09-08-2019, 01:56 PM,
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RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
जय को तो मन ही मन मज़ा आ गया। पहली बार वो किसी पराई नारी को चोदने जा रहा था वो भी अपने बचपन के यार के साथ मिल कर। आखिर अगले रविवार की दोपहर वो घर से निकला तब भी शीतल ने कह कर भेजा कि अच्छे से चोदना, जल्दी झड़ के मेरी नाक मत कटा देना।
जय शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और जय, विराज के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि शालू ने आकर कहा कि राजन सो गया है।
दोनों विराज के बेडरूम में चले गए। शालू एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। विराज ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में शालू के पीछे जाकर बैठ गया। शालू ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।
विराज ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी शालू ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। जय ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।
विराज- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
जय- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
शालू- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं जय भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।
विराज नीचे जा कर शालू की चूत चाटने लगा और शालू ने जय की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। शालू ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो शालू की चूत की खुशबू थी या उसके जय के लंड को चूसने का दृश्य जिसने विराज का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। विराज ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर शालू को चोदना शुरू कर दिया।
तभी शालू उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह विराज को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। जय को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने विराज के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।
शालू- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।
शालू किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर विराज को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर जय का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो जय को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद शालू का विराज पर हावी होने का वो अंदाज़ जो जय को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो जय का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। शालू ने जय को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन विराज की छाती पर टिका दिए।
शालू- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
जय- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
विराज- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
शालू- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।
जय ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा शालू की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी शालू की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर जय अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब शालू ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।
जय और विराज को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली शालू दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब शालू के धक्के बंद हुए तो विराज और जय ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों शालू की चूत और गांड में ही झड़ गए।
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09-08-2019, 01:58 PM,
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RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
काफी देर तक चूसा-चाटी करके जब दोनों झड़ गईं तो शालू ने सासू माँ को लंड दिखाई के बारे में याद दिलाया।
शालू- माँ जी, मैं चलती हूँ। आपको वो लंड देखना हो तो ये दीवार पर जो दर्पण है इसको देखते रहना अब थोड़ी ही देर में इसमें लंड दिख जाएगा।
माँ- काय दुलेन? बावरी हो गई का?
शालू ने बस हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरी और बाहर चली गई। सासू माँ इसी असमंजस में थीं कि ये क्या मज़ाक है; दर्पण में लंड कैसे दिखेगा? यही सोचते हुए वो दर्पण के सामने जा कर खड़ी हो गईं। विराज को लगा वो अपना नंगा रूप निहार रहीं हैं तो वो भी देखने लगा कि तभी शालू अन्दर आई। उसने दर्पण बंद किया लेकिन बंद करते करते उसने दूसरी तरफ का दर्पण थोड़ा सा खोल दिया। दर्पण बंद होने के बाद उसने विराज के खड़े हुआ लंड को पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
शालू- आजा मेरे राजा! माँ की चूत देख के खड़ा हो गया?
जब सासू माँ ने दर्पण को सरकते हुए देखा तो वो अचंभित रह गईं। उन्होंने जो थोड़ा सा खुल गया था वहां उंगलियाँ डाल कर दर्पण को पूरा सरका दिया और उसके ठीक सामने उसके नंगे बेटा-बहू थे। शालू लंड को पकड़ कर घुटनों के बल बैठी थी। माँ को कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था लेकिन शालू अपने पति के लंड से बच्चों की तरह पुचकारते हुए बात कर रही थी।
शालू- माँ की चूत देख के खड़ा है …? चोदेगा …? मादरचोद बनना है …? ठीक है बन जाना, लेकिन अभी पहले मेरी चुदाई कर।
इतना बोल कर शालू ने विराज को दर्पण की तरफ घुमाया और उसके पीछे बैठ कर उसके अन्डकोषों को पकड़ कर दर्पण में दिखा कर चिढ़ाते हुए बोली कि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही बड़ा दिख रहा है। दरअसल उसका उद्देश्य इस लंड के दर्शन माँ को पास से कराने का था। फिर शालू ने विराज को बिस्तर पर ऐसे लिटाया कि उसका लंड दर्पण की ओर रहे। फिर ठीक जैसे विराज को माँ की चूत दिखाई थी वैसे ही विराज के मुँह पर चढ़ कर अपनी चूत चुसवाते हुए उसने विराज का लंड चूसना शुरू कर दिया।
जब वो थोड़ा गीला हो गया तो दर्पण की तरफ देख कर उसने ऐसे इशारा किया जैसे बड़ा स्वादिष्ट लंड है। उसके बाद एक मस्त चुदाई हुई जिसमें शालू ने विराज के लंड का भरपूर प्रदर्शन किया। आखिर चुदवा के शालू और विराज सो गए और विराज की माँ अपनी चूत रगड़ती रही। अब विराज को सिर्फ ये पता था कि उसने उसकी माँ को देखा है लेकिन उसकी माँ ने उसे भी देखा ये उसे नहीं पता था। अगले दिन शालू ने अपनी सासू से अकेले में बात की।
शालू- देखा ना फिर आपने जो लंड मैंने दिखाया था। कैसा लगा?
माँ- ना बहू … मैं अपनेई मोड़ा संगे … नईं नईं … जे ना हो सके।
शालू- आपने ही तो कहा था बात बाहर गई तो बदनामी होगी। अब ये तो घर के घर में ही है किसी को कानो कान खबर नहीं होगी। आपको इतना चाहते हैं ये … बड़े प्यार से ही चोदेंगे। इतने प्यार से तो जय के पापा ने भी नहीं चोदा होगा।
माँ- मो से नईं होएगो जे सब। तूई आ जाऊ करे एक चक्कर सोने से पेलम, उत्तोई भोत है।
रात को सोने से पहले शालू अपनी सासू के पास गई एक बार फिर विराज को अपनी चुसाई-चटाई का खेल दिखाया और जब सासू माँ को झड़ा के वापस आ रही थी तो सासू माँ का मन किया कि वो आज फिर उनकी चुदाई देखें। शालू दरवाज़े तक पहुँच ही गई थी कि सासू माँ ने उसे रोका।
माँ- बहू! सुन … आज बी कांच खुल्लो छोड़ दइये नी।
शालू- नहीं, आज खिड़की नहीं दरवाज़ा खुला छोडूंगी; आने का मन हो तो आ जाना। ज्यादा कुछ नहीं तो लंड ही चूस लेना। मैं अपनी चूत इनके मुँह पे दबा के बैठी रहूंगी तो पता नहीं चलेगा कि मैं चूस रही हूँ या तुम।
इतना कह कर शालू चली गई।
माँ कुछ देर तक तो उम्मीद लगाए बैठी रही कि शायद दर्पण खुल जाएगा, लेकिन फिर बैचैनी से कमरे में इधर उधर नंगी ही चक्कर काटने लगी। आखिर सोचा खिड़की ना सहीं दरवाज़ा तो खुला है, क्यों ना वहीं जा कर बहू की चुदाई के दीदार कर लिए जाएं। उसने सोच लिया था कि इससे ज्यादा कुछ नहीं करेगी। बस बहू की चुदाई देखते देखते अपनी चूत में उंगली कर लेगी और वापस आ जाएगी।
विराज के कमरे की अटैच्ड बाथरूम कुछ बड़ी थी और दरवाज़े से लगी हुई थी इस वजह से कमरे का दरवाज़ा पूरा भी खोल दो तो अन्दर का पूरा कमरा दिखाई नहीं देता था। हिम्मत करके माँ ने कमरे के अन्दर नग्नावस्था में ही प्रवेश किया और बाथरूम की दीवार के किनारे खड़े होकर अन्दर झाँका। अन्दर का दृश्य ठीक वैसा ही था जैसा शालू ने वादा किया था।
शालू, विराज के ऊपर चढ़ी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे के कामान्गों को चूस व चाट रहे थे। एक तो माँ के दिल की धड़कन तभी से बढ़ी हुई थी जब से वो नंगी अपने बेटे के कमरे में दाखिल हुई थी, ऊपर से ये दृश्य देख कर तो उसके हाथ पैर ही ढीले पड़ने लगे थे। एक तरफ़ा दर्पण के पीछे से चुदाई देखना तो लाइव टीवी जैसा था लेकिन ये सचमुच में आमने सामने का जीवंत अनुभव था।
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RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे शालू ने अपने काम जीवन में नए रंग भरने के लिए पहले अपनी सास के साथ समलैंगिक समबन्ध बनाए और फिर विराज को उसके बचपन की चाहत उसकी माँ की चूत दिलवा दी। आखिर विराज मादरचोद बन गया।
अब आगे…
शेर एक बार आदमखोर हो गया तो बस हो गया; फिर वो वापस साधारण शेर नहीं बन सकता। विराज को भी अपनी माँ की चूत की ऐसी चाहत लगी कि अगले कई दिनों तक उसने शालू के साथ मिल कर अपनी माँ को बजा बजा के पेला लेकिन माँ की उमर जवाब दे चुकी थी।
माँ ने एक दिन बोल ही दिया कि अब वो केवल कभी कभी चुदवाया करेंगी लेकिन विराज ने भी चालाकी दिखा दी- देख माँ! बाक़ी तेरा जब मन करे चुदवा, ना चुदवा… तेरी मर्ज़ी! लेकिन शालू की माहवारी के दिनों में मेरी मर्ज़ी चलेगी। बोलो मंज़ूर है?
माँ- हओ बेटा, तेरे लाने इत्तो तो करई सकत हूँ। अबे इत्ति बुड्ढी बी नईं भई हूँ के मइना में 3-4 बखत जा ओखल में तुहार मूसल की कुटाई ना झेल सकूँ।
उसके बाद माँ अपने तरफ का दर्पण हमेशा खुला रखतीं थीं और रोज़ बेटे बहु की चुदाई देखती थीं। कभी अगर देर से नींद खुलती तो नहाने के लिए बेटा-बहू के साथ ही चली जातीं थीं। तीनो फव्वारे के नीचे एक साथ नहाते, एक दूसरे को साबुन लगते और नहाते नहाते माँ की चुदाई तो ज़रूर होती ही थी।
इसके अलावा जब भी मन करता तो कभी कभी रात को बेटे के बेडरूम में जाकर खुद भी बेटे से चुदवा आतीं थीं; नहीं तो महीने के उन दिनों में तो विराज खुद आ जाता और पटक पटक के अपनी माँ की चूत चोदता था। कभी कभी माँ-बेटे की चुदाई देख कर, शालू माहवारी के टाइम पर भी इतनी गर्म हो जाती कि वो भी आ कर अपनी गांड मरवा लेती थी।
कभी शालू को बोल दिया जाता कि राजन का ध्यान रखे और फिर दिन दिहाड़े किचन या बाहर के कमरे में माँ बेटा की चुदाई हो जाती। यह सुविधा शालू को भी मिलती थी; बस इतना बोलने की ज़रूरत होती थी कि माँ जी ज़रा राजन का ध्यान रखना, मैं रसोई में चुदा रही हूँ।
जब सब मज़े में चल रहा होता है तो समय भी जैसे पंख लगा कर उड़ने लगता है। राजन छह साल का हो गया था और जय और शीतल की बेटी सोनिया दो से ऊपर की थी जब खबर मिली कि शीतल एक बार फिर गर्भवती हो गई है। पिछली बार उसके पेट से होने पर जय ने शालू को चोद कर ना केवल खुद बहुत मज़े किये थे बल्कि शालू ने भी अपनी दो लंडों से चुदाने की इच्छा पूरी कर ली थी।
इसी सबको याद करते करते एक रात विराज और शालू पुरानी यादों में खोए हुए थे।
विराज- उस बार तुमने जय से माँ के कमरे में जा के चुदाया था ना? तब तो तुमने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन तुम माँ के इतने करीब आ जाओगी।
शालू- हाँ, तब तो उनके कमरे में चुदवाना ही मुझे बड़े जोखिम का काम लगा था तब क्या पता था कि एक दिन मैं उनको उनके बेटे से ही चुदवा दूँगी और फिर उनके साथ मिल कर चुदाई किया करुँगी।
विराज- अरे हाँ इस बात से याद आया। तुमको वादा किया था कि अगर तुमने मुझे माँ की चूत दिलवा दी तो जो तू मांगेगी वो दिलवाऊंगा।
शालू- हाँ कहा तो था लेकिन…
विराज- लेकिन क्या? तू बोल के तो देख?
शालू- मेरा तो फिर से दो लौड़ों से एक साथ चुदाने का मन कर रहा है।
विराज- अरे, इसमें मांगने जैसा क्या है ये तो बिना मांगे मिला था ना जब जय आया था। हाँ लेकिन अब तो वो आएगा नहीं… देख शालू, मैं तो बिल्कुल राजी हूँ। तू कहे तो एक बार जा के जय को मना के लाने की कोशिश भी कर सकता हूँ लेकिन उसका आना मुश्किल है। और तेरे ही भले के लिए मैं नहीं चाहता कि अपन किसी ऐरे-गैरे को अपनी चुदाई में शामिल करें। अब तू ही बता कैसे करना है? तू जो कहेगी मुझे मंज़ूर है।
शालू- आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी किसी गैर से चुदाना नहीं चाहती। एक अपना है अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो लेकिन उसके पहले मुझे एक राज़ की बात बतानी पड़ेगी।
विराज- राज़ की बात? मुझे तो लगा तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। सुहागरात पर ही सब सच सच बता दिया था। फिर कौन सी राज़ की बात?
शालू- सुहागरात पर जो बताया वो सब सच ही था। एक शब्द भी आज तक आपसे झूठ नहीं बोला लेकिन एक बात थी जो बस बताई नहीं थी। आप पहले ही गुस्से में थे और मुझे डर था कि अगर ये बात बता दी तो कहीं आप मुझे छोड़ ही ना दो।
विराज- तो फिर अब क्यों बता रही हो? अब डर नहीं है? मन भर गया क्या मेरे से?
शालू- अरे नहीं, अब डर नहीं अब भरोसा है। अब हमारे बीच प्यार इतना गहरा है कि मुझे पता है कुछ नहीं होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि अब मुझे पता है कि आपको यह बात शायद इतनी बुरी ना लगे जितना मैंने सोचा था।
विराज- अब पहेलियाँ ना बुझाओ! बता भी दो!
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