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XXX Kahani ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
भाग - पहला
मेरी उमर बीस साल की है. मैं अपने मां-पिताजी की अकेली बेटी हूँ. मुझे बचपन से ही लड़कों की तरह रहे की आदत है. लड़कों जैसे छोटे बाल , टी-शर्ट और जींस और अपनी सहेलियों के साथ भी लड़कों की तरह से बरताव करना. लेकिन करीब दो महीने पहले एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे बड़ी अजीब सी स्थिति में लाकर खडा कर दिया है. मुझे शुरू से लड़कों में कोई रूचि नहीं रही क्यूंकि मैं खुद उनके जैसी रहती आई थी. हम कोलेज की सभी सहेलीयां एक इंग्लिश फिल्म देखने एक साथ गई. फिल्म के एक सीन में हीरो हिरोइन को समुन्दर में किस करता है और फिर उसके सीने को मसलता है और उसके होंठ चूमता है. इस सीन से हम सभी पाँचों सहेलियाँ उत्तेजित हो गई . मेरे पास रश्मि बैठी हुई थी. मेरा हाथ अचानक रश्मि की तरफ बढ़ा और उसके टी-शर्ट पर उस जगह पर गया जहां उसका सीना उभरा हुआ था. मैंने उसके उभार को दबा दिया. बदले में रश्मि ने भी मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया.
उस दिन के बाद मैं जब भी रश्मि को देखती तो मेरी इच्छा होती कि मैं उसे बाहों में भर लूँ. उसे चुमुं. धीरे धेरे मुझे हर वक्त रश्मि ही दिखाई देने लगी.
दो दिन बाद मेरी एक सहेली का जन्मदिन था. हम सभी सहेलीयां वहाँ थी. रश्मि भी आई थी. मैंने रश्मि को देखा और शरारत से बोली " उस दिन फिल्म में मजा आया ना!" रश्मि ने आँख मारी और बोली " तुम ने बहुत शैतानी की थी उस दिन." मैंने कहा " आज फिर मेरी ईच्छा है कि मैं शैतानी करूँ." रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा " ये कौनसा तरिका है शैतानी का ?" मैंने जवाब दिया " शैतानी का नहीं ये मजे करने का तरिका है मेरी जान , मेरी चिकनी. चल आ किसी कोने में." मेरे इतना कहते ही रश्मि मेरे साथ मेरी सहेली के घर के एक कमरे में आ गई. हम लोग जैसे ही करीब आने को हुए मेरी सहेली की मां कमरे में कुछ सामान लेने आ गई. हम बाहर निकल गए, मुझे अचानक बाथरूम दिखाई दिया.
मैं रश्मि को लेकर चुपचाप सभी की नज़रें बचाकर बाथरूम में चली गई. मैंने रश्मि के कुर्ती का बटन खोला और अपने हाथों से उसके सीने को दबाना शुरू कर दिया. रश्मि को अच्छा लगने लगा. अब मैंने रश्मि को बाथरूम की दीवार की तरफ धकेला और उसे मेरे सीने के दबाव से उसके सीने को दबाना शुरू किया. रश्मि ने एक आह भरी और मुझे बाहों में जकड़ते हुए कहा " तुम पागल कर डौगी यार. पता नहीं अन्दर क्या क्या होने लगा है." मैंने धीरे से रश्मि के गालों को अपनी जीभ निकालकर चूमा और गीला कर दिया. रश्मि ने मुझे बहुत जोर से दबाते हुए पकड़ लिया और सिसकी भरने लगी. अब हम दोनों बेकाबू हो गई थी. बार बार एक दूजे को अपने अपने सीने से दबा रहे थे और मचल रहे थे. फिर अचानक बाहर केक काटने के शोर को सुनकर हम बड़ी मुश्किल से अलग हुए और पार्टी में ज्वाइन हो गए.
इसके बाद काफी दिनों तक मुझे और रश्मि को कोई एकांत नसीब नहीं हुआ. मैं सारी सारी रात तड़पती और तकिये को दबाकर खुद को शांत करती.
करीब एक महीने बाद एक बार फिर हम कुछ सहेलियां एक फिल्म देखने गए. मैं, रश्मि, सायरा और दो दूसरी लडकीयाँ. मैं और रश्मि पास पास बैठी. एक सीन में जैसे ही हीरो हिरोईन ने बाँहों में भरकर एक दूजे को चूमा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने रश्मि को उसके गालों को चूम लिया. बदले में रश्मि ने भी मेरे गालों को चूम लिया. अब तो लगभग हर ऐसे सीन पर हम दोनों आपस में एक दूजे के गालों को चूमने लगे. सायरा ने हमें ऐसा करते दो तीन बार देख लिया मगर हम दोनों बेखबर थे तो पता नहीं चल सका.
फिल्म के ख़तम होने के बाद मैं रश्मि और सायरा एक ऑटो में बैठकर घर चल पड़े. सायरा ने अचानक मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा " ये तुम दोनों फिल्म में एक दूजे के साथ क्या क्या हरकतें कर रही थी?" मैं बिलकुल नहीं घबराई और बोली " हम दोनों को इसमें बहुत मजा आता है तो हम करते हैं." उस दिन बात आई गई हो गई.
करीब एक हफ्ते बाद एक दिन दोपहर को मैं घर में अकेली थी कि सायरा का फोन आया , वो कोई किताब मुझसे लेना चाहती थी मैंने कहा आकर ले लो . सायरा घर आई और मुझे अकेला देख मेरे करीब सटकर बैठ गई और धीरे से बोली " सन्नी , मुझे भी तुम्हारे साथ रश्मि के जैसे कुछ करना है. करो ना ." मैं बहुत ही खुश हो गई. मैं और सायरा बेडरूम में आ गए. मैंने सायरा के कुर्ती के सभी बटन खोले और फिर मैंने अपना टी शर्ट उतर दिया . मैं अब सिर्फ ब्रा में थी. मैंने सायरा के कुर्ती को भी उतारना शुरू किया . सायरा ने कोई आपत्ति नहीं की. अब हम दोनों अपनी अपनी ब्रा में ही थी. मैंने सायरा को बाहों में भर लिया और उसे चूमना शुरू कर दिया अगालों पर, गरदन पर औए नंगे सीने पर. सायरा मदहोश सी होने लगी. मैंने अपने गालो सायरा के होठों के सामने कर दिए. सायरा के होंठ कांप रहे थे. उसने मुझे गालो पर चूमा. मैंने सायरा को लिया और पलंग पर आ गई. अब हम दोनों पलंग पर लेट गए थे और लिपटे हुए थे. मैंने सायरा को चूमने के साथ साथ उसे नीचे के तरफ से दबाना शुरू किया. सायरा नीचे थी और मैं ऊपर. सायरा को मेरा दबाव बहुत सुहाना लग रहा था. घडी देखते ही सायर आदर गई और मां के लौटने के डर से तुरंत मुझे अलग हुई और घर चली गई.
अब मैं और सायरा जब भी अकेले होते वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मेरी घर के बेडरूम में लिपट जाते. ये सब करेब एक महीने तक चलता रहा. रश्मि को ये मौका इस महीने में एक बार भी नहीं मिल सका. एक दिन कोलेज में रश्मि ने मुझसे शिकायत भी की मगर मैंने अनसुना कर दिया. पता नहीं क्यूँ सायरा का जिस्म मुझे ज्यादा अच्छा और मीठा लगने लगा था.
रश्मि ने कुछ खतरा भांप लिया और एक दिन दोपहर को ऐसा संयोग हुआ कि मैं और सायरा जब मेरे बेडरूम में बिस्तर में थी तब रश्मि मेरे घर पहुची. उसे मेरे घर का हर हिस्सा अच्छी तरह से पता था. वो ये जानकर कि मेरी मम्मी घर पर ही होगी, बाहर के रस्ते वो सीधे बालकनी में कूदकर मेरे बेडरूम की तरफ आ गौ. उसने बेडरूम के झरोखे से पर्दा हटाया और मुझे और सायरा को बिस्तर में एक दूसरे से लिपटे और चूमते पाया. आज भी हम दोनों ( मैं और सायरा ) सिर्फ ब्रा में थी और नीचे हम ने जींस पहन रखी थी. हम लगातार एक दूजे को चूम रही थी और मचल मचलकर अपने अपने सीनों को एक दूजे के सीने से दबा दबाकर मजे ले रही थी.
रश्मि सारा माजरा समझ गई. उसे जलन होने लगी. उस से रहा नहीं गया और उसने दरवाजा खटखटाया. मैंने चौंक कर देखा तो खिड़की में रश्मि को देखकर मैं और सायरा हैरान रह गई. मैंने सायरा को इशारे से समझाया कि कोई खतरा नहीं है. मैंने उठकर दरवाजा खोला आ और रश्मि को अन्दर खिंच लिया और फिर से दरवाजा बंद कर लिया. इस से पहले कि रश्मि कुछ बोलती मैंने रश्मि को बाँहों में भर लिया और अपने जीवन में पहली बार किसी के होंठो को अपने होंठो से चूम लिया. रश्मि और मैं ऐसे तडपी जैसे कोई बिजली का करंट लग गया हो.
रश्मि तो बेकाबू होकर पलंग पर बैठने लगी. मैंने रश्मि को सहारा दिया मगर पलंग पर बैठाने के बाद भी उसके होठो को नहीं छोड़ा.
अब मुझे और रश्मि को ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों बादलों में उड़ रही हों...दोनों को लगा जैसे ना जाने कितनी ही शकर हमारे मुंह में घुल गई हो. सायरा हम दोनों को इस तरह देखकर तड़प उठी. उससे रहा नहीं गया. उस ने आगे आकर हम दोनों को खुद से लिपटा लिया और हम दोनों के गाल चूमने लगी.
मैंने अब रश्मि और सायरा दोनों के बारी बारी से गालों पर चूमा. फिर रश्मि ने मुझे और सायरा को चूमा. फिर सायरा ने मुझे और रश्मि को चूमा. कुछ देर तीनों ने एक दूजे के गलों को चूम चूमकर गीला तर कर दिया. मैंने अचानक रश्मि और सायरा को अपनी तरफ खिंचा और दोनों के मुंह करीब ले आई और दोनों के होठों के साथ साथ अपने होंठ भी मिला दिए. हम तीनों के होंठ आपस में मिल गए और शक्कर घुलने लगी हम सभी के मुंह में. लगातार चूमने और चूसने से हम तीनों के ही मुंह में से लार निकलने लगी और सभी के होंठो के चारों तरफ और गालों तथा गर्दन पर बहुत ही गीलापन फ़ैल गया.
मैंने कभी रश्मि को तो कभी सायरा को अपने से चिपटाया और उन्हें जगह जगह दबाया और चूमा. हम तीनों ने ऐसा काफी देर तक किया. आखिर में हम सभी थक गई तो अपने कपडे पहने और अपने अपने घर चली गई.
इसके बाद भी मैं रश्मि और सायरा के साथ कभी अलग से तो कभी साथ साथ मिलती और इस तरह से अपनी अपनी भूख मिटाती.
मुझे धीरे धीरे लडकीयों में ही रूचि होने लगी. इसी तरह से करीब एक साल गुजर गया. अब मेरी इच्छाएं बढ़ने लगी. मैं कई बार ऐसा सोचती कि रश्मि और सायरा के अलावा भी कोई और मिले तो और भी मज़ा आयेगा.
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भाग - दूसरा
कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा.
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी.
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?"
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए."
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही.
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे.
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर. चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
आंटी बोली बिलकुल मेरी तरह शरारती बनकर " तुझे पकड़कर लेट जाती और चूम लेती तुझे चिकना समझकर. हा हा हा . बुरा ना माना मैंने मजाक किया था "
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भाग तीसरा.
सब कुछ इसी तरह चलता रहा मगर एक दिन सब कुछ पता चल गया घर में मेरे . हुआ ये के सभी घरवाले सुबह किसी शादी में गए हुए थे. मैं बहाना कर नहीं गई. मैंने सायरा को बुला लिया . मैं और सायरा बिना किसी कपड़ों के बेखौफ्फ़ बिस्तर में लिपटी हुई थी. मैं सायरा के उपर थी और अपने गुप्तांग को उसके गुप्तांग से टच करा कराकर मसाज कर रही थी. हम दोनों ने ढेर सारा क्रीम लगा रखा था अपने अपने गुप्तांगों के आसपास जिस से चिकनाई और भी बढ़ गई थी. मेरे पापा शादी में देनेवाली गिफ्ट घर पर ही भूल गए थे. वे उसी को लेने आये. वे गिफ्ट लेकर वापस बाहर निकलते वक्त मेरे कमरे की तरफ आकर मुझसे यह कहने वाले ही थे कि तुम खाना खा लेना , कि उन्होंने मेरे कमरे की खिड़की से मुझे और सायरा को इस स्थिति में देख लिया. पापा ने मम्मी को सब बतला दिया. मुझे खूब डांटा गया. मगर मैं इतनी लेस्बियन सेक्स की आदी हो चुकी थी कि उनसे वादा करने के बाद भी दो बार और पकड़ी गई लेस्बियन सेक्स करते हुए. खूब झगडा हुआ . मुझे घर छोड़ने को कह दिया गया.
मैं कुछ दिन सायरा के यहाँ रही. इस बीच मैंने एक दिन उसी मौसी के यहाँ जाकर यह पता लगाया कि वो आंटी जिनके साथ मैंने शादी के दौरान खूब मजा किया था वो कहाँ रहती है. मुझे आंटी का पता मिल गया. मैं एक दिन अपना बेग गले में डाले आंटी के सामने खड़ी थी. आंटी ने मुझे देखा और बोली " अरे चिकने तू यहाँ कैसे आ गया आ गई! " मैंने आंटी को सब कुछ बता दिया. आंटी का दिल पसीज गया. उन्होंने अपने पति से झूठ बोलकर कि मैं उनकी दूर के रिश्ते में भतीजी लगती हूँ, और बिना माँ-बाप की हूँ, अपने घर रख लिया. पहली ही रात आंटी मेरे पास आ गई. मैं आंटी की बाहों में थी. आंटी ने मेरी प्यास बुझा दी.
अब लगभग हर रोज़ दिन में कम से कम दो बार तो मैं और आंटी नंगे बदन लिपटी रहती कुछ देर तक. मेरा आंटी के साथ रिश्ता दिन बा दिन गहरा होता जा रहा था.
आंटी के यहाँ काम करनेवाली बाई काम छोड़कर चली गई तो आंटी ने दूसरी बाई रखी. मैंने जब इस बाई को देखा तो उसकी गरीबी पर दया आ गई. सांवला रंग , जबरदस्त कसा हुआ जिस्म और उभरा हुआ सीना और सेक्सी मुस्कान . मैंने दो तीन दिन में एक बार हिम्मत कर उस बाई जिसका कि नाम सुन्दरा था , गालों को चूम लिया. पता चला कि सुंदरा अकेली है, उसका पति शराबी है इसलिए सुंदरा उसे छोड़ चुकी है. एक दिन मैंने सुंदरा से अपने बदन की मालिश करने को कहा. मैं पलंग में सिर्फ ब्रा और पेंटी में लेट गई. सुंदरा ने मसाज शुरू किया. मुझे नशा चढ़ने लगा. मैंने अचनक सुन्दरा को अपनी तरफ खिंचा और उसके होंठों को अपने होंठों से चूम लिया. सुंदर हैरान रह गई. मैंने फिर एक बार अचानक से उसके होंठों को चूमा. सुंदर को शायद यह अच्छा लगा. मैंने सुंदरा को अपने बारे में सब कुछ बतला दिया. सुंदर ने मेरा साथ देने की बात कही और बोली " मैं भी अकेली हूँ. हर रात तड़पती हूँ. तुम मेरा साथ देना."
एक दिन दोपहर को आंटी सो रही थी तब मैं सुंदरा के साथ मेरे कमरे में आ गई. हम दोन एक दुसरे की बाहों में थी. सुंदर मुझे चूमती और मैं सुंदरा को. फिर हम दोनों ने अपने सारे कपडे उतार दिए. सुंदरा मेरे हाथ को अपने जननांग के पास ले गई और मेरी ऊँगली को अपने अन्दर डाला. मुझे इशारे से सुन्दरा ने कहा कि मैं अपनी ऊँगली को अन्दर बाहर करूँ. मैं समझ गई कि ये एक औरत की प्यास है. मैंने ऐसा ही किया. कुछ देर ऐसा करने के बाद सुन्दरा के जननांग के अन्दर से मलाई बाहर आकर बहने लगी. सुन्दरा के चेहरे पर एक प्यास मिटने की मुस्कान आ गई. मैंने सुंदरा के होंठो को जोर से चूसा और मेरी प्यास बुझा ली.
अब तो लगभग हर रोज मैंने और सुंदरा ऐसा ही करते. धीरे धीरे मैंने सुंदरा के साथ जननांगों को आपस में मिलाकर सेक्स करना भी शुरू कर दिया. सुंदरा को भी यह सब अच्छा लगने लगा था. कई बार तो सुन्दरा मुझे पकड़ पकड़कर ऐसा नशा ला देती कि मैं सुंदरा की बाँहों में
कई देर तक मदहोश लिपटी रहती.
मैं आंटी और सुंदरा के साथ खूब मजे में थी. मेरी भूख जितनी बढती दोनों मेरी भूख को उतना ही मिटा देती थी. आंटी तो अब शाम को मुझे लेकर बाथरूम में घुस जाती और हम दोनों नंगे बदन फवारे में लिपट जाते और काफी देर तक नशे में रहती. आंटी अक्सर अंकल के जाने के बाद मेरे साथ ही नाश्ता करती थी. मैं नाश्ता करते वक्त सिर्फ ब्रा और पेंटी में हो जाती और आंटी की गोद में बात जाती. आंटी मुझे और मैं आंटी को चूमती और नाश्ता करती रहती. मैंने कई बार फ्रूट्स के टुकड़े अपने मुंह में लेकर आंटी के मुंह में डाल देती और आंटी भी बदले में ऐसा ही करती. एक बार हम दोनों ने केले इसी तरह से खाए और एक दूजे के मुंह में डालकर निकालते और फिर वापस ले लेते. . ऐसा नशा हो गया कि हम दोनों पागल हो गई थी.
अगले और चौथे भाग में मैं आपको मेरी जिंदगी की रंगीनियों के बारे में बताऊंगी कि किस तरह से हम तीनों ( आंटी, मैं और सुंदरा )
अब एक नयी सेक्स की दुनिया में आ चुकी हैं.
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