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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की--36
गतान्क से आगे.................
जब घर पहुँच कर पद्मिनी ने घर की बेल बजाई तो उसके पिता जी ने दरवाजा खोला. उन्हे विस्वास ही नही हुआ कि सामने पद्मिनी खड़ी है.
"पापा ऐसे क्या देख रहे हैं मैं हू पद्मिनी."
"बेटा" बस इतना ही कह पाए पद्मिनी के पिता जी और पद्मिनी को गले लगा लिया.
"ये सब क्या हो रहा है बेटा"
"पापा सब बताती हूँ...इनसे मिलिए ये है राज...इन्होने मेरी बड़ी मदद की है."
राज ने पद्मिनी के पिता जी के पाँव छुए और कहा, "ठीक है पद्मिनी जी अब आप अपने घर पहुँच गयी हैं...मुझे बहुत ख़ुसी है."
"आओ बेटा कुछ चाय पानी लो."
"नही अंकल रात बहुत हो चुकी है फिर कभी."
चौहान दूर खड़ा सब सुन रहा था. "ये तो साला हीरो बन गया पोलीस में आते ही अच्छी किस्मत पाई है"
पद्मिनी को छ्चोड़ कर राज और चौहान वापिस चल दिए. चौहान ने चार कॉन्स्टेबल पद्मिनी की सुरक्षा के लिए वाहा छ्चोड़ दिए.
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..........................
नगमा भोलू के बिस्तर पर सो चुकी थी. भोलू की भी आँख लग गयी थी. भोलू को टाय्लेट का प्रेशर हुआ तो उसकी आँख खुल गयी.
"नींद ही आ गयी थी" भोलू ने आँखे मलते हुए कहा.
भोलू टाय्लेट से वापिस आया तो उसकी नज़र नगमा पर गयी. वो पेट के बल पड़ी थी. उसकी नंगी गान्ड भोलू पर अजीब सा असर कर रही थी.
भोलू के लंड में हरकत होने लगी.
"क्या करूँ...कैसे सेक्सी पोज़ में लेटी हुई है ये...अब कोई गान्ड ना मारे तो क्या करे."
भोलू का लंड पूरा तन गया. भोलू नगमा के उपर लेट गया. उसका लंड नगमा की गान्ड पर लेट गया.
नगमा गहरी नींद में थी और वो यू ही पड़ी रही.
भोलू ने हाथ पे थूक लगाया और नगमा की गान्ड फैला कर उसके होल को चिकना कर दिया. थोड़ा सा थूक उसने अपने लंड पर भी रगड़ लिया. फिर उसने दोनो हाथो से गान्ड को फैलाया और लंड को नगमा की गान्ड के छेद पर टीका दिया. नगमा की गान्ड पीछले 2 दिन की थुकाइ से थोड़ा खुली हुई थी. जैसे ही भोलू ने धक्का मारा आधा लंड नगमा की गान्ड में घुस्स गया.
"उूउऊययययययीीईईईई मा कौन है...कौन है." नगमा की आँख खुल गयी.
"मैं हूँ भोलू...हे..हे..हे"
"आआहह क्या कर रहे हो तुम ऊओ."
"सोती हुई लड़की की गान्ड मार रहा हूँ...आअहह.. ऊऊहह"
"आआहह....ऊऊहह ऐसा क्यों कर रहे हो तुम."
भोलू ने पूरा लंड नगमा की गान्ड में घुस्सा दिया और बोला,"तुम्हारी गान्ड अछी लगती है इसलिए."
"ऊओह मुझे उठा कर नही डाल सकते थे...मुझे डरा दिया."
"तेरी गान्ड देख कर कुछ होश ही नही रहा.... थूक लगा कर घुस्सा दिया"
"तुम हमेशा चालाकी से गान्ड मारते हो आआहह"
भोलू ने लंड बाहर की और खींचा और दुबारा अंदर डाल दिया, "तेरी गान्ड के लिए कुछ भी करूँगा आअहह."
भोलू तेज तेज नगमा की गान्ड ठोकने लगा. कमरे में नगमा की सिसकिया गूंजने लगी.
"कुतिया बन जा और ज़्यादा मज़ा आएगा तुझे क्या बोलती है आअहह"
"किसी कुतिया की ले ले जाके मैं कुतिया नही बनूँगी आअहह"
"कुतिया तो तू है ही बन-ने की क्या ज़रूरत है आअहह" भोलू नगमा की गान्ड में लंड अंदर धकेलते हुए बोला.
"तो तू कौन सा कुत्ते से कम है...आअहह"
भोलू ने अपनी स्पीड बढ़ा दी. हर धक्के के साथ नगमा की गान्ड चालक रही थी. नगमा ने मद-होशी में बिस्तर की चादर को मुथि में कश लिया था.
भोलू नगमा की गान्ड में झाड़ गया. दोनो यू ही पड़े रहे. कब दोनो को नींद आ गयी पता ही नही चला. भोलू का लंड नगमा की गान्ड की गहराई में ही सो गया.
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इधर पद्मिनी अपने पेरेंट्स को पूरी कहानी सुनाती है.
"उस लड़के मोहित को भी कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए...ऐसा तो कोई पागल ही कर सकता है"
"छोड़िए पापा जो हो गया सो हो गया...अब बस यही दुवा कीजिए कि वो कातिल पकड़ा जाए."
पद्मिनी अपने पेरेंट्स के साथ काफ़ी देर तक बैठी रही. सभी खुस थे.
"चलो बेटा सो जाओ आँखे लाल लग रही हैं तुम्हारी ठीक से सोई भी नही शायद" पद्मिनी की मदर ने कहा.
"ठीक है...मुझे बहुत गहरी नींद आ रही है."
सभी अपने-अपने बेडरूम में चले गये. पद्मिनी ने खिड़की से झाँक कर देखा. बाहर रात का सन्नाटा था. 3 पोलीस वाले सो रहे थे और एक अपने मोबाइल पे कुछ देख रहा था.
"ऐसी सुरक्षा से तो सुरक्षा ना होना बेहतर है. कम से कम इंसान अपने भरोसे तो रहे." पद्मिनी ने सोचा.
पद्मिनी अपने बेडरूम में आ गयी और अपने बिस्तर में घुस गयी. "मुझे अलर्ट रहना होगा" पद्मिनी ने कहा.
पद्मिनी घर तो पहुँच गयी पर रह रह कर उसका दिल घबरा रहा था. वो डर रही थी कि कही वो कातिल वाहा ना पहुँच जाए.
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"यार बस और नही...बहुत पी ली" मोहित ने कहा.
"पी ना यार रोज रोज कहा हम पीते हैं...आज पी रहे हैं तो क्यों ना जी भर के पिए."
"वो तो ठीक है...पर यार बहुत नशा हो रहा है."
"दूसरे नशे की जगह बाकी है कि नही"
"दूसरा नशा...कौन सा दूसरा नशा."
"मेरे पड़ोसी की बीवी बड़ी मस्त है कहे तो बुला लू...बोल क्या कहता है...अभी आ जाएगी वो."
"नया माल फ़साया है क्या...बताया नही तूने कामीने."
"तू मिला ही कहा इतने दिन से बस अभी 2 हफ्ते पहले ही फ़साई है."
"बबलू तू शादी भी करेगा या फिर यू ही काम चलाता रहेगा."
"तुझे शादी करके क्या मिल गया...कहाँ है तेरी बीवी."
"यार तू उसकी बात मत कर वो अलग ही कहानी है."
"बता दे हमे भी...हमे भी तो पता चले."
"छ्चोड़ यार मूड खराब हो जाएगा"
"बता फिर बुलाउ क्या पड़ोसन को...मस्त आइटम है."
"साले रात के दो बज रहे हैं...वो क्यों आएगी इस वक्त."
"आएगी...आएगी क्यों नही उसकी दुखती रग मेरे हाथ में है."
"ब्लॅकमेल कर रहा है क्या बे...मुझे ज़बरदस्ती किसी की लेना अच्छा नही लगता."
"अरे नही...उसका एक लोंडे से चक्कर था. मैने एक दिन उन्हे छत पर पकड़ लिया. बस तभी से मुझे भी मिल रही है उसकी. बस मैं डराता रहता हूँ उसे कि तेरे पति को सब बता दूँगा...डर कर बहुत अच्छे से देती है वो."
"जो भी हो है तो ये एक तरह की ब्लॅकमेलिंग ही."
"वो क्या सती सावित्री है कोई...ऐसा मोका कोई गवाता है क्या."
"देख यार इतनी रात को उसे मत बुला...सहर में वैसे ही का आतंक फैला हुआ है."
"अरे उसे कौन सा सड़क से आना है...छत टाप कर आ जाएगी यहा."
"वैसे सच कहु तो मेरा अभी मन नही है...एक लड़की पे दिल आ गया है यार."
"भाई मुझे तो शराब के साथ शबाब भी चाहिए अभी फोन करता हूँ साली को"
मोहित नशे में टल्ली हो रहा था. उसे सॉफ सॉफ दीखाई भी नही दे रहा था. पर वो बात ठीक से कर रहा था.
बबलू ने फोन किया, "साली उठा नही रही है...कहा मर गयी."
"रहने दे यार क्यों इतनी रात को परेशान करता है. सो रही होगी बेचारी."
"उसे परेशान करना मेरा हक है यार...मेरी बात नही मानेगी तो कल ही फँसा दूँगा साली को."
मोहित खड़ा हुआ और फोन बबलू के हाथ से छीन लिया.
"समझा कर मेरा बिल्कुल मन नही है." मोहित ने कहा.
"अच्छा तू रहने देना...पर मैं तो लूँगा साली की आज फिर...वैसे ये बता कौन है वो लड़की जो तेरा दिल ले उड़ी...और तेरा मन खराब कर दिया."
"है एक लड़की...पहले पटा लू फिर उसके बारे में बताउन्गा."
बबलू ने मोहित से फोन वापिस ले लिया और बोला, " मुझे तो मज़ा करने दे भाई मेरे...मेरा बहुत मन है अभी."
"उसका पति नही है क्या घर में जो वो इस वक्त आएगी."
"पति पोलीस में है और अक्सर अपनी ड्यूटी के कारण बाहर ही रहता है. नाइट ड्यूटी ज़्यादा रहती है उसकी."
"सेयेल तू पोलीस वाले की बीवी ठोक रहा है..किसी दिन पकड़ा गया ना तो वो तुझे ठोक देगा."
"देखा जाएगा यार...ऐसा माल क्या रोज मिलता है...तू देखेगा ना तो तेरा भी मन हो जाएगा हे..हे..हे."
"तू सच में पागल है...तेरा कुछ नही हो सकता." मोहित ने कहा.
बबलू ने फिर से फोन मिलाया, "सरिता जी क्या बात है फोन क्यों नही उठा रही"
"क्या है इतनी रात को क्यों फोन किया." सरिता ने कहा.
"फोन कब करता हूँ मैं तुझे हे..हे..हे."
"देखो मैं इस वक्त नही आ सकती...मुझे रात को घर से निकालने में डर लगता है."
"मैं तुझे रिक्वेस्ट नही कर रहा हूँ... ऑर्डर दे रहा हूँ तुझे समझी जल्दी आजा यहा वरना कल तेरे पति को तेरे कारनामे सुना दूँगा."
"देखो बाहर बहुत हलचल हो रही है आज...मुझे डर लग रहा है...कही वो कातिल यहा आस पास हुई तो."
"तुझे कौन सा सड़क पार करके आना है...छत क्रॉस करके आजा...भाने मत बना वरना मेरा दीमाग घूम जाएगा."
"ठीक है बाबा मैं 10 मिनट में आ रही हूँ."
"ये हुई ना बात...और सुन सारी पहन के आना मुझे तेरी साड़ी उतारनी अछी लगती है...हे..हे..हे."
"आधा घंटा लगेगा सारी पहन-ने में कोई मज़ाक है क्या."
"मुझे कुछ नही पता... सारी पहन कर जल्दी आ जा." बबलू ने फोन काट दिया.
"तू तो बहुत हुकुम चलाता है बेचारी पे." मोहित ने कहा.
"हुकुम चलाना पड़ता है यार वरना वो क्यों देगी मुझे...तेरे जैसा स्मार्ट तो हू नही मैं हे..हे..हे."
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"उफ्फ क्या करूँ इस कामीने का मैं...किसी भी वक्त बुला लेता है...मैं तो तंग आ गयी हूँ इस से." सरिता ने सोचा.
सरिता अपनी आल्मिरा खोल कर सारी ढूँढने लगी.
"कौन सी पहनु....क्या मुसीबत है." सरिता झल्ला कर बोली और आल्मिरा का दरवाजा पटक दिया.
"ये वक्त है किसी को बुलाने का...कितनी अछी नींद आ रही थी...उफ्फ क्या करूँ"
जैसे तैसे सरिता ने सारी पहनी और अपने बॉल-वाल सेट करके अपने घर की छत पर आ गयी.
"कितना सन्नाटा है बाहर...और ये कुत्ते पता नही क्यों भोंक रहे हैं आज. कुछ ज़्यादा ही शोर मच्चा रहे हैं."
सरिता अपने घर की छत से बबलू के घर की छत पर आ गयी.
"कही ये आ गये तो...नही नही उनकी नाइट ड्यूटी है सुबह से पहले नही आएँगे और आएँगे भी तो भी बबलू के घर से बेल तो सुन ही जाएगी...भाग कर छत के रास्ते वापिस आ जाउन्गि." सरिता चलते चलते सोच रही थी.
सरिता बबलू के घर की सीढ़ियों से नीचे आ गयी और उसने पीछे का दरवाजा खड़काया.
"लो आ गया मेरा माल...देखता जा...उसे देख कर डिसाइड करना की मन है कि नही..हे..हे..हे."
बबलू सरिता के लिए दरवाजा खोलने चल दिया. उसके कदम नशे की वजह से लड़खड़ा रहे थे.
क्रमशः..............................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की--39
गतान्क से आगे.................
"डॉक्टर ये बच तो जाएगा ना?" राज ने पूछा.
"खून काफ़ी बह गया है...ही ईज़ इन क्रिटिकल सिचुयेशन..तुरंत ऑपरेशन करना होगा."
"कुछ भी कीजिए डॉक्टर साहब पर मेरे दोस्त को बचा लीजिए."
मोहित को तुरंत ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जाता है. बाहर नगमा और राज बेसब्री से ऑपरेशन ख़तम होने का वेट करते हैं.
"तुम आज रात फिर भोलू के पास गयी...कभी तो चैन से बैठा करो." राज ने कहा.
"नही राज मैं उसके पास नही गयी थी...वही मुझे ले गया था." नगमा राज को पूरी बात बताती है.
"भोलू आख़िर गया कहा तुझे छ्चोड़ कर." राज ने पूछा.
"वही सोच कर मैं भी परेशान हूँ...मैं तो गहरी नींद में सोई थी...पता नही कब गया वो."
"ह्म्म...भोलू पर मुझे फिर से शक हो रहा है" राज ने कहा.
"मुझे भी उस पर पहले से ही शक है."
"तभी खूब मस्ती की तूने रात उसके साथ हूँ."
"सॉरी राज..वो मुझे ले आया तो...पर तुमसे ज़्यादा मुझे किसी के साथ अच्छा नही लगता." नगमा ने कहा.
"सब कहने की बाते हैं."
तभी ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर बाहर आया और बोला, "मैं जो कर सकता था मैने कर दिया...अभी वो बेहोश है...होश आने पर ही क्लियर हो पाएगा कि वो बचेगा की नही."
"ऑपरेशन तो ठीक हो गया ना डॉक्टर?" राज ने पूछा.
"ऑपरेशन बिल्कुल ठीक हो गया है...पर अभी वो अनकनसियस है. देखते है अब सब भगवान के उपर है."
डॉक्टर वहाँ से चला गया. मोहित को आइक्यू में शिफ्ट कर दिया गया.
"तुम चिंता मत करो उसे होश आ जाएगा." नगमा ने कहा.
"तुमने बहुत अच्छा काम किया नगमा आज...मुझे वक्त पर फोन ना करती तो गुरु का बचना और भी मुस्किल हो जाता."
"ये तो मेरा फ़र्ज़ था राज...मैं इतनी बुरी भी नही हूँ."
"मैने कब तुम्हे बुरा कहा पगली कही की...चल थोड़ी चाय पी कर आते हैं"
राज और नगमा चाय पी कर वापिस आइक्यू के बाहर बैठ जाते हैं. रात बीत जाती है. सुबह के कोई 6:30 बजे एक नर्स बाहर आती है.
"सिस्टर क्या मेरे दोस्त को होश आ गया." राज ने पूछा.
"हां...थोड़ी देर पहले ही उसने आँखे खोली है मैं डॉक्टर को बुलाने जा रही हूँ."
राज और नगमा की खुशी का ठीकना नही रहा. राज ने नगमा को बाहों में भर लिया और बोला,"तुम्हारी वजह से गुरु की जान बच गयी...तू घर चल अच्छे से लूँगा तेरी."
"सस्शह सिस्टर सुन रही है." नगमा ने कहा.
"ओह सॉरी ध्यान ही नही रहा." राज सर खुजाने लगा.
नर्स सर हिलाते हुए वहाँ से चली गयी.
डॉक्टर मोहित को देखता है और बाहर आकर कहता है, "अब तुम्हारा दोस्त ख़तरे से बाहर है."
"क्या मैं उस से मिल सकता हूँ"
"नही पोलीस केस है ये...पहले पोलीस उसका बयान लेगी तभी तुम मिल सकते हो."
"मैं सब इनस्पेक्टर राज शर्मा हूँ...मैं खुद उसका बयान लूँगा."
"ईज़ दट सो...अगर ऐसा है तो गो अहेड...मुझे कोई ऐतराज नही है...पोलीस वाले ही बाद में आकर ऐतराज़ करते हैं."
"डोंट वरी डॉक्टर...ऐसा कुछ नही होगा." राज ने कहा.
राज नगमा को साथ लेकर मोहित के पास आ गया.
"गुरु दारू पीते पीते किस चक्कर में फँस गये." राज ने कहा.
"पूछ मत यार बहुत बुरी रात थी ये मेरे लिए...एक मिनिट ज़रा नगमा को बाहर भेज दो." मोहित ने कहा.
"नगमा ने ही तुम्हारी जान बच्चाई है पहले उसे धन्यवाद तो कर दो." राज ने मोहित को पूरी बात बताई.
मोहित ने नगमा को पास बुलाया और बोला, "थॅंक यू नगमा तुमने बड़ी समझदारी दिखाई."
"थॅंक यू किस बात का ये तो मेरा फ़र्ज़ था. तुम दोनो बात करो मैं बाहर वेट करती हूँ" नगमा ने कहा.
नगमा बाहर आ गयी.
मोहित राज को बबलू के घर से लेकर साइको से भिड़ंत तक पूरी कहानी सुनाता है.
"गुरु एक-एक करके तुम्हारे दोस्त टपक रहे हैं...मेरा क्या होगा."
"अबे सब इत्तेफ़ाक है."
"अच्छा किया जो उस कामीने साइको को चाकू मारा."
"बहुत गहरा घाव हुआ होगा साले को...वो भी किसी हॉस्पिटल में पड़ा होगा अभी."
मोहित की बात सुनते ही राज ने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और इनस्पेक्टर चौहान को फोन किया. उसने चौहान को मोहित और साइको की भिड़ंत के बारे में बता दिया.
"सर उसे भी चाकू लगा है..हो ना हो वो भी किसी हॉस्पिटल या क्लिनिक में होगा...हमें शहर के सभी क्लिनिक और हॉस्पिटल चेक करने चाहिए." राज ने कहा.
"वाह बर्खुरदार तुम तो अभी से काम सीख गये...मैं तुरंत अलग अलग टीम्स भेजता हूँ. तुम उस हॉस्पिटल में चेक करो."
"जी सर... एक-दो कॉन्स्टेबल यहा भी भेज दो जो यहा मेरे दोस्त के कमरे के बाहर रहे." राज ने कहा.
"ठीक है भेजता हूँ...पर एक ही मिल पाएगा."
"एक ही भेज दो सर...मैं तो हूँ ही यहा...मैं हॉस्पिटल में चेक करूँगा तो वो यहा खड़ा रहेगा."
राज ने मोबाइल वापिस जेब में डाल लिया.
"गुरु तुम आराम करो मैं इस हॉस्पिटल को चेक करता हूँ क्या पता वो साइको भी यही आया हो." राज ने कहा.
"पद्मिनी कैसी है?" मोहित ने पूछा.
"ओह...पद्मिनी जी के बारे में बताना तो भूल ही गया. वो अपने घर चली गयी है." राज मोहित को पूरी बात बताता है.
"अच्छा किया यार तूने मेरे सर पर बोझ बना हुआ था."
"हां गुरु बहुत अच्छा हुआ...मैं अभी चलता हूँ बाद में बात करते हैं." राज ने कहा.
राज ने नगमा को घर जाने को बोल दिया. नगमा ऑटो पकड़ कर घर आ गयी.
नगमा ने घर आ कर अपने घर का ताला खोला और चुपचाप अंदर आ गयी.
"बहुत बढ़िया... मुझे यहा बंद करके बहुत अच्छा किया आपने दीदी" पूजा ने कहा.
"ओह तुम उठ गयी...सॉरी मुझे बाहर से ताला लगा कर जाना पड़ा." नगमा ने कहा.
"किसके साथ गयी थी आप ताला लगा कर राज के साथ या मोहित के साथ."
"भोलू ले गया था मुझे.." नगमा ने कहा.
"च्ीी वो भोलू हवलदार...उसकी शकल देखी है च्ीी...अब आप किसी के साथ भी चल देती हैं?"
"मेरे मामलो में टाँग ना अड़ाओ समझी मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगी...तुम अपने काम से काम रखो...और मैं अभी हॉस्पिटल से आ रही हूँ."
"हॉस्पिटल...क्यों?"
नगमा पूजा को मोहित के बारे में बताती है.
"ह्म्म...चलो छ्चोड़ो...मुझे कॉलेज के लिए तैयार होना है" पूजा कह कर बाथरूम में घुस गयी.
"कॉलेज के लिए तैयार होना है हा...खुद पता नही क्या क्या करती होगी कॉलेज में...मुझे नसीहत देती है." नगमा गुस्से में बड़बड़ाई.
............................................................
..
राज ने पूरा हॉस्पिटल छान मारा उसने पेशेंट रिजिस्टर भी चेक किया. पर वहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति नही मिला जो की अपने पेट के ऑपरेशन के लिए वहाँ आया हो. बाकी पोलीस वालो को भी किसी हॉस्पिटल, क्लिनिक में कुछ नही मिला.
"अगर उसे चाकू लगा था तो वो गया कहाँ? क्या घर पर ही ऑपरेट करवा रहा है. बहुत शातिर है ये साइको." राज ने सोचा.
पूरा दिन बीत गया. मोहित की हालत में धीरे धीरे सुधार हो रहा था. एक हफ़्ता उसे हॉस्पिटल में ही रहना था.
"तुम घर जा कर आराम करो राज कब तक यहा बैठे रहोगे...सादे दस हो गये हैं."
"साइको का कुछ पता नही चला गुरु पता नही साला कहा गया होगा अपना पेट सीलवाने."
"कुछ दिन अब वो किसी को मारने की हिम्मत नही करेगा...पेट फाड़ दिया है मैने उसका."
"ये तो हैं बैठा होगा कही साला सर पकड़ के...उसे भी तो पता चला कि चाकू लगने से कैसा लगता है."
"आआहह."
"क्या हुआ गुरु?"
"यार ये सरिंज जो हाथ में लगा रखी है बहुत दर्द हो रहा है इसमें"
"ग्लूकोस के लिए है ना ये?"
"हां"
"रूको मैं किसी नर्स को बुलाता हूँ." राज ने कहा.
राज बाहर आया. उसने चारो तरफ देखा कोई नही था. वो ढूँढते ढूँढते थोड़ा आगे आ गया.
"शायड इस कमरे में होगी नर्स." राज ने सोचा क्योंकि कमरे पे लिखा था 'रेस्टरूम फॉर स्टाफ'
राज कमरे के नज़दीक गया तो उसे अंदर से कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी. उसने दरवाजा खोला तो दंग रह गया.
टेबल का सहारा ले कर एक नर्स झुकी हुई थी और एक सेक्यूरिटी गार्ड उसकी चूत में लंड पेल रहा था. सेक्यूरिटी गार्ड ने नर्स की स्कर्ट उसकी गान्ड तक उठा रखी थी. एक हाथ में उसे स्कर्ट थी और एक हाथ उसने नर्स की गान्ड पर टिका रखा था.
"आअहह स्नेहा जी जब भी आपकी नाइट ड्यूटी होती है मेरे मज़े लग जाते हैं." गार्ड ने कहा.
"जल्दी जल्दी कर मुझे पेशेंट भी अटेंड करने हैं."
"और कितना जल्दी करूँ स्नेहा जी कभी तो टाइम दिया कीजिए."
"सुना था कि हॉस्पिटल में सिस्टर्स खूब देती हैं आज देख भी लिया....क्या करूँ किसी और को ढूंडू क्या...पर यही नर्स मोहित को शुरू से अटेंड कर रही है. वैसे मेरी बात सुन कर तो बड़ा सर हिला कर गयी थी...यहा खुद मज़े से चूत मरवा रही है...करने दो मज़े इन्हे मैं किसी दूसरी नर्स को देखता हूँ"
राज मुड़ने लगा तो स्नेहा की नज़र उस पर पड़ गयी.
"हटो कोई देख रहा है." स्नेहा ने कहा.
सेक्यूरिटी गार्ड की पीठ राज की तरफ थी. वो अपने धक्को को रोक कर पीछे मुड़ा.
"क्या काम है...ये स्टाफ का कमरा है जाओ यहा से."
स्नेहा ने गार्ड को झटका दिया. गार्ड का लंड स्नेहा की चूत से निकल गया. स्नेहा ने अपने कपड़े ठीक किए और बोली, "क्या बात है यहा क्यों आए हो."
क्रमशः..............................
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की--40
गतान्क से आगे.................
"मेरे दोस्त के हाथ में जो सरिंज लगी है... दर्द कर रही है आकर ज़रा देख लीजिए."
"ठीक है मैं आती हूँ जाओ."
"अभी चलिए वो परेशान है."
"ओये बोला ना इन्होने...जाओ यहा से."
राज आगे बढ़ा और गार्ड की गर्दन पकड़ ली. "साले जैल में डाल दूँगा...ज़्यादा बकवास की तो."
"आप क्या पोलीस में हो." गार्ड गिड़गिदाया.
"और नही तो क्या...मेरा इरादा तुम दोनो को डिस्टर्ब करने का नही था...मैं तो जा ही रहा था कि इन्होने मुझे देख लिया."
"सॉरी सर चलिए आपके दोस्त को देख लेती हूँ ." स्नेहा के तेवर भी ढीले हो गये.
स्नेहा राज के साथ चल दी.
"कुण्डी तो लगा लिया कीजिए कोई भी झाँक सकता है."
"सॉरी सर...ग़लती हो गयी किसी को बताना मत प्लीज़ मेरी नौकरी चली जाएगी."
राज ने चलते चलते स्नेहा की गान्ड पर हाथ मारा और बोला, "कोई बात नही आप मेरे दोस्त की केर कीजिए बस...आप उसे छ्चोड़ कर यहाँ वहाँ रहेंगी तो कैसे चलेगा."
"सॉरी सर...मैं उनका पूरा ध्यान रखूँगी" स्नेहा ने कहा.
स्नेहा ने सरिंज चैक की.
"दर्द तो इसमे रहेगा...आप हाथ ज़्यादा मत हिलाओ." स्नेहा ने मोहित को कहा.
"क्या इसे निकाल नही सकते." मोहित ने कहा.
"नही ग्लूकोस ज़रूरी है आपके लिए"
"कोई बात नही गुरु...हाथ का थोड़ा ध्यान रखो दर्द कम हो जाएगा."
मोहित ने राज को इशारे से अपने पास बुलाया और बोला, "इस नर्स की लेने के चक्कर में तो नही है तू...बड़ा घूर रहा है इसकी गान्ड को."
"गुरु कोशिस तो पूरी है...शायद काम बन जाए."
"चल मज़े कर तू...मुझे नींद आ रही है"
"गुरु बाहर एक कॉन्स्टेबल है...चिंता मत करना मैं इस नर्स का काम निपटा कर जल्दी आ जाउन्गा."
"जाओ ऐश करो." मोहित हंस कर बोला.
"थॅंक यू स्नेहा जी...आओ बाहर चलते हैं. मेरे दोस्त को नींद आ रही है."
राज स्नेहा के साथ बाहर आ जाता है.
"सर मुझे दूसरे पटेंट भी देखने हैं मैं चलती हूँ....कोई ज़रूरत हो तो बुला लीजिएगा" स्नेहा ने कहा.
"ज़रूरत तो आपकी हर वक्त रहेगी...कहा मिलेंगी आप." राज ने कहा.
"मैं उसी कमरे में मिलूंगी" स्नेहा ने नज़रे झुका कर कहा.
"कितना वक्त लगेगा आपको सभी पेशेंट्स को अटेंड करने में"
"यही कोई एक घंटा."
"एक घंटा!" राज के चेहरे पर हैरानी के भाव आ गये.
"हां सर इतना वक्त तो लगता ही है." सनेहा ने कहा और वहाँ से चली गयी.
राज स्नेहा को जाते हुए घूरता रहा. स्नेहा की गान्ड चलते हुए कामुक अंदाज़ में चालक रही थी .राज तो बस देखता ही रह गया.
"यार मामला कुछ जमता नज़र नही आ रहा...मैने इसकी गान्ड पर हाथ तो मारा था....शायद मेरा सिग्नल समझी नही ये." राज सोच में पड़ गया.
"चलो कोई बात नही पेशेंट्स को अटेंड करना भी ज़रूरी है . वापिस आएगी तो फिर से ट्राइ करूँगा...मानेगी तो ठीक है वरना रहने देंगे." राज वापिस मोहित के पास आ गया. पर मोहित तब तक सो चुका था.
राज मोहित के पास ही बैठ जाता है. कुछ देर तक तो वो जागा रहता है लेकिन धीरे धीरे नींद उसे घेर ही लेती है और वो बैठा बैठा कुर्सी पर झूलने लगता है. कुर्सी के लिए उसे संभालना मुस्किल हो जाता है. आख़िर कार वो लूड़क जाता है और उसकी आँख खुल जाती है.
"12:30 हो गये...देखता हूँ एक बार ट्राइ करके क्या पता बात बन जाए...अब तो वो उसी कमरे में होगी."
राज उसी कमरे पर पहुँच जाता है. वो दरवाजा खोल कर देखता है पर स्नेहा वहाँ नही मिलती.
"कहा गयी ये...छोड़ो यार क्यों अपना वक्त खराब कर रहा हू इसके लिए...छाए पी कर आता हूँ वरना फिर नींद आ जाएगी."
राज हॉस्पिटल की कॅंटीन में आकर चाय ऑर्डर करता है. वही उसे स्नेहा दीख जाती है. स्नेहा के साथ एक नर्स और थी और वो भी चाय पी रहे थे.
राज चाय लेकर स्नेहा के पास आ जाता है. राजू को देख कर स्नेहा कहती है,"मैं थोड़ी देर पहले आई तो आपके दोस्त को देखने. ग्लूकोस की नयी बॉटल लगा कर आई हूँ. आप सो रहे थे."
"ओह हां मुझे नींद आ गयी थी...मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है"
"हां बोलिए"
"अकेले में बात करनी है."
"ओके...मैं चाय पी लू क्या?" स्नेहा मुस्कुरा कर बोली.
"हां-हां बिल्कुल मेरी भी चाय बाकी है"राज भी मुस्कुरा दिया.
"लाइन क्लियर लगती है...यही मोका है पासा फेकने का...इसकी चाय कब ख़तम होगी कप है या बाल्टी मेरी तो ख़तम भी हो गयी."
"आप मेरे कप को क्यूँ घूर रहे हैं"स्नेहा ने पूछा.
"अच्छा कप है काफ़ी चाय आ जाती है इसमे...वही देख रहा था."
स्नेहा हँसने लगती है और बोलती है, "आपके पास भी सेम कप था...चलिए मेरी चाय ख़तम हो गयी."
"शूकर है." राज ने कहा.
स्नेहा ने अपने साथ आई नर्स को बाइ किया और राज के साथ चल दी.
"कहिए क्या ज़रूरी बात थी."
"कोई ज़रूरी बात नही है...आपके साथ कुछ पल बिताने थे बस."
"ह्म्म...चाय कैसी लगी आपको इस कॅंटीन की चाय बहुत अच्छी है."
"चाय पी कौन रहा था...मेरी नज़र तो बस आप पर थी."
स्नेहा शर्मा जाती है और बोलती है, "छोड़िए ऐसी बाते मत कीजिए."
"इतनी खूबसूरत हैं आप और उस सेक्यूरिटी गार्ड के साथ च्ीी...आपके लायक नही है वो ना शकल ना सूरत."
स्नेहा ने राज की बात का कोई जवाब नही दिया.
"मैने कुछ ग़लत कहा क्या?"
"नही सर ऐसी बात नही है आप ये सब क्यों बोल रहे हैं"
राज और स्नेहा बाते करते करते कॅंटीन से काफ़ी दूर आ गये थे. वो अब अंधेरी सड़क पर चल रहे थे.
"वैसे ही बोल रहा हूँ."
"सर इस सड़क पर रोशनी नही है वापिस चलते हैं...अंधेरे से मुझे डर लगता है." स्नेहा ने कहा.
राज ने स्नेहा का हाथ थाम लिया और बोला, "डरने की कोई ज़रूरत नही है मैं हू ना साथ."
"मुझे लगता है आप मुझे ब्लॅकमेल करने की कोशिस कर रहे हैं. छोड़िए मेरा हाथ."
राज ने हाथ छोड़ दिया. "आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"पहले आपने मेरी बॅक पर हाथ मारा था...मैने कुछ नही कहा अब आप ये सब घुमा फिरा कर बोल रहे हैं."
"मैं आपको ब्लॅकमेल नही कर रहा हूँ...पटा रहा हूँ इतना भी नही समझती..तुम जाना चाहो तो जा सकती हो मैं तो यही घूमूंगा अभी."
"मुझे पता रहे हैं पर क्यों?"
"क्योंकि मुझे आपकी चूत लेनी है इसलिए...अब सॉफ सॉफ बोल दिया फिर मत कहना."
"ओह गॉड आप कैसी बाते करते हैं."
"देखो मैने तुम्हे डिस्टर्ब किया था...आपका काम अधूरा रह गया था. मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपका काम पूरा किया जाए."
"आप बहुत अश्लील बाते करते हो."
"अब जल्दी से ऐसी जगह बताओ जहा मैं आराम से तुम्हारी चूत में लंड घुसा सकूँ"
"ऐसी कोई जगह नही है यहा हे..हे" स्नेहा हँसने लगती है.
"कोई बात नही ये सड़क काम करेगी चलो उस पेड़ के पीछे चलते हैं." राज ने कहा.
"यहा नही नही आप पागल हो गये हैं."
राज ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और बोला,"अरे आओ ना कब से तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए और तुम हो की नखरे कर रही हो."
राज स्नेहा को खींच कर पेड़ के पीछे ले आया.
"आप समझ नही रहे हैं...यहा ख़तरा है...कोई भी कभी भी आ सकता है."
"कितनी देर से हम यहा घूम रहे हैं...अभी तक तो कोई आया नही...कोई नही आएगा यहा."
राज ने अपनी पॅंट की चैन खोली और अपने भीमकाय लंड को बाहर खींच लिया.
"थामिये अपने हाथ में कोई आपका इंतेज़ार कर रहा है.
"आप ये ठीक नही कर रहे."
राज ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और अपने तने हुए लंड पर रख दिया.
"ओह माइ गॉड ये क्या है."
"लंड है भाई...ऐसे कह रही हो जैसे पहली बार देख रही हो...वो गुआर्द लंड ही तो पाले रहा था तुम्हारी चूत में. भूल जाती हो क्या लंड लेकर लंड को.?"
"पर ये कुछ ज़्यादा ही बड़ा है."
"मज़ाक अच्छा कर लेती हो अब ये मत कहना कि तुम इसे गान्ड में नही ले पाओगि क्योंकि मैने ये पूरा का पूरा तुम्हारी सेक्सी गान्ड में डालना है."
"ओह नो...आप कैसी बाते करते हैं."
राज स्नेहा को बाहों में जाकड़ लेता है और उसके होंठो को चूसने लगता है.
"वाउ यू आर वंडरफुल क्या होंठ है तुम्हारे...तुम्हारी चूत के होंठ भी ऐसे ही हैं क्या."
"मुझे नही पता...आहह" राजू ने उसके बूब्स को मसल दिया था.
राज ने स्नेहा के बूब्स को बाहर निकाल लिया और उन्हे चूसने लगा.
"आअहह सर कोई आ गया तो."
"कोई नही आएगा...तुम बस मज़े करो."
राज ने अब स्नेहा की गान्ड को थाम लिया और गान्ड के दोनो पुतो को मसल्ने लगा.
"अयाया आराम से."
"गान्ड में लिया हैं ना आपने पहले"
"हां पर इतना बड़ा नही आआहह."
"घूम जाओ और घूम कर झुक जाओ...वक्त बर्बाद करना ठीक नही है...तुम्हे अपनी ड्यूटी भी करनी है"
क्रमशः..............................
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01-01-2019, 12:19 PM,
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RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 44
गतान्क से आगे...........
चौहान सोनिया के पास आता है और उसकी मखमली गान्ड पर हाथ रख कर बोलता है, "सच बोलोगि तो मैं तुम्हारे पति से कोई बात नही कारूगा. कितनी बार ठोका नरेश ने तुझे कल रात."
"आप ये क्या बोल रहे हैं.? ऐसा कुछ नही है."
चौहान सोनिया की गान्ड से हाथ हटा लेता है और चलने लगता है, "ठीक है फिर कल शाम को तुम्हारे पति को सब कुछ बताया जाएगा."
"नही रुकिये...एक बार." सोनिया ने अपनी नज़रे झुका कर कहा.
"बस एक बार...इतनी मदमस्त जवानी को तो सारी रात ठोकना था...बेवकूफ़ है ये नरेश."
चौहान वापिस सोनिया के पास आया और फिर से उसकी गान्ड पर हाथ रखा. इस बार वो हाथ से गान्ड के पुतो को सहलाने लगा.
"मज़ा आया था तुझे."
"हाथ हटा लो प्लीज़."
"जो पूछ रहा हूँ उसका जवाब दे."
"हां आया था."
"गुड...और मज़ा लेना चाहोगी."
"हाथ हटा लीजिए."
"क्यों अच्छा नही लग रहा तुम्हे. ऐसी मखमली गान्ड पर तो खूब हाथ फिराने चाहिए और तुझे खूब मज़े लेने चाहिए."
सोनिया चौहान का हाथ पकड़ कर अपनी गान्ड से हटा देती है और कहती है, "कल शाम को मेरे पति से मिल लेना."
"वो तो मिलूँगा ही...तुमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया. और मज़ा लेना चाहोगी क्या?"
सोनिया किसी गहरी सोच में डूब गयी. चौहान खड़े खड़े सोनिया के जवाब का इंतजार करता रहा.
……………………………………………………….
राज शर्मा मोबाइल ऑपरेटर रोडफोने के ऑफीस से उस मोबाइल नंबर की सारी डीटेल्स निकलवाता है.
"सर इस नंबर में जिन जिन जगह से पैसे डलवाए गये हैं वो सारी डीटेल इस पेज में है."
"ओह थॅंक यू, शायद इस से काम बन जाएगा"
"माइ प्लेषर सर."
राज शर्मा रोडफोने के ऑफीस से बाहर आता है और उस पेज को ध्यान से देखता है,
"ह्म्म मॅग्ज़िमम टाइम एक ही वेंडर से पैसे डलवाए गये हैं. सबसे पहले इसे ही चेक करता हूँ." राज शर्मा सोचता है.
राज शर्मा जल्दी ही उस वेंडर के पास पहुँच जाता है. ये एक मेडिकल स्टोर था जहा पर की मोबाइल में टॉक टाइम भरने का काम भी होता था.
"एक्सक्यूस मी ये नंबर किसका है" राज शर्मा ने पूछा.
"आप नंबर ले कर घूम रहे हैं आपको पता होगा." स्टोर वाले ने कहा.
"देखो मैं पोलीस से हू. जल्दी इस नंबर के बारे में बताओ वरना..." राज शर्मा ने कहा.
"सॉरी सर पहले बताना था ना...ये नंबर उँ...अरे हां ये तो मोनिका जी का है."
"कौन मोनिका और कहा रहती है ये.?"
"कोई सीरीयस बात है क्या सर?"
"तुम उसका अड्रेस बताओ सीरीयस है या नही उस से तुम्हे क्या लेना देना."
"सॉरी सर वैसे ही पूछ रहा था. मोनिका जी का घर यही नज़दीक ही है. मैं आपको दिखा देता हूँ."
"ठीक है जल्दी चलो."
स्टोर वाला राज शर्मा के साथ चल कर राज शर्मा को मोनिका का घर दिखा देता है.
राज शर्मा डोर बेल बजाता है. मोनिका दरवाजा खोलती है.
"जी कहिए."
"क्या आप ही मोनिका हैं."
"हां क्यों? क्या काम है."
"आप ने मुझे पहचाना नही..."
"नही...कौन हैं आप. मैं आपको नही जानती"
"कुछ दिन पहले फोन पे बात हुई थी. आप ने सुरिंदर को फोन मिलाया था. ग़लती से मैने उठा लिया. आइ आम सब इनस्पेक्टर राज शर्मा . कुछ याद आया."
मोनिका के तो पाँव के नीचे से जैसे ज़मीन ही निकल गयी. लेकिन फिर भी वो बोली,"आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही आ रहा."
"आप झूठ बोल कर अपनी ही दिक्कत बढ़ा रही हैं. पहले आपने मोबाइल सिम सहित जंगल में फेंक दिया और अब आप झूठ बोल रही हैं. इस सब से तो यही लगता है कि आप बहुत कुछ छुपा रही हैं. अगर आप यहाँ सच नही बताएँगी तो पोलीस स्टेशन में बताएँगी. सच तो आपको बोलना ही पड़ेगा. मर्ज़ी आपकी है."
मोनिका घबरा जाती है और बोलती है, "सर आप अंदर आईए"
"अंदर तो आ जाउन्गा पहले आप सच स्वीकार कीजिए."
"क्या चाहिए आपको मुझसे?"
"ये हुई ना बात...चलिए बैठ कर बात करते हैं." राज शर्मा ने कहा.
"आप कुछ लेंगे चाय...ठंडा." मोनिका ने पूछा.
"बस एक गिलास पानी दे दीजिए."
मोनिका पानी का गिलास लाती है. "आप काफ़ी यंग ऑफीसर हैं."
"हां बस अभी भरती हुआ हूँ...आप भी काफ़ी यंग हैं...आर यू मॅरीड." राज शर्मा ने कहा.
"यस आइ आम मॅरीड."
"आपके हज़्बेंड कहा हैं....जॉब पे गये होंगे शायद"
"हां...वो बाहर गये हैं."
"बाहर मतलब घर से बाहर या बाहर से बाहर."
"देल्ही गये हैं वो. उनके अक्सर टूर लगते रहते हैं."
"तभी आपने सुरिंदर के साथ एक्सट्रा मेरिटल रिश्ता बना लिया."
"उस बारे में मैं बात नही करना चाहती. आप काम की बात कीजिए."
"सॉरी अगर आपको बुरा लगा तो. मेरे मूह से वैसे ही निकल गया."
"इट्स ओके."
"आपने क्यों किया ऐसा. मोबाइल सिम सहित फेंक दिया. क्या डर था आपको."
क्रमशः...............
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