मेरे पैंटी बा पे निकलता है, लेकिन सामने मैं हूँ तो देखता भी नहीं। दोनों का काम बस मुझे तड़पाना है। वो अकेले में तड़पेंगा लेकिन ये चैन की नींद सोएगा। इसलिए तुम भी तड़पो पातिदेव..." और शीतल सोतती हुई सो गई।
वसीम रूम में घुसते ही नगा हो गया और लण्ड आगे-पीछे करने लगा। उसका लण्ड फुल टाइट था- "आह्ह... मेरी रांड, क्या माल लग रही थी त... जी तो चाह रहा था की उसी वक़्त पटक कर तुझे चोद दूं। लेकिन क्या करेंगे जान, तर इस हसीन जिश्म को ऐसे नहीं पाना चाहता। जो त झुक कर चूची दिखा रही थी उसे जरन मसलंगा, और चुसंगा, बस तू थोड़ी और पक जा मेरी बडी बनने के लिए। फिर तेरे पूरे जिम में मेरा अधिकार होगा.."
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अगले दिन दोपहर होते ही शीतल वसीम के लण्ड का दर्शन करने अपनी जगह पहुँच गई। अब शीतल को बिल्कुल इर नहीं लगता था और वो ऐम स्टोरम में जा रही थी जैसे में कोई नार्मल सिंपल काम हो। उसने अपने मन में सोच लिया था की अगर वसीम में उसे देख भी लिया तो भी कोई परवाह नहीं। क्योंकी वसीम गलत काम कर रहा है, मैं नहीं। मैं तो ये पता लगाने छत पे छपकर बैठी थी की आखिर वो है कौन जो रोज मेरी पैंटी बा को गोली करता है?
शीतल अपनी जगह पे बैठ गई। रोज की ही तरह वसीम आया और फिर कपड़े चेंज करके अपने काम में लग गया। आज उसका लण्ड जरा ज्यादा टाइट था, शीतल का कल का रूप देखकर। उसने पैंटी ब्रा को भीगा दिया और अपनी जगह पर टांग कर अपने रूम में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया।
दो ही मिनट बाद शीतल स्टाररूम से बाहर निकली और आज सिर्फ पैंटी ब्रा लेकर नीचे चली गई। बाकी कपड़े उसने छत पे ही छोड़ दिए। सीदियों पे ही शीतल कपड़े में लगे वीर्य को सूंघने और चाटने लगी। उसे वसीम में बहुत गुस्सा आ रहा था? ये क्या पागलपन है यार। सामने होती है तो देखता भी नहीं, बात करना तो दूर की चीज है और गोज पैटी ब्रा में वीर्य गिराता है। इतनी ही आग है मन में मुझे लेकर तो मेरे से बात करो, मुझे देखा तो शायद आराम मिले, शायद अच्छा लगे। और अगर शरीफ ही बनें रहना है तो पं भी मत करो। मन में तो पता नहीं कितने अरमान पाल रखा होगा मेरे बारे में, कितनी तरह से चोद चुका होगा, लेकिन बाहर से इतना शरीफ बनता है की कहना ही नहीं?
शीतल भी रोज की तरह नीचे आकर नंगी हई और वीर्य चाटते हए वसीम के बारे में सोचती रही और चूत में पानी निकालने के बाद नंगी ही रही।
3:00 बजे शीतल के घर का दरवाजा नाक हआ। शीतल नंगी ही लेटी टीवी देख रही थी। वो हड़बड़ा गई और जल्दी से कपड़े टूटने लगी। वो पैंटी ब्रा पहनती तो लेट होता। इसलिए वो हड़बड़ी में बस नाइटगाउन पहनतें हए पूछी- "कौन है?"
उधर से वसीम की आवाज आई- "मैं हैं, वसीम खान..."
शीतल का दिल जोरों से धड़क गया की ये क्यों आए हैं? कहीं मुझे देख तो नहीं लिया? शायद सिर्फ पैंटी ब्रा लाई उठाकर तो इन्हें पता लग गया होगा की मुझे पता है। पता नहीं क्या बोलेगा? शीतल हड़बड़ाती हुई दरवाजा खोली- "आइए ना वसीम चाचा, अंदर आइए..."
वसीम बोला- "नहीं, बस जा रहा है। रात में आने में थोड़ी देर हो जाएगी। बस यही बोलने आया था। तो दरवाजा बंद कर लीजिएगा और मैं काल करेंगा तो दरवाजा खोल दीजिएगा..."
शीतल बोली- "ठीक है, कोई बात नहीं खोल देंगी। आइए ना चाप तो पीकर जाइए..."
वसीम- "ना ना चलता हैं अभी..." बोलता हुआ चला गया।
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07-19-2021, 11:26 AM,
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल की जान में जान आई वसीम के जाने के बाद। लेकिन उसके मन उदास हो गया की अंदर आकर बैठकर कुछ बात तो करतें कम से कम। बैंकार में कपड़े पहनी। नंगी ही दरवाजा खोल देती, नहीं तो कम से कम कपड़े तो टीले रखती। पूरा टक ली। बेचारे एक तो कभी आते नहीं और आए भी तो मुझे कुछ तो दिखा ही देना चाहिए था। मैं इतनी हड़बड़ा गईं थी की दिमाग ही काम नहीं किया? और शीतल वसीम के ख्यालों में फिर से खो गईं।
बाहर जाते हए वसीम का लण्ड टाइट हो चुका था। शीतल अपने हिसाब से वसीम को कुछ नहीं दिखा पाई थी, लेकिन वसीम को हरामी नजर एक झटके में ये ताड़ गया था की रंडी ने अंदर कुछ नहीं पहना था। चूचियों की गोलाई में सटी नाइट गाउन को देखकर हो वा समझ गया की अंदर ब्रा नहीं था और इसलिए वसीम का लण्ड और टाइट हो गया था। रोड पे आने से पहले उसने अपने लण्ड को पायजामा में अइजस्ट किया और दुकान की तरफ चल पड़ा।
वसीम सोचने लगा- "रडी पक्का अंदर नगी होगी। चुदवाने के लिए मरी तो जा रही है लेकिन हाए रे संस्कारी नारी, कुछ बोल नहीं पा रही। बाकी कपड़े छोड़कर सिर्फ पैंटी बा इसलिए ले गई ताकी मैं जान स. की वो जानती है और मेरी हिम्मत बढ़ जाए। लेकिन मेरी रांड़, इतनी आसानी से तुझं थोड़ी मेरा लण्ड दें दंगा। जब तक तू पूरी मेरी रोड़ नहीं बन जाती तब तक तू तड़पेगी। तड़प तो मैं तुझसे ज्यादा रहा है गड़। तुझं घोड़ी जल्दी करनी चाहिए थी, तरी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी?"
सोचता हआ वसीम दुकान चल पड़ा और अपने प्लान को माडिफाई करने लगा। वो प्लान जिसमें एक सीधी सादी शरीफ पवित्र टाइप की लड़की को उसे अपनी रंडी बनाना था। उसके तन मन को अपने सामने समर्पित करवाना था। शीतल का समर्पण चाहिए था उसे।
रात में फिर शीतल विकास से वसीम के बारे में ही बात कर रही थी। शीतल ने कहा- "आज वसीम चाचा लेंट में आएंगे। दरवाजा बंद कर लेने बोले हैं। जब वो आएंगे तो काल कर लेंगे तब दरवाजा खोल देने बोले हैं..."
विकास- "ठीक है। ज्यादा रात होगी बन्या उन्हें?"
शीतल- "ये तो पूरी नहीं। बस इतना बोलें और चले गये। मैं तो अंदर आने बोली भी लेकिन आए नहीं.."
विकास मुश्कुरा दिया, और बोला- "अरे बाह... आकर बोल गये। कल देखकर गये तुम्हें तो आज फिर से देखने का मन किया होगा। क्या पहनी हुई थी तुम आज?"
शीतल बनावटी गुस्से में बोली- "नंगी थी... तुम्हें और कुछ तो सूझता है नहीं। तुमने देखा था ना उस दिन वा देखते भी नहीं मेरी तरफ..."
विकास- "तुम्हें दिखाकर थाई ना देखते होंगे। तुम्हारी जैसी हर को कोई बिना देखें रह ही नहीं सकता। लेकिन उसे शर्म आती होगी की वो उतना उम्रदराज होकर भी तुम्हें देख रहा है। लेकिन एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की लार तो जरगर टपकती होगी उनकी। मर्द जात ऐसे ही होते हैं। तुम्ही खोल देना दर बाजा, एक बार और देख लेंगे तुम्हें...
शीतल को विकास की बात में दम नजर आया- "उन्हें उम्र की वजह से शर्म आती होगी। हैं भी तो वो मेरे से गर्ने उम्र के। उफफ्फ... इसीलिए वो इंसान अंदर ही अंदर तड़प रहा होगा। मुझे ही कुछ करना होगा उनके लिए? सोचती हुई फिर वो विकास को बोली- "मुझे तो उन पर दया आती है। मुझे देखतें तक नहीं, बात करना तो दूर की बात हैं। लेकिन इतने सालों में अकेले ही अंदर-अंदर घट रहे हैं। मेरी छोड़ो, तुमसे भी तो बात करके मन का बोझ हल्का कर सकते हैं.."
विकास हम्म्म... बोलता हुआ करवट बदलकर सोने लगा और शीतल अभी का प्लान बनाने लगी- "दोपहर में तो वा हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। विकास अब सुबह ही जागने वाला था। शीतल का मन हआ की सच में नंगी ही जाकर दरवाजा खोल दूं। देखती ह बूढ़े मियां फिर देखते हैं की नहीं?" सोचकर वो खिलखिला दी।
शीतल वही नाइटगाउन पहनी हुई थी। विकास के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वा बाडी लोशन लेकर अपने सीने पे और चूचियों पे अच्छे से लगा ली। उसकी चूचियां तो ऐसे ही गोरी थीं, अब और चमक उठी। फिर उसने चेहरे को साफ किया और कीम और डी.ओ. लगा ली। अब शीतल ने नाइटगाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे खीच लिया और कालर को थोड़ा फैलाली। अब उसकी दोना गोलाइयां गहराईके साथ दिख रही थीं। शीतल अब दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी। शीतल को नींद ही नहीं आ रही थी।
सीतल मन ही मन सोच रही थी की कैसे दरवाजा खोलेंगी और क्या करेंगी? लेकिन शीतल की इतनी हिम्मत नहीं हई की बसीम से काई भी बात सीधी कर पाए। बा अपने नाइटी का ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गई तो कहीं वो मुझे गलत टाइप की ना समझ लें। फिर शीतल को खपाल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हैं, तो उन्हें लगेगा की मैं तो जाग कर उनका इंतजार कर रही थी। अगर मैं नींद में बही की किसी तरह की गलती हो सकती है। उसने फिर से बा को उतार दिया और नाइटगाउन को टोली कर ली। अब चलने पे उसकी चूचियां आराम से गोल-गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चूचितों में हो रही शिरकन साफ-साफ दिख रही थी। शीतल अपने बाल बिखरा दी और चेहरे को भी पानी से धोकर उनींदा टाइप का चेहरा बनाने लगी। रात के 11:00 बज गये थे और वसीम का अब तक काल नहीं आया था। शीतल अपनी पेंटी भी उतार दी थी। वो दो-तीन बार बाहर झांक कर भी आ गईथी वसीम आए या नहीं।
उसने सोचा की में ही पूछ लेती हैं लेकिन फिर उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद विकास के मोबाइल में काल आया। शीतल दौड़कर फोन उठाई तो वसीम चाचा लिखा हआ था। शीतल अपनी साँसों को कंट्रोल की और उनींदी आवाज में "हेला" बोली।
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
वसीम ने कहा- "मैं आ गया है, दरवाजा खोल दो प्लीज..."
शीतल फिर से उनींदी आवाज में ही- "हाँ आती हूँ.." बोली और खुद को अइजस्ट कर ली। उसने खुद को एक बार आईने में देखा और गाउज को ठीक से अइजस्ट की जिसमें बलीवेज चचियों की गोलाईयों के साथ दिखें।
शीतल ऐसे चलकर बाहर आई, जैसी कितने नींद में हो। उसने बाहर की लाइट जला दी और दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खुलते ही बसीम की आँखों के सामने शीतल की गोरी चूचियां चमक रही थी। वसीम तो शीतल की आवाज सुनकर ही लण्ड टाइट किए बैठा था। एक झटके में उसे अंदाजा लग गया की उसकी होने वाली चंडी अभी भी बिना ब्रा के है और उसी को दिखाने के लिए डीप नेक गाउन पहनी हुई है। उसका मन किया की हाथ बढ़ाए और इन दूध से भरी बसमलाईयों को पकड़कर जिचोर दे और चूस लें। वसीम को पता था की शीतल भी यही चाहती होगी, और अगर उसनं ऐसा किया तो छोटी मोटी आक्टिंग के अलावा और शीतल कुछ लेकिन वसीम ने खुद पे काबू किया और बोला- "सारी, आप लोगों को परेशान किया..'
शीतल उल्टे कदम ही पीछे होती हई बोली। ताकी उसकी चूचियों को थिरकन को वसीम अच्छे से देख सके। कल बिकास मौजूद था तो इन्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन आज काई नहीं है तो ये अच्छे से देख सकें मुझे। शीतल बोली- "इसमें परेशानी की क्या बात है?"
वसीम ने दरवाजा लाक कर दिया और ऊपर जाने लगा। शीतल को लगा की ये क्या हो रहा है। ये तो जा रहे हैं।
शीतल तुरंत बोली. "खाना खाकर आए हैं या अभी बजाएंगे। आइए यहीं खा लीजिए, मैं बनाकर रखी हूँ.."
वसीम नजरें नीची किए हुए ही चलते हुए बोला- "नहीं शुक्रिया, मैं खाकर आया हैं। सो जाइए आप भी। शुक्रिया फिर से और माफी मांगता हैं परेशान करने के लिए...' बोलता हआ वसीम सीटियों पे चल दिया और शीतल उगी सी खड़ी की खड़ी रह गई।
शीतल को यकीन नहीं हआ की ये आदमी ऐसा है। उसे लगा था की इस तरह के कपड़े और अकेली पाकर वो पकड़कर शीतल से बातें करने लगेगा और शीतल उसकी मदद कर पाएगी उसके अंदर के जमे हए गुबार को बाहर करने में। उसे गुस्सा भी बहुत आया और फिर विकास की वही बात याद आई की इसे अपने उम्र की वजह से शर्म आती होगी, नहीं तो जी तो चाहता होगा उसका की तुम्हारे साथ खूब मस्ती करें।
शीतल को जोर का गुस्सा आया। उसका मन किया की अभी वसीम पे बरस पड़े। वा वहीं खड़ी थी और वसीम सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर चला गया। शीतल का मन हुआ की वसीम को खींचकर रोक लें और उससे पूछे की अगर अभी नजर उठाकर देख भी नहीं सकते, बात भी नहीं कर सकते तो दिन में क्या करते हो? लेकिन गुस्सा दिखना सही नहीं होगा। वो तो वही कर रहे हैं जो एक शरीफ इंसान को करना चाहिए।
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल को जोर का गुस्सा आया। उसका मन किया की अभी वसीम पे बरस पड़े। वा वहीं खड़ी थी और वसीम सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर चला गया। शीतल का मन हुआ की वसीम को खींचकर रोक लें और उससे पूछे की अगर अभी नजर उठाकर देख भी नहीं सकते, बात भी नहीं कर सकते तो दिन में क्या करते हो? लेकिन गुस्सा दिखना सही नहीं होगा। वो तो वही कर रहे हैं जो एक शरीफ इंसान को करना चाहिए।
फिर उसने सोचा की जाती हैं ऊपर और अच्छे से बात कर ही लेती हैं आज। वो दो-तीन सीढ़ी चढ़ी भी लेकिन इससे आगे की उसकी हिम्मत नहीं हुई। वो सोचने लगी की इतनी रात को अगर में उनके गम में जाऊँगी तो ये ठीक नहीं रहेगा। कल दिन में पूछ लेंगी। वो तो शरीफ इंसान हैं, लेकिन मैं क्यों रंडी जैसी हरकत कर रही हैं? शीतल कल दिन में कैसे क्या बात करेंगी सोचती हई अपने रूम में आ गई।
विकास ने आधखुली आँख से अपनी बीवी को अंदर आते देखा। उसे सदमा लगा। शीतल उसे सोया हुआ मानकर दरवाजा खोलने की जो तैयारी कर रह रही थी। विकास वो सब अपनी अधखुली आँखों से देख रहा था। उसे अब यकीन हो चला था की उसकी कमसिन जवान बीवी उस बूटै बसीम के चक्कर में हैं। जितनी देर शीतल रूम से बाहर दरवाजा के पास थी, विकास सोच रहा था की वसीम और शीतल क्या कर रहे होंगे?
विकास के अनुसार शीतल दरवाजा खोली होगी और वसीम के सामने उसकी गोल मुलायम गोरी चूचियां चमक उठी होगी। वसीम देखता रह गया होड़ा। उसने अपनी नजरें नीची कर ली और शीतल को थैक बोलतं हआ पीछे हटने बोला लेकिन शीतल हटी नहीं और उससे सट गई। उसने चूचियां वसीम के सीने से दबा दी और वसीम को पकड़ लिया। अब वसीम के लिए कंट्रोल मुश्किल था। वो शीतल के होठों को चूमने लगा और नाइटगाउन की बीच दिया। शीतल की चूची बाहर आ गई और वसीम पागलों की तरह उसे मसलता हआ चूसने लगा। शीतल आहह... उहह... कर रही थी.." सोचते हये विकास का लण्ड पूरा टाइट हो चुका था। लेकिन शीतल के अंदर आने से उसे बहुत बुरा लगा की उसकी इतनी हसीन बीवी को वसीम भाव नहीं दे रहा।
शीतल को भी लगा था की अभी तो बसीम उससे बात करेंगा ही और देखेंगा हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शीतल सो गई और उसकी नाइटी दीली हो गई जिससे उसकी चूचियां बाहर आ गई। विकास को नींद नहीं आ रही थी
और उसका लण्ड टाइट था। शीतल की चूची को देखकर बो उसे सहलाने और चूसने लगा। शीतल नींद में थी और गरम थी। वो सपने देख रही थी की वसीम उसके साथ ऐसा कर रहा है। वो मुश्करा रही थी और विकास का पूरा साथ देते हए वो पूरी गरम हो चुकी थी।
विकास ने शीतल की नाइटी को सामने से पूरा खोल दिया और शीतल का गोरा जिश्म चमक उठा। विकास ने लण्ड को शीतल की चूत में लगाया और अंदर डाल दिया। शीतल कमर उठाकर और अंदर लेने के लिए उछलने लगी, लेकिन वसीम का लण्ड होता तब तो अंदर जाता। था तो ये विकास का ही लण्ड। शीतल की नींद खुल गई और उसका मूड आफ हो गया। वो विकास को हटाने लगी।
विकास पहले से ही पूरा टाइट था, लण्ड अंदर डालते ही 8-10 धक्के में उसने पानी छोड़ दिया। शीतल को अब गुस्सा आ गया और उसका मन किया की विकास से खूब झगड़ा करें लेकिन रात थी इसलिए वो मन मसोसकर रह गई और विकास को अपने ऊपर से उतारकर बाथरुम चली गई।
शीतल नाइटी उतार दी थी और नंगी ही बाथरूम गई थी। पेशाब करने के बाद वो चूत सहलाने लगी। सोचने लगी की कितना अच्छा सपना था की वसीम मुझे चूमते हए मेरी चूची को सहला रहे थे, और फिर नाइटी की डारी खोलकर नंगी चूचियों को सहला रहेज थे, और चूस रहे थे। आहह... कितना अच्छा होता की ये वसीम ही होतं, विकास नहीं होता। आहह... वसीम का लण्ड चूत में कितना अंदर तक जाता आहह... आहह... वसीम क्यों नहीं आपने पकड़ लिया मुझे दरवाजा पै? क्यों नहीं मुझे चूमने लगे? खोल देते मैरी नाइटी को और अच्छे से देखतें मेरे नगे जिस्म का। देखतं उस जगह को जहाँ में पैंटी ब्रा पहनती हैं। छ लेते उस जगह को। चमतं ममलत मेरी चूचियों को। जो वीर्य आप पैंटी बा पे गिराते है वो उस जगह पे गिरते जहाँ मैं उन्हें पहनती हैं। आह्ह. वसीम चाचा चोद लेते मझे। मेरी चूत में डाल देते अपना मोटा लण्ड और गिरा देते वीर्य मेरी चूत में। आहह... उम्म्म्म ... शीतल की चूत में पानी छोड़ दिया और वो हौंफती हुई बाथरूम से आ गई।
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07-19-2021, 11:27 AM,
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desiaks
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल को चोदने के बाद विकास सो गया था। शीतल किचन में जाकर पानी पिया और फिर सोने आ गई। पहली बार आज शीतल नंगी सो रही थी। शीतल सोचने लगी की ये क्या सोच रही थी वो? ये कैसा सपना था की उसका पति बिकास उसे चोद रहा था लेकिन वो सोच रही थी की वसीम से चुद रही है। क्या मैं सच में वसीम से चुदवाना चाहती हैं? हौं, तभी तो मैं दरवाजा पे ऐमें गई थी। अगर वसीम चाचा मुझे कुछ करते तो क्या मैं उन्हें रोक पाती? बिल्कुल नहीं। मैं उनसे चुदवाना चाहती हूँ तभी तो उनके वीर्य की खुश्बू मुझे पागल कर देती है। और जो आदमी मेरी पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराता है राज तो वो मुझे चोदने का सोचकर ही वीर्य गिराता होगा, कोई भजन गाकर तो वीर्य नहीं ही गिरता होगा।
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मुझे चोदकर ही वसीम चाचा रिलैक्स हो पाएंगे। नहीं तो वो शरीफ इंसान अंदर ही अंदर घुट-घुट कर मार जाएगा। कल मैं उनसे सीधी-सौंधी बात करेंगी, और अगर वो मुझे चोदना चाहेंगे तो मेरा जिस्म पेंश हैं उनकी मदद के लिए। मेरी वजह से वो आदमी मर रहा है तो ये पूरी तरह मेरी जिम्मेवारी है की मैं उन्हें इससे बाहर निकालं, चाहे भलें इसके लिए मुझे उन्हें अपना जिम ही क्यों ना देना पड़े।
शीतल के अंदर से आवाज आई- "तू रंडी हो गई है क्या, जो दूसरे मर्द से चुदवाने की बात सोच रही है? तू ऐसा सोचकर भी पाप कर रही है। अपने पति को धोखा देगी त? वसीम के बड़े लण्ड के लालच में तू विकासको धोखा देंगी?"
अंदर से शैतान ने जवाब दिया- "धोखा वाली कौन सी बात हो गई? मैं तो वसीम की मदद करगी, क्योंकी वो मेरी वजह से दर्द सह बहा है। इतने सालों से वो अकेला है और अब मेरी वजह से तड़प रहा है, तो मेरा ही फर्ज हैं उसकी मदद करना। और मैं उससे चुदवाने नहीं जा रही हैं। मैंने कहा की अगर मुझे अपना जिश्म देकर भी उसकी मदद करनी पड़ी को करेंगी। अगर मैं उससे चदबाऊँगी हो तो कौन सा राज चदवाऊँगी?
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