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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --31
गतान्क से आगे........................
बिंदिया को उसकी बात सुनकर हैरत हुई. उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था के उसको पूरा यकीन था के ख़ान उसे चोदना चाहता है.
"बैठ जाओ" ख़ान ने दोबारा कहा तो हैरानी में बिंदिया फिर कुर्सी पर बैठ गयी.
"अपना पल्लू ठीक करो" बिंदिया के अब तक नीचे गिरे पल्लू की तरफ देखते हुए ख़ान ने इशारा किया. बिंदिया ने पल्लू उठाकर फिर अपने कंधे पर रख लिया.
"जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुच्छ नही है" ख़ान बोला "मैं तुम पर ज़ोर इसलिए नही डाल रहा था के मैं तुम्हारे साथ सोना चाहता हूँ. मैं सिर्फ़ अपना काम कर रहा हूँ. सिर्फ़ अपनी तसल्ली कर लेना चाहता हूँ के ठाकुर साहब का खून जै ने ही किया है"
बिंदिया अब तक संभाल चुकी थी. उसने अब अपना पल्लू अच्छे से ठीक करके अपनी छातियो को पूरी तरह ढक लिया था.
"और आपको ऐसा क्यूँ लगता है के मैं कुच्छ जानती हूँ जो आपको बता नही रही" वो नज़र नीची किए बोली
"नही जानता" ख़ान ने जवाब दिया "पर एक हल्का सा शक है"
"ठीक है" बिंदिया ने उससे नज़र मिलाई "कहिए क्या जानना चाहते हैं"
ख़ान ने डाइयरी में लिखना शुरू किया.
"पहले तो तुम ये जान लो के तुम यहाँ जो कहोगी उसमें तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा. मैं ये अच्छी तरह से समझता हूँ के तुम सिर्फ़ एक नौकरानी हो और अगर ठाकुरों को पता चला के तुमने उनके खिलाफ कुच्छ कहा है तो तुम्हें मरने में घंटे से ज़्यादा नही लगेगा. इसलिए इस बात की दुहाई देने की ज़रूरत तुम्हें नही है. मैं खुद इस बात की तसल्ली देता हूँ के तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा.
"और आपको ये क्यूँ लगता है के मैं खुद भी ठाकुरों के खिलाफ जाना चाहूँगी?"
"क्यूंकी अगर तुम नही गयी तो मैं तुम्हारी इज़्ज़त पूरे गाओं में उच्छाल दूँगा" ख़ान का अब तक का नाराज़ लहज़ा सख़्त हो चला.
थोड़ी देर तक दोनो खामोश रहे.
"तो शुरू करते हैं" ख़ान ने कहा "ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"मालिक और नौकर का" बिंदिया ने जवाब दिया
ख़ान एक पल के लिए रुका और अपना सवाल फिर दोहराया.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"कहा तो" बिंदिया हैरत से बोली "मालिक और नौकर का"
फिर एक पल के लिए खामोशी.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?" ख़ान ने फिर वही बात पुछि.
"मालिक और नौकर का" इस बार बिंदिया झुंझला पड़ी
ख़ान के चेहरे के भाव ज़रा भी नही बदले.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"ठीक है ठीक है" बिंदिया बोली "सोई थी मैं उनके साथ. उनकी बीवी किसी काम की नही थी. जब उन्होने इशारा किया तो मैने पहले तो मना किया पर फिर बाद में उनके दबाव डालने पर मैने हां कर दी"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. ख़ान को जैसे अपने दोनो सवालों का जवाब मिल गया था.
अब पता था के मरने से पहले ठाकुर किसके साथ सोया था.
और अब समझ आ गया था के क्यूँ ठाकुर अपनी जायदाद का कुच्छ हिस्सा बिंदिया की बेटी के नाम कर गया था.
.........................
ठाकुर बिंदिया के साथ उसकी पुरानी झोपड़ी में दाखिल हुए. यही वो झोपड़ी थी जहाँ बिंदिया पहले अपनी पति के साथ और उसके बाद पायल और चंदू के साथ रहती थी.
जो कभी उसका घर हुआ करता था आज एक पुरानी उजाड़ पड़ी झोपड़ी थी. अंधार आकर ठाकुर ने झोपड़ी का पूरा दरवाज़ा बंद किया और बिंदिया की तरफ देखा. वो इशारा समझ गयी और अपनी सलवार उतारने लगी.
ये हर आए दिन होता था. जिस दिन ठाकुर मूड में होते, वो बिंदिया को इशारा कर देते. उसके बाद बिंदिया हवेली से कुच्छ समान खरीदने के बहाने निकलती, फिर एक सुनसान जगह से ठाकुर उसको अपनी गाड़ी में बैठाते, और फिर दोनो यहाँ आकर अपनी जिस्म की गर्मी निकलते.
दोपहर के वक़्त खेतों पर काम करने वेल सारे नौकर अपने घर खाने के लिए चले जाते थे और इसी वक़्त ठाकुर बिंदिया के साथ सबकी नज़र बचाकर उसको यहाँ ले आते.
दिन के वक़्त यहाँ किसी के देख लेने का ख़तरा हमेशा बना रहता था इसलिए दोनो उतने ही कपड़े उतारते जीतने के ज़रूरी थे. उस दिन भी बिंदिया ने अपनी सलवार उतारी और अपने साथ लाई एक चादर नीचे बिच्छा दी. ठाकुर पाजामा उतारकर चादर पर नीचे लेट गये.
बिंदिया आकर ठाकुर के बगल में बैठ गयी. अपने बाल उसने सिर के पिछे जूड़ा बनाकर बाँधे और ठाकुर के कुर्ते का पल्लू उठाकर उपेर किया.
लंड पूरी तरह खड़ा जैसे बिंदिया के सम्मान में सलामी दे रहा था.
उसने धीरे से लंड को अपने हाथ में पकड़ा और उपेर से नीचे तक सहलानी लगी. ठाकुर चुप चाप आँखें बंद किए लेटे थे. ज़्यादातर वक़्त ऐसा ही होता था के वो आराम से लेट जाते थे और सारा काम बिंदिया को करने देते थे. बिंदिया को ये पसंद भी था. वो उन औरतों में से थी जो बिस्तर पर चीज़ें मर्द के बजाय खुद अपने काबू में रखना चाहती हैं, सब खुद करना चाहती है और ठाकुर उसको इस बात का पूरा पूरा मौका देते थे.
थोड़ी देर लंड को यूँ ही सहलाने के बाद बिंदिया नीचे को झुकी, अपना मुँह खोला और लंड पूरा अपने हलक तक अंदर ले लिया.
"आआहह" ठाकुर के मुँह से आह निकली.
बिंदिया ने गीला लंड अपने मुँह से निकाला, हाथ एक बार उपेर से नीचे तक लंड पर रगड़ा और फिर अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
"जैसा तू चूस्ति है ना बिंदिया, कसम से आज तक किसी ने नही चूसा" ठाकुर ने उसके बाल पकड़ते हुए कहा.
और जो बिंदिया जो शुरू हुई तो रुकी नही. उसका सिर्फ़ लगातार उपेर नीचे होता रहा और हाथ नीचे से कभी लंड को रगड़ता तो कभी ठाकुर के टट्टों को सहलाता. कभी वो लंड को अपने हालत तक अंदर लेके चूस्ति तो कभी जीभ निकालकर चाटने लगती.
"बस बस" भारी होती साँसों के बीच ठाकुर ने कहा "आअज़ा अब"
बिंदिया ने अपने खुल चुके बालों को एक बार फिर सर के पिछे बँधा और अपनी कमीज़ का पल्लू उठाकर ठाकुर के उपेर आकर बैठ गयी. खड़ा लंड सीधा चूत पर आ लगा पर अंदर घुसने की बजाय फिसलकर साइड हो गया.
बिंदिया ने हाथ नीचे घुसाया, लंड को पकड़कर अपनी चूत पर फिर रखा और धीरे से नीचे बैठ गयी.
"आआहह बिंदिया. पक्की रांड़ है तू" ठाकुर ने कमीज़ के उपेर से ही उसकी चूचियाँ पकड़ ली.
"बोलते रहिए मालिक" बिंदिया ने कहा. जब ठाकुर उसको इस तरह बिस्तर पर गालियाँ देते तो उसे बहुत मज़ा आता था.
"रंडी है तू ... साली छिनाल ... जाने कितने लंड खा चुकी है आज तक पर चूत आज भी 16 साल की लड़की जैसी टाइट है ......."
और फिर उस झोपड़ी में गालियों और वासना का एक तूफान सा उठ गया. बिंदिया ने अपने दोनो हाथ ठाकुर के सर के पास नीचे रखे और झुक कर लंड चूत में अंदर बाहर करने लगी.
ठाकुर का एक हाथ उसकी चूचियाँ दबा रहा था जबकि दूसरा धीरे से नीचे उसकी गांद पर गया और ठाकुर की एक अंगुली उसकी गांद के अंदर घुस गयी.
बिंदिया उपेर नीचे होती रही, ठाकुर की अंगुली उसकी गांद में अंदर बाहर होती रही.
"रांड़ साली बेहेन्चोद, च्चिनाल, बस इतना ही दम है तेरी चूत में ... पूरा अंदर ले ... हां ऐसे ही ....."
अगले 15 मिनट तक ठाकुर की ऐसी आवाज़ों से झोपड़ी गूँज सी उठी
ख़ान बैठा हुआ बिंदिया की तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसने किसी बिल्ली को छीके से दूध चुराते पकड़ लिया हो.
"कबकि बात है ये?" उसने बिंदिया से पुछा
"मालिक के मरने से एक दिन पहले की" बिंदिया बोली
"क्या ये रोज़ का खेल था क्या?"
"ठाकुर साहब की मर्ज़ी पर था. कभी कभी तो कयि दिन तक रोज़ ही होता था और कभी कभी हफ़्तो कुच्छ नही" बिंदिया नज़र झुकाए बैठी थी.
"तो उनके मरने वाले दिन फिर से सोई थी तुम उनके साथ?"
बिंदिया ने इनकार में गर्दन हिलाई.
"मतलब ये आखरी बार था?"
बिंदिया ने हां में सर हिलाया.
"ह्म्म्म्मम" ख़ान ने कुच्छ परेशान सा होते हुए कहा.
"और कुच्छ जानती हो ऐसा जो मुझे बता सको?" ख़ान बोला
"कसम भगवान की साहब" बिंदिया अपने सर पर हाथ रख कर बोली "बस यही एक बात थी जो मैं आपसे छुपा रही थी और मैं क्या, कोई भी होती तो छुपाती. और कोई बात नही है"
उसके बाद ख़ान कुच्छ देर और बिंदिया से इधर उधर के सवाल पुछ्ता रहा पर कुच्छ ऐसा हाथ नही लगा जिससे मदद मिलती.
"ठीक है तुम जाओ" उसने आख़िर अपनी डाइयरी बंद करते हुए कहा
"आप किसी से ये बात कहेंगे तो नही ना?" बिंदिया ने भारी आँखों से ख़ान को देखते हुए कहा.
ख़ान ने नही में सर हिलाया.
"वादा?" बिंदिया ने पुछा
"पठान की ज़ुबान" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला.
बिंदिया उठकर खड़ी हुई. बहते हुए उसने अपना पल्लू ऐसे ही कंधे पर रखा हुआ था जो उसके उठते ही फिसल कर नीचे गिर पड़ा.
ट्रॅन्स्परेंट ब्लाउस में उसकी खड़ी चूचियाँ एक बार फिर ख़ान की नज़रों के सामने आ गयी. उसने 2 पल के लिए बिंदिया की चूचियो की तरफ घूरा और जब बिंदिया ने अपना पल्लू सीधा कर लिया तो दोनो की नज़रें मिली.
बिंदिया को देख कर जाने क्यूँ ख़ान को ऐसा लगा के वो जान भुजकर फिर उसको अपनी चूचियाँ दिखा रही थी. उसका दिल किया के उठकर बिंदिया को वहीं झुका ले पर फिर अपने उपेर काबू कर लिया.
क्रमशः........................................
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --32
गतान्क से आगे........................
बिंदिया एक पल के लिए खड़ी रही, जैसे ख़ान से किसी हरकत की उम्मीद कर रही हो पर जब कुच्छ ना हुआ तो दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गयी.
"हेलो डॉक्टर. साहब" थोड़ी देर बाद ख़ान ने डॉक्टर. अस्थाना का नंबर मिलाया.
"कहिए ख़ान साहब" अस्थाना की आवाज़ आई "कैसे याद किया?"
"एक सवाल था दिमाग़ में" ख़ान बोला "आपके हिसाब से ठाकुर के जिस्म पर जो औरत के निशान आपको मिले थे वो कितने पुराने हो सकते हैं?"
"ये बताना तो ऑलमोस्ट इंपॉसिबल है" अस्थाना बोला
"और ऐसे निशान कितने दिन तक पुराने हो सकते हैं?"
"अगर ये मान लिया जाए के ठाकुर साहब हफ़्तो तक नही नहाते थे तो हफ़्ता भर पुराने भी हो सकते हैं"
"और अगर नहाए हों तो" ख़ान ने पुछा
"अगर नहाए हों तो शरीर से धुल जाने चाहिए पर एक बार नहाने के बाद बच भी सकते हैं"
"ह्म्म्म" ख़ान सोचते हुए बोला "थॅंक्स डॉक्टर."
डॉक्टर से बात के बाद उसने फोन रखा ही था के उसका मोबाइल फिर बज उठा. कॉल अननोन नंबर से थी.
"हेलो" ख़ान ने कॉल रिसीव की.
"हाई" दूसरी तरफ से एक लड़की की आवाज़ आई जिसे ख़ान फ़ौरन पहचान गया.
किरण, किरण .... कम्बख़्त किरण ... उसने दिल ही दिल में सोचा.
"फोन मत रखना प्लीज़" ख़ान फोन रखने ही लगा था के दूसरी तरफ से किरण ने कहा "बात करनी है कुच्छ तुमसे"
ख़ान फोन पकड़े चुप खड़ा रहा.
"थॅंक्स" किरण बोली
"कहो" ख़ान ठंडी आवाज़ में बोला
"काम था कुच्छ" किरण ने कहा
" अच्छी तरह जानता हूँ के क्या काम है तुम्हें" ख़ान मज़ाक सा उड़ाता हुआ बोला "तुम एक जर्नलिस्ट हो और मैं इस वक़्त एक बड़े मर्डर केस के बिल्कुल बीच खड़ा हूँ. कहानी चाहिए तुम्हें"
कुच्छ देर तक किरण कुच्छ नही बोली.
"कहानी तो मुझे पता है और अगर कुच्छ और जानना चाहती तो पुच्छने के लिए बहुत लोग हैं. मैं सिर्फ़ इस कहानी का तुम्हारा पहलू जानना चाहती हूँ"
"क्यूँ?"
"ऐसे ही" किरण चोर आवाज़ में बोली
"ऐसे ही नही" ख़ान का गुस्सा धीरे धीरे बढ़ने लगा "तुम मेरा पहलू इसलिए जानना चाहती हो ताकि अपनी कहानी में मिर्च मसाला लगा सको"
"मिर्च मसाला?"
"हां मिर्च मसाला. क्या दिखाना चाहती हो? यही के एक निकम्मा इनस्पेक्टर बस बैठा देखता रहा जबकि एक मासूम को फाँसी पर चढ़ा दिया गया? या ये दिखाना चाहती हो के मैं कितना नकारा हूँ? दोबारा फोन मत करना मुझे"
और ख़ान ने फोन पटक दिया.
1 मिनिट बाद ही फोन दोबारा बजा और लाख ना चाहते हुए भी ख़ान ने दोबारा फोन उठा ही लिया.
"तो तुम भी मानते हो के जै मासूम है और ग़लत आदमी को इस केस में फसाया जा रहा है?" कॉल रिसीव करते ही उससे पहले किरण बोल पड़ी.
"मैं भी से मतलब?" ख़ान अपना गुस्सा भूलकर बोला
"मेरा भी यही मानना है" किरण बोली
"क्यूँ?"
"अपनी वजह है मेरे पास" किरण ने कहा
"तो मुझसे क्या चाहती हो फिर?" ख़ान का गुस्सा जैसे फिर चढ़ने लगा.
थोड़ी देर के लिए फोन पर खामोशी च्छा गयी.
"हेलो" ख़ान को आवाज़ ना आई तो उसने फोन चेक किया के कॉल डिसकनेक्ट तो नही हो गयी.
"मैं जै से मिली थी" किरण बोली "उसने बताया के तुम भी यही मानते हो के वो बेकसूर है और उसकी मदद कर रहे हो तो मैने सोचा के मैं भी साथ दूं"
"जै जै जै जै जै ... ख़ान के दिमाग़ में जैसे घंटियाँ बजने लगी. मेरे पीठ पिछे और किस किस से बात की है साले ने?"
"देखो ये हमारे आपस की बात नही है. अगर हम मिलकर काम करें तो एक बेगुनाह की जान बचा सकते हैं"
"और किसने कहा के मुझे तुम्हारी मदद चाहिए?" ख़ान बोला
"किसी ने नही कहा पर शायद तुम ये भूल रहे हो के तुम अकेले जै के तरफ खड़े हो तो मैने सोचा के एक से भले दो"
"और तुम ऐसा क्यूँ कर रही हो?"
"ये नही कहूँगी के मेरा लालच नही है इसमें" किरण बोली "अगर हम उसको बेगुनाह साबित कर दें तो मुझे एक अच्छी कहानी मिल जाएगी"
"और तुम्हारा एक मशहूर रिपोर्टर होने का सपना पूरा हो जाएगा. जानता था मैं के अपने मतलब की ही बात करोगी तुम"
किरण एक पल के लिए कुच्छ कहने लगी पर फिर चुप हो गयी.
"मेरी छ्चोड़ो" उसने जैसे पलटकर वार किया "तुम क्यूँ इतना मरे जा रहे हो जै को बेकसूर साबित करने के लिए. क्या लगता है तुम्हारा?"
"कुच्छ नही लगता" ख़ान बोला "यू सी दुनिया में ज़रा सी इंसानियत अब भी बाकी है इसलिए कुच्छ लोग अब भी कभी कभी अच्छे काम कर लेते हैं वरना यहाँ तो ऐसे लोग भरे पड़े हैं जिनको अपने मतलब के सिवा और कुच्छ नज़र नही आता"
"मेरी तरफ इशारा कर रहे हो?" अब किरण का गुस्सा भी सॉफ ज़ाहिर हो रहा था
"ओह यू गॉट दट? वेरी स्मार्ट. हां तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ" ख़ान दाँत पीसता हुआ बोला
"इंसानियत?" अब दोनो बात कम कर रहे थे और एक दूसरे पर कीचड़ ज़्यादा उच्छल रहे थे "यू नो दट वर्ड साउंड्स फन्नी कमिंग फ्रॉम ए मॅन हू किल्ड हिज़ जूनियर ऑफीसर. तब कहाँ गयी थी तुम्हारी इंसानियत जब उस सब-इनस्पेक्टर को गोली मारी थी तुमने?"
और यहाँ जैसे किरण हद से आगे निकल गयी. जिस बात का ज़िक्र ख़ान करना नही चाह रहा था उसने खुद छेड़ दी.
"दट वाज़ अन आक्सिडेंट" ख़ान चिल्ला उठा "एक एनकाउंटर के दौरान क्रॉस फाइरिंग में वो बीच में आ गया और गोली उसको लग गयी"
"ओह्ह्ह आक्सिडेंट" किरण भी चिल्ला ही रही थी "किसी की जान चली गयी और तुम्हारे लिए आक्सिडेंट? 2 साल का बच्चा था उसका जो आज अनाथ है तुम्हारी वजह से. तब कहाँ गयी थी तुम्हारी इंसानियत? वो तो बेचारा सिर्फ़ तुम्हारा साथ दे रहा था"
"वो मेरा साथ नही दे रहा था, हीरो बनने की कोशिश कर रहा था. बिना मुझे कोई इशारा किए ठीक उस तरफ भागा जिस तरफ मैं गोलियाँ चला रहा था"
"यआः राइट" किरण बोली "यू नो व्हाट, तुम्हें फोन करना मेरी ग़लती थी, तुम्हारे जैसे लोगों के मुँह लगना अपने आप में एक पाप है"
और किरण ने फोन पटक दिया पर 1 मिनिट बाद दोनो फिर फोन पर थे. कॉल इस बार ख़ान ने की थी.
"मेरी इंसानियत पर इल्ज़ाम लगाया है तो सुनती जाओ" ख़ान बोला "अपना शहर का मकान बेच डाला था मैने और जितना पैसा मिला सारा उस सब-इनस्पेक्टर की बीवी को दे आया था ताकि उसके बच्चे को एक बेहतर फ्यूचर मिल सके. और ज़रा अपने गिरेबान में झाँको. बिना कुच्छ जाने मुझ पर जो तुमने अख़बारो में कीचड़ उच्छाला था, वो कहाँ तक जस्टिफाइड था?"
"ओह तो अब हम मेरी बात कर रहे हैं?" किरण भी पिछे हटने वालो में से नही थी "और मिस्टर. इंसानियत, तब कहाँ थे तुम जब मैं समान बाँधे तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी और तुम नही आए? बोलो."
और सालों बात दोनो के बीच फिर वही बात उठ गयी जिसके लेकर दोनो मुद्दत तक अंदर ही अंदर जलते तो रहे, पर एक दूसरे से शिकवा ना कर सके थे.
"तुम्हें तो जैसे पता ही नही, है ना?" ख़ान गुर्राया
"पता है" किरण बोली "जानती हूँ के तुम कहीं मुँह च्छुपाए बैठे थे, डरे हुए थे कि लड़की को अपने साथ भगा के ले गये तो उसका बाप तुम्हारा क्या करेगा. इतना डर लग रहा था तो मुझसे कह देते. मैं कहीं और भाग जाती, कम से कम मेरी ज़बरदस्ती शादी तो नही करा दी जाती."
ख़ान एक पल के लिए चुप हो गया.
"तुम्हारी वजह से, सिर्फ़ तुम्हारी वजह से मुन्ना मैं एक ऐसे इंसान के बिस्तर पर सोती रही जो कहीं से भी मेरे लायक नही था " किरण रो पड़ी "अगर तुमने मुझे भगा कर नही ले जाना था तो झूठ क्यूँ बोला मुझसे? मैं समान बाँधे तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी. अगर पता होता तो तुम्हारा इंतेज़ार करने के बजाय कहीं जाकर च्छूप जाती"
ख़ान फिर भी चुप रहा. किरण गुस्से में उसको फिर उसी नाम से बुला गयी थी जो वो उसे प्यार से बुलाती थी, मुन्ना... शॉर्ट फॉर मुनव्वर. किरण को कभी उसका नाम पसंद नही था.
"आज एक तलाक़-शुदा औरत की ज़िंदगी जी रही हूँ मैं, सिर्फ़ तुम्हारी वजह से" किरण के सिसकने की आवाज़ आई.
ख़ान चौंक पड़ा. उसको नही मालूम था के किरण तलाक़ ले चुकी थी.
"जानना चाहती हो के मैं उस शाम क्यूँ नही आया था?" आख़िर में वो बोला "क्यूंकी तुम्हारे बाप ने मुझे मार मार कर हॉस्पिटल पहुँचा दिया था. जिस वक़्त तुम फेरे ले रही थी उस वक़्त मैं हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रहा था"
अब किरण चुप थी.
"और सुनोगी? मैं इस लिए नही आ पाया क्यूंकी मेरी माँ मेरी गोद में दम तोड़ रही थी. मैं इसलिए नही आ पाया क्यूंकी मैं अपनी माँ को दफ़ना रहा था जिसे तुम्हारे बाप के आदमियों ने इतना मारा था के वो बेचारी कभी होश में वापिस आई ही नही. और किसलिए मरी वो? इसलिए के तुम हार मानकर किसी और से शादी कर लो? एक महीने भी मेरे लिए लड़कर इंतेज़ार ना कर सको?"
किरण कुच्छ नही बोली.
"और इतनी कमज़ोर निकली तुम के बाप के डर से शादी तो की ही साथ मेरे घर का पता भी थमा दिया? बहुत हिम्मत की बातें करती थी ना तुम? कहाँ गयी थी तुम्हारी हिम्मत तब? क्यूँ अपने बाप के सामने घुटने टेक दिए? क्यूँ नही कर सकी मेरा इंतेज़ार? इंतेज़ार तो छ्चोड़ो, क्या ये भी जानने की कोशिश की थी के मैं आया क्यूँ नही? या के मैं ज़िंदा भी हूँ या मर गया?
गुस्से में ख़ान ने फिर फोन पटक दिया. इस बार ना उसने वापिस फोन किया और ना किरण ने.
वो वहीं सर पकड़े बैठा रहा. धीरे धीरे रात का अंधेरा फेल रहा था.
रेडियो पर एक पुरानी ग़ज़ल की आवाज़ गूँज रही थी.
दिल के धड़कने का सबब याद आया,
वो तेरी याद थी अब याद आया.
तेरा भूला हुआ मोहब्बत का वादा,
मार जाएँगे अगर अब याद आया.
बैठके तन्हाई में अक्सर,
हम बहुत रोए जब तू याद आया.
हाल-ए-दिल हम भी सुनते मगर,
जब तू रुखसत हुई तब याद आया.
अगले ही दिन ख़ान जै से मिलने जैल गया.
"क्या हुआ?" जै ने ख़ान को अपनी तरफ घूरते देखा तो पुछा.
"डू यू रीयलाइज़ दट आइ आम प्रेटी मच दा ओन्ली वन स्टॅंडिंग बिट्वीन यू आंड ए डेत सेंटेन्स?" ख़ान ने सवाल किया
"यआः आइ नो दट"
"देन वाइ दा फक डू यू वॉंट टू पिस मी ऑफ? यू गॉट ए डेत विश ओर सम्तिंग?" ख़ान गुस्से में अपना हाथ टेबल पर मारता हुआ बोला.
"आए" वहीं बाज़ू में खड़े एक हवलदार ने कहा "ये गुस्सा जाके अपने घर में दिखाने का"
क्रमशः........................................
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --33
गतान्क से आगे........................
ख़ान सिविल ड्रेस में था. उसने जेब से अपना आइडी कार्ड निकाला.
"अगर तो 1 मिनिट के अंदर अंदर यहाँ से दफ़ा नही हुआ तो जो डंडा तेरे हाथ में है वो तेरे पिच्छवाड़े में होगा"
हवलदार को जब एहसास हुआ के वो एक पोलीस इनस्पेक्टर से बात कर रहा है तो फ़ौरन सल्यूट की पोज़िशन में आ गया.
"सॉरी सर" और इससे पहले के ख़ान कुच्छ कहता, हवलदार चलता बना,
"वाउ!" जै ख़ान की हरकत देखकर बोला "आप तो सीरियस्ली काफ़ी गुस्से में हो. ऐसा क्या कर दिया मैने?"
"किसी रिपोर्टर से बात की तुमने?"
"मैने कई रिपोर्टर्स से बात की है" जै बोला
"एक लड़की ... यहाँ जैल में आई थी तुमसे मिलने को"
"ओह" जै बोला "किरण नाम था शायद"
"हां वही" ख़ान ने घूरते हुए कहा "क्या बात की?"
"ख़ास कुच्छ नही. उसने मुझसे एक दो सवाल किए और मैने यही कहा के मैं बेकसूर हूँ. फिर उसने आपका नाम लिया तो मैने कहा के आप मेरी मदद कर रहे हैं"
ख़ान चुप चाप जै को ऐसे देख रहा था जैसे अभी कच्चा चबा जाएगा.
"व्हाट?" जै ने हाथ फैलाते हुए सवाल किया
"अगली बार बिना मुझसे पुछे किसी से इस तरह की कोई बात की तो कसम है मुझे अपनी मरी हुई माँ की जै, फाँसी के फंदे तक तुम्हें मैं खुद छ्चोड़के आऊंगा"
ख़ान की बात सुनकर जै चौंक पड़ा और खामोशी से उसको देखता रहा.
"वो कह रही थी के वो मदद करना चाहती है इसलिए मैने सोचा ........"
"सोचने का काम मुझपे छ्चोड़ दो. तुम यहाँ बैठके सिर्फ़ एक काम करो, दुआ. दुआ करो के मैं तुम्हें बचा लूँ. समझे?"
जै फिर वैसे ही खामोशी से देखता रहा जैसे कोई बच्चा चोरी पकड़े जाने पर देखता है.
"देखो जै" ख़ान अपना गुस्सा ठंडा करता हुआ बोला "पहली बात तो ये के वो एक रिपोर्टर है और वो सिर्फ़ एक कहानी ढूँढ रही है. उसको कोई फरक नही पड़ता के तुम जियो या मरो. वो बस अपना मतलब देखेगी. दूसरा ये एक प्रेस में इस बात को उड़ाके तुम्हें कोई फ़ायदा नही होगा जैसा की तुम सोच रहे हो. सिर्फ़ आग को हवा मिलेगी और तुम्हें जल्दी से जल्दी निपटाने की कोशिश की जाएगी. बस ये जान लो तुम"
जै ने हां में गर्दन हिलाई.
"और वैसे भी, तुम्हारे मामले मैं तो मुझे ये लग रहा है के मैं कोई प्राइवेट डीटेक्टिव हूँ, एक पुलिस वाला नही"
"क्यूँ?"
"यार मैं खुल्ले तरीके से इसमें इन्वेस्टिगेट नही कर सकता. अगर बात ये फेली के मैं ओफ्फिसीयाली इसमें इन्वेस्टिगेट कर रहा हूँ तो मुझे कहीं और किसी केस पर लगा दिया जाएगा और फिर गये तुम"
जै ने समझते हुए हामी भरी.
"इतना जान लो के और केसस में पब्लिसिटी शायद अक्क्यूस्ड के फेवर में जाती है पर यहाँ नही. क्यूंकी यहाँ हर कोई बिक जाएगा ठाकुर ख़ानदान के हाथों. पोलीस से लेके प्रेस तक, सब. जब तक सब इस खुश फहमी में हैं के तुम्हें ही कातिल समझ लिया गया है तब तक कोई ज़्यादा शोर नही मचाएगा. बस खामोशी से फ़ैसले का इंतेज़ार करेंगे."
"ये यू आर राइट" जै बोला
"तो मेरे भाई, सब मुझपे छ्चोड़ दो और भरोसा रखो. मुझसे जो बन सकेगा मैं करूँगा और कर भी रहा हूँ. झूठी तसल्ली और वादे नही करूँगा के तुम्हें 100% बचा लूँगा पर ये तो मान ही लो के अगर मैं कुच्छ नही कर पाया, तो कोई और भी कुच्छ नही कर सकता था."
जब ख़ान जै से मिलकर वापिस अपने घर पहुँचा तो दरवाज़े की तरफ बढ़ते कदम अचानक रुक गये.
उसके घर के बाहर एक कार खड़ी थी और घर के दरवाज़े के पास आँगन में घर की दीवार से टेक लगाए किरण बैठी थी.
"तुम?" ख़ान इतना ही कह सका
"हां काफ़ी देर से तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी" किरण खड़ी होते हुए बोली
"क्यूँ?"
"3 घंटे से यहाँ अकेली बैठी हूँ. अंदर बुलाकर कम से कम एक ग्लास पानी तो पिला ही सकते हो. बहुत प्यास लगी है"
ख़ान ने चुप चाप लॉक खोला और अंदर आया.
"बैठो" उसने किरण को इशारा किया.
आज वो सालों बाद किरण से आमने सामने बात कर रहा था. आखरी बार जब उसने किरण से अकेले में बात की थी वो तब था जब वो भागने का प्लान बना रहे थे, और उसके बाद आज. सारा गुस्सा, दिल में भरी कुढन, किरण को भला बुरा कहने की सारी ख्वाहिशें जैसे पल में हवा हो चुकी थी.
उसने किरण को एक ग्लास में पानी लाकर दिया.
"और?" पानी का ग्लास खाली हो गया तो उसने पुछा
किरण ने इनकार में सर हिलाया.
"कुच्छ खाया है?" ख़ान ने पुछा और बिना जवाब का इंतेज़ार किए फ्रिड्ज खोलकर कुच्छ खाने को ढूँढने लगा.
उसको देख कर किरण हस पड़ी.
"आदत गयी नही तुम्हारी? पहले भी दिन में 10 बार मुझसे पुछ्ते थे के मैने कुच्छ खाया के नही"
"वो इसलिए क्यूंकी तुम कुच्छ खाती नही थी" ख़ान ने फ्रिड्ज से वो दलिया निकाला जो उसने सुबह बनाया था "खाने के नाम पर बस एक आपल खाया करती थी"
किरण मुस्कुरा पड़ी
"हां. मैं और मेरा डाइयेटिंग का भूत. क्या कर रहे हो?" वो ख़ान को स्टोव ऑन करते हुए देख कर बोली.
"कुच्छ खाने को गरम कर रहा हूँ"
"क्या?"
"दलिया"
"दलिया?" किरण ने हैरानी से पुचछा
"अकेला रहता हूँ....खाना बनाना नही आता मुझे. एक दो चीज़ें ही हैं जो बना लेता हूँ और दलिया उनमें से एक है" वो दलिया गरम करता हुआ बोला
उसने कई बार मन ही मन में सोचा था के अगर कभी किरण से मिला तो क्या करेगा. कभी ख्याल में उसको थप्पड़ मार रहा था, कभी गालियाँ दे रहा था और कभी कभी तो गोली भी मार दी थी. पर आज वो जब यूँ सामने आ खड़ी हुई तो उसके लिए दलिया गरम कर रहा था.
और यही हाल शायद किरण का भी था. जिस लड़की ने उसपर कभी अख़बार में इतना कीचड़ उछाला था, जो उसकी नौकरी खा जाने पर तुली थी, जिसके हर कोशिश ये थी के ख़ान जैल जाए आज उसके सामने फिर वही लड़की बनी बैठी थी जिसकी एक मुस्कुराहट पर ख़ान अपनी जान देने को तैय्यार रहता था.
"खा लो" वो दलिया एक प्लेट में डालकर लाया और किरण के सामने टेबल पर रख दिया.
"और तुम?"
"आदत तुम्हारी भी गयी नही" ख़ान उससे नज़र अब भी नज़र बचा रहा था "अपने खाने से पहले मेरे खाने का सोच रही हो"
किरण ने मुस्कुरा कर प्लेट उसकी तरफ खिसकाई.
"तुम भी खा लो" वो बोली
"नही मैने आते हुए रास्ते में खा लिया था" ख़ान ने कहा. अब तक दोनो एक दूसरे से ऐसे नज़र चुरा कर बात कर रहे थे जैसे अपनी अपनी कोई चोरी पकड़े जाने का डर हो.
"एक और पुरानी आदत. झूठ बोलना के मैं खा चुका हूँ. एक स्पून और ले आओ और खा लो"
"नही तुम खाओ. मैने सच में खा लिया" ख़ान एक ग्लास में पानी डालता हुआ बोला और एक नज़र किरण पर डाली.
"कैसे आना हुआ?"
"यू नो आइ आम सॉरी अबौट युवर मदर. आइ डिड्न्ट नो"
"इट्स ओके" ख़ान ने कहा
"ऑल दिस टाइम आइ थॉट दट यू रन अवे. पता ही नही था के तुम पर क्या गुज़री. आइ आम रियली सॉरी"
"आइ आम सॉरी टू" ख़ान ने कहा "मुझे समझना चाहिए था के तुम कर भी क्या सकती थी जबके मैं खुद ही कुच्छ नही कर सका"
"और तुम्हारा नाम और पता मैने नही दिया था. नाम तो ऑफ कोर्स डॅड को मेरे सामान की तलाशी लेने के बाद मिल गया था, वो कार्ड्स से जो तुमने मुझे दिए थे. और तुम्हारा अड्रेस उन्होने कॉलेज के प्रिन्सिपल से पुछ्कर कॉलेज रेकॉर्ड्स से निकाला था"
"मैं भागा नही था. तुम्हारे पास आ ही रहा था के तुम्हारे डॅड के आदमी मेरे घर आ पहुँचे और फिर उसके बाद ...." ख़ान बात पूरी नही कर सका.
और तब उसने पहली बार नज़र किरण से मिलाई. दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और जैसे सारे गीले शिकवे एक पल में ख़तम हो गये.
"हाउ कुड यू हेट हेर सो मच इफ़ यू स्टिल डिड्न्ट लव हर" ख़ान को कहीं पढ़ी एक बात याद आई.
"जै से मिले?" किरण ने पुछा तो ख़ान ने हां में गर्दन हिलाई.
"कोई चान्स?"
"कोशिश कर रहा हूँ उसको बचाने की"
और वो किरण के साथ पूरा केस ऐसे डिसकस करने लगा जैसे वो उसके साथ ही काम कर रही हो. ये ज़िद के किरण की कोई मदद नही चाहिए अंजाने में ही कबकि ख़तम हो चुकी थी.
वो ख़ान की बात गौर से सुनती किसी बच्ची की तरह दलिया खा रही थी. रेडियो अब भी ऑन था और एक गाना धीमी आवाज़ में बज रहा था.
हसीन कितना ज़्यादा हो गया है
जबसे तू और सादा हो गया है
घड़ी भर तेरी आँख में रह कर
पानी भी कितना खुषादा हो गया है
दिल धड़केगा तो तेरे ही नाम पर,
मेरा तुझसे ये वादा हो गया है.
जुदाई का गम तुझे भी रहा है शायद,
के अब तो तू भी आधा हो गया है.
"सच मानो तो मैने जै से वादा तो किया है के मैं उसको बचा लूँगा पर अब तक कोई ख़ास कर नही सका हूँ मैं" ख़ान बोला "बस कुच्छ लोगों से यहाँ वहाँ बात ज़रूर की है पर इसके सिवा और कुच्छ नही"
.............
ख़ान किरण से फोन पर बात कर रहा था. रात के 12 बज रहे थे और वो दोनो पिच्छले 2 घंटे से फोन पर लगे हुए थे. किरण उससे मिलकर वापिस घर चली गयी थी और जाते ही ख़ान को फोन कर दिया था.
"हर बार मैं उससे मिलने जाता हूँ तो वो मुझे उम्मीद भरी नज़र से देखता है के मैं कुच्छ ऐसा कहूँगा या बताऊँगा जिससे उसको लगेगा के वो बच जाएगा. पर अब तक मैं उसके लिए कुच्छ कर नही पाया हूँ"
"ऐसा क्यूँ?" किरण ने पुछा
ख़ान ने एक ठंडी साँस ली और किरण को पूरी बात बताने लगा.
"कम ऑन यार" बात ख़तम होने पर वो बोली "तुम एक पोलीस वाले हो, तुम्हारे हाथ में काफ़ी पवर है"
"और काफ़ी प्रेशर भी है यार. वैसे ही एक बार मेरी नौकरी जाते जाते बची है, फिर से चान्स नही ले सकता"
किरण फ़ौरन समझ गयी के नौकरी जाने की बात ख़ान किस वजह से कह रहा था.
"आइ आम सॉरी यार" वो बोली "मैं पता नही क्यूँ तुम्हें इतना बदनाम कर रही थी, बिना पूरी बात जाने"
"अर्रे नही" ख़ान फ़ौरन बोला "आइ डिड्न्ट मीन दट. इट्स जस्ट दट के मुझे लगता है के मेरे हाथ बँधे हुए हैं"
क्रमशः........................................
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --34
गतान्क से आगे........................
"तुम्हारे हाथ बँधे नही हैं, तुम खुद अपने आपको रोक रहे हो. कॉलेज में याद है सब मुझे आइटम आइटम कहके बुलाते थे पर जब तुम मेरे साथ आए तो मैं आइटम से सबके लिए किरण जी हो गयी थी, ऐसा दबदबा था तुम्हारा. किसी की आवाज़ नही निकलती थी तुम्हारे सामने, प्रोफेस्सर्स की भी नही"
"हां याद है" ख़ान हस्ता हुआ बोला
"तो अब क्या हुआ? कैसे बदल गये इतना. एक नौकरानी के सामने घबरा रहे थे?" किरण बिंदिया की तरफ इशारा करते हुए बोली जिसके बारे में ख़ान उसे बता चुका था.
"पता नही यार. अब वो बात रही नही मुझ में"
"बिल्कुल है. कम ऑन यार. किसी मासूम को बचा रहे हो, कोई ग़लत काम नही कर रहे. अच्छा बताओ, तुम्हें क्या लगता है के खून कैसे हुआ?"
"एक ही तरीका था, ठाकुर के कमरे की खिड़की"
"जो कि तुम्हें लगता है के खूनी ने कमरे से बाहर निकल कर इस तरह से बंद की के ऐसा लगे जैसे अंदर से खिड़की बंद हो?" किरण ने पुछा. ख़ान उसको खिड़की के बारे में तब बता चुका था जब वो उसके कमरे पर उससे मिलने गयी थी.
"हां" ख़ान ने कहा
"और शक किस पर है तुमको?"
"सच कहूँ तो सब पर है" ख़ान ने कहना शुरू किया "पर सबके साथ सर खपाने से कोई फायडा नही है. कुच्छ लोग हैं जिनको शक के दायरे से निकाला जा सकता है"
"जैसे कि?" किरण ने पुछा
"जैसे की भूषण"
"क्यूँ?" किरण ने कहा
"जिस वक़्त खून हुआ ये घर के बाहर था, गाड़ी निकाल रहा था इस बात की गवाही देने वाले लोग हैं. जै ने खुद इसको बाहर देखा था"
"हो सकता है के ये खून करके बाहर गया हो"
"नही, ख़ान बोला. 2 वजह हैं जिनसे ऐसा नही हो सकता. पहली तो ये के इसके ठाकुर के कमरे से निकलने के बाद पायल ठाकुर के कमरे में गयी थी और तब वो ज़िंदा थे. दूसरा ये के अगर इसने ठाकुर पर वार किया होता तो खून के छिन्ते इसके कपड़े पर होते पर ऐसा था नही. कमरे से बाहर आते इसको ठकुराइन ने देखा था और बाद में जै ने बाहर देखा और वो साफ था."
"ह्म्म्म्म" किरण बोली "और वैसे भी, ठाकुर के फोटोस देखे थे मैने. उनपे एक स्क्रूड्राइवर से वार करके उनको मार डालना उस एक बुड्ढे आदमी के बस में था भी नही"
"करेक्ट" ख़ान बोला "नेक्स्ट हैं सरिता देवी, यानी के ठकुराइन"
"उनपे शक?" किरण ने पुछा
"यू सीरियस्ली थिंक के एक व्हील चेर पर बैठी औरत जो खुद हिल भी नही सकती उसने ठाकुर को मार गिराया होगा?"
"लगता तो नही" किरण सोचते हुए बोली "पर होने को कुच्छ भी हो सकता है"
"हां हो सकता है, यू नेवेर नो. बट ठकुराइन के कमरे से बाहर आने के बाद भूषण और पायल दोनो ठाकुर के कमरे में गये थे और तब ठाकुर ज़िंदा था. उस वक़्त ये हवेली के कॉरिडर में बैठी शराब पी रही थी और वहाँ इनको भूषण, पायल और खुद जै ने भी देखा था. अगर इन्होने स्क्रू ड्राइवर से ठाकुर पे वार किया होता, जो की इनके बस में ही नही था, तो इनपर भी खून की छिन्ते होते पर वो नही थे. ना ठकुराइन पर, ना उनके कपड़ो पर और ना उनकी व्हील चेर पर"
"ह्म्म्म्मम" किरण बोली "और शक किस किस पर है"
"सब पर मगर सबसे ज़्यादा तेज पर" ख़ान ने कहा
"वजह?"
"ठाकुर को मारने की सबसे ज़्यादा वजह इसी के पास है. अलग जायदाद चाहता था, ठाकुर से इसकी बनती नही थी, इसको लगता था के इसको जायदाद से निकाल दिया जाएगा और गुस्से का तेज़"
"ह्म्म्म्म"
"ठाकुर मरने से एक दो दिन पहले अपनी वसीयत बदलना चाहते थे तो बहुत मुमकिन है के तेज ये समझा हो के इसका नाम निकाल दिया जाएगा और इसने ठाकुर का खून किया हो. इसकी अययाशी से ठाकुर सख़्त परेशान था और ये बात तेज जानता था इसलिए जायदाद से बाहर होने का डर सबसे ज़्यादा इसको ही हो सकता है"
"मिले हो इससे अब तक?" किरण ने पुछा
"नही" ख़ान ने कहा "इसके अलावा मेरा दूसरे नंबर का शक उस नौकरानी की बेटी पायल पर है"
"पायल?" किरण ने पुछा
"वो आखरी थी जिसने ठाकुर को ज़िंदा देखा था, वही थी जिसने जै को ठाकुर के साथ देख कर हल्ला मचाया था"
"ये शक करने की कोई ख़ास वजह नही हुई" किरण बोली
"जानता हूँ. वजह कुच्छ और है"
"क्या?"
"ठाकुर ने जायदाद का कुच्छ हिस्सा इसके नाम भी कर रखा था"
"रियली? क्यूँ?" किरण ने पुछा तो ख़ान उसको ठाकुर की वसीयत के बारे में बताने लगा.
"क्यूँ तो मैं भी नही जानता पर जाने क्यूँ मुझे लगता है के इस क्यूँ में ही ठाकुर की मौत की वजह है. वसीयत की बात पर शायद इसने ही ठाकुर का काम कर दिया हो"
"या इसकी माँ ने" किरण ने आगे बात जोड़ी
"या दोनो ने" ख़ान ने कहा
"ट्रू. तो एक काम करते हैं. जै से ही शुरू करते हैं. कल उसी से मिलते हैं"
"हैं?" ख़ान हस्ते हुए बोला "ये हैं में मेरे अलावा और कौन है?"
"मे ऑफ कोर्स" किरण बोली
"किरण इस केस में फिलहाल कोई पब्लिसिटी .... " ख़ान कह ही रहा था के किरण ने उसकी बात काट दी
"डोंट वरी. तुम्हारे साथ एक कहानी की भूखी जर्नलिस्ट नही तुम्हारी ........ " और वो कहते कहते रुक गयी जैसे समझ ना आया हो के आगे क्या कहे.
" तो कल मिलते हैं" ख़ान ने सिचुयेशन को एक पल की खामोशी के बाद संभाला "वैसे भी अफीशियली तो मैं इन्वेस्टिगेट कर ही नही रहा तो एक से भले दो"
"बिल्कुल" किरण हस्ते हुए बोली "अब सो जाओ. सी यू टूमारो"
दोनो ने थोड़ी देर और बात करके फोन रख दिए. ख़ान ने लाइट्स ऑफ की और सोने के लिए लेटा ही था के सेल की घंटी फिर बजी.
किरण का मेसेज. ख़ान ने पढ़ना शुरू किया. एक शेर था.
"तेरा वादा था मेरे हर वादे के पिछे,
मिलेगा तू मुझसे हर गली दरवाज़े के पिछे,
फिर क्यूँ तू ऐसा बेवफा हो गया,
के एक तू ही नही था मेरे जनाज़े के पिछे?"
ख़ान ने दो पल के लिए सोचा और किरण के मेसेज का जवाब दिया.
"मेरा वादा था तेरे हर वादे के पिछे,
मिलूँगा मैं तुझसे हर गली दरवाज़े के पिछे,
तूने आए जान-ए-हया पलटके देखा ही नही,
वरना एक जनाज़ा और भी था तेरे जनाज़े के पिछे"
दिन के करीब 11 बज रहे थे. ख़ान और किरण तेज से मिलने हवेली पहुँचे तो पता चला के वो वहाँ नही था.
"वो तो कल रात से ही घर पर नही आए" पुरुषोत्तम ने कहा. किरण और ख़ान हवेली के ड्रॉयिंग रूम में बैठे चाई पी रहे थे.
"कोई आइडिया कब तक आएँगे?" ख़ान ने पुछा
"नही. कोई काम?" पुरुषोत्तम ने कहा
"केस के सिलसिले में कुच्छ बात करनी थी" ख़ान बोला
"तेज से?"
"हां. वो आए तो आप उनको पोलीस स्टेशन आने को कह सकते हैं?"
जिस तरह से पुरुषोत्तम के चेहरे के भाव बदले, उससे साफ ज़ाहिर था के उसको ख़ान का इस तरह पुछ्ना पसंद नही आया. आख़िर वो ठाकुर थे और एक मामूली पोलिसेवाले की ये हिम्मत के वो उन्हें पोलीस स्टेशन आने को कहे?
पर उसने जल्दी ही अपने आपको संभाल लिया.
"मैं कह दूँगा. और कोई सेवा?" उसने ठंडी आवाज़ में ख़ान से पुछा
पुच्छने के तरीके से साफ ज़ाहिर था के अब ख़ान को वहाँ से निकल लेना चाहिए.
"जी बस कुच्छ नही" ख़ान ने कहाँ और किरण को लेकर बाहर आ गया.
बाहर आते वक़्त रास्ते में उनसे कामिनी टकरा गयी. ख़ान ने एक नज़र उस पर डाली पर इस बार वो सोच में पड़ गया. जिस लड़की को उसने जैल में जै से मिलने जाते देखा था वो उसे एक पल के लिए दूर से कामिनी ही लगी थी पर अब जब कामिनी को करीब से देखा तो वो सोच में पड़ गया के क्या यही वो लड़की थी.
"वाउ" बाहर आकर किरण बोली "ही हॅज़ सम आटिट्यूड"
"दे ऑल डू" ख़ान ने जवाब दिया "दे आर ठाकूर्स आफ्टर ऑल"
वो वापिस ख़ान के घर की तरफ जा ही रहे थे के ख़ान का सेल बजा. कॉल एक लॅंडलाइन # से थी.
"हेलो" उसने फोन उठाया
"सर मैं जै" दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
नंबर सेंट्रल जैल का था, ख़ान समझ गया.
"हां जै बोलो" ख़ान ने पुछा
"ऐसे ही बोर हो रहा था तो सोचा आपको फोन करके पुच्छ लूँ के कुच्छ पता चला हो"
ख़ान ने उसको बताया के वो तेज से मिलने हवेली गया था पर तेज मिला नही.
"वो हवेली में नही मिलेगा सर" जै ने कहा "उसके लिए आपको यहाँ शहर आना पड़ेगा"
"क्यूँ?"
"यहाँ कोई रेखा नाम की हाइ क्लास प्रॉस्टिट्यूट है. उसी के यहाँ पड़ा रहता है. तेज को पकड़ना है तो उस प्रॉस्टिट्यूट के यहाँ पहुँच जाइए"
"कहाँ रहती है वो?" ख़ान ने पुछा
"अड्रेस मैं बता देता हूँ. आप लिख लीजिए"
"नही अभी नही, फिलहाल गाड़ी चला रहा हूँ. कल मैं आके तुमसे मिलता हूँ पहले, तभी अड्रेस ले लूँगा और वहाँ से मिलने चला जाऊँगा"
"ठीक है" जै ने कहा "और किसी से बात की?"
"नही अभी तक तो नही"
"उस बुड्ढे भूषण को पकड़ लीजिए"
"थोड़ी देर पहले फोन करते तो मैं हवेली में उससे मिल लेता. वहीं से आ रहा हूँ"
"हवेली में नही सर. वहाँ वो बात नही करेगा. उसको पकडीए अकेले में"
"तो फिर ये भी तुम ही बता दो के कहाँ पाकडूं"
"शाम को गाओं में जो एक शराब की दुकान है वो रोज़ जाता है वहाँ. एक शराब की बॉटल लेता है और पीकर सोता है. वहाँ मिल जाएगा" जै बोला
और उसी शाम जै के कहने पर ख़ान शराब की दुकान पर पहुँच गया. थोड़ी देर इंतेज़ार के बाद उसको भूषण आता दिखाई दे गया. ख़ान ने उसको रोक कर अपनी जीप में बैठाया और अपने घर ले आया.
क्रमशः........................................
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --35
गतान्क से आगे........................
किरण हवेली से आने के थोड़ी देर बाद ही वापिस चली गयी थी इसलिए भूषण के साथ वो अपने घर में अकेला ही था.
"कोई ग़लती हो गयी मालिक?" भूषण हाथ जोड़कर बोला और नीचे ज़मीन पर बैठने लगा
"अर्रे वहाँ नही. उपेर आराम से बैठो" ख़ान ने कुर्सी की तरह इशारा किया "और नही कोई ग़लती नही हुई. ऐसे ही कुच्छ बात करनी थी तुमसे"
"जी मुझसे?"
"हां तुमसे पर वो बाद में. पहले ज़रा शाम को रंगीन किया जाए" ख़ान ने कहा और अपने ड्रॉयर से वाइन की एक बॉटल निकाली "गाओं की दुकान से देसी तो रोज़ाना पीते हो, आज अँग्रेज़ी वाइन का मज़ा लो"
शराब की बॉटल, वो भी इंग्लीश वाइन. देख कर ही भूषण की आँखों में चमक गयी.
"वो ऐसे कुच्छ नही बताएगा सर. पर नशा कमज़ोरी है उसकी, थोड़ी सी पिला दीजिए फिर देखिए के कैसे गा गाकर आपको सब बताएगा" ख़ान को जै की कही बात याद आई.
अगले आधे घंटे पर शराब का दौर चला. ख़ान खुद पीता नही था इसलिए वो पेप्सी पी रहा था पर भूषण आधी वाइन की बॉटल खाली कर चुका था और होश कब्के खो चुका था.
"और बताओ भूषण" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे किसी पुराने दोस्त से बात कर रहा हो
"किस बारे में मालिक?" भूषण ने लड़खड़ाती आवाज़ में पुछा
"अपने बारे में ही बता दो"
"ग़रीब के बारे में जानके क्या करेंगे साहिब और वैसे भी कुच्छ ख़ास है नही मेरे बारे में जानने को" भूषण एक और पेग बनाता हुआ बोला
"शादी नही की तुमने?"
"की थी मालिक, पर भाग गयी साली"
"फिर से शादी?" ख़ान ने पुछा तो भूषण ने इनकार में सर हिला गिया
"तो ज़िंदगी भर काम कैसे चलाया?" ख़ान हस्ते हुए बोला "अपने हाथ जगन्नाथ?"
"क्या आप भी साहिब" भूषण शर्मिंदा सा होते हुए बोला
"नही सच में. कभी ज़रूरत महसूस नही हुई?"
"हुई थी साहिब. पर अपने इंटेज़ाम थे" भूषण शेखी उड़ाता हुआ बोला
"इंटेज़ाम?" ख़ान ऐसे बोला जैसे बहुत राज़ की बात कर रहा हो "गाओं में या हवेली में ही?"
भूषण एक पल के लिए चौंका पर फिर ज़ोर ज़ोर से हसणे लगा
"क्या साहिब. हवेली में कहाँ इंटेज़ाम होगा?"
"अर्रे क्यूँ नही हो सकता. इतने मस्त मस्त आइटम हैं"
"मेरे से आधी उमर की बच्चियाँ हैं सब" भूषण वाइन गले से नीचे उतारता हुआ बोला
"अर्रे तो अच्छी बात है ना. कच्ची कलियों में खेलो"
"अर्रे नही साहिब. उमर गयी अब अपनी ये सब काम करने की"
"जवानी में तो सोचा होगा कभी"
"जब हम जवान थे तो हवेली में ऐसी कोई थी ही नही" भूषण भी अब सुर से सुर मिलाके बोल रहा था
"क्यूँ ठकुराइन थी तो" ख़ान अब भी बात ऐसे ही कर रहा था जैसे दो शराबी मज़ाक कर रहे हों
"कहाँ मालिक" भूषण बोला "वो कुर्सी से तो उठ नही सकती"
"अर्रे हमेशा से कुर्सी पर थोड़े ही थी. देखके तो लगता है के जवानी में बड़ी सही छम्मक छल्लो रही होगी"
"बात तो वैसे सही कह रहे हो आप" भूषण ने कहा "थी तो बहुत सुंदर"
"लगता भी है. पर अफ़सोस के बेचारी आक्सिडेंट के बाद बेकार ही हो गयी"
"अर्रे काहे का आक्सिडेंट" भूषण अब बिल्कुल होश के बाहर था "सब ठाकुर का किया धरा था"
ख़ान चौंक पड़ा. ये बात नयी थी.
"ठाकुर का किया धरा मतलब" उसने बात को इस तरह से पुछा के भूषण को ये ना लगे के वो क्या बक रहा है.
"ठाकुर ने धक्का दिया था सीढ़ियों से" भूषण नशे की हालत में बोल गया
ख़ान थोड़ी देर चुप बैठा रहा.
"क्यूँ?" कुच्छ देर बाद उसने पुछा
"सही तो पता नही पर उससे पहले काफ़ी लड़ाई झगड़ा हुआ था. मुझे लगता था के ठकुराइन का किसी से नाजायज़ रिश्ता हो गया था जिस पर ठाकुर काफ़ी बिगड़ा था"
जै का बताया फ़ॉर्मूला काम कर गया. काफ़ी कुच्छ भूषण से ऐसा पता चला था जिसकी ख़ान को भनक तक नही थी.
"किससे?" उसने पुछा
"कौन जाने साहिब" भूषण ने कहा "होगा कोई चोदु भगत"
और वो दोनो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगे.
"ये बात कोई और भी जानता है हवेली में के ठकुराइन का आक्सिडेंट नही हुआ था?"
"हां जानता है ना. पुरुषोत्तम को पता है सब. मैने उसको ठाकुर से लड़ते हुए सुना था के ठाकुर उसकी माँ के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं"
"फिर?" ख़ान ने पुछा
"फिर ये राज़ एक राज़ बनकर रह गया. किसी ने किसी से कुच्छ नही कहा. ठकुराइन बिस्तर से लग गयी और ठाकुर ने देख भाल को एक नौकरानी रख ली. पर पुरुषोत्तम की फिर कभी अपने बाप से बनी नही"
"अच्छा?" ख़ान बोला
"हां" भूषण कहता जा रहा था "हवेली के अंदर दोनो बात तक नही करते थे. पुरुषोत्तम अपनी माँ के साथ काफ़ी करीब था. हमेशा अपनी माँ से चिपका रहता था. वो जहाँ जाती उसको साथ लेके जाती. तो जब उसकी माँ के साथ ऐसा हुआ तो वो कुच्छ कर तो नही सका पर फिर अपने बाप से कभी बात भी नही की"
अगले ही दिन किरण फिर ख़ान के घर पर थी. ख़ान उसको अपनी कल रात की भूषण से हुई सारी बात बता चुका था.
"और तुम्हें पूरा यकीन है के वो सच कह रहा है?" किरण बोली
"जिस तरह से वो कल शराब पीने के बात मुझे सब बता रहा था उससे 2 ही बातें ज़ाहिर हो सकती हैं. या तो ये के वो एक कमाल का आक्टर है और झूठ बोलने की कोई सॉलिड वजह है उसके पास या दूसरी ये के वो नशे की हालत में सब सच उगल रहा था"
"ह्म्म्म्मम" किरण कमरे में चहल-कदमी करते हुए बोली "तुम भी पी रहे थे?"
" यू नो आइ डोंट ड्रिंक" ख़ान ने जवाब दिया. वो दोनो के लिए चाई बना रहा था.
"यप" किरण बोली "यू नेवेर डिड. वैसे एक बात तो है. कोई आसानी से बता नही सकता के ठाकुर ने अपनी बीवी के साथ ऐसा किया था. आइ मीन जिस तरह से फॅमिली रहती है, कोई नही कह सकता के इतना बड़ा राज़ दफ़न है"
"ठाकुर लोग हैं. जान से ज़्यादा इज़्ज़त प्यारी होती है" ख़ान ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"आइ मीन जिस तरह से उसने अपनी बीवी का इलाज करने की कोशिश की, कौन कहेगा के अपनी बीवी की इस हालत को वो खुद ही ज़िम्मेदार था. आंड दट ठकुराइन, शी वाज़ स्टिल लिविंग वित दा सेम मॅन अंडर दा सेम रूफ"
"यप" ख़ान ने जवाब दिया
"सो" किरण चलते चलते उसकी टेबल तक आई "शराब ना पीने की तुम्हारी पुरानी आदत अब तक बनी हुई है. और कौन कौन सी आदतें बची हुई हैं?"
"आइ आम प्रेटी मच दा सेम गाइ" ख़ान ने कहा
"आइ कॅन सी दट. शेर-ओ-शायरी भी अभी तक करते हो"
उसकी बात सुनकर ख़ान ने पलटकर देखा. किरण टेबल के पास खड़ी एक डाइयरी खोले देख रही थी.
"तुम्हारी भी आदतें कहाँ बदली अब तक. अब भी मेरे सामान में मुझसे बिना पुच्छे ही घुस रही हो" ख़ान ने कहा पर इससे पहले के वो कुच्छ करता, किरण ने डाइयरी से पढ़ना शुरू कर दिया.
मेरे हमसफर,
वो जो एक रिश्ता-ए-दर्द था,
तेरे नाम का मेरे नाम से,
तेरी सुबह का मेरी शाम से,
आज बेइज़्ज़त पड़ा हुआ है,
गुमनाम सा, बदनाम सा,
शरम-सार सा, नाकाम सा,
मेरी रास्तो से कयि रास्ते उलझ गये,
वो चिराग जो मेरे साथ थे, बुझ गये,
मेरे हमसफ़र, तुझे क्या खबर,
जो वक़्त है किसी धूप छाँव के खेल सा,
उसे देखते, उसे झेलते,
मेरी मायूस आँखें झुलस गयी,
मेरे बेख़बर, तेरे नाम पर,
वो जो फूल खिलते थे होंठ पर,
वो नही रहे,
जो एक रिश्ता था दरमियाँ,
वो बिखर गया,
मेरे हमसफ़र, है वही सफ़र,
मगर एक मोड़ के फ़र्क़ से,
तेरे हाथ से मेरे हाथ तक,
वो जो फासला था हाथ भर का,
कई सदियों में बदल गया,
और उसे नापते, उसे मिटाते,
मेरा सारा वक़्त निकल गया.
शेर ख़तम हुआ तो कमरे में चुप्पी छा गयी. किरण ने चुप चाप डाइयरी बंद की और टेबल पर रख दी. ना वो कुच्छ बोली और ना ख़ान.
"वाह वाह " दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो दोनो ने चौंक कर उस तरफ देखा.
दरवाज़े पर हेड कॉन्स्टेबल शर्मा खड़ा था.
"वाह सर वाह, मज़ा आ गया. आपको शेरो शायरी का शौक है मुझे तो पता ही नही था" कहता हुआ वो अंदर आया.
"तुम कब आए" ख़ान ने पुछा
"बस जब मे मेडम पढ़ रही थी तब. दरवाज़ा खुला हुआ था तो मैने भी शेर सुन लिया" कहते हुए शर्मा ने किरण की तरफ़ देखा
"किरण ये हेड कॉन्स्टेबल शर्मा है और शर्मा ये किरण है, मेरी ....... "ख़ान एक पल के लिए रुका "पुरानी दोस्त" उसने बात ख़तम की.
"नाइस मीटिंग यू मेडम जी" शर्मा ने फ़ौरन किरण की तरफ हाथ बढ़ाया
"कहो कैसे आए" ख़ान ने एक कप में चाई और निकाल कर शर्मा की तरफ बढ़ाई.
"सर आप कल से पोलीस स्टेशन नही आए तो मैं थोड़ा परेशान हो चला था के कहीं तबीयत तो खराब नही हो गयी इसलिए ख़ैरियत पुछ्ने चला आया"
"नही मैं ठीक हूँ" ख़ान बोला. वो तीनो चाइ के कप लिए आराम से बैठ गये
"यार सच मानो तो मुझे समझ नही आ रहा के इन्वेस्टिगेशन कहाँ से शुरू करूँ और किससे शुरू करूँ" ख़ान ने किरण से कहा
क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:18 PM,
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --37
गतान्क से आगे........................
"साउंड्स रीज़नबल" जै ने सहमति जताई "चड्ढा मान गया?"
"हां" ख़ान बोला "पर एक शर्त पर"
"कैसी शर्त?"
"देखो सरकारी वकील होने के नाते वो तुमसे फीस नही माँग सकता पर उसकी शर्त है के अगर तुम बेगुनाह साबित होकर रिहा हो गये, तो मोटी फीस देनी पड़ेगी"
"कितनी?" जै बोला
"मैने पैसे की बात नही की पर जितनी भी हो यार" ख़ान बोला "तुम्हारी जान बच जाए इसके लिए भले कितने भी पैसे लगें. या पैसे ज़्यादा प्यारे हैं तुम्हें?"
"बचूँगा ही नही तो पैसे का क्या करूँगा?" जै हस्ता हुआ बोला
"एग्ज़ॅक्ट्ली. तो पैसे की बात हम उससे बाद में करते रहेंगे" जै ने हां में सर हिलाया
"और अब क्यूंकी हमारे पास ज़्यादा वक़्त नही है, तो हमें जो करना है जल्दी करना पड़ेगा"
"ओके"
"देखो तुम्हारे केस में अब तक जो हमें थोड़ी बहुत बढ़त मिली है वो तुम्हारी ही बताई हुई बातों से मिली है और जो तुम बता सकते हो वो कोई और नही बता सकता. ठाकुर का खून हुआ और और ज़ाहिर सी बात है कि किसी घर के आदमी ने ही किया है. तो इस खून की वजह भी कहीं किसी घरेलू मामले में ही च्छूपी है. मैं चाहता हूँ के तुम मुझे अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालो और सोचो के वजह मौजूद किस आदमी के पास खून करने की वजह हो सकती
थी. कुच्छ भी, कोई पुराना झगड़ा, कोई क़र्ज़ जिसे चुकाने के लिए दौलत चाहिए हो, वसीयत से बाहर होने का डर, एनितिंग"
"ओके" जै किसी बच्चे की तरह सुन रहा था
"और जैसा की मैने कहा के हमारे पास ज़्यादा वक़्त नही है, ये काम भी तुम्हें जल्दी ही करना पड़ेगा"
"यॅ ओके. आइ कॅन डू दट. मैं हवेली में रहने वाले हर शक्श की रग रग से वाकिफ़ हूँ"
"गुड. तुम मुझे सोचके बताओ और फिलहाल मुझे उस कॉल गर्ल का अड्रेस दो. आज शहर आने की एक वजह उससे मिलना भी था"
"ओके" जै ने अड्रेस बताना शुरू किया और ख़ान ने लिख लिया.
"मैने यहाँ जैल के वॉर्डन से बात कर ली है. अच्छी जान पहचान है मेरी उससे. मैने कह दिया है के जब भी तुम मुझे फोन करना चाहो तो तुम्हें रोका ना जाए"
"ओके" जै खुश होता हुआ बोला
"चलता हूँ मैं" ख़ान उठकर जाने लगा "फोन करना मुझे सोचकर"
जै भी साथ ही उठ खड़ा हुआ. ख़ान ने उससे हाथ मिलाया और शर्मा के साथ दरवाज़े की तरफ बढ़ा.
"एक बात बताओ" वो जाते जाते पलटा "तुमसे जो मिलने आई थी जैल में, वो कामिनी थी ना?"
जै के चेहरे पर एक पल के लिए आसार बदले.
"क्यूँ क्या हुआ? कोई प्राब्लम हो गयी?"
"नही ऐसे ही पुच्छ रहा हूं" ख़ान ने कहा तो जै ने हां में सर हिलाया.
"फिर आई वो तुमसे मिलने?"
"नही उसको भी अपने भाई का डर है" जै ने कहा
वो दोनो फिर दरवाज़े की तरफ बढ़े तो इस बार शर्मा पलटा.
"एक बात बताओ दोस्त" वो जै से बोला "मतलब तुम मौका-ए-वारदात से रंगे हाथ पकड़े गये, खून किसी और ने किया और फस तुम गये क्यूंकी तुम ग़लत टाइम पे वहाँ पहुँच गये, तुम्हारे अपने घरवाले तुम्हारे खिलाफ हैं, सब तुम्हें फाँसी पे टँगे देखना चाहते हैं और एक हमारे ख़ान साहब के सिवा कोई तुम्हें बचना नही चाहता और अब कोई वकील भी तुम्हारे केस नही ले रहा?"
जै ने हां में सर हिलाया.
"इस पर एक शेर याद आया सर. सुनाऊं?" शर्मा बोला
ख़ान ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.
"आप भी सुनीएगा, आप ही की सिचुयेशन पे अर्ज़ कर रहा हूँ. तो अर्ज़ किया है."
झोली में झाँत नही,
सराय में डेरा,
कुत्तो ने गांद मेरी,
और बंदरों ने घेरा,
के हम भी मारेंगे, हम भी मारेंगे
उसके शेर पे ख़ान ज़ोर से हस पड़ा और जै की शकल देखने लायक हो गयी.
तकरीबन एक घंटे बाद ख़ान और शर्मा जै के बताए हुए अड्रेस पर पहुँचे.
"घर तो मस्त बनाया है सर" शर्मा सामने बने बंगलो को देखते हुए बोला.
"ठाकुर जैसे और जाने कितने रईसो का पैसा लगा हुआ है यहाँ" कहकर ख़ान हस्ने लगा.
"कहिए" घंटी बजाने पर एक नौकर बाहर आया और ख़ान को पोलीस यूनिफॉर्म में देख कर फ़ौरन ऐसे बोला जैसे रोज़ की बात हो "मेडम की अभी तबीयत ठीक नही है. बाद में फोन करके आना"
ख़ान और शर्मा ने हैरत से एक दूसरे का मुँह देखा.
"आए साले" शर्मा जल्दी से बोले "दरवाज़ा खोल वरना तेरी मेडम के साथ साथ तेरी तबीयत भी खराब हो जाएगी"
"कहा ना कल आना" नौकर फिर बोला तो इस बार ख़ान भड़क पड़ा
"सुन ओये. या तू दरवाज़ा खोल वरना मैं अंदर घुसकर ......"
वो बात पूरी करता इससे पहले ही नौकर दरवाज़ा खोल चुका था.
उसके पिछे चलते दोनो घर के अंदर आए.
"बैठिए" नौकर ने उनको बैठने का इशारा किया. वो दोनो बैठे ही थे के अंदर से एक तकरीबन 40 साल की औरत बाहर आई. उसकी शकल देख कर कोई भी कह सकता था के वो 40 की थी पर जिस्म ऐसा के 20 साल की लड़की भी शर्मा जाए.
वो औरत चलती हुई ड्रॉयिंग रूम में आई और ख़ान और शर्मा को ऐसे देखने लगी जैसे याद करने की कोशिश कर रही हो.
"नही हम पहले कभी मिले नही" ख़ान ने उसकी शकल देख कर समझते हुए कहा
"तो फिर माफ़ कीजिएगा मेरी तबीयत कुच्छ आज ठीक....." वो कह ही रही ही के ख़ान बीच में बोल पड़ा
"हां बताया आपके नौकर ने पर हम उस काम से नही आए"
"तो किस काम से आए हैं?" वो औरत वहीं एक कुर्सी पर बैठते हुए बोली
"हम तेज को ढूँढ रहे हैं. ठाकुर तेजविंदर सिंग"
नाम सुनते ही उस औरत का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा. ख़ान को उसे देख कर पूरा यकीन हो चला था के अगर वो पोलीस वाला ना होता तो उस वक़्त धक्के देकर बाहर निकाल दिया जाता.
"और आपको ऐसा क्यूँ लगता है के वो कुत्ता आपको यहाँ मिलेगा?" रेखा गुस्से में बोली
"कुत्ता?" शर्मा फिर बीच में बोला "नही कुत्ता नही, तेज एक आदमी का नाम है"
"चुप रहो" ख़ान ने उसको इशारा किया "देखिए हमको यही बताया गया था के तेज अपना ज़्यादातर वक़्त आपके यहाँ गुज़ारता है"
"है नही था" रेखा बोली "अब अगर वो कमीना यहाँ आया भी तो उसके टुकड़े घर से बाहर जाएँगे"
"ह्म्म्म्मम" ख़ान हैरत से बोला "और इतनी नफ़रत की वजह?"
"कोई वजह नही." रेखा गुस्से में लाल होती बोली "बस हमारे यहाँ वहशी कुत्तो का यही हाल करते हैं"
"वहशी कुत्ता, वाउ" ख़ान ने कहा "काफ़ी हैरानी हुई मुझे. मुझे तो लगा था के आपका बहुत बड़ा आशिक़ था"
"आशिक़?" रेखा ऐसे हसी के ख़ान को समझ नही आया के वो हस रही है या उसकी बात पर हस रही है "आशिक़ होता तो ये ना करता"
और फिर रेखा ने वो किया जिसके लिए ना ख़ान तैय्यार था और ना शर्मा. वो अचानक से खड़ी हुई और अपना नाइट गाउन खोल दिया. गाउन के अंदर उसने नीचे एक पाजामा पहेन रखा था पर उपेर से गाउन के नीचे नंगी थी.
ख़ान को एक पल के लिए समझ नही आया के क्या करे. देखे या नज़र घुमा ले. और देखे तो क्या वो देखे जो सामने है या वो देखे जो रेखा दिखाना चाह रही थी.
"कितने बड़े बड़े हैं" शर्मा की आवाज़ आई तो ख़ान का ध्यास सा टूटा और पहली बार उसको वो दिखाई दिया जो रेखा दिखना चाह रही थी.
उसकी चूचियो पर, पेट पर, कंधो पर नीले और रंग के लाल निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.
"साले ने जानवर की तरह मारा था मुझे, ऐसे कि निशान आज तक गये नही जबकि उस बात को हफ़्तो हो गये" वो अपना गाउन फिर से बंद करते हुए बोली
"आपने पोलीस में रिपोर्ट नही लिखाई?" ख़ान ने पुछा
"हां ज़रूर" रेखा ने इस अनडाआज़ में कहा के ख़ान ने फिर इस बात को आगे नही बढ़ाया.
"इस पेपर में मेरा फोन नंबर लिखा हुआ है. अगर वो यहाँ आए या आपसे मिलने की कोशिश करे तो प्लीज़ मुझे फोन कीजिएगा. मोबाइल नंबर है मेरा"
"वो अभी नही आएगा" रेखा बोली "जब तक के उसके चाचा के लड़के को फाँसी नही लग जाती तब तक गायब रहेगा. जब उसके करम की सज़ा उसका चचेरा भाई उठा लेगा और बात ख़तम हो जाएगी, तब आएगा वो"
"उसके करम की सज़ा?" ख़ान ने हैरानी से पुछा
"अर्रे उसने मारा है अपने बाप को. काब्से इस ताक में बैठा था. कई बार बोला मुझे के अपने बाप को एक दिन मैं ही मारूँगा और मौका मिला तो कर भी दिया. और फाँसी लग रही है किसी और को"
उसी शाम वादे के मुताबिल जै ने ख़ान को फोन कर दिया.
"सर बहुत सोचा मैने पर हर किसी को इतना करीब से जानता नही. जितना मैं जानता था उनके बारे मैं आपको ऑलरेडी बता चुका हूँ"
"ओके" ख़ान ने अपना पेन और डाइयरी उठाई. एक पल के लिए उसने जै से ठकुराइन के आक्सिडेंट और पुरुषॉटटम के ठाकुर से बात ना करने के बारे में पुछा पर फिर अपना इरादा बदल दिया.
"बस एक इंसान और है जिसके बारे में मैं आपको बता सकता हूँ." जै बोला
"कौन?"
"कामिनी"
"कामिनी? उसके बारे में क्या?"
"मुझे लगता नही के ये केस से कोई ताल्लुक रखने वाली बात है पर उसका किसी लड़के से चक्कर था या फिर है शायद"
"कौन?" ख़ान ने फ़ौरन पुछा
"ये तो पता नही"
"कभी बात है ये?"
"हाल फिलहाल की बात है सर. और जहाँ तक मेरा ख्याल है चाचा ठाकुर को ये बात पता चल गयी थी जिसको लेकर हवेली में काफ़ी हंगामा भी हुआ था."
"ओके आंड तुम्हें ये बात कैसे पता?"
"कैसी बात कर रहे हो सर. भले हवेली में रहता नही पर हवेली की सारी खबर रखता हूँ मैं. और वैसे भी ऐसी बातें कहाँ च्छुपति हैं"
"यप" ख़ान ने कहा
क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:22 PM,
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --38
गतान्क से आगे........................
जै से उसने 2 मिनट और इधर उधर की बात की और फिर फोन रख दिया. फोन रख कर उसने एक बार फिर अपनी डाइयरी उठाई और उन लोगों के नाम देखने शुरू किए जिनके सामने कोई इन्फर्मेशन नही थी.
1. सरिता देवी - मोटिव है बदला उस पति से जिसने उन्हें सीढ़ियों से धक्का दिया और ज़िंदगी भर के लिए एक कुर्सी पर बैठा दिया
सवाल - 15 साल पुरानी बात का बदला लेने के लिए अब तक इंतेज़ार क्यूँ जबकि वो सिर्फ़ ठाकुर की चाइ में ज़हर मिलाके कभी भी उसका काम तमाम कर सकती थी.
क्या व्हील चेर पर बैठी बुद्धि कमज़ोर औरत क्या ऐसा कर सकती है?
ठाकुर ने इसको सीढ़ियों से धक्का दिया तो ये बात जै को कैसे नही पता?
2. भूषण - कोई मोटिव नही. एक बुड्ढ़ा जो सारी ज़िंदगी हवेली में ही काम करता रहा. ये अपनी ही मालिक को क्यूँ मारेगा जिसकी गाड़ी चलाकर ये रोज़ी रोटी कमाता था. इसका तो देखा जाए तो नुकसान हुआ. पता नही ठाकुर के बेटे इसको नौकरी पर रखें या ना रखें.
सवाल - कोई नही
3. तेज - सॉलिड वजह है. वसीयत से बाहर हो जाने का डर, बाप से कभी बनी नही, अययाशी की आदत जिससे इसके बाप को सख़्त नफ़रत थी. गौर तलब बात है के ये अपने बाप की जान लेना भी चाहता था.
सवाल - कोई नही क्यूंकी इस पर तो सॉफ तौर पे शक ही शक है.
4. पुरुषोत्तम - वजह ही वजह. माँ का लाड़ला जो अपनी माँ को बहुत चाहता है, बाप से नफ़रत करता है और पिछे कई सालों से बाप से बात तक नही की. दौलत का डर इसको भी हो सकता था क्यूंकी जिस बाप से ये बात नही करता वो इसको वसीयत से निकाल बाहर कर सकता था.
सवाल - कोई सवाल नही. पूरी तरह से शक के घेरे में है.
5. इंदर -- वजह हो सकती है पर अभी तक सामने कुच्छ नही आया है. इसके बारे में पता करना है.
ख़ान ने अपना फोन उठाया और किरण को मिलाया.
"कैसी हो?" ख़ान ने कहा
"बस तुम्हें फोन करने ही वाली थी" दूसरी तरफ से किरण की आवाज़ आई "वैसे अच्छा हुआ के तुमने फोन कर दिया"
"क्यूँ?" ख़ान ने पुछा
"वरना मुझे तो लगने लगा था के मैं ही तुम्हें फोन करती रहती हूँ. तुम करते ही नही"
"यॅ राइट. अच्छा सुनो, इससे पहले के मैं भूल जाऊं, एक काम कर सकती हो?
"क्या?" किरण ने पुछा
"रूपाली का भाई, इंदर, ये शहर में ही कहीं रहता है और कोई बिज़्नेस है इसका. देखो इसके बारे में क्या पता कर सकती हो?"
"शक है इस्पे?" किरण ने पुछा
"आक्च्युयली तो सबसे कम शक इसी पर है. मेरे ख्याल से ये बस वहाँ बेहन से मिलने ही गया था और उसी रात ठाकुर का खून हो गया. पर फिर भी, मैं पता करना चाहता हूँ"
"ओके सर" किरण बोली "गुलाम के लिए कोई और हुकुम?"
"नही बस इतना ही फिलहाल" ख़ान ने कहा "और मैं आपको 10 मिनट में दोबारा फोन करता हूँ"
ख़ान ने फोन रख दिया और फिर वापिस अपनी लिस्ट की तरफ देखा.
6. कुलदीप
इस बार उसने फोन शर्मा को मिलाया. शर्मा की नींद में डूबी हुई आवाज़ आई.
"हां सर"
"इतनी जल्दी सो भी गये?" ख़ान ने पुछा "चलो में कल बात करता हूँ. आराम करो"
"नही बताइए. अब तो आँख खुल ही गयी" शर्मा बोला
"कुलदीप के बारे में क्या बता सकते हो?"
"क्या सर. इतनी रात को आपको ये सब सूझ रहा है. सो जाओ"
"बताओगे?" ख़ान ने ज़िद भरी आवाज़ में कहा
"ज़्यादा कुच्छ नही सर" शर्मा बोला "वो बहुत छ्होटा था जब उसको लंडन भेज दिया गया था. उस वक़्त पुरुषोत्तम भी लंडन में ही था इसलिए वो अपने भाई के साथ रहा. बाद में पुरुषोत्तम वापिस आ गया पर कुलदीप पढ़ाई पूरी करने के लिए वहीं रुका रहा. आजकल छुट्टियो में आया हुआ है"
"और कुच्छ?" ख़ान ने पुछा "नही सर, इससे ज़्यादा कुच्छ नही"
"ओके सो जाओ" कहते हुए ख़ान ने फोन रख दिया.
अब भी लिस्ट में कई नाम थे जिनके बारे में ख़ान को अब भी पता करना था. और कई सवाल थे जिनके जवाब अब भी गुम थे.
उस रात उसको फोन किस लड़की ने किया था जिसके कहने पर वो हवेली आया था.
ठाकुर के साथ मरने की रात सोई कौन थी? क्या बिंदिया ही थी या कोई और भी हो सकती थी?
अगर बिंदिया नही थी तो क्या वो औरत जिसने फोन किया और क्या सोने वाली औरत एक ही थी?
ख़ान ने एक झटके में अपनी डाइयरी को बंद किया और एक तरफ फेंक दिया. सोच सोच कर उसके सर में दर्द होने लगा था.
तभी फोन एक बार फिर बज उठा. नंबर शर्मा का था.
"तुम तो सो रहे थे?"
"ख़ान ने सवाल किया"
"हां पर आपने जगाया तो आँख खुल गयी. एक बात ध्यान आई जो शायद आपको पता ना हो तो मैने सोचा के आपको बताऊं"
"हां कहो" ख़ान बोला
"आपको पता है के ठाकुर की बहू रूपाली पर रेप अटेंप्ट हो चुका है?"
"अच्छा? कब?"
"बचपन में, जब वो शायद 16-17 की थी"
"किसने किया था?"
"उनके घर के नौकर ने"
"फिर?"
"फिर वो चिल्लाई और उसका बाप वहाँ आ गया. उसने नौकर को वहीं गोली मार दी. उनके घर की एक नौकरानी भी थी जो इसमें मिली हुई थी. रूपाली के बाप ने उस नौकरानी को भी गोली मारी पर वो बच गयी"
"और ये सब तुम्हें कैसे पता?"
"पोलीस वाला हूँ सर. ऐसी बातें तो मुझे पता होगी ही. वैसे भी जब ये हुआ था तो काफ़ी उड़ी थी ये बात"
"ओके" ख़ान सुनता रहा
"लोग तो कहते थे के रेप नही हुआ था, रूपाली खुद ही लगी हुई थी बुड्ढे नौकर के साथ. बाप बीच में आ गया तो उसे लगा के रेप हो रहा है इसलिए उसने नौकर को गोली मार दी"
"इसलिए उसको सब लूस कॅरक्टर समझते हैं?"
"हां" शर्मा हस्ता हुआ बोला
दरवाज़े पर दस्तक हुई तो ख़ान की आँख खुली. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बजे रहे थे.
"इतनी सुबह किस मनहूस को मुसीबत आ गयी?" ख़ान दिल ही दिल में बोला और उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा. दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई.
"आ रहा हूँ"वो चिढ़ता हुआ बोला और जाकर दरवाज़ा खोला. बाहर शर्मा खड़ा था.
"तुम? इतनी सुबह?"
"हां सर. आप यकीन नही करोगे के क्या देख कर आ रहा हूँ" कहता हुआ शर्मा बिना ख़ान के बुलाने का इंतेज़ार करता हुआ अंदर आ गया.
ख़ान ने उसपर एक नज़र डाली. शर्मा ने एक ढीली सी टी-शर्ट, एक खाकी रंग की हाफ रंग और नीचे पोलीस वाले पी.टी. शूज पहेन रखे थे.
"दौड़ने जा रहे हो या दौड़के आ रहे हो?" उसने पुछ और किचेन की तरफ बढ़ा.
"सर सुबह निकला तो दौड़ने ही था पर कुच्छ ऐसा दिख गया के आज दौड़ना कॅन्सल" शर्मा उतावला होते हुए बोला. वो जैसे ख़ान को कोई बात बताने को मरा जा रहा था.
"ऐसा क्या देख लिया" ख़ान ने स्टोव पर चाइ चढ़ाते हुए बोला.
शर्मा ने बताना शुरू किया.
शर्मा की पुरानी आदत थी के वो हर सुबह कम से कम 5 किलोमीटर दौड़ कर आता था. मोटे पेट से उसको सख़्त नफ़रत थी इसलिए वो पूरी कोशिश करता था के किसी भी हाल में उसका पेट ना निकले और इसी के चलते, बचपन से ही उसको रोज़ाना सुबह दौड़ने की आदत थी.
उस दिन भी सुबह वो हर रोज़ की तरह घर से निकला और दौड़ता हुआ गाओं से बाहर खेतों की तरफ आ गया. सुबह की हल्की हल्की लाली आसमान पर फेल रही थी पर अंधेरा पूरी तरह हटा नही था. ख़ान दौड़ता हुआ आदत के मुताबकी नहर की तरफ चला जहाँ पहुँच कर वो थोड़ी देर रुकता था और फिर गाओं की तरफ दौड़ना शुरू कर देता था. पर आज कुच्छ ऐसा हुआ जो पहले कभी भी नही हुआ था.
कुच्छ आगे बढ़ने पर खेतों के बीचे बनी कच्ची पगडंडी पर ख़ान को अपने आगे एक साया चलता हुआ महसूस हुआ. सुबह की हल्की रोशनी में वो साया सॉफ नज़र नही आ रहा था पर इतना पता चल गया था के कोई बंदा ही है जो उसकी तरफ सुबह सुबह दौड़ रहा है.
"कमाल है" शर्मा ने दिल ही दिल में सोचा "मेरी तरह और ये शौक किसे चढ़ गया"
वो अभी सोच ही रहा था के अचानक उसको एहसास हुआ के वो साया अकेला नही है. उससे थोड़ा सा आगे एक लड़की एक पेड़ के पिछे खड़ी थी जो उस साए को देखते ही पेड़ के पिछे से निकल कर उस आदमी की तरफ बढ़ी.
"एक मिनट एक मिनट" ख़ान ने शर्मा को टोका "इतनी सुबह सुबह गाओं से बाहर खेतों में एक लड़की? जहाँ तक मैने सुना है के गाओं से कोई भी लड़की अंधेरा होने के बाद या सुबह को रोशनी फेल जाने तक गाओं से बाहर नही निकलती?"
"इसी बात की तो हैरानी मुझे भी हुई सर. अब आयेज सुनिए" कहकर शर्मा आगे बताने लगा.
अचानक उस लड़की के यूँ आ जाने से शर्मा अपनी जगह रुक कर खड़ा हो गया. वो उनसे ख़ासी दूरी पर था और हल्का हल्का अंधेरा अब भी फेला हुआ था जिससे वो आदमी और लड़की शर्मा को नही देख सकते थे पर फिर भी वो कुच्छ सोच कर सड़क के किनारे होकर च्छूप सा गया.
"च्छूपे क्यूँ?" ख़ान ने फिर पुछा
"अर्रे सर इतनी सुबह अंधेरे में लड़का लड़की गाओं से बाहर मिले तो क्या लगता आपको?"
"के उन दोनो का चक्कर चल रहा है" ख़ान ने कहा
"हां तो मुझे भी यही लगा और मैं देखना चाहता था के कौन है लड़का लड़की इसलिए ज़रा च्छूप कर देखने लगा ताकि वो मुझे देख कर घबराए नही"
"कौन थे वो दोनो?" ख़ान ने फ़ौरन पुछा. जिस तरह से शर्मा बता रहा था उससे सॉफ ज़ाहिर था के लड़का लड़की कोई ऐसे थे जिनको ख़ान जानता था.
"अर्रे पूरी बात तो सुनिए" शर्मा ने फिर बताना शुरू किया.
शर्मा चुप चाप खड़ा उस लड़के और लड़की को देखता रहा. इतनी दूर से हल्के अंधेरे में नज़र नही आ रहा था के कौन हैं पर लड़की ने एक सलवार कमीज़ और लड़के ने हाफ पेंट, टीशर्ट और स्पोर्ट्स शूज पहने हुए थे.
वो दोनो खड़े हुए कोई बात कर रहे थे और उनके बात करने के तरीके से सॉफ ज़ाहिर था के वो बात कम, बहस ज़्यादा कर रहे थे.
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07-01-2018, 12:23 PM,
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --39
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कुच्छ देर तक दोनो यूँ ही बात करते रहे जिसका एक शब्द भी शर्मा को सुनाई नही पड़ा. फिर उस लड़के ने लड़की को कहा जिस बात पर लड़की पावं पटकती चल दी और लड़के ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और अपने गले लगा लिया.
और तब शर्मा को उन दोनो की शकलें नज़र आई और उसके पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गयी.
"कौन थे दोनो?" ख़ान ने भी फ़ौरन पुछा
"लड़की तो पायल थी सिर, बिंदिया के बेटी" ख़ान ने कहा
"और लड़का?"
"सुनते रहो" शर्मा मुस्कुराता हुआ बोला और कहानी आगे बताने लगा.
वो लड़का पायल को कुच्छ देर तक यूँ ही अपनी बाहों में लिए खड़ा रहा. फिर वो दोनो रास्ते से हट कर खेतों के अंदर की तरफ चल पड़े. शर्मा अच्छी तरह जानता था के यूँ मुँह अंधेरे सुबह सुबह खेतों के अंदर वो दोनो क्या करने वाले थे इसलिए वो भी चुप चाप उनके पिछे चल दिया.
कुच्छ दूर आगे जाकर झाड़ियों के बीच वो दोनो रुक गये और उनसे थोड़े से फ़ासले पर एक पेड़ के पिछे छुपा शर्मा दोनो को देखने लगा.
पायल ने अपनी चुन्नी अपने गले से निकाली और नीचे ज़मीन पर बिच्छा दी. इसपर लड़के ने उसको कुच्छ कहा और चुन्नी फिर से उठा कर समेत कर एक तरफ रख दी और और फिर से पायल को अपनी तरफ खींच लिया.
कुच्छ देर वो यूँ ही खड़े रहे. शर्मा को लगा के वो अब भी बस गले लगे हुए हैं पर फिर थोड़ी देर ध्यान से देखने पर पता चला के वो एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे. लड़के का एक हाथ लड़की की छाती पर था जिन्हें वो हल्के हल्के से दबा रहा था और पायल को चूम रहा था.
कुच्छ देर तक ऐसा करने के बाद उसने पायल को अपने से अलग किया और उसकी कमीज़ उपेर उठाने लगा.
पायल ने फ़ौरन इनकार किया और जिस तरह से उसने इशारा करते हुए उससे शर्मा समझ गया के वो कह रही थी के इतने खुल्ले में कपड़े उतारना ठीक नही, कोई भी आ सकता है. लड़के को उसकी बात शायद समझ आ गयी इसलिए उसने भी ज़्यादा ज़िद नही की पर ऐसा कुच्छ कहा जिससे पायल शरमाती हुई फिर उसके करीब आ गयी और अपने सीने पर से हाथ हटा लिए.
वो लड़का फिर से उसके करीब आया और इस बात कमीज़ उतारने के बजाय उठाकर पायल की चूचियो के उपेर कर दी और झुक कर उन्हें चूसने लगा.
"हाए री किस्मेत" शर्मा ने दिल ही दिल में सोचा "सुबह सुबह दूध लेने तो सब जाते हैं पर ऐसा दूध सबके नसीब में कहाँ"
कुच्छ देर तक पायल की चूचियो को चूसने के बाद वो लड़का हटा तो पायल ने फ़ौरन अपनी कमीज़ नीचे कर ली. लड़के ने मुस्कुराते हुए अपनी हाफ पेंट की ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाला.
शर्मा को अब भी उनकी बातें सुनाई नही दे रही थी पर इतना समझ आ गया था के लड़का पायल को लंड चूसने को कह रहा था और वो मना कर रही थी.
थोड़ी देर तक वो लड़का उसको मनाने की कोशिश करता रहा पर वो नही मानी. फिर पायल ने आस पास चारो तरफ एक नज़र घुमाई और अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.
उसकी कमीज़ अब उपेर उठी हुई नही थी इसलिए जब उसने सलवार खोलकर थोड़ी सी नीचे सर्काई तो शर्मा को नज़र कुच्छ नही आया. पायल के पीठ उसकी तरफ थी इसलिए वो पिछे से देख कर सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा पा रहा था के वो अपनी सलवार थोड़ी सी नीचे सरका कर उसको पकड़े खड़ी है ताकि पूरी नीचे ना गिर जाए.
वो लड़का खड़े खड़े ही पायल के बिल्कुल नज़दीक आया. कद में वो उससे लंबा था इसलिए ज़रा सा झुका और पायल से सॅट गया. पायल ने भी अपनी बाहें लड़के के गले में डाल दी और लड़के ने उसको कमर से पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया.
वो दोनो ऐसे खड़े थे जैसे एक दूसरे से गले मिल रहे हों बस फरक सिर्फ़ इतना था के लड़के ने अपने घुटने मोड हुए थे ताकि अपना कद पायल के कद से मिला सके और दोनो लगातार हिल रहे थे.
पायल के पीठ शर्मा की तरफ थी और उसे ये समझ नही आ रहा था के वो लड़का पायल को चोद रहा था या यूँ ही उपेर उपेर से लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था.
इतनी देर से शर्मा ने देखा सब था पर पायल के नंगे शरीर की एक झलक भी उसको नही मिली थी. वो दिल ही दिल में सोच रहा था के भगवान कुच्छ तो दिखा दे और जैसे उसके दिल की बात सुन ली गयी. लड़के ने अपने हाथ पायल की कमर से नीच को सरकाए, उसके कमीज़ के पल्लू को पिछे से पकड़ कर उपेर उठाया और पायल की गांद शर्मा की आँखों के आगे नंगी हो गयी.
वो आँखें फाडे वो नज़ारा देख रहा था. पायल के पूरे शरीर का बस वो ही हिस्सा था जो नंगा था. उपेर जिस्म पर कमीज़ और जाँघो के नीचे सलवार. नंगी थी तो बस उसकी भरी भरी गांद जिसपर वो लड़का हाथ फिराता हुआ हिल रहा था.
"बस बस बस" ख़ान ने उसको टोका "सुबह सुबह का वक़्त है, उपेर वाले का नाम ले. खुद तो अपनी सुबह पता नही क्या देख के आ रहा है और उपेर से मेरे दिमाग़ में भी वाहियात बातें डाल रहा है"
"अर्रे सर ...." शर्मा के हाथ अब भी फेले हुए थे जिनसे वो पायल की गांद का साइज़ बताना चाह रहा था.
"सब छ्चोड़. ये बता के लड़का कौन था उसके साथ ........" इससे पहले के वो आगे कुच्छ कहता, ख़ान ने बात काट दी.
"गेस करो सर" शर्मा बोला
"एक तो सुबह सुबह मेरी नींद खराब कर दी" ख़ान चाइ स्टोव से उतारता हुआ बोल "अब उपेर से पहेलियाँ बुझा रहा है, सीधे सीधे बता ना"
"कुलदीप सर" शर्मा ने राज़ बताने के से अंदाज़ में कहा.
ख़ान ने हाथ से चाइ का कप गिरते गिरते बचा.
"क्या बात कर रहा है. आर यू शुवर?"
"हां सर" शर्मा बोला "वही था"
"ह्म्म्म" ख़ान ने चाइ का एक कप शर्मा के हाथ में दिया और दोनो वहीं चेर पर बैठ गये "दिस ईज़ इंट्रेस्टिंग"
"वो कैसे?"
"इस बात से 2 लोग पूरी तारह शक के घेरे में आ जाते हैं"
"पायल और कुलदीप?"
"हां" शर्मा ने कहा "देख अगर वो दोनो एक दूसरे से सच में प्यार करते हैं और शादी वगेरह का प्लान है तो ज़ाहिर सी बात है के ठाकुर इसके खिलाफ रहा होगा, शायद उसको पता भी चल गया हो जिसके चलते इनमें से एक ने काम कर दिया हो"
'बात तो सही है सर, पर अगर यूँ ही टाइम पास के लिए पायल को बजा रहा हो?"
"तब कहानी थोड़ी सी अलग होगी. वो ज़ाहिर सी बात है के पायल को तो बताएगा नही के टाइम पास कर रहा है. वो तो यही सोचेगी के वो उससे प्यार करता है और दौलत का सपना देखती होगी. जब उसको लगा होगा के ठाकुर बीच
में आ रहा है, तब उसने कर दिया होगा काम"
"पर सर आप ये भी तो सोचो के पायल तो ऑलरेडी वसीयत में शामिल है, वो ऐसा क्यूँ करने लगी" शर्मा ने कहा
"गुड पॉइंट पर ये तब जबकि पायल को पता हो के वो वसीयत में शामिल है. एक काम कर, आज थाने बुला ले उसको. बात करते हैं" ख़ान ने कहा
"कितने बजे तक बुलाऊं?"
"बुला ले 11 बजे के करीब"
"वैसे कमाल की बात है ना सर" जाते जाते शर्मा ने कहा "कल ही आपने मुझे कहा था के इस कुलदीप के बारे में कुच्छ पता लगाऊं और आज ही ये जैसे खुद मेरी झोली में आ गिरा"
"हां सो तो है पर फिर भी नज़र रख इस पर. और एक काम और कर, ठाकुर साहब की बड़े बेटे के बारे में ज़रा कुच्छ पता कर"
"पुरुषोत्तम?"
"हां"
"उस नाल्ले के बारे में क्या पता करना है?"
"नल्ला?" ख़ान ने हैरानी से पुछा
"हां. खड़ा नही होता उसका" शर्मा ने ऐसा कहा जैसे बहुत पेट की बात बता रहा हो.
"उसका खड़ा होता है या नही इससे कोई मतलब नही मुझे. अपनी भैंस या घोड़ी नही चुदवानी मैने उससे. खून की रात वो भी हवेली में ही था और पूरे पूरे चान्स हैं के ये काम उसी ने कर दिया हो"
"एग्ज़ॅक्ट्ली क्या मालूम करना है?" शर्मा ने सर खुजाते हुए पुछा
"पता कर के किससे मिलता है, किनके साथ उतना बैठना है, कहीं क़र्ज़ वगेरह में तो नही फसा हुआ"
"सर अगर वो क़र्ज़ में फसा होता ...." शर्मा ने कहना शुरू किया ही था के बीच में ख़ान ने टोक दिया
"यार तू मेरे कहने पे पता करेगा ज़रा?"
"येस सर" शर्मा ने कहा "वैसे एक बात और कहूँ सर?"
"हां बोल"
"आप एक आदमी को अपने शक के घेरे से निकाल रहे हो"
"किसे" ख़ान ने पुछा
"जै को" शर्मा ने समझाते हुए कहा "ऐसा भी तो हो सकता है के मारा उसने ही हो और हम फ़िज़ूल में भाग दौड़ कर रहे हों"
"हां हो सकता है" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "पर फिर ठीक है ना. ऐसा हुआ तो हम एक खूनी को एक खूनी ही साबित करेंगे"
"पर वो तो ऑलरेडी अंदर है सर"
"अर्रे मेरे भाई तू मेरे कहने पे कर दे ये सब. मेरे दिल की तसल्ली हो जाएगी के जै निर्दोष नही था और सज़ा सही आदमी को हुई"
"ओके सर" कहता हुआ शर्मा दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया.
तैय्यार होकर ख़ान पोलीस स्टेशन जाने के लिए घर से निकल ही रहा था के सेल बजा. मेसेज आया था. उसने सेल उठाकर देखा.
किरण का मेसेज था. उससे उसने आज सुबह से कोई बात नही की थी वरना अब तो ये रुटीन हो गया था के वो सुबह उठते ही सबसे पहले किरण को फोन घुमाता था.
मेसेज में एक शेर था.
"कुच्छ तबीयत ही मिली थी ऐसी,
के सुकून से जीने की सूरत ना हुई,
जिसे चाहा उसको अपना ना सके,
जो मिला उससे मोहब्बत ना हुई"
ख़ान शेर पढ़कर मुस्कुरा उठा. उसने दो पल सोचा और जवाब दिया.
मेरे लब की हसी तेरे होंठो से निकले,
तेरे गम का दायरा मेरी आँखों से निकले.
खुशी तेरे दर से ना जाए कहीं,
दुआ यही हरदम मेरे दिल से निकले.
तेरे आँखों में अश्क़ जो आ जाए कभी,
तो साथ ही खबर मेरे मरने की निकले.
आरज़ू थी के तेरी बाहों में दम निकले,
कसूर तेरा नही, बदनसीब हम निकले.
क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:23 PM,
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --40
गतान्क से आगे........................
तकरीबन 11 बजे वो बैठा पायल के आने का इंतेज़ार कर रहा था. पायल तो ना आई पर उसके सामने आ खड़ा हुआ ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग.
"कहिए" ख़ान ने उससे हाथ मिलाते हुए पुछा
"रिपोर्ट लिखनी है" पुरुषोत्तम ने बैठते हुए कहा
"ज़रूर" ख़ान ने अपने सामने पड़ा रिजिस्टर खोला "किस बारे में?"
"गुमशुदा"
"कौन गुमशुदा है?" ख़ान ने हैरानी से पुछा
"हमारा भाई"
"ठाकुर तेजविंदर सिंग या ....?"
"तेज" पुरुषोत्तम बीच में बोल पड़ा
"काब्से?"
"कई दिन हो गये हैं"
"आखरी बार कब देखा गया था उन्हें?"
"जिस रात हमारे पिता का खून हुआ था"
"हां उस रात हवेली में मिला था मैं उनसे"
"उसके बाद सुबह घर से निकले तो वापिस नही आए" पुरुषोत्तम ने कहा
"ओके" ख़ान रिपोर्ट लिखने लगा पर फिर अचानक सिर उठाकर पुछा "पर जब मैं उस दिन आपसे हवेली में मिला था तो आपने कहा था के वो उस दिन सुबह ही कहीं गये थे"
"हां हमें लगा के वो रात को हवेली में आए थे"
"लगा? मतलब?"
"मतलब ये का हमने रात को हवेली के बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज़ सुनी थी. तेज की आदत थी के वो अक्सर यूँ ही देर से घर आते थे तो हमने सोचा के वही आए होंगे. सुबह हमने देखा तो गाड़ी नही थी तो हमें लगा के वो कहीं गये हैं"
"और ये भी उनकी आदत थी? यूँ बिन बताए सुबह सुबह घर से निकल जाना?"
"जी हां" पुरुषोत्तम ने सख़्त आवाज़ में जवाब दिया जैसे ख़ान को इशारा कर रहा हो के अपनी हद में रहो.
"ठीक है सर" ख़ान ने रिजिस्टर पुरुषोत्तम की तरफ करते हुए कहा "आप यहाँ साइन कर दीजिए, मुझे जैसे ही कुच्छ पता चला है मैं आपको खबर कर दूँगा"
"तुम्हारी रूपाली तो क्वाइट ए कॅरक्टर निकली यार" किरण ख़ान को फोन पर बता रही थी
"क्यो ऐसा क्या हुआ?" ख़ान ने पुछा
"वेल इट टर्न्स आउट के उसपर बचपन में एक रेप अटेंप्ट हुआ था"
"यॅ आइ नो अबौट दट" ख़ान ने जवाब दिया "और कुच्छ?"
"और ये के शी ईज़ ए कॉलेज ड्रॉप आउट"
"क्यूँ?"
"मॅ'म प्रेग्नेंट हो गयी थी जिसके चलते उनको कॉलेज से हटाया गया और उसे बाप ने जल्द बाज़ी में उसकी शादी करा दी"
"वाउ. सो इट ईज़ इनडीड ट्रू" ख़ान ने कहा
"वेट ए मिनिट. यू न्यू अबौट ऑल दिस?"
"यआः सुनने में आया था बट यकीन नही था"
"आंड व्हेन वर यू एग्ज़ॅक्ट्ली प्लॅनिंग ऑन टेल्लिंग मी?"
"यार कहा तो के बस उड़ती उड़ती अफवाह सुनी थी. ऐसा कोई पूरा यकीन नही था के ऐसा हुआ है"
"ओके" किरण ने कहा "बट आइ बेट दट यू डू नोट नो व्हाट आइ आम गोयिंग टू टेल यू नाउ"
"ओके. आइ आम रेडी. शूट"
"उसपर जो रेप अटेंप्ट हुआ था उसमें उसके घर की नौकरानी का भी नाम आया था दट शी वाज़ ए पार्ट ऑफ सेट्टिंग दा एंटाइयर डील उप. यू सी देयर मेल सर्वेंट अटेंप्टेड दा रेप बट इट ईज़ साइड दट ए फीमेल सर्वेंट वाज़ इन्वॉल्व्ड टू आंड शी प्लेड अन ईक्वल पार्ट"
"वेर आर यू गेटिंग विथ दिस?" ख़ान उलझता हुआ बोला
"डमी" किरण ऐसी बोली जैसे ख़ान बहुत बड़ा बेवकूफ़ हो "पूरी बात सुनो. रूपाली के बाप ने उस मेल सर्वेंट को तो उसी रात मार दिया था, जिसके लिए बाइ दा वे उसके खिलाफ कोई रिपोर्ट भी फाइल नही हुई, पर वो फीमेल सर्वेंट बच गयी और यहीं शहर में एक महिला आश्रम में रहती है"
"वो बच गयी तक तो मुझे ऑलरेडी पता था पर कहाँ रहती है दट शुवर केम अस ए सर्प्राइज़. वेर डिड यू दिग ऑल दिस फ्रॉम इन ए डे?"
"जर्नलिस्ट हूँ यार. आधी जासूस कह सकते हो"
"आधी नही पूरी जासूस हो तुम. बट आइ स्टिल डोंट अंडरस्टॅंड वेर आर यू गेटिंग विथ ऑल दिस. आइ स्टिल डोंट सी दा पॉइंट"
"हे भगवान" किरण ने कहा "अर्रे यार अगर रूपाली के बारे में कोई बात पता करनी है, उसके पास्ट में कुच्छ ऐसा है जिसके चलते हमें इस केस में मदद मिल सके तो हमें उस नौकरानी से बात करनी चाहिए"
"नौकरानी से क्यूँ?"
"देखो उस वक़्त सब ये कह रहे थे के रूपाली एक लूज कॅरक्टर लड़की थी जो खुद अपने नौकर के साथ लगी हुई थी. बाद में जब वो कॉलेज में प्रेग्नेंट हुई तो ये बात जैसे अपने आप साबित ही हो गयी. और उपेर से उसके पति को सब नमार्द कहते हैं. तो बहुत ज़ाहिर है के उसका शादी के बाद कोई अफेर वगेरह रहा हो जो शायद ठाकुर के खून की वजह बना हो"
"वाउ" ख़ान हैरानी से बोला "तुम तो सही में पूरी जासूस निकली यार. एक दिन में ठाकुर के पूरे खानदान की हिस्टरी खोद निकाली"
"ऑफ कोर्स" किरण बच्ची की तरह इठलाती हुई बोली
"बट आइ डोंट थिंक के हमें उस नौकरानी से बात करके कुच्छ पता चलने वाला है"
"वर्त ए शॉट. वैसे ही हमारे पास इस केस में कोई ज़्यादा लीड्स नही हैं. तो जो हैं, वही फॉलो करके देख लेते हैं"
"यॅ. साउंड्स लॉजिकल. आंड आइ गेस तुम्हें ऑलरेडी पता है के वो नौकरानी किस महिला आश्रम में रहती है"
"ओह यॅ"
"ठीक है. 2 घंटे दो मुझे. यहाँ कुच्छ काम निपटा के अभी निकलता हूँ. कहाँ मिलना है?"
किरण ने उसको अड्रेस लिखवा दिया.
"यू नो किरण एक बात समझ नही आ रही" फोन रखते रखते ख़ान बीच में बोल पड़ा
"ये केस है ही ऐसा. शुरू से एंड तक कुच्छ भी समझ नही आ रहा. तुम कौन सी बात की बात कर रहे हो?"
"यही के तुम ये सब क्यूँ कर रही हो?" ख़ान ने धीमी आवाज़ में कहा जैसे डर रहा हो के किरण बुरा ना मान जाए "आइ मीन ये सब भाग दौड़, ये तुम सिर्फ़ एक कहानी के लिए नही कर रही"
थोड़ी देर फोन पर खामोशी रही.
"यू नो मुन्ना कभी मेरी वजह से तुम्हारी नौकरी जाते जाते बची. मेरी वजह से तुम जैसा काबिल ऑफीसर एक छ्होटे से गाओं में पोस्टेड है. तो मैं इस केस में तुम्हारी मदद करके बस अपनी ग़लती सुधारना चाह रही हूँ. तुम्हें तुम्हारी इज़्ज़त वापिस दिलवाना चाह रही हूँ"
"ह्म्म्म्म" ख़ान के गले से आवाज़ आई.
"मैं ये तुम्हारे किए कर रही हूँ" और किरण ने फोन रख दिया.
2 मिनिट बाद ही सेल फिर बजा. मेसेज था. ख़ान को इस मेसेज के आने का जैसे पूरा यकीन था. उसने पढ़ना शुरू किया.
तू कहीं भी रहे सर पर तेरे इल्ज़ाम तो है,
तेरे हाथों की लकीरों में मेरा नाम तो है.
मुझे तू अपना बना या ना बना तेरी मर्ज़ी,
तू ज़माने में मेरे नाम से बदनाम तो है.
देखकर मुझे लोग तेरा ही नाम लेते हैं,
शुक्र है मोहब्बत का ये अंजाम तो है.
तू सितम्गर ही सही फिर भी तेरे दीदार से,
मेरे दिल-ए-बीमार को आराम तो है.
उसी दोपहर ख़ान और किरण दोनो कल्लो के सामने बैठे हुए थे. महिला आश्रम का पता ढूँदने में कोई तकलीफ़ नही हुई थी पर कल्लो बड़ी मेहनत और मिन्नत से उनके साथ बात करने को राज़ी हुई थी.
......................................
उस रात कल्लो के साथ बिस्तर पर बेहोश होने बाद रूपाली को फिर पूरी रात होश नही आया. बेहोशी से वो सीधा नींद के आगोश में चली गयी और फिर सीधा सुबह ही आँख खुली.
"क्या हुआ था कल रात?" मौका देख कर वो किचन में कल्लो के पास पहुँची और पुछा
"बेहोश हो गयी थी आप" कल्लो मुस्कुराते हुए बोली
"ऐसा क्यूँ हुआ?" रूपाली ने डरते हुए पुछा
"डरने की कोई बात नही. मज़ा अगर बहुत ज़्यादा आ रहा हो तो अक्सर बिस्तर पर ऐसा हो जाता है और फिर आपका तो पहली बार था"
"ह्म्म्म्म" रूपाली मुस्कुरा उठी "फिर तूने क्या किया?"
"क्या करती. आपको कपड़े पहनाए और फिर अपने कपड़े पहेनकर अपने कमरे में चली गयी"
तभी रूपाली की माँ किचन में आ गयी और दोनो चुप हो गयी. इसके बाद पूरा दिन रूपाली को कल्लो से अकेले में बात करने का कोई मौका नही मिला.
रात को डिन्नर टेबल पर कल्लो को बहुत हैरानी हुई जब रूपाली ने उसको बताया के आज रात और अगली कुच्छ रात वो उसके कमरे में ही रुकेगी. उसने अपनी माँ से बहाना कर लिया था के अक्सर रात को उसकी तबीयत खराब लगने लगती है इसलिए वो कुच्छ दिन तक कल्लो को अपने कमरे में सुलाना चाहती है.
क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:24 PM,
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RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --42
गतान्क से आगे........................
"चलिए अब मैं अपनी गुड़िया रानी को सिखाती हूँ के बिस्तर पर खेल कैसे खेला जाता है"
कहते हुए वो नीचे को सरक कर रूपाली के पैरों के पास पहुँच गयी और उसके पैरों को चूम लिया.
"क्या कर रही है?" रूपाली ने पुछा तो कल्लो ने उसको चुप रहने का इशारा किया. रूपाली ने एक नाइटी पहेन रखी थी जिसके नीचे कुच्छ नही था क्यूंकी वो जानती थी के आज रात वो कल्लो के साथ क्या खेल खेलने वाली है.
कल्लो ने अपने दोनो हाथों से उसकी नाइटी को पकड़ा और उसकी टाँगो को चूमते हुए धीरे धीरे नाइटी उपेर सरकाने लगी.
रूपाली जानती थी के अब वो थोड़ी देर बाद ही पूरी तरह नंगी हो जाएगी. दिल दी धड़कन ना चाहते हुए भी तेज़ हो चली थी. एक नंगी औरत को यूँ अपने जिस्म से खेलते देख उसकी हालत खराब होती जा रही थी.
नाइटी धीरे धीरे उपेर को खिसकती हुई रूपाली की जांघों तक पहुँची, फिर थोड़ा और खिसकी और चूत से हट गयी, फिर थोडा और उपेर हुई और चूचियो के उपेर होती हुई रूपाली के गले तक आ गयी.
यहाँ आकर कल्लो को रुकना पड़ा क्यूंकी रूपाली के हाथ उपेर को बेड के साथ बँधे हुए थे. नाइटी उतारने के लिए हाथ खोलने ज़रूरी थे.
"हाथ खोलने पड़ेंगे" रूपाली ने कहा तो कल्लो ने मुस्कुराते हुए इनकार में सर हिलाया और नाइटी को वहीं गले के पास ही छ्चोड़ दिया.
एक तरह से रूपाली भी अब बिस्तर पर पूरी तरह नंगी थी. लाल रंग की रोशनी में दोनो के जिस्म चमक रहे थे. एक पूरी तरह से काला और दूसरी शरीर पूरी तरह से गोरा.
अब कल्लो फिर उसके उपेर सवार हो गयी और झुक कर रूपाली की चूचियाँ अपने हाथों में पकड़ ली.
"इनको ऐसे पकड़ा जाता है और जब तक इनको निचोड़ कर इनका रस ना निकाल दिया जाए, इनमें कोई मज़ा नही. मैं बताती हूँ कैसे"
कहते हुए कल्लो ने उसकी दोनो चूचियो को अपने हाथ में कस कर पकड़ा और धीरे धीरे दबाने लगी. रूपाली की चूचियाँ ज़्यादा बड़ी नही थी और कल्लो के हाथ में पूरी तरह समा रही थी.
रूपाली के दिमाग़ ने जैसे उसका साथ छ्चोड़ दिया था. उसके शरीर में एक अजीब सा एहसास घर कर रहा हा. जैसे जैसे कल्लो के हाथ उसकी चूचियाँ दबा रहे थे, एक अजीब सा करेंट उसके सीने से उतर सीधा दिमाग़ तक आ रहा था.
अब उसको समझ आ रहा था के क्यूँ कल्लो ने पहली बार उसको अपनी चूचियाँ दबाने को कहा था.
"दबाने के बाद इनको चूसा जाता है" कल्लो ने कहा और इससे पहले रूपाली कुच्छ समझती या कहती, उसने झुक कर उसका एक छ्होटा सा निपल अपने मुँह में ले लिया.
रूपाली के मज़े की जैसे कोई इंतेहाँ नही रही. कल्लो कभी उसके छ्होटे से निपल को ज़ोर ज़ोर से चूस्ति, तो कभी अपनी जीभ से उसकी पूरी छाती को चाटने लगती. जब वो एक चूची को चूस रही होती तो दूसरी चूची को हाथ से मसल्ने लगती. वो इतनी ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी के रूपाली को कभी मज़ा आता तो कभी दर्द होता.
"जब तक इनको निचोड़ ना लिया जाए" उसके दबाने के अंदाज़ से रूपाली को पता चला के निचोड़ लेने से उसका क्या मतलब था. और अब ये भी समझ आ गया था के कल्लो क्यूँ अपनी चूची उससे चुसवाना चाहती थी. जितना मज़ा इस वक़्त रूपाली को आ रहा था इतना ज़िंदगी में कभी नही आया था.
"ऐसे चूसी जाती हैं चुचियाँ" कल्लो ने कहा
"चुचियाँ?" रूपाली के मुँह से अपने आप ही निकल पड़ा
"हां" कल्लो ने मुस्कुराते हुए फिर अपने हाथ रूपाली की छातियो पर कस दिए "ये आपकी चुचियाँ. मस्त हैं. जैसे कच्चे आम"
कल्लो एक बार फिर रूपाली की चूचियो पर टूट पड़ी और बारी बारी चूसने लगी पर अब उसका एक हाथ धीरे धीरे रूपाली के पेट पर से सरकता हुआ नीचे को जाने लगा. रूपाली को हल्का सा अंदेशा था के ये हाथ किस तरफ जा रहा है पर हाथ बँधे होने की वजह से वो कुच्छ कर नही सकती थी.
"कल्लूऊऊऊऊ" जैसे ही हाथ ने रूपाली की चूत को सहलाया, उसको लगा के वो फिर बेहोश हो जाएगी.
"ये दोनो कच्चे आम और ये संतरे की फाँक" कल्लो बोली और रूपाली की चूत को पूरी तरह अपने मुट्ठी में भर लिया.
"क्या कर रही है तू?" रूपाली की आँखें अब बंद हो चली थी
"एक जवान कच्ची कली को औरत बना रही हूँ" कहते हुए कल्लो रूपाली के उपेर ऐसे चढ़ गयी जैसे कोई मर्द औरत के उपेर वासना में चढ़ जाता है. अब तक जो काम धीरे धीरे आराम से हो रहा था उसमें अब तेज़ी आ गयी. दोनो के नंगे जिस्म एक दूसरे से लिपट गयी. रूपाली पूरी तरह कल्लो के नीचे थी और कल्लो कभी उसकी
चूचियाँ चूस्ति, तो कभी उसके चेहरे को पर जहाँ रूपाली का ध्यान अटका हुआ था वो उसकी चूत थी जिसको कल्लो का हाथ बुरी तरह रगड़ रहा था.
"हाए मैं मर गयी कल्लो" वो नशे की सी आवाज़ में बोली
"अभी कहाँ मर गयी तू" कल्लो ने जवाब दिया "अभी तो तेरी चूत को पता नही कितने लंड चखने हैं"
रूपाली के दिमाग़ ने फ़ौरन इस बात की तरफ इशारा किया के कल्लो आप से सीधा तू पर आ गयी थी पर इस वक़्त उसको कोई परवाह नही थी. इस वक्त तो ध्यान सारा अपनी चूत पर था.
"ज़ोर से रगड़" रूपाली खुद ही बोल पड़ी
"क्यूँ?" कल्लो के हाथ में तेज़ी आ गयी "मज़ा आ रहा है?"
"हां"
"इसको चूत कहते हैं. यहीं घुसता है मर्द का लंड"
"क्या?" रूपाली ने सवाल किया पर कल्लो ने जवाब नही दिया.
वो फिर झुक कर रूपाली के निपल्स पर टूट पड़ी. गोरी चूचियाँ इस तरह चूसे जाने से लाल पड़ गयी थी और रूपाली को हल्का हल्का दर्द भी होने लगा था.
"आराम से कर ना" रूपाली ने कहा "तकलीफ़ होती है"
"ये तकलीफ़ नही है" कल्लो उसके गले को चाटने लगी "तकलीफ़ क्या होती है ये तो तब पता चलेगा जब कोई लंड तेरी कोरी चूत का भोसड़ा बनाएगा"
कल्लो अब पूरी तरह से बदल चुकी थी. जी मालकिन, जी मालकिन करने वाली नौकरानी इस वक़्त रूपाली के जिस्म की मालकिन बन पूरी तरह तू तदाक पर आ गयी थी. पर रूपाली को उसकी ये बातें सुनकर गुस्सा आने के बजाय जैसे और मज़ा आ रहा था.
"क्या कर रही है" रूपाली को अचानक कल्लो की एक अंगुली अपनी चूत के अंदर घुसती हुई महसूस हुई
"तेरी चूत के फाटक खोल रही हूँ" कल्लो ने कहा
इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझती, एक झटके में कल्लो की एक अंगुली उसकी कच्ची चूत के अंदर पूरी तरह घुस गयी.
"आआहह" दर्द के मारे रूपाली का शरीर काँप उठा और उसके मुँह से चीख निकल पड़ी. पर कल्लो ये बात जानती थी इसलिए फ़ौरन ही उसके होंठ रूपाली के होंठों पर आ गये और वो चीख घुटकर रह गयी.
रूपाली का पूरा शरीर काँपने लगा और दर्द की शिद्दत से उपेर नीचे होने लगा. कल्लो की एक अंगुली पूरी तरह उसकी चूत के अंदर थी और रूपाली को लग रहा था के वो मर जाएगी. कल्लो के नीचे दबी ना तो वो हिल पा रही थी और ना ही चूत से अंगुली बाहर निकाल पा रही थी.
"ऊऊम्म्म्मम ईओओओओण्ण्ण्ण" उसकी आवाज़ कल्लो के मुँह के अंदर घुट रही थी.
"बस बस" कल्लो ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे रखे कहा "हो गया काम"
और फिर जैसे एक दर्द की तेज़ लहर फिर रूपाली की जांघों की बीच उठी और कल्लो की दूसरी अंगुली उसकी चूत में घुसती चली गयी.
"हो गया भोसड़ा तैय्यार" कल्लो ने धीरे से कहा "अब तो बस इंतेज़ार एक लंड का है"
रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. कल्लो की 2 अँगुलिया अब उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थी. कभी दर्द की एक तेज़ लहर उसकी जान निकाल देती तो कभी इतना मज़ा आता के उसका दिमाग़ सुन्न पड़ जाता. कल्लो अब भी उसके उपेर झुकी हुई उसके होंठ चूस रही थी. उपेर उसकी जीभ रूपाली के मुँह में अंदर बाहर हो रही थी, नीचे उसकी अँगुलिया चूत में.
क्रमशः........................................
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