11-05-2017, 01:20 PM,
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RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
गनीमत हुयी की जयपुर स्टेशन आ गया। वरना कई और भेड़िये इंतज़ार में खड़े थे।
अपनी अपनी बारी के।
जयपुर रेलवे स्टेशन पर वो सब ट्रेन से उतर गए। रानी का बुरा हाल था। वो
जानबुझ कर पीछे रह रही थी ताकि किसी को उसकी सलवार पर गिरे सफ़ेद धब्बे न
दिखाई दे जाये।
आशीष बोला- "ताऊ जी,कुछ खा पी लें! बहार चलकर। "
ताऊ पता नहीं किस किस्म का आदमी था- "बोला भाई जाकर तुम खा आओ! हम तो
अपना लेकर आये हैं।
कविता ने उसको दुत्कारा- "आप भी न बापू! जब हम खायेंगे तो ये नहीं खा
सकता। हमारे साथ। "
ताऊ- "बेटी मैंने तो इस लिए कह दिया था कहीं इसको हमारा खाना अच्छा न
लगे। शहर का लौंडा है न। हे राम! पैर दुखने लगे हैं। "
आशीष- "इसीलिए तो कहता हूँ ताऊ जी। किसी होटल में चलते हैं। खा भी लेंगे।
सुस्ता भी लेंगे।"
ताऊ- "बेटा, कहता तो तू ठीक ही है। पर उसके लिए पैसे।"
आशीष- "पैसों की चिंता मत करो ताऊ जी। मेरे पास हैं।" आशीष के ATM में
लाखों रुपैये थे।
ताऊ- "फिर तो चलो बेटा, होटल का ही खाते हैं।"
होटल में बैठते ही तीनो के होश उड़ गए। देखा रानी साथ नहीं थी। ताऊ और
कविता का चेहरा तो जैसा सफ़ेद हो गया।
आशीष ने उनको तसल्ली देते हुए कहा- "ताऊ जी, मैं देखकर आता हूँ। आप यहीं
बैठकर खाना खाईये तब तक।"
कविता- "मैं भी चलती हूँ साथ!"
ताऊ- "नहीं! कविता मैं अकेला यहाँ कैसे रहूँगा। तुम यहीं बैठी रहो। जा
बेटा जल्दी जा। और उसी रस्ते से देखते जाना, जिससे वो आए थे। मेरे तो
पैरों में जान नहीं है। नहीं तो मैं ही चला जाता।"
आशीष उसको ढूँढने निकल गया।
आशीष के मन में कई तरह की बातें आ रही थी।" कही पीछे से उसको किसी ने
अगवा न कर लिया हो! कही वो कालू। " वह स्टेशन के अन्दर घुसा ही था की
पीछे से आवाज आई- "भैया!"
आशीष को आवाज सुनी हुयी लगी तो पलटकर देखा। रानी स्टेशन के प्रवेश द्वार
पर सहमी हुयी सी खड़ी थी।
आशीष जैसे भाग कर गया- "पागल हो क्या? यहाँ क्या कर रही हो? चलो जल्दी। "
रानी को अब शांत सी थी।- "मैं क्या करती भैया। तुम्ही गायब हो गए अचानक!"
"ए सुन! ये मुझे भैया-भैया मत बोल "
"क्यूँ?"
"क्यूँ! क्यूंकि ट्रेन में मैंने "और ट्रेन का वाक्य याद आते ही आशीष के
दिमाग में एक प्लान कौंध गया!
"मेरा नाम आशीष है समझी! और मुझे तू नाम से ही बुलाएगी। चल जल्दी चल!"
आशीष कहकर आगे बढ़ गया और रानी उसके पीछे पीछे चलती रही।
आशीष उसको शहर की और न ले जाकर स्टेशन से बहार निकलते ही रेल की पटरी के
साथ साथ एक सड़क पर चलने लगा। आगे अँधेरा था। वहां काम बन सकता था!
"यहाँ कहाँ ले जा रहे हो, आशीष!" रानी अँधेरा सा देखकर चिंतित सी हो गयी।
"तू चुप चाप मेरे पीछे आ जा। नहीं तो कोई उस कालू जैसा तुम्हारी। समाझ
गयी न।" आशीष ने उसको ट्रेन की बातें याद दिला कर गरम करने की कोशिश की।
"तुमने मुझे बचाया क्यूँ नहीं। इतने तगड़े होकर भी डर गए ", रानी ने
शिकायती लहजे में कहा।
"अच्छा! याद नहीं वो साला क्या बोल रहा था। सबको बता देता। "
रानी चुप हो गयी। आशीष बोला- "और तुम खो कैसे गयी थी। साथ साथ नहीं चल सकती थी? "
रानी को अपनी सलवार याद आ गयी- "वो मैं!" कहते कहते वो चुप हो गयी।
"क्या?" आशीष ने बात पूरी करने को कहा।
"उसने मेरी सलवार गन्दी कर दी। मैं झुक कर उसको साफ़ करने लगी। उठकर देखा तो। "
आशीष ने उसकी सलवार को देखने की कोशिश की पर अँधेरा इतना गहरा था की सफ़ेद
सी सलवार भी उसको दिखाई न दी।
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RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
रानी भी परेशान थी- "अब क्या करेंगे?"
"करेंगे क्या उनको ढूंढेगे!" आशीष ने बढ़बढ़ाते हुए कहा।
आशीष को याद आया उसके सारे कपड़े बैग में ही चले गए! अच्छा हुआ उसने छोटे
बैग में अपना पर्स और मोबाइल रखकर अपने पास ही रख लिया था।
वो स्टेशन तक देखकर आये। पर उन्हें बापू और बेटी में से कोई न दिखाई दिया।
सुबह हो चुकी थी पर उन दोनों का कोई पता न चला। थक हार कर उन्होंने चाय
पी और मार्केट की तरफ चले गए!
एक गारमेंट्स की दुकान पर पहुँचकर आशीष ने देखा। रानी एक पुतले पर टंगी
ड्रेस को गौर से देख रही है।
"क्या देख रही हो?"
"कुछ नहीं!"
"ड्रेस चाहिए क्या?"
रानी ने अपनी सलवार को देखा फिर बोली "नहीं। "
"चलो! " और वो रानी को अन्दर ले गया।
रानी जब दुकान से बहार निकली तो शहर की मस्त लौंडिया लग रही थी। सेक्सी!
रानी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
आशीष ने उसको फिर से डराकर होटल में ले जाकर चोदने की सोची।
"रानी!"
"हम्म!"
"अगर तुम्हारे बापू और कविता न मिले तो!"
"मैं तो चाहती हूँ वो मर जायें।" रानी कड़वा मुंह करके बोली।
आशीष उसको देखता ही रह गया।।
"ये क्या कह रही हो तुम? " आशीष ने हैरानी से पूछा।
रानी कुछ न बोली। एक बार आशीष की और देखा और बोली- "ट्रेन कितने बजे की है।?"
आशीष ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, "रानी तुम वो क्या कह रही थी।
अपने बापू के बारे में...?"
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जबकि दूसरी तरफ़-
बूढ़ा और कविता कहीं कमरे में नंगे लेटे हुए थे।
"अब क्या करें? " बूढ़े ने कविता की चूची भीचते हुए कहा।
"करें क्या? चलो स्टेशन! " कविता उसके लंड को खड़ा करने की कोशिश कर रही
थी- "बैग में तो कुछ मिला नहीं।"
"उसने पुलिस बुला ली होगी तो!" बूढ़ा बोला।
"अब जाना तो पड़ेगा ही। रानी को तो लाना ही है। " कविता ने जवाब दिया।
उन्होंने अपने कपड़े पहने और स्टेशन के लिए निकल गए!
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जबकि इधर-
उधर आशीष के चेहरे की हवाईयां उड़ रही थी- "ये क्या कह रही हो तुम?"
"सच कह रही हूँ, किसी को बताना नहीं प्लीज..." रानी ने भोलेपन से कहा।
फिर तुम इनके पास कैसे आई...?" आशीष का धैर्य जवाब दे गया था।
"ये मुझे खरीद कर लाये हैं। दिल्ली से!" रानी आशीष पर कुछ ज्यादा ही
विश्वास कर बैठी थी- " 50,000 में।"
"तो तुम दिल्ली की हो!" आशीष को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
"नहीं। वेस्ट बंगाल की!" रानी ने उसकी जानकारी और बढाई।
"वहां से दिल्ली कैसे आई!?" आशीष की उत्सुकता बढती जा रही थी!
"राजकुमार भैया लाये थे!"
"घरवालों ने भेज दिया?"
"हाँ!" वह गाँव से और भी लड़कियां लाता है।
"क्या काम करवाता है "
"मुझे क्या पता। कहा तो यही था। की कोठियों में काम करवाएँगे। बर्तन सफाई वगैरह!"
"फिर घरवालों ने उस पर विश्वास कैसे कर लिया??"
रानी- वह सभी लड़कियों के घरवालों को हजार रुपैये महीने के भेजता है!
आशीष- पर उसने तो तुम्हे बेच दिया है। अब वो रुपैये कब तक देगा।
रानी- वो हजार रुपैये महीना देंगे! मैंने इनकी बात सुनी थी.....50,000 के अलावा।
आशीष- तो तुम्हे सच में नहीं पता ये तुम्हारा क्या करेंगे?
रानी- नहीं।
"तुम्हारे साथ किसी ने कभी ऐसा वैसा किया है ", आशीष ने पूछा
रानी- कैसा वैसा?
आशीष को गुस्सा आ गया - "तेरी चूत मारी है कभी किसी ने।
रानी- चूत कैसे मारते हैं।
आशीष- हे भगवान! जैसे मैंने मारी थी रेल में।
रानी- हाँ!
आशीष- किसने?
रानी- "तुमने और...." फिर गुस्से से बोली- "उस काले ने.."
आशीष उसकी मासूमियत पर हंस पड़ा। ये चूत पर लंड रखने को ही चूत मारना कह रही है।
आशीष- तू इन को बापू और भाभीजी क्यूँ कह रही थी।
रानी- इन्होने ही समझाया था।
आशीष- अच्छा ये बता। जैसे मैंने तेरी चूत में लंड फंसाया था। अभी स्टेशन
के पास। समझी!
रानी- हाँ। मेरी कच्छी नम हो गयी। उसने खुली हुयी टांगो को भीच लिया।
आशीष- मैं क्या पूछ रहा हूँ पागल!
रानी- क्या?
आशीष- किसी ने ऐसे पूरा लंड दिया है कभी तेरी चूत में?
रानी- "नहीं, तुम मुझे कच्छी और दिलवा देते। इसमें हवा लग रही है।" कह कर
वो हंसने लगी।
आशीष- दिलवा दूंगा। पर पहले ये बता अगर तेरी चूत मुंबई में रोज 3-3 बार
लंड लेगी तो तुझसे सहन हो जायेगा?
रानी- "क्यूँ देगा कोई?" फिर धीरे से बोली- "चूत में लंड..." और फिर हंसने लगी!
आशीष- अगर कोई देगा तो ले सकती हो।
रानी ने डरकर अपनी चूत को कस कर पकड़ लिया - "नहीं "
तभी वो बूढ़ा और कविता उन दोनों को सामने से आते दिखाई दिए।
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