11-10-2018, 11:42 PM,
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RE: Porn Hindi Kahani नौकरी के रंग माँ बेटी के �...
ज्योति की बातों का मतलब मैं समझ गया था और मेरे होठों पे भी मुस्कान आ गई- घबराइए नहीं ज्योति जी… हम किसी को भी जबरदस्ती नहीं जगाये रखते… हमेशा दूसरों की चाहत का ख़याल रखते हैं…
मैंने भी अब ज्योति के दोअर्थी बातों का जवाब उसी के अंदाज़ में दिया।
‘हाय राम… अगर आप जैसा जगाने वाला हो तो मैं तो सारी उम्र जागने को तैयार हूँ…’ फिर से उसने शरारती अंदाज़ में कहा और इस बार मुझे ही आँख मार दी।
‘फिर तो हमारी खूब जमेगी…’ इस बार मैंने हल्के से उसे आँख मरते हुए कहा और हम तीनों एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
खैर अब हम ज्योति के घर से बाहर निकले और उससे विदा ली… बाहर अब भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी… ऐसी बारिश मुझे बहुत पसंद है, मेरा मन झूम उठा…
मैंने ज्योति से हाथ मिलाकर बाय कहा और वंदना ने उसे गले से लगा कर!
हम दोनों कार में बैठ गए और धीरे धीरे ज्योति की आँखों से ओझल होते हुए सड़क पर आ गये, हम दोनों के बीच ख़ामोशी थी। हम धीरे धीरे चले जा रहे थे.. अचानक फिर से बारिश तेज़ होने लगी और बिजलियाँ कड़कने लगीं।
बिजलियों की चमक में मेरा ध्यान वंदना के ऊपर गया तो मैंने उसके चेहरे पे डर का भाव देखा जो घर से आते वक़्त भी देखा था।
क्या मुझे वंदना से प्यार हो गया?
एक बात थी दोस्तो, जब हम घर से ज्योति के यहाँ आने के लिए चले थे तब और अब जब लौट रहे थे तब, मेरे और वंदना के बीच सबकुछ बदल सा गया था… क्यूंकि उस वक़्त मैं रेणुका जी के बारे में सोच सोच कर परेशां था और वंदना की तरफ ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था, लेकिन वो कहते हैं न कि अक्सर कुछ पलों में जिंदगियाँ बदल जाती हैं… तो वैसा ही कुछ एहसास हो रहा था।
मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे प्यार हो गया था.. क्यूंकि मैं यूँ एक नज़र में होने वाले प्यार और कुछ पलों में होने वाले प्यार पे यकीन नहीं करता, लेकिन एक बात जरूर मानता हूँ कि कुछ बदलाव जरूर आ जाते हैं कुछ पलों में…
मेरे होठों पे बरबस ही मुस्कान आ गई और अब मैं चोर नज़रों से अपने पास बैठी उस चंचल शोख़ हसीना के रूप और सौन्दर्य को निहारने लगा…
उसके चेहरे पे उसके बालों की एक लट बार-बार उसे परेशान कर रही थी और वो बार-बार उसे हटाने की कोशिश करे जा रही थी। अपनी धुन में बेखबर और कार में बज रहे हलके से संगीत पे हौले-हौले गुनगुनाती अपने लट को संभालती बाहर हो रही बारिश को निहारती वंदना मुझे अपनी तरफ खींचने लगी थी।
मैं उसे पसंद करने लगा था… और ये सहसा ही हुआ था।
मुझे यकीन होने लगा था कि अगर मैं रेणुका के मोह में इतना न उलझा होता तो शायद ये मेरे पास बैठी ख़ूबसूरत सी लड़की अब तक मेरे बाहुपाश में समां चुकी होती और शायद हम कई बार प्रेम के फूल खिला चुके होते।
यह सोच कर कर मैं मुस्कुराने लगा और धीरे से सड़क के किनारे एक बड़े से पेड़ के नीचे कार रोक दी।
कार रुकते ही वंदन ने मेरी तरफ देखा और फिर बड़े ही प्यार से अपनी आँखें नीचे कर लीं…
उसकी इस अदा ने मुझे घायल ही कर दिया.. मैं अब भी उसे देखे जा रहा था…
कहाँ तो थोड़ी देर पहले तक मैं वंदना को इतना सीरियसली नहीं ले रहा था लेकिन कुछ घंटे साथ में बिताने के बाद ही मैं उसकी तरफ आकर्षित होता जा रहा था…
बाहर तेज़ बारिश की बूंदों की आवाज़ और अन्दर एक गहरी ख़ामोशी…
‘खूबसूरत लड़कियों को देख कर बड़े ही रोमांटिक गज़लें निकल रही थीं जनाब के गले से…’ उस ख़ामोशी को तोड़ती हुई वंदना की आवाज़ मेरे कानों में पहुँची।
जब मैंने ध्यान से देखा तो अपना सर नीचे किये हुए ही बस अपनी कातिलाना निगाहों को तिरछी करके उसने मुझे ताना मारा।
उफ्फ्फ यह अदा… ऐसे अदा तब दिखाई देती है जब आपकी प्रेमिका आपसे इस बात पर नाराज़ हो कि आपने उसके अलावा किसी और की तरफ देखा ही क्यूँ…!! वैसे इस नाराज़गी में ढेर सारा प्यार छुपा होता है…
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RE: Porn Hindi Kahani नौकरी के रंग माँ बेटी के �...
‘अच्छा, वहाँ खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं… मुझे तो बस एक ही नज़र आ रही थी… और मैंने तो वो ग़ज़ल भी बस उसी के लिए गाया था.’ मैंने भी उसे प्यार से देखते हुए कहा और मुस्कुरा दिया।
‘झूठे… जाइए, कोई बात नहीं करनी मुझे आपसे…’ वंदना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा और अपना मुँह बना लिया बिल्कुल रूठे हुए बच्चों की तरह।
तभी जोर से बिजली कड़की… बस होना क्या था, चीखती हुई वो हमसे लिपट गई…
‘हा हा हा हा… डरपोक !!’ मैंने हंसते हुए धीरे से उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा।
‘फिर से डरपोक कहा मुझे… अब तो पक्का बात नहीं करुँगी…’ मेरे सीने से अलग होते हुए वंदना अपनी सीट पर जाने लगी।
और तभी मैंने उसे जोर से अपनी तरफ खींचा, अपने सीने से लगा कर इतनी जोर से जकड़ लिया मानो उसे अपने अन्दर समा लेना चाहता हूँ।
यूँ अचानक खींचे जाने से वंदना थोड़ी सी हैरान तो जरूर हुई लेकिन मेरी बाहों के मजबूत पकड़ में वो अपने सम्पूर्ण समर्पण के साथ किसी लता के समान मुझसे लिपट गई और हम दोनों के बीच सिर्फ खामोशियाँ ही रह गईं।
एक तरफ तेज़ बारिश की आवाज़ थी जिसके शोर में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन कार के अन्दर इतनी ख़ामोशी थी कि हम दोनों की उखड़ती साँसों की आवाज़ हम साफ़ साफ़ सुन पा रहे थे… बारिश की वजह से हवा में फैली नमी के साथ मिलकर वंदना के बदन से उठ रही एक भीनी सी खुशबू सीधे मेरे अन्दर समां रही थी और मदहोश किये जा रही थी।
लगभग 10 मिनट तक हम वैसे ही एक दूसरे की बाँहों में खोये रहे… न उसने कुछ कहा न ही मैंने!
फिर धीरे से मैंने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की लेकिन अब भी वो मेरी बाहों में ही थी, मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा… घना अँधेरा था, बाहर भी और कार के अन्दर भी… कुछ साफ़ तो नहीं दिख रहा था लेकिन रुक रुक कर चमकती बिजलियों की रोशनी में उसके थरथराते होंठ और बंद आँखें उस पल को इतना रोमांटिक बना रही थीं कि दिल से यह दुआ आ रही थी कि ये पल यहीं रुक जाएँ!
कुछ पल मैं यूँ ही उसे निहारता रहा… फिर अपने एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाया… उसने अपनी आँखें नहीं खोली।
मैंने धीरे से उसकी दोनों बंद आँखों के ऊपर से ही चूमा और फिर एक बार उसके माथे को चूम लिया।
अगर सच बताऊँ तो ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था जब मैं किसी लड़की के साथ ऐसी सिचुएशन में था… लेकिन आज से पहले जब भी ऐसा हुआ था तब मेरे होंठ सबसे पहले सामने वाली लड़की या औरत के होठों से ही मिलते थे और एक जोरदार चुम्बन की प्रक्रिया शुरू करता था मैं… लेकिन आज पता नहीं क्यूँ मैं ऐसी हरकतें कर रहा था मानो मैं प्रेम से अभिभूत होकर अपनी प्रेमिका को स्नेह और दुलार से चूम रहा हूँ।
उसकी आँखों और माथे पर चूमते ही वंदना ने मुझे और जोर से पकड़ लिया और गहरी साँसें लेना शुरू कर दिया… मुझे लगा कि अब वो अपनी आँखें खोलेगी… लेकिन ऐसा नहीं हुआ… मैं अचंभित सा उसे देख रहा था और तभी एक कड़कती बिजली की रोशनी में मुझे उसके दोनों आँखों के किनारे से मोतियों की तरह आँसुओं की बूँदें दिखाई दीं।
मैं समझ गया था कि ये आँसू क्यूँ निकल रहे थे… यह अलग बात है कि मैं वासना और शारीरिक प्रेम का अनुयायी रहा और आज भी हूँ लेकिन उतना ही ज्यादा भावुक भी हूँ और किसी की भावनाओं को समझने की शक्ति भी रखता हूँ…
मैंने वंदना के चेहरे के करीब जाकर उसके कान में धीरे से पूछा- ए पगली… रो क्यूँ रही हो… मेरा छूना बुरा लगा क्या… अपनी बाहों से आजाद कर दूँ क्या?
इतना सुनते ही उसने आँखें खोलीं और मेरी आँखों में झाँका… इस बार तो आँसुओं की झड़ी ही लग गई…
‘समीर… आप मुझसे दूर तो नहीं चले जाओगे ना… क्या हम ऐसे ही रहेंगे जीवन भर… क्या आप ऐसे ही प्यार करते रहेंगे मुझे…’ एक साथ न जाने कितने सवालों से वंदना ने मुझे झकझोर सा दिया और यूँ ही आँखों से बहती अविरल अश्रु धारा लिए मुझे एकटक देखती रही…
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RE: Porn Hindi Kahani नौकरी के रंग माँ बेटी के �...
अब बारी आई उसकी चूचियों के रसपान की… मैंने धीरे-धीरे अपने होठों से उसकी दोनों चूचियों को हर जगह चूमना शुरू किया… अँधेरे की वजह से मैं उन चूचियों को ठीक से देख नहीं पा रहा था और इस बात से मुझे बुरा लग रहा था।
तभी एक बिजली कड़की… और मेरी आँखों ने उन पर्वतों के साक्षात् दर्शन कर लिए… बस एक दो सेकंड सेकेण्ड के लिए ही सही लेकिन बिजली की चमक ने उन खूबसूरत उभारों को इतना उजागर कर दिया कि उत्तेजना में कड़ी उन चूचियों की नसें तक साफ़ दिख गईं और साथ ही उन चूचियों के ठीक मध्य भाग में वो गुलाबी सा घेरा और उस घेरे के ऊपर किशमिश के दाने के आकार की घुंडी…
उफ्फ्फ… मैं बावला हो गया और उस अचानक हुए उजाले में उन घुण्डियों की तरफ निशाना साध कर अपने होठों को टिका दिया.. निशाना बिल्कुल सटीक बैठा था।
अँधेरा अब भी था और बारिश की बूंदें अब भी शोर मचा रही थीं… लेकिन मेरे होठों ने जैसे ही वंदना की चूची की घुंडी को अपने अन्दर समेटा, एक जोरदार सिसकारी के साथ वंदना ने मेरे बालों को बड़े जोर से खींचा… अपने पैरों को बिल्कुल एक साथ जोड़कर यूँ ऐंठने लगी जैसे उसे किसी बिजली के तार ने छू लिया हो।
लम्बी-लम्बी साँसें… और धड़कते हुए दिल की आवाजों के साथ उसने अपने बदन को कदा कर लिया और अपनी कमर के 3-4 झटके दिए… मुझ जैसे अनुभवी खिलाड़ी के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि मेरे होठों की छुवन ने वंदना को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था और उसकी मुनिया ने अपने रस को धीरे से विसर्जित कर दिया था।
वंदना का पूरा बदन काँप रहा था… मैंने उसकी चूची की घुंडी को अपने पूरे मुँह में होठों के बीच रख लिया और अन्दर से अपनी जीभ की नोक को उस घुंडी पे चलाने लगा।
हमारी पाठिकाएँ इस एहसास को बखूबी जानती होंगी और यह भी जानती होंगी कि ये क्षण पूरे बदन को कितनी गुदगुदी से भर देते हैं… लेकिन इस गुदगुदी में हंसी नहीं निकलती बल्कि पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है।
ऐसा ही कुछ वंदना के साथ भी हुआ और उसका बदन झनझना उठा… मैंने अपने जीभ की करामात जारी रखी और अब अपने दूसरे हाथ को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ उसे उस वक़्त होना चाहिए था।
उसकी दूसरी चूची को अपने दूसरे हाथ की हथेली में भरते हुए मैंने उन्हें हौले-हौले मसलना शुरू किया।
वंदना भी अभी-अभी स्खलित हुई थी… इसलिए उसने अपने बदन को अब बिल्कुल ढीला कर दिया और अपने आप को मेरे हवाले कर दिया… अब मैंने उसकी पहली चूची को अपने होठों से अलग किया और फिर दूसरी चूची की तरफ बढ़ा।
उसकी दूसरी चूची को मुँह में भरने से वंदना को एक बार फिर से उत्तेजना हुई, मेरे दूसरे हाथ ने अब उसकी वो चूची थाम ली जिसे मैंने चूस चूस कर गीला कर दिया था।
एक तो पहले ही उसकी चूचियाँ चिकनी थीं, ऊपर से मेरे मुँह से निकले रस से सराबोर होकर और भी चिकनी हो गई थीं… मेरी हथेली में भरते ही उसकी चूचियों की चिकनाहट ने वो आनन्द दिया कि मैंने एक बार अपनी हथेली को जोर से भींच कर चूचियों को लगभग कुचल सा दिया।
‘आआह्हह… ..सीईईई ईईस्सस्स…’ बस इतना ही निकल सका उसकी जबान से..
मैंने मज़े से उसकी चूचियों का रसपान जारी रखा और साथ ही साथ मर्दन भी करता रहा।
हम दोनों दीन-दुनिया से बेखबर उस बारिश के शोर में एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे के अन्दर समां जाने को बेकरार थे… मेरे हाथों ने अब अपना स्थान बदलना शुरू किया… चूचियों को होठों के हवाले करके अब मेरे हाथ उसके पेट पर चलते-चलते उसकी नाभि को एक बार फिर से छेड़ने लगे… उँगलियों ने जैसे ही नाभि को छुआ तो मेरा ध्यान उसकी तरफ खिंच गया… मैंने वंदना की चूचियों को अपने मुँह से निकला और अपनी जीभ को बाहर निकल कर चूचियों के घाटी के बिल्कुल बीच से होते हुए अपनी छाप छोड़ते-छोड़ते सीधा उसकी नाभि में समां कर रुक गए…
अब यह एक और ऐसी जगह है स्त्रियों के शरीर में जहाँ हलकी सी सरसराहट भी उत्तेजित कर देती है और अगर उस जगह जीभ रख दी जाए तो फिर तो सिहरन से शरीर उन्मादित हो उठता है। मैंने वंदना को वही उन्माद दिया था… अपनी जीभ की नोक को उसकी सुन्दर गहरी नाभि में यूँ चलाने लगा मानो एक छोटी सी कटोरी जिसके अन्दर सिर्फ कोई नुकीली चीज़ ही जा सकती है, वहाँ से कोई शहद चाट कर पी लेना चाहता हूँ…
नाभि को चूम-चूम कर मैं फिर से उसकी चूचियों को मसलने लगा। वंदना के हाथ पहले की तरह ही मेरे बालों से खेल रहे थे…
मेरे हाथों ने एक बार फिर से अपने स्थान परिवर्तन का फैसला किया और अब धीरे-धीरे चूचियों को सहलाते हुए पेट की तरफ बढ़े और फिर मेरी उँगलियाँ वंदना की पटियाला सलवार से टकरा गई… मैं अपनी उँगलियों को आहिस्ते-आहिस्ते कमर की तरफ से उसकी सलवार के अन्दर डाल दिया और लगभग दो उँगलियों से जितना संभव हो सके उतना नीचे की तरफ सरका दिया…
अब मेरी उंगलियों को खेलने के लिए उसकी नाभि और उसकी मुनिया के बीच की सपाट चिकनी सतह मिल गई और उँगलियों ने उस सतह को हौले-हौले सहलाना शुरू किया…
स्त्रियों का यह भाग बहुत ही संवेदनशील होता है… मेरी उँगलियाँ मानो मेरे होठों का मार्गदर्शन कर रही थीं। नाभि को अपने मन मुताबिक़ चूमने के बाद सहसा ही मेरे होंठ नाभि के ठीक नीचे उसी भाग को चूमने लगे… अब मेरे नाक में एक चिर-परिचित महक आने लगी…
जी हाँ… आपका अनुमान बिल्कुल सही है, यह महक वहाँ से आ रही थी जहाँ पहुँचने की लालसा हर एक मर्द में होती है… ‘चूत’ !!
एक मदहोश कर देने वाली महक जिसने हमेशा मुझे मदहोश किया है… आज भी और आज से पहले भी।
वंदना के सपाट पेट और चूत तथा नाभि के बीच के चिकने भाग पर मेरी जीभ खुद बा खुद फिसलने लगी… साथ ही साथ मेरी उँगलियाँ अब बड़े ही मुस्तैदी से वो डोर ढूंढ रहे थे जिसे खींचे बिना स्वर्ग के उस दरवाज़े के दर्शन नहीं हो सकते। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी मुझे और वंदना के शलवार की डोरी मेरे हाथों में आ गई… मैंने उसके पेडू को चूमते हुए ही डोरी को हल्के से खींचा!
इस बार भी नारी सुलभ लज्जा का प्रदर्शन हुआ और एकदम से वंदना ने अपने हाथों से मेरे हाथों को रोकने का प्रयास किया लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.. मेरे प्रेम भरे मनुहार ने वंदना के अन्दर अब विरोध करने की शक्ति को क्षीण कर दिया था… थोड़ी सी ना नुकुर के बाद मैंने डोरी को पूरी तरह खोल दिया और एक बार वंदना की तरफ देखा…
वंदना ने अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया… उसकी इस हालत पे मैं वासना भरी मुस्कान के साथ अपने काम में वापस लग गया…
हमें काफी देर हो चुकी थी… उस जगह रुके हुए और अपने प्रेम लीला शुरू किये हुए लगभग डेढ़ घंटे बीत चुके थे… वासना अपनी जगह है और जिम्मेदारियाँ अपनी जगह..
यह एक बात है मेरे अन्दर और यह मैं खुद नहीं कहता, बल्कि मेरे साथ सम्बन्ध बना चुकी हर उस लड़की या स्त्री ने कहा है जिसके हर बात का ध्यान रखा था मैंने।
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