09-08-2018, 01:45 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--16 गतान्क से आगे...................... “उसे छोड़ दो वरना….” पिशाच को अपने पीछे से आवाज़ सुनाई दी. पिशाच तुरंत पीछे मूड कर देखता है. “वरना क्या देवी जी… आप क्या करेंगी…हा…हा…हा” “मैं तुम्हे जान से मार दूँगी…छोड़ दो उसे.” साधना चील्लयि “मान-ना पड़ेगा…मेरे सामने आज तक किसी ने आकर ऐसी बात नही बोली…एक ये लोंदा है और एक तू है..दोनो एक से बढ़ कर एक हो…पर मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इसके साथ-साथ तुम भी मेरे पेट में जाओगी…लेकिन पहले मैं इसे ही खाउन्गा…तू इसके बाजू में लेट जा तेरी बारी बाद में आएगी.” साधना त्रिशूल एक हाथ में पीछे छुपा कर रखती है ताकि पिशाच को उसके इरादो की भनक ना लगे. “मुझे किसी तरह इस पिशाच के पास जाना होगा…क्या करूँ” साधना खड़े खड़े सोच रही है. “पिशाच जी बहुत सुना है आपके बारे में कि आप बहुत भयानक हो पर आप ऐसे दिखते तो नही.” साधना ने कहा. पिशाच प्रेम के पास से खड़ा हुवा और साधना की ओर मूह करके बोला, “लो कर लो बात… इन्हे मैं भयानक नही लगता…मेरी आवाज़ सुन कर जंगल का शेर भी भाग जाता है, इंसान तो चीज़ क्या है…और मैं तेरे सामने इतनी भयानक बाते कर रहा हूँ…इस से ज़्यादा भयानक और क्या होता है.” “फिर भी आपको कुछ और भी करना चाहिए.” साधना ने कहा. “जैसे कि… क्या करूँ मैं अब वो भी बता दो.” “चेहरे पर थोड़ा और रोब होना चाहिए…आप हंसते रहते हैं बात बात, ये अछा नही लगता. इस से आपकी छवि खराब होती है.” “मज़ाक कर रही है तू…बहुत बढ़िया” पिशाच साधना के करीब आता है और उसके बाल पकड़ लेता है. “पिशाच से कभी भी मज़ाक नही करते लड़की…हमेशा अपनी चिंता करते हैं.” साधना बिना मोका गवाए त्रिशूल पिशाच के पेट में गाढ देती है और बोलती है, “वो तो ठीक है लेकिन कुछ पिशाचो को अपनी भी चिंता करनी चाहिए.” “ये क्या किया तूने करम जली…ये क्या मार दिया पेट में…आअहह” पिशाच दर्द से कराह उठा और तड़पने लगा. “भोले नाथ का त्रिशूल है…भगवान का नाम लो और दफ़ा हो जाओ यहा से.” साधना ने पिशाच को दोनो हाथो से दूर धकैल दिया. “आअहह तुम्हे क्या लगता है तुम इसे बचा लोगि…आअहह… मेरा जहर है इसके शरीर में…मैं इसे नही भी खाता तो भी ये सुबह तक मर ही जाता.” साधना ने तड़प्ते हुवे पिशाच के मूह पर लात मारी और बोली, “दूसरो की मौत का जशन नही मनाते…अपनी चिंता करते हैं.” “तुम इस जंगल से बाहर नही जाओगी…ये त्रिशूल मेरे पेट से निकाल दो…मैं तुम दोनो को गाँव छोड़ आउन्गा.” साधना ने त्रिशूल पकड़ा और ज़ोर लगा कर त्रिशूल थोड़ा और पिशाच के पेट में उतार दिया. पिशाच बहुत ज़ोर से चील्लाया. पिशाच की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज गयी. उसकी चीन्ख भीमा और केसाव पंडित ने भी सुनी. वो तेज़ी से चीन्ख की दिशा का अंदाज़ा लगा कर उसकी ओर भागे. “प्रेम…प्रेम उठो क्या हो गया है तुम्हे…प्रेम…हे भगवान बचा लो मेरे प्रेम को” साधना की आँखे भर आई और वो फूट कर रोने लगी. “हा..हा..हा…मर जाएगा वो जल्दी ही..हे…हे.” साधना खड़ी हुई और त्रिशूल पर फिर से दबाव बनाया. त्रिशूल थोड़ा और पिशाच के पेट में सरक गया. वो फिर से ज़ोर से चील्लाया. कुछ ही पलो में उसने दम तोड़ दिया. लेकिन उसकी लाश वाहा से गायब हो गयी. शायद यमदूत उसे उठा कर नर्क में ले गये. साधना किसी तरह प्रेम को उठाती है और उसे अपनी पीठ पर लाद कर चल देती है. “मेरे होते हुवे तुम्हे कुछ नही होगा प्रेम…कुछ नही होगा तुम्हे…मैं तुम्हे कुछ नही होने दूँगी, चाहे कुछ हो जाए.” पर अब एक और मुसीबत का सामना करना था साधना को. वो मुसीबत थी ये घना जंगल और जंगंग्ली जानवर. उसके लिए गाँव की वापसी का रास्ता भी ढूंडना आसान नही था. लेकिन फिर भी दिल में उम्मीद की किरण लिए वो आगे बढ़ती रही. “हां..यही तो रास्ता है..ये पेड़ मैने इस तरफ आते हुवे देखा था..इसका मतलब मैं ठीक जा रही हूँ. प्रेम तुम बिल्कुल चिंता मत करो…मैं तुम्हे हर हाल में गाँव ले जाउन्गि.” साधना दिल में हिम्मत और प्यार लिए आगे बढ़ती रहती है. भीमा और केसव पंडित पूरा जंगल छान मारते हैं लेकिन उन्हे फिर भी कुछ नही मिलता. वो उस जगह से गुज़रते तो हैं जहा से साधना प्रेम को ले गयी है लेकिन उन्हे अहसास भी नही होता कि वाहा कुछ हुवा है. ज़मीन पर प्रेम के खून की बूंदे थी लेकिन शाम होने के कारण वो उन्हे दीखाई नही दी. “पंडित जी क्या किया जाए अब...कुछ समझ नही आ रहा कि स्वामी जी को वो पिशाच कहा ले गया…साधना का भी कुछ पता नही चल रहा. वो चीन्ख भी ना जाने किसकी थी.” “सब उस मूर्ख लड़की के कारण हुवा है.” केशव पंडित बोला. “उसकी क्या ग़लती है पंडित जी, हमें भी तो कुछ नही मिला.” भीमा ने कहा. “मान लो अगर पिशाच हमें मिल भी जाता…तो भी हम क्या बिगाड़ लेते उसका.” केसाव पंडित ने कहा. “मिलता तब ना पंडित जी…मुझे नही लगता कि वो पिशाच स्वामी जी को यहा लाया है. पूरा जंगल छान मारा हमने. अगर पिशाच यहा होता तो मिल ही जाता.” “पिशाच तो नही मिला पर..पर…भेड़िया ज़रूर मिल गया.” केसाव पंडित डरते हुवे बोला. भीमा केसाव पंडित की बात सुन कर नज़र घुमा कर देखता है. उनके दाई तरफ की झाड़ियों में एक भेड़िया खड़ा था. “पंडित जी हिलना मत…हम डरेंगे तो ये हमला ज़रूर करेगा.” भीमा ने कहा. भीमा को एक पत्थर दीखाई दीया. उसने पत्थर उठाया और भेड़िए को निशाना बनाया. पत्थर निशाने पर लगा और भेड़िया चील्लाता हुवा भाग गया. “हमें अब इस खौफनाक जंगल से निकलना चाहिए.” केसव पंडित ने कहा. “सही कहा पंडित जी…यहा रुकना ख़तरे से खाली नही है…और वैसे भी हमने पूरा जंगल तो लगभग देख ही लिया है.” भीमा और केसव पंडित गाँव की तरफ चल पड़ते हैं. लेकिन साधना की तरह उन्हे भी रास्ता ढूँढते में मुश्किल आती है. किसी तरह से आख़िर कार साधना गाँव तक पहुँच ही जाती है. लेकिन गाँव तक पहुँचते-पहुँचते रात घिर आती है. वो प्रेम को उसी तरह अपनी पीठ पर ही गाँव के वैद्य के पास ले जाती है. वैद्य साधना की पीठ पर प्रेम को देख कर हैरान रह जाता है. वैद्य प्रेम को साधना की मदद से चारपाई पर लेटा देता है. “क्या हुवा स्वामी जी को साधना?” वैद्य ने पूछा. साधना जल्दी जल्दी में वैद्य को सारी बात बताती है. “बेटी मैने कभी अपनी जींदगी में ऐसे मरीज का इलाज़ नही किया…पिशाच के काटे का मेरे पास कोई इलाज़ नही है.” “आप कोशिस तो कीजिए वैध जी... प्रेम को बचा लीजिए…मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ.” साधना की आँखे भर आती हैं. “अछा-अछा मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा…तुम चुप हो जाओ” वैद्य ने कहा. वैद्य फ़ौरन प्रेम के इलाज़ में लग गया. साधना बेचैनी की हालत में वैद्य के घर के बाहर कभी इधर, कभी उधर घूम रही थी. गाँव में पूरी तरह सन्नाटा था. हो भी क्यों ना…गाँव में पिशाच का ख़ौफ़ जो फैला था. अभी ये बात सिर्फ़ साधना जानती थी की पिशाच का ख़ात्मा हो गया है. भीमा और केसव पंडित भी किसी तरह से जंगल से बाहर आ जाते हैं. “पंडित जी आपको पहले वैद्य जी के पास ले चलता हूँ…सीढ़ियों से गिरने के कारण बहुत चोट लगी है आपको. थोड़ा मरहम पट्टी करवा लीजिए.” “क्या मरहम पट्टी कर्वाउ मैं अब…मेरा इक-लौता बेटा पता नही कहा है…जींदा भी है कि नही.” “मुझे भी स्वामी जी की बहुत चिंता है…समझ में नही आता कि क्या करें अब. साधना भी कही खो गयी. हम जो कर सकते थे हमने किया. चलिए आपको वैद्य जी की शख्त ज़रूरत है” भीमा केसव पंडित को वैद्य के घर की तरफ ले चलता है. वैद्य के घर के बाहर साधना को देख कर दोनो हैरत में पड़ जाते हैं. “तुम यहा क्या कर रही हो…जंगल में ढूंड-ढूंड कर थक गये हम तुम्हे” केसव पंडित ने कहा. “मैं प्रेम को ले आई हूँ पंडित जी लेकिन वो बेहोश है अभी…वैद्य जी इलाज़ कर रहे हैं उसका.” केशव पंडित और भीमा दोनो साधना की बात सुन कर हैरान हो जाते हैं लेकिन उनकी आँखो में प्रेम की खबर सुन कर ख़ुसी भी उभर आती है. “साधना कैसे किया तुमने ये सब…हम तो जंगल में तुम्हे ढूंड ढूंड कर थक गये.” भीमा ने कहा. साधना पूरी कहानी सुनाती है. भीमा और केसव पंडित को विश्वास ही नही होता कि साधना ने पिशाच का ख़ात्मा कर दिया. “तुमने पिशाच को मार दिया…विश्वास नही होता.” केशव पंडित ने कहा. “दिल में हिम्मत हो तो कुछ भी हो सकता है पंडित जी.” साधना ने कहा. “तुमने बहुत हिम्मत दीखाई साधना…ये सब तो मैं भी नही कर पाता. मुझे तो भूत-पिशाच से वैसे ही बहुत डर लगता है.” भीमा ने कहा. तभी वैद्य बाहर आता है. “अरे पंडित जी आप” वैद्य ने कहा. “कैसा है मेरा बेटा.” केशव पंडित ने पूछा. “अभी कुछ नही कह सकता…मेरे जो बस में था मैने कर दिया है. सर से काफ़ी खून बहा है प्रेम का. सर पे पट्टी बाँध दी है. देखते है अब.” वैद्य ने कहा. “प्रेम को कुछ नही होगा मुझे पूरा विश्वास है.” साधना ने कहा. भीमा, वैद्य और केसाव पंडित तीनो ने एक साथ साधना की ओर देखा. साधना के चेहरे पर अजीब सा तेज था. भीमा तो साधना के पैरो में पड़ गया. “तुम ज़रूर कोई देवी हो…पिशाच को कोई मामूली इंसान नही मार सकता.” भीमा ने कहा. “उठो भीमा ऐसा कुछ नही है...मैने बस हिम्मत और दीमाग से काम लिया…और शायद भगवान ने मेरी मदद की.” साधना ने कहा. भीमा उठ गया और बोला, “जो भी हो तुमने केवल स्वामी जी की नही बल्कि पूरे गाँव के लोगो की जान बचाई है…और तुम हमारे लिए किसी देवी से कम नही हो...क्यों पंडित जी.” केसव पंडित ने कुछ नही कहा. उसे वैसे भी साधना और प्रेम की दोस्ती पसंद नही थी और साधना उसे एक आँख नही भाती थी. “पंडित जी आप प्रेम को घर ले जाए…यहा भीड़ भाड़ लगी रहती है…आप समझ ही सकते हैं” वैद्य ने कहा. “हां हां बिल्कुल…भीमा क्या तुम किसी की बैलगाड़ी ला सकते हो प्रेम को घर तक ले जाने में आसानी होगी.” केशव पंडित ने कहा. “जी पंडित जी अभी लाता हूँ.” भीमा किसी गाँव वेल की बैलगाड़ी ले आया और प्रेम को उस पर लेटा कर घर तक ले आए. प्रेम अभी भी बेहोश ही था. प्रेम को बैलगाड़ी से उतार कर बिस्तर पर लेटा दिया. “साधना तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद…अब तुम जाओ.” केशव पंडित ने कहा. “नही पंडित जी…प्रेम को होश आने तक मैं….” “नही तुम जाओ यहा से कहा ना…मैं अपने बेटे को संभाल लूँगा.” केशव पंडित ने साधना की बात बीच में ही काट दी. पंडित की बात भीमा को भी बुरी लगी. “चलो साधना मैं भी चलता हूँ…अब इनका मतलब निकल ही गया है…हमारी ज़रूरत ही क्या है…पोंगा पंडित कही का.” भीमा से रुका नही गया और उसने ये सब बोल दिया. “हां-हां जाओ तुम भी जाओ…रोका किसने है.” केशव पंडित चील्लाया. साधना और भीमा वाहा से चल दिए. साधना बड़े भारी कदमो से वाहा से जा रही थी. उसकी जान तो बस प्रेम में अटकी थी. पर उसके पास कोई चारा नही था. साधना घर आई तो उसके पिता ने डाँट कर पूछा, “कहा थी तू सारा दिन…ढूंड ढूंड कर परेशान हो गया मैं…कहा चली गयी थी.” साधना प्रेम के साथ हुई घटना सुनाती है और ये भी सुनाती है कि कैसे वो जंगल से प्रेम को बचा कर लाई. “क्या! तूने पिशाच को मार दिया.” “हां…अपने इन हाथो से. अब गाँव में कोई चीन्ख नही गूंजेगी और ना ही किसी की हत्या होगी.” साधना ने कहा. साधना के पिता ने तो मूह पर हाथ रख लिया. उसे यकीन नही हो रहा था. साधना अपने बिस्तर पर आ कर लेट गयी. बहुत भूक लगी थी उसे. पूरा दिन कुछ नही खाया था उसने लेकिन फिर भी बिना कुछ खाए लेट गयी. उसे बस अपने प्रेम की चिंता था. ……………………………………….. भीमा बहुत धीमी चाल से अपने घर की तरफ बढ़ रहा था. घर जाने से उसे डर जो लग रहा था. “क्या करूँ घर जाउ की नही…मेम्साब मुझे कच्चा चबा जाएँगी आज. हवेली में एक दो बार बहुत गुस्से में देखा है उन्हे. वो ज़रूर गुस्से में आग बाबूला हो कर बैठी होंगी. पर उनसे चल कर माफी तो माँगनी ही चाहिए मुझे.” भीमा चलते-चलते सोच रहा था. भीमा कछुवे की चाल चलता हुवा घर पहुँच ही जाता है. रेणुका भी भीमा का बेसब्री से इंतेज़ार कर रही है. डाँट जो पीलानी है उसे.भीमा घर पहुँच तो गया लेकिन दरवाजे पर खड़ा-खड़ा सोचता रहा कि दरवाजा खड़काए या नही…या वापिस चला जाए. रेणुका को दरवाजे पर भीमा के कदमो की आहट सुन जाती है लेकिन फिर भी वो चुपचाप बिस्तर पर लेटी रहती है. वो इंतेज़ार कर रही है कि कब भीमा दरवाजा खड़काए और कब वो दरवाजा खोल कर भीमा पर बरस पड़े. लेकिन बहुत देर हो जाती है. भीमा दरवाजे पर कोई दस्तक नही करता. “मुझे यहा से चलना चाहिए…कल माफी माँग लूँगा मेम्साब से. आज तो वो बहुत गुस्से में होंगी.” भीमा सोचता है और वापिस मूड कर चल देता है. रेणुका के सबर का बाँध टूट जाता है और वो उठ कर दरवाजा खोलती है. लेकिन वो पाती है कि भीमा जा रहा है. “भीमा क्या मज़ाक है ये…कहा जा रहे हो!” रेणुका चील्लाति है. भीमा तो रेणुका की आवाज़ सुनते ही थर-थर काँपने लगता है.वो भाग कर रेणुका के पैर पकड़ लेता है. “मेम्साब मुझे माफ़ कर दीजिए…मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.” भीमा गिड़गिदाया. “सुबह से अब होश आया है तुम्हे माफी माँगने का…तब क्यों भाग गये थे तुम और पैर छोड़ो मेरे कही इनसे भी कामुक रस लेने लगो.” भीमा ने तुरंत रेणुका के पैर छोड़ दिए. लेकिन वो उसके पैरो के पास ही झुका रहा. “उठो और नज़र मिला कर बात करो मुझसे.” रेणुका ने डाँट-ते हुवे कहा. “नही मेम्साब मैं आपसे नज़रे नही मिला सकता अब…इतना बड़ा गुनाह जो हो गया मुझसे.” भीमा फिर से गिड़गिडया. “कहा ना उठो वरना मारेंगे लात तुम्हे एक.” रेणुका ने कहा. भीमा उठ गया और नज़रे झुका कर रेणुका के सामने खड़ा हो गया. “अंदर आओ…आराम से बात करते हैं.” रेणुका ने कहा. भीमा अंदर आ गया और रेणुका ने कुण्डी बंद कर ली. “लगता है मेम्साब मुझे कमरे में बंद करके पीटने वाली हैं…अब क्या होगा.” रेणुका ने एक डंडा उठाया और भीमा के चुतदो पर दे मारा. “मेम्साब नही…आअहह.” “परदा कहे बिना नही छोड़ा तुमने. क्यों देख रहे थे मुझे घूर-घूर के.” रेणुका ने एक और डंडा मारा. “आआहह.. मेम्साब मुझसे ग़लती हो गयी…मैं बहक गया था…मुझे माफ़ कर दीजिए.” “बात-बात पर बहक जाते हो क्या चक्कर है ये.” रेणुका ज़ोर से एक और डंडा मारती है. इस बार भीमा भागता है और बिस्तर के नीचे छिप जाता है. “मेम्साब माफ़ कर दीजिए मैने जान बुझ कर कुछ नही किया.” “नही मैं कल से देख रही हूँ…बार बार वही हरकत. देख तो रहे ही थे देख-देख कर उत्तेजित भी हो रहे थे. शरम नही आई तुम्हे.” “मैं कब उत्तेजित हुवा मेम्साब…ऐसा कुछ नही है.” भीमा गिड़गिडया. “अछा तुम्हारी धोती में देखा था मैने तुम्हारी उत्तेजना को. बोलो अब… क्या ये झूठ है?” “हां मेम्साब…मेरा मतलब नही मेम्साब हो गया होगा ऐसा…वो मेरे बस में नही है.” रेणुका ने झुक कर खाट के नीचे डंडा घुमाया. डंडा भीमा के हाथ पर लगा. “आओच…मेम्साब…नही..आआहह.” “कुछ भी बस में नही है तुम्हारे ना वो, ना हाथ और ना आँखे क्यों…तुम्हारी आँखे ही फोड़ दूँगी मैं अब निकलो बाहर.” भीमा चुपके से बाहर निकलता है. “जो सज़ा देनी है दे दो मेम्साब लेकिन सच कहता हूँ…मुझसे जो कुछ भी हुवा अंजाने में हुवा. मेरा आपके प्रति कोई बुरा इरादा नही था.” भीमा ने खाट के नीचे से निकलते ही कहा. “बिल्कुल… तभी बार-बार उत्तेजित हो जाते हो तुम हा.” रेणुका डंडा हवा में उपर करती है, भीमा के सर में मारने के लिए. लेकिन डंडा छत से लटकी मटकी से टकराता है और मटकी रस्सी से निकल जाती है. भीमा रेणुका को पकड़ता है और मटकी के नीचे से हटा लेता है. मटकी ज़ोर से ज़मीन पर गिरती है और फूट जाती है. मटकी का माखन ज़मीन पर बिखर जाता है. “छोड़ो मुझे…तुम्हारी आज खैर नही” भीमा फ़ौरन रेणुका का हाथ छोड़ देता है. रेणुका हाथ में डंडा लिए भीमा की ओर बढ़ती है, लेकिन रेणुका का पाँव माखन पर पड़ जाता है और वो फिसल जाती है. भीमा आनन फानन में आगे बढ़ कर रेणुका का हाथ थामता है लेकिन वो भी फिसल जाता है.रेणुका तो गिरती ही है…दिक्कत वाली बात ये हो जाती है कि भीमा भी उसके साथ उसके उपर गिर जाता है. बड़ी ही नाज़ुक स्थिति बन जाती है. रेणुका आँखो में शोले लिए ज़मीन पर पड़ी है और भीमा उसके उपर. रेणुका भीमा की आँखो में देखती है. उसे आँसू दीखाई देते हैं. “मेम्साब मैने कुछ जान बुझ कर नही किया…मेरा यकीन कीजिए मैं सच कह रहा हू” भीमा ने कहा. “पर तुमने किया तो ना…तुम्हे सोचना चाहिए था…परदा उठाए खड़े रहे तुम और मुझे घूरते रहे.” “आप मुझे जान से मार दीजिए…मेम्साब” भीमा भावुक हो कर कहता है. भीमा रोने लगता है और अपना सर रेणुका के उभारो पर रख देता है, जैसे की छोटा बच्चा हो. रेणुका भीमा को रोते देख उसका सर थाम लेती है. इतना भावुक सा माहॉल बन जाता है कि दोनो में से कोई भी वाहा से हिलने की कोशिस नही करता. “अब भी तो ये ठीक है अब तो ये उत्तेजित नही हो रहा. सब डंडे का असर है. बिल्कुल बच्चा है ये.” रेणुका सोचती है. भीमा चुपचाप रेणुका के उभारो पर सर रखे सुबक्ता रहता है. “मेम्साब आप बहुत अच्छी हो…कोई और होता तो मुझे मार डालता.” “अच्छा डंडे कम पड़े लगते हैं.” “नही…नही वो तो बहुत पड़े हैं.” “नही कुछ कमी रही हो तो और मार देती हूँ.” “मार लीजिए मेम्साब अब चू भी नही करूँगा.” “अगर दुबारा ऐसा किया तो और ज़्यादा डंडे लगेंगे.” अब जबकि भीमा रेणुका के उपर पड़ा था तो उत्तेजना का जागना तो स्वाभाविक था. धीरे धीरे भीमा के लिंग में हरकत होने लगती है और वो रेणुका की योनि पर चुभने लगता है. “भीमा!” रेणुका लिंग की चुभन महसूस होते ही ज़ोर से बोलती है. “जी मेम्साब.” “जी के बच्चे क्या हो रहा है ये फिर से और पीटाई करनी पड़ेगी क्या तुम्हारी.” भीमा सर उठाता है और रेणुका की आँखो में झाँक कर बोलता है “मैं सच कहता हूँ आपके करीब आकर ऐसा अपने आप हो जाता है. मेरे बस में होता तो रोक लेता. क्या औरत के करीब आकर आदमी को ऐसा ही होता है.” “मुझे नही पता शायद होता होगा.” “फिर ठीक है…मुझे लगा मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है.” “तुम बिल्कुल भोन्दु हो.” “मेम्साब एक बात कहूँ…बुरा तो नही मानेंगी आप.” “हां बोलो.” “मुझे कुछ देर यू ही अपने उपर रहने दीजिए. बहुत सुकून मिल रहा है मुझे.” पता नही क्यों रेणुका भीमा को अपने उपर से हटा नही पाती. वो भीमा की बात का कोई जवाब भी नही देती. बस अपनी आँखे बंद कर लेती है. “सुकून तो मुझे भी मिल रहा है…मैने तुम्हारे अंदर आदमी का अलग ही रूप देखा है भीमा. अब तक बस अपने पति को ही देखा था इतने नज़दीक से. वो तो किसी भेड़िए से कम नही थे. वो जब मेरे उपर होते थे तो मेरी रूह काँप उठती थी. एक तुम हो आज…हां भीमा मुझे भी सुकून मिल रहा है ये जान कर कि आदमी तुम्हारे जैसा भी हो सकता है…मासूम और प्यारा… बिल्कुल किसी बच्चे की तरह. हमएसा ये बाते अपने अंदर बनाए रखना भीमा…तुम अच्छे इंसान हो. दिल के सच्चे हो.” रेणुका आँखे बंद किए चुपचाप सोच रही है. “मेम्साब मेरा वो दिक्कत तो नही दे रहा आपको.” भीमा ने पूछा. क्रमशः.........................
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--17 गतान्क से आगे...................... "हट जाओ अब तुम, दिक्कत की तो बात ही है" रेणुका भीमा को अपने उपर से धकैलते हुवे कहती है. भीमा रेणुका के उपर से हट जाता है और ज़मीन पर बैठ जाता है. "बहुत शुकून मिल रहा था…मेम्साब?" "ऐसे ही पड़े रहेंगे क्या हम तुम्हारे साथ भोन्दु कही के." रेणुका ने कहा. "ओह हां मैं तो सब कुछ भूल गया था…ऐसे थोड़ा हम पड़े रहेंगे." "चलो छोड़ो, ये बताओ कुछ खाया तुमने सारा दिन." "नही मेम्साब पूरा दिन अन्न का एक दाना भी नसीब नही हुवा. मैं तो कही पानी भी नही पी पाया." "क्यों ऐसा क्या हो गया था...बहुत परेशान थे क्या तुम आज की अपनी करतूत के कारण." "पूछो मत मेम्साब...आपको अब मैं जबरदस्त वाक़या सुनाता हूँ." भीमा उत्सुकता में बोला. "कैसा वाक़या?" भीमा, रेणुका को सारी कहानी सुनाता है. "यकीन नही होता कि एक साधारण सी लड़की इतना बड़ा काम कर सकती है." "सब कुछ सच है मेम्साब...मैं खुद गवाह हूँ." भीमा ने कहा. "अच्छा कुछ खाओगे अब तुम?" "बहुत भूक लगी है मेम्साब...मैं अभी कुछ बनाता हूँ." "नही मैं बनाए देती हूँ." "मेम्साब आप मेरे लिए खाना बनाएँगी, नही नही...मैं बना लूँगा." "पिटोगे तुम अगर ज़्यादा बोलॉगे तो...जाओ हाथ मूह धो कर आओ मैं खाना तैयार करती हूँ." “पहले मैं ये ज़मीन पर बिखरे माखन को सॉफ कर देता हूँ.” “हां…ये कर दो पहले फिर हाथ मूह धो लेना.” भीमा ज़मीन से माखन को साफ कर देता है और हाथ मूह धोने बाहर निकल आता है. "मेम्साब तो गजब हैं. मारती भी हैं और प्यार भी करती हैं. मेमसाब जब चली जाएँगी तो मेरा बिल्कुल मन नही लगेगा." रेणुका भी बाहर आती है और चूल्हा तैयार करती है. रेणुका जब खाना बना रही थी तो भीमा उसके साथ ही बैठ गया चूल्हे के पास. “मेम्साब आप मेरे लिए खाना बना रही हैं. मुझे तो यकीन ही नही हो रहा.” “इसमे ऐसा क्या है. हवेली में भी मैं खाना बनाती ही थी. और कयि बार तुमने वाहा मेरे हाथ का खाया भी है.” “वाहा कुछ और बात थी यहा कुछ और बात है.” भीमा ने कहा. “लो खाना तैयार है तुम अंदर चटाई लगाओ. मैं लाती हूँ.” रेणुका ने कहा. दोनो ने एक साथ चटाई पर बैठ कर खाना खाया. “बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया आपने मेम्साब. सारी भूक शांत हो गयी.” भीमा ने कहा. खाना खाने के बाद भीमा ज़मीन पर चटाई बिछा कर लेट गया और और रेणुका चारपाई पर लेट गयी. “मेम्साब एक बात पूच्छू बुरा ना माने तो.” “हां पूछो.” “जब मैं आपके उपर था तो आपको कैसा लग रहा था.” “क्यों जान-ना चाहते हो?” “बस यू ही. मुझे तो बहुत अछा लग रहा था.” “अच्छा तुम्हे तो अच्छा लगेगा ही. उत्तेजित जो हो रहे थे तुम.” “हां बाद में थोड़ा थोड़ा होने लगा था.” “थोडा नही तुम पूरे उत्तेजित हो गये थे. बहुत तेज चुभ रहा था मुझे वो.” “हां बाद में ऐसा हो गया था.” “तुम मुझसे अश्लील बाते करते रहोगे क्या, सोना नही है आज क्या. रात बहुत हो गयी है. अब जबकि पिशाच का ख़तरा टल गया है मुझे यहा से चलना चाहिए. सो जाओ मुझे कल जल्दी उठ कर सफ़र पर निकलना है.” भीमा के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल गयी. वो तुरंत अपनी चटाई से उठा और रेणुका के बिस्तर के पास आ गया. “मेम्साब आप कल चली जाओगी.” “हां और नही तो क्या. मैं हमेशा यही थोड़ा रुकूंगी.” “हां ठीक कह रही हैं आप. ये ठहरी ग़रीब की कुटिया. आप तो हवेली में रहेंगी जाकर.” “पागल हो क्या. मेरा ये मतलब नही है. कुछ भी बोले जा रहे हो. मुझे अपने घर तो जाना ही होगा ना अब.” “मेम्साब आप मत जाओ. मेरा मन नही लगेगा.” भीमा गिड़गिदाया. “पागल हो क्या मुझे जाना ही होगा.” “कुछ दिन तो आप रुक ही सकती हैं.” “हां ताकि तुम मुझे रोज परदा उठा कर देखो…. क्यों.” “नही नही मेम्साब मेरा वो मतलब नही है.” “अछा छोड़ो ये सब. मुझे ये बताओ मुझे क्यों रोकना चाहते हो. क्या लगती हूँ मैं तुम्हारी.” “आप…आप मेरी मेम्साब हैं.” “मेम्साब हूँ तो क्या अपने घर में रखोगे मुझे.” रेणुका ने कहा. “मुझे नही पता क्यों…शायद.” “शायद क्या?” “कुछ नही रहने दीजिए. सो जाईए आप.” भीमा वापिस अपनी चटाई पर आ गया. “चले गये तुम तो. भीमा बोलो ना शायद से तुम्हारा क्या मतलब है.” “रहने दीजिए मेम्साब आपको बुरा लगेगा.” “हो सकता है ना लगे तुम बोलो तो…इधर आओ वापिस और जल्दी बताओ शायद क्या?” भीमा फिर से रेणुका के बिस्तर के पास आता है और बोलता है. “शायद मैं आपको चाहने लगा हूँ. मुझे पता है ये ग़लत है. लेकिन जो मेरे मन में था कह दिया.” “भोन्दु हो तुम एक नंबर के. किसी को चाहना ग़लत नही होता.” “लेकिन आप तो चली जाएँगी ना. क्या फ़ायडा ऐसी चाहत का.” “एक शर्त पर रुकूंगी यहा.” “बोलिए क्या शर्त है.” “मुझे अपनी बीवी बना लो.” “क्या! आप ये क्या कह रही हैं. ऐसा कैसे होगा.” “सब कुछ मुमकिन है. क्या तुम मुझे प्यार नही करते?” “वो तो करता हूँ शायद पर…आप और मेरी बीवी…ऐसा कैसे होगा.” “क्या तुम्हारा इरादा मुझे यहा रखैल बना कर रखने का है.” “ऐसा मत कहो मेम्साब. अपने बारे में ऐसा मत कहो.” “भीमा तुमने मुझे ही नही छुवा बल्कि मेरी आत्मा को छुवा है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ खुस रहूंगी. मैं यहा से कही नही जाना चाहती. मैं तो बस यू ही तुम्हारे मन की बात जान-ने के लिए बोल रही थी. जैसा की मुझे शक था, वही हुवा. तुम भी मुझे चाहते हो और मैं भी तुम्हे चाहती हूँ. फिर हम हमेसा एक साथ क्यों नही रह सकते. मैं एक हवेली से निकल कर दूसरी हवेली नही जाना चाहती. जो शुकून की साँस मुझे तुम्हारी इस कुटिया में मिल रही है वो मुझे आज तक हवेली में नही मिली. बताओ बनाओगे मुझे अपनी दुल्हन. शादी शुदा हूँ मैं पहले से लेकिन फिर भी तुमसे ये पूछ रही हूँ. शायद मैं ग़लत हूँ. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मुझे सिर्फ़ तुम्हारे साथ रहना चाहिए.” “मेम्साब आप ग़लत नही हो सकती. पर मैं आपके लायक नही हूँ.” “फिर क्यों रोकना चाहते थे मुझे. मुझे दुबारा फिर से नंगा देखना चाहते थे या फिर ये सब अपनी हवस के लिए बोल रहे थे.” “नही नही भगवान कसम मेम्साब ऐसा कुछ नही है. बताया तो आपको कि मैं आपको चाहने लगा हूँ.” “बस मुझे चाहोगे. अपनी बीवी नही बनाओगे. कैसी चाहत है तुम्हारी.” “क्या आप मेरे साथ इस कुटिया में रह लेंगी.” “रह नही रही हूँ क्या, और क्या चाहिए तुम्हे.” “वो तो है मेम्साब…पर गाँव वाले क्या कहेंगे. और ठाकुर रुद्र प्रताप सिंग तो मुझे जान से मार देंगे.” “बस डर गये.” “नही मेम्साब ऐसा नही है लेकिन इन बातो का ख़तरा तो है ही.” “वो सब देखा जाएगा. तुम बस ये बताओ कि तुम मुझे अपनी बीवी बनाओगे की नही.” “मैं तैयार हूँ मेम्साब. मेरा तो ये शोभाग्य होगा की आप जैसी बीवी मुझे मिलेगी.” “वो तो ठीक है पहले ये मेम्साब कहना बंद करो. मुझे अबसे रेणुका कहोगे तुम…क्या कहोगे?” “अभी नही मेम्साब धीरे सीख लूँगा. अभी आप मेरी मेम्साब ही रहो.” “भोन्दु हो तुम एक नंबर के.” “मेम्साब आपको हवेली जैसा सुख तो नही दे पाउन्गा पर प्यार बहुत करूँगा आपको.” “मुझे पता है भीमा…तभी तुम्हारी बीवी बन-ना चाहती हूँ.” भीमा ने रेणुका का हाथ पकड़ा और उस पर अपने होन्ट टीका दिए. रेणुका के पूरे शरीर में जैसे बीजली दौड़ गयी. “ये सब अभी नही भीमा बाद में.” “बस आपको अपना प्यार दिखाना चाहता था.” “वो तुम बहुत दीखा चुके हो…चलो अब सो जाओ. कल हम शादी कर लेंगे.” “कल ही कर लेंगे.” भीमा हैरान रह गया. “जब तुम कहो तब कर लेंगे इसमे हैरान होने की क्या बात है.” “नही नही कल ही ठीक रहेगा. आपसे ज़्यादा दिन दूर नही रह पाउन्गा मैं अब.” “ठीक है. ठीक है सो जाओ अब तुम.” भीमा का तो जैसे कोई बहुत बड़ा सपना सच हो गया. वो बहुत खुश था. खुश होने वाली बात ही थी. रेणुका जैसी बीवी उसे कही नही मिल सकती थी. ……………………………………………………………………………………. साधना तो सारी रात तड़पति रही. कभी इस करवट कभी उस करवट. उसकी जान तो बस प्रेम में अटकी थी. बार बार बस उसकी सलामती की दुआ कर रही थी. वो बेसब्री से सुबह होने का इंतेज़ार कर रही थी. जैसे ही मुर्गे ने बांग दी वो बिस्तर से उठ गयी. सुबह के कोई 6 बज रहे थे. बाहर अभी भी हल्का हल्का अंधेरा था.साधना चुपचाप घर से निकली और प्रेम के घर की तरफ चल पड़ी. प्रेम को कुछ देर पहले ही होश आया था. आँखे खुलते ही वो खुद को अपने घर में पाकर हैरान रह गया. “ओह तुम्हे होश आ गया. भगवान का लाख-लाख शूकर है.” केशव पंडित ने कहा. “मैं यहा कैसे आया पिता जी मुझे तो वो पिशाच उठा कर ले गया था.” प्रेम ने पूछा. “जो हो गया सो हो गया छोड़ो ये सब. पिशाच का ख़ात्मा हो चुका है. अब वो यहा नही आएगा.” “ये सब कैसे हुवा?” “सब भगवान की कृपा है. इस बारे में ज़्यादा मत सोचो. पिशाच के बारे में बाते करना ठीक नही होता.” “पर मैं जान-ना चाहता हूँ कि…ये सब कैसे हुवा?” “पिशाच के पेट में त्रिशूल मारा हमने और वो ख़तम हो गया. फिर हम तुम्हे यहा ले आए.” केशव पंडित बड़ी चालाकी से बोल रहा था. वो झूठ भी बोल रहा था और सच भी. हम कह कर वो अपने मन से झूठ का बोझ हटा रहा था, हम वो भीमा साधना और अपने संधर्ब में कह रहा था.. वो नही चाहता था कि साधना के बारे में प्रेम को कुछ भी पता चले. प्रेम अपने पिता का विश्वास कैसे ना करता. वो उनकी बहुत इज़्ज़त करता था. “बेटा तुम आराम करो. मैं मंदिर जा रहा हूँ. और हां गाँव के किसी आदमी से बात करने की ज़रूरत नही है. सब घरो में घुस गये थे जब वो पिशाच तुम्हे ले जा रहा था.” “गाँव वाले डरे हुवे थे पिता जी और वैसे भी क्या कर सकते थे वो पिशाच का.” “जो भी हो तुम गाँव वालो से दूर ही रहना.” “मुझे तो वैसे भी यहा से जाना ही है पिता जी. मुझे वापिस अपने गुरु के आश्रम लोटना होगा.” प्रेम ने कहा. “तुम फिर से चले जाओगे?” “हां पिता जी जाना ही होगा.” “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मैं मंदिर के लिए निकलता हूँ. उठ सको तो कुण्डी बंद कर लेना.” “आप जाओ मैं देख लूँगा.” केशव पंडित चला गया. साधना बहुत अच्छे समय पर प्रेम से मिलने आ रही थी नही तो केसव पंडित उसे घर में ना घुसने देता. साधना पहुँच तो गयी प्रेम के घर लेकिन दरवाजे पर पहुँच कर थिटाक गयी. वो केसव पंडित की वजह से घबरा रही थी. फिर भी उसने हिम्मत करके दरवाजा खाट खटाया. “कौन है? आ जाओ दरवाजा खुला ही है.” प्रेम ने अंदर से आवाज़ दी. प्रेम की आवाज़ सुनते ही साधना की खुशी का ठिकाना नही रहा. उसने तुरंत दरवाजा धकैला और अंदर आ गयी. “प्रेम तुम ठीक हो भगवान का लाख लाख शूकर है.” “मुझे क्या होना था. मैं बिल्कुल ठीक हूँ. तुम इतनी सुबह सुबह यहा क्या कर रही हो.” प्रेम ने कठोर शब्दो में कहा. “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी. बस तुम्हे देखने आई हूँ.” “देख लिया ठीक से. हो गया तुम्हारा. अब जाओ यहा से और मुझे अकेला छोड़ दो.” प्रेम की आवाज़ में कठोरता बरकरार थी. “मैं बस तुम्हे देखने आई थी. क्या करूँ दिल से मजबूर हूँ.” साधना की आँखे छलक उठी. “देखो इस रोने धोने का मुझ पे कोई असर नही होगा. बेहतर यही होगा कि तुम यहा से चली जाओ.” प्रेम ने कहा. “जा रही हूँ प्रेम…जा रही हूँ…अपना ख्याल रखना.” साधना आँखो में आँसू लिए भारी कदमो से बाहर आ गयी. प्रेम इस बात से बिल्कुल अंजान था कि साधना ही उशे अपनी जान पर खेल कर जंगल से बचा कर लाई है. वो तो बस हर हाल में साधना से पीछा छुड़ाना चाहता था. वो अपने सन्यास से कदाप भटकना नही चाहता था. साधना के दिल पर बहुत गहरी चोट लगी. इतनी गहरी की शायद उसके घाव कभी नही भर पाएँगे. वो किसी तरह से घर पहुँच गयी और वापिस आ कर बिस्तर पर गिर गयी. उसकी आँखे थमने का नाम ही नही ले रही थी. शायद एक यही रास्ता था उसके पास अपने गम को दूर करने का. सुबह हो चुकी थी लेकिन भीमा बहुत गहरी नींद में सोया था. हसीन सपने देख रहा था. नींद में ही उसे घंटी की आवाज़ सुनाई दी. वो अचानक उठ कर बैठ गया. “ये घंटी की आवाज़ कहा से आ रही है.” “ऐसे ही सोते हो क्या देर तक तुम. तभी कहु क्यों हवेली अक्सर लेट पहुँचते थे तुम. उठ जाओ अब.” भीमा ने तुरंत घूम कर देखा. भीमा के घर में उसने एक छोटा सा मंदिर बना रखा था जिसमे कि भोले नाथ की एक छोटी सी मूर्ति रखी थी. रेणुका उस छोटे से मंदिर के आगे बैठी थी और धूपबत्ती लगा कर आरती कर रही थी. “मेम्साब, तो आप बजा रही थी घंटी.” “हां तुम्हे क्या लगा?” “मुझे लगा मैं सपना देख रहा हूँ.” “अछा है कि तुमने यही छोटा सा मंदिर बना रखा है. मुझे सुबह सेवेरे भगवान की आरती करना पसंद है.” “बना तो रखा है पर मुश्किल से कभी ही इसमें धूप लगाता हूँ. आज बड़े दिनो बाद इसमें धूपबत्ती लगाई है आपने.” “अबसे रोज लगेगी धूपबत्ती इसमें. चलो उठो और नहा धो लो.” रेणुका ने मंदिर के आगे से उठते हुवे कहा. “आप नहा ली क्या?” “क्यों..क्या फिर से परदा उठा कर देखना था तुम्हे?” “नही नही मैं वैसे ही पूछ रहा हूँ.” “हां नहा ली हूँ मैं. नहा कर ही धूपबत्ती की जाती है. पता नही क्या ये तुम्हे.” “ओह हां ये तो पता है…खि….खि” भीमा हंसते हुवे अपनी चटाई से उठता है और बाहर आ जाता है. रेणुका चूल्हे पर रात की ही तरह नाश्ता तैयार करती है. एक बहुत ही सुंदर सा रिश्ता बनता जा रहा है भीमा और रेणुका के बीच. नाश्ता करने के बाद भीमा कहता है, “मेम्साब मुझे जाना होगा अभी.” “कहा जाना होगा?” रेणुका ने पूछा. “मुझे स्वामी जी की चिंता हो रही है. पता नही उन्हे होश आया है या नही. जा कर देख आता हूँ.” “हां तुम देख आओ…मैं भी उनके बारे में जान-ना चाहती हूँ.” “ओह हां…आप कह रही थी कि आज शादी करेंगे” “तुम हो आओ पहले…फिर देखते हैं…शादी तो हम कर ही लेंगे.” “वही मैं भी कह रहा था. आज ही आज सब मुमकिन नही होगा.” “तुम हो आओ पहले फिर देखते हैं.” रेणुका ने कहा. भीमा प्रेम की हालत जान-ने के लिए उसके घर के लिए निकल पड़ता है. रास्ते में उसे कुछ लोग दीखाई दिए. वो कुछ बाते करते जा रहे थे जो कि भीमा ने सुन ली. “बड़ा बुरा हुवा ठाकुर के साथ. एक-एक करके सब चले गये हवेली से. बड़ी मनहूस हवेली है.” “हां भाई अब तो उस तरफ जाते हुवे भी डर लगेगा.” भीमा ने उन्हे रोका और पूछा,”क्या हुवा हवेली में भाई” “ठाकुर रुद्र परताप सिंग चल बसे. अब हवेली बिल्कुल शुन्सान हो गयी है.” लोग बाते करते करते आगे निकल गये. भीमा वही खड़ा खड़ा गहरी चिंता में खो गया. “अब कुछ दिन हम शादी नही कर पाएँगे. ऐसे में शादी करना ठीक नही रहेगा. चल कर स्वामी जी को देखता हूँ पहले. फिर घर जा कर ये बात बताउन्गा मेम्साब को.” भीमा प्रेम के घर पहुँचता है. घर के बाहर ही उसे केसव पंडित मिल जाता है. “क्या करने आए हो यहा. मुझे पोंगा पंडित बोल के गये थे कल…हा.” केशव पंडित ने कहा. “छोड़िए ये सब पंडित जी. मैं आपसे किसी बहस में नही पड़ना चाहता. आप ठहरे ज्ञानी पंडित और मैं ठहरा मूर्ख अग्यानि. मैं तो यहा स्वामी जी का हाल चाल जान-ने के लिए आया हूँ.” “ठीक है वो अब. होश आ गया था उसे सुबह. अभी दवाई ले कर लेटा है.” “क्या मैं मिल सकता हूँ स्वामी जी से.” “मेरे घर में तो तुम्हे घुसने नही दूँगा मैं. चुपचाप यहा से चले जाओ तो अच्छा है.” “मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि यही होना है. तुम सच में पोंगे पंडित हो. तुम्हारे जैसा धूर्त पंडित मैने आज तक नही देखा.” “दफ़ा हो जाओ यहा से.” केसव पंडित चील्लाया. “जाता हूँ जाता हूँ. स्वामी जी के कारण चुप हूँ वरना अभी पटक देता तुम्हे हा.” भीमा वाहा से चल देता है. भीमा वापिस अपने घर आ जाता है. “कैसे हैं स्वामी जी?” रेणुका ने पूछा. “वो तो ठीक हैं लेकिन ठाकुर साहिब चल बसे.” “क्या! कब हुवा ये सब.” रेणुका का मूह खुला का खुला रह गया. “वो तो नही पता…लेकिन अब हम थोड़े दिन शादी नही कर पाएँगे मेम्साब.” “कोई बात नही. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. शादी तो हमारी हो ही जाएगी देर सबेर.” एक तरह से ठाकुर का सम्राज्य गाँव से ख़तम हो चुका था. ये बात रेणुका और भीमा के लिए भी अच्छी थी और मदन और वर्षा के लिए भी. वरना बहुत दिक्कत आ सकती थी उन्हे. ……………………………………………………………….. क्रमशः.........................
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09-08-2018, 01:46 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--18
गतान्क से आगे......................
इधर साधना अभी तक बिस्तर पर पड़ी थी. उठना बहुत मुश्किल हो रहा था उसके लिए. सारी रात नींद तो आई नही थी. बहुत ज़्यादा थॅकी हुई थी. “क्या बात है साधना? आज कुछ खाने को नही दोगि क्या?” गुलाब चंद ने पूछा. साधना धीरे से बिस्तर से उठती है और कहती है, “अभी तैयार करती हूँ पिता जी.” “बात क्या है. बहुत थॅकी थॅकी सी लग रही है तू.” “कुछ नही पिता जी बस यू ही.” “बहुत भूक लगी है मुझे.” “बस अभी लाती हूँ पिता जी आप बैठिए.” साधना अपने पिता के लिए तो खाना बना देती है लेकिन वो अब भी खुद कुछ नही खाती. कुछ भी खाने का मन ही नही है उसका. प्यार का घाव कुछ ऐसा ही होता है. जखम भरने में कुछ वक्त तो लगता ही है. वक्त के साथ साथ साधना संभालने लगती है. धीरे धीरे एक हफ़्ता बीत जाता है. अब जबकि गाँव में ठाकुर की सत्ता ख़तम हो चुकी थी तो मदन वर्षा को लेकर अपने घर ही आ गया. “ह्म्म तो तुम हो साधना. बहुत तारीफ़ करते हैं तुम्हारे भैया तुम्हारी. नज़र ना लग जाए मेरी तुम्हे बहुत सुंदर हो तुम तो.” साधना वर्षा की बात सुन कर हल्का सा मुश्कुरा दी. “मैं भी आपको पहली बार देख रही हूँ. भैया रहते तो थे खोए खोए पर ये नही पता था कि आपके प्यार में खोए है. भगवान आपके प्यार को सलामत रखे.” “मैने सुना की तुमने उस दरिंदे पिशाच को मार दिया. कैसे किया तुमने ये सब.” वर्षा ने कहा. “मुझे खुद नही पता. बस हो गया.” साधना ने कहा. ये तो साधना के प्यार की ताक़त थी जिसने प्रेम को बचा लिया. इसको किसी को समझाया नही जा सकता था. मदन ने साधना को बाहों में भर लिया और बोला, “बड़ी अनोखी है मेरी बहना. ये कुछ भी कर सकती है.” वर्षा बहन भाई का प्यार देख कर मुश्कुरा पड़ती है. “कब शादी कर रहे हो आप दोनो?” साधना ने पूछा. “जब तुम कहोगी साधना…बताओ कब करें, सारी तैयारी तो तुम्हे ही करनी है.” मदन ने कहा. “मैं आप दोनो के साथ हूँ भैया. बहुत खुश हूँ मैं आप दोनो के लिए. जो भी मुझसे बन पड़ेगा मैं करूँगी.” “अभी शादी नही कर सकते हम कुछ दिन, ठाकुर साहिब का निधन हुवा है अभी अभी. वर्षा भी थोड़ा गम में है. थोड़ा रुक कर करेंगे. लेकिन तब तक वर्षा यही रहेगी तुम्हारे साथ.” “बिल्कुल रहे यही. मुझे बहुत अछा लगेगा. वैसे भी बहुत अकेली महसूस करती हूँ मैं यहा. मैं चाय लाती हूँ. ” साधना ने कहा. साधना चाय लेने चली गयी. साधना के जाते ही मदन ने वर्षा को बाहों में भर लिया. “आज रात अपने घर में मज़े करेंगे.” मदन ने कहा. “शादी होने तक तुम्हे पास भी नही फटकने दूँगी मैं अब. वाहा किशोरे के घर तुम्हारा मन नही भरा. रोज रात को मुझे परेशान करते थे.” “क्या करू मेरा दिल ही नही भरता तुमसे. जितनी बार तुम-मे समाता हूँ और इच्छा होती है करने की. शायद संभोग ऐसा ही जादू करता है.” “अब तुम्हे कुछ नही मिलने वाला जनाब. वैसे भी मैं यहा साधना के साथ लेटुंगी. तुम्हारे साथ नही.” “क्यों?” “पागल हो क्या. शादी से पहले सब के सामने अछा लगेगा क्या?” “सब सो जाएँगे तभी ना करेंगे हम. तुम भी कैसी बात करती हो. वैसे भी कुछ दिनो से तो तुम गम में डूबी हो. कहा नज़दीक आने दिया तुमने मुझे.” साधना कमरे में आती है तो मदन और वर्षा को देख कर खाँसती है, “उः..उः..चाय तैयार है.” मदन फ़ौरन वर्षा को अपनी बाहों से आज़ाद कर देता है. वर्षा मदन को चुटकी काट-ती है. “करा दी ना मेरी बेज़्जती तुमने? क्या सोचेगी साधना.” वर्षा ने धीरे से कहा. साधना ने ये सुन लिया. “मैं कुछ नही सोचूँगी भाबी. ग़लती मेरी ही थी. मैं बिना दरवाजा खड़काए अंदर आ गयी मैं कुछ खाने को बनाती हूँ. आप दोनो तब तक बाते करो.” “हां साधना बहुत अछा सा खाना बना दे आज. पहली बार आई है वर्षा घर. इसको पता चलना चाहिए कि मेरी बहना बहुत अछा खाना बनाती है.” साधना मुश्कूराते हुवे बाहर आ जाती है और चूल्हा तैयार करती है. बहुत बिज़ी रखती है वो खुद को घर के काम काज में लेकिन फिर भी रह-रह कर प्रेम की याद आ ही जाती है. ………………………………………………………………. प्रेम अब बिल्कुल ठीक हो चुका है और अब वो गाँव से जाने की तैयारी में है. केशव पंडित उसे रोकने की कोशिस तो करता है पर वो नही मानता. “मुझे मेरे गुरु के पास जाना होगा पिता जी. आपको पता ही है कि मैने सन्यास ले लिया है. यहा मेरे अध्यातम का विकास नही हो पाएगा. तरह तरह के भटकाव हैं यहा. जब से यहा आया हूँ क्रोध, घृणा पता नही क्या क्या आ गया है मेरे अंदर. यहा थोड़े दिन और रुका तो मेरा अध्यात्मिक विकास रुक जाएगा. मुझे यहा से जाना ही होगा.” “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी बेटा. रोकुंगा नही तुम्हे. लेकिन कभी कभी अपने बूढ़े बाप को देखने आते रहना. अकेला हूँ यहा, तेरे शिवा मेरा कौन है.” “आता रहूँगा पिता जी. ज़रूर आता रहूँगा. ये भी क्या कोई कहने की बात है.” प्रेम घर से बाहर निकलता है और चारो तरफ देखता है. “भगवान इस गाँव में सुख शांति बनाए रखे. पिता जी ठीक है मैं चलता हूँ. सफ़र थोड़ा लंबा है, मुझे अभी निकलना होगा.” “ठीक है बेटा अपना ख्याल रखना.” प्रेम चलने लगता है. लेकिन तभी उसे पीछे से आवाज़ आती है. “स्वामी जी!” प्रेम मूड कर देखता है. “भीमा कहा थे तुम. मिलने भी नही आए एक बार भी.” भीमा दौड़ कर प्रेम के पास आता है और कहता है, “आया था स्वामी जी लेकिन मुझे आपसे मिलने नही दिया गया.” “जाओ बेटा. तुम्हे देर हो रही है. इन गाँव वालो से इतना मूह मत लगो.” केशव पंडित ने कहा. “कैसी बात करते है आप पिता जी. ये सब अछा नही लगता मुझे….हां भीमा बताओ कैसे हो तुम. अब तो गाँव में शांति है ना.” प्रेम ने कहा. “कह नही सकता स्वामी जी, बहुत ख़ुसी हुई आपको बिल्कुल ठीक ठाक देख कर. रही गाँव की बात, जिसमे देवी समान साधना रहती हो वाहा अशांति ज़्यादा दिनो तक टिक नही सकती.” “ये क्या बोल रहे हो साधना ने क्या कर दिया ऐसा?” प्रेम ने हैरानी में पूछा. “क्या आपको पंडित जी ने कुछ बताया नही. ये तो धूर्त पने की हद पार कर दी पंडित जी ने.” “बेटा तुम जाओ यहा से ये पागलो जैसी बाते कर रहा है.” केशव पंडित ने कहा. “रुकिये पिता जी…भीमा ये सब क्या है. कहना क्या चाहते हो तुम.” “स्वामी जी पिशाच आपको जंगल में उठा ले गया था. गाँव के सारे लोग घरो में घुस्स गये थे. किसी ने कोई मदद नही की. आपके पिता श्री भी कुछ करने का विचार नही रखते थे. इन्होने तो आपको मरा मान लिया था.” “ऐसा कुछ नही है प्रेम ये झूठ बोल रहा है.” केशव पंडित बीच में बोल पड़ा. “रुकिये पिता जी कहने दीजिए इसे.” प्रेम बहुत उत्शुक था सब कुछ जान-ने के लिए. “मैं झूठ नही बोल रहा स्वामी जी. झूठ बोल कर मुझे क्या कोई इनाम मिलेगा?. स्वामी जी ये तो साधना थी जिसने हिम्मत नही हारी थी. उसी ने पंडित जी से प्रार्थना करके कुछ उपाय पूछा. इन्होने बताया की भोले नाथ के त्रिशूल से ख़ात्मा हो सकता है पिशाच का. बस फिर क्या था. साधना त्रिशूल ले कर अकेले ही निकल पड़ी जंगल की ओर.” “मैं नही गया था क्या.” केसव पंडित गुस्से में बोला. “आपने तो और मुसीबत ही बढ़ाई थी. रास्ते पर ढोता रहा मैं आपको. साधना अकेली रह गयी थी. आपके साथ होने की बजाए मुझे साधना के साथ होना चाहिए था.” “हां आगे बताओ फिर क्या हुवा.” प्रेम ने कहा. “स्वामी जी पता नही साधना ने कैसे किया ये सब लेकिन वो जंगल में पिशाच के ठीकाने तक पहुँच ही गयी. ना केवल उसने पिशाच को मारा बल्कि अपनी पीठ पर ढो कर आपको गाँव तक लाई. सीधा वैद्य के पास ले गयी थी वो आपको. मुझे तो साधना किसी देवी से कम नही लगी. ऐसा काम कोई आम इंसान नही कर सकता.” पूरी कहानी सुन कर प्रेम की आँखे भर आई और उसकी आँखे टपकने लगी. प्रेम की आँखो में आँसू देख कर भीमा ने पूछा, “क्या हुवा स्वामी जी आपकी आँखो में आँसू. मैने कुछ ग़लत कह दिया क्या?” “नही भीमा तुमने बहुत अछा किया जो ये मुझे बता दिया. मैं तो खुद पे रो रहा हूँ. साधना सही कहती थी ‘इतना भी उपर नही उठा मैं’. बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है मुझसे.” भीमा को कुछ समझ नही आ रहा था. समझता भी कैसे उसे बिल्कुल नही पता था कि प्रेम और साधना के बीच क्या चल रहा है. “बेटा तुझे जो समझना है तू समझ. बस इतना ध्यान रखना कि मैं तेरा पिता हूँ और ये गाँव वाले तेरे कुछ नही लगते.” “पिता जी बस कुछ और ना कहें मेरा दिल बहुत व्यथित है. जो पाप मुझसे हुवा है मैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा.” “ऐसा क्यों बोल रहे हो बेटा. ऐसा क्या हो गया?” केसव पंडित ने पूछा. “हाँ स्वामी जी ऐसा क्यों कह रहे हैं.” भीमा ने भी पूछा. “आप लोग नही समझेंगे. मुझे अभी साधना से मिलना होगा…वरना भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेंगे.” प्रेम ने कहा और साधना के घर की तरफ चल पड़ा. “पागल मत बनो वो कोई देवी-वेवी नही है. तुम्हे देर हो जाएगी…कहा जा रहे हो?” “जाने दो उन्हे पोंगे पंडित…क्यों हमेशा बेकार की बाते करते हो.” भीमा ने कहा. “तू दफ़ा हो जा यहा से. मैं तेरी शकल भी नही देखना चाहता मक्कार कही का.” “हा..हा..हा मक्कारी खुद करते हो और मक्कार मुझे बोलते हो…पोंगे पंडित.” भीमा कह कर चल दिया. केशव दाँत भींच कर रह गया. प्रेम जब साधना के घर पहुँचा तो वो अपने घर के बाहर चूल्हे के सामने बैठी खाना बना रही थी. उसकी पीठ प्रेम की ओर थी इश्लीए उसे पता ही नही चला की प्रेम उसके पीछे खड़ा है. कुछ देर तक प्रेम साधना को चुपचाप खड़े हुवे देखता रहा. उसे समझ नही आ रहा था कि साधना को क्या कहे. स्वामी लोग भी कभी कभी अजीब दुविधा में पड़ जाते हैं. साधना तो अपने काम में खोई थी. चूल्हे में आग ठीक से जल नही रही थी इश्लीए वो फूँक मार रही थी चूल्हे में. धुंवा ही धुंवा हो रखा था. हाथो में उसके राख लगी थी. धुनवे के कारण बार बार आँखो में आँसू आते थे और वो हाथ से आँसू पोंछने की कोशिस करती थी. चेहरे पर भी राख लग गयी थी उसके. “बहुत व्यस्त हो काम में. मेरी तरफ मूड कर नही देखोगी क्या.” अचानक अपने पीछे आवाज़ सुन कर साधना घबरा गयी और फ़ौरन खड़ी हो गयी. वो एक शब्द भी नही बोली. शायद बोल ही नही पाई. उसने बस अपने दिल पर हाथ रख लिया. बहुत जोरो से धड़क रहा था दिल उसका. उसे विश्वास ही नही हो रहा था की प्रेम वाहा खड़ा है. “दिन में भी सपने देखने लगी हूँ मैं अब” साधना ने कहा और मूड कर वापिस चूल्हे के सामने बैठ गयी. “मैं सपना नही हूँ साधना, मैं तुमसे मिलने आया हूँ.” प्रेम ने कहा. अब तो साधना को विश्वास करना ही पड़ा. वो खड़ी हुई और बोली, “प्रेम तुम्हे बिल्कुल ठीक देख कर मुझे जो ख़ुसी मिल रही है मैं शब्दो में नही कह सकती. बिल्कुल ठीक हो ना तुम अब. कही कोई तकलीफ़ तो नही है.” “बस अब रुलाओगि क्या तुम मुझे. क्यों करती हो इतना प्यार मुझे तुम. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ साधना. नही हूँ मैं लायक तुम्हारे प्यार के.” प्रेम भावुक हो उठा. “मेरे हाथ में नही है प्रेम… नही है मेरे हाथ में. और तुम्हे प्यार करना तो शोभाग्य है मेरा.” “मैने तुम्हे डाँट कर भगा दिया था उस दिन. आज मुझे भीमा ने बताया कि कैसे तुम मुझे जंगल से लेकर आई. क्या करूँ मैं अब मैं जा रहा था अपने गुरु के पास. लेकिन अब ये जींदगी तो तुम्हारी हो गयी. कैसे जाउन्गा मैं अब. ” “तुम जाओ प्रेम. ख़ुसी ख़ुसी जाओ मेरा प्यार तुम्हारे पाँव की बेड़िया नही है. मैं शायद स्वार्थी हो गयी थी जो हर वक्त बस अपना ही सोचती थी. पर अब नही. प्यार सिर्फ़ मिलन का नाम नही है. बिछड़ना भी प्यार ही है. तुम हमेसा मेरे दिल में रहोगे. तुम्हे निकाल नही पाउन्गि दिल से. तुम ख़ुसी ख़ुसी जा सकते हो प्रेम. अब मैं समझ गयी हूँ की मुझे तुम्हारे मकसद में रोड़े नही अटकाने चाहिए. मुझसे जो भी भूल हुई उसके लिए मैं तुमसे माफी चाहती हूँ.” “क्या तुम सच कह रही हो?” “क्या कभी झूठ बोला है मैने तुमसे. तुम्हारे सर की कसम. जाओ तुम अपनी मंज़िल को हाँसिल करो. तुम्हारे लिए मेरा प्यार हमेसा बना रहेगा. मुझे तुमसे कोई गिला शिकवा नही है.” “मैं जा ही रहा था. अछा हुवा जो भीमा ने मुझे सब कुछ बताया और मैं तुमसे मिलने आ गया. अब मैं दिल पर बिना कोई बोझ लिए जा सकता हूँ. मुझे देर हो रही है क्या मैं निकलु.” “अगर ऐसा है तो तुरंत निकलो प्रेम वरना मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी. बस जहा भी रहना अपना ख्याल रखना. भगवान तुम्हे वो सब दे जो तुम पाना चाहते हो.” “मैं किस मूह से तुम्हारा शुक्रिया करूँ.” “उसकी कोई ज़रूरत नही है प्रेम. मेरी जगह तुम होते तो तुम भी यही करते. जाओ अब देर मत करो.” “हां मैं चलता हूँ साधना. तुम भी अपना ख्याल रखना.” प्रेम मूड कर चल देता है. साधना उसे जाते हुवे देखती रहती है. प्रेम पीछे मूड कर देखता है तो दोनो प्यार भरी मुश्कान से देखते हैं एक दूसरे को. धीरे धीरे प्रेम साधना की आँखो से ओझल हो जाता है. ना चाहते हुवे भी साधना की आँखे भर आती है. “खुस रहना प्रेम. जहा भी रहो खुस रहना” साधना आँसुओ को पोंछते हुवे कहती है. …………………………………………………………………. जैसे जैसे दिन चढ़ता है मौसम करवट बदलने लगता है. आसमान में घने बादल छा जाते हैं. भीमा अपने खेतो में कुछ बो रहा था. “पहले तो अकेला था मैं. अब मेम्साब भी हैं. खूब मेहनत करनी होगी मुझे खेतो में.” भीमा आसमान की तरफ देखता है. “अफ लगता है बड़े जोरो की बारिश आने वाली है. जल्दी से घर चलता हूँ वरना मेम्साब के लिए जो तोहफा लिया है वो भीग जाएगा.” भीमा घर की तरफ भागता है. लेकिन रास्ते में ही जोरो की बारिश शुरू हो जाती है. लेकिन फिर भी वो खुद तो भीग जाता है लेकिन किसी तरह से तोहफे को भीगने से बचा लेता है. “आ गये तुम कहा रह गये थे?” भीमा ने तोहफा अपने पीछे छुपा रखा था. “पहले आँखे बंद कीजिए.” “क्या बात है?” “कीजिए तो मेम्साब.” रेणुका आँखे बंद कर लेती है. “अब हाथ आगे कीजिए.” रेणुका हैरत में हाथ भी आगे कर लेती है. भीमा रेणुका के हाथ में एक सुंदर सी साड़ी रख देता है. “इतनी प्यारी साड़ी…कहा से लाए.” “खरीद कर लाया हूँ मेम्साब.” रेणुका ख़ुसी से भीमा के गले लग जाती है. “मेरे कपड़े गीले हैं मेम्साब और मौसम भी खराब है. ऐसे में गले लगेंगी आप तो कही मैं उत्तेजित ना हो जाउ.” “घबराओ मत डंडा तैयार है.” “फिर ठीक है.” दोनो ठहाका लगा कर हँसने लगते हैं. “बहुत प्यार करने लगी हूँ मैं तुम्हे पता नही क्यों” रेणुका ने कहा. “मेरी भी कुछ ऐसी ही हालत थी. खेतो में हर पल आपका ही ख्याल आ रहा था. मेम्साब मीटा दो ना ये दूरिया. कब तक हम शादी का इंतेज़ार करेंगे.” भीमा के लिंग में उत्तेजना होने लगी थी और वो अब रेणुका को चुभ रहा था. “नही भीमा अभी नही. मैं तब तक तुम्हे खुद को समर्पित नही कर सकती जब तक हम पति पत्नी ना बन जाए. बुरा मत मान-ना लेकिन मेरे विचार में अभी ये सब ठीक नही है.” “क्या मैं आपको चूम सकता हूँ…होंटो पर.” “रोकूंगी नही तुम्हे पर बात तो वो भी वही रहेगी. क्या तुम थोड़ा और इंतेज़ार नही कर सकते. मैं बिना किसी ग्लानि के खुद को तुम्हे समर्पित करना चाहती हूँ. और ये तभी होगा जब तुम मेरी माँग में सिंदूर भर दोगे.” “माफ़ कीजिए मेम्साब…मैं उत्तेजित हो कर ये सब बोल बैठा. ये उत्तेजना बहका देती है मुझे. पर हम जैसे अब हैं वैसे तो रह सकते हैं. बड़ा सुकून मिलता है आपके करीब मेम्साब.” “हां इतना तो ठीक है. लेकिन दिक्कत यही है कि तुम्हारा वो बार बार तन जाता है मेरी तरफ और मुझे डर लगता है की कही हम बहक ना जायें. अगर उसे थाम लो तो हम एक दूसरे के करीब रह सकते हैं.” “वो तो मेरे बस में है ही नही आप जान ही गयी होगी अब तक. आप बस डंडा रखो हाथ में शायद कुछ बात बन जाए.” “नही अब मैं अपने होने वाले पति पर डंडा नही बर्साउन्गि.” “ऐसा है क्या मेम्साब. मुझे तो ऐसा लगता था कि मुझे पीटाई के लिए तैयार रहना होगा हर वक्त.” “ये मेम्साब कहना कब छोड़ोगे तुम. अब तुम्हारी मेम्साब नही हूँ मैं बीवी बन-ने वाली हूँ तुम्हारी.” “छूट जाएगी धीरे धीरे मेम्साब आओ थोडा यू ही बिस्तर पर लेट-ते हैं.” भीमा रेणुका को बाहों में लिए हुवे बिस्तर की तरफ बढ़ता है. रेणुका तुरंत भीमा की बाहों से आज़ाद हो जाती है और कहती है “ना बाबा बिस्तर पर नही जाउन्गि तुम्हारे साथ. मौसम बेईमान है और तुम्हारा वो तना हुवा है. तुम्हारे बस में कुछ है नही. कुछ ऐसा वैसा हो गया तो……ऐसे में तुमसे दूर ही रहना ठीक है.” “देखता हूँ कब तक बचेंगी आप. कभी तो आपको आना ही होगा मेरे बहुत…बहुत…बहुत करीब.” “ये शादी के बाद ही हो पाएगा.” “अफ कब होगी ये शादी” भीमा सर खुजाता हुवा बिस्तर पर गिर गया. “अरे गीला मत करो मेरा बिस्तर…उठो कपड़े बदलो पहले.” “आप वो साड़ी पहन के दीखाओ ना.” “उसके लिए तुम्हे बाहर जाना होगा और बाहर बारिश हो रही है.” “मैं आँखे बंद कर लेता हूँ आप पहन लो.” “नही नही तुम्हारी आँखे खुल गयी तो…बाद में पहनूँगी…चलो तुम कपड़े बदल लो.” “मैं कैसे बदलू आप हो ना यहा.” “ओह हां ये तो दिक्कत हो गयी.” “दिक्कत की कोई बात नही है. आप दूसरी तरफ घूम जाओ मैं अभी बदल लेता हूँ कपड़े.” “ठीक है लो मैं घूम गयी…हे..हे..हे.” भीमा कपड़े बदलने लगा. “क्यों ना मैं भी तुम्हे देख लू जैसे तुमने मुझे देखा था.” “नही मेम्साब ऐसा मत करना…बस थोड़ी देर रूको….हां बस हो गया. घूम जाओ आप अब.” “बड़ी जल्दी पहन लिए कपड़े.” “आपने डरा जो दिया था.” इश् तरह छोटी छोटी सुंदर सी घटनाए हो रही थी रेणुका और भीमा के बीच जिनसे उनका रिश्ता और प्यार दोनो और ज़्यादा निखरते जा रहे थे. एक अद्भुत प्यार पनप रहा था उनके बीच जो की बहुत ही सुंदर और अनमोल था. …………………………………………………………………………. प्रेम बारिश के कारण गाँव के बाहर एक बड़े से वृक्ष के नीचे बैठा था. रह रह कर उसे साधना का ख़याल आ रहा था. “साधना मुझसे बहुत उपर उठ गयी प्यार में. मैने उसे क्या कुछ नही कहा और वो बस अपने प्यार का दामन थामे रही. आज तो हद ही कर दी उसने. मुझे यकीन नही था की वो इस तरह मुझे अपने प्यार के बंधन से आज़ाद कर देगी. जा तो रहा हूँ मैं साधना को छोड़ कर अपने अध्यातम की ओर. पर क्या सच में अध्यातम साधना के प्यार से ज़्यादा अनमोल है. मैं क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा. ये किस दुविधा में डाल दिया भगवान ने मुझे. साधना ने मुझे आज़ाद तो कर दिया लेकिन अब लग रहा है कि मैं और ज़्यादा जाकड़ गया हूँ उसके प्यार में. प्यार बहुत अनमोल है उसका. वैसा प्यार शायद ही कोई कर पाएगा किसी को. मैं ऐसा प्यार छोड़ के जा रहा हूँ अध्यातम की और. पता नही कितना सही हूँ मैं. मगर ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि कुछ बहुत ही अनमोल चीज़ पीछे गाँव में ही रह गयी. हे प्रभु मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ग़लत सोच रहा हूँ. मुझे रास्ता दीखायें प्रभु मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि मैं क्या करूँ.” क्रमशः.........................
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--19
गतान्क से आगे......................
साधना भी परेशान थी. उसकी परेशानी का कारण ये था कि बारिश बहुत तेज हो रही थी और उसका प्रेम सफ़र पे निकला हुवा था.
“क्या करूँ मैं भीग जाएगा प्रेम इस बारिश में. ये बारिश भी आज ही होनी थी. कुछ दिन रुक नही सकती थी.” बहुत ही गहरा प्यार था साधना का.
प्रेम के दिमाग़ में अजीब कसम्कश चल रही थी. एक स्वामी उलझा हुवा लग रहा था. ऐसा अन्तेर द्वन्ध उसने अपनी जींदगी में पहले कभी नही देखा था. ये सब स्वाभाविक भी था. प्रेम समझ चुका था कि साधना का प्यार बहुत अनमोल है जिसका कोई मुल्य नही है. लेकिन प्रेम अपने अध्यातम से भटकने के लिए भी कदापि तैयार नही था. पर एक बात ज़रूर थी. पहले साधना का प्यार उसके अध्यातम के आगे कुछ नही था. लेकिन अब वो प्यार अध्यातम के आगे सीना ताने खड़ा था. यही प्रेम की उलझन का कारण था.
साधना तो यही दुवा कर रही थी कि बारिश थम जाए और प्रेम सुख शांति से अपना सफ़र पूरा करे. वो भाग कर प्रेम के सर पर अपना आँचल रख देना चाहती थी ताकि वो बारिश से बचा रहे. पर वो ये सोच ही सकती थी. इश्लीए बारिश के थमने की दुवा कर रही थी बार-बार.
बारिश थम गयी और प्रेम अपने जिगर को कड़ा करके अपने सफ़र पर निकल पड़ा. "यही माया है प्रेम जो इंसान को जीवन मारन के चक्कर में फन्साति है. प्यार के परलोभन को त्याग कर मुझे आगे बढ़ना होगा." प्रेम चलते हुवे सोच रहा था.
प्रेम बढ़ता गया आगे और 2 दिन में अपने गुरु के आश्रम पहुँच गया.
प्रेम के गुरु बहुत ज्ञानी थे. प्रेम ने अध्यातम का सारा ज्ञान उन्ही से सीखा था. उन्ही के साथ वो 3 साल पहले गाँव छोड़ कर आया था. वो केसव पंडित को बिना बताए चल पड़ा था अपने गुरु के साथ क्योंकि वो जानता था कि उसके पिता उसे कभी नही जाने देंगे.
आश्रम पहुच कर प्रेम गाँव की सारी बाते भूल कर ध्यान और स्माधि में लीन हो गया. ज़्यादा तर वक्त उसका मेडिटेशन में ही गुज़रता था.
गाँव में साधना भी अपने जीवन में कुछ अद्भुत कर रही थी. प्रेम के अध्यातम से प्रेरित हो कर उसका भी झुकाव अध्यातम की ओर होने लगा था. ऐसा इस लिए हुवा क्योंकि वो उत्शुक थी ये जान-ने के लिए कि ऐसा क्या है अध्यातम में जो कि उसका प्रेम उसके प्यार को त्याग कर चला गया. वो घर के सभी काम करके रात को जल्दी अपने कमरे में आ जाती थी ताकि स्माधि में लीन हो सके. अपनी चारपाई के पास ही साधना एक चटाई बिछा कर उस पर आँखे बंद करके बैठ जाती थी. सीखा नही था उसने किसी से कुछ भी. बस खुद ही लगी रहती थी. लेकिन उसे ऐसा कुछ ख़ास अहसास नही हुवा, जिसके लिए वो ध्यान और स्माधि को जारी रखे. लेकिन उसकी उत्शुकता ने उसे रुकने नही दिया और वो रोज हर हाल में आँखे बंद करके बैठने लगी.
कहते हैं कि प्यार करने वाले को आँखे बंद करके अपने प्रेमी का चेहरा दीखाई देता है. ऐसा ही रोज होता था साधना के साथ. वो रोज आँखे बंद करती और रोज उसे प्रेम ही दीखाई देता. उसे पता ही नही चला और उसने प्रेम पर ही ध्यान लगाना शुरू कर दिया. एक दिन वो प्रेम में इतनी लीन हो गयी कि स्माधि में बहुत गहरे उतर गयी. ये पहली बार हुवा था. जब उसने आँखे खोली तो उसे अहसास हुवा कि वो जन्नत की सैर करके आई है. बहुत शुकून और शांति का अहसास हुवा था उसे.
फिर क्या था उसे तो रोज ही प्रेम पर ध्यान लगाने का चस्का लग गया. और इस तरह प्रेम-साधना की शुरूवात हुई. ये ऐसी प्रेम-साधना थी जिसने साधना को अध्यातम में प्रेम से भी कही आगे निकाल दिया था. पर साधना को इन बातो का कोई अहसास नही था. वो तो बहुत खुस थी प्रेम-साधना के कारण. अपने प्रेम के करीब जो महसूस करती थी वो खुद को प्रेम-साधना करके.
प्रेम तो साधना की प्रेम-साधना से बिल्कुल अंजान था. लेकिन वो रोज अपने अंदर कुछ अजीब सी हलचल महसूस करता था. जब वो स्माधि में लीन होता था तो उसे ऐसा लगता था कि कोई उसे खींच रहा है…पता नही कहा. आँखे खुलने पर भी उसे इस खींचाव का अहसास रहता था. लेकिन वो इसका कारण नही जान पा रहा था. प्रेम ने अपने गुरु से भी बात की इस बारे में लेकिन वो भी कुछ स्माधान नही बता पाए.
“हर किसी को स्माधि में अलग अहसास होते हैं. तुम अपने ध्यान में लगे रहो ये खींचाव चला जाएगा खुद ही. मन में कोई शंका मत आने तो. शंका ही इंसान को डुबाती है.” प्रेम के गुरु ने कहा.
प्रेम ने एक रात स्माधि में ना बैठने का निर्णय लिया. वो उस रात चैन से सोना चाहता था. दिल व्यथित जो था बेचारे का. सो गया ध्यान व्यान सब छोड़ कर. लेकिन आधी रात को उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस हुवा. उसने आँखे खोली तो दंग रह गया. उसने देखा कि साधना उशके पैरो पर सर टीका कर बैठी है. इतना हैरान हुवा वो कि फ़ौरन अपनी टांगे सिकोड ली उसने. साधना ने उसकी तरफ देखा और मुश्कूराते हुवे वाहा से विलुप्त हो गयी.
“ये क्या था साधना यहा कैसे आई. और वो गायब कहा हो गयी.” प्रेम तो अचंभित रह गया. बात ही कुछ ऐसी थी.
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मंदिर में शादी हो रही थी. मदन और वर्षा अग्नि के फेरे ले रहे थे. बड़ी मुश्किल से माना था केसव पंडित शादी करवाने के लिए. गाँव में उसकी मोनॉपली थी. इश्लीए ज़्यादा अकड़ थी उसकी. मोटी रकम झाड़ी उसने मदन से तब कही शादी करवाने के लिए तैयार हुवा.
साधना, मदन और वर्षा को फेरे लेते देख बहुत खुस थी. मधाम मधाम मुश्कुरा रही थी हर पल वो उन्हे देख कर.
भीमा और रेणुका भी खड़े थे वही पास ही. रेणुका भी वर्षा के लिए खुस थी. वर्षा का कन्यादान भीमा ने किया.
जब फेरे पूरे हुवे तो रेणुका ने वर्षा को गले लगा लिया.
“भाबी आप यहा आई बहुत अछा लगा मुझे.” वर्षा ने कहा.
“क्यों नही आती मैं. मुझे ख़ुसी है कि तू अपने मन पसंद लड़के से शादी कर रही है.” रेणुका ने कहा.
“मदन ने मुझे बताया कि आप भी शादी कर रही हैं भीमा से.” वर्षा ने कहा.
“हां कर रही हूँ. तुम्हे बुरा तो नही लगेगा ना.” रेणुका ने कहा.
“बुरा क्यों लगेगा भाभी भीमा बहुत अछा है. आप लोग भी अभी निपटा दो ने ये काम यही पर. देर क्यों कर रहे हैं. सब लोग भी हैं यहा.” वर्षा ने कहा.
रेणुका ने भीमा की तरफ देखा.
“ये तो बहुत अछा रहेगा. एक साथ 2 प्रेम विवाह इस से अछी बात क्या हो सकती है.” भीमा ने कहा.
“मैं पंडित जी से बात करता हूँ…तुम दोनो की शादी के बाद ही हम घर जाएँगे.” मदन ने कहा.
केशव पंडित मदन और वर्षा के फेरे कराने के बाद भोले नाथ की मूर्ति के सामने आरती कर रहा था.
“पंडित जी आपसे कुछ बात करनी है ज़रा आएँगे.” मदन ने कहा.
केशव पंडित बाहर आया और मदन के साथ वही आ गया जहा रेणुका, भीमा, साधना और वर्षा खड़े थे.
“बताओ क्या बात है?” केसव पंडित ने पूछा.
“आप भीमा और रेणुका जी के भी फेरे करवा दीजिए. साथ साथ इनका भी काम निपट जाएगा.” मदन ने कहा.
"शादी और इन दोनो की. मैं इस पाप का भागीदार नही बनूंगा. ठाकुर के घर की बहू होकर ये शादी करने चली है वो भी इस जैसे निर्लज्ज और अधर्मी के साथ. ये पाप मैं नही होने दूँगा." केशव पंडित ने कहा.
रेणुका और भीमा तो ये सुनते ही स्तब्ध रह गये. उनके चेहरे उतर गये ऐसे कठोर शब्द शन कर. वो दोनो ही कुछ बोल नही पाए. उनके प्यार को पाप का नाम दिया गया था. दोनो बहुत व्यथित थे.
साधना उनकी हालत समझ गयी और बोली, “ये क्या बोल रहे हैं आप पंडित जी. ये प्रेम करते हैं आपस में. और प्रेम करना कोई पाप नही है. और रेणुका जी अब ठाकुर के घर की बहू नही हैं. अब ये आज़ाद हैं उस हवेली से. इनकी शादी कराना पुन्य का काम है.”
“अब तू मुझे बताएगी कि क्या पाप है और क्या पुन्य है. दो कौड़ी की लड़की मुझे पाठ पढ़ा रही है.” केशव पंडित चील्लया.
"प्यार करते हैं हम एक दूसरे से कोई पाप नही. ऐसी बाते मत करो पंडित जी. प्रार्थना है आपसे कि ये शादी करवा दे. आप जो दक्षिणा कहेंगे दे दूँगा." भीमा ने कहा.
"अछा ऐसा है क्या जाओ हज़ार किलो सोना ले आओ. करवा दूँगा शादी तुम्हारी. " केसव पंडित बोला.
"हज़ार किलो सोना, क्यों मज़ाक कर रहे हैं पंडित जी. इतनी बड़ी झोली ना फैलाए कि हम भर ना पाए." भीमा ने कहा.
"तुम मेरी बात समझे नही. मेरा कहने का मतलब ये है कि तुम दो पापियों की शादी मैं नही कर्वाउन्गा. दफ़ा हो जाओ यहा से." केसव पंडित ने गुस्से में कहा.
"चलो भीमा इनसे कुछ भी कहने का फ़ायडा नही है." रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ कर कहा.
“हां हां निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
“वर्षा तुम जाओ अपने पिया के घर. हमारी चिंता मत करो. शादी हुई है तुम्हारी आज. सब कुछ भुला कर अपनी गृहस्ती में परवेश करो. भगवान ने चाहा तो हमारी शादी जल्द होगी.”
“कभी नही होगी तुम्हारी शादी. मैं देखता हूँ कौन कराता है शादी तुम्हारी. दूसरे गाँव के पंडित भी नही करेंगे ये पाप. तुम्हारे लिए यही अछा है कि किसी कुवें में जा कर डूब मरो.” केशव पंडित ने कहा.
“आप अपनी हद पार कर रहें हैं पंडित जी. ये आपको सोभा नही देता.” साधना ने कहा.
“दफ़ा हो जाओ तुम सब लोग यहा से. वर्षा और मदन की शादी करा कर भी ग़लती कर ली मैने. निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
भीमा को बहुत गुस्सा आया और वो दाँत भींच कर केसव पंडित की तरफ बढ़ा.
“आज तुझे पटकनी लगानी ही पड़ेगी पोंगे पंडित.” भीमा ने केसव पंडित की तरफ बढ़ते हुवे कहा.
पर रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ लिया, “रहने दो…चलो चलते हैं यहा से.”
"भगवान सब देख रहा है पोंगे पंडित...तुझे छोड़ेंगे नही वो." भीमा ने कहा और वापिस मूड कर चलने लगा मंदिर से बाहर की ओर.
"दफ़ा हो जाओ...निकल जाओ अभी इस मंदिर से." केसव पंडित चील्लया.
"रूको मैं करूँगा क्रिया पाठ तुम्हारी शादी का....और मैं धन्य समझूंगा खुद को." भीमा और रेणुका को अपने पीछे से आवाज़ आई. केशव पंडित तो बोलने वाले को देखता ही रह गया.
"स्वामी जी आप" भीमा की आँखे छलक गयी प्रेम को देख कर.
"हां मैं. तुम दोनो तैयार हो कर आओ अभी. मैं अभी और इसी वक्त कर्वाउन्गा ये शादी. बहुत देर से देख रहा था छुप कर अपने पिता के इस तमासे को. यकीन नही हो रहा था मुझे." प्रेम ने कहा.
"बहुत खूब बेटा. अपने पिता को ना दुवा ना सलाम और इन पापियों के लिए इतना कुछ." केसव पंडित ने कहा.
"ये प्रेमी हैं पिता जी पापी नही हैं. प्यार का अपमान ना करें इस मंदिर में खड़े हो कर. प्यार और भगवान दोनो एक ही हैं. प्यार का अपमान भगवान का अपमान होगा." प्रेम ने कहा.
"मेरे होते हुवे इस मंदिर में ये अनर्थ नही होने दूँगा मैं." केसव पंडित ने कहा.
"फिर मुझे अफ़सोस है कि आपको यहा से जाना पड़ेगा. ये शादी तो मैं करवा कर रहूँगा." प्रेम ने दृढ़ता से कहा.
रेणुका और भीमा के लिए इस से अछा क्या हो सकता था कि प्रेम खुद उनकी शादी करवाए. उनकी तो आँखे ही छलक उठी.
"स्वामी जी आपको देख कर बहुत ख़ुसी हुई है. मेरे पास शब्द नही हैं कुछ कहने को."
"बस भीमा देर मत करो तुम दोनो तैयार हो कर आओ. जितनी जल्दी ये शुभ कार्य संपन्न हो जाए अछा है."
"जैसा आप कहें स्वामी जी हम थोड़ी देर में आते हैं." भीमा ने कहा.
“हम सब यही तुम्हारा इंतेज़ार कर रहें हैं, जल्दी आना तुम दोनो.” साधना ने मुश्कूराते हुवे कहा.
“साधना कैसी हो तुम?”
“मैं ठीक हूँ प्रेम तुम कैसे हो. मुझे तो लगा था कि फिर कभी मुलाकात नही होगी तुमसे. आज तुम्हे देख कर बहुत अछा लगा.” साधना ने मुस्कुराते हुवे कहा
“प्रेम हमसे भी मिलोगे या नही. हमारी शादी हुई है आज.” मदन ने कहा.
“मैं खुस हू तुम दोनो के लिए. काश वक्त पर आ जाता तो तुम्हे फेरे लेते हुवे देख लेता.”
“कोई बात नही आप भीमा और रेणुका की शादी करवा दो बस हमें बहुत ख़ुसी होगी.” वर्षा ने कहा.
“शादी हो ही गयी समझो. जैसे ही वो आते हैं मैं फेरे दिलवा दूँगा. साधना तुमसे कुछ बात करनी थी…ज़रा एक तरफ आओगी.” प्रेम ने कहा.
साधना हैरत में पड़ गयी कि पता नही क्या हो गया.
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वो मंदिर के एक कोने में आ गये. केशव पंडित तो पाँव पटक कर मंदिर से निकल गया था.
……………………………………………..
रेणुका और भीमा आँखो में चमक और दिल में ख़ुसी लिए वाहा से चल देते हैं. दोनो बार बार एक दूसरे की तरफ देख कर मुश्कुरा देते हैं.
"ऐसे क्या देख रहे हो भीमा सामने देख कर चलो." रेणुका ने कहा.
"बहुत खुस लग रही हैं आप, विश्वास दिलाता हूँ कि आपको हमेसा खुस रखूँगा."
"मुझे पता है भीमा, पता है..."
बातो-बातो में घर आ जाता है.
"पहले आप तैयार हो जाओ मेम्साब...मैं बाहर इंतेज़ार करता हूँ. मुझे ज़्यादा वक्त नही लगेगा...आपके बाद मैं तैयार हो जाउन्गा. "
"आज तो मेम्साब मत कहो..."
"ज़ुबान पर यही चढ़ा हुवा है. रहने दीजिए ना क्या दिक्कत है."
"मुझे दिक्कत है. बीवी बन-ने जा रही हूँ तुम्हारी अगर तुम मेम्साब-मेम्साब करोगे तो अछा नही लगेगा मुझे."
"ठीक है आप जल्दी तैयार हो जाओ स्वामी जी हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं."
"ठीक है...कही से झाँकना मत."
"नही झान्कुन्गा. झाँकने की जगह ही नही है वैसे भी. आप निश्चिंत रहें."
रेणुका ने कोई आधा घंटा लगाया तैयार होने में. लाल सारी कुछ ऐसी जच रही थी कि कुछ कहा नही जा सकता. जब रेणुका ने दरवाजा खोला और भीमा अंदर आया तो भीमा की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.
"मेरी नज़र ना लग जाए आपको...कितनी सुंदर लग रही हैं आप इस सारी में."
रेणुका तो देख ही नही पाई भीमा को. उसने नज़रे झुका ली. शरमाने लगी थी अब वो भीमा से. वो शरम देखते ही बनती थी.
“अब मैं तैयार हो जाउ. आपको बाहर रुकना होगा थोड़ी देर.” भीमा ने कहा.
“हां बिल्कुल…जल्दी तैयार हो जाओ.”
भीमा भी जल्दी से तैयार हुवा और दोनो मंदिर की तरफ चल दिए. मंदिर की तरफ चलते वक्त पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के. बात ही कुछ ऐसी थी.
……………………………………………….
“क्या बात है प्रेम. तुम कुछ व्यथित से लग रहे हो.” साधना ने पूछा.
“क्या तुम ऐसा कुछ कर रही हो जिस से मैं व्यथित हो सकता हूँ.” प्रेम ने पूछा.
“नही प्रेम. तुम्हे व्यथित कैसे कर सकती हूँ मैं.”
“2 दिन पहले तुम मेरे पास आई थी आश्रम में. मेरे पाँव पर सर रख कर बैठी थी. जब मैं उठा नींद से तो तुम्हे देखा. लेकिन अगले ही पल तुम गायब हो गयी.”
ये सुनते ही साधना के चेहरे का रंग उड़ गया. वो प्रेम के पैरो में बैठ गयी. “क्या सच में ऐसा हुवा था. मुझे लगा वो कोई भ्रम है मेरा. मुझे माफ़ करदो प्रेम. मेरा कोई इरादा नही था तुम्हे व्यथित करने का. मैं बस स्माधि में लीन थी. कब तुम्हारे पास पहुँच गयी पता ही नही चला.” साधना की आँखे टपक रही थी बोलते हुवे.
साधना को यू प्रेम के पैरो में पड़े देख मदन और वर्षा हैरान रह गये. “क्या बात है मदन. साधना स्वामी जी के पैरो में बैठ कर रो क्यों रही है…आओ देखते हैं.”
“नही वाहा मत जाओ. इन दोनो कि लीला यही जाने. बहुत प्यार करती है साधना प्रेम से बचपन से. शायद कोई गंभीर बात है. लेकिन उनके बीच में नही पड़ सकते हम.” मदन ने कहा.
“उठो साधना रो क्यों रही हो.”
“मेरा इरादा तुम्हे दुख देने का नही था. आज तुम वापिस व्यथित हो कर आए हो. इस से बड़ा पाप नही कर सकती मैं.” साधना ने कहा.
“तुमने कोई पाप नही किया पगली. समाधि में तुमने वो उँचाई पाई है जिस से अभी तक मेरे गुरु भी वंचित हैं. मैने सुना था कि लोग स्माधि में एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं. आज देख भी लिया. क्या बताओगि मुझे कि कैसे किया ये चमत्कार तुमने. उठो और बताओ मुझे.”
साधना उठती है और अपने आँसू पोंछ कर बोलती है, “प्रेम मैं तो तुम में खो जाती थी आँखे बंद करके. बाकी मुझे कुछ पता नही. बहुत शांत हो जाती थी मैं. इस क्रिया को प्रेम-साधना नाम दिया है मैने. ये है भी प्रेम साधना ही क्योंकि प्यार शामिल है इसमें. और कुछ नही कह सकती क्योंकि मुझ अग्यानि को और कुछ नही पता. 2 दिन पहले मैने खुद को तुम्हारे कदमो में बैठे पाया. बहुत ख़ुसी हुई थी मुझे. मुझे लगा स्माधि में ये भाव आ गया है कि मैं तुम्हारे चरनो में बैठी हूँ. लेकिन आज तुमने बताया तो पता चला कि मैं सच में तुम्हारे पास पहुँच गयी थी. ये कैसे हुवा मुझे नही पता.”
“अब मैं समझा कि क्यों मुझे स्माधि के दौरान खींचाव महसूस होता है. तुम यहा गाँव में बैठी प्रेम-साधना जो करती थी.”
“तुम्हे जो दुख और परेशानी हुई उसके लिए मुझे माफ़ कर दो प्रेम. आगे से ऐसा नही होगा. छोड़ दूँगी मैं वो चीज़ जो तुम्हे परेशानी दे.”
“एक मैं हूँ जिसने अध्यातम के लिए तुम्हे छोड़ दिया. एक तुम हो जो मेरे लिए, मेरे सुख के लिए अध्यातम छोड़ देना चाहती हो. क्या कहूँ अब मैं. तुम बहुत आगे निकल गयी अध्यातम में साधना. इतनी आगे कि शायद मैं वाहा तक कभी नही पहुँच पाउन्गा…मुझे अपना शिस्य बना लो साधना अपने गुरु को छोड़ आया हूँ मैं. मुझे भी ये प्रेम-साधना करनी है. मैं आ गया हूँ तुम्हारे पास अपना लो मुझे. मैने बहुत बड़ी भूल की थी जो प्यार को अध्यात्म के आगे कम आँकता था. तुमने दीखा दिया आज की प्यार का रास्ता भी भगवान तक ही ले जाता है. मुझे अपना लो साधना…आ गया हूँ मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास और अब तुम्हारा गुलाम हूँ. मुझे स्वीकार कर लो अपनी जींदगी में.”
साधना तो रो ही पड़ी ये सब सुन कर. उसे समझ ही नही आ रहा था कि प्रेम क्या बोल रहा है. वो समझती भी कैसे. अध्यातम की भासा नही जानती थी वो. वो तो अपने प्रेम की प्रेम-साधना करती थी बस. बाकी उसे कुछ नही पता था.
“क्या हुवा तुम कुछ बोल नही रही. क्या मुझे नही अपनाओगी.”
“नही प्रेम ऐसा मत कहो. मैं तो तुम्हारे चरनो में रहना चाहती हूँ सारी उमर. तुम ही मेरे भगवान हो.”
“शादी करोगी अपने भगवान से.” प्रेम ने पूछा.
साधना कहती भी तो क्या कहती. बस आँखो में आँसू लिए चिपक गयी प्रेम से. उसे ज़रा भी ध्यान नही आया कि उसकी प्रेम-साधना के कारण ही उसका प्यार परवान चढ़ रहा है. वो इन बातो से अंजान थी. उसे प्रेम मिल गया बस इशी में खुस थी.
प्रेम साधना का हाथ पकड़ कर साधना को मदन और वर्षा के पास ले आया.
“तुम लोगो को थोड़ी देर और रुकना होगा.” प्रेम ने कहा.
“क्या हुवा प्रेम, क्या बात है. और साधना रो क्यों रही है.” मदन ने कहा.
“कुछ नही ये प्यार के आँसू है इसके. हम दोनो भी शादी करेंगे आज. तुम्हे रुकना होगा थोड़ी देर और.”
“अचानक ये सब कैसे.” मदन और वर्षा तो हैरान ही रह गये.
“वो हमारे बीच की बात है. तुम बस रूको यहा.” प्रेम ने कहा.
“ पर तुम दोनो की शादी कौन करवाएगा. पंडित जी तो कभी तैयार नही होंगे.” मदन ने कहा.
“उन्हे मैं मना कर लाता हूँ. तुम साधना को तैयार करके लाओ. ये थोडा भावुक हो रही है.”
वर्षा ने साधना का हाथ पकड़ा और कहा, “आओ मैं तैयार करूँगी अपनी ननद को. चलो घर चलते हैं. मदन तुम यही रूको मैं साधना को लेकर अभी आती हूँ.”
वर्षा साधना को लेकर चली गयी और प्रेम अपने पिता से मिलने अपने घर की तरफ निकल लिया.
“आ गये तुम. करवा दी उन दोनो की शादी? मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा.” केशव पंडित ने कहा.
“शादी करवाई नही है. आपके आशीर्वाद के बिना अधूरी रहेगी शादी पिता जी. चलिए मेरे साथ आपको मेरी शादी भी करवानी है.”
“ये क्या बोल रहे हो?” केसव पंडित हैरानी में पूछता है.
“मेरी जींदगी साधना से जुड़ी हुई है पिता जी. मैं चाह कर भी उसे खुद से अलग नही कर पाया. आज मैं उसके साथ शादी के बंधन में बँध जाना चाहता हूँ. और ये शुभ काम आपको ही करना होगा.”
“बेटा मैं नही कर्वाउन्गा ये शादी. मुझे वो लड़की पसंद नही है. और शादी करनी ही है तो किसी पंडित से करो.”
“मैं शादी साधना से करना चाहता हूँ. मेरी शादी करने में रूचि नही है. बस साधना के साथ बंधना चाहता हूँ प्रेम के बंधन में. आप आशीर्वाद देंगे तो ख़ुसी होगी मुझे. आपके आशीर्वाद के बिना कुछ नही होगा.”
“मैं ऐसा कोई आशीर्वाद नही दूँगा. चले जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
“मैं मंदिर में साधना के साथ आपका इंतेज़ार कर रहा हूँ पिता जी.” प्रेम कह कर घर से निकल जाता है.
भीमा और रेणुका मंदिर पहुँच गये.
क्रमशः.........................
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09-08-2018, 01:47 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--20
गतान्क से आगे......................
“बहुत प्यारी जोड़ीं लग रही है तुम्हारी, स्वामी जी अभी आते होंगे. पंडित जी को मनाने गये हैं.” मदन ने कहा
“उन्हे मनाने की क्या ज़रूरत है” भीमा ने कहा.
“प्रेम तुम्हारी शादी करवा देगा. लेकिन उसकी और साधना की शादी कौन करवाएगा?” मदन ने कहा.
“क्या? स्वामी जी और साधना शादी कर रहे हैं. ये चमत्कार कैसे हुवा.” भीमा ने कहा.
“ये तो भगवान ही जाने. उन दोनो की बाते ही निराली है. हमारी समझ से बाहर है…लो प्रेम आ गया.” मदन ने कहा.
“चलो…चलो बैठो तुम. ज़्यादा देर मत करो. शुभ काम में देरी नही करनी चाहिए…वैसे बहुत आछे लग रहे हो दोनो. मैं धन्य हूँ कि तुम दोनो की शादी करवा रहा हूँ.” प्रेम ने कहा.
प्रेम ने रेणुका और भीमा की शादी सुख शांति से संपन्न की. मदन ने कन्यदान किया. जब वो दोनो आखरी फेरा ले रहे थे तब साधना और वर्षा भी आ गये.
“अरे वाह बड़ी प्यारी लग रही है मेरी बहना लाल जोड़े में.” मदन ने कहा.
“भैया छेड़ो मत. मुझे पता है मैं कैसी लग रही हूँ. जल्दी जल्दी में ठीक से तैयार नही हो पाई.”
“बहुत प्यारी लग रही हो साधना.” प्रेम ने कहा.
साधना शरम से लाल हो गयी. पहली बार प्रेम ने उसे ऐसी बात बोली थी. वो भी सबके सामने. भीमा फेरे लेते वक्त सोच रहा था, “स्वामी जी तो बिल्कुल बदल गये. शायद प्यार ऐसा ही होता है.”
जब विवाह संपन्न हुवा तो भीमा और रेणुका ने प्रेम का धन्यवाद किया. “स्वामी जी अब आपकी और साधना की शादी का इंतेज़ार है. क्या पंडित जी आएँगे.” भीमा ने पूछा.
“आएँगे ज़रूर आएँगे. बहुत प्यार करते हैं वो मुझे. नही रह पाएँगे. आते ही होंगे अभी.” प्रेम ने कहा.
“लो पंडित जी का नाम लिया और वो आ गये.” मदन ने कहा.
“पिता जी…मुझे पता था कि आप अपने प्रेम को आशीर्वाद देने ज़रूर आएँगे.” प्रेम ने कहा.
“बस…बस चलो बैठो अग्नि के सामने. ज़्यादा वक्त नही है मेरे पास.”
प्रेम साधना के पास जाता है और उसका हाथ पकड़ कर अग्नि के सामने लाता है. फिर वो दोनो बैठ जाते हैं. केशव पंडित मंत्रो-चारण शुरू कर देता है.
साधना बहुत भावुक स्तिति में रहती है हर पल. उसे यकीन ही नही हो रहा था कि उसकी शादी हो रही है प्रेम के साथ. रह-रह कर उसकी आँखे छलक जाती थी.
साधना का कन्यदान तो मदन को ही करना था. शादी संपन्न होने के बाद प्रेम और साधना ने केसव पंडित का आशीर्वाद लिया. “सदा खुस रहो” बस ये कह कर केसव पंडित वाहा से चला गया.
प्यार में डूबे तीन जोड़े मंदिर में एक साथ खड़े थे. फ़िज़ा में बस प्यार का रंग भरा था.
“प्रेम मेरी बहना को खुस रखना हमेसा. ये थोड़ी पागल है. बुरा मत मान-ना इश्कि किसी बात का.”
“मुझ से बहतर साधना को कोई नही जानता. तुम चिंता मत करो. ये हमेसा खुस रहेगी मेरे साथ.”
“वैसे ये हुवा कैसे स्वामी जी. आपने सन्यास त्याग कर शादी कर ली. कुछ उलझन है मन में थोड़ी सी.” भीमा ने कहा.
“इसका जवाब तो साधना ही दे सकती है. प्रेम-साधना की थी इसने और मैं आश्रम से खींचा चला आया इसके पास.” प्रेम ने कहा.
साधना ने प्रेम के कंधे पर सर रखा और बोली, “मुझे कुछ नही पता. मैने बस अपने प्रेम की आराधना की थी. मुझे नही पता था कि मेरा प्रेम सब कुछ छोड़ कर मेरे पास आ जाएगा.”
“भाई अब चला जाए…हम तो कब से खड़े हैं यहा.” मदन ने वर्षा का हाथ पकड़ कर कहा.
“हां बिल्कुल. मेरी शुभकामनाए तुम सभी के साथ हैं.” प्रेम ने कहा.
मदन ने साधना को गले लगाया और कहा, “खुस रहना अब. मिल ही गया तुझे तेरा प्रेम.”
“तुम भी खुश रहना भैया. वर्षा को खुश रखना. पिता जी का ध्यान रखना. काश वो भी आ पाते आज. उनकी तबीयत भी आज ही खराब होनी थी.”
“कौन सा तू दूर जा रही है. यही गाँव में ही तो रहेगी.” मदन ने कहा.
“हां पर फिर भी वाहा तो नही रहूंगी ना. ध्यान रखना पिता जी का.” साधना ने कहा.
तीनो जोड़े अपने अपने घरो की तरफ चल पड़े…………..
…………………………………………………..
भीमा और रेणुका घर की तरफ बढ़ रहे थे पर उनके पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे. ज़ज्बात ही कुछ ऐसे थे दिलो में.
“कितना प्यारा दिन लग रहा है ये. एक साथ तीन प्रेम-विवाह हुवे मंदिर में.” भीमा ने कहा.
“हां बहुत प्यारा दिन है भीमा…बहुत प्यारा दिन है…लेकिन अब ढल रहा है. अंधेरा होने वाला है जल्दी चलो.” रेणुका ने कहा.
“अब डर की क्या बात है, पिशाच तो मर चुका है.”
“हां पर मुझे रात में बाहर डर लगता है.” रेणुका ने कहा.
“बस आ गया घर अपना…वो देखो सामने. आज खूब हंगामा होगा उस घर में.” भीमा ने कहा.
“कैसा हंगामा?” रेणुका ने धीरे से कहा.
“सुहागरात है हमारी मेम्साब, हंगामा तो होगा ही.” भीमा ने कहा.
“ऐसा कुछ नही होगा अभी.” रेणुका ने हंसते हुवे कहा.
“क्यों अब किस बात का इंतेज़ार करना है.” भीमा ने कहा.
“ताला खोलो पहले. मुझे जोरो की भूक लगी है भीमा. बताओ क्या खाओगे.”
“आज हमारी शादी हुई है…कुछ ख़ास हो जाए.” भीमा ने कहा.
“छोले पूरी बनाउ क्या?”
“हां ठीक रहेगी.”
रेणुका ने खाना बनाया और दोनो ने साथ बैठ कर आराम से प्यार से खाया.
“मैं ये बर्तन सॉफ कर दू भीमा. तुम आराम करो.”
भीमा ने रेणुका का हाथ पकड़ा और कहा, “छोड़िए ना ये सब. आपसे दूरी बर्दास्त नही हो रही मुझे.”
“मुझे थोड़ा वक्त देना अभी…मैं किसी उलझन में हूँ.”
“कैसी उलझन.” भीमा ने पूछा
“पंडित जी हमारे प्यार को पाप बोल रहे थे. दिल बहुत व्यथित है इस कारण. खुद को समर्पित करना चाहती हूँ तुम्हे मैं पर मन में विचारो का जंजाल है. मैं थोड़ा ये काम कर आउ…शायद मन ठीक हो जाए.”
“पागल है वो पंडित. वो कौन होता है हमारे प्यार को पाप का नाम देने वाला. पापी तो वो खुद है. झूठा है एक नंबर का.”
“छोड़ो उसकी बाते भीमा, मैं खुद ही परेशान हूँ. वो बाते दिल में चुभ गयी कही.”
“क्या आप पछता रही हैं मुझसे शादी करके?” भीमा ने पूछा.
“ऐसा नही है भीमा…मेरा हृदय व्यथित है. मैं ठीक हो जाउन्गि. मुझे थोड़ा वक्त दो.”
“आप नहा लो ठंडे पानी से. मन को शांति मिलेगी.”
“वही सोच रही हूँ. तुम आराम करो. मैं ये थोड़ा सा काम करके आती हूँ. नहा भी लूँगी साथ ही.” रेणुका ने कहा.
…………………………………………………….
प्रेम अपनी दुल्हन को साथ लेकर जब घर पहुँचा तो केसव पंडित अपना सामान बाँध रहा था.
“पिता जी आप कहा जा रहे हैं?”
“मैं अब मंदिर में ही रहूँगा. वैसे भी मैं यहा रात को ही आता था. अब रात भी मंदिर में ही गुज़ार लूँगा…खुस रहो तुम दोनो यहा.”
साधना केसव पंडित के पाँव में पड़ गयी, “नही पिता जी. आज हम घर आए हैं और आप जा रहे हैं. ऐसा अनर्थ ना करें आप. हमारे वैवाहिक जीवन की शुरूवात हम आपके आशीर्वाद से करना चाहते हैं. आपकी छत्र- छाया हम पर बनाए रखे.
“उठो बेटा… ऐसा नही है कि मैं नाराज़ हो कर जा रहा हूँ. तुम्हारे कारण मेरा प्रेम घर लौट आया. मैं तो आभारी हूँ तुम्हारा. खुस रहो तुम दोनो यहा. तुम दोनो के बीच मेरा क्या काम. मैं मंदिर में ही ठीक हूँ. और मैं आता जाता रहूँगा.”
प्रेम भी केसव पंडित के कदमो में गिर जाता है और कहता है, “धन्यवाद पिता जी…आपने हमारे प्रेम को स्वीकार किया यही हमारे लिए बहुत है.”
“उठो तुम दोनो. सुख शांति से रहो यहा. मेरा आशीर्वाद साथ है तुम्हारे.” केशव पंडित ने कहा.
केशव पंडित चला जाता है और प्रेम दरवाजा बंद करके कुण्डी बंद कर लेता है. जैसे ही प्रेम मुड़ता है वो साधना को अपने चरनो में पाता है.
“अरे उठो क्या कर रही हो.” प्रेम ने कहा.
“मुझे इन चरनो में ही रहने दो प्रेम. बहुत शुकून मिलता है मुझे यहा.”
“चरनो में तो मुझे रहना होगा तुम्हारे और सीखना होगा प्रेम-साधना को. सिखाओगि मुझे?”
“तुम्हे मैं कुछ नही सीखा सकती. बल्कि मैने तो खुद तुमसे ही सीखा है सब. तुम्हारी आराधना की है मैने. बस इतना ही बता सकती हूँ प्रेम-साधना के बारे में. बाकी मुझे कुछ नही पता.”
“उठो तो सही. आज गले लगने का दिन है ना कि पैरो में पड़ने का…उठो.” प्रेम साधना को कंधो से पकड़ कर उठाता है और गले लगा लेता है. “तुम्हारे प्यार की गहराई शायद भगवान भी नही समझ सकते.”
प्रेम और साधना यू ही खड़े रहे एक दूसरे के गले मिल कर. खो गये थे उन लम्हो में और उन लम्हो की खुब्शुरती में.
…………………………………………………………
रेणुका नहा कर लौटी तो बहुत प्यारी लग रही थी. भीमा उसी बिस्तर पर पड़ा था जिसपे रोज रेणुका लेट-ती थी. आज उसका रेणुका से अलग सोने का इरादा नही था. भीमा तो देखता ही रह गया उसे. चेहरे पर गीले बॉल उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहे थे. भीमा भाग कर रेणुका को बाहों में भर लेना चाहता था पर रेणुका के व्यथित मन को देख कर रुक गया.
“आप बहुत सुंदर लग रही हो मेम्साब.”
“खबरदार मुझे मेम्साब कहा तो, तुम्हारा मेम्साब कहना भी मुझे दुखी कर रहा है.” रेणुका गुस्से में चील्लायि.
“माफ़ कर दीजिए. अब आगे से नही कहूँगा.” भीमा का चेहरा उतर गया.
रेणुका को जल्दी ही अहसास हो गया कि उसका चिल्लाना ग़लत था. वो भीमा भीमा के पास आई और उसके चरनो में बैठ गयी, “मुझे माफ़ कर दो भीमा. मुझे चिल्लाना नही चाहिए था. मैं बुरी पत्नी हूँ ना.”
“नही आप बुरी नही हैं. मेरी ज़ुबान पर बार बार मेम्साब ही आ जाता है. अब से आपको रेणुका ही कहूँगा.” भीमा ने कहा.
“तुम डाँट पड़ने पर ही सही काम करते हो ऐसा क्यों?”
“हवेली से आदत पड़ी हुई है आपकी डाँट की. याद है आपको एक बार मैं लेट हो गया था शक्कर लाने में तो बहुत डांटा था आपने मुझे. तब से डरता हूँ आपसे. इसलिए मेम्साब भी नही जाता ज़ुबान से.”
“तुम्हारी बीवी बन गयी हूँ अब. तुम मुझे डाँट कर रखो वरना सर चढ़ जाउन्गि तुम्हारे.” रेणुका ने भीमा के पाँव पर सर रख कर कहा.
“फिलहाल तो आप बिस्तर पर चढ़ जाओ, देखना चाहता हूँ कि मेरी बीवी है कैसी.”
“क्या देखना चाहते हो…अश्लील बाते मत करो मेरे साथ?”
भीमा के लिंग में उत्तेजना हो रही थी. वो बिल्कुल पत्थर की तरह हार्ड हो गया था उसके कपड़ो में. इस कारण भीमा थोड़ा अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था.
“अश्लील बाते??? मैं तो आपको यहा आने को बोल रहा हूँ. आप ही का तो बिस्तर है. यहा नही लेटेंगी क्या आज आप. मैं भी यही लेटुंगा आज तो.” अंजाने में ही भीमा का हाथ अपने पत्थर की तरह तने हुवे लिंग पर चला गया. वो उसे अपने पायजामे में थोड़ा अड्जस्ट करना चाहता था.
रेणुका ने भीमा के पायजामे में तने लिंग को देख लिया. “ये क्या तुम तो तैयार बैठे हो. मैं यहा नही लेटुंगी आज. ना…बाबा ना. मैं नही आउन्गि तुम्हारे पास.”
“कब से इंतेज़ार कर रहा हूँ आपका. इंतेज़ार करते करते ये हाल हो गया.” भीमा ने कहा.
रेणुका ने भीमा के पाँव पर सर रखा और बोली, “मेरे स्वामी आज मुझे माफ़ कर दीजिए. सच में मन व्यथित है. आज मैं उस तरह से समर्पित नही कर पाउन्गि मैं जैसे मैं चाहती हूँ. मुझे थोड़ा वक्त दो. अब हम पति पत्नी हैं. किसी बात की जल्दी नही है.”
“ठीक है. हम संभोग में लीन नही होंगे. लेकिन मैं आज आपके साथ ही सोउन्गा. अलग नही लेटुंगा अब.”
“अगर ये यू ही तना रहा तो मैं नही आउन्गि. पहले इसका कुछ करो.”
“आप मुझे यू ही तडपा रही हो है ना. मैं जाता हूँ अपने बिस्तर पर. मुझे नही लेटना यहा.” भीमा ने कहा और उठने लगा.
पर रेणुका ने उसे रोक लिया. “रूको मैं आती हूँ. पर मैं तडपा नही रही तुम्हे. मुझे क्या मिलेगा तुम्हे तडपा के.” रेणुका ने कहा और खड़ी हो गयी.
“हटो पीछे मुझे लेटने दो.” रेणुका ने कहा.
भीमा पीछे सरक गया और रेणुका भीमा के बाजू में लेट गयी.
“भीमा मैं चाहती हूँ कि हमारा पहला मिलन यादगार हो. व्यथित मन से मैं तुम्हे सहयोग नही दे पाउन्गि. इन परिस्थितियों में हमारा पहला संभोग कही सर दर्द ना बन जाए. इश्लीए तुम्हे इंतेज़ार करने को कह रही हूँ.”
“कर लूँगा इंतेज़ार जितना आप चाहें. पर आप अब मुझसे दूर नही रहेंगी. बहुत प्यार करता हूँ मैं आपको. मैं इंतेज़ार करूँगा आपका. जब आपका मन होगा तभी हम संभोग में लीन होंगे. रही बात मेरी उत्तेजना की. वो तो आपको पता ही है कि वो मेरे बस में नही है. आपके ख्याल से ही उत्तेजित हो रहा है आज तो ये. पर आप चिंता ना करें. ये आपको नुकसान नही पहुँचाएगा. ”
रेणुका घूम कर भीमा से लिपट गयी. “ओह भीमा…मैं बुरी बीवी साबित हो रही हूँ तुम्हारे लिए. तुम तड़प रहे हो और मैं बेकार की बातो में पड़ी हूँ.”
“शादी सिर्फ़ संभोग ही तो नही है. प्यार तो मिल ही रहा है आपका बेसुमार. और क्या चाहिए मुझे. मेरे नज़दीक रहें आप यू ही. आपसे दूर नही रह सकता अब. संभोग हो या ना हो. आप बस यू ही मेरे पास रहें हमेसा.”
कुछ अलग सा ही प्यार था भीमा और रेणुका का. अलग ही रंग में भीगा हुवा. पर उतना ही खूबसूरत था जितना की कोई भी प्यार हो सकता है.
दोस्तो इस तरह ये कहानी यही समाप्त होती है कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथतब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--20
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